Hawao se aage - 8 in Hindi Fiction Stories by Rajani Morwal books and stories PDF | हवाओं से आगे - 8

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हवाओं से आगे - 8

हवाओं से आगे

(कहानी-संग्रह)

रजनी मोरवाल

***

कोलाबा की बा

सूखी मछलियों पर नमक भुरकती आई की झुकी पीठ दूर से यूँ प्रतीत हो रही थी मानों समुद्र में कोई डॉलफ़िन छलांगे भरते वक़्त पानी से ऊपर आ गई हो और फिर वापिस लौटते हुए उसका मुँह और पूँछ तो पानी में समा गए हों किन्तु बीच का हिस्सा अपनी सतह से ऊपर देर तक दिखाई देता रहता है।

“आई मैं मदद कर दूँ ?”

“नको रानी... आज तू आएगी मेरी मदद करने कू, कल कोण करने का ?” रानी को जवाब देती आई कुछ ज्यादा ही कठोर हो जाया करती थी |

ससून डॉक के पास रानी के बापू की देशी दारू सप्लाई का धंधा था । यूँ तो उसकी दुकान कोलाबा के अंदर मेन चोराहे से सटी बाटलीवाला गली के भीतर थी | सुबह जल्दी नाव लेकर समुद्र में उतरने वाले मछुआरों को वह काली प्लास्टिक की थैली में ताड़ी भरकर फ्री में ही चुपचाप पकड़ा दिया करता था | समुद्र के खारे पानी में दिन काटने के लिए मछुआरे ताड़ी और सूखी मछलियाँ पर ही ज़िंदा रहते हैं | जब कई-कई दिनों तक घर से बाहर रहना हो तो नाव में सूखी तली मछलियों और ताड़ी के साथ ही दिन कटते हैं । हरी सब्जियों के अभाव में मछलियों से ही शरीर को प्रोटीन मिलता है |

मुंबई नगरी के कोली बाड़े का नाम अंग्रेजों ने कोलाबा कर दिया था | यहाँ के मूल रहवासी कोली मूलतः मछुआरे बन गए और ससून डॉक के आस-पास बस गए | रानी के बापू की कोलाबा में देशी दारु की दुकान थी । पहले-पहल मछुआरे फ्री की ताड़ी के मद में चूर रहते हैं फिर धीमे-धीमे उसके आदी होते जाते हैं | यहीं से वे रानी के बापू की बिज़नस ट्रिक में फँसने लगते हैं और हर शाम उसकी दुकान का रुख़ करने लगते हैं | खाली जेब और कमज़ोर इच्छा-शक्ति की गिरफ़्त में जकड़े लोग बाद में उधार की ताड़ी पीने पर मजबूर हो जाते हैं । बस यही उधारी रानी के बापू की असली कमाई थी, एक ऐसा जाल जिसकी पकड़ से छूटना नामुमकिन होता था |

आई को लगता है रानी के प्यार में पड़कर ही नंदु जिद्दी हो गया था और ताड़ी पीना भी उसने रानी के चक्कर में ही सीखा था | शुरुआत में तो वह दारू खरीदने ही उसके रानी के बापू की दुकान पर जाता था | गल्ले पर बैठी रानी से वहीं उसकी निगाहें चार हुई थी, ग्राहकों को उधारी की शराब के लिए गालियां बकती रानी की नज़र नंदू पर ऐसी ठिठकी कि वह उसे अपने बापू से चुपके-चोरी शराब की बोतल मुफ्त में थमा दिया करती थी | आई को रानी फूटी आँख नहीं सुहाती थी |

अक्सर माँ-बेटे की आपसी नोंक-झोंक को लोग सुनते और उस तकरार में छुपे प्यार को देखकर मुस्कुरा देते थे । वे जानते हैं कि ये माँ-बेटे में होने वाली रोज़मर्रा की तकरार है, आई कहती-

“ताड़ी पीकर बंकस करता है नंदु ! तू उस रानी के चक्कर में बर्बाद होके रहेंगा देख ले मई बोलती तेरेकू !”

“अरे नहीं ऐसा नईच है, मैं दारू किधर पीता ? वो तो रानी की जवानी का नशा है जो मेरेकु सर चढ़के बोलता है ।”

“चल जाके खा ले और सो रह नहीं तो सारी रात हरिदास के साथ सोना पड़ेंगा ।”

“हरिदास बोले तो कौन आई ?”

“गली का कुत्ता, जो तेरे माफ़िक गली में भवंडी मारता फिरता है इधर-उधर ।”

“हा हा हा चा माइला तेरा सिर चढ़ेला रहता न तो तू भी कुछ भी बोलती है

“अरे हर जीव में हरी का वास रहने का न इसके वास्ते वो कुत्ता काहेकू हरिदास नहीं रहने का ?”

“चल तू जो बोले सब सच, वो हरिदास...मैं हरिदास...हम सब हरिदास, ए आई... मेरी बा... ओ अम्मा... ओ मम्मा ...प्यारी माँ सुन तो !” और नंदू वहीं पर ढ़ेर हो जाता है |

मीनाक्षी और आई उसे घसीटकर किसी तरह भीतर खाट पर ला पटकते हैं, किन्तु रात देर तक आई का बड़बड़ाना ज़ारी ही रहता था |

मई से जुलाई में समुद्र कुछ अधिक ही उफान पर रहता है, सावन के महीने में समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है और तेज़ बौछारों के बीच गश्त करती कोस्ट गार्ड्स को नौकाओं और नावों पर नज़र रखना मुश्किल होता है | ऐसे में इन दो महीनों में मछुआरों को समुद्र में नाव उतारने की मनाई रहती है । इन दिनों बाज़ार कुछ ठप्प-सा ही रहता है हालांकि मछुआरे अगले छ्ह महीने का इंतज़ाम करके रखते हैं | बड़े मछुआरों के पास कई-कई बड़ी नावें और अपने-अपने कोल्ड स्टोरेज होते हैं जिनमें स्टॉक की गई मछलियाँ देश-विदेश के कोने कोने तक जाती हैं | छोटे मछुआरे जरूर इन दिनों तंगी के हालातों में गुज़र-बसर करते हैं, ऐसे में घर चलाने का ज़िम्मा घर की महिलाओं पर होता है | इन्हीं दिनों के लिए मछलियों को नमक लगा कर सुखाकर स्टोर कर लिया जाता है | धंधा जब मंदा होता है तो कुछ महिलाएँ बाँस की टोकरियाँ बनाने, सींप की मालाएँ या सजावटी समान बनाकर भी अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींचने में मदद करती हैं | पुरुष अमूमन बेगारी के इन दिनों शहर के अन्य हिस्सों में जाकर रोजगार तलाश लेते हैं |

अगस्त माह की पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की कथा करते हैं और नारियल पूजा के पश्चात ही वे पुनः अपने धंधे पर उतरते हैं, लेकिन नंदू कोस्ट गार्ड्स की तमाम चेतावनी के बावजूद भी चुपके-चुपके निकल ही जाया करता था । एक नाव तीस-चालीस लाख की आती है, वह अधिक से अधिक मेहनत करता था ताकि कुछ रुपया जोड़कर तो कुछ बैंक से लोन लेकर किसी तरह एक नाव खरीद सके |

नंदू भली-भांति वाकिफ़ था कि बूढ़ी माँ अपनी उम्र से अधिक मेहनत करती है और बहन आँखें न होने के बावजूद दिन भर टोकरियाँ बुना करती है किन्तु जीने के लिए सिर्फ़ इतना नाकाफ़ी लगता था नंदू को | वह बहन की शादी से ज्यादा उसकी आँखों के इलाज को लेकर चिंतित रहता था इसीलिए उसने प्रण कर लिया था कि मीनाक्षी की आँखों का इलाज करवाकर उसका ब्याह करेगा तभी अपना घर बसाएगा वरना जीवन भर बहन की ज़िम्मेदारी उठाएगा | उसे अपनी सभी परेशानियों का हल बस एक ही नज़र आता था वह थी एक अदद नाव, इसीलिए वह अपनी जान की परवाह किए बगैर तूफान की चेतावनी के बावजूद भी लहरों पर अपनी नाव उतार ही देता था |

बीच समुद्र में जाल डालकर नंदु अपनी गुरबत से निकलकर सुनहरे भविष्य के सपने देखा करता था, सूनेपन में उसे रानी की बहुत याद आती थी । कहावत है कि कोली बाड़े को खाने के लिए रोटो-मच्छी मिले न मिले, गले में सोने की चेन दिखाई देनी चाहिए, दहेज़ में ढेर सारा सोना देना यहाँ की परंपरा है | गहरे प्रेमिल क्षणों में रानी भी नंदू से वादा लिया था कि व्याह में वह पाँच तौले की चेन जरूर लाएगा । नंदू कहता कि वह अपनी बहन से पहले किसी हालत में ब्याह नहीं करेगा | उसकी इस शर्त से रानी रूठ जाया करती थी, रूठी रानी को चिढ़ाने के लिए नंदू अक्सर गुनगुनाया करता था-

गल्यान साखली सोन्याची,

ई पोरी कोन्या ची

आईच बी काली

अणे बापूच भी काला

ई गोरी पोरी कोन्याची”

झूठ-मूठ के रूठने मनाने के इस खेल में भी रानी यह भी भली-भांति जानती थी कि नंदू अपने वचन का पक्का है । वह मेहनती भी है पर नाव खरीदना कोई हँसी-मज़ाक नहीं ।

“चल हलकट... आईसा नको चलेंगा समझा क्या माएला, पेले सादी बनाने का, अपुन का एक बोट खरीदना माँगता है, तब्बिच बापू सादी क वास्ते राज़ी होएंगा” रानी की हँसी फिर देर तक उसके कानों में गीत बनकर गूँजती रहती थी |

ज़्यादातर अपनी मस्ती में रहने वाला नंदू जब कई-कई दिनों समुद्र में अकेला उस किराए की नाव पर पड़ा रहता था तो समुद्र का खारापन उस पर हावी होने लगता था । अक्सर उदासी क्षणों में वह भविष्य की चिंताओं में खो जाया करता था | रानी की कही हर बात नंदू को याद आती और वह दुगुने जोश से मेहनत में लग जाता था |

बिन बाप का बेटा नंदु घर-गृहस्थी की फिक्र में पड़ा रहता था जबकि उसके कुछ साथी तो अब तक बाप भी बन चुके थे | नंदु खासा जवान और होनहार लड़का था उसे एक से एक बढ़िया लड़की के रिश्ते आते थे पर वह चिंता तो उसे अपनी बहन मीनाक्षी की थी, उससे ब्याह कौन करता... वह अंधी जो थी |

ससून डॉक पर आई अब भी मछली की टोकरी लगाकर बैठती है । उस रोज़ सुबह से ही काले बादल घुमड़ रहे थे, भारी बरसात के साथ तूफान की चेतावनी थी | आई ने नंदु को लाख रोका पर वह न रुका और जाल लेकर लहरों पर निकल ही पड़ा और तब से लौटा ही नहीं |

जब तक नंदू था आई की पीठ तनी रहती थी लेकिन पिछले पाँच बरसों में उसकी पीठ दुहरी होकर पेट से जा मिली । रोज़ ससून डॉक पर आई सबसे पहले जा बैठती है और शाम ढले जब सब मछुआरे लौटने लगते हैं तो वह दौड़कर तट के करीब चली जाती है और अपनी धुँधली हुई जाती आँखों को पल्लू से मसल-मसलकर साफ़ करती है ताकि दूर से ही अपनी तरफ आते नंदू को पहचान ले किन्तु वह नहीं समझ पाती कि वह कितनी ही आँखें मसल ले पर नंदू के इंतज़ार में रो-रोकर आँखों में उतार आए मोतिया को वह कैसे साफ़ करेगी | सूरज ग़ुरूब होते ही वह हर मछुआरे को रोक-रोककर पूछती-

“नंदू कहाँ है ?, उसको गए पाँच दिन हो गए तुमने उसकी नाव तो देखी होगी ?”

“अरे आई ! नंदू को गए पाँच दिन नहीं पाँच बरस हो गए, चल तू घर चल !” रानी लगभग ठेलते हुए आई को घर लिए आती थी । आई का दुख रानी समझती है इसीलिए लाख झिड़कियाँ खाकर भी वह आई का हरसंभव ध्यान रखती है । उसका अपना दुखड़ा वह किससे जाकर कहे ? दस-दस नावों के मालिकों के रिश्ते भी वह ठुकरा चुकी थी । अब तो बापू भी उसके सामने गिड़गिड़ाकर हार गया था | रानी ने बापू की दुकान पर काम करने वाले कात्या बिहारी से मीनाक्षी का ब्याह करवा दिया था । कात्या अपने घर से बेघर मुंबई में रोजगार तलाशता रानी के बापू की दुकान से आ लगा था, उसे सिर छुपाने को घर चाहिए था और मीनाक्षी को सहारा ।

“एक से भले दो हो जाएंगे कात्या, तू मीनाक्षी के अंधेपन में अपने जीवन का उजाला खोज और वह तुझमें एक ऐसा संबल जो उसकी बूढ़ी माँ के साथ-साथ उसकी ज़िम्मेदारी भी उठा ले !”

“और आई ?

“उनको बापू मना लेगा ।” और वाक़ई बापू ने आई को नंदू को ढूंढ लाने के वचन के साथ मना ही लिया था जबकि उसकी अंतरात्मा जानती थी की नंदू का मिलना नामुमकिन है | रानी की खुशी के लिए बापू ने ये झूँठ भी अपनी आत्मा पर उठा लिया था किन्तु वह कहाँ जानता था कि एक रोज़ सचमुच नंदू मरणासन्न अवस्था में पाकिस्तान की सामुद्रिक सीमा क्षेत्र पार कर जाएगा और वहाँ के नाविकों के हत्थे चढ़ जाएगा ।

दरअसल पाँच बरस पहले नंदू की नाव भयंकर तूफान में जा फंसी थी । कई दिनों तक भूखा-प्यासा नंदू बेहोशी की हालत में भगवान भरोसे नाव में ही पड़ा रहा था | लहरों के थपेड़ों में झूलती उसकी नाव कोस्ट गार्ड्स के टावर से दूर तेज़ हवाओं में पाकिस्तानी सीमा क्षेत्र पार कर गयी थी । नंदू के वहाँ पहुँचने की खबर उसे मछुआरों के एक खबरी ने दी थी । नंदू अपनी क्षीण पड़ी याददास्त के साथ पाकिस्तान की जेल में रह रहा था ।

कोली बाड़े में आई के सिवाय सभी यही मानते हैं कि नंदु समुद्र की भेंट चढ़ गया और वे उसे मुंबा माँ का प्यारा सपूत मानकर इसी में उसकी रज़ा मान बैठे थे । कोली बाड़े में जब भी कोई जवान खून समुद्र में समाहित हो जाए तो बाड़े वाले उसे मुंबा देवी का प्यारा मान लिया करते थे किन्तु बरसों हो गए आई नहीं मानती कि नंदु अब कभी लौट कर आने वाला नहीं है |

आई की खुद्दारी के किस्से बाड़े में सब जानते थे, उसकी पीठ झुक गयी थी पर उसने अपने आन, बान और शान नहीं टूटने दी थी | बरसों पहले उसका जवान बेटा नंदु नाव लेकर मछली पकड़ने गया था पर लौटा नहीं | नंदु अक्सर मुँह अंधेरे अपना जाल लेकर चल देता था । वह अपने इलाके का सबसे बेहतरीन मछ्ली पक्कड़ था | आई कैसे मान ले कि नंदू जैसा कुशल तैराक समुद्र में डूब गया होगा | बाड़े के और लड़के उसके हूनर को सीखने की लाख कोशिश करें पर नंदु से अधिक मछलियाँ पकड़ना और उसकी भांति तैरने की कला किसी के बस की बात न थी |

बापू ने जबसे नंदू के जीवित होने की ख़बर दी है रानी को अपने बुझे सपनों की राख़ में एक हल्की चिंगारी सुलगती दिखाई दे रही है, उसके अरमानों ने हल्की-सी रेखा के भरोसे उस चिंगारी को कुरेदना शुरू कर दिया था | पिछले पाँच बरसों से रानी के जीवन में कोई वसंत नहीं फूटा था, यदि कुछ आया था तो सिर्फ पतझड़ जो ऐसा आया कि मौसम से छूटकर बस ठिठक ही गया था |रानी का बापू अपने बेटी के मुरझाए चेहरे को बरसों से बूझ रहा था, उसने चंचल झरने की तरह कलकल करती रानी को शनै-शनै शांत झील में तब्दील होते देखा था | वह फरियाद लेकर मछुआरों की यूनियन के पास गया था, यूनियन से उसे पता चला था कि सरकारी फाइलों में गुम हुए मछुआरों की एक लंबी सूची दर्ज़ होती है | दोनों देशों की सरकारें अपनी सीमाओं में दाखिल मछुआरों को समय-समय पर लौटाने की कवायद करती रहती हैं यदि वह चाहे तो एक अर्ज़ी नंदू के नाम की भी लगा सकता है हालांकि दोनों ही सरकारें अपने देशों के गुम मछुआरों की ख़ोज-परख पूरी रखती है |

आई अब भी बिला नागा किए रोज़ शाम ढलने तक नंदू का इंतज़ार करती थी, अब वह रानी से उतना ख़ार नहीं खाती, दो स्त्रियॉं का प्रेम एक ही पुरुष से दो भिन्न रूपों में होकर दोनों को एक सूत्र में बांध गया था, वे पीड़ा की सहभागिनी बन चुकी थीं | बिनब्याहे भी रानी ने अपने बहू होने के फर्ज़ भलीभाँति पूरे किए थे | रानी का मानना है कि आई की आस्था ही थी जिसने नंदू को जीवित रखा वरना पूरा कोली बाड़ा आई को पगली कहने लगा था |

रानी की जवानी के लिए, मीनाक्षी की आँखों के लिए और आई की आस्था के लिए आखिरकार नंदू लौट ही आया था | दोनों देश की सरकारों ने अपनी-अपनी जेलों में बंद मछुआरों को छोड़ने का फैसला किया था जिसके तहत 8 जनवरी 18 नंदू समेत कुल 147 मछुआरों को रिहा कर दिया था |

आई का कहना ठीक ही था कि “समुद्र मछुआरों को रोज़ी-रोटी देता है, वो हमारा माई-बाप है | जब मछुआरे समुद्र के नियमों के खिलाफ जाकर उसकी लहरों पर सवार हो जाते हैं तो उसकी नाराजगी बढ़ जाती है | ऐसे में यदा-कदा मछुआरों को समुद्र के गुस्से का सामना करना पड़ता है लेकिन आस्था की डोर मजबूत हो तो मृत्यु लोक से भी व्यक्ति को लौटा लाती है

“तू सच आई, तेरी आस्था सच....सच्ची तेरी आन,बान और शान आई” रानी कमजोर हो आए नंदू की सेवा करके उसे फिर से पहले की तरह ताक़तवर, साहसी और कुशल मछुआरा बना देना चाहती है | नंदू की क्षीण याददाश्त को बुलंद करने के लिए आई पिछले पाँच बरसों की बातें सुनाती है और साथ ही यह भी कि उसके जाने के बाद किस तरह रानी ने निस्वार्थ प्रेम व सेवभाव से उसके परिवार को अपनाया

कोली बाड़े के हर घर में अब मछुआरों की माँएँ अपनी बहु-बेटियों को नंदू की आई के विश्वास के किस्से सुनाती हैं, जो अब सारे कोलाबा की बा बन चुकी है ।

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