Mujhe bhi saath le chalo in Hindi Horror Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | मुझे भी साथ ले चलो

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मुझे भी साथ ले चलो


आज ऑफिस से लौटते वक्त मुझे काफी देर हो गई थी, गाड़ी खराब होने की वजह से आज शेखर से लिफ्ट लेनी पड़ी l "अच्छा यार अब तुझे यहीं उतरना पड़ेगा, टाइम ज्यादा हो गया है और रीना का बार बार फोन आ रहा है, और वैसे भी यार मौसम मस्त है बारिश होगी आज शायद, टहलते हुए तुम चले जाओ" शेखर ये कहकर चला गया l रात के 10:00 बज गए थे, मेरे मन में आया कि चलो दूसरे रास्ते से चलते हैं टाइम ज्यादा हो गया है लेकिन फिर दिमाग ने कहा यार क्या प्रॉब्लम है रोज तो जाते हो, कितना शॉर्ट रास्ता है ये और वैसे भी मैं इन सब चीजों को नहीं मानता लेकिन आज इतनी देर हो गई थी इस वजह से थोड़ी शंका मन में थी कि कब्रिस्तान वाले रास्ते से जाना सही होगा, बल्कि दिन मे कई बार मै यहां रुक कर ये सोचता था कि बस यही एक जगह है जहां हिंदू मुस्लिम ईसाई सब साथ हैं और शांत हैं क्यूंकि शमशान, कब्रिस्तान और ईसाइयों का कब्रिस्तान सब एक ही सीध मे बने हुए थे, मैं हल्का सा मुस्कुराया और चल दिया, रास्ता थोड़ा ऊबड़ खाबड़ और घने पेड़ो से भरा था, हवा तेज़ चलने के कारण उतना घाना कोहरा नहीं था, मैंने चलना शुरू ही किया था कि झाड़ियों मे कुछ सर्सरहाट हुई, मै रुका और फिर चल दिया, कुछ कदम और चला कि फिर सर्सरहाट हुई, अब मेरी धड़कन बढ़ने लगी ऐसा लगा किसी बच्चे ने आवाज दी "भैया रुक जाओ, मुझे भी ले चलो" मैंने अपने आसपास देखा, कुछ भी नहीं था मैं दो कदम ही चला कि आवाज फिर से आई, "भैया रुक जाओ मुझे भी ले चलो" मेरी धड़कन बढ़ने लगी थी, माथे से पसीना आने लगा था, माथे से निकलने वाली पसीने की बूंदें दिल के डर की गहराई में समाती जा रही थी, कहते हैं कि डर में एक एक कदम चलना मुश्किल होता है, मेरे साथ भी वही हुआ मैं तेजी के साथ चलने लगा और इससे पहले कि मै कुछ और सोचता झाड़ियों मे इस बार बड़ी तेज़ सर्सरहाट हुई और एक मोटा सा कुत्ता चमकीली आँखे, मुह मे हड्डी दबाए वहां से निकला और कब्रिस्तान की तरफ चल दिया, मैंने एक ठंडी चैन की साँस ली, हवाओं का रुख धीरे धीरे और बढ़ रहा था, हिंदू शमशान मे भी आज कोई नहीं था, थोड़ा गौर किया तो कुछ आग दिखी जो अब ठंडी हो चली थी बस हवाएं उसे बुझने नहीं दे रही थीं l मै अब आराम से आगे बढ़ने लगा कि तभी मुझे एक आवाज़ सुनाई दी, "भैया मुझे भी ले चलो" मैंने पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं था, दिसंबर की सर्दी मे भी मुझे पसीना आ रहा था और सर्द हवाएं पेड़ों को हिला रही थीं l मै कुछ कदम और बड़ा की आवाज़ फिर सुनाई दी लेकिन पहले से स्पष्ट और तेज़, मैंने मुड़कर देखना चाहा पर हिम्मत ना हुई, आज मेरा सारा विग्यान और आधुनिकपन मेरे जिस्‍म से पसीना बन कर बहता जा रहा था, मैंने दौड़ना शुरू कर दिया लेकिन ना जाने पर किस चीज़ से टकराया और मै गिर पड़ा, मै सकपका कर उठा तो सामने देखकर मेरे हृदय की धमनियों मे बहने वाला रक्त जाम हो गया, न मै हिल पा रहा था और ना कुछ बोल पा रहा था, सामने एक 13 या 14 साल का बच्चा खड़ा था और कह रहा था, "भैया मुझे भी ले चलो", आप सोच रहे होंगे इसमे डरने की क्या बात थी लेकिन थी क्यूंकि उस बच्चे का मुह था ही नहीं, तो फिर ये आवाज़ कहाँ से, उसने फिर कहा, "भैया मुझे भी ले चलो" l तभी बादल गरज़ने लगे हवाएं और तेज़ हो गईं और बारिश शुरू हो गई, मेरी सोचने और समझने की शक्ति खत्म हो गई थीl नए जमाने की सोच सब धरी की धरी रह गई थी, इससे पहले मैं उठता और भागता की तभी वो बच्चा ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा उसकी आवाज़ पहले से भारी होती जा रही थी और गुस्सा बढ़ता जा रहा था, उसकी आखें लाल हो रही थीं, "भैया उठो मुझे भी ले चलो, ले चलो मुझे भी ले चलो " मै वहां से उठकर भगवान का नाम लेता हुआ ऐसा भागा कि मेरी दोनों चप्पलें वही छूट गई, बारिश तेज़ थी और मै फिर फिसल कर एक गड्ढे मे गिर गया, बारिश का पानी गड्ढे मे भरने लगा, मै चिल्ला चिल्ला कर कहता रहा,गिड़ गिड़ाता रहा "मुझे जाने दो, मुझे जाने दो " पर उस बच्चे ने मेरी एक ना सुनी और वो मेरे पास उस गड्ढे मे आकर खड़ा हो गया, मै डूबने वाला था पर वो इतने गहरे पानी मे भी ऊपर तैर रहा था, तभी उसने मेरे पैरों को कस के पकड़ा और "भैया मुझे भी अपने साथ ले चलो" कहते हुए पानी भरे गड्ढे मे अंदर खींच ले गया, तभी अचानक मेरी आंख खुल गई और देखा मैं अपने कमरे में बिस्तर पे था, तब मेरी जान में जान आई करीब 10 मिनट मै खामोश बिस्तर पे खौफज़दा होके बैठा रहा और फिर उठकर पानी पीने किचन मे चला गया लेकिन जब वापिस कमरे मे आया तो देखा पूरा बिस्तर गीला था मै घबरा गया और वहीं पे बैठ गया पीछे मुड़कर देखा तो कमरे से किचन तक पैरों के निशान बने हुए थे वो भी गीली मिट्टी से, मेरे शरीर मे जैसे बिजली सी कौंध गई, डरते डरते मैंने अपने पैरों को देखा तो वो मिट्टी से सने हुए थे... लेकिन?? इसका मतलब था कि ये सब....नहीं नहीं.. 
मैं कंपते हुए पर्दे को पकड़ उठने की कोशिश करने लगा तो पर्दा टूट गया और पर्दे के पीछे से आवाज़ आई, "मुझे भी साथ ले चलो"... 

कहीं आपको भी तो कोई ऐसा सपना नहीं आया अगर आए तो अपने पैर जरूर देखिएगा l