ग्रैंड पेरेंट्स
आर0 के0 लाल
बच्चों! पिछले हफ्ते हम लोगों ने पेरेंट्स पर चर्चा की थी। आप सभी लोगों ने बताया था कि आप के पेरेंट्स आपके लिए क्या करते हैं और आप उन्हें कैसे प्यार करते हैं। आज ग्रैंडपेरेंट्स के विषय में सभी को बताना है। टीचर ने कक्षा को संबोधित किया।
पहले मॉनिटर ने बोलने की इजाजत मांगी। उसने बताया- “ग्रैंडपेरेंट्स हमारे मम्मी पापा के पेरेंट्स होते हैं जो कभी कभार हमारे घर आते हैं। अक्सर शाम को आते हैं और डिनर के बाद चले जाते हैं। हमारे लिए गिफ्ट भी लाते हैं। हमेशा पूजा पाठ करते रहते हैं। घूमने केवल मंदिर जाते हैं। उनके आने पर घर में चहल पहल बढ़ जाती है। हम सब धमा चौकड़ी मचा लेते हैं। मम्मी कुछ नहीं कह पाती, परंतु पापा तिरछी नजर से घूरते हुए कहते हैं बाबा को जाने दो फिर मैं तुम्हारी खबर लूंगा। बाद में हमारी पिटाई होती है।”
रमन ने बताया- “मेरे दो ग्रैंडपेरेंट्स हैं। एक को हम दादा -दादी और दूसरे को नाना-नानी कहते हैं। दादा-दादी तो हमारे घर के बाहर बने कमरे में रहते हैं। दादू को म्यूजिक और दादी को डांस का बहुत शौक है। हमारे यहां का नौकर काम करने के बाद उनके यहां भी जाकर खाना बना देता है। मुझे उनके यहां का खाना बहुत स्वादिष्ट लगता है। मौका मिलते ही जाकर खा आता हूं । वे भी मेरे लिए बचा कर रखते हैं। नाना नानी जब आते हैं तो मम्मी खुश हो जाती है मगर पापा उदास से दिखाई पड़ते हैं। मम्मी से पूछते रहते हैं कब जाएंगे। बाबा और नाना में खूब बहस होती है । दादी और नानी भी उसमें शामिल हो जाती हैं। हमारा बहुत मनोरंजन होता है। नाना नानी के जाने से हम उदास हो जाते हैं। पता नहीं मेरे घर में ऐसा क्यों है?”
राहुल ने कहा- “हमारे नाना रिटायर्ड चीफ इंजीनियर हैं। मुझे भी इंजीनियर बनाना चाहते है मगर मैं तो पायलट बनना चाहता हूं। कई शहरों में उनके कई मकान हैं। हम भी पापा मम्मी के साथ उन्हीं के एक मकान में रहते हैं। जब भी आते हैं तो हम बहुत खुश हो जाते हैं। वह पापा से कहते हैं कि ये वाला मकान अपने नाम करा लो। घर में सभी लोग उनकी खूब सेवा करते हैं। हम भी खूब मौज मस्ती करते हैं। मगर हर बार बिना मकान ट्रांसफर कराए ही वापस चले जाते हैं। हमारे दादा जी से उनकी नहीं पटती। वे आपस में कम बात करते हैं। मगर दोनों हमें अपने मन की बात सुनाते रहते हैं और एक दूसरे की बुराई कर के। उनकी खुशी के लिए मैं उनकी बात सुनता हूं और बदले में चॉकलेट लेता हूं। मैं सोचता हूं कि दोनों ऐसे क्यों हैं?”
एक बच्चे ने बताया कि ग्रैंडपेरेंट्स वे होते हैं जिनके पास कोई काम नहीं होता। उन्हें कोई नहीं पूछता। फिर भी वे बहुत मस्ती करते हैं। बिना कुछ किए घर में मुफ्त खाते हैं, मम्मी भी हमेशा फल- खाना पहुंचा देती हैं। अपने कमरे में किसी को नहीं जाने देते। सभी बच्चों से अपना काम कराते रहते हैं। न साथ खेलते हैं, न पढ़ाते हैं और न मेरा कोई काम करते हैं। उल्टा हमारे हर काम में कमी निकालते रहते हैं। मेरा कोई फ्रेंड घर आता है तो वे भी वहां आ जाते हैं और उपदेश देते रहते हैं। मुझे तो बिल्कुल अच्छे नहीं लगते। मम्मी जब छोटे भाई को देखने के लिए कहती है तो वह उसे एक मोबाइल पकड़ा देते हैं और खुद दूसरे मोबाइल में बिजी हो जाते हैं।”
अमन ने अपना अनुभव सुनाया- “स्कूल ले जाने और लाने का काम मेरे ग्रैंड पेरेंट्स ही करते हैं। इसलिए हम रास्ते भर बोर होते रहते हैं। उनका हाथ पकड़ना कितना खराब लगता है। मेरे दादा-दादी आपस में हमेशा लड़ते रहते है। उनका साथ कोई नहीं देता जिसकी वे अपेक्षा करते हैं। वे एक बड़े वकील हैं उनके पास हमारे लिए समय नहीं होता है पर दादी और मम्मी की लड़ाई में शामिल होकर कोहराम मचाते हैं। मेरा होम वर्क रह जाता है।”
एक बच्चे ने बताया- “मेरे दादा-दादी के तीन बेटे हैं मगर फिर भी वे लोग वृद्ध आश्रम में रहते हैं। ना जाने क्यो हमारे साथ नहीं रहते? अगर वह रहते तो मैं उनके साथ खेलता और उनसे कहानियां सुनता। जब स्कूल में ग्रैंड पैरेंट डे मनाया जाता है तो मम्मी पापा उन्हें वृद्धाआश्रम से लाते हैं। वै स्कूल से वापस वहीं चले जाते हैं। दादी बताती हैं कि दादा के पास बहुत पैसे थे उन्होंने अपने बेटों में बांट दिया था।”
मेरे दादा दादी मेरे साथ ही रहते हैं संजय ने सभी को बताया। उनके बैंक में बहुत पैसे हैं। उनका बहुत अच्छा व्यापार था। खूब खाते पीते थे। घर में ही एक ‘बार’ बनवा रखा है। रोज दोस्तों के साथ ड्रिंक लेते थे। हम सभी को भी नॉनवेज खाने को मिलता था। मगर अब डॉक्टर ने उन्हें कुछ भी खाने से मना कर दिया है, केवल गोलियां खाने की इजाजत है। वह चल नहीं पाते हैं इसलिए ग्रैंड पेरेंट्स मीट में स्कूल नहीं आते। हम सबको डांटते रहते हैं। कोई उनके सामने जाने की हिम्मत नहीं करता। कोई अपने मन की बात उनसे नहीं करता है।
राघव ने काफी तारीफ की - “मेरे ग्रैंड पेरेंट्स हमें रोजाना घुमाने ले जाते हैं और प्रकृति के बारे में बताते हैं, पेड़ पौधों जानवरों की जानकारी देते हैं, कैटरपिलर एवं तितलियों को पकड़ने में मदद करते हैं। मेरा बिखरा समान ठीक करते हैं। हमारे साथ क्रिकेट और सांप-सीढ़ी और लूडो खेलते हैं। पहले मुझे खिलाते हैं और फिर खुद खाते हैं। नानी और दादी मुझे रोज कहानी सुनाती हैं तभी हम सोते हैं। मेरे नाना रिटायरमेंट के बाद गांव में रहते हैं। उन्होंने बच्चों का स्कूल खोल दिया है अपना सारा पैसा उसी में लगाते हैं। इमानदारी से रहने की सलाह देते हैं मगर मुझे तो करोड़पति बनना है। कैसे बना जाए, वह नहीं बता पाते हैं।”
बगल में बैठे लड़के ने हंसते हुए शेखी बघारी -”अपने ग्रैंड पेरेंट्स को परेशान करने में हमें बहुत आनंद आता है। उनका मुंह हमेशा लटका रहता है। मैं अक्सर उनकी छड़ी छुपा देता हूं और उनका चश्मा भी तोड़ देता हूं। उनको कुछ दिखाई नहीं पड़ता तब मुझे और अच्छा लगता है। वे पापा से कहते हैं कि मेरा चश्मा बनवा दो पर पापा कहां सुनने वाले हैं। वे खीझते रहते हैं मगर हमसे इतना प्यार करते हैं कि कुछ कह भी नहीं सकते। कभी पार्क में मैं घुमाने ले जाते हैं मगर यह कभी नहीं कहते कि जल्दी करो। उनके पास बहुत समय होता है। एक बेंच पर बैठे रहते हैं और हम खेलते रहते हैं, भले ही रात हो जाए।”
एकता बोली - “ग्रैंड पेरेंट्स, हाउ बोरिंग! कितना धीरे चलते हैं। उनके साथ कहीं जाना बड़ी कठिन बात है। हमारे दोस्त मेरा मजाक उड़ाते हैं कि देखो यह बच्ची अपने बूढ़े दादा की गोद में ही बैठी रहेगी। कभी बड़ी नहीं होगी। मुझे बहुत खराब लगता है इसलिए मैं उन्हें अवॉइड करने का प्रयास करती हूं। मम्मी पापा ना जाने क्यों कहते हैं कि उनके साथ घूमने जाओ।”
रानी की बात सुनकर पूरी क्लास हंसने ही लगी। उसने कहा- “मुझे हारर शो देखना और उसकी कहानियां सुनना बहुत पसंद है। इसलिए हम अपने ग्रैंड पेरेंट्स की मदद लेते हैं । वह भी अपने दातों के सेट बाहर निकाल देते हैं। मैं उनके बाल बिखरा देती हूं और फिर कहानियां सुनते हैं। उनसे एक कहानी को कई बार सुना जा सकता है, कभी मना नहीं करते। घर में सभी लोग ताने मारते रहते हैं लेकिन वे सब की चुपचाप सुनते हैं। हम भी उनसे टीवी का रिमोट छीन कर अपना मनपसंद सीरियल देख सकते हैं।
“हमारे ग्रैंड पेरेंट् दुनिया के सबसे स्मार्ट व्यक्तियों में हैं। हमेशा जल्दी जग जाते हैं, व्यायाम करते हैं, घर का सभी काम स्वयं करते हैं। अच्छी बातें बताते हैं, सब का ख्याल रखते हैं और हमसे दोस्त की तरह व्यवहार करते हैं। सिखाते रहते हैं कि किस तरह से समाज एवं स्वयं का विकास किया जाए। हम सब हंसी खुशी मिलजुल कर रह रहे हैं। मुझे उनके ऊपर नाज है।” ऐसा राजीव ने बताया।
किसी ने कहा- “हमारे दोनों ग्रैंड पेरेंट्स शहर के अच्छे डॉक्टर हैं। उनकी क्लीनिक खूब चलती है। डोनेशन देकर पापा को भी डॉक्टर बना दिया है। मेरे लिए भी देने की बात करते हैं। आज भी पैसा कमाने में लगे हैं। हमारे लिए केवल नौकर हैं। न जाने कितना कमाएंगे। मैं सोचता हूं कि अन्य बच्चों की तरह मैं अपने ग्रैंड पेरेंट्स का प्यार पा सकूं।”
लोकेश के दादा-दादी दोनों राजनीति में हैं। उनकी अच्छी रेपुटेशन है। शहर के लोग उन से काम कराने के लिए भीड़ लगाए रखते हैं। अच्छी कमाई हो जाती है। मगर घर में उन्हें कोई पूछता ही नहीं । वे खाने के लिए घर आते हैं और फिर न जाने कहां चले जाते हैं। इससे ज्यादा मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानता, उसने बताया।
इसके बाद छुट्टी की घंटी बज गई।लगता है कि सभी ग्रैंड पेरेंट्स को समय के अनुसार अपने को बदल लेना चाहिए क्योंकि सभी बच्चों की एक जैसी चाहत होती हैl_
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