Lagbhag in Hindi Love Stories by पिया बावरे books and stories PDF | लगभग

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लगभग

उम्र का तकाजा देखो साहब, लगभग सब पर भारी पड़ता है ।कामदेव के तुनीर मैं शायद यह सबसे प्रबल तीर है। जो प्रत्यंचा पर चढ़ने के बाद किसी का भी मोह भंग करने में पूर्णतय: सक्षम है। इसी परिस्थिति एवं परिवेश से ग्रसित बेचारे सज्जन पुरुष,वक्त की ऐसी दहलीज पर खड़े थे, जिधर एक तरफ कामोन्माद जिजीविषा प्रेम में परिणित होने को तत्पर थी, तो दूसरी तरफ आत्म चिंतन से जद्दोजहद चल रहा था। कई दिनों के इस महासंग्राम के पश्चात, उन सज्जन पुरुष के ललाट पर हर्ष एवं विजय की छटा दिखाई पड़ रही थी। देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था 
मानो, कामदेव की जीत लगभग सुनिश्चित हो गई थी। लेकिन प्रश्न यह था कि इस जीत की खुशी किसके साथ साझा किया जाए। शायद कोई रूपसी युवती! ये भी लगभग ना ही था।
   किंकर्तव्यविमूढ़ उन सज्जन पुरुष ने अपनी नवकल्पित कल्पनाओं के सागर से एक स्वप्न सुंदरी का आव्हान किया। सुराही जैसी गर्दन, हिरनी जैसी आंखें , लचकती बलखाती कमर, मनचली तितली सा उसका अल्हड़पन , मानो ऐसा लग रहा कि फिर कोई मेनका स्वयं, तपस्यारत देवतुल्य विश्वामित्र का मोह भंग करने पृथ्वी लोक पर आ गई हो।
बहुत हिम्मत दिखाते हुए उन सज्जन पुरुष ने उसे रूपसी से उसका नाम पूछा,"देवी क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं?" उसी अल्हड़  मुस्कान के साथ उसने उत्तर दिया- कामिनी ...... कामिनी नाम है मेरा। पहले ही नजर में स्वप्न सुंदरी से प्रेम हो गया। बेचारे सज्जन पुरुष अब बुरे फंसे थे। शायद कामदेव के मार्ग पर चलना इतना आसान ना था। दिन बीतते गए, अपनी ही कल्पनाओं से परिणीत उस रूपसी से मिलना कठिन होता जा रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो; रूपसी युवती अपने प्रेम का परीक्षण कर रही हो ।
समय बीतता गया, सावन की भीगी रात कामदेव का प्रकोप अपने सातवें आसमान पर था। बेचारे सज्जन पुरुष अपनी स्मृतियों को संजोने (remember) का प्रयत्न कर रहे थे, तभी उन्हें किसी के आने की आहट सुनाई देती है। एक परछाई दीपक के मन्द लव से अठखेलियां करती हुई उन सज्जन पुरुष की तरफ ही चली आ रही थी। अभी  सज्जन पुरुष कुछ सोच पाते,  उसके पायल के छन छन की ध्वनि से गुंजित उस छाया स्वामिनी ने मधुर स्वर में पूछा!! आप मेरे बारे में ही सोच रहे थे ना? आप कौन अचानक उन सज्जन पुरुष ने प्रत्युत्तर दिया। मैं कामिनी उस रूपसी युवती ने अपने होठों को दांतो से दबाते हुए उत्तर दिया। दीपक की मंद लव में उसका यौवन काम की पराकाष्ठा को लांघ रहा था। सज्जन पुरुष  उस रूपसी युवती की तरफ बढ़ कर उसे छूना चाहते थे, उसको अपने आगोश में लेना चाहते थे। अन्ततः दोनों के कदम एक स्थान पर रुक जाते हैं अब दोनों एक दूसरे के आमने सामने होते हैं उसने- उसकी रेशमी जुल्फों को अपने हाथों से से छुआ। वह ढलती शाम की भांति शर्मा कर खुद में सिमट सी गई। कामदेव का तांडव नृत्य लगभग शुरू हो चुका था। दोनों पुनः एक दूसरे के आंखों में देख रहे थे, मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि समस्त ब्रह्मांड इन आंखों में ही समाहित हो............ continued ?.। दोनों के अधर एक होने को थी, या ये कहो मानो लगभग एक हो गए थे। तभी अचानक हवा में तैरती हुई चप्पल आकर सज्जन पुरुष के मुख पर लगती है, इससे भी जोरदार आवाज आती है की 9 बज गए हैं, उठ जा नहीं तो नाश्ता नहीं मिलेगा।.......... ‌‌‌‌ लगभग होने ही वाला था ?