I am still waiting for you, Shachi - 11 in Hindi Fiction Stories by Rashmi Ravija books and stories PDF | आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची - 11

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आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची - 11

आयम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू, शची

रश्मि रविजा

भाग - 11

(अभिषेक, एक कस्बे में शची जैसी आवाज़ सुन पुरानी यादों में खो जाता है. शची नयी नयी कॉलेज में आई थी. शुर में शचे ने उपेक्षा की पर फिर वे करीब आ गए. पर उनका प्यार अभी परवान चढ़ा भी नहीं था कि एक दिन बताया कि उसे रुमैटिक हार्ट डिज़ीज़ है, इसलिए वह उस से दूर चली जाना चाहती है. वह उसे अपना फैसला बदलने के लिए कहता है. कोई असर ना होता देख एक दिन सबके सामने शची को भला-बुरा कहता है और उसके हृदयरोग से ग्रसित होने का राज़ भी खोल देता है. )

गतांक से आगे

नींद आँखों से कोसो दूर थीं. और आत्मविश्लेषण की प्रक्रिया ने तेजी पकड़ ली. सोचने लगा.. कैसा बुझा बुझा सा व्यक्तित्व हो गया है, उसका. वह प्रफुल्लता, वह उत्साह जाने कहाँ विलीन हो गया है. आत्मविश्वास से दमकते चेहरे पर झाइयां नज़र आने लगी हैं. इस तरह अपना व्यक्तित्व तो चौपट कर ही लिया है उसने और अब लग रहा है, कैरियर डुबोने पर लगा है. पढ़ाई तो बस राम भरोसे है. एक युग हो गया किताबें पलटे. एग्जाम में दिन ही कितने रह गए हैं. हमेशा फर्स्टक्लास लेने वाले को थर्ड क्लास

भी मिल जाए तो गनीमत. किस ताने-बाने में उलझ गयी सारी ज़िन्दगी.

ओह! क्या इसीलिए वह आया है दुनिया में. क्यूँ इस अफेयर को इतना महत्त्व दे डाला ? ठीक है, अगर अनुकूल रहें तब तो उस से खुशनसीब दुनिया में नहीं. पर अगर ना रहें तो क्या इसे एक ख़ूबसूरत ख़्वाब समझकर भूल जाना ही श्रेयस्कर नहीं? क्या उसे हमेशा के लिए ख़त्म कर देने में ही बुद्धिमानी नहीं? एक शूल सा चुभा ह्रदय में. कड़ा कर लिया मन को. हाँ, एक शची ही तो नहीं... हज़ारों हैं दुनिया में. लेकिन यह ख़याल आते ही दूसरे ही पल पश्चाताप से भर उठा. एक टीस सी उठी मन में. यह सब क्या सोचने लगा वह? फिर किस तरह औरों से अलग समझता है, खुद को. शची ऐसा कहती है तो क्या मान लेगा वह? शची 'सबकुछ' नहीं पर 'बहुत कुछ ' तो है. किन्तु इस बहुत कुछ को भी अपने हिस्से से निर्दयतापूर्वक काटकर अलग फेंकना ही होगा. कोई बहादुरी नहीं, मरे हुए सम्बन्ध में प्राण डालने की कोशिश करते रहने में. बंदरिया की तरह मरे हुए बच्चे को सीने से लगाए सुबकते रहने से क्या फायदा? जीवन में और भी तो बहुत कुछ् है करने को.

तीव्र इच्छा जगी मन में. बेडलैम्प जला, ये सारे विचार अभी के अभी कलमबद्ध कर ले. किन्तु बगल वाले बेड पर सोयी आकृति के ऊपर एक छोटा सा लाल धब्बा दिख रहा था. जाहिर था, मनीष सोया नहीं है बल्कि उदासी में धुएं के घूँट भर रहा है. खिड़की के पार हल्का हल्का उजाला नज़र आने लगा, जाने कब आँख लग गयी उसकी.

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मनीष झकझोर रहा था. कमरे में चटकीली धूप फैली थी. घड़ी पर जो नज़र गयी तो चौंक उठा. दस बजकर पच्चीस मिनट.... माई गौड... एकबारगी ही बेड से कूद पड़ा. फ्रेश होकर लौटा तो पाया, मनीष ने ब्रेकफास्ट मंगवा लिया था. कप में चाय ढालते हुए पूछ बैठा, मनीष से, "कितनी देर हो गयी ना... मुझे पहले ही क्यूँ नहीं उठा दिया... कुमार सर कुछ पूछ तो नहीं रहें थे?"

"जरूरत नहीं समझी "

मनीष का स्वर ऐसा था कि आगे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई उसकी. बस चाय के सिप ही उस चुप्पी में अर्धविराम और पूर्णविराम लगाते रहें. एकाएक मनीष ने उसकी तरफ देखा और कहना शुरू किया, "तुम्हे क्या हो जाता है, अभिषेक? ना तुम्हे समय का ख़याल रहता है ना जगह का. क्यूँ इस तरह होश खो बैठते हो तुम ?"

उसने भी दिल खोल कर रख दिया. मायूसी भरे स्वर में बोला, "पता नहीं मनीष क्या हुआ जा रहा है मुझे? हमेशा मन में चिडचिडाहट भरी रहती है. कोई भी मन के विरुद्ध कुछ कहता है तो जी करता है, दो थप्पड़ जड़ दूँ. घर पर भी सब मेरे इस व्यवहार से परेशान हैं. बेवजह ही किसी पर भी बरस पड़ता हूँ. बिलकुल मन नहीं था, इस ट्रिप पर आने का. सोचा माहौल बदलने से कुछ फर्क पड़ेगा. लेकिन देखता हूँ, यहाँ भी वही हाल है... " दोनों हाथ से सर थाम लिया उसने

चाहने के बावजूद, मनीष अपना स्वर संयत नहीं रख पा रहा था, "तुमने मासूम बन कर कह दिया और बात ख़त्म..... पता है कल क्या क्या कहा है तुमने शची को?? "

उसने कोई जबाब नहीं दिया. मनीष की आवाज़ ऊँची हो गयी, "अब क्या हुआ. सांप सूंघ गया... कल तो बहुत उछल रहें थे... क्या तमाशा किया तुमने, कल. तुम्हारे लिए इस लड़की ने क्या क्या नहीं किया. और एक तुम हो.... कि इस तरह उसे जलील करते फिर रहें हो.. "

मनीष आगे कहता रहा, " तुमने ये सब कह कह कर उसे सबकी नज़रों में गिराना चाहा, ना... पर उसकी इज्ज़त और बढ़ गयी है और तुम पर ही हंस रहें हैं सब. "

"नहीं मनीष.. ऐसा नहीं.... " उसने क्षीण प्रतिवाद करना चाहा पर तभी, शची ने दरवाजे से पुकारा, "मनीष तुम्हे सर बुला रहें हैं नीचे. "

शुक्र है उसकी पीठ, दरवाजे की तरफ थी. शची के सामने पड़ने की उसकी हिम्मत नहीं थी.

"आ रहा हूँ ".. मनीष ने बिना सर उठाये ही कहा. और अपनी पुरानी बात पर लौटने को मुहँ खोला ही था कि फिर बोल पड़ी, शची... "जल्दी चलो, जरूरी काम है "

"कह तो दिया आ रहा हूँ... " झल्ला गया मनीष. पर शायद शची गयी नहीं थी. मनीष ने दरवाजे की तरफ गुस्से से देखा और फिर हाथ झटकता हुआ उठ खड़ा हुआ.

मनीष के जाने के बाद उसने भी प्लेट एक तरफ सरका दी. भूख बिलकुल मर चुकी थी. आज विक्टोरिया मेमोरियल और काली बाड़ी जाने का प्रोग्राम था. पर उसका बिलकुल मन नहीं था कहीं जाने का. सोचा नीचे जाकर बता दे.. कहीं उसका इंतज़ार ना करते रहें, सब. बरामदे में पहुंचा ही था कि देखा, कुमार सर तो किसी के साथ बातों में मशगूल हैं. फिर मनीष कहाँ है?

थोड़ा आगे बढ़ा कि खिड़की से देखा हॉल में पड़े कोने वाली टेबल पर शची, मनीष, और विंशी बैठे हैं और कुछ मंत्रणा चल रही है. उनकी बातचीत में अपना नाम सुन, मनीप्लांट की ओट में हो गया. शची बोल रही थी. " वो तो अच्छा हुआ मैं उधर से गुजर रही थी और तुम्हारा तेज स्वर सुन रुक गयी. ये क्या कर रहें हो मनीष??... क्यूँ अभिषेक के मन से मेरे लिए दुर्भावना हटाने की कोशिश कर रहें हो. वह नफरत करे. यही तो अच्छा है. "

ओह! शची तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुमसे नफरत करता हूँ और उसने अपनी आँखें छत की तरफ उठा लीं.. डर था कहीं छलक ना जाएँ अंदर ही आँखों के पानी को जज्ब होने दिया.

"हुहँ जिसके लिए चोरी करो... वही कहे तुम चोर हो " कुर्सी पे निढाल पड़ गया मनीष.

"बात समझने की कोशिश करो, मनीष. अब तो तुम्हे भी सच्चाई मालूम हो गयी है. ऐसे में अच्छा है, अभिषेक नाराज़ ही रहें. इस से दूर जाना आसान हो जाता है "

"एक बात मैं भी कहना चाह रहा था, शची. तुमने इतना सख्त रवैया क्यूँ अपना लिया है... इतना बड़ा क्यूँ बना दिया है इसे... आज दुनिया में किस चीज़ का इलाज संभव नहीं"

"अब ये सब बाते करने का कोई फायदा नहीं. अभिषेक से मेरी काफी बहस हो चुकी है और मेरा फैसला अंतिम है "

"फिर तो उसका यूँ होश खो बैठना स्वाभाविक ही है... तुम किसी की बात ही सुनने को तैयार नहीं. पर एक बात बताओ, तुम यूँ उस से हर रिश्ता क्यूँ तोड़ लेना चाहती हो... एक अच्छी दोस्त तो बनी रह सकती हो. "

"नहीं मनीष, शची का फैसला ठीक है. अगर ये अभिषेक की ज़िन्दगी में नहीं आ सकती तो इसका दूर जाना ही सही है, शची के रहते कभी भी अभिषेक एकनिष्ठ नहीं रह पायेगा, अपनी जीवनसंगिनी के प्रति".... इतनी देर से चुपचाप बैठी विंशी बोल उठी

"ओह, आज तो मेरी भाभी ने दिल से नहीं दिमाग से बात की है ".. शची ने थोड़ा उमग कर कहा पर हमेशा भाभी, संबोधन पर आँखें तरेर लेने वाली विंशी बातचीत की गंभीरता को देख चुप रही.

"शायद तुमलोगों को मालूम नहीं है.. कौन आने वाला है अभिषेक की ज़िन्दगी में. हमारी क्लासमेट कविता. "

"अच्छी तरह मालूम है.. जब अभिषेक की कणिका लोगों से दोस्ती बढ़ रही थी तभी हम दोनों ने गेस कर लिया था.... " विंशी ने कहा और स्नेह से शची को निहारती हुई बोली... "सबकी आँखों में झाँक उनके दिल का हाल मालूम करते रहना ही तो शची का काम हो गया है... लेकिन सबका सुख-दुख

सोचती शची अपना सोचना ही भूल गयी... पर मनीष तुम्हे कैसे पता ?"

"हम्म कविता को तो पता होगा ही... उसके घर में ऐसी चर्चा चल रही है... आंटी ने जिक्र किया था कि कविता के माता-पिता इच्छुक हैं. आंटी ने मेरे द्वारा अभिषेक का मन टटोलना चाहा था. पर मुझे तब तुमलोगों के रिश्ते का ये रीसेंट डेवलपमेंट पता नहीं था, मुझे लगा... कोई मामूली झगडा है, सुलझ जायेगा... इसलिए मैंने आंटी की बात टाल दी पर अब क्या परेशानी है. कविता की सबसे अच्छी दोस्त शायद शची ही है... मैंने शची से ज्यादा उसे और किसी से बातें करते नहीं देखा है".... मनीष के इस नए रहस्योद्घाटन ने तो उसका सर चकरा दिया. उसने बढ़कर दीवार थाम लिया ओह!! तो ये सब खिचड़ी पक रही है.

"नहीं मनीष, तुम नारी मन नहीं समझते, किसी में भी अपने जीवनसाथी की आसक्ति कोई भी स्त्री बर्दाश्त नहीं कर सकती, और वह भी तब, जब कविता सारा किस्सा जानती है. ना, शची का बिलकुल हट जाना ही ठीक है.. " विंशी थोड़ी देर को रुकी और फिर शची की ओर घूम आजिजी से उसका हाथ थाम लिया, "शची फिर भी मैं बोलूंगी... एक बार और सोचो... एंड गिव हिम अ चांस... पुअर गाई.... माई हार्ट गोज़ आउट फॉर हिम... ही सीम्स सो हेल्पलेस... "

"हुहँ हेल्पलेस.. क्या क्या बकवास की है उसने कल... हेल्पलेस... " मनीष ने विद्रूपता से बोला, उसका गुस्सा ठंढा नहीं हुआ था.

"ऐसा होता है मनीष... जब बिलकुल फ्रसट्रेटेड हो जाए कोई तो गुस्सा अपनों पर ही निकलता है... " और विंशी ने शची की ओर देख कर बोला, "आज इन महाशय को बुरा लग रहा है... और खुद इन्हें याद भी नहीं रहता क्या क्या बोल जाते हैं ये "

"यूँ पब्लिक में ??".... बात खुद की तरफ मुडती देख... मनीष की आवाज़ में रोष झलक आया.

"सिचुएशन इज नॉट द सेम मनीष... इन दोनों के बीच कोई संवाद ही नहीं रहा... मैं बहुत दिनों से अभिषेक की फ्रस्ट्रेशन औब्ज़र्ब कर रही थी... पर बिना कुछ जाने समझे कैसे बीच में पडूँ?... अभिषेक बहुत दिनों से घुट रहा था और कल ब्लास्ट हो ही गया... मैं नहीं कहती उसने जो किया ठीक किया... पर जो कर बैठा वो ऐसा भी अनईमैजिनेबल या अन्फौर्गिवेबल नहीं है... "

"तुम लड़कियों के अलग अलग लोगों को नापने के अलग अलग मापदंड होते हैं... मैं ऐसा कुछ करता तो तुम ज़िन्दगी भर मेरा मुहँ भी नहीं देखती... "

"बस बस.... अब तुम दोनों मत लड़ो... और यहाँ बात अभिषेक की हो रही है... तुमलोगों की नहीं ".. शची बीचबचाव करते हुए बोल पड़ी.

"वही तो कह रही हूँ.. शची मैंने रात में तुम्हारी सारी दलीलें, सारे तर्क सुन लिए हैं.... पर एक बार सोचो ना, कोई तो रास्ता निकल सकता है... तुम्हारी सबसे बड़ी चिंता है..... "और मनीष की तरफ देख कर विंशी आगे बोली... "इट्स सो रिडीक्यूलस आज के जमाने में कोई ऐसा सोचता है...... "

मनीष ने हाथ से क्या का इशारा किया.

विंशी के लिए भी जैसे कहना मुश्किल हो रहा था.. थोड़ा रुक कर बोली.. ". इसकी चिंता है कि... शी.... शी कांट गिव हिम एन आयर.... ये कोई उत्तराधिकारी नहीं दे सकती "

मनीष ओह कर के रह गया..

शची नीचे सर झुकाए अपनी हथेलियों पर नज़रें गडाए बैठी थी... एक निश्चय के साथ सर उठाया और बोली... "मुझे अभिषेक की फिकर नहीं है... पर वो किसी का बेटा भी है... हो सकता है.. बेटे की ख़ुशी के लिए वो भी कुछ ना बोलें पर क्या उनके मन में नहीं होगी ऐसी इच्छा... मैं किसी के दुख का कारण नहीं बनना चाहती "

"ओह!! तुम लड़कियों के साथ यही परेशानी है.. जब लड़का किसी लड़की से प्यार करता है तो वह आस-पास, आगे-पीछे कुछ नहीं देखता. उसे सिर्फ और सिर्फ लड़की दिखाई देती है लेकिन जब लड़की किसी से प्यार करती है तो वह लड़के के सिवाय सब कुछ देखेगी, समाज.. उसका परिवार.. ये... वो... अरे जो तुम्हे अपनी जान से बढ़कर चाहता है... तुम्हारे साथ अपनी सारी ज़िन्दगी बिताना चाहता है... सिर्फ उसकी ख़ुशी काफी नहीं है?.. पर नहीं... तुमलोगों को सारी दुनिया की ख़ुशी का ख्याल रहता है... बस उसका नहीं.. शची तुम्हे तो थोड़ा अलग होना चाहिए... तुम भी आम लड़कियों जैसी ही निकलीं... "

"हमलोग ये सारी बहस क्यूँ कर रहें हैं.... तुम क्या सोचते हो अभिषेक से मेरी इन सब पर बात नहीं हुई है... मनीष अब कोई फायदा नहीं... बस तुम इतना करो... उसके लिए थोड़ा आसान बना दो ये सब भूलना"... और शची का गला भर आया... उसने भी अपनी आँखें छत की तरफ उठा दीं... आंसुओं को अंदर ही अंदर पीने के लिए... और एक गहरा निश्वास लेकर बोली.... "आई नो... मैं क्या ठुकरा रही हूँ... अभिषेक से ज्यादा या उस जितना भी प्यार करने वाला मुझे इस जन्म में तो नहीं मिलेगा.. "

अचानक जैसे उसके मन का बोझ हल्का हो गया.. मन ही मन कहा.. 'बस शची ये याद रखना'... और उलटे पैर अपने कमरे में लौट आया.

एक निश्चय के साथ कलम उठायी, एक डायरी निकाली और बस अपने मन के सारे भाव उंडेलने शुरू कर दिए. मनीष आया एक बार कमरे में उसने बिना सर उठाये ही जाने से मना कर दिया.. और बस लिखता रहा..... तब तक लिखता रहा.. जबतक उंगलियाँ बेदम ना हो गयीं और इनकार ना कर दिया... आगे एक शब्द भी आगे बढ़ने से... निढाल हो बिस्तर पर पड़ गया... और एक फैसला कर डाला. अब इस अफेयरको अलविदा कहना ही होगा.

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उसका सोचा और आसान हो गया. शची ने ट्रिप से लौटकर कॉलेज ही छोड़ दिया. अपराध बोध से भर उठा, इतनी ब्राईट स्टुडेंट का कैरियर यूँ समाप्त हो गया. पर फिर सोचा, कम से कम शची को मानसिक सुकून तो होगा... यूँ हर समय रु-ब-रु होना, और पिछली बातें याद करना, बार बार अँधेरी, तंग गलियों से गुजरने जैसा था जहाँ एक रौशनदान भी नहीं. अब जहाँ भी होगी कम से कम खुल कर सांस तो ले पा रही होगी.

उसने भी डूबा लिया किताबों में खुद को. अब किताबें भी आकर्षित करने लगी थीं.. उसने भी मुक्ति कब चाही.

(क्रमशः)