Hawao se aage - 6 in Hindi Fiction Stories by Rajani Morwal books and stories PDF | हवाओं से आगे - 6

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हवाओं से आगे - 6

हवाओं से आगे

(कहानी-संग्रह)

रजनी मोरवाल

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नए वर्ष का उपहार

बिट्टू सुबह-सुबह स्कूल के लिए तैयार हो रहा था कि पीछे से माँ ने आवाज़ लगाई "बिट्टू...टिफिन बॉक्स बैग में रख लिया?" बिट्टू के एक पैर में जुराब था, दूसरा जुराब हाथ में लिए वह अपना पैर मोड़े बैठा था | बिट्टू न जाने कहाँ खोया हुआ था, उसकी वाटर बोटल जमीन पर लुढकी पड़ी थी और माँ की आवाज़ उसके आस-पास से होती हुई कब हीकी गुजर चुकी थी |

आजकल हर सुबह बिट्टू का यही हाल रहता है | बिट्टू के स्कूल जाने से पहले छुटकी तो पालने में सोई रहती है और पिता अख़बार के इंतज़ार में दरवाज़े की टहल में व्यस्त | बिट्टू को तैयार करके स्कूल भेजने के पश्चात ही, माँ छुटकी को देख पाती है | माँ ने बिट्टू को यूँ बैठे देखा तो कहने लगी "उफ़... ये लड़का इन दिनों न जाने कहाँ खोया रहता है ?"

इधर कुछ दिनों से तो वह पिता से अनेक प्रकार की जानकारियां लेता है और कभी-कभी तो तर्क-वितर्क भी करता है | पिता ने उसकी जिज्ञासु आदत को तृप्त करने के लिए उसे एक कंप्यूटर ला दिया है | अब बिट्टू गूगल पर सर्च करके अपने स्कूल का प्रोजेक्ट बनाता है और देश-विदेश की जानकारियां भी एकत्र करता है | पिता को उसके व्यवहार में बदलाव का कारण बाल्यावस्था का कौतुहल लगता है तो माँ को उसकी शैतानी |

बिट्टू हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता है, खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या अन्य कोई प्रतियोगिता बिट्टू जी तोड़ मेहनत करता है | इसी का परिणाम है कि घर का शो-केस विभिन्न ट्राफियों से भरा पड़ा है |

बिट्टू का घर अपने मोहल्ले की अंतिम गली के मोड़ पर है| वह किराये के मकान में अपने माता-पिता व छुटकी बहन के साथ रहता है | उसका स्कूल स्टेशन के पीछे वाले बाज़ार में है जो कि उसके घर से बस दो किलोमीटर की दूरी पर है | बिट्टू स्कूल अपनी साइकिल से आता-जाता है, उसके पिता ने उसे ये साइकिल इसी वर्ष उसके नवें जन्म दिवस पर भेंट की थी |

इस मोहल्ले में बिट्टू के कई दोस्त रहते हैं, वे सभी मिलकर खेलते हैं और शाम को अपनी-अपनी साइकिलें भी चलाया करते हैं | कभी-कभी वे इतवार को या अन्य किसी छुट्टी के दिन पास के मोहल्ले वाले लड़कों के साथ क्रिकेट की प्रतियोगिता भी रखते हैं |

इस इतवार को क्रिकेट मैच के दौरान फील्डिंग में बिट्टू बाउंडरी पर था | विरोधी टीम के बैट्समैन ने बल्ला घुमा कर ऐसा शॉट मारा कि बॉल बिट्टू के सिर पर से होती हुई निकली और सामने वाले बंगले में जाकर गुम हो गई | इस बंगले में कौन रहता है, ये उनमें से कोई नहीं जानता था | हाँ, मगर एक डबल रोटी बेचने वाला अक्सर इस बंगले के सामने अपना ठेला रोकता है | लोहे के बड़े गेट में से एक हाथ बाहर आता है जिसमें कुछ रूपए होते हैं | ठेले वाला सौदे के हिसाब से रूपए ले लेता है | कभी पाव-रोटी और कभी-कभी कुत्तों के लिए बिस्कुट से भरी थैली उस हाथ में पकड़ा देता है |

बिट्टू व उसके दोस्तों ने इस बंगले से आती कुत्तों के भोंकने की आवाजें ही सुनी है, शायद दो या तीन कुत्ते इस बंगले में मौजूद हैं | बंगले के चारों तरफ ऊँची-ऊँची दीवारें हैं जिसपर कांच के टुकड़े जड़े हुए हैं |ऐसा लगता है कि इस बंगले के मालिक ने अपनी हिफाज़त के लिए ऐसा किया होगा | यूँ तो बंगले में भरपूर हरियाली है किन्तु देखने से लगता है कि बगीचे की साज़-संभाल शायद ही कभी की जाती होगी | बरामदे में एक लोहे का झूला है जो हवा चलने के साथ हिलकर डरावनी आवाजें पैदा करता है | बिट्टू ने ऐसे बंगले सिर्फ़ अंग्रेजी हॉरर फिल्मों में ही देखे हैं | बिट्टू व उसके दोस्तों ने उस बंगले में खूब ताका झांकी की परन्तु उनमें से कोई भी इतनी हिम्मत न कर सका कि बंगले में घुसकर अपनी बॉल ला सके |

बिट्टू की जिज्ञासु प्रवृति उसे परेशान करने लगी है | वह किसी भी तरह ये जानना चाहता है कि आख़िर इस बंगले में रहता कौन है ? और गेट के बाहर आने वाले हाथ किसके हैं ? इसी वजह से आजकल हर वक़्त वह खोया-खोया-सा रहता है | उसके मन के भीतर डर है तो दिमाग में उथल-पुथल |

उसने एक प्लान बनाया और उस प्लान के तहत वह अगले दिन डबल रोटी वाले का इंतज़ार करने लगा | ठेलेवाले को पैसे देते व डबल रोटी खरीदते उन हाथों का निरिक्षण किया|ठेलेवाले से बंगले के भीतर रहने वालों के बारे में जानकारी इकट्ठा की | सच जानकर बिट्टू का बालमन व्यथित हो उठा | वह देर तक उन हाथों की लटकती बूढ़ी त्वचा के बारे में सोचता रहा| व्हील् चेयर से आती-जाती चरर्र चरर्र.... की उदास आवाज़ उसके कानों में गूंजती रही |

दरअसल उस बंगले का मालिक एक पारसी है | श्री मीनू सोहराबजी व उनकी पत्नी पैन्सी सोहराबजी दोनों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है | उनका एकमात्र बेटा लन्दन में रहता है | बरसों से ये बूढ़े दम्पति पाव-रोटी और चाय के भरोसे अपना दिन गुजार रहे हैं | अपनी हिफाज़त के लिए वे कुत्ते पाल रखे हैं |

बिट्टू उनके लिए कुछ करना चाहता था | उसने इस मामले में अब अपने पिता की सहायता लेने का मन बनाया | वह एक शाम सोहराबजी व उनकी पत्नी से मिलने उनके बंगले पर पहुँच गया | तमाम पूछताछ व जानकारियों के बाद सोहराबजी ने उन्हें अंदर आने दिया | वे दोनों ही पति-पत्नी अत्यंत बूढ़े और बीमार दिखाई दे रहे थे | अकेलेपन ने उन्हें शक्की और डर का शिकार बना दिया था | बिट्टू के पिता ने बातों ही बातों में सोहराबजी के बेटे का पता लगाया| उधर बिट्टू ने मोबाइल से उन दोनों पति-पत्नी के फ़ोटो का जुगाड़ कर लिया |

घर आकर बिट्टू ने अपने कंप्यूटर की सहायता से सोहराबजी के बेटे का पता लगाया | अब बिट्टू ने प्रचलित गेम "आइस बकेट" से प्ररित होकर एक नए गेम की भूमिका रखी | इस गेम का नाम उसने "अडॉप्ट एल्डर्स" रखा | इस गेम में बिट्टू ने अपने कुछ दोस्तों के साथ-साथ सोहराबजी के बेटे को भी आमंत्रित किया | इस गेम के नियम के अंतर्गत जो भी व्यक्ति इसमें शामिल होगा उसे अपने क्षेत्र के एक वृद्ध को गोद लेना होगा अथवा ऐसे ही असहाय लोगों की सेवा का प्रण करना होगा |पहले-पहल तो बिट्टू को निराशा ही हाथ लगी मगर धीरे-धीरे उसके दोस्तों ने अपने क्षेत्र में रहने वाले कुछ बूढ़े और असहाय लोगों की फ़ोटो के साथ इस प्रण को दोहराया | देखते ही देखते शहर भर में ये गेम चर्चा का विषय बन गया, कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी बढ़-चढ़ कर इस अभियान में हिस्सा लिया |

बिट्टू व उसके पिता ने इस गेम के जरिए जुड़े लोगों की सहायता से बूढ़े व असहाय लोगों की मदद करना शुरू किया | इसी गेम के कारण कई वृद्ध और लाचार व्यक्तियों को जहाँ अपने बिछुड़े बच्चों ने अपनाया वहीं कई लोगों ने इन व्यक्तियों को अडॉप्ट भी किया | बिट्टू को इंतज़ार था तो अब बस सोहराबजी के बेटे के जवाब का, किन्तु वहां से कोई जवाब नहीं आया | बिट्टू के दोस्तों का आना-जाना अब सोहराबजी के बंगले में होने लगा था | अब वे दोनों पति-पत्नी कभी-कभार गेट के बाहर बैठकर बिट्टू व उसके दोस्तों का क्रिकेट मैच भी देखने लगे थे |

दिसम्बर में स्कूलों का शीत-कालीन अवकाश पड़ता है|बिट्टू व उसके दोस्त इन छुट्टियों में हर वर्ष क्रिकेट की पूरी सीरिज़ खेलते हैं | बिट्टू के मोहल्ले में ये सीरीज़ किसी अंतरराष्ट्रीय मुकाबले जितनी ही प्रसिद्ध है | नए वर्ष के पहले दिन सीरीज़ का फैसला सुनाया जाता है | सभी बच्चे मिलकर एक समारोह करते हैं, जिसमें सभी के माता-पिता भी आमंत्रित होते हैं |

बिट्टू व उसके दोस्तों ने इस बार समारोह के चीफ गेस्ट के रूप में मीनू सोहराबजी व पैन्सी सोहराबजी को निमंत्रित किया | इसके साथ उन तमाम लोगों को भी बुलाया गया जो "अडॉप्ट एल्डर्स" गेम में सहभागी थे|

एक जनवरी की शाम को पूरे मैच के दौरान सोहराबजी व उनकी पत्नी खेल के मैदान में मौजूद रहे | सोहराबजी ने पारसियों की पारंपरिक वेशभूषा सफ़ेद कुरता-पायजामा और काली टोपी पहनी थी व पैन्सी सोहराबजी ने गुलाबी फूलों वाली सफेद साड़ी, आज वे दोनों अत्यंत प्रसन्न लग रहे थे | समारोह में जब दोनों के हाथों से जीती हुई टीम को ट्रॉफी दिलवाई जा रही थी,ठीक उसी वक़्त एक टैक्सी आकर खेल के मैदान में रुकी और उसमें से सोहराबजी का बेटा अपने परिवार सहित उतरा |

सोहराबजी के बेटे ने कुछ दिन पूर्व ही बिट्टू के गेम "अडॉप्ट एल्डर्स" का निमंत्रण स्वीकार किया था साथ ही अपनी गलती भी | क्रिकेट मैच में बिट्टू की टीम को दूसरा स्थान मिला था | किन्तु बिट्टू ने हारकर भी किसी को दिया था नए वर्ष का उपहार |

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