Weekend Chiththiya - 18 in Hindi Letter by Divya Prakash Dubey books and stories PDF | वीकेंड चिट्ठियाँ - 18

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वीकेंड चिट्ठियाँ - 18

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(18)

डीयर बीवी,

मैं इंटरनेट पर हर हफ्ते में इतने ओपेन लेटर पढ़ता हूँ और ये देखकर बड़ा हैरान होता हूँ कि कभी किसी पति ने अपनी बीवी को कोई ओपेन लेटर क्यूँ नहीं लिखता। चिट्ठियों के नाम पर ऐसा मायाजाल फैला हुआ है कि ऐसा लगता है जैसे कोई अपनी बीवी को छोड़कर पूरी दुनिया में किसी को भी चिट्ठी लिख सकता है।

शादी लव हो या अरैंज, बाइ डिज़ाइन शादियाँ बोरिंग होती हैं या फ़िर यूं कह लो हो एक टाइम के बाद बोरिंग हो जाती हैं। बोरिंग तो खैर शादी क्या ज़िन्दगी भी कभी न कभी हो जाती है। ये बात कुछ लोगों को बुरी लग सकती है लेकिन मैंने लोगों का ठेका थोड़े ले रखा है। मैं किसी भी ग्रुप को रिप्रेसेंट नहीं करता यहाँ तक कि अपने चार पाँच लोगों के परिवार को भी नहीं। जहाँ महीने में दो चार दिन मुझे अपने आप को ही झेलना मुश्किल हो जाता है ऐसे में मुझ जैसे बोरिंग इन्सान को केवल तुम्हारे जैसी बीवी ही झेल सकती है।

अब जब ये रिश्ता ही बोरिंग है तो हम क्यूँ एक दूसरे को कोई भी दोष दें और फालतू एक दूसरे को पर्फेक्ट करने के चक्कर में पड़ें। मेरी हर प्रेमिका ने मुझे अपने बाप या भाई या फ़िर किसी पर्फेक्ट इन्सान बनाने की नाकाम कोशिश की, इसीलिए शायद हमारी शादी की लम्बाई मेरे किसी भी प्यार की लम्बाई से ज़्यादा है।

मुझे बड़ा अच्छा लगा था जब तुमने शादी से पहले सारे चक्करों के बारे में मुझे बेझिझक बता दिया था। जिस वक़्त तुमने मुझे इस लायक समझ लिया था कि तुम मुझे कुछ भी बता सकती हो हमारी शादी उसी पल हो गयी थी।

मुझसे किसी ने ऑफिस में पूछा था शादी के लिए क्या देखकर डिसाइड करना चाहिए। मैंने उनको बताया था कि जिससे शादी करो उससे तुम्हारी ‘बोली और बातें’ मिलनी चाहिए। ऑफिस में ये बात किसी को समझ नहीं आई थी। शादी को लोग-बाग मैथ्स के सवाल की तरह कैलकुलेट करते हैं इसलिए कभी सही जवाब तक नहीं पहुँच पाते। शादी के सवाल में X की वैल्यू हर बीतते साल के साथ बदल जाती है।

मुझे बड़ा क्यूट लगता है जब मैं अपनी लिखाई की वजह से थोड़ा उड़ने लगता हूँ और तुम फट से मुझे झोला पकड़ा कर सामान एक लिस्ट थमा देती हो। जब तुम अपने काम के सिलसिले में बाहर गयी थी और मैंने पूछा था कि चलो बताओ तुम्हें मेरी कितनी याद आती है। तब तुमने बड़े आराम से कह दिया था, “इतनी याद कि हम आपको बिस्तर पर ढूंढते रहते हैं”

अब तीन किताबें ख़तम करने के बाद भी मैं इतनी आसानी से ये बताने लायक नहीं हुआ हूँ जितनी आसानी से तुम वो बता देती हो जो इस दुनिया के सारे पति पत्नी कभी न कभी कुछ पल को ही सही महसूस कर सकते हैं।

बस अब चिट्ठी ज़्यादा लंबी नहीं करूंगा क्यूँकि पढ़ते ही तुम बोलोगी, “बंद करिए ये सब नाटक, बाथरूम के गीज़र का दो महीने से खराब है किसी संडे चिट्ठी लिखने की बजाये घर के काम पे ध्यान देंगे”

यार बीवी, शादी से पहले मैं घर का मतलब केवल ड्रॉइंग रूम और उसमें रखी किताबें और किताबों में लिखी बड़ी बड़ी बातें समझता थे, मेरी किचेन और बेडरूम से से दोस्ती करवाने के लिए, धन्यवाद। मुझे दो कमरे से ‘घर’ के सफर ले जाने के लिए धन्यवाद।

दिव्य

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