नियति
सीमा जैन
अध्याय - 3
शिखा को नहीं पता वह कैसे सूटकेस लेकर कमरे से बाहर आई । घर में सन्नाटा था रिया को विदा करके सब बेसुध सो रहे थे । वह चुपचाप घर से बाहर निकल गई । ठंडी ठंडी हवा शरीर को चुभ रही थी लेकिन उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था । उसे नहीं याद वह कितना चली, कब उसे एक ऑटो दिखाई दिया और कब उस पर सवार होकर बस स्टैंड पहुंची। पौ फटने वाली थी, पहली बस भोपाल के लिए रवाना होने को तैयार थी। वह टिकट लेकर उसमें बैठ गई । होश उसे तब आया जब उसने अपने घर की घंटी दबाई।
कॉलेज की छुट्टी थी इसीलिए शालिनी घर में ही थी। अधिक आना जाना नहीं था इसलिए हर घंटी पर दिमाग पर जोर देना पड़ता था कौन हो सकता है। शिखा तो शाम से पहले नहीं आ पाएगी। दरवाजे पर शिखा को देखकर आश्चर्यचकित रह गई लेकिन मुख पर निगाह पड़ते ही घबरा गई। शिखा मां को देखते बिलख पड़ी, छः सात घंटे का सब्र जैसे टूट गया हो। मां से लिपट कर फूट फूट कर रोई। शालिनी बेटी को संभालते हुए अंदर ले गई, उसकी कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या हो गया है।
सुबकते हुए जब शिखा ने सारा वृत्तांत सुनाया तो शालिनी सुन्न सी हो गई। किसी तरह अपने को संभाल कर रसोई से गर्म दूध लाई, शिखा को पिलाया । बिस्तर पर ले जाकर सुला दिया, तन मन से थकी शिखा मां की बाहों में आकर निश्चित सी हो गई। अपनी सारी चिंता मां को ओढ़ा दी । धीरे धीरे स्वयं नींद के आगोश में समा गई लेकिन शालिनी जैसे बौरा गई। दूसरे कमरे में जाकर दरवाजा बंद करके जमीन पर बिखर गई। चीख चीखकर ऐसे रोई मानो बीस इक्कीस साल से जो दर्द सीने में दबा था आज कलेजा फाड़ कर बाहर निकल कर ही दम लेगा। उसकी बेटी के साथ ऐसा कैसे हो सकता है, उसने उसके जन्म होते ही प्रतिज्ञा ली थी वह अपनी बेटी की हिफाजत जान से भी अधिक ध्यान से करेगी। लेकिन नियति के आगे इंसान कितना बेबस है घंटों बैठी ऐसे ही रोती रही।
उधर रिया को विदा करके सबने घर में प्रवेश किया । पुष्पा का बेटी को विदा करके बुरा हाल था। रो रो कर चेहरा सुजा लिया था । रिश्ता पक्का हुए छः महीने हो गए थे, जानती थी बेटी एक दिन ससुराल जाएगी। लेकिन विदा कर के कलेजा मानो फटने को आ रहा था। पुत्री के पैदा होते ही हर मां जानती है कि एक दिन अपने दिल के टुकड़े को अपने से अलग करना होगा। दीपा बार बार मां को चुप कराने की कोशिश करती, कभी पानी पिलाती तो कभी मजाक करती । लेकिन कोई लाभ नहीं हो रहा था, कहीं ब्लड प्रेशर ना बढ़ जाए, तबीयत ना खराब हो जाए, सबको चिंता होने लगी थी।
सुमन ने तब दीपा से कहा कि वह अपनी मां के पास ही लेट जाए, वैसे भी सुबह होने में समय अधिक नहीं रह गया था। पुष्पा को कुछ चाहिए होगा तो दीपा उसका अच्छा ध्यान रख सकेगी । दीपा अपनी मां के साथ दूसरे कमरे में सो गई, नौ बजे जब उसकी आंख खुली तो उसे शिखा का ध्यान आया । तुरंत गाउन डालकर रोहन के कमरे की और भागी। पता नहीं शिखा की तबीयत कैसी है। कमरे में पहुंचकर वह दंग रह गई, पलंग पर तो रोहन लेटा हुआ था। उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। शिखा कहां जा सकती है, रोहन तो बेसुध पड़ा था। वह यहां कैसे पहुंच गया कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हो सकता है जब शिखा सोने के लिए कमरे में आई होगी तो रोहन को देख किसी और कमरे में जाकर सो गई होगी। ऐसा सोचकर दीपा कोठी के प्रत्येक कमरे में झांक आई। लेकिन उसे शिखा कहीं नजर नहीं आई। अब उसे घबराहट महसूस होने लगी थी।
वह दोबारा रोहन के कमरे में गई झकझोर कर रोहन को उठाया। वह बहुत ही अव्यवस्थित था, उसके कपड़े भी अस्त-व्यस्त थे । लेकिन दीपा की घबराहट बढ़ती जा रही थी, वह रोहन को जल्द से जल्द उठाना चाह रही थी। किसी तरह रोहन उठा तो दीपा पर ही झला कर बोला, " तेरी परेशानी क्या है? इतनी जल्दी उठाने को क्या हुआ है ?रिया तो विदा हो गई है ना मुझे सोने दे। "
दीपा चीखती हुई बोली, "भाई शिखा को देखा क्या आपने?"
रोहन गुस्से से बोला, "मुझे नींद से उठा कर तू अपनी सड़ी सी सहेली के बारे में पूछ रही है । मुझे क्या पता वह कहां है। देख शायद मेरी पेंट की जेब में होगी। " दीपा उतावलेपन से बोली, "भाई मैं बहुत गंभीर हूं । कल वह फेरे से पहले यहां सोने के लिए आई थी लेकिन मैंने पूरा घर छान डाला उसका कहीं अता-पता नहीं है । भाई ध्यान करो रात को क्या हुआ था जब आप यहांआए थे। वह यहां थी कि नहीं ?आप दो दिन पहले कैसे आ गए ?"
रोहन नींदों में था फिर भी बोला, "मेरा काम समाप्त हो गया था कोशिश की तो दो दिन पहले की टिकट मिल गई। तुम लोगों को इसलिए नहीं बताया की आश्चर्यचकित कर दूंगा । हवाई अड्डे पर एक परिचित मिल गया जो अपनी गाड़ी से इंदौर आ रहा था । मैं भी उसके साथ गाड़ी में चल दिया। रास्ते में उसने एक दो पैग पिला दी । यहां आया तो थकान से बुरा हाल था, सिर भी दुख रहा था। सोचा एक घंटे सो कर फिर मंडप में पहुंच जाऊंगा । लेकिन नींद ऐसी लगी कि अब तू ने आकर उठाया है । अब तंग मत कर सोने दे । मैंने तेरी किसी सहेली व्हेली को नहीं देखा। "
दीपा कमरे से बाहर आ गई, चिंता के कारण उसका मन व्याकुल हो रहा था। शिखा कहां गई होगी उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसे लगा मां पिताजी को बता देना चाहिए । तभी याद आया शिखा के कपड़े तो कमरे में होंगे दोबारा कमरे में गई तो देखा शिखा का अधिकतर समान नदारद था। पता नहीं क्या हुआ होगा, कहीं रोहन को कमरे में देख कर सामान सूटकेस में डालभोपाल तो नहीं चली गई । इतनी रात को कैसे जा सकती है। उसकी समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करें । अगर फोन करके शालिनी आंटी से पूछेगी और शिखा वहां नहीं हुई तो उनका चिंता के कारण बुरा हाल हो जाएगा।
इस बीच रोहन बाथरूम चला गया, मुंह हाथ धोने के लिए । इतने में सुषमा और पुष्पा कमरे में आए, पुष्पा आब संयत लग रही थी । आते ही पूछने लगी, " शिखा कहां है? हम उसे कुछ तोहफा देना चाहते हैं, फेरों के समय भी नहीं दिखाई दी थी । "दीपा की अब घबराहट के कारण जान निकल रही थी। रोते हुए बोली, "मां शिखा कहीं नहीं दिख रही है । "
तभी बाहर से चाची की आवाज आई, "भाभी मेहमान जाने के लिए तैयार खड़े हैं, जिसको जो लेना-देना करना है कर दो । "
पुष्पा दीपा की बात बिना सुने ही बाहर भागी, लेकिन सुषमा दीपा की हालत देख समझ गई मामला गंभीर है। सुषमा चिंतित स्वर में बोली, "क्या कह रही हो, शिखा कहां जा सकती है?"
दीपा बोली, " पता नहीं मासी शिखा बहुत थक गई थी, फेरों से पहले कमरे में आ गई थी। "
रोहन भी तब तक उन दोनों के निकट आ गया था। उसे कुछ एहसास हुआ मामला क्या है और कितना गंभीर है।
उसे एहसास हुआ रात को जो अनुभूति उसे हुई थी वह सपना नहीं हकीकत थी । वह समझ रहा था नशे में उसने यह सब कल्पना कर ली थी । लेकिन हकीकत में पलंग पर कोई लड़की लेटी हुई थी और उसने उसके साथ वह सब किया जो उचित नहीं था । वह पलंग पर धम से बैठ गया । चादर की हालत देखकर समझना मुश्किल नहीं था यहां रात को क्या हुआ होगा । चादर पर पड़े धब्बों ने उसके शक को पुख्ता कर दिया। रोहन के साथ सुषमा की नजर भी चादर पर गई और वह भी समझ की रात को क्या हुआ होगा। वह सोचने लगी, " हे भगवान ऐसा कैसे हो सकता है, उसके बेटे से अनजाने में इतना बड़ा पाप कैसे हो सकता है? एक मासूम लड़की के साथ क्या कर दिया उसने। "
दीपा भी कुछ कुछ समझ गई थी क्या हुआ होगा । वह बोली, " पता नहीं शिखा इस समय कहां होगी, इतनी दूर घर कैसे जा सकती है? कहीं उसने कुछ कर तो नहीं लिया होगा । "
सुषमा की आंखों के आगे शिखा का भोला सा चेहरा घूम गया, वह बोली, "नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा वह सही सलामत होगी । "
लेकिन उसकी आवाज में संशय झलक रहा था । सुषमा चिंतित स्वर में बोली, "शिखा के घर फोन लगाओ, उसके मोबाइल पर कोशिश करो पता तो लगाना चाहिए वह इस समय है कहां और कैसी है।"
दीपा परेशान से बोली, "शिखा के घर कोई फोन नहीं उठा रहा और उसका मोबाइल बंद है। "
सुषमा दुखी स्वर में बोली, " यह तो ठीक नहीं है । ऐसा करो तुम रोहन के साथ शिखा के घर जाओ, हमें सबसे पहले यह निश्चित करना चाहिए शिखा सुरक्षित अपने घर पहुंच गई है कि नहीं। मैं यहां रहती हूं मुझे कुछ ज्ञात हुआ तो मैं तुम्हें फोन पर बता दूंगी। " सुषमा रोहन से बोली, "अनजाने में सही गलती तुम्हारी है । वहां नरमी से बात करना, अपनी गलती की माफी मांग लेना। जो कहे चुपचाप सुन लेना, आगे क्या करना है बाद में सोचेंगे । "
रोहन की मां के आगे बोलने की हिम्मत नहीं थी। सिर हिला कर चुपचाप दीपा के साथ बाहर चला गया । रास्ते में रोहन एक शब्द नहीं बोला, उसके मन में क्या चल रहा था कहना मुश्किल है। शिखा को उसने ना कभी देखा था ना उसके बारे में कुछ जानता था।
दीपा के दिमाग में उधेड़बुन चल रही थी। शिखा के मन पर क्या बीत रही होगी और कैसा महसूस कर रही होगी। दुखी तो बहुत होगी पता नहीं कहां है घर पहुंची कि नहीं । अगर घर नहीं पहुंची होगी तो दीपा अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाएगी । कांपते हाथों से दीपा ने फोन मिलाया, बहुत देर तक घंटी बजती रही लेकिन किसी ने नहीं उठाया। दीपा को बहुत डर लग रहा था ना जाने शिखा कैसी होगी, किस हाल में होगी । अगर घर पहुंच गई तो शालिनी आंटी को क्या बताया होगा और उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? सोच सोच कर उसका सिर फटने को हो रहा था। सुबह से एक प्याला चाय तक नहीं पी थी, यही हाल रोहन का था। हे भगवान सब ठीक-ठाक हो । अपनी तरफ से उसने सभी देवी देवताओं से मन्नतें मांग ली थी । शिखा उसकी सबसे अच्छी सहेली थी, क्या वह उसे कभी माफ कर पाएगी । कितने विश्वास के साथ उसके साथ गई थी। कितनी खुश थी और उसके मौसेरे भाई के कारण उसकी क्या हालत हो गई। दीपा को बहुत अफसोस हो रहा था उसे रात को शिखा को अकेले घर में नहीं जाने देना चाहिए था। शिखा को किसी भी तरह रोक कर रखती या स्वयं उसके साथ कमरे तक जाती । उसे सुला कर कमरा ठीक से बंद करवा कर आती । उसे क्या पता था ऐसा कुछ हो जाएगा। शालिनी आंटी शिखा को भेजते हुए डर रही थी, उनका डर सच हो गया। शिखा ने अगर आत्महत्या कर ली तो उसकी जिम्मेदार वह होगी । जीवन भर कैसे अपने आप को माफ कर पाएगी । भाई पर भी गुस्सा आ रहा था ऐसे कैसे पीकर होश खो दिया। इस तरह कोई कैसे कर सकता है, उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करें और क्या ना करें। एक बार और फोन लगाने की कोशिश की लेकिन व्यर्थ। रोहन के स्वर से उसकी तंद्रा भंग हुई। वह शिखा के घर का रास्ता पूछ रहा था।
दरवाजे की घंटी दबाते हुए दीपा की उंगली कांप रही थी। कई बार घंटी बजाने के बाद शालिनी ने दरवाजा खोला शालिनी का मुख सूजा हुआ था आंखें लाल हो रही थी बाल किसी तरह हाथों से बैठाएं हुए लग रहे थे । साड़ी सिकुड़ी हुई थी, कॉलेज में शालिनी अपनी सूती साड़ियों के लिए जानी जाती थी। कलफ लगी, स्त्री की हुई साड़ी ऐसी होती की लड़कियां सलवटें ढूंढने की शर्त लगा लेती । चाहे उसे सुबह कालेज आते हुए देखे या कॉलेज खत्म होने पर जाते हुए उसकी साड़ी का कड़कपन उनके स्वभाव से मिलता हुआ था। प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी शालिनी एक कातर औरत की तरह उनके सामने खड़ी थी। शालिनी की ऐसी हालत देख दीपा का कलेजा मुंह को आ गया । एक बात तो निश्चित थी शिखा घर पहुंच गई थी। और शालिनी को सब ज्ञात हो गया था। दीपा धीरे से बोली, "आंटी शिखा कहां है वह ठीक तो है ?एक बार उससे मिलने दीजिए। "
कह नहीं सकते शालिनी ने कुछ सुना कि नहीं वह शुन्य में ऐसे देख रही थी मानो वह दोनों वहां थे ही नहीं । रोहन ने भी हिम्मत करके कहा, "आंटी मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूं । मैं अपने होश में नहीं था, गलती मेरी है। आप जो सजा देना उचित समझे दे सकती है । बस एक बार शिखा से मिल कर क्षमा मांगना चाहता हूं। "
अचानक शालिनी ने रोहन की और क्रोध से देखा । उसकी आंखें अंगारे बरसा रही थी। वह चीख कर बोली, " मेरी बेटी का नाम अपनी जुबान पर मत लाना, उसके आसपास भी दिखाई दिए तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा । तुम्हें जान से भी मारना पड़ा तो मैं पीछे नहीं हटूंगी। यहां से तुरंत चले जाओ इससे पहले कि मैं कुछ कर बैठूं। शिखा किसी से नहीं मिलना चाहती है । "
दरवाजा इतनी जोर से बंद करने की आवाज हुई की खिड़कियों के कांच तक हिल गए।
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