Thirst of knowledge in Hindi Spiritual Stories by shekhar kharadi Idriya books and stories PDF | ज्ञान की पिपासा...

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ज्ञान की पिपासा...

युरोप के पुर्वे प्रान्त में एक छोटा सा सुखी दंपती रहता था ।जिनका नाम था मिस पिन्टो और मिसिस हेनरी जो अपनी जिंदगी का निर्वाह खेतीबाडी से करते थे । उनका एक साढे छह साल का प्यार सा बेटा हेमर था दुसरा नन्हा सा दो साल का पिटर था । 

हेमर पढ़ने में अव्वल था । लेकिन उसका ध्यान भक्तिभाव और आध्यात्मिक सत्य के खोज में बचपन से हीं मन लगा रहेता था । इस लियें वो अलग-थलग धर्म के धर्मगुरु , पोप, मौलवी जैसे महतो से भगवान के बारे तरह-तरह सवाल पूछता रहता हैं । लेकिन उसकी सत्य की खोज कभी समाप्त नही होती , बल्कि उसके भीतर की ज्ञान प्राप्त करने भूख ओर बढती हीं जाती है । जिसकी वजह से ये क्रिश्वशन फेमेलि परेशान हो गई थी ।

एकबार हेमर प्रेयर करने प्रभु यीशु के दरबार में पहुँच जाता है फिर प्रभु को लोहस्थंभ पर देखकर सवाल पूछता हैं " गोड तुम तो सब का दुख-दर्द पलभर में मिटा देते हो फिर क्यूँ तुम इस तरह खामोश हो ? "

ये सब सुनकर पोप कहते है की '" बेटा गोड यीशु तो तुम में, हम में, सब में भीतर जिंदा है बस वो कभी हवा, पानी, बरसात, प्रकृति के कण-कण में अदृश्य मौजुद हैं तभी तो सृष्टि का संतुलन निरंतर चलाते है । "

हेमर उत्सुकता से फिर पूछता हैं  " गोड यीशु को क्यूँ चुली पर चढ़ा दिया वो तो मानवता के मसीहा थे ? "

पोप - " बेटा उनके भी चैतानी दुश्मन थे जिनको प्रभु की अच्छी विचार धारा कतई पसंद नही थी, बस यही कारण से सबको प्रभु के खिलाफ़ करके उन्हें बड़ी निर्दयी से चुली पर चढ़ा दिया । "

एक दिन हेमर के घर के पास युरोप के आर्कियोलॉजी टिपार्टमेन्ट खोदाई कर रहा था । तभी वहाँ भगवान बुद्ध की एक विशाल पुरानी प्रतिमा के साथ ताम्र लिपि के पत्रों भी मिले थे । जिसकी न्यूज दुनिया में तेजी से फैल चुकी थीं । फिर क्या था बुद्धा के जापान, कोरिया, मोगोंलिया, इन्डोनेशिया, कम्बोडिया, थाईलेड़, बर्मा, तिब्बत, चीन, नेपाल, श्रीलंका, वियतनामा, भूटान, लाओस, सिंगापुर,  मलेशिया और इन्डिया जैसे कईन देशों से बुध्दिजिम या भिक्षुओ का रोज आने जाने का ताता लगा रहेता था ।  

दुसरी तरफ हेमर ये सब देखकर अचबिंत था ।  उसके भीतर तरह-तरह प्रश्न उठ रहे थे जैसे " क्या  गोड अगल-अलग है ? क्या रिलेजन भिन्न है ? क्या होली बुक प्रभुने बनाई है ? इन सभी सवालों का जवाब ढूँढने हेमर बुद्ध टेम्पल जाने का निर्णय लेता है ।

अब युरोप के गर्वरमेन्ट और बुद्ध संगठन मिलकर एक विशाल टेम्पल निर्माण करवाया ।  जिसे सरकार का प्रवासि धाम की उपाधि देकर देश-विदेश के प्रवासी अर्थात बुद्ध भिक्षुओं को आने का न्योता दिया ताकि इस अद्भुत लोर्ड बुद्धा की प्रतिमा का दर्शन पाकर सब धन्यता प्राप्त करे ।

सुबह की सुनहरी किरण दूर पहाड़ी से धीरे-धीरे निकल रही थी ।  तभी हेमर दौड़ता हुआ बुद्धा के टेम्पल की ओर जाता है । वहाँ भिक्षु संन्यासी काफी मात्र में उपलब्ध थे, जिनके शरीर पर अलग वेशभूषा और साधगी मौजुद थी और चेहरे पर एक गज़ब सा तेज और प्रसन्नता साफ छलक रहीं थीं  ये देखकर हेमर रह नही पाया उसने तुरन्त एक भिक्षु से पूछा - " ये शांत के मुद्रा में  बैठे हुयें कौन से गोड हैं ? "

भिक्षु ने हंसते हुये कहां - " ये करुणानिधान भगवान बुद्ध हैं , जो संसार को सत्य का मार्ग दिखाते है " ।

" क्या ये भी चूली पर चढ़ गये थे ? "
" नही बेटा उन्होंने तो गृहत्याग करके परम सत्य की खोज की ओर मानव जातीं को मानवता का उपदेश दिया । "

हेमर ने मधुर स्वर में कहा - " क्या मैं उनकी प्रेयर कर सकता हूँ ? "
 भिक्षु - " क्यूँ नहीं अवश्य वो  तो सब को अपने चरणों में स्विकारते है । बिना भेदभाव-उँचनीच किये बगैर...! " 

ये सुनकर अब हेमर तुरन्त जाकर बुद्ध के चरणों में दिल से शीश झुकाकर प्रेयर करता है ।

" हे दाता, हे करुणानिधि तेरे सत्य के सागर में मुझे निरंतर तैरने दे मैं तेरा ही अबोध बच्चा हूँ ज्ञान की पिपासा तृप्त करने तेरे चरणों में आया हूँ ! "

मानो ऐसी करुणामय प्रेयर से बुद्ध का ह्रदय भावुक हो गया हो, और उनकी पावन छत्रछाया में हेमर को पुकारता हो वैसा एहसास हुआ और उसके मन में अद्भुत शांति की लहर दौडने लगीं तन को संपूर्ण सुकून देती हुई  , इसलिए हेमर कई घंटों तक बुद्ध के टेम्पल में बैठा रहा लेकिन उनके मन में तरह-तरह प्रश्नों का सर्जन हुआ ।

दुसरी तरफ इतने घन्टे बीत गयें लेकिन हेमर का अबतक कुछ पता नही चला इसलिए परिवार वाले बहुत चितित हुये इसलिए उन्होंने आसपास पड़ोस में तलाशा फिर भी हेमर मिला नही इसलिए माँ की चिंता में ओर इजाफा हुआ 
हेनरी ने कहां " ये नादान बच्चा कहां चला गया होगा
पिन्टो - " तुम खामखा परेशान हो रहे हो "
' मै क्यूँ न परेशान होउ  ? क्योंकि वो आखिरकार हमारा बेटा हैं ।"

पिन्टो - " तुम जरा भी चिंता मत करो मैं उनके फ्रेंडो से पूछकर आती हूँ ! " (हेनरी ) हा.. "जरूर शीघ्र जाना "

अब हेमर की माँ अपने जिगर के टुकडे को ढूँढने त्वरित पैदल चल पड़ी , अपने बच्चे साथ कुछ बुरी घटना न घट जाये ऐसा भय मन में रखकर,  तभी वो हेमर के स्कूल के फ्रेंडो से हेमर के बारे पूछती है - " बेटा क्या आज सुबह तुम्हारे साथ हेमर खेलने आया था  , बच्चे.. नही आन्टी आज तो हेमर हमारे साथ खेलने नही आया ' 
बच्चों का ऐसा प्रत्युत्तर सूनकर एक माँ स्तब्ध रह जाती हैं
मानो उसके  मन में  बुरे,  बुरे विचार आ रहे , तभी कुछ देर वो सोचती है आखरी ये बच्चा कहां गया होगा , अचानक उसे ख्याल आया शायद वो बुद्ध के टेम्पल की ओर गया होगा ।  इसलिए मुझे वहाँ जाकर देखा चाहिए, 

वो अंदर से हारकर बुद्ध के टेम्पल पहुँच गई, वहाँ मौजुद ढेर सारे भिक्षु को बुद्ध की आरधना में पुर्णरुप से लीन देखकर हेमर की माँ अचबित रह गई ।  फिर वो बुद्ध की प्रतिमा के पास जाकर प्रेयर करतीं है " हे दयालु बुद्ध तुम्हें इतने सारे लोग मानते है जरा मुझ जैसी अभागि माँ पर भी थोडी कृपा दृष्टि बनाएं रखना ' ! "  मानो साक्षात गौतम बुध्दने एक माँ की गुहार सून लिया हो ऐसा अद्भुत चमत्कार वहाँ क्षणभर में हुआ ।  तभी वहाँ पीछे स्वर आया  " माँ आज तुम भी बुद्ध के टेम्पल वंदना करने आई हो " ।
माँ... ' ना बेटे वो तुम्हें ढूंढते ढूंढते यहाँ तक मैं पहुँच गई '

बेटे का इतना मधुर स्वर सूनकर माँ गले लगाकर बारबार शीश चूम लेती हो जैसे कई बरसों के बाद लापता हुआ बेटा एक माँ को आज मिल गया हो ऐसा ह्रदय द्रवित दृश्य वहाँ अंकित हुआ ।

अभी शाम होने में आधा घंटा शेष था ।  प्रकृति का कण-कण सांसों में महक रहा था । लेकिन हेमर के ह्रदय में बुद्ध के प्रति अपार स्नेह साफ छलक रहा था और नेत्रों में बस उसकी छबि बिराजमान थी ।

कुछ देर के बाद माँ बेटे वापस घर लौट आते है , लेकिन हेनरी की इंतज़ार की हद हो गई थी । वो आगबबूला होकर पूछते हैं " आज तुम सुबह से कहां चले गयें थे । हम सब हेरान, परेशान हो गयें..! "
हेमर ने एकदम धीमे स्वर में कहां "  पिताजी बुद्ध के टेम्पल गया था । "
" क्या तुम्हें पता नही हमारे गोड यीशु हैं  इसलिए हमें चर्चे में जाना चाहिए  ? "
पिताजी गोड तो एक हैं चाहे वो यीशु हो , शिव हो , अल्लाह हो या बुद्ध हो अंत में सबकी बंदगी एक है !

वाह.. बेटे तुम तो आज बड़ी-बड़ी बाते करने लगे हो..
तभी मिसिस पिन्टो कहती हैं " क्या बाप-बेटा का संवाद पुर्ण हुआ हो तो मैंने खाना निकाला हैं  जल्दी खा लेना वर्ना ठंडा हो जाएगा । "

रात का पहरा आज हेमर के लियें गुरता ही नही वो पूरी रात बुद्ध के ख्यालों में डूबा रहता हैं । ओर उनके बारे सत्य का ज्ञान जाने की जिज्ञासा भीतर बढती ही जाती हैं  ।

आज सन्डे की फिलहाल स्कूल में छूट्टी थीं। इसलिये हेमर बहोत ज्यादा खुश था क्योंकि वो बुध्द के टेम्पल जाने वाला था । तभी अपने माँ को बताकर वो सीधा बुद्ध की ओर भागने लगता हैं, जैसे लोडॅ बुद्धा उसे पुकारते हो , वैसा आभास मन में प्रतीत हुआ ।

हेमर बुद्ध के चरणों में जाकर प्रेयर करता हैं - " हे गौतम बुद्ध मैं तो तेरा ही नादान बच्चा हूँ , ज्ञान की झील में निरंतर तैरने तेरे चरणों में चला आता हूँ  ! "

उसी वक़्त तिब्बत का लामा भिक्षु भी वहाँ बुद्ध की प्रेयर करता हैं । तभी पास उन्हें मौजुद देखकर हेमर वंदन करता है ये देखकर लामा प्रतिक्रिया में दोनों हाथ जोड़कर " नमो बुद्धाय... गौतम बुद्ध आपका भला करे...!

हेमर - " क्या आप मुझे लोडॅ बुद्ध का कोई अनोख प्रसंग बताएंगे ? "

लामा भिक्षु - " हा क्यूँ नही मुझे इस बात की बेशक प्रसन्नता होगी, बस मुझ से एक प्रोमिश करना की मैं जो भी रसप्रद घटना कहूँ वो तुम किसी ओर से कहोगे ताकि वो किसी ओर से कहेगा उसी तरह परस्पर ज्ञान साझा करने से वो अधिक बढता रहेगा । " हेमर - " आपको पक्का वाला प्रोमिश मैं करता हूँ.."  बस तुम मुझे शीघ्रता से बताना .....( लामा..- " ' अवश्य किन्तु ध्यान से सूनना..'

महात्मा बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापन या रचयिता माना जाता हैं, गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी में इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्यकुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था । बुध्द बचपन से ही करुणामय और दयालु के स्वभाव के थें । उन्हें कतई हिंसा पंसद नही थी ओरो के खुशि के लियें वो स्वंय हार जाते थें ।

बुद्ध के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब वे अपने सारथी चन्ना के साथ नगर भ्रमण करने के लियें निकले थे । तत्पश्चात इन्होंने क्रमश चार दृश्य देखे..

(1) एक बूढा़ व्यक्ति (2) एक बीमार व्यक्ति 
(3) एक अर्थी (मृत व्यक्ति ), (4) संन्यासी (प्रसन्न मुद्रा में )

इसी यात्रा में उनके जीवन की वास्तविक यात्रा का प्रारंभ होता है । यही से उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ । इन्हें इस दुनिया को एक अलग ही नजरिये से देखने का एक अवसर मिला ।  इन सभी ह्रदय द्रवित दृश्यों को देखने के बाद रातभर सिध्दार्थ को पलभर भी नींद नही आई । अंत में इन्होंने इनमें से अंतिम दृश्य अर्थात संन्यास के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया ।

" लामाजी फिर आगे क्या हुआ..? 

बच्चे थोडी धीरज रख..!!!

अब सिद्धार्थ ने गृहत्याग के दरमियान इन्होंने राजमहल और अपनी वैवाहिक सुख सुविधा छोड़कर सरेराश 26 से 29 वर्ष की आयु में गृहत्याग किया । इस महान घटना क्रम को बोध्द धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया । 

सिद्धार्थ वन जाकर कठोर से भी कठोर तपस्या करना आरंभ कर दिया, पहले तो सिद्धार्थ ने तिल-चावल खाकर तपस्या आरंभ की लेकिन बाद में तो बिना खान, पान की तपस्या करना आरंभ कर दिया,  लगातर कठोर ताप झेलने के कारण उनका शरीर सूख गया था इतना अधिक कष्ट दिया । तप करते-करते 6 साल बित गयें । एक दिन सिद्धार्थ वन में तपस्या कर रहे थे. की अचानक कुछ महिलायें किसी नगर से लौट रही थी वही रास्ते में सिद्धार्थ तप कर रहे थे ।

महिलाएँ कुछ मधुर गीत गा रही थी उसका एक गीत सिध्दार्थ के कानों में पड़ा था वो गीत था " वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो " तारों को इतना छोड़ो भी मत की वे टूट जाये. सिध्दार्थ के कानों में पड़ गयें ओर वो यह जान गये की नियमित आहार-विहार से योग सिध्द होता है अति किसी बात की अच्छी नही. किसी भी प्राप्ति के लिये माध्यम मार्ग ही ठीक होता है इसके लिये कठोर तपस्या करनी पड़ती है 

" वाह.. क्या अद्भुत प्रसंग है  !  मेरे कोमल ह्रदय को झकझोर कर रख दिया । "

लामा - " अभी आगे भी बुध्द के जीवन से जुडी कई रोचक तथ्य बाकी हैं  । जो तुम्हारे तन, मन को आत्म ज्ञान प्रदान करेगी । "

हेमर.. - " क्या मैं बुद्ध का भिक्षु बन सकता हूँ ? "

लामा - " अवश्य जरुर. बस आपके परिवार की रजामंदी जरूरी हैं और भौतिक सुख सुविधा को संपूर्ण त्याग करके सादगी से जीवन व्यतीत करना होगा,  किसी भी वस्तु के प्रति मोह छोड़कर आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में ध्यान लगाना होगा, तभी तुम्हें महाज्ञान प्राप्त होगा ।  इस लियें कुछ नियमों का भी पालन अवश्य करना पडे़गा, जो आपकी नियमता और प्रतिबंध्दता से मन को कार्यशील बनने मदद युक्त साबित होगा ।

हा.." मैं सभी बातों का बेशक ध्यान रखूगा. ऐसा कहकर हेमर उत्साहपूर्वक घर ओर वापस लौटता हैं लेकिन उसके भीतर तरह-तरह प्रश्नों का द्वंद्व उठता हैं की क्या उसके परिवार बौद्ध धर्म अपनाने की रजामंदी देगे या सरलता से नकार देगे । "

" क्या बेटे आज भी टेम्पल से आने की देर हो गई
वो तो माँ बुद्ध भिक्षु लामाने बहोत अच्छा ज्ञान दिया इसलिये उसे ग्रहण करने में ज्यादा देर हो गई और एक बात माँ.. मैं कहना चाहता हुँ की - "  मैं बौद्ध धर्म की दिक्षा ग्रहण करके भिक्षु बनना चाहता हूँ ! "  ' बेटा अब तो तुम सोलह साल के हो, इसलियें तुम्हें पढ़, लिखकर एक काबिल इंसान बनना हैं । फिर जिम्मेदारी का फर्ज भी अदा करना हैं । '

हेमर..- " माँ तुम क्यूँ चिंता करतीं हो, मेरा छोटा भाई पिटर तो आपके पास मौजूद हैं ,  फिर भी इस माँ दिल कहां मानता हैं तुम्हें आंखो से ओझल होने से ..
लेकिन अपने पिताजी से कल सुबह जरूर अपनी मन की बात बताना.. हा माँ..!! "

आज की रात हेमर के लिये मानो गुजरने की नाम ही नही लेती, क्योंकि कल उसके जिंदगी का अहम फैसला था ।

अब सुबह का भोर हो चुका था । हेमरने धीमे स्वर में कहां " पिताजी मैं बौद्ध धर्म की दिक्षा लेकर भिक्षु बनना चाहता हूँ " ये सुनकर हेनरी आवक रह जाता हैं फिर क्रोध में बोलता हैं  - " क्या तुम ढोंग का झोला पहनकर बुद्ध का भिखारी बनना चाहते हो, जो नगर नगर जाकर भिख मांगते हैं " । ये सुनकर हेमर को बहुत दुख होता हैं फिर हेमर कहता हैं  - " पिताजी तुम्हारी नजरिये से बौद्ध धर्म ऐसा नही है जो आप सोचते हैं वो तो सनातन सत्य धर्म है जो प्रेम, करुणा, संवेदना का अहम पाठ संपूर्ण मानव जाति को सिखाता है । एंव ढोंग आडम्बर को सख्ताई पुर्वक विरोध करता है 

हेनरी - " बेटा हमारा ईसाई धर्म क्या झूठ के बलबूते पर टिका हैं , जो तुम्हें हरगिज़ पसंद नहीं हैं । "

हेमर ने कहा - " मैंने कब ऐसा कहां की ईसाई धर्म गलत है बस उसे मानने और समझने का दृष्टि कोण प्रत्येक व्यक्ति का भिन्न-भिन्न है , वो अपनी जगह श्रेष्ठ है जो गोड यीशु को मानते है,  " मैं बुद्ध को तन-मन से मानता हुँ , इसलिए वो अपनी जगह उत्तम हैं  ! "

पिता.. " वाह बेटा तुम तो धर्म संवाद करना भी सिख गयें ।
लेकिन तुम्हें जरा-सा भी बौद्ध धर्म को अपनाने की लियें मैं अनुमति नही दूंगा ! "

ऐसा फरमान सुनकर हेमर बारबार पिताजी से रो रोकर विनती करता हैं  लेकिन उसके पिता टस से मस नही हुये, फिर गुस्से मैं आकर हेमर को एक कमरे में बंध कर दिया ताकि उसके मस्तिष्क से बौद्ध धर्म अंगिकार करने का भूत उतर जाये । लेकिन उसका उल्टा परिणाम हुआ हेमर ने दिवाल की भीत पर बुद्ध की उत्तम तस्वीर बनाकर प्रेयर करता हैं  " हे दयालु बुद्ध मुझे इस संकटों से उबारकर, शीघ्र तेरे पावन चरणों में निम्न जगह अर्पण कर दे ... " नमो बुद्धाय.. नमो बुद्धाय " इसी तरह बार-बार जोरजोर से बुद्ध का नाम लेता हैं  जिसकी वजह से पुरा परिवार परेशान हो गया, लेकिन हेमर की प्रभु बुद्ध के प्रति सच्ची भक्तिभाव और निष्ठा देखकर परिवार का पाषण ह्रदय भी दुसरे दिन बर्फ़ के भांती पिघलकर नरम बन गया ।

हेमर का गौतम बुद्ध के प्रति अधिक लगाव और ज्ञान जानने की व्याकुलता जानकर परिवार ने बौद्ध धर्म अंगीकार करने की स्वीकृति सहज दे दि , क्योंकि अब तो हेमर की खुशि में ही परिवार की खुशि छूपी थी । इसलिए उन्होंने अपने बेटे के हित में फैसला लिया ताकि उसका तन-मन सदा प्रसन्न  रहे , 

अब हेमर अपने परिवार से दूर जानेवाला था इसलिए उसकी माँ ज्यादा दुखी थी क्योंकि उसका ह्रदय का टुकडा उससे विलग हो रहा था ।  फिर भी उसकी भलाई के लिये स्वंय को मना लिया ,  वैसे हेमर का जाने का वक्त हो गया वो मां को गले लग जाता है माँ उसे मातृत्व के स्नेह से बारबार चुम लेती है फिर कहती ही " बेटा माँ को कभी भूल मत जाना , और कभी अपने कार्य से फुर्सत मिले तो मुझे मिलने आ जाना. प्रत्युत्तर में हेमरने कहा '  हा.. माँ... जरूर "  !

आज हेमर उत्सुकता से बुद्ध के टेम्पल की ओर प्रस्थान करता है तभी राहों पर नव पल्लवित पुष्प उसका स्वागत करने तत्पर हो, आसमाँ झुक झुककर आशीष प्रदान करता हो, धरा मखमली बिछौना बनी हो, हवा शीतलता बरसाती हो वैसा आभास ह्रदय के भीतर प्रतीत होता है. जैसे समस्त सृष्टि का रंग पुकारता हो,  बुद्ध के छत्रछाया में पावन ज्ञान अर्जित करने

हेमर बुद्ध के चरणों में झूककर प्रेयर करता है - " हे परम दयालु बुद्ध मैं भटका, असमर्थ तेरा सेवक हूँ निरंतर ज्ञान की खोज में तेरे चरणों में लौटा आता हूँ , पवित्र मन लेकर परम सत्य के प्राप्ति के लिये "

तभी वहाँ मौजुद एक भिक्षु से हेमर पूछता हैं लामा (भिक्षु ) गुरु के बारे .. उसने कहां वो सामने के मठों गयें है हेमरने प्रत्युत्तर कहां " नमो बुद्धाय.. सत्कार देते हुयें फिर वो मठों में पहुँच गया जहाँ अद्भुत नजारा था ।  मानो कई बच्चे बौद्ध धर्म की दिक्षा ग्रहण करने आये थे ।  जिनके मुख पर प्रफुल्लित तेज छलता था । क्योंकि वो भौतिक सुख सुविधा छोड़कर सादगी या संन्यासी जैसा जीवन जीने केलिये सदा तत्पर थे । 

 उस वक़्त लामा हेमर को देख जाते है तो उसे पास आने के लिये कहते है " बच्चे आखिर क्या निर्णय लिया ?  गुरुजी मुझे बौद्ध धर्म अपनाने की अनुमति मिल गई है ! 
ये तो अति उत्तम बात है क्योंकि आज क्रोध, काम, लोभ, मोह, तृष्णा, वासना जैसे गुणों को त्यागकर प्रेम, करुणा, संवेदना, सदकर्म, अहिंसा जैसे गुणों को भीतर ग्रहण करना है, आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुये, अब तुम भिक्षुओ के संघ बैठ जाओ जो दिक्षा ग्रहण करने आये है 

अब बौद्ध धर्म की दिक्षा ग्रहण करने की कार्य प्रणाली प्रारंभ होती है मठाधीशों के उपस्थित में अर्थात गुरुओं के द्वारा विधि-व्यवस्था के अनुसार, 

' आप सभी को तथागत अर्थात बुद्ध के पावन चरणों में ह्रदय से स्वागत है लेकिन आपको बौध्द धर्म के कुछ नियमों का पालन करना होगा । '

बौद्ध भिक्षुओं का भोजन भिक्षा पर ही निर्भर रहता है ! कई जगहों पर बौद्ध भिक्षुओं को कोई भी वस्तु खरीदने पर पाबंदी है, वे उन्हीं चीजो का उपयोग करते है जो उन्हें दान में मिली हो ।

केवल सुबह के समय ही एकबार ठोस आहार ले सकते है और दोपहर से अगले दिन की सुबह तक उन्हें लिक्विड डाईट ( प्रवाहि खोराक ) पर ही रहने की आदत रखनी चाहिए ।

बौद्ध भिक्षु अपने साथ तीन कपड़े ही रख सकते है -  दो शरीर पर लपेटने के लिये और एक चादर ।  ध्यान रहे कि यह तीन कपड़े भी किसी के त्याग हुए पर फिर दान किए हुए हो, क्योंकि बौध्द भिक्षु खुद कपडे नही खरीद सकते है

ध्यान और समाधि के वक्त बुद्ध भिक्षुओं का सबसे बड़ा नियम होता है ध्यान । उन्हें अपनी साधना और समाधि की स्थिति को किसी भी अवस्था में नही छोड़ना होता है । ध्यान के जरिए कुडलिनी जागण ही उनका सबसे बड़ा उद्देश्य होता है । 

परम अवस्था के वक्त ध्यान के जरिए समाधि की प्राप्ति, स्वाध्याय और कुडलिनी जागरण के जरिए परम अवस्था को प्राप्त करना ही उनका ध्येय होता है ।

ध्यान के स्थान पर या स्थिति में बौद्ध भिक्षुओं को प्रशिक्षण काल में उन्हे अलग-अलग वातावरण में भी ध्यान करने का प्रशिक्षण मिलता है । बहुत गर्म जगह, बहुत ठंडी जगह, बहुत सुमसान या बहुत भीड़ वाली जगह । ऐसे तरह-तरह स्थान पर भी वो अपनी ध्यान की अवस्था का प्रतिक्षण लेते है ।

मानो ये सब बाते हेमर ध्यान से सुनता हैं सभी मस्तिष्क की इन्द्रियो को सचेत रखकर,  क्योंकि वो अब सत्य के पथ पर चल पड़ा था ।

अब सभी बौद्ध धर्म के भिक्षुओं को सिर मुड़वाकर भगवा वस्त्र धारण कर लिया तद उपरांत मठाधीशों के गुरुओ ने आदेश दिया इस पावन शील या नियम को सर्व भिक्षु  ह्रदय से रटन करो 

बुद्धं शरणं गच्छामि : मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ  ।
धम्मं शरणं गच्छामि : मैं धर्म की शरण लेता हूँ  ।
संघ. शरणं गच्छामि : मैं संघ की शरण लेता हूँ  ।

गौतम बुद्ध चार प्रमुख सिध्दांत दिए जिस पर पूरा बौद्ध धर्म आधारित है ।  ये चार सिध्दात, चार आर्य सत्य के नाम से जाने जाते है ।  चार आर्य सत्य ही बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का मुख्य कैन्द्र हैं । इन चार सत्यों को समझ पाना बेहद आसान है ।  यह मानव जीवन से जुडी़ बेहद आम बात है जिनके पीछे छूपे गूढ़ रहस्यों को हम समझ नहीं पाते ।  यह चार सत्य निम्न....

1) दुःख - बुद्ध का कहना था कि मानव जीवन में चारों और दु:ख ह दुःख है । रोग, बुढापा और मृत्यु ये तीन दुःख मनुष्य के जीवन में निश्चित रुप में आते है । इसके अतिरिक्त, इच्छित वस्तु की प्राप्ति न होने पर भी दुःख का अनुभव होता है ।  इस प्रकार संसार दुःखो का सागर है ।

2)  दुःख का कारण - भगवन बुध निर्बाॅध जनसमुदाय को केवल दुःख की स्थिति को ही नहीं बताया , बल्कि दुःखों की उत्पत्ति का कारण (इच्छा,  तृष्णा, भोग, काम, वासना आदि ) भी बताया  !

3)  दुःखो की समाप्ति तृष्णा के नाश से संभव है - लोगों को दुःख का कारण समझा देने के बाद बुद्ध ने तीसरे सत्य के अंतर्गत यह बताया कि यदि इस तृष्णा को समाप्त कर दिया जाये, तो मनुष्य इस जन्म मरण के चक्कर से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त कर सकता है । महात्मा बुद्ध का भिक्षुओ को उपदेश था कि " संसार में जो कुछ भी प्रिय लगता है, संसार में जिसमे भी रस लिखता है, उसे जो दुःख-रुप समझेंगे, रोग रुप समझेंगे उसे उठेंगे, वे ही तृष्णा को छोड़ सकेंगे ।

4) दुःख का निवारण मार्ग : आष्टांगिक मार्ग - गौतम बुद्ध ने अपने चौथे आर्य सत्य में लोगो को इस तृष्णा से मुक्ति पाने के लिये अष्टांगिक मार्ग ( Eight fold Path ) का अनुसरण करने पर बल दिया

1) सम्यक दृष्टि 2)  सम्यक संकल्प  3)  सम्यक वाणी 4) सम्यक जीविका  5 )  सम्यक कर्म 6) सम्यक स्मृति  7) सम्यक व्यायम,  8 ) सम्यक समाधि 

और इसके बाद जो महात्मा बुद्ध ने दस आचरणों का पालन करने का निर्दॅश दिया था वो भी ,
दस आचरण ( शील )__ निम्न पांच नियम गृहस्थों के लिये थे ।

1)  अहिंसा - हिसा न करना
2 )  सत्य -  झूठ न बोलना , 3) अचौर्य - चोरी न करना ,
4 ) ब्रह्मचर्य - संयमित जीवन व्यतीत करना
5 ) अपरिग्रह - अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना ,
तथा बौद्ध भिक्षों और भिक्षुणियों के लिए बने पांच नियम अतिरिक्त थे वे हैं
6 ) असमय भोजन का परित्याग
7 ) कोमल शैय्या का परित्याग
8 ) नृत्य, गायन एंव मादक वस्तुओं का त्याग
9) सुगन्धित पदार्थों का त्याग  ,
10 ) कुविचारों का त्याग 

इन सभी बातों का हेमर के मस्तिष्क पर गहरा प्रभात पड़ा , वो संपूर्ण बुद्ध के आध्यात्मिक पथ को स्विकार चुका था । क्योंकि सत्य की खोज करना और संपूर्ण मानव जाति को मानवता उपदेश देना आखिरी सांस चलते तक

मठों में सुबह का भोर होते ही हेमर और कुछ भिक्षु नगर की ओर भिक्षा मांगने चल पडे , बडे उत्सुकता से क्योंकि हेमर की पहली भिक्षा मांगने वाला था । इसलिए उसने एक स्त्री से कहां " मांइ भिक्षाम् देही...!! "  
" तनिक ठहरो मैं लाती हूँ कहकर वो घर में से भोजन लाई 
हेमर ने पात्र में भोजन स्विकारते हुये कहां - " प्रभु बुद्ध आपका भला करें " ऐसा कहकर वो आगे गया तो वहाँ एक वृद्ध व्यक्ति को देखा जिसकी शरीर की संपूर्ण त्वचा सिकुड़ गई थी , आंखें चहरे में अधिक धंस गई थीं, हड्डियों का ढासा सूकि लकड़ी की भांति जुडा था । मन अभी जीने के लिये जद्दोजहद करने लगा था दाने को दो बांटो की चक्की में पीसने के लिये मानो बारबार व्यर्थ प्रयास करने लगा हो, लेकिन देह साथ देने असमर्थ प्रतित हो रहा था । ऐसा दारुण दृश्य देखकर हेमर का कोमल ह्रदय मदद करने चला जाता है 
हेमर - ' आप इस ढलती आयु में भी जीवन जीने के लिये संघर्ष कर रहे है वाकई ये मृत्यु को हराने का दंभ या छलावा जैसा प्रतीत होता है । '

ये सूनकर वृद्ध ने कहा - " ओ संन्यासी जीवन के अंतिम पड़ाव पर मैंने अशक्त शरीर से छुटकारा पाने के लिये प्रभु से रोज भिख मांगी है लेकिन कहां समय से पहले मौत की अर्जी मंजूर हुई है । अब तो इस नश्वर देह को भी संभाल संभालकर थक गया हूँ फिर भी छूटकारा नही मिलता, क्योंकि मेरी अर्धांगिनी कबसे रोगग्रस्त होकर चल बसी ! वही मेरा जीने का एकलौता सहारा थी,  जिंदगी के हर मुकाम पर कदम से कदम साथ निभाया था चाहें परिस्थितियां कैसी भी हो रिश्ता अटूट जुडा था, लेकिन अब उसके बगैर जीवन निरस, खाली, सूखा लगता है मानो एक क्षण में सब खुशियां उजड़ कर बंजर में तब्दील हो गई । "

ये सब सूनकर हेमर ने कहा - " आपका अपनी पत्नी के प्रति समर्पण की भावना अति उत्तम हैं स्नेह में परितृप्त होकर, तभी तो तुम उसके वियोग में अबतक तड़प रहे हो, मन से शोकाकुल होकर "

वृद्ध -  " अरे संन्यासी क्या करूँ अब मैं ये चंचल मन मेरे नियंत्रण में रहता नही ? "
हेमर... " आपको प्रतदिन ध्यान लगाना होगा तभी तुम अपने मन पर सतप्रतिसत विजय प्राप्त कर सकते हो । "

वृद्ध -  ' अब इस आयु में सब व्यर्थ है ' !
हेमर -  " बात तो तुम्हारी सत्य हैं लेकिन आपके दाने मैं अवश्य पाषाण के दो बांटो में पीस देता हूँ अर्थात चक्की में ताकि आपका कार्य बोझ कुछ कम हो जाये , फिर क्या था हेमर कार्य करने लगा जैसे श्रम बल से मन शुद्धिकरण  होता हो "।

वृद्ध "  आप तो ज्ञानी संन्यासी हो, इसलिए ये काम आपको तनिक भी शोभा नही देता " ।

हेमर ( भिक्षु )  - " कार्य निम्न हो या विशाल उसे करने से ज्ञान प्राप्त होता है । सिखने की कार्य प्रणाली से आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि भी शीघ्रता से निरंत बढती है बस उसे आपका मस्तिष्क कितना ध्यान से ग्रहण करता वो स्वंय पर निर्भर रहता हैं या नकारात्मक ऊर्जा के सामने हकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक अवधि तक रहता है, वहीं आपके भीतर ज्ञान ज्योति प्रज्वलित रखता है मन के अंधियारे को 
सर्वत्र हटाकर उजियारा प्रदान करता है । "

वृद्ध -  " आपकी आध्यात्मिक वाणी सूनकर प्रतीत होता हैं आप कोई साधरण इंसान नही लगते अवश्य आप बुद्ध के भिक्षु हैं  तभी तो इतनी प्रेमाण, करुणामय, संवेदनामय, उदारमय बाते करते हो "

हेमर ( भिक्षु ) - " आपकी बात अवश्य सत्य है मैं बुद्ध का ही भिक्षु हूँ तभी तो नगर भ्रमण करके भिक्षा माँगता हूँ !
वृद्ध -  " मैंने शाक्यमुनि के कई उत्तम प्रसंग सूने थे । जब में लुहार का कार्य करता था, तभी कुछ विद्धवानों से उनके बारे बात करते सूना था । आज अंतिम क्षणों में उनके भिक्षु का दर्शन ज्ञान सूनकर स्वंय को भाग्यशाली मानता हूँ " !

हेमर ( भिक्षु ) - " आप मुझे निष्प्रयोजन शर्मिंदा कर रहे है आमतौर पर ज्ञान परस्पर साझा करने से अर्थात्‌ बांटने से वो अधिक वृद्धि करता है । "

वृद्ध - ' जो सत्य हैं वही मैंने कहा. क्योंकि आप ज्ञान से प्रतिभा शाली हो '

हेमर ( भिक्षु ) " प्रतीत होता है बातों बातों में समय भी ज्यादा बीत गया हैं और मैंने भी आपके दाने चक्की में पीस दिये " ।

वृद्ध ने प्रेमभाव देते कहा " आपका जितना भी धन्यवाद करूं इतने शब्द भी कम पड़ जाएगे " ।

हेमर ( भिक्षु) -  " आप मुझ पर प्रसन्नता के अधिक पुष्प बरसाने लगे हो, फिर भी मैं अंत में ह्रदय से कहना चाहता हूँ ! भगवान बुद्ध की कृपा दृष्टि तुम पर सदा बना रहे .. "

अब हेमर वृद्ध को सत्कार में " नमो बुद्धाय " कहकर अपने सखा के साथ मठों की ओर प्रस्थान करते है, तभी नगर के  बाहर एक कुएँ पर कुछ स्त्रियाँ रस्सी से खिंचकर जल गागर में अर्थात मटके में भर रही थी । जो एक-दूसरे की सुंदरता की तारीफ करने में व्यस्त थी, उस वक्त हेमर और उसके सखा को प्यास लगी तो वो सीधे उस कुएँ तरफ गये, 

हेमर ने करुणा से कहा "  माता बहुत प्यास लगी हैं थोडा़ जल पीला देना ..! "

स्त्री- " प्रणाम करके अवश्य संन्यासी कहकर वो मीठा जल पीलाती है, तभी वहाँ मौजूद एक स्त्री ने प्रश्न पूछा " आपकी दृष्टि में सुंदरता क्या हैं ? " 

भिक्षु ने प्रत्युत्तर में कहा " सुंदरता आपकी सोच और दृष्टिकोण में है क्योंकि असली सुंदरता तो नम्रता, शालीनता, गम्भीरता,  सत्यता, सादगी, करुणा, ईमानदारी जैसे गुणों में हमारी वास्तविक सुंदरता है जो मरने के बाद भी लोंग आपकी सुंदरता की बखान करते है बाकी हमारी आंखों को आकर्षित करनेवाली प्राकृतिक सुंदरता बहुत है , जिस में फसकर सारी जिंदगी पश्चाताप करते है  " 

स्त्री -  " बाहरी सुंदरता की परिभाषा क्या हैं ?  "

भिक्षु  " जो प्रति क्षण मन को आकर्षित करके भटकाये वही बाहरी सुंदरता हैं , जिस तरह सुंदर पुष्पों को तोड़कर इकठ्ठा करके ढेर लगाये, मालाएँ बनाये. सब सड़ जाएगे क्योंकि फूल क्षण भुंगर हैं, आज गंध उठ रही हैं कल दुर्गध उठने लगेगी, इसलिए अपने सुंदर चेहरे पर कभी गर्व मत किजिये क्योंकि एक दिन वो सिकुड़ कर कुम्लाह जाएगा ।

ऐसा प्रत्युत्तर सूनकर सभी स्त्रियाँ भिक्षु का ह्रदय से धन्यवाद प्रगट करती है क्योंकि उन्होंने वास्तविक सुंदरता उत्तम ज्ञान मिला था ।

दोपहर का वक्त हो चुका था, वनों की पगडंडी सूमसान थी इस पर हेमर और कुछ भिक्षु मठों की ओर तीव्रता से प्रस्थान करके वापस लौट आये , उसी समय हेमर झील से कमल पुष्प तोड़कर लाया बुद्ध के चरणों अर्पित करने, अब वो बुद्ध की प्रतिमा समक्ष झूककर ह्रदय से प्रेयर करता हैं
 - " हे भगवान बुद्ध तेरे अतुल्य चरणों में पुष्प चढ़ाकर, मैं धन्य हुआ उसकी कृपा दृष्टि अपने और परायों पर सदा बनाएं रखना " !

धीरे- धीरे संध्या काल का समय हो गया था । पंछियों का झुंड घोंसलो में आने तत्पर थे । वनों में पत्तों की सरसराहट शांत थी । हर तरफ वातावरण में मधुर सुगंध फैली थी । उस दरमियान हेमर संपूर्ण ध्यान समाधि में लीन हो जाता हैं  
जब संपूर्ण ध्यान के लिए बैठें, रास्ते पर चलें , उठें, भीड़ में जाएं, एकांत में जाएं, पर्वत पर हों , दरख्तों के नीचे हो, बर्फ़ के सतह पर हो, तब आपने आसपास एक प्रेम भाव का गहरा घेरा बनाएं ।  और अनुभव करें कि आपके आसपास ज्ञान का प्रकाश पूंज परिव्याप्त हो रही है, आप सबके प्रति, जो आपके आसपास हैं, प्रेम से भरे हुए हैं ।

इसका एक भाव घेरा ह्रदय के भीतर जन्म लेता है । दरख़्त को देखें तो अनुभव करें कि आप उसके प्रति प्रेम, करुणा से भरे हैं । और आसमाँ में उड़ते पक्षियों को देखें तो उनके प्रति अनुभव करें कि आप उनके प्रति प्रेभभाव,  दया से भरे हैं और आपके ह्रदय से निर्मल स्तोत्र प्रवाहित होकर निरंतर बहता है , प्रेम और करुणा सुगंधित इत्र बनकर चारों ओर हवा में फैली है बस उसे सांस में ग्रहण करने के लिए यथार्थ शक्ति होनी चाहिए ।

यह बहुत सुंदर सूत्र है ।  इससे प्रदर्शित होता है कि मनुष्यता कैसे चुके जा रही है, वह प्रतीकों को आधार तथ्यों में बदल देती है मस्तिष्क में गहरा प्रभाव छोड़ जाने के वास्ते और तब उन तटस्थ कल्पनाओं में जीती है, जो केवल भ्रम की उपज पैदा करने कि निर्थक व्यर्थ प्रयत्न करती है , उदाहरण के लिए - गौतम बुद्ध द्वारा यह सूत्र बारबार कहा जाता है - " जो जाग गया है वह आग की लपटों में धर्म के चक्र को गतिशील करता है । "

लेकिन रोरो ठीक है , जब वह हंसते हुए यह कहता है - " इसके बारे में मुझे संदेह है । - " यह व्यक्ति बात कर रहा है अलंकारित प्रतीक की, जैसे मानो वे तथ्यात्मक थे । न कोई चक्र था और वहां न कोई आग थी । 

इसके विपरीत रोरो ने कहा - " जंगली फूलों की सुवास से पूरी पगडंडी महक उठती है, लेकिन अपने घोंसलों में सोये या मूच्छिॅत पक्षी नहीं जान पाते कि वसंत ऋतु आ गई है । "
एक बुद्ध के लिए हमेशा ही वसंत छाया रहता है । एक बुद्ध के लिए आग भी शीतल हो जाती है ।

एक बुद्ध के लिए रात का घना अंधकार भी उजियारा होता है, क्योंकि वह स्वंय ज्ञान का प्रकाश होता है, वह जहां कहीं भी जाता है, उसके प्रकाश का आभामंडल उसे चारों ओर से घेरे रहता है । रोरो बिल्कुल ठीक है जब वह कहता है " आग की लपटों में गतिशील होने वाले धर्मचक्र के वक्तव्य के बारे में मुझे संदेह है । इसके संदर्भ का स्मरण रखना चाहिए, क्योंकि इसे बुद्ध ने प्रतीकों का प्रयोग करते हुए कहा था ।

कुछ क्षण पुर्व ही मैं तुम्हें इस संसार में  जो लोग पूरी तरह मूर्च्छित हैं, उन्हें बुद्धत्व की कठिन परिस्थिति में संबंध बना रहे, यही वह आग है और गतिशील रखना है , जीवन मृत्यु के चक्र को... एक जागृत अवस्था का पूरा कार्य ही यही है कि वह इसके प्रति तुम्हें सचेत बना सके कि न कभी तुम्हारा जन्म हुआ है और न कभी तुम्हारी मृत्यु होगी ।

  मृत्यु और जीवन, शाश्वत जीवन की केवल कथा-उपकथा हैं । जीवन और मृत्यु के इस चक्र से तुम्हें बाहर हो जाना है और समूह के अचेतन और मूच्छिॅत लोगों के कारण निश्चित ही तुम्हें आग की लपटों का सामना करना पडे़गा,  लेकिन यह केवल एक प्रतीक है ।

अपने अंदर तो तुम जंगली फूलों की सुवास महसूस करोगे । अपने अंदर तो तुम पहली बार जीवन का शाश्वत अर्थ पाओगे । अपने भीतर निरंतर तुम पाओगे कि वसंत आ गया है, कभी भी न जाने वाला वसंत छा गया है, और यह तुम्हारा स्वभाव है । तुम्हारे अंदर तो गुलाब खिलते चलते  जाएंगे । यह सुवास अधिक से अधिक गहरी और अधिक से अधिक रहस्य होती चली जाएगी । ज्ञान को संपूर्ण प्रकाशित करने । रोरो बिल्कुल ठीक कहता है कि अलंकार और प्रतीक के जाल में मत फंसो । उस अलंकार का अपना अलग संदर्भ और सौदर्य है, लेकिन संदर्भ के बाहर जाकर कोई भी चिंतित और परेशान हो सकता है, यदि बुद्धत्व, आग की लपटों में चक्र को गतिशील कर रहा है, तब अनावश्यक रुप से इस मुसीबत में क्यों पड़ते हो ?

जीवन में पहले ही से बहुत सारे दुःख हैं । यदि तुम इस प्रतीक को बिना उसका संदर्भ समझें हुए शब्द ले लोग, तो जो तुम्हें बुद्धत्व जैसा प्रतीत होगा,  वह कहीं अधिक दुःखों को आमंत्रित कर रहा है ।  इसी वजह रोरो हंसा और उसने कहा - " मुझे इसमें संदेह है । वह यह नहीं कर रहा है कि उसे बुद्ध के बारे में कोई संदेह है, वह कह रहा है " मुझे तुम्हारी समझ के बारे विवरण है  ।

जहां तक रोरो का संबंध है, वह कह रहा है " जंगली फूलों के उत्तम सुवास से संपूर्ण जंगल की पगडंडी महक उठी है, लेकिन अपने घोंसलों में मूच्छिॅत या सोये हुए पक्षी नहीं जान पाते की वसंत की ऋतु आ गई है । केवल सजग रहे हुए पक्षी ही वसंत के आने की पहले पता चलता है । और उसी क्षण से आनंद उत्सव मनाते हुए खुशी संपूर्ण वन में  अनहद मनाते है ।  जिस क्षण तुम्हें अस्तित्व की शाश्वतता का गहरा अनुभव होता है, तुम्हारे भीतर कभी न जाने वाला वंसत छा जाता है  । उसी तरह प्रकृति के अनुरुप हर जीव जीवन जीने के लिए परिस्थिति अनुशार ढल जाता है । "

रोरो ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया - " क्या इस जगह कोई ऐसा भी है,  जो इस रहस्यमय आश्चर्य से अप्रभावित रह जाता हो ? " इस रहस्यमय जादू का केवल मुर्दा पर कोई प्रभाव नही होता । तुम जितने अधिक जीवंत हो तो प्रत्येक स्थान पर अपने स्थान पर अपने चारों ओर उतने ही अधिक आश्चर्य देख सकोगे ।  यह पूरा जीवन ही एक ऐसा ही रहस्यमय और एक वही ज्ञान का शाश्वत वरदान है, जिसका पथ बिना कांटो के, फूलों से ही भरा है ।

जेन में डूबा अर्थात समाधि ध्यान में व्यस्त व्यक्ति रहस्यों में  जीवन जीता है ।  उसके  लिए प्रत्येक सृष्टि की रचनात्मक चीज या वस्तु प्रत्येक्ष और परोक्ष रहस्यमय प्रतीत होती है । क्योंकि वो ज्ञान से परे उठने का यथार्थ अवश्य करता है । पृथ्वी पर प्रत्येक चीज चमत्कार है ।  जीवन स्वंय सबसे बड़ा चमत्कार का अद्भुत देन है , बस उसे किस तरह जीवन जीने कला हमारे पास तत्पर रहती है ।  

जे़न मेरे भीतर की अद्भुत पुकार के अनुसार - जो़रबा और जे़न एक-दूसरे के विरोधी नही है । जो़रबा और जे़न के अंदर ही पिघलकर एक हो सकता है और केवल तभी दोनों संपूर्ण पूर्ण होगें ।

वह व्यक्ति, जो केवल बाहर संसार में ही जीता है, बहुत अधिक उथला है ।  विचारो से अनुरूप. प्रभाव में आकर वह व्यक्ति अपने अंत:स्थ के बारे में कुछ भी नही जानता, वह अस्तित्व और शाश्वतता के बारे में कुछ भी नही जानता और दूसरी ओर वह व्यक्ति जो अपने भीतर के बारे समझता है, वही बाहर दिखता है, वह इस भ्रम में जीता है की बाहर का संसार मात्र एक भ्रम या माया है ।

कुछ भी भ्रम या माया नहीं है । बाहर और अंदर एक ही अस्तित्व के भाग हैं । हकारात्मक और नकारात्मक विचार स्वंय कीं सोच में भ्रम उपन्न होता है ।

मैं चाहता हूँ कि जो़रबा बुद्ध बने और ठीक उसके विपरीत भी हो और जब तक यह संभव नही होता, तब तक बहुत बुद्ध नहीं होगें और वहां बहुत से जो़रबा भी न होंगे । जो़रबा और जे़न के पूर्ण होते ही तुम्हारे जीवन में रचनात्मक और गुणात्मकता बदलाव आ जाता है, तुम बाहर के संसार के प्रत्येक का और बाहर संसार में खिले प्रत्येक उत्तम फूल का स्वाद और सुवास लेते हो और इसके ही साथ, साथ तुम आंतरिक स्वतंत्रता का,  आंतरिक प्रमुदितता और आंतरिक खुमारी का भी स्वाद लेते हो । इस बारे में विभाजन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता, लेकिन मनुष्यता बहुत विभाजित होकर जीती रही है और एक गहरा संकट रहा है ।

जो़रबा के लिए ध्यान प्रारंभ करने का यही समय है और यही समय उन ध्यानियों के लिए भी है ।  जो संसार छोड़कर भाग जाने की स्वंय अनुमति नहीं देंगे । स्वंय अपने अंदर हीं, मैंने जो़रबा और जे़न दोनों को एक साथ संयुक्त भीतर मिला दिया है , इसलिए मैं इसमें कोई भी कठिनाई नही समझता । मैं संसार में होता हुआ भी संसार में नही हूं ।

मैं पक्षियों के संगीत का,  फूलों में सुवास का और वृक्षों का हवा में झूमने का आनंद लेता हूँ । मैं स्वयं में अपनी शांति और मौन का संपूर्ण आनंद लेता हूँ और मैं नही देखता कि इस बारे में भी कुछ अंतर पड़ता है । धीमे धीमे भीतर और बाहर दोनों ही उस अखंड में पिघलकर एक हो जाते है ।

अब कई पहरों तक ध्यान समाधि में रहने के बाद हेमर और रोरो का ध्यान टूटता है ।  तभी वो सजग अवस्था में आते है । ऐसा अद्भुत ज्ञान जानकर हेमर अधिक प्रसन्न था । इसलिए वो अब. ज्ञान की खोज में निकल पड़ा था । कठिन से कठिन यात्रा तय करके वो नेपाल आ पहुंचा जहाँ भगवान बुद्ध से जुडी़ कई घटनाएँ और रहस्यों को जानने के लियें वो कबसे उत्सुक था, इसलिए वो नेपाल के मठों में जाता  हैं, वहाँ गुरु का ह्रदय से सत्कार करके हेमर प्रश्न पूछता है - इस सृष्टि पर इंसान मृत्यु को स्विकार में संकोच क्यूँ करता जो सत्य और अनिवार्य है  ।

गुरुने प्रेम से कहा-  " तुम्हारे भीतर की जिज्ञासा में अवश्य शांत कर सकता हूँ ।  लेकिन इससे पहले तुम्हें गौतम बुद्ध से जुडी एक सत्य घटना सूननी होगी । "

" अवश्य क्यूँ नही बस आप बताओ.. "

बात उन दिनों की है जब बोध प्राप्त होने के बाद गौतम बुद्ध आम जनता को दुखों से मुक्ति के उपाय बताते हुए बाकी जीवन गुजारने का फैसला कर चुके थे । उनकी कीर्ति भी फैलने लगी थी ।
एकबार गौतम बुद्ध के पास एक स्त्री आई और जोर जोर से विलाप करने लगी कि सांप के काटने से उसके प्रिय पुत्र की मृत्यु हो गई है । स्त्री अपने इकलौते पुत्र को जीवित करने को लिए बार बार उसने विनती कर रही थी ।  बुद्धदेव ने उससे प्रश्न किया , ' क्या तुम नही जानती कि इस संसार में जो भी जन्म लेता है, उसका एक दिन अंत होना निश्चित है ? जो संसार का सनातन सत्य है ।

उस स्त्री ने कहां - " हा.. अच्छी तरह जानती हूँ  ! मगर आप पहुंचे हुए महात्मा है और आपमें इतना सामथ्यॅ है कि आप मेरे पुत्र को जीवित कर सकते है, इसलिए में आपसे याचना कर रही हूँ  ! मेरा वह बेटा मेरी एकलौती संतान थीं  ।  जो मेरे जिगर का टुकड़ा के समान था ।  मैं आपसे उसके जीवन कि आंस लेकर आपके पास आई । मगर आप तो मुझे उपदेश दे रहे है । यदि आप उसे जीवित नही कर सकते तो कृपिया साफ-साफ बता दे ।

 बुद्ध ने जान लिया कि पुत्र वियोग में शोकमग्न इस स्त्री को समझाना अत्यंत कठिन है ।  उन्होने कहां " ठीक है , मैं तेरे पुत्र के लिये प्रभु से प्रार्थना करता हूँ । मगर तू इसके लिए किसी घर से राई लेकर आ, लेकिन इस बात का ध्यान रखना की जिस घर से तू राई लेकर आए, उस घर मैं कभी किसी की मृत्यु नही हुई हो ।

स्त्री के मन में आशा का संसार हुआ । उसने सोचा कि राई तो आसानी से प्राप्त हो जाएगी ।  लेकिन वो जिस घर में जाती वहां यही जवाब मिलता की उसके घर में किसी न किसी की मृत्यु अवश्य हुई है । उसे इस बात की समझ आ रही थी कि मृत्यु अटल एंव अवश्यंभावी है और उसका सामना किसी न किसी दिन हर एक को करना ही पड़ता है ।

थक, हारकर वह बुद्ध के पास लौटी और उसने बताया कि उसे कोई ऐसा घर नही मिला । जहां किसी की मृत्यु नही हुई हो । लेकिन अब अन्य लोगों के समान वह भी इस दुःख का धैर्य ओर साहसपूर्वक सामना करेगी ।

 " वाह... ऐ प्रसंग तो मानव जाति के लिए सत्य का उदाहरण है । जो सत्य को कभी अस्वीकार करते है । वही इस बात को भली-भाँति समझ पाएंगे । "

अब हेमर मठों से निकलकर वन की ओर प्रस्थान करता है जहां स्तूप का अति उत्तम निर्माण हुआ था ।  वहां तक जाने के लिये घनी झाडी में से पगडंडी पर चल कर जाना था । क्योंकि हेमर अकेला था, डर के आगे जाता है तभी वहाँ डाकू टोली आ जाती है मुँह पर काला वस्त्र बांधकर 
ये संन्यासी तुम्हारे पास जो कुछ वो हम सौंप दे , वर्ना मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा ।

भिक्षु ने हंसते हुए कहां - " मृत्यु सत्य है एक दिन सबको आनी है फिर भय कैसा ? उसे सहज गले लगाने का अद्भुत क्षण है । "

डाकू - " हमें ये ज्ञान मत दो हम खूंखार और क्रूर है ? "

" मैं तुम्हें एक रोचक प्रसंग सूनाता हूँ अंगुलिमाल के बारे 

कहां जाता जब बुद्ध वैशाखी पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के तट पर पीपल, वह बोधिवृक्ष के नीचे इन्हें ज्ञान की महा प्राप्ति हुई, उसी दिन से वे तथागत कहलाये जाने लगे । ज्ञान प्राप्ति के बाद ही ये गौतम बुद्ध के नाम से प्रचलित हुए,  उस वक़्त वो नगर, नगर जाकर मानवता के उपदेश देते । लेकिन एकबार नगरजनों से अंगुलिमाल के बारे बात करते सूना था ।  तभी भगवान बुद्ध उस भयानक जंगल से अकेले गुजरते हैं । उन्हें देखकर अंगुलिमाल मारने की धमकियां देता है ।

अंगुलिमाल से गौतम बुद्ध ने कहा - " पेड़ की शाखा से तोडे गए दस पत्ते को तुम यथास्थति में वापस संपूर्ण नही जोड़ सकते फिर भी अपने आपको ताकतवर समझते हो । निर्बल, निदौष लोगों की क्रूरतापूर्वक हत्याएं करके अपने आपको महान बलशाली मानते हो । ' इतना सूनते ही अंगुलिमाल के हाथ से तलवार छूटकर जमीन पर गिर पड़ी । यही वह अद्भुत क्षण था जब अंगुलिमाल के ह्रदय का रुपांतरण या ह्रदय परिवर्तन हुआ । फिर क्या था वो बुद्ध से भिक्षा ग्रहण करके भिक्षुक बन गया  ।

दुसरी तरफ वो डाकू भी अंगुलिमाल कि खूंखार से करुणामय घटना सूनकर अवाक रह गयें और अब से लूंट नही करेगे बल्कि मेहनत करके जीयेगे इसा वचन भिक्षु हेमर को देते । ये सब देखकर हेमर अत्यंत प्रसन्न था, क्योंकि उसके माध्यम से डाकू के जीवन में  परिवर्तन आया था ।

हे.... करुणानिधि बुद्ध
जहाँ बीहड़ जंगलों से नगर तक
फैला था खौफ का काला अंधकार
खूंखार, क्रूर अंगुलीमाल का
वहाँ आपके पावन स्पर्श से
पाषाण ह्रदय भी क्षण भर में 
पिघल कर पवित्र बन गये
और मधुर, शीतल, ज्ञान जैसी 
वाणी में मन अति शुद्ध होकर  ,
प्रेम, करुणा, संवेदना का पाठ 
ह्रदय से संपूर्ण जानकर, पढ़कर
भिक्षुक बनने सदा तत्पर रहता
संघ की महायात्रा में  प्रस्थान करने
ऐसे महात्मा बुद्ध को मेरा
चरणों में कोटि - कोटि लाखों प्रणाम...

अंत में  कहना है कि ' मन बहुत अद्भुत चीज है, लेकिन यदि आप इसमें अटक गए तो वह आपको लगातार छलता रहेगा । अगर आप मन में अटके रहने वाले इंसान है, जो आप लगातार दुःखी रहेगें, आप इससे बच नही सकते । कष्ट या पीडा़ से आप बच नही सकते । और तत्पर उभर भी नही सकते । हो सकता है  की सूर्यास्त देखते समय वह आपको इतना सुंदर लगे की आप सबकुछ भूल जाए, मगर आपका दुख आपका पीछा लगातार करता रहेगा । आप जैसे ही मुड़कर देखेगे, वह आपके पीछे हर क्षण मौजुद होगा । जिसमें आप अल्प ' खुशी ढूंढते है ' , वह ऐसा वक़्त है जब आप अपने दुःख को भूल जाते है, जब तक आप में हाजर होंगे भय, बेचैनी और संघर्ष से बच नही सकते, मन का स्वभाव यह है, जो इंसान को जीवन में वास्तविक का आइना दिखाती है । क्योंकि फिलहाल, ज्यादातर लोग तरह-तरह विचारों, भावनाओ, मतों और पूर्वाग्रहों की एक गठरी है ।


--------- शेखर खराडीं ईड़रिया