Mujhe saza na do in Hindi Biography by Surjeet Singh Bindra books and stories PDF | मुझे सजा ना दो

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मुझे सजा ना दो

जीत :1  ये उन दिनों की बात है जब मैं घुटने के बल पर चलता था. मेरे पिताजी गरीबी से तंग आकर मां से लड़ते हुए घर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं और झगड़ रहे हैं, मां गिड़गिड़ा रही है, एक ओर सटोव पर कुछ पकाने के लिए रखा था, मैं उस ओर खिसकने लगा था, मां ने देखा तो घबरा कर मेरी ओर लपकी, पिता को अवसर मिला और भागने में सफल हो जाते हैं.मां ने देखा तो घबरा कर मुझे गले लगा कर रोती तडपती रही.
सर से छत् भी छिन चुकी थी,मां को आभास हो रहा था तुफान के आने का, मां ने खाट पर बांस बांध कर तंबू सा बना दिया और तीनों भाईयों को उसमें छिपा दिया और खुद बाहर भीगती रही मगर हार नहीं मानी-बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, उन्ही दिनों बलजीत नगर में मकान बन रहे थे और मां को वहां पत्थर तोड़ने का काम मिल गया था.बड़े भाई स्कूल जाते थे और में मां के साथ बैठकर खेलता रहता था. आदतन मां इस हालत में भी ईश्वर का भजन गा रही थी, आवाज़ सुनते हुए एक राहगीर रुक कर सुनता रहा, किशोर कुमार का करोलबाग में संगीत का विद्यालय था.धर्म भाई बन कर मां को संगीत सिखा दिया, मां ने अब धीरे-धीरे धार्मिक जलूस मे गाने लगी थी साथ ही रेडियो स्टेशन पर गाने का प्रयास करने लगी थी,मेरी भी उम्र हो गई थी पढ़ने की अतः तीनों को नजफगढ़ छात्रावास में दाखिल कराया गया और सवयं आकाशवानी मे गाने का प्रयास करने लगी थी उन्ही दिनों सुरिनदर कौर व प्रकाश कौर मां की परम मित्र बन चुकी थी और धीरे-धीरे ख्याति अर्जित करने लगी थी, जान पहचान भी बढ़ ने लगी थी एक गबरू जवान सिख युवक भी प्रभावित होकर जिन्दगी में आ गया, ये सब कैसे हुआ कब हुआ क्यो हुआ था हम सब नहीं जानते थे बस इतना ही पता चला कि वह हमारे पिता बन गए हैं.हमे छात्रावास से निकाल कर पटेल नगर के घर लेकर आगये 26ब्लाक, वहां जाकर पता चला कि हमारे एक बहन दो भाई और भी हैं.
न जाने क्यों मुझे मेरी सौतेली बहन कयौ मुझसे नफ़रत करतीं हैं और एक दिन तो मेरा गला दबाने की कोशिश की किस्मत से मां कपड़े सुखाने छत पर आ गई वरना, मां ने उनके साथ रहने से मना कर दिया तो वो मकान उन्हे दे कर सुन्दर नगर 147नम्बर सूडान एम्बेसी की कोठी में आ गए सरवेनट क्वाटर में, 1964की बात है जब चा चा नहरू स्वर्ग सिधार गये थे तब पुराने किले में सरकारी स्कूल था जिसमे हम पढ़ा करते थे. सूडान एम्बेसी वहां से जब चली गई तो पिताजी आई.टी.डी.सी. में वाहन चालक के रूप में काम करने लगे थे, फिर सिधारथ नगर में 1971तक फिर जनक पुरी जनता फ्लेट में रहे.यहाँ दो फ्लेट और लिए, यही पर धर्म बहन मधु मिली,इस बीच पता चला कि हमारे पहले पिता माफी मांग रहे हैं मगर मां ने मना कर दिया, हमारी एक बहन भी है, दिमाग को झटका लगा.?-----शेष फिर क्रमशः