92 girlfriends - 2 in Hindi Fiction Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | 92 गर्ल फ्रेंड्स - 2

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92 गर्ल फ्रेंड्स - 2

इसी बीच गेस्ट हाउस के रसोइये ने आकर बताया कि साहब रात के 11 बज चुके हैं आप लोगो का भोजन तैयार हैं। आप लोगों को रात में यही रूकना पडेगा क्योंकि बारिश की वजह से नदी उफान पर है और जाने वाले रास्ते पर भी पानी है। मैंने दो कमरे तैयार कर दिये हैं। आप लोग सुबह नाश्ता करके चले जाइयेगा तब तक पानी भी उतर जाएगा। हम लोगों ने भोजन किया जो कि बहुत ही स्वादिष्ट था। भोजन के उपरांत हम लोगों को नींद नही आ रही थी तो हम सभी कुर्सी लगाकर बाहर दालान में बैठ गये। आरती ने गौरव से कहा कि आप भी कुछ बताइये हम सभी आपको सुनने के लिए बेताब हैं।

गौरव ने बताया कि मेरी पहचान साक्षी नाम की एक लड़की से उसकी मित्र राजश्री के जन्मदिन की पार्टी में हुई। वह कक्षा बारहवीं में पढ़ रही थी एवं अगले वर्ष बी.काम में एडमिशन लेकर इसके साथ ही साथ सी.ए. भी करना चाहती थी। मैंने उसकी सोच की तारीफ की और उसे बताया कि आप सी.ए. के साथ साथ सी.एस. भी कर लीजिए। उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा कि यदि ऐसा हो जाए तो आप क्या अपने कार्यालय में काम करने का मौका देंगें ? मैंने कहा जरूर दूँगा। आप जैसी योग्य और होशियार लडकी मेरे कामकाज और आगे बढायेगी ऐसा मुझे विश्वास है। पार्टी खत्म होने के बाद राजश्री के अनुरोध पर मैं उसे छोडने उसके घर तक गया था। कार से उतरते समय उसने मेरा कार्ड ले लिया और अपना मोबइल नंबर मुझे दे दिया।

इसके कुछ दिनों के बाद एक दिन उसका फोन आया कि आज मौसम बहुत सुहाना है चलो कही कार से लंबी दूरी तक घूम आयें। मैं उसे लेकर निकल पड़ा। कुछ देर बाद उसने कहा कि मुझे कार चलाना भी सिखा दो और उसे कार सिखाने के बहाने अपने एकदम नजदीक ले आया इससे स्वाभाविक रूप से मेरे हाथ उसके शरीर को छूने लगे। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि उसने कोई विरोध नही किया। इसके बाद हम लोग प्रायः मिलने लगे। हमारी नजदीकियाँ बढ़ती गई। इसके कुछ समय बाद अचानक ही उसने मुझसे मिलना जुलना बंद कर दिया जिसका कारण राजश्री के द्वारा उसके घर में मुझसे मिलने की खबर पहुँचाना था। इसके लगभग छः माह बाद एक दिन अचानक ही रात के 12 बजे के आसपास उसका व्हाट्सऐप मैसेज आया कि आप कैसे हैं? मैं उसे भूल चुका था। मैंने उत्तर में पूछा कि आप कौन है? उसका जबाव आया कि मैं वही हूँ जिसको आप कई पर्यटन स्थलों पर अपने साथ ले गये थे। अब मै उसे पहचान गया। मैने उसे मैसेज किया कि इतनी रात आपने कैसे मुझे याद किया ? उसने कहा की आपकी याद आ रही थी इसलिये आपसे बात करने की इच्छा हो गयी। धीरे धीरे हम लोगों के बीच में बातें मर्यादाओं की सीमा पार करने लगी। ऐसा दो तीन रात तक होता रहा और हम लोग देर रात तक चैटिंग करते थे। एक दिन साक्षी ने मुझे शाम के समय एक रेस्टारेंट में बुलाया और मैं निर्धारित समय पर वहाँ पहुँच गया जहाँ उसने मुझे अपनी कुछ आर्थिक कठिनाईयाँ बताते हुए तीस हजार रू. देने का अनुरोध किया। मैंने उससे कहा कि तुम एक संपन्न परिवार से हो तुम यह रकम अपने माता पिता से क्यों नही माँग लेती हो और तुम्हें इतने रूपये किसलिए चाहिए ? उसने कहा कि यह रकम मैंने अपनी मित्र से उधार लिए थे जो कि कपड़े, किताबों, रेस्टारेंट इत्यादि में खर्च हो गये। अब मेरी मित्र मुझसे रूपये वापस मांग रही है। मेरा दिमाग काम नही कर रहा है कि मैं उसे यह रकम कैसे वापस करूँ। आप मुझे यह रकम उधार दे दें मैं धीरे धीरे यह रकम आपको वापस कर दूंगी।

मैंने कहा कि मैं कल बताउँगा। उसने मुझसे जेब खर्च के लिए मदद माँगी। मैंने पर्स निकालकर एक हजार रूपये उसे दे दिये परंतु में आश्चर्यचकित रह गया जब उसने मुझसे पर्स लेकर उसमें रखे हुए बाकि के दो हजार रूपये निकाल लिये और खाली पर्स मुझे वापस कर दिया। इस अकल्पनीय व्यवहार ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि यदि मैं इसे तीस हजार रू. दिये देता हूँ तो यह सिलसिला आरंभ हो जायेगा और ना जाने आगे यह क्या अपेक्षाएँ मुझसे करने लगेगी इसलिए बेहतर होगा कि इसे अभी ही ना कर दिया जाए। मैंने उसे रात में फोन करके रूपये देने में असमर्थता बता दी। इसके दस मिनिट बाद ही उसका मेरे पास फोन आया जिसमें उसकी बातों का तरीका एवं व्यवहार एकदम बदला हुआ था। उसने मुझे सीधे धमकी देते हुए कहा कि कल दोपहर दो बजे तक मुझे रकम मिल जानी चाहिए अन्यथा मैं आपके द्वारा मेरे साथ किये गये वार्तालाप को आपके परिवार तक पहुँचा दूंगी। मैं परेशान हो गया कि इन परिस्थितियों मे मुझे क्या करना चाहिए। मैंने उसे समझाने के दृष्टिकोण से उसे एक रेस्टारेंट में बुलाया और कहा तुम यह गलत कर रही हो ऐसी ब्लेकमेलिंग करना ठीक नही है।

वह बोली मेरी मजबूरी है और मै ऐसा करने के लिए विवश हूँ इसलिए आपसे तीस हजार रू. माँग रही हूँ। मैं आपको कल दोपहर तक आखिरी मौका दे रही हूँ आप मुझे पैसे दे दें अन्यथा मैं मजबूर होकर हमारे बीच हुए अश्लील वार्तालाप को आपके परिवार तक पहुँचा दूंगी। इतनी बात होने पर हम दोनो अपने अपने घर घर चले गये। रास्ते में जब मैंने जेब में हाथ डाला तो देखा कि मेरा पर्स और मोबाइल दोनो गायब थे। मुझे पूरा शक था कि यह काम साक्षी का ही है परंतु मेरा दिल इसे नही मान रहा था। इसलिये इस बात को परखने के लिए मैंने उसे पुनः दूसरे दिन दोपहर में मिलने के लिए एक रेस्टारेंट में बुलाया और अपनी जेब में दो हजार रू. एवं एक नया मोबाइल रख लिया। इस बार मैं पूर्णतया सजग था। उसने रेस्टारेंट में आते ही मुझसे सीधे कहा कि तुम रूपये लाये हो क्या ? मैंने उसे अपने पास बैठने के लिए इशारा करते हुए कहा कि मुझे इसी संदर्भ में तुमसे बात करनी है। उसने पुनः अपनी बात दोहराई कि क्या रूपये लाए हो ? मेरे ना कहते ही वह बिना कोई बात किये उठकर जाने लगी तो मैने उसे कहा कि मुझे शाम तक का समय दो मैं कही से इंतजाम करने की कोशिश करता हूँ यह सुनकर वह मेरे पास आयी और कहा कि ठीक है यह आखिरी मौका है इस बार मैं और कोई बात नही सुनूंगी। इतना कहकर वह तुरंत वहाँ से चली गई। जैसे ही वह गई मैंने बिल चुकाने के लिए जेब में हाथ डाला तो आश्चर्यचकित रह गया कि मेरे रूपये और मोबाइल पुनः गायब थे। इस बार शक पूर्णतया यकीन में बदल गया कि यह काम सिर्फ साक्षी का ही है परंतु मैं घोर आश्चर्य में था कि मेरे पूरी तरह से सजग होते हुए भी कैसे उसने रूपये और मोबाइल निकाल लिये ? इस घटना के तुरंत बाद मैंने आनंद को फोन किया और उसे पूरी बात बताई परंतु घटना जानने के पश्चात उसके होश उड़ गए और उसने लड़की का मामला होने के कारण किसी भी तरह की सलाह देने में असमर्थत व्यक्त कर दी और इतना ही कहा कि इस बारे राकेश ही सही सलाह दे सकता है। मैं तुरंत ही राकेश के घर गया और उसे सारी बातों से अवगत कराया। उसने मुझे कहा कि चोरी के मामले को तो भूल जाओ और रही ब्लेकमेलिंग की बात तो इससे घबराना नही और बिना डरे उसे स्पष्ट कह दो कि तुम्हें जो करना है कर लो मैं सबसे निपट लूँगा परंतु तुम्हें पैसा नही दूँगा। राकेश की बातों से मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं रूपये नही दूँगा अन्यथा यह सिलसिला अनवरत चलता रहेगा और जीवन भर मुझे ब्लेकमेलिंग का शिकार होना पड़ेगा।

रात्रि में साक्षी का फोन आया कि क्या हुआ तुम तो शाम तक रूपये देने वाले थे ? मैंने उसे डाँटते हुए स्पष्ट कह दिया कि पहले मेरी जेब से चुराए हुए रूपये और मोबाइल वापस करो फिर कोई बात करेंगें अन्यथा तुम्हें जो करना है कर लो मैं सबसे निपट लूँगा। इतना सुनते ही साक्षी ने पुनः मेरे परिवार को सारी बातें बताने की धमकी देते हुए फोन काट दिया। उस दिन से लेकर आज तक साक्षी का कोई फोन नही आया और ना ही कोई बात मेरे परिजनो तक पहुँची।

आरती और पल्लवी कहती हैं कि आनंद एक अच्छे कवि हैं और आज मौसम भी बहुत सुहाना हो गया है। इस शानदार मौसम में अगर आप कुछ कविताएँ सुनाए तो बडा आनंद आएगा। आनंद कहता है कि ठीक है मैं कविताएँ सुनाता हूँ:-

मन भटक रहा है

मंथन कर रहा है।

प्रेम तथा वासना में

अंतर समझ रहा है।

पत्नी की मांग में सिंदूर

उसे सप्त वचन की

याद दिला रहा है।

प्रेम व प्यार बाजार में

उपलब्ध नही,

यह है भावनात्मकता का आधार।

धन से वासना मिल सकती है

पर प्रेम सुख नही।

जीवन में पत्नी का हो सच्चा साथ

तो यहीं पर है सच्चा प्रेम व प्यार

तब यही बनता है

तृप्ति से जीने का आधार।

पर यदि यह उपलब्ध नही

तब जीवन में

तनावग्रस्त रहना ही

है तुम्हारा दुर्भाग्य।

इसके बाद मैं दूसरी कविता सुनाता हूँ:-

प्रेम एक अनुभूति है

जिसका कोई स्वरूप नही

जिसका कोई विकल्प नही

एक ज्योति है

हृदय में होता है जिसका प्रकाश

एक अहसास है

एक कल्पना है

जो वास्तविकता में परिवर्तित हो

बनती हैं जीवन का आधार

एक तपस्या है

भावनाओं का समर्पण है

एक ऐसी भक्ति है

जिसका ना तो प्रारंभ है

और ना ही कहीं अंत है।

यह तिरस्कार नही है

इसमें है सुख और शान्ति

इसमें है जीने की कला

यह देता है

तन और मन को बल

आत्मा को चेतना।

विपरीत परिस्थितियों में भी

समर्पण होता है

हाँ हाँ यही तो है

सच्चे प्रेम का आधार।

आनंद की कविताएँ सुनकर सभी प्रसन्नता से वाह वाह कर उठे। अब मानसी के अनुरोध पर आरती और पल्लवी के कहने पर वह अंतिम कविता सुनाता है।

प्रेम पुजारी हैं हम,

प्रेम की ज्योर्तिगमय गंगा बहाते चलो।

राह में आयेंगी जो कठिनाइयाँ

उनको प्रेम से मिटाते चलो।

प्रेम है पूजा, श्रद्धा, भक्ति

प्रभु को पाने का आधार

प्रेममय वसुंधरा को बनाकर

हर्ष एवं उल्लास का जीवन

साकार करते चलो।

प्रेम से दिलों को जीतकर,

उन पर राज करते चलो।

माता पिता से प्रेम का आशीर्वाद लेकर,

नवजीवन जीते चलो।

प्रेम है चेतना,

सामाजिक शान्ति का आधार,

अपनी कल्पनाओं को

प्रेममय रूप में साकार करो,

प्रेम से जीवन जीकर ,

प्रेममय रस में विभोर होते हुए,

अनन्त में प्रस्थान करो।

कविता सुनकर सभी बड़ा आनंदित महसूस कर रहे थे तभी मानसी ने कहा कि अब बहुत रात हो चुकी है और हम सभी को अब विश्राम करना चाहिए। सभी मानसी से सहमति व्यक्त करते हुए अपने कमरों में सोने के लिए चले जाते हैं।

दूसरे दिन सुबह मौसम खुल जाता है। गौरव सुबह 6 बजे उठकर बाहर आता है। पछियों की चहचहाहट, सुबह की शुद्ध हवा एवं सामने बहती हुयी नदी का अलौकिक दृश्य देखकर खुश हो जाता है। इसी समय आरती भी बाहर आती है और गौरव को देखकर उसके पास आकर गुडमार्निंग कहती है। वह भी गुडमार्निंग कहकर उसे अपने पास बैठा लेता है। गौरव कहता है कि तुम इतनी जल्दी कैसे उठ गयी ? आरती कहती है कि मेरी आदत तो सुबह 5 बजे उठने की है। कितना मनोहारी दृश्य है। सूर्य का उदय होने ही वाला है आकाश में कैसी अनुपम लाल छटा छायी हुयी है ऐसे दृश्य को देखकर तुम कुछ कहो। गौरव कहता है कि मैं नर्मदा नदी के तट पर प्रातःकाल सूर्य भगवान के दर्शन कर रहा हूँ मेरे मन में आत्मा क्या है, क्यों है, कैसी है ? आदि का गंभीर चिंतन चल रहा है। मैं सोच रहा हूँ आत्मा में चेतना का समावेश परमपिता परमेश्वर के द्वारा होता है और इसका खत्म हो जाना मृत्यु है। हमें कितने दिन जीवित रहना है और कब मृत्यु को प्राप्त होना है, यह परमात्मा के हाथों में है। मृत्यु के उपरांत आत्मा कहाँ जाती है यह किसी को नही मालूम परंतु प्रभु आत्मा को किसी भी स्वरूप में भेजकर जीवात्मा बना देते है। मैं सोच रहा हूँ कि इस जन्म को मैं पूर्ण सुख शान्ति और संतुष्टि से जियूँ। आरती कहती है कि आप तो एकदम दार्शनिकों के जैसी बातें कर रहे है। हम लोगों के साथ आप का मन नही लग रहा है क्या ? गौरव कहता है कि मैं जानता हूँ कि तुम्हारी भी साहित्य में रूचि है और तुम्हारे द्वारा विभिन्न सामयिक विषयों पर तुम्हारा चिंतन कई पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित होता रहता है। तुम भी ऐसे सुंदर दृश्य को देखते हुए अपने विचार व्यक्त करो। तब आरती कहती है कि अच्छा मैं भी आपको एक कविता सुनाती हूँ।

सूर्योदय हो रहा है

सत्य का प्रकाश विचारों की किरणें बनकर

चारों दिशाओं में फैल रहा है

मेरा मन प्रफुल्लित होकर

चिंतन मनन कर रहा है

प्रभु की कृपा एवं भक्ति का अहसास हो रहा है

समुद्र की लहरों पर

ये प्रकाश की किरणें पड़ती हैं

तो तन, मन, हृदय एंव आंखें

ऐसे मनोरम दृश्य को देखकर

शांति का आभास देती हैं

सुख और सौहार्द्र का वातावरण

सृजन की दिशा में प्रेरित कर रहा हैं।

आज की दिनचर्या का प्रारंभ

गंभीरता से नये प्रयासों की

समीक्षा कर रहा है।

शुभम् मंगलम् सुप्रभातम्

हमारी अंतरात्मा

वीणा के तारों का आभास देकर

वीणावादिनी सरस्वती व लक्ष्मी का

स्मरण कर रही हैं

तमसो मा ज्योतिर्गमय के रूप में

दिन का शुभारंभ हो रहा है

सूर्यास्त होने पर

मन हृदय व आत्मा में समीक्षा होगी

और आगे आने वाले कल की प्रतीक्षा में

जीवन का क्रम चलता रहा है और चलता रहेगा।

तभी खानसामा चाय लेकर आ जाता है। चाय पीते पीते गौरव कहता है कि आरती मेरे मन में तुम्हारे प्रति बहुत सम्मान एवं आदर का भाव हो गया है। आरती भी कहती है कि मुझे भी आपका स्वभाव अच्छा लगा आप एक नेक इंसान हैं। वक्त और परिस्थितियाँ जीवन में कब क्या ना करा दें यह कहना कठिन है परंतु हमें नैतिक मूल्यों, अपनी सभ्यता संस्कृति और संस्कारों को नही भूलना चाहिए। उनके बीच वार्तालाप के दौरान ही राकेश, आनंद, पल्लवी और मानसी भी आ जाते हैं और सभी चाय, नाश्ते के बाद वापिस चलने की तैयारी करते हैं। पल्लवी, आरती और गौरव, आनंद एक कार में और दूसरी कार में राकेश एवं मानसी रवाना होते हैं।

रास्ते में आनंद हंसी मजाक करता हुआ आरती और पल्लवी को बताता है कि गौरव में सब अच्छाइयाँ हैं केवल एक को छोडकर कि यह रूपये खर्च करने में बहुत कंजूस हैं। कुछ माह पहले ही इसने अपनी तथाकथित गर्लफ्रेंड के उपर मुझसे 15 हजार रू. खर्च करवा दिये। मेरे ना करने पर भी ये उसका दीवाना था। नतीजा यह निकला कि मुझे चूना लगाकर वह ना जाने कहाँ चली गयी और इनकी दीवानगी भी खत्म हो गयी। आरती और पल्लवी ने कहा कि जरा विस्तार से बताओं क्या हुआ था। आनंद कहता है कि निवेदिता नाम की एक लडकी इनको गार्डन में मिली उसने इनसे दोस्ती कर ली। तीन चार दिन ये लोग मिलते रहे। एक दिन मुझे भी अपने साथ ले जाकर गौरव ने उससे परिचय करवाया। उसे ब्रांडेड कपडे खरीदना थे और ब्यूटी पार्लर में फेशियल हेयर कटिंग और ना जाने क्या क्या करवाना था। इनको उसी दिन काम से भोपाल जाना था इसलिये इन्होंने उसे मेरे साथ कर दिया। उस दिन वह मेरे साथ मार्केटिंग करती रही और पंद्रह बीस हजार का बिल मुझे गौरव के कारण चुका दिया। उससे बातचीत के दौरान मैं भांप गया कि यह साधारण, सीधी सादी लडकी नही है। दूसरे दिन निवेदिता ने पुनः दिनभर का शापिंग का कार्यक्रम बना लिया था। गौरव भी दूसरे दिन सुबह वापिस आ गया था और मैंने उसे फोन पर सब बातें समझा दी थी कि इस लड़की से दूर रहो यह बातें करने में बहुत मीठी है एवं व्यवहारकुशल है परंतु चालाक नजर आती हैं। गौरव को मेरी बातें समझ में नही आयी ये उसे दिन भर शापिंग कराते रहे। शापिंग के दौरान गौरव ने करीब बीस से पच्चीस हजार रू. खर्च कर दिए थे वह भी इस वादे पर कि रात में डिनर वे दोनो साथ साथ लेंगे एवं कहीं लांग ड्राइव पर चलेंगे ताकि मित्रता और प्रगाढ़ हो सके। शाम को निवेदिता ने इन्हें रेस्टारेंट में मिलने के लिये बुलाया, ये वहाँ इंतजार करते रहे परंतु वो नही आयी। उसने जो मोबाइल नंबर दिया था वह भी बंद हो गया था और शहर में जो पता उसने दिया था वह भी फर्जी निकला। तब इन्होंने मुझे फोन करके बताया कि तुमने जो कहा था सही निकला वह लडकी बेवकूफ बनाकर चंपत हो गयी। मैंने इन्हें पहले ही समझाया कि कभी भी किसी भी अंजान के साथ उसके विषय में पूरा पता करने के बाद ही उसके साथ सोच समझकर आगे बढ़ना चाहिए आजकल की लडकियाँ इस प्रकार की दोस्ती बनाकर अपना उल्लू सीधा कर लेती हैं। अब जो हो गया उसे भूल जाओ भविष्य में सावधान रहना। रास्ते में बातचीत होते होते आरती और पल्लवी का हास्टल आ गया और वे दोनो उनसे विदा लेकर अपने हास्टल में चली गयी।

मानसी को लेकर राकेश वापिस आ रहा था, रास्ते में राकेश ने बताया कि आनंद ने मुझे एक दिन उकसाया कि अवंतिका नाम की एक बहुत सुंदर व आधुनिक संस्कृति की हिमायती लड़की है जिसने कालेज में तहलका मचा के रखा है कई लोग उसके दीवाने है पर वह किसी को घास नही डालती। उसे हिंदी में बात करना तो मानो आता ही नही है। वह अंग्रेजी बोलकर सबको प्रभावित करती है। तुम उससे मित्रता करके बताओ तो मै तुम्हारी काबिलियत मान जाऊँगा। मैंने आनंद से पूछा कि तुम उसे कैसे जानते हो वह बोला कि मेरी पहचान उसके पिताजी से है। मैं तुम्हें उसके घर अपने साथ ले जा सकता हूँ। मैंने कहा कि बिना बुलाए मैं किसी के घर नही जाता हूँ तुम एक काम करना कि अवंतिका को यह बताना कि तुम्हारा एक मित्र