दीवार पर टँगी बड़ी सी घड़ी का सेकंड वाला कांटा घूम रहा है ,,,,वो गोल घूम रहा है हर नम्बर को पार करता बढ़ता जा रहा है ,,,वो घूम रहा है बढ़ते क्रम में ,,वो मानो बता रहा है कि मुझे वापस लाना मुमकिन नही ! मैं वहीं घूम रहा हूँ पर लगातार बढ़ रहा हूँ ,,,मैं वक्त की पहचान हूँ ! वक्त कभी नही रुकता वो बढ़ता ही जाता है और इसके ठीक उलट जिंदगी घटती जाती है,,,
वक्त वो बादशाह है जो हमारी कामयाबी और हमारी खुशी का दिन मुक़र्रर करता है और उस पल को उससे पाने के लिए हम दिन रात लालायित रहते हैं । क्या कलाकार, क्या खिलाड़ी, क्या संगीतकार हर कोई अपनी कोशिश के बल पर कामयाबी और शोहरत को पा लेना चाहता है ।पल पल सरकते घड़ी के कांटे हमारी चाहत ,हमारी कोशिशो, हमारी लगन का इम्तहान लेते चलते रहते हैं ।उनकी दिन रात हम पर निगाह होती है ।
हम भागते ,हांफते उस पर कभी कभी नज़र दौड़ा लेते हैं और तब उसके गुजरने का अहसास हमे होता है,जो हमे सचेत करता है । हमे सोचने पर मजबूर करता है कि हमने आखिर कौन सा रास्ता चुना है और वो हमारे लिए कितना सही है । यदि यहां सीधे सीधे कहा जाय कि समय ईश्वर का प्रतिरूप है तो यह अतिशयोक्ति नही होगा,,,
घड़ी और जिंदगी दोनो एक दूसरे के विपरीत है एक बढ़ती जाती है ,दूसरी घटती जाती है,,,और इन दोनो को वश में करना किसी के वश की बात नही,,इन दोनों की चाल को सिर्फ देखने के अलावा और कोई विकल्प नही ! किन्तु जब तक आप हैं तब तक कर्म का बंधन भी है जो आपको उनकी चाल के बीच कुछ करने का मौका देता है ।
आप इन दोनों को नकार कर अपनी इच्छा शक्ति से कुछ बनाना चाहते हैं आप इन दोनों की चाल को समझना चाहते हैं और तब आप अपने कदमो के निशान छोड़ जाते है । आने वाले नन्हे कदम विगत से आगत का आकलन कर नई राह बनाते हैं ।
वक्त है, जो आपको आपके घटने के अहसास नही होने देता । वो आपको नित नये तमाशे में उलझाए रखता है । आप इस तमाशे और उलझन में मस्त रहना चाहते हैं। आप दोनों को भूलकर जीना चाहते हैं, वक्त के महीन धागे में मकड़ी के जाल की मानिंद लिपटा हुआ हर कोई हर कोई जीवन,मृत्यु और उम्र के मामले में विवश है किंतु कर्म के लिए स्वतंत्र है ।
आप सुखद छांव में भरपूर सोना चाहते हैं,आप अपनी नींद में जरा भी खलल पसन्द नही करते, पर सब तरफ खामोशी के बाद भी घड़ी टिक टिक का शोर बढ़ाती ही जाती है,,,और पूरे साहस से कहती है तुम तुम मुझे नकार नही सकते,!
यदि इसे नकारते हैं तो आप परेशान होंगे । तो क्या किया जाय ?
क्या हम भी अपने बोझिल और उदास मन की समय से दोस्ती नही करा सकते ! यदि एक बार उससे हँसकर हाथ मिला लेंगे तो चिंता के बादल उड़ जायँगे । उससे नजरें मिला लेने पर वो वक्त अपने हिस्से की खुशियाँ दे ही देगा,,,,