Achchaaiyan - 16 in Hindi Fiction Stories by Dr Vishnu Prajapati books and stories PDF | अच्छाईयां – १६

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अच्छाईयां – १६

भाग – १६

इधर गुलाबो चिंता में थी की सूरज का क्या हुआ होगा ? जब से बच्चू की गेंग का आदमी मारा गया तो इसके लिए वो कुछ न कुछ तो जरुर करेगा | उधर सूरज उस लड़की को उसकी सही जगह पर छोडकर कुछ दिन उस शहर से दूर रहना चाहता था | उसने भी नहीं सोचा था की वो आदमी सीधा पत्थर पे गिरेगा और मर जाएगा |

और सरगम भी सूरज की फिक्र कर रही थी | सूरज कोलेज में आया था मगर फिर भी वो उसे इतने दिनों तक मिलने क्यूँ नहीं आया ? दादाजी और सूरज के बीच जरुर कोई बात हुई होगी मगर दादाजी मुझे बताना नहीं चाहते |

सरगम हररोज सुबह रियाझ करती थी | तभी दादाजी उसके पास आये और कुछ देर उसका संगीत सुनते रहे | दादाजी याद कर रहे थे की बचपन से सूरज और सरगम दोनों एक साथ रात के पीछले प्रहर के राग साथ में गाते थे और दोनों ने संगीत को आत्मसात किया था |

सुबह के राग की सुरावली धीरे धीरे सरगम के शब्दों में सजने लगी | सरगम की आवाज स्वर और सूर से भरी थी | वो अपने रियाझमें खोयी हुई थी उसने राधा के वियोग का गीत आज छेड़ा था | सरगम के सूरो में वो गीत धीरे धीरे ऐसे संवरने लगा की दादाजी उसमे खो गए | सुगम भी सरगम के पीछे आ के बैठ गई थी, उसे भी संगीत बेहद पसंद था |

दादाजी अपने हाथ पे ताल दे रहे थे और संगीत की सारी मात्राओं को नाप रहे थे | वो काफी देर तक खड़े रहे, वे सरगम के सूरो को केवल सून ही नहीं रहे थे मगर समझ भी रहे थी | सरगम की पलकें बंध थी उनकी उंगलिया बीणा के तार पर धीरे धीरे चल रही थी | आखीर सूर ख़त्म होते ही सरगमने अपनी उंगलिया रोक ली और अपनी आँखे खोली | सामने दादाजी को देखा तो वो खडी हुई और उनके पैर छुए |

‘जीती रहो बेटा |’ दादाजीने आशीर्वाद दिए | सरगम अपने कक्षमें जाने ही वाली थी तभी दादाजीने उसे रोका और कहा, ‘ सरगम मुझे तुमसे एक जरुरी बात कहनी है...!’

‘क्या दादाजी ?’

‘कुछ दीन पहले सूरज कोलेज में आया था | उस दिन तुम यहाँ पर नहीं थी | मैंने उसको कोलेज से निकाल दिया | सूरज और तूम अच्छे दोस्त थे और संगीत के सच्चे उपासक भी... मगर सूरजने जो भी किया वो मैं अभी भी नहीं भूल शकता | मुझे पता नहीं है की मैंने सही किया की नहीं ! मुझे ऐसा क्यों लगता है की तुम खुश नहीं हो...!’ दादाजी कुछ उदास हो गए थे | उम्र की असर भी उन पे दीख रही थी |

‘मैं तो खुश हूँ...’ सरगमने दादाजी को अच्छा दिखाने के लिए अपने मुंह पर मुश्कुराहट लाके कहा |

दादाजी समझ गए थे की सरगम भी खुद को छिपाने की कोशिश कर रही थी | वे बोले, ‘सूरज आया तभी कोलेज में वो सारे बदमाश भी आये थे और उसका नाम सुनते ही सब भाग निकले | वो जख्मी था मगर उसने हमें जो जख्म दिए है उससे तो कम ही थे....| मैं थक गया हूँ अब ये कोलेज मुझसे संभाला नहीं जाता...!’ दादाजी के शब्दों में निराशा झलक रही थी |

तभी सुगम बिचमे बोली, ‘मगर दादाजी उस अंकलने अच्छा काम किया था, सूरज अंकल उन गुंडे को नहीं पहेचानते थे अगर पहचानते तो वो मारते क्यूँ ? और उस अंकलने हमारा पियानो भी ठीक किया.... और उन्होंने.....’ सुगम आगे कुछ कहना चाहती थी मगर सरगमने इशारों से उसे चुप रहने को कहा |

दादाजीने सरगम को रोकते हुए कहा, ‘ सरगम उसे बोलने दो... शायद वो ये देख रही है जो हम नहीं समझ पा रहे है |’

‘दादाजी हमें तो उसे थेंक्यु कहना चाहीए... उन्होंने जो किया वो अच्छा ही किया था |’ सुगम फिर बोल पडी | सरगमने उसे अब अपने रूममें जाने को कहा तो वो चली गई | सरगम भी वहां से जाना चाहती थी मगर दादाजी खडे थे |

‘सरगम.... तुम्हारी माँ होती तो समझ पाती की मुझे तुम्हारे लिए क्या करना है | मुझ पे तुम्हारी जिम्मेदारी है... अब तुम्हे शादी कर लेनी चाहीये... ताकी मैं भी अब चैन से मर शकु |’ दादाजी के ऐसे शब्द सुनकर सरगम की आँखों से आंसू निकल आये और बोली, ‘दादाजी आप ही मेरे मम्मी पापा हो आप को मैं कभी दुःख नहीं पहुचाउंगी, मगर आप अपने आपको संभालो, मुझे विश्वास है की सब सही हो जाएगा |’

और दोनों अपने अपने काम में वापस चले गए | दादाजी अब कभी कभी कोलेज में आते थे | कोलेज का काम अब सरगम ही संभालती थी |

सरगम भी हरपाल सूरज के बारेमे ही सोच रही थी, ‘एकबार सूरज मिल जाए तो मैं जरुर कहूंगी की जिसने तुम्हे पाला-पोषा उसके साथ ही तुमने धोखा क्यूँ किया ? और ड्रग्स के कारोबार में चले जाना था तो संगीत का सहारा क्यूँ लिया ? तुमको जो सजा हुई उससे कई बड़ी लम्बी सजा तो हमें मिली है... मुझे भी मीली है ....!! दादाजीने भी अब तो संगीत छोड़ ही दिया है.... मैं इस शहर की दुनिया से दूर मुंबई तुम्हे मिलने आई थी मगर शायद भगवानने हमें कब और किस मोड़ पर मिलाना चाहा है, कौन जाने... ?

********** *********** **************

गुलाबो भी अब बैचेन थी | तीन दिन हो गए सूरज का कोई अता पता नहीं था | इधर बच्चू के आदमी काफी सख्त हो गए थे हसीनाखाने में अपना खौंफ बनाने के लिए हररोज किसी न किसी औरत पर जुल्म गुजारते थे |

गुलाबो अपनी चाय की दूकान पर थी और उस दिन छोटू आया | वो खुश था और आते ही बोला, ‘ ओये...छम्मक छल्लो....एक चाय...!’ छोटू गुलाबो को देख रहा था |

‘क्यों छोटू आजकल दिखाई नहीं देता...?’

छोटूने हल्के से कहा, ‘मुझे कल्लू तीन दिन से पूरा शहर घूमा रहा है और अलग अलग जगह दिखा रहा है !’

‘कल्लू...!! और वो तुम्हे घूमा रहा है... ये तो गजब है... मगर क्यों ?’ गुलाबोने जानने के लिए पूछा |

‘वो पता नहीं है मगर दादा बताते थे की नया काम मिलनेवाला है |’ छोटूने कहा |

‘अच्छा, वो तुम्हारा दोस्त कहा है ?’

‘कौन रंगा?’

‘नहीं वो बड़ा दोस्त...उस दिन जो चाय पिलाने लाया था.. वो तुनतुना वाला...!’ गुलाबोने धीरे से पूछा |

ये सुनकर छोटू को अच्छा नहीं लगा, ‘अच्छा तो उसने तुम पे भी जादू कर दिया | देख वो तुन तुना अच्छा बजाता है वो बात सच है मगर मैं भी वो शीख लूंगा | वो मुझे उस दिन से आज तक नहीं मिला | मैंने भी उसे कहा था की तूमसे दूर ही रहे.... शायद इसलिए तुम्हे भी नहीं मिला होगा |’ इतना कहकर छोटू चाय पीकर नीकलने लगा |

‘ऐसा क्यूँ कहा मुजसे दूर रहे ?’ गुलाबोने उसे ऐसे ही पूछा |

‘ये हम मर्दों की बात है तूम नहीं समजोगी...!!’ उसने डायलोग की अदा से कहा और वो चला गया |

गुलाबो को छोटू की बाते अच्छी लगती थी | गुलाबो उसे देख ही रही थी तब बच्चू के आदमी आये और वो उस दूकान के अन्दरवाले दरवाजे में चले गए | गुलाबो भी उनके पीछे गई और दरवाजा बंध हो गया |

‘वो लड़की अभी तक नहीं मीली | उसने किसी पुलिस स्टेशन पे रिपोर्ट भी नहीं लिखवाई यानी वो हमसे डर के भागी है | मगर हमारे आदमी का खून किसने किया वो ही जानती होगी | कुछ भी करके हमें उसे ढूंढना होगा |’ उनमे से एक काणा आदमी चिल्लाके अपनी बात बता रहा था | इस जगह पर शायद वे बेख़ौफ़ थे |

गुलाबो उस टेबल के पास से गुजरी तो वो काणा उसे घूरने लगा और वो जब वहां से दूर चली गई तो वो धीरे से बोला, ‘ बच्चू इस माल को छोड़कर इधर उधर क्यों भटक रहा है ? हसीनाखाने में तो इस पर लोग मरते है !’

तभी बाजूवालेने उसके मुंह पर जोरसे मुक्का मारा और बोला, ‘ आजके बाद इसके बारे में कुछ मत बोलना, ये बच्चू के बोस की ख़ास है....! उसकी माँ इसी हसीनाखाने में थी... उस वक्त...! ’ सामने बैठा आदमी कुछ कहना चाहता था मगर गुलाबो फिर उधर से गुज़री तो उसने बात बदल दी | ‘ देख कानीये, इस लफड़े को बंध करने के लिए हमें पुलिस को पांच लाख देने पड़े और अभी हमारा धंधा भी बंध है ... पुलिसने अभी ड्रग्स सप्लाई रुकवा दी है | हमारे सभी आदमीओ पर पुलिस नजर रख रही है |’

‘बच्चू ने कुछ सोचा होगा...!’ तीसरे आदमीने कहा |

‘वो कल्लू से मिला था कुछ दिन पहले.....!’ उस आदमीने हलके से कहा मगर वे शब्द गुलाबो तक पहुँच ही गए|

गुलाबो उनकी बाते और छोटू से हुई बात को मिला रही थी और उनके दिमाग में तभी अंदाजा लग गया की कल्लू छोटू को शहर क्यूँ घुमा रहा है.....! और उसे शहर की कुछ जगह को क्यूँ दिखा रहा है ....?

क्रमश: .....