प्रिय दोस्तों इन नयनों की भाषा भी अजीब है,
जो केवल दो लोंगो की ही समझ में आती है।
अजब बात ये है कि इस भाषा को जानने के लिए
स्कूल जाने की जरूरत नहीं है, अपने आप समझ में आ जाती है।
दोस्तों, स्कूल के शुरुआती दिनों की बात है, जो अनजान दिल मिलते हैं, और उनके नयनों के बीच में कुछ बातें होती हैं, और मुहब्बत का सिलसिला आगे बढ़ता है।
नायक के मन के जो भाव हैं, वो शब्दों में बयां कर रहा है और कुछ कह रहा है.....
1- "दिल दिवाना हो गया है'"
इन नयन में तुम बसी हो,
उन नयन में मैं बसा हूँ,
कोई मुझको तो जँची है,
मैं किसी को तो जँचा हूँ,
जब नयन का नयन से,
मिलना मिलाना हो गया है,
तब से तेरे इश्क में ये,
दिल दिवाना हो गया है।।
कोयलों सी कुहकती हो,
बन कली तुम महकती हो,
बर्फ सा ना पिघल जाऊँ,
दामिनी सी दहकती हो,
उस गली में जब से,
जाने का बहाना हो गया है,
तब से तेरे इश्क में ये,
दिल दिवाना हो गया है।।
जम के बरसो आ गए हो,
जो हमारे गाँव में,
जन्मों से तपता फिरा हूँ,
ले लो अपनी छाँव में,
इस मरुस्थल की तरफ,
नदियों का आना हो गया है,
तब से तेरे इश्क में ये,
दिल दिवाना हो गया है।।
मिल गए हो जो मुझे,
मन ये तरल सा हो गया है,
था कठिन ये प्रेम पथ,
बिल्कुल सरल सा हो गया है,
आँखों के रस्ते उतरकर,
दिल में आना हो गया है,
तब से तेरे इश्क में ये,
दिल दिवाना हो गया है।।
काव्य के संगीत में,
शब्दों का रस घुल जाएगा,
जो जमी है धूल सपनों पर,
वो सब धुल जाएगा,
जिस्म दो हैं पर दिलों का,
इक ठिकाना हो गया है,
तब से तेरे इश्क में ये,
दिल दिवाना हो गया है।।
2-"मधुआस"
कलियों ने भौरे से पूछा,
आओ जी क्या सुन रहे हो,
किसको नजरें ढूँढती हैं,
मन ही मन क्या धुन रहे हो,
किसको नजरों में बसाए,
घुमते पगडंडियों पर,
किस कली की आस में,
तुम मन ही मन कुछ बुन रहे हो।।
भौरे ने तब ये कहा,
ये प्यार की शुरुआत है,
खुशबू मिल जाये हमारे,
दिल में बस ये प्यास है,
प्यार में लिपटी शहद की,
बस्तियों को चुन रहा हूँ,
बस इसी उम्मीद के पल,
मन ही मन मैं बुन रहा हूँ।।
बेवफा हो तुम सुना है,
हर घड़ी मन बदलते हो,
मन ये चंचल है तुम्हारा,
हर कली पर मचलते हो,
रूप के सौंदर्य का रस पी,
लगा है झुम रहे हो,
किसको नजरें ढूँढती हैं,
मन ही मन क्या धुन रहे हो।।
मिलन का ठहराव,
इस बगिया में होगा तय हुआ था,
प्रेम का था पथ सुसज्जित,
प्रेममय हर पल हुआ था,
प्रेम में भीगी चुनरिया,
ओढ़कर मैं घुम रहा हूँ,
प्रेम में लिपटी शहद की,
बस्तियों को चुन रहा हूँ।।
3-"तुम क्या लग रही हो"
भीगीं भीगीं जुल्फें घटा लग रही हो,
सावन की जैसे छटा लग रही हो,
क्या कहें जानेमन, दिलरुबा ऐ सनम,
कि तुम क्या लग रही हो।।
हवाओं का झोंका गुजरता है जैसे जैसे,
नमीं इश्क की पैदा होती है वैसे वैसे,
आया बसंत लेकर प्यार का सन्देशा,
मादक सी जैसे पवन लग रही हो,
क्या कहें जानेमन,दिलरुबा ऐ सनम,
कि तुम क्या लग रही हो।।
कमर का लचकना, मोरनी भी शरमा गई,
होठों की सुर्खियाँ, कुछ आहत सी जगा गई,
सांवलेपन की खुशबू से मन बहकने लगा,
लूट गया दिल किसी का, कोई बहकने लगा,
"सागर" की बाहों में मौज बनके आजा,
घुँघट में छिपती दुल्हन लग रही हो,
क्या कहें जानेमन, दिलरुबा ऐ सनम,
कि तुम क्या लग रही हो।।
4-"तमन्ना-ए-दिल"
जो आए हो दिल में, छुपा के रखुंगा,
मन के मंदिर में सजा के रखुंगा,
जवाँ धड़कने ये बयाँ कर रही हैं,
तुम्हें अपनी दुल्हन बना के रखुंगा।।
आँखों में बसती है तस्वीर तेरी,
तुमपर है आई तबियत ये मेरी,
महकने लगी है मुहब्बत की खुशबू,
सासों में अपनी बसा के रखूंगा,
जवाँ धड़कनें ये बयाँ कर रही हैं,
तुम्हें अपनी दुल्हन बना के रखूंगा।।
चारो तरफ अब, बस तुम ही तुम हो,
समाई जो मेरे खयालों में तुम हो,
तोहफा मिला प्यार का मुझको तुमसे,
उसे अपने दिल से लगा रखूंगा,
जवाँ धड़कनें ये बयाँ कर रही हैं,
तुम्हें अपनी दुल्हन बना के रखूंगा।।
मिले दिल से दिल, हो गए एक हम,
मिली सारी खुशियाँ, बुझे सारे गम,
"सागर" दिल की जानम यही है तमन्ना,
मुहब्बत की ज्योति जला के रखूंगा,
जवाँ धड़कनें ये बयाँ कर रही हैं,
तुम्हें अपनी दुल्हन बना के रखूंगा।।
5-"करार-ए-दिल"
तू सलामत रहे,
यही रब से दुआ करता हूँ,
करार-ए-दिल न आए तो,
तेरी यादों को छुआ करता हूँ।।
जहाँ में रंग भरा सुना चमन महकने लगा,
मिली है ठंडी छुअन और दिल ये कहने लगा,
दिया है तुमने जो तोहफा मुझे मुहब्बत का,
शुक्रिया दिल से सुबह शाम किया करता हूँ,
करार-ए-दिल न आए तो,
तेरी यादों को छुआ करता हूँ।।
हुआ एहसास मुझको मिल गई चाहत मेरी,
हूँ आज खुश मैं तो, ये है बस इनायत तेरी,
सजी हो प्यार बनके इन मेरी पलकों पे सनम,
मैं ख्वाबों में भी तेरा नाम लिया करता हूँ,
करार-ए-दिल न आए तो,
तेरी यादों को छुआ करता हूँ।।
पिलाया इश्क का मदिरा चढ़ा ये कैसा नशा,
समाई रूह में बस तू, ऐ मेरी जाने वफ़ा,
"सागर" बस तेरे ही प्यार का मैं जाम पिया करता हूँ,
करार-ए-दिल न आए तो,
तेरी यादों को छुआ करता हूँ।।
6-"सखी रे क्या मैं गीत सुनाऊँ"
उन बिन सुना है जग सारा,
था इसमें क्या दोष हमारा,
कैसे प्रीत निभाऊं,
सखी रे क्या मैं गीत सुनाऊँ।।
इस चंदन के सुंदर वन में,
आके बसे थे, वो तन मन में,
आस नहीं कुछ, प्यास नहीं कुछ,
ना कुछ चाहत थी जीवन में,
हो गई कैसे प्रीत पराई,
बात समझ ना पाऊँ,
सखी रे क्या मैं गीत सुनाऊँ।।
मधुर मधुर नित रात सपन में,
बिरह बयार बहे मधुबन में,
राधा के तुम श्याम पियारे,
बुझन लागा आस दिया रे,
कितनी तड़पे सोन चिरैया,
कैसे पीर दिखाऊँ,
सखी रे क्या मैं गीत सुनाऊँ।।
सुखा नीर नयन नदियन के,
टूटी पायल भी पैरन के,
कवन जतन करूँ तुमही बताओ,
नजर लगी है किस सौतन के,
विरह अगन दिन रात जलाए,
कैसे इसे बुझाऊँ,
सखी रे क्या मैं गीत सुनाऊँ।।
धन्यवाद
राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"