हम भी देख लेंगे तेरे चाहने वाले को उस वक्त
जब तुम मौत के दरवाजे पर खड़ी होगी?
तुम बहुत बोलती हो कि वह
मुझसे प्यार करता है या मैं करती हूं?
हम भी देख लेंगे उस दिन
जब तुम मौत के दरवाजे पर खड़ी होगी?
हर बार तुम सीना तान के खड़ी हो जाती है मेरे सामने
जैसे कि तुमने कुछ किया ही नहीं हो?
मोहब्बत तो हमने भी की है
पर किसी के लिए किसी को नहीं छोड़ा,?
बहुत मुश्किल होता है वादों पर
खरा उतरना पर मैं हर एक वादे को निभाऊंगा?
मेरी जान झुकना पड़ता है तनुष्का
रिश्ते बचाने के लिए कमर तक टूट जाती है?
मत नाप मेरी दोस्ती को किसी के प्यार से
खुदा कसम जब भी मौत आएगी
तेरे दरवाजे पर से अपनी और मोड़ लेंगे?
हम भी देखेंगे उस दिन जब तेरे चाहने
वाले तुझे अकेला छोड़कर जा रहे होंगे?
गलतियां तुम करती हो और
माफी मुझे मांग नहीं पड़ती है?
दिल मेरा दुखता है और
एहसास की बात तुम करती हो?
तुम मुझे किसी के लिए मुझे इग्नोर कर देती हो
मैं तुम्हारे लिए किसी और को इग्नोर कर देता हूं,,,,
मेरे कविता की कलम तनुष्का से यह कविता ली गई है
तनुष्का रूचिका
हेमंत वर्मा
राकेश साई
इंकलाब जिंदाबाद
में निकल पड़ा मोहब्बत को देखने
सुना है कि मोहब्बत बहुत प्यारी होती है.....
चल तो ऐसा रहा था मेरा हाथ पकड़ कर
जैसे पूरे कसमे वादे निभा जाएगा अकेला ही...
मोहब्बत भी जरा सी बहक गई
इन झूठे कसमें और वादों मैं ...
जो कभी देर तक बात किया करते थे
आज वह लोग एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे.....
जान गई थी मोहब्बत अब
इन झूठे लोगों के इरादो को
वह छोड़कर चली आई अपने दामन में ....
मैं देख रहा था मोहब्बत को
झुठे वादों में मजबूर होते हुए...
वह कर गये मोहब्बत को बदनाम बीच रास्तो में
नहीं था कसूर राकेश तुम्हारा ...
चिल्ला उठी मोहब्बत भी यह मंजर देखकर
बचाने को चली हैं अपना ईमान ....
तनुष्का तुम भी देखो जरा आंख खोलकर
यह मोहब्बत लोगों से बचकर अपने दामन में जा रही...
(यह कविता मेरी कविता की कलम तनुष्का से ली गई है)
तनुष्का
राकेश साईं
इंकलाब जिंदाबाद
में निकल पड़ा मोहब्बत को देखने
सुना है कि मोहब्बत बहुत प्यारी होती है.....
चल तो ऐसा रहा था मेरा हाथ पकड़ कर
जैसे पूरे कसमे वादे निभा जाएगा अकेला ही...
मोहब्बत भी जरा सी बहक गई
इन झूठे कसमें और वादों मैं ...
जो कभी देर तक बात किया करते थे
आज वह लोग एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे.....
जान गई थी मोहब्बत अब
इन झूठे लोगों के इरादो को
वह छोड़कर चली आई अपने दामन में ....
मैं देख रहा था मोहब्बत को
झुठे वादों में मजबूर होते हुए...
वह कर गये मोहब्बत को बदनाम बीच रास्तो में
नहीं था कसूर राकेश तुम्हारा ...
चिल्ला उठी मोहब्बत भी यह मंजर देखकर
बचाने को चली हैं अपना ईमान ....
तनुष्का तुम भी देखो जरा आंख खोलकर
यह मोहब्बत लोगों से बचकर अपने दामन में जा रही...
(यह कविता मेरी कविता की कलम तनुष्का से ली गई है)
तनुष्का
राकेश साईं
इंकलाब जिंदाबाद
में निकल पड़ा मोहब्बत को देखने
सुना है कि मोहब्बत बहुत प्यारी होती है.....
चल तो ऐसा रहा था मेरा हाथ पकड़ कर
जैसे पूरे कसमे वादे निभा जाएगा अकेला ही...
मोहब्बत भी जरा सी बहक गई
इन झूठे कसमें और वादों मैं ...
जो कभी देर तक बात किया करते थे
आज वह लोग एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे.....
जान गई थी मोहब्बत अब
इन झूठे लोगों के इरादो को
वह छोड़कर चली आई अपने दामन में ....
मैं देख रहा था मोहब्बत को
झुठे वादों में मजबूर होते हुए...
वह कर गये मोहब्बत को बदनाम बीच रास्तो में
नहीं था कसूर राकेश तुम्हारा ...
चिल्ला उठी मोहब्बत भी यह मंजर देखकर
बचाने को चली हैं अपना ईमान ....
तनुष्का तुम भी देखो जरा आंख खोलकर
यह मोहब्बत लोगों से बचकर अपने दामन में जा रही...
(यह कविता मेरी कविता की कलम तनुष्का से ली गई है)
तनुष्का
राकेश साईं
इंकलाब जिंदाबाद