Few- Find eternity within - 2 in Hindi Motivational Stories by Sanjay V Shah books and stories PDF | फ्यू -फाइन्ड इटर्निटी विदिन - क्योंकि लाइफ की ऐसी की तैसी न हो - भाग-2

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फ्यू -फाइन्ड इटर्निटी विदिन - क्योंकि लाइफ की ऐसी की तैसी न हो - भाग-2

५) नदी कभी अपना पानी नहीं पीती। कोई वृक्ष अपने फल नहीं खाता। बारिश की वजह से जो दाने उगते हैं, वो दूसरों के काम आते हैं। फिर इंसान क्यूँ चाहता है कि उसने जो कुछ पाया है, वो सारा का सारा सिर्फ उसी के भोग-विलास के लिए उपयोग में आए। ताज्जुब की बात है, इसी इंसान के जीवन को सँवारने का कार्य शिक्षक करता है। शिक्षक वो है, जो ज्ञान तो बहुत बांटता है, पर बदले में पाता बहुत कम है। अब दुनिया में ऐसे व्यवसाय बहुत कम रह गये हैं, जो देना सिखाते हैं। कोई बात नहीं, इंसान से न सही, कुदरत से ही सही, पर देने की भावना तो सीखें। सन्त कबीर ने कहा है कि जिस तरह नाव में पानी भरने से पहले उसे बाहर फेंक देना चाहिए, उसी तरह घर में धन भर जाए, उससे पहले उसे बाँट दें। थोड़ा बाँटेंगे तो ज्यादा पाएंगे। थोड़ा-सा देने वाला इतना अधिक संतोष पाता है कि उसका वर्णन शब्दों में कर पाना असम्भव है। तो सोचिए, आज आपकी क्या देने की इच्छा है?

६) ये समाज का कैसा विरोधाभास है। कम्प्यूटर सी. डी. दस रुपये की, ज्यूस का ग्लास सौ रुपये का! शौकिया चीजें सस्ती और खाने-पीने की वस्तुएँ आश्चर्यजनक ढंग से महँगी। फिर भी जीना तो पड़ेगा ही। थोड़ी-सी समझदारी से बेहतर जीना आज भी सम्भव है। अखबार का दाम अठन्नी बढ़ने पर चिल्लाने से बेहतर है, शौक की चीजों के पीछे किया जाने वाला पाँच सौ रुपये का खर्च टालना। शान, शौकत और दिखावे से ज्यादा महत्त्व है समझदारी के साथ जीवन बिताना। हाथों में हजारों का मोबाइल, पर बेटे ने सौ रुपये मांगे तो डांट और पिटाई। अरे, ये क्या तरीका है? कोसना ही है, तो उस ऊट-पटांग सोच को कोसिए, जो थोड़ी देर के पागलपन के लिए महंगाई नाम के राक्षस का गुलाम बन जाती है। इस बात पर गौर करने पर हँसी तो आएगी ही, तरस भी आएगा और शायद सुधार भी होगा। क्योंकि पैसे कमाने से ज़्यादा उसे खर्च करने में समझदारी की जरूरत होती है। लगी पाँच सौ की शर्त?

७) बच्चों को हर नयी फिल्म का हर नया गाना याद रह जाता है। भले ही गीत के शब्द पल्ले पड़ें या न पड़ें। कारण है हैमरिंग, टीवी पर आने वाले प्रोमोज के जरिए होने वाला हैमरिंग। हैमरिंग ने दुनिया को बाज़ार बना डाला है। इसके कारण दो समस्या खड़ी हो गयी है। एक तो अच्छे-बुरे का फर्क समझना कठिन हो गया है। दूसरे हैमरिंग-मार्केटिंग के चलते सभी लोग फिजूल खर्च करने के आदी हो गए हैं। पर दोष किसका है? दोष हैमरिंग का नहीं है। हैमरिंग का होता तो बचपन में रामायण-महाभारत की जो अच्छी बातों की हैमरिंग हुई थी, वो भी अपना असर दिखातीं। थोड़ा-सा सुधार लाना पड़ेगा अब। दिखावा, सच्चे और आंतरिक सुख को खा जाएगा, उससे पहले ही हैमरिंग नामक हथियार की करारी मार से खुद को बचाने की आदत डालनी पड़ेगी। आज बचायी गई एक-एक पाई आने वाले कल की कमाई है। हैमरिंग से हैप्पीनेस तक पहुँचने की मास्टर की भी है।

८) हमने बड़े-बड़े क्रिकेटर्स को भी शून्य रन पर आउट होते देखा है। चपल, चैम्पियन और महान होने के बावजूद उन्हें कभी-कभी कामयाबी नहीं मिलती। ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है। काबिलियत सब कुछ नहीं है। खिलाड़ी विफल होने पर पल भर के लिए भले ही हतोत्साहित हो, पर अगले खेल की तैयारी भी करेगा। औसतन लोग ऐसा नहीं कर पाते। वे खुद को कोसते हैं, परिवार को, परिस्थितियों को... न जाने किस-किस को कोसते हैं। उससे क्या हासिल होगा? कुछ भी नहीं। विख्यात उपन्यासकार सिडनी शेल्डन ने बचपन में विफलता से त्रस्त होकर आत्महत्या करने की सोची। इस बात का पता चलने पर उनके पिताजी ने डाँटने के बजाय इतना ही कहा, “जिंदगी की किताब के अगले पन्ने पर क्या लिखा है, ये जानने के लिये पन्ना पलटे, तब तक प्रतीक्षा करो।” ऐसी प्रतीक्षा किये बिना खुद को कोसना, हार मान लेना, जीवन के मैच में शून्य पर आउट होना है।

९) इंसान को देखो, उसके पास पचास लाख रुपये की सुन्दर कार होगी, पर कार से उतरते समय वह दरवाजा जोर से ही बन्द करेगा। मल्टीप्लेक्स में दो सौ रुपये का पॉपकार्न ताव में आकर लेंगे, पर फेरीवाले से दस रुपये के लिए माथापच्ची करेंगे। हम जीते तो हैं, पर जीने का सही ढंग जाने-समझे बिना। उसे जानने के लिए संस्कारों को जानना पड़ेगा। तेजस्वी इंसान के चहरे पर एक आभा दिखाई देती है। उसके मामूली व्यवहार में भी सौम्यता और सद्भाव का प्रतिबिम्ब झलकता है। उससे विचलित होने का समय ज्यादातर क्षण मात्र का होता है, पर वो अच्छे-अच्छों की असलियत सामने लाकर रख देता है। मैं क्या करूँ, मुझसे ऐसा हो जाता है, मेरे दिल में कुछ नहीं रहता पर... ऐसी बहानेबाजी खुद की खामियों को ढँकने के लिए बिल्कुल नहीं करते। कुछ करने की तमन्ना है, तो हमें आज ही से अपनी एक-एक खामी को पकड़कर निकाल बाहर करना होगा।

१०) छुट्टियाँ मनाना सचमुच ही बहुत बड़ा काम हो गया है। पहले तो व्यस्त शेड्यूल से टाइम निकालना, फिर पैसों का जुगाड़ करना, टिकट कटवाना, होटल बुक करवाना। और फिर ढेर सारा सामान लेकर घूमने-फिरने जाना। उफ्फ! छुट्टियों के थोड़े से दिन, थोड़े सामान के साथ बिताने चाहिए। छुट्टियाँ मनाएँ तो मोबाइल, इंटरनेट,
व्हाट्सअप, सबको बाय-बाय कर दें। कुदरत की जादूगरी आँखों में भरने के लिए होती है। उसे कैमरे में कैद करके फेसबुक पर चढ़ाकर शेखी बघारने से क्या मिलेगा? पर्यटन के वक्त भी यदि ध्यान चैटिंग पर, फेसबुक की लाइक्स और सामान पर लगा रहता है तो क्या फायदा? समझदारों का कहना है कि नहाना, खाना और पूजा करना... ये सब ऐसे काम हैं, जो पूरी एकाग्रता के साथ किये जाने चाहिए। इस लिस्ट में छुट्टियाँ मनाने के काम को भी जोड़ देना चाहिए। उन लोगों के लिए तो खास तौर से जोड़ना जरूरी है, जिन्हें मोबाइल, लैपटॉप ने वश में कर लिया है!