Afsos in Hindi Moral Stories by shekhar kharadi Idriya books and stories PDF | अफसोस

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अफसोस

अचानक मोबाईल की रिंग टाॅन बजी , बड़ी हड़बड़ी में मनीषने कोल रिंसीव किया ।।

" हेल्लो... कौन  ?

मैं दामिनी...!

कौन दामिनी  ?

तुम्हारे कोलेज की बेस्ट फ्रेंड...
क्या आप मुझे नही पहचानते  ?
या इन बीते दो बरस में भूल गयें , लेकिन मैं कहां इतनी जल्दी भूली हूँ..

अक्सर काम के सिलसिले में सतत बीजी रहता हूँ..!
इसलिय शायद तुम्हें भूल गया हूँ

दामिनी... 

 लेकिन मेरे जहन में तुम्हारी यादें आज भी साफतौर जिंदा हैं । ख्वाबों-ख्याल में सिर्फ तेरे प्यार का पैगाम लेकर

कोलेज के टाईम में भी मैं.. तुम्हें बहुत ज्यादा चाहती थीं ।।

लेकिन अफसोस की मैं तुम्हें दिल से मेरे लव का रिजन बता ना सकीं..!

मौके तो अनगिनत मिले , फिर भी मन में कहीं ड़र सा लगा रहता था ।  पलभर में तुम्हें खो देने का मुझे हरगिज़ मंजूर नही था । क्योंकि मैं तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा चाहने लगीं थीं ।।

मनीषने धीरे से कहा " क्या एकबार भी मुझे बताना जरूरी नही समझा  ?
क्या.. मैं तुम्हारी नजरों में इतना पराया हो गया हूँ ?

मनीष ऐसी  बात नही तुम तो खामखा नाराज हो गयें  !

बस तुम्हें मौका कहां दिया !

ओर.. तुमने कभी पूछने का मुनासिफ ना समझा

अब उसी तरह मोबाईल पर कई घंटे बातें करने का सिलसिला रोज चलता रहा ।

अब दो ह्रदय के बीच प्रणय पुष्प खिल उठे !
रिश्ता मानो आगे बढ़कर लव रिलेशनशीप में जुड़ गया ।

इसबार मनीष को दामिनी को मिलने का गोल्डन अवसर मिल गया , तो उसने दामिनी से मधुर स्वर में कहां
" कल तुम दरिया के बीच पर मुझे मिलने अवश्य आना

दामिनी..लेकिन इतनी खास बात क्या हैं । जरा मुझे भी बता दो 
इस बैचैन दिल को ठंडक मिल जायें । इतनी भी जल्दी क्या है  थोडा कल तक इंतजार कर लो..

अब मुझ से रहा नही जाता ..  क्या इतना भी सिक्रेट है ?

यस..वैसा ही समझो 

लेकिन मुझ से रहा नही जाता

यस.. मैं बताता हूँ तो सूनो

टुमरो (कल ) मैं तुम्हें ब्यूटीफुल सरप्राइज देना चाहता हूँ

 " यु रियली.. यस माय डियर.. "

हा... मैं जरूर आऊँगी..!

लेकिन तुम भी नही भूलना

साॅर....!!!!

दुसरे दिन दामिनी फाॅर व्हील लेकर घर से बड़ी उत्साह के साथ निकलती हैं । उस दरमियान रोड़ पर दामिनी का ट्रेलर के साथ जोरदार अक्सीडेन्ट हो जाता हैं ।  दुसरी तरफ मनीषने कई कोल दामिनी पर किये लेकिन फोन स्विस आॅफ आ रहा था ।।

जिसे मनीष पुरी तरह हैरान-परेशान हो गया । वो मिलने का इंतज़ार मानो उसे सदियों जैसा लगने लगा । उसके मन में तरह-तरह सवालों का पहाड़ खड़ा होने लगा ।
लेकिन अबतक दामिनी का कुछ अतापता न मिला..?

अब मनीष के दिल में भी दामिनी को ना मिल पाने का अफसोस साफतौर पे होने लगा वो भीतर ही भीतर न मिल पाने की आग में जलकर किश्तो-किश्तो में टूटकर बिखरने लगा । जैसे ख्वाब जिंदगी में आने से पहले उजड़ गया हो । दिल को रेगिस्थान की तरह बंजर बना दिया ।  वैसा मन में मालूम पड़ने लगा ।

दुसरी तरफ़ दामिनी का इतना डेज़र एक्सीडेंट हुआ था की वहाँ गुजरने वाले लोगो की रुह कांप जायें इतना भंयकर वो मंजर था । जिसे  देखकर हर कोई कहे की " हे प्रभु इतने भी कठोर मत बनो " एक हसीन जिंदगी को तबाह करके..

- © शेखर खराडीं