The Author Sarvesh Saxena Follow Current Read दाग... By Sarvesh Saxena Hindi Moral Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books शून्य से शून्य तक - भाग 40 40== कुछ दिनों बाद दीनानाथ ने देखा कि आशी ऑफ़िस जाकर... दो दिल एक मंजिल 1. बाल कहानी - गलतीसूर्या नामक बालक अपने माता - पिता के साथ... You Are My Choice - 35 "सर..." राखी ने रॉनित को रोका। "ही इस माई ब्रदर।""ओह।" रॉनि... सनातन - 3 ...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ... My Passionate Hubby - 5 ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share दाग... (19) 4.2k 9k 6 "मैं नहीं जाऊंगी, बोल दिया ना, फिर क्यों बार-बार तुम लोग मुझसे पूछते हो", कहकर गरिमा आज फिर अपने कमरे में चली गई, उसकी सहेलियां चुपचाप घर से बाहर चली गई l मां भी अपने कमरे में गरिमा की सारी बातें सुन रही थी पर कुछ नहीं बोली l 30 साल की गरिमा रोज मायूस होकर आईने के आगे बैठअपने चेहरे पर लगे दाग को निहारती, जो जन्म से ही उसके लिए कलंक सा बन गया था, ऐसा नहीं कि गरिमा ने कोशिश नहीं करी उसके साथ जीने की, पर हर बार वह लोगों की हंसी का शिकार हुई, तभी माँ ने उदास मन से गरिमा को बुलाया, "गरिमा आजा चाय पी ले बेटी", उधर से कोई जवाब नहीं आया, माँ ने भी दूसरी आवाज नहीं दी तभी गेट की कुंडी बजी तो माँ ने खिड़की का पर्दा हटा कर देखा गरिमा गुस्से में बाहर जा रही थी, मां ने उसे रोकना चाहा पर नहीं रोका क्योंकि अक्सर ऐसा होता था l हमेशा की तरह गरिमा आज भी आबादी से दूर बने तीन गुलाब पार्क में बैठ गई बस एक यही जगह थी जहां आकर गरिमा को अपने होने का एहसास होता, सुर्ख लाल, सफेद और पीले गुलाबों को देख कर गरिमा को एक अपनापन सा लगता और उसकी खुशबू से गरिमा का सारा दर्द हवा में उड़ जाता l इससे पहले कि गरिमा गुलाबों की खुशबू में पूरी तरह डूबती, "क्या हुआ? आप ठीक तो हो", कहते हुए आजाद उसी सीट के दूसरे कोने पर बैठ गया l गरिमा ने सख्ती से कहा, "तुम्हें क्या मतलब" l गरिमा जब भी तीन गुलाब पार्क में आती तो उसे आजाद बैठा मिलता वह एक टक गरिमा को देखा करता, ऐसा लगता बहुत कुछ कहना चाहता हो लेकिन कभी कहता नहीं, बस गरिमा को देख कर मुस्कुराता, लेकिन गरिमा उदासियों के समंदर में अपने आप को इस कदर डूबो चुकी थी कि सामने पड़ी प्यार की नाव आजाद को देख कर भी अनदेखा कर देती l हमेशा की तरह आज भी आजाद और गरिमा तीन गुलाब पार्क में उसी सीट पर अलग अलग कोने पे बैठे थे l आजाद मन ही मन उससे बोलने के बहाने ढूंढ रहा था और गरिमा अपने चेहरे पर लगे दाग को छिपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी, सूरज ढल चुका था तभी भीड़ का शोर और नारे सुनाई पड़ने लगे, "इस सरकार की हाय हाय", "तीन गुलाब पार्क को शहीद उद्यान बनाओ", "इस पार्क को भव्य बनाओ", "ये कुर्बानी का प्रतीक है, भारती देवी जिंदाबाद, भारतीय देवी जिंदाबाद" तभी भीड़ की नजर गरिमा और आजाद पर पड़ी तो भीड़ उनकी तरफ चिल्लाते हुए दौड़ पड़ी, "हरामजादे पार्क को हरामखोरी का अड्डा बना रखा है, मारो इनको, तुम जैसे नौजवानों ने पार्कों की गरिमा खराब कर रखी है, हमारी संस्कृति डुबो रखी है, मारो... गरिमा पूरी तरह घबरा गई और भागने की कोशिश करने लगी तो आजाद ने उसका हाथ पकड़ा और कहा," मैं तुम्हें अब कुछ नहीं होने दूंगा" l भीड़ ने डंडे और मषालें जला कर उन दोनों पे हमला बोल दिया, गरिमा जोर जोर से चिल्लाने लगी और बेहोश हो गई l जब उसकी आंख खुली तो खुद को अपने घर में पाया, पास बैठे दादाजी गरिमा से बोले, "कैसी हो बेटी" गरिमा ने दादाजी की बात अनसुनी करते हुए कहा," कि क्या हुआ था, तीन गुलाब पार्क में?" दादाजी ने नम आंखों से गरिमा के माथे को सहलाते हुए कहा, " पिताजी बताया करते थे, जब वो 8 साल के थे तब एक लड़की थी भारती, नाम को सार्थक करती हुई, सबकी मदद करती देश प्रेम से ओतप्रोत, बिल्कुल झांसी की रानी सी l उसी की तरह नेक पड़ोस के गांव में रहने वाला एक लड़का दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और गांव से बाहर पड़े बंजर एक मैदान में मिलने लगे, देश में सब कुछ ठीक चल रहा था और भारती की प्रेम कहानी भी गंगा की लहरों की तरह आगे बढ़ रही थी l भारती अपने प्रेमी से कहा करती कि, "तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?" और वह भी हंसकर अक्सर जवाब दिया करता, "मैं इस बंजर मे तुम्हारे लिए गुलाब खिला सकता हूं, जिसे लोग सदियों तक याद करेंगे और हमारे प्यार की मिसाल देंगे" धीरे धीरे उन दोनों ने मिलकर वहां चारों तरफ दो गुलाब के पौधे साथ साथ लगाए, " यह लाल गुलाब भारती तुम हो और सफेद में, लेकिन यहां सभी दो गुलाबों के साथ तीसरा पीला गुलाब उस दिन लगाएंगे जब हम दो से तीन होंगे और इस उद्यान का नाम रखूंगा तीन गुलाब उद्यान, सही होगा ना भारती" l भारती हंसकर हां में हां मिलाती l कुछ दिनों बाद उन दोनों ने उद्यान में भारत माता की एक सुंदर मूर्ति स्थापित की और देखते देखते वह बंजर भूमि सुंदर स्मारक में बदल गई l अपनी प्यार भरी जिंदगी में खोए हुए यह दोनों प्रेमी देश में चल रही आंधी से अनजान थे l उस वक्त की प्रधानमंत्री मंदिरा जी को एक हिंदू ने गोली मार दी थी यह कहकर कि उन्होंने मुस्लिम से शादी करके पूरे देश में हिंदू विरोधी कार्यों को उजागर किया है उन्होंने हिंदू धर्म की संस्कृति को मिट्टी में मिलाने का दुस्साहस किया है, पूरे देश में हाहाकार मची थी, देश में इमरजेंसी के हालात पैदा हो गए थे लेकिन हिंदुओं को घर से निकाल निकाल कर मारा और काटा जा रहा था बचने का सिर्फ एक ही तरीका था, इस्लाम कुबूल करो या फिर मौत को गले लगा लो l हिंदू औरतों को बेआबरू किया जा रहा था और जिंदा जलाया जा रहा था l इन सब के बीच एक रात, "दरवाजा खोलो दीदी, जल्दी दरवाजा खोलो, भारती घबराकर कर दरवाजा खोलती है तो पिताजी ने उसे बताया कि," वहां मैदान में भैया को कुछ लोग मार रहे हैं भारती दीदी, भारती नंगे पैर भाग कर उस मैदान में आती है और देखती है कि आठ मुस्लिमों ने उसके पति को बांध रखा है तभी वो भारती को देखकर बोले," लो असली चीज तो अब आई है" पति की ये हालत देखकर भारती का खून खोल गया, उसने डंडा उठा लड़ना चालू कर दिया l वह बिजली की तरह कभी इधर अपना बचाव करती है तो कभी उधर लेकिन एक अकेली भारती अकेला कितना लड़ती, घायल पति के शरीर से खून रिसता जा रहा था और फिर भारती भी उनके चंगुल में फंस गई," अरे ये तो अपने पति से भी ज्यादा मरदानी है रे, बहुत मजा आएगा, ये हिंदू औरतें होती ही ऐसी हैं, मार दो इसे" तभी एक दूसरे आदमी ने कहा, अरे उसे मारने की क्या जरूरत है, यह हमारी कौम को आगे बढ़ाएगी मिल कर", उसकी हालत पर आठों आदमी जोर-जोर से हंसने लगे, इससे पहले भारती कुछ संभलती, उसमें से एक शख्स ने कहां, "आजाद कर दो इसे कपड़ों की कैद से, और मिलकर इस के पूरे जिस्म में इस्लाम के निशान बना दो ताकि इनकी पुश्ते भी याद करें कि हम से उलझने का क्या नतीजा होता है, इन्होने हमारी कौम की प्रधानमंत्री को मारा है" l इससे पहले झुंड भारती को बेआबरू करता, उसके पति ने एक का सिर काट दिया और सभी ने उसे मिल कर मार डाला और सातों आदमी भारती के ऊपर गिद्धों की तरह टूट पड़े, भारती ने तलवार उठा कर लोगों से लड़ना शुरू कर दिया तभी उनमें से एक शख्स ने भारती के चेहरे पर तलवार से गहरा प्रहार कर दिया, भारती बेहोश होकर गिर पड़ी और तभी हवाओं का रुख बदलने लगा, बादल गरजने लगे बिजली कौंधने लगी जैसे धरती का विनाश होने वाला हो "l दादाजी रोने लगे, गरिमा ने दादा जी से पूछा," फिर क्या हुआ दादा जी? "दादाजी ने बताया," वहां उस दिन क्या हुआ यह किसी को नहीं पता लेकिन सुबह तड़के जब पिता जी वहां गए तो 8 जली लाशें पाई गई जिनमें से भारती और उसका पति कोई भी नहीं था, भारत मां की मूर्ति टूटी हुई पड़ी थी, उद्यान का हर एक पेड़ जल चुका था बस बच्चे थे तो वही सारे तीन गुलाब जो कल शाम तक सिर्फ दो थे, पिताजी सब जान चुके थे, भारतीय उन दिनों मां बनने वाली थी और तीसरा गुलाब उन दोनों की आखिरी ख्वाहिश थी, कुछ लोगों का कहना है उस रात भारती को वो गुंडे छूते इस से पहले उन सब पर बिजली गिर गई और वो भारत माँ की मूर्ति भी तभी गिरी लेकिन भारतीय और उसका पति कहाँ गए किसी को पता नहीं हां ये जरूर था कि सभी गुलाबों के जोड़े मे तीसरा पीला गुलाब जरूर लगा पाया गया "l गरिमा का शरीर यह सब सुनकर ठंडा पड़ रहा था वह दादा जी से कुछ और पूछती कि इससे पहले दादा जी ने कहा," रुको, पिताजी मरते समय मुझे एक तस्वीर थमा गए थे जो मैंने आज भी संभाल के रखी हुई है"l दादा जी अपने कमरे में गए और एक तस्वीर उठा लाए है जिसे देख कर गरिमा चीख पड़ी उस तस्वीर में भारती के साथ आजाद था l गरिमा सब कुछ छोड़ कर सीधा तीन गुलाब पार्क के पास भागती हुई चली गई रात के 2:00 बज चुके थे आजाद अभी भी वहीं बैठा था गरिमा सब कुछ समझ चुकी थी आजाद ने अपनी बाहें खोली तो गरिमा उस के गले से लग गई l आजाद ने कहा, "अब हम कभी अलग नहीं होंगे भारती और देखो वह हमारा तीसरा गुलाब कितना मनमोहक है l" पूरी रात गरिमा आजाद के कंधे पर सर रखकर बैठी रही, आंख खुली तो सुबह हो चुकी थी पर आजाद वहां नहीं था l सूरज की नन्ही किरने तीन गुलाब पर पढ़कर ऐसे प्रतीत हो रही थी मानो वो एक प्रेम कथा कह रही हो पूरा पार्क गुलाबों की खुशबू से सराबोर हो रहा था l गरिमा ने उठकर एक ठंडी आह भरी, उसे आज अपने दाग पर शर्म नहीं गर्व महसूस हो रहा था l Download Our App