Karz in Hindi Moral Stories by Daisy books and stories PDF | कर्ज

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कर्ज

ज्ञानचंद अस्पताल के आईसीयू बाहर परेशान सा  टहल रहा है ।तभी आईसीयू से बाहर एक नर्स ज्ञानचंद को बोलती है ,आपके बेटे के पास कम समय है वह आपसे कुछ बात करना चाहता है और अपनी पत्नी को भी बुला रहा है।
ज्ञानचंद अपनी बहू को लेकर आईसीयू में जाता है सामने उसका बेटा आखिरी सांसें ले रहा है। ज्ञानचंद अपने बेटेेे के पास पहुंचता है। हां ,बोलो बेटा कुछ कहना चाहतेे हो!! हां पिताजी, मैंं आपसे कुछ कहना चाहता हूं हांं बेटा बोलो ।पिताजी आप दिल्ली आने से पहले ऊटी रहते थे। तुम्हार एक दोस्त जिसका नाम कैलाश था। तुम्हारा परम मित्र था। तुम्हारे हर सुख दुख में काम आता था ।तुमने एक दिन उससे ₹5000 उधार लिए थे। लेकिन जब जब वह तुम से पैसे मांगता तुम उससे बहाना बनाकर टाल देते थे और एक दिन  जंगल में तुमने पैसे देनेेेे के बहाने  बुलाया। धोखे से पीछे सेे चाकू मारकर तुमने उसकी हत्या कर दी।
ज्ञानचंद सन्न रह गया की यह बात उसके अलावा और कोई नहीं जानता की लगभग 30 साल पहले उसने अपने परम मित्र का कत्ल करके दिल्ली भाग आया था। मेरे बेटे को यह सब कैसे मालूम है उसने अपने बेटेेे से पूछा यह सब बातें तुम्हें किसनेे कही।
बेटे ने कहाा उसे उसे किस ने नहींं बताया है  उसे यह सब इसलिए मालूम है क्योंकि  तुम्हारेे मित्र का पुनः जन्म मेरे रूप में हुआ है। तुमने 5000 केे लिए मेरा 30 साल पहले कत्ल कियाा था। उस समय तुम्हें मेरेे माता पिता का ध्यान नहीं आया कि इकलौते पुत्र के बिना कैसेे जीवित रहेंगे। मैं अपना धन लेने और पुत्र वियोग में माता पिता का दुख क्या होता है यह बताने के लिए तुम्हारे घर पुत्र के रूप में आया हूं। मेरी माता ने कष्ट नहीं देखने थे इसलिए मेरी मृत्यु से पहले वह दुनिया छोड़ कर चली गई ।तुमने 30 साल में जितना धन कमाया ।इतना धन तुम मेरी बीमारी में लगा चुके हो। मुझे बचाने के लिए तुमने अपना घर ऑफिस सब बेच डाला देखो मैं सब लेकर जा रहा हूं। साथ खड़ी उसकी पत्नी रो रही थी वह बोली तुम तो अपना कर्ज वापस लेने के लिए पुत्र रूप में आए। लेकिन मेरा क्या कसूर जो मुझे छोड़ कर जा रहे हो वह बोला तुम भी उतनी ही भागीदार हो जितनी मेरा पिता ।पत्नी बोली वह कैसे तब उसने बताया उस समय तुम भी वही थी। तुम एक बुढ़िया थी और सूखी लकड़ियां इकट्ठी कर रही थी ।जब इसने मेरा कत्ल किया तो तुम देख रही थी। लेकिन तुमने मेरी मदद नहीं की इसने तुम्हें डराया की यह बात किसी को ना बताई जाए नहीं तो तुम्हें भी मार डालेगा तब तुम अपनी मृत्यु से भयभीत होकर चुप रही। इसने मुझे मारा और वही गाड़ दिया और यह सब तुम देख रही थी । इसलिए अब मैं तुम्हें छोड़कर जा रहा हूं।अपनी पूरी बात कहकर वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।
ज्ञानचंद को अपराध बोध हुआ बेटे के संस्कार के बाद उसने अपने आप को पुलिस के हवाले किया। लेकिन उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले उसे आजाद कर दिया गया पर वह गलियों सड़कों पर अपनी कहानी कहता करता है लोग उसे पागल समझते हैं शायद यह भगवान का इंसाफ है।