Aafsar ka abhinandan - 6 in Hindi Comedy stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | अफसर का अभिनन्दन - 6

Featured Books
Categories
Share

अफसर का अभिनन्दन - 6

दुनिया के मूर्खों एक हो जाओ

यशवन्त कोठारी

बासंती बयार बह रही है। दक्षिण से आने वाली हवा में एक मस्ती का आलम है। फाल्गुन की इस बहार के साथ-साथ मुझे लगता है मूर्खों, मूर्खता और तत्सम्बन्धी ज्ञान का अर्जन करने का यह सर्वश्रेष्ठ मौसम है। कालीदास हो या पद्माकर या जयदेव या निराला सभी ने बासंती ऋतु पर जी भर क प्रियों का याद किया है। मधुमास बिताया है । व्यंग्यकार का प्रिय विषय तो मूर्ख और मूर्खता है, अतः आज मैं मूढ़ जिज्ञासा करूंगा। पाठक कृपया क्षमा करें ।

सर्वप्रथम मूर्ख या मूढ़ शब्द को ले.। भाषा विज्ञानी इस शब्द की उत्पत्ति, निष्पत्ति और व्युत्पत्ति पर ही एक पुस्तक लिखने को तैयार है और आलोचक राम जी उस पुस्तक की समीक्षा करके तस्वीर का दूसरा रूख आपके सामने रख दें गे। वास्तव में मूर्ख वो है जो कहीं भी किसी भी विषय पर अधिकार पूर्वक कुछ कह सके , और उसकी बात सुनकर आपको लगे कि शायद फाल्गुन में इस सज्जन का मस्तिष्क बौरा गया है। पगला गया है या होली की मस्ती इन पर कुछ ज्यादा ही छा गई है। चिकित्सा विशेषज्ज्ञों के अनुसार झूठा वो है जिसका ‘आई क्यू’ कम है, शायद आप यह पूछे कि ‘आई क्यू’ क्या होता है, तो श्रीमान विनम्र शब्दो में निवेदन है कि आप मूर्ख साबित हुए है।

इसी प्रकार एक पुराने मरीज का कहना है कि जो जेल और खेल दोनों में पारंगत हो वही सच्चा मूर्ख है। मूर्ख सर्वत्र पाये जाते हैं। हर रंग जाति, किस्म, लिंग के मूर्ख आपको मिल जाएंगे, राजनीति तो मूर्खों का स्वर्ग है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मूर्ख राजनीति में स्वर्गवासी को कहते हैं। आजकल तो पत्र लिख-लिखकर अपनी मूर्खता को इजहार करने का स्वर्णिम युग चल रहा है।

क्या साहित्य, क्या कला, क्या पत्रकारिता, क्या फिल्म, खेल और दूरदर्शन सर्वत्र आपको मूर्खों का साम्राज्य नजर आयेगा। जरा अपना चश्मा उतारकर दुनिया को मेरी नजर से देखिये। है कहीं किसी समझदार का कोई काम ? सच पूछो तो दुनिया में मूर्खता से बढ़कर कोई कर्म नहीं। हर व्यक्ति शादी करने की मूर्खता करता है फिर उस शादी को अन्त तक निबाने की परम मूर्खता करता है। कुछ पहुंचे हुए मूर्ख मरने के बाद कब्र में भी मूर्खता करने से बाज नहीं आते। यदि आप अभी तक सोच रहे हों कि मूर्खता की ऐसी भी क्या आवश्यकता तो यह जान लीजिए कि जीवन में मूर्खता का वही स्थान है जो राजनीति में कुर्सी का, कविता में सवैया का और संस्कृत साहित्य में कालिदास का। जिस प्रकार बिना दीपक के रात क्या, बिना पानी के मछली क्या और बिना शराब के जिन्दगी क्या, उसी प्रकार बिना मूर्खों के संसार क्या।

मूर्खता करना और उसे भर पाना ऐरे-गेरे के बस का नहीं। हिम्मत और दिलेरी चाहिए मूर्खता के लिए, यह कमजोर दिल वालों के बस की चीज नहीं है। जो मरने-मारने पर उतर सकता है, वहीं मूर्खता का बाना पहनकर शहर में घूम सकता है।

वस्तव में परम मूर्ख वहीं है जो राजनीति की आँच पर अपनी रोटिया सेकता है और भर पेट खाने के बाद अकाल या बाढ़ पर लच्छेदार भाषण दे देता है। प्राचीन समय में हर राजा के आसपास एक विदूषक अवश्य होता था। संस्कृत साहित्य के सभी नाटकों में विदूषक को बड़ा महत्व दिया गया था। मगर अर्वाचीन राजनीति में राजा स्वयं विदूषक है। वे ऐसी-ऐसी मूर्खता करते हैं ऐसे वक्तव्य देते हैं कि राजनीति में विदूषक के पद का महत्व ही समाप्त हो गया।

गा धीजी के तीन बंदर, पंचतत्र की कथाएं, हितोपदेश के आख्यान सभी में मूर्खता मूल आधार है, यदि मूर्खता न हो तो तोता-मैना के किस्से कहाँ से आए। विश्व साहित्य में हास्य से ज्यादा व्यंग्य का मूलाधार भी मूर्खता ही है।

कवियों के लिए वे संयोजक मूर्ख है जो उन्हें नहीं बुलाते या मोटा लिफाफा नहीं देते। लेखक के लिए वे सम्पादक मूर्ख हैं जो उनकी रचना नहीं छापते। सम्पादकों के लिए वे लेखक मूर्खं है जो बिना माँगे रचना पर रचना भेजे चले जाते हैं। पति के लिए वो पत्नी मूर्ख है, जो उसे मूर्ख समझती है। राजस्थानी में एक कहावत है ‘अकल कितनी तो कुल डेढ़ एक मेरे में और बाकी आधी दुनिया में ।’ अर्थात् कुल डेढ़ में से एक अकल बोलने वाले के पास है याने कि बाकी सब दुनिया मूर्ख। समझदारी का कुल ठेका मेरे पास।

हिन्दी साहित्य में मूर्खता की परम्परा काफी समय से चली आ रही है। वास्तव में हिन्दी में साहित्य शब्द जो है वो तो बाद में आया और मूर्खता पहले आई। आजकल सारे देश में मूर्ख दिवस, मूर्ख आंदोलन, मूर्ख कवि सम्मेलन महामूर्ख, परममूर्ख, मूर्ख शिरोमणि आदि शब्दो का बोलबाला है जिससे पता चलता है कि ये मूर्खता भरे दिन हैं, मूर्खाता के द्वारा, मूर्खों के लिए, मूर्खों के दिन हैं।

कुछ स्थानों की सज्जनता प्रसिद्ध होती हैं तो कुछ स्थाननों के मूर्ख भी प्रसिद्ध है, मैं नाम इसलिए नहीं गिना रहा हूं कि कहीं अन्य स्थानों के लोग मेरे से नाराज न हो जाएं। मूर्खता के इस आलेख में यदि मूर्खों के परम मित्र या बड़े भाई गदर्भराज का नामोल्लेख नहीं हुआ तो वे अवश्य नाराज हो जाएँगे। अतः उन्हे भी इस पवित्र यज्ञ में आहूत करता हूं।

जहाँ तक मूर्खता करने का प्रश्न है, गदर्भराज चाहे रेंके या दुलत्ती झाडे, उनका हर कृत्य परम मूर्खता से भरा पड़ा है। भारतीय फिल्मों में जो मूर्खता उपलब्ध है वो अन्यत्र कहाँ। हे, दुनिया के चन्द समझदारों , उठो और इन मूर्खों की जमात में शामिल हो जाओ। फिर न कहना कि हमे खबर ना हुई। दुनिया के मूर्खों एक हो जाओ।

0 0 0

यशवन्त कोठारी

86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर,

जयपुर-302002 फोनः-09414461207