नियति
सीमा जैन
अध्याय - 6
दीपा जब शिखा के कमरे में पहुंची तो शिखा सो रही थी। दीपा ने उसे उठाया और बताया कि रोहन और सुषमा मासी आए हुए हैं । शिखा को सुनकर आश्चर्य हुआ। दीपा ने आगे बताया कि शालिनी उसकी और रोहन की शादी के लिए मान गई है। शिखा हतप्रभ रह गई, मां ने वादा किया था साथ देने का, तो क्या ऐसा साथ देने वाली थी । उसको रोहन के सुपुर्द कर के अपना पल्ला झाड़ रही थी । रोहन के लिए उसके मन में कितनी घृणा थी कितना अकडू इंसान था एक बार भी माफी मांगने नहीं आया। ऐसा नशेबाज कि नशे में धुत होने के बाद इतना भी होश नहीं रहता कि क्या कर रहा है उचित या अनुचित। उस दिन पलंग पर कोई भी स्त्री होती वह ऐसा ही करता, ना उसे रिश्ते की समझ है ना रिश्तो का लिहाज । औरतों की तो शायद वह इज्जत करना जानता ही नहीं है । पैसे के नशे में चूर एक इंसान से उसकी शादी करके मां उसकी शेष जिंदगी भी बर्बाद करना चाहती है। लेकिन वह भी मजबूर है। इस मुसीबत से निकलने का इससे अच्छा मार्ग वे नहीं सोच पा रही होगीं। शिखा बहुत देर तक इन विचारों में डुबकी उतरती रही । दीपा को लगा कहीं शिखा को विवाह की सूचना देकर उसने गलती तो नहीं कर दी। शालिनी आंटी स्वयं बताती तो शायद ज्यादा अच्छा रहता।
नाश्ता लगाकर शालिनी शिखा के कमरे में आई और बोली, " जल्दी से तैयार होकर बाहर आ जाओ, रोहन और उसका परिवार आया है। "
इस समय कुछ समझाने के लिए वक्त नहीं था। शिखा के मुंख को देख कर और दीपा की वहां उपस्थिति से शालिनी समझ गई थी शिखा को सब ज्ञात हो गया है। एक ठंडी सांस भरकर वह कमरे से बाहर चली गई।
शिखा जब सामने आई तो सुषमा देखकर हैरान रह गई। फूल सा चेहरा मुरझा गया था, मोटी तो पहले भी नहीं थी लेकिन भरे बदन की शिखा बिल्कुल सूख गई थी। चेहरे पर आंखों के नीचे काले निशान बन गए थे। कुछ महीनों में इतना अंतर, अंदाजा लगाया जा सकता था कि कितनी परेशानी झेल रही थी बिचारी । कितना भार पड़ रहा था उस पर । रोहन भी देख कर दंग रह गया, वीडियो में शिखा का अलग ही रूप देखा था, चहकती, इतराती, बनी ठनी शिखा और सामने खड़ी शिखा में कोई मेल नहीं था। सुषमा ने खड़े होकर शिखा को गले लगाया फिर अपने गले में पड़ी सोने की चेन शिखा के गले में डाल दी। ग्यारह सौ का लिफाफा दिया। शिखा ने झुककर सब के पैर छुए। गुप्ता जी इस दौरान पांच मिठाई के डब्बे ले आए । शालिनी ने भी टीका करके रोहन को इक्कीस सौ का लिफाफा दिया। सुषमा बोली, " अब बहनजी, शिखा हमारी अमानत है आपके घर । दो-तीन दिन में ही मुहूर्त देखकर मंदिर में दोनों का विवाह करा देंगे। उसके बाद एक छोटा सा रिसेप्शन दे देंगे । "सब कुछ बहुत जल्दी हो रहा था लेकिन उस समय जल्दी करना अनिवार्य लग रहा था।
रिश्ता पक्का करके, आगे की कार्यवाही निश्चित कर मेहमानों ने विदा ली। शालिनी और शिखा घर में अकेले रह गए थे। शालिनी इस पल को लेकर घबरा रही थी, कैसे शिखा को समझाएगी, उसकी नफरत रोहन के लिए वह समझती थी।
शिखा ही पहले बोली, " मां तुम ऐसा कैसे कर सकती हो, जिस इंसान से मैं सबसे अधिक नफरत करती हूं उससे ही मेरे संपूर्ण जीवन बांध रही हो। " शालिनी थकी हुई सी बोली, "इस स्थिति में मुझे यही सबसे अच्छा विकल्प लग रहा है । अकेले समाज का सामना करना बहुत मुश्किल हो जाएगा । इस बच्चे के भविष्य के लिए सबसे उचित कदम यही होगा। तुम्हारे दिमाग में कोई और उपाय हो तो बताओ । "
शिखा समझ गई थी मां ने निर्णय ले लिया है और उसे बदलना अब बहुत कठिन है।
शिखा ने एक बार फिर कोशिश की, " लेकिन मेरी बर्बादी का कारण रोहन है और उसके साथ रात दिन एक घर में रहना कैसे संभव है । "
शालिनी बोली, "यह मत भूलो सुषमा जी भी वहां रहेंगी। उनके जैसी नेक दिल औरत इस दुनिया में मैंने नहीं देखी । वे स्वयं आगे बढ़कर हमारी सहायता करने आई है । वह तुम्हारे साथ इंसाफ ही करेंगी। वैसे भी जब तक बच्चा नहीं हो जाता तुम वहां रहना। इस दौरान तुम्हें लगा सब ठीक है, तुम अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना, वरना तलाक ले लेना। "
शिखा को सुनकर कुछ राहत मिली देखते हैं भविष्य के गर्भ में अब उसके लिए क्या छुपा है।
गुप्ता जी ने बहुत कहा सुषमा से घर चलने को, लेकिन वह जानती थी रोहन गुस्से में पागल हो रहा है । एक एक पल उसको भारी लग रहा है, ऐसे में पहले अकेले में उससे बात करना अधिक उचित होगा। खन्ना साहब से कैसे निपटेगी। इतने दिनों में जो शादी के प्रबंध में लगी थी, कई स्थानों पर किराया भी भर दिया था । वह सब रद्द करना पड़ेगा । सुषमा का सिर घूम रहा था इसलिए उसने अपनी बहन से विनम्रता से विदा ली।
गाड़ी में बैठते ही रोहन बंदूक की गोली की तरह छूट पड़ा। बहुत गुस्से से बोला, " मां आप मेरे बारे में इस तरह कैसे निर्णय ले सकती हो। ऐसा आज तक नहीं हुआ, मैं बैठा हूं और सब मेरे बारे में ऐसे बात कर रहे हो मानो मैं उपस्थित ही नहीं हूं । और मुझे सारी जिंदगी ऐसी लड़की के साथ बिताना पड़ेगा जिसे मैं जानता तक नहीं । जितना उसे जान पाया हूं उस से मुझे सख्त नफरत है । जब से मेरी जिंदगी में आई है मेरा जीवन उलट-पुलट कर दिया है । मुझे एक अपराधी जैसा बना दिया है, हर कोई मुझे ऐसे देखता है जैसे मैंने किसी का खून कर दिया हो। "
सुषमा धैर्य के साथ बोली, " खून तो हुआ है, एक मासूम लड़की के मान का खून हुआ है । जो कुछ हुआ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में तुम्हारी गलती है, तुम इस बात से इंकार नहीं कर सकते। एक मासूम लड़की की जिंदगी बर्बाद हो गई है। अभी हमारा कर्तव्य बनता है कि इस गलती को जितना ठीक कर सके करें। इस समय जो उचित लग रहा है हम सब मिलकर वही करने की कोशिश कर रहे हैं । आगे का समय पर छोड़ देना उचित है। फिर तुम दोनों नाम की शादी कर रहे हो, साथ रहना अगर एक-दूसरे को पसंद करने लगे तो। इस शादी को आगे निभाना वरना अलग होकर अपने अपने तरीके से जीवन बिताना। बच्चे के बारे में तब जो उचित लगेगा निर्णय ले लेंगे। "
सुषमा ने निर्णायक और शांत स्वर में यह सब कहा । रोहन खामोशी से गाड़ी चलाता रहा । सुषमा के दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी और निर्णय नहीं ले पा रही थी कौन सा काम पहले करें और कैसे करें। सबसे मुश्किल काम खन्ना जी को बदले हुए कार्यक्रम से अवगत कराना था । जो बहुत पेचीदा लग रहा था । साहस करके वह स्वयं खाना जी के घर जाएगी। रोहन को ले जाना उचित नहीं होगा। जानती थी खन्ना जी गुस्से में उल्टा सीधा बोलेंगे और रोहन का खून गर्म हो जाएगा। बेकार बिगड़ी बात को और बिगाड़ने से कोई लाभ नहीं है । उसने निर्णय लिया कि खन्ना जी को बता कर चुपचाप उनकी खरी-खोटी सुनती रहेगी।
ऐसा ही हुआ, खन्ना जी को विश्वास नहीं हुआ। शादी से पंद्रह दिन पहले आकर सुषमा जी शादी रद्द करने की बात कर रही हैं। रिश्तेदारों को, समाज को क्या कारण बताएंगे और स्वयं कोई ठोस कारण भी नहीं बता रही थी। सुषमाजी बस कह रही थी कुछ ऐसा हो गया है जिसके कारण रोहन की शादी कहीं और करना अनिवार्य हो गई है । इस समय कारण बताना उचित नहीं होगा, खन्ना आपा खोते जा रहा था।
खन्ना गुस्से में बोला, "अपने मजाक समझ रखा है, कितना खर्च हो गया है मेरा ?लड़की का बाप हूं तो कारण जाने का भी हक नहीं रखता क्या। मेरी बेटी पर इस बात का क्या असर पड़ेगा यह सोचना तो आप की शान के खिलाफ होगा। पारुल को कैसे समझाऊंगा, दो साल से उसे लटका रखा है शादी का झांसा देकर। "
सुषमा शान्त स्वर में बोली, "यह झूठ है भाई साहब, रोहन ने कोई वादा नहीं किया था। शादी को दो साल लटकाने की बात आप गलत कह रहे हैं। " लेकिन खन्ना जी तो कुछ सुनने और समझने से परे जा चुके थे। कितनी देर तक अनाप-शनाप कहते रहे । सुषमा खामोशी से उनका गुस्सा जायज मानकर सिर झुकाए सुनती रहे। उस दिन बहुत अकेला महसूस कर रही थी, अगर रोहन के पिता जीवित होते तो सब संभाल लेते । कहीं एक लड़की के साथ इंसाफ करते करते दूसरी के साथ गलत तो नहीं हो रहा था। पारुल के दिल पर जो चोट लगेगी उस पर मरहम कैसे लगाएगी। लेकिन उसका साथ देने के लिए उसके पिता और उनकी दौलत तो है । और कौन सा पारुल रोहन को दिल से चाहती थी, वह तो उसकी हैसियत से शादी कर रही थी । लेकिन फिर भी उनकी ओर से तो उसके साथ कुछ ठीक नहीं हो रहा था, किसी को सपने दिखाकर तोड़ना भी तो गलत है । जीवन सही और गलत का हिसाब बनता जा रहा था।
जब खन्ना जी चिल्लाते चिल्लाते थक गए तो उनकी सांस उखड़ने लगी । वह पसीना पसीना हो गए तो उनकी पत्नी ने आगे बढ़कर उन्हें पानी का गिलास दिया। वह बहुत कम बोलती थी, पति के साथ हर समय उपस्थित रहती थी। पर बोलने और निर्णय लेने का काम खन्ना जी का था । पति और बच्चों की नजरों में उसकी कोई अहमियत नहीं थी । पानी पीते हुए खन्ना जी को धस्का लग गया, वे खांसते हुए सोफे पर बैठ गए। सुषमा ने मौका अच्छा समझ कर दोनों को नमस्कार करके विदा ली। बाहर आकर उसने गहरी सांस ली, एक मोर्चा तो उसने फतेह कर लिया था । उसेबहुत सुनना पड़ा और अपमानित भी होना पड़ा।
पंडित ने चार दिन बाद का दिन उचित बताया । सुषमा ने शालिनी को फोन पर बताया और कहां वह किसी मंदिर में शादी की व्यवस्था कर लेगी। रोहन के कमरे में ही शिखा के रहने की व्यवस्था करना तो अभी उचित नहीं होगा । दोनों एक दूसरे से कितनी नफरत करते हैं यह स्पष्ट दिखाई देता है । इस वक्त शिखा को स्वतंत्र और व्यक्तिगत स्थान की सख्त आवश्यकता थी। उसको ऐसे वातावरण की आवश्यकता थी जहां वह सहज महसूस कर सकें। रोहन के साथ उसकी हर वक्त नोकझोंक लगी रहेगी जो उसके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होगा। अपने कमरे में ठहराना भी उचित नहीं लगा सुषमा को। एक बार उसका घर में मन लग जाए, अपनी स्थिति को स्वीकार कर ले, स्वस्थ महसूस करने लगे, तब आगे की योजना बनाना उचित होगा। सर्वप्रथम तो सुषमा चाहती थी शिखा उस पर विश्वास करने लगे । उसके पास अधिक समय नहीं था बस एक महीना था, अमेरिका जाना भी आवश्यक था ।
अमेरिका में भी बहू का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, कुछ जटिलताएं बता रहे थे डॉक्टर। सुषमा सोच कर मुस्कुराने लगी, भगवान दे रहा है तो दो बच्चे आंगन में खेलेंगे। दोनों ही बेटों के घर एक साथ किलकारियां गूंजेगी, वह अलग बात है दूसरे बेटे के घर में और भी बहुत कुछ गूंजेगा। इसलिए सुषमा ने शिखा के ठहरने की व्यवस्था अपने कमरे के पास वाले कमरे में कर दी। रात को समय असमय आवश्यकता पड़ी तो वह आसानी से शिखा की आवाज सुन लेगी। पारुल के लिए जो कपड़े खरीदे थे वे उस कमरे की अलमारी में रख दिए। अभी तो यही कपड़े पहन लेगी, फिर धीरे-धीरे अपनी पसंद के ले लेगी । उधर शालिनी सुषमा से फोन पर बात करके बहुत दुखी हुईं। चार दिन में लड़की बिल्कुल पराई हो जाएगी।
इन चार दिन में बेटी की शादी के क्या अरमान पूरे करती। बाजार गई कुछ आवश्यक सामान खरीदा, शिखा के ले जाने के लिए। शालिनी की सास ने एक सोने का हार और एक कान के बुंदे दिए थे। शालिनी के पास और कोई विशेष गहने नहीं था, कभी इतने पैसे ही नहीं जुड़े थे कुछ बनवा सके ना कभी एसा मन हुआ । अब इतना समय भी नहीं था उसके पास इस हार को देकर कुछ नया बनवा सके। इसी को पहनाकर बेटी को विदा करना पड़ेगा। पुराने जमाने का तो लगेगा लेकिन क्या करें, शिखा को कोई उत्साह नहीं था इस विवाह को लेकर। उसका तो ध्यान भी नहीं जाएगा उसने क्या पहना है क्या नहीं । स्वयं उसको ही शर्म आ रही थी इतने बड़े घर में जा रही है बेटी और उनकी हैसियत के मुताबिक उसके पास देने को कुछ नहीं है।
शादी से एक दिन पहले शालिनी ने गुप्ता परिवार के साथ इंदौर जाने का कार्यक्रम निश्चित किया। लेकिन उस दिन चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था सड़कों पर जुलूस और नारेबाजी का बोलबाला था। आखिरी दिन होने के कारण लोगों का जोश प्रकाष्ठा पर था। ऐसे में गुप्ता जी ने फोन कर शालिनी से कहा उस दिन जाना ठीक नहीं होगा बेकार कहीं जाम में फंस गए तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी । शादी वाले दिन सुबह ही गुप्ता जी गाड़ी लेकर शालिनी के घर आ गए। शिखा से इतनी सुबह कुछ खाया नहीं जाता, दूसरा वह बहुत विचलित थी। कैसे रहेगी एक अनजान जगह वह भी बिलकुल अकेली सोच सोच कर बुरा हाल था। उसका मन कर रहा था सब कुछ छोड़ छाड़ कर कहीं भाग जाए। वह फूट-फूट कर रोना चाहती थी लेकिन मां को देखकर अपने आप को शांत रखने का प्रयास कर रही थी।
गाड़ी में पांच लोग सवार थे, औपचारिकता वश थोड़ा बहुत बोल रहे थे। वरना सब अपने ही विचारों में डूबे चुपचाप बैठे थे । लग ही नहीं रहा था किसी शादी में सम्मिलित होने जा रहे हैं। रास्ते में भीड़ तो बहुत मिली लेकिन मंदिर समय से पहुंच गए । पंडित ने सब तैयारी कर रखी थी, सुषमा, रोहन वहां पर उपस्थित थे, साथ में सुषमा की नंद का परिवार भी था। मौसम में बहुत गर्मी थी, पंडित ने मंत्रोच्चारण आरंभ कर दिए। सब अपने अपने स्थान पर बैठ गए। रोहन और शिखा भी बिना एक दूसरे से बोले पंडित के बताए स्थान पर बैठ गए। दोनों ने आज तक तक एक दूसरे से एक शब्द नहीं बोला था और सात जन्म निभाने की कसमें खा रहे थे । दोनो सिर झुकाए पंडित की हां में हां मिलाए जा रहे थे। फिर फेरे लेने का वक्त आया, दोनों ने अग्नि के चारों ओर चक्कर भी लगाएं। शीघ्र ही पंडित ने घोषित कर दिया विवाह संपन्न हो गया है। दोनों ने सब बड़ों के पैर छुए, सब ने एक दूसरे को बधाई दी । बहुत बड़ी समस्या का समाधान मिल गया था, एक बहुत बड़ा काम संपन्न हुआ था। सुषमा ने जब सबको घर चलने का न्योता दिया, भोजन की व्यवस्था वही कर रखी थी । शालिनी की आंखों में बार बार पानी भर रहा था, घर आस पास होता तो अवश्य अपने घर चली जाती। बोझिल कदमों से बेटी के घर जाने के लिए गाड़ी में बैठ गई । जब से शिखा छोटी थी, उसके विवाह को लेकर सपने देखती थी, कैसे धूमधाम से विवाह करेंगी । लेकिन इन परिस्थितियों में ऐसा विवाह करना पड़ेगा कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
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