Zumar - 2 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | झूमर - 2

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झूमर - 2

झूमर

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 2

जल्दी ही झूमर ने उसके साथ प्रयाग छान मारा था। वह उसका सीनियर था उसका व्यवसाय भी बढ़ रहा था। वह जिस भी कस्टमर के यहां उसे लेकर जाता उसको अपना जूनियर बताता। उसे इसमें बड़ा मजा आता था। बाद के दिनों में कस्टमर से बात शुरू कर आगे कहता कि ‘पॉलिसी के बारे में झूमर जी आप को बताएंगी।’ उसने उसे बहुत ही कम समय में पूरी तरह ट्रेंड कर दिया था।

जिस दिन कोई भी पॉलिसी बिकती उस दिन वह सेलिब्रेट भी करता था। किसी होटल में चाय-नाश्ता से लेकर गंगा जी में सांझ ढलते वक्त नौका विहार भी करता। यह सब डेढ़ साल तो बिना रुकावट के चला था। लेकिन फिर झूमर को लगने लगा कि वह अपनी हद पार करने लगा है। पहले एक बार नौका विहार के दौरान उसका हाथ अपने हाथों में लिए हौले-हौले सहलाता रहा। अपने स्वभाव के विपरीत बोल कम रहा था।

कुछ देर ऐसा करने के बाद बोला था ‘झूमर मैं बहुत दिनों से तुमसे कुछ कहना चाह रहा हूं।’ उसने उसको गंभीरता से देखते हुए कहा ‘अच्छा! तो कहो ना। क्लाइंट के सामने तो चुप ही नहीं होते। मुझसे कुछ कहने में इतना समय ले रहे हो।’ तब उसने उसकी हथेलियों को मजबूती से पकड़ लिया था। फिर उसकी आंखों में देखते हुए कहा था। ‘झूमर मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। तुमसे शादी करना चाहता हूं।’ अचानक उससे यह बात सुन कर वह सन्नाटे में आ गयी थी।

उसने अपना हाथ उससे छुड़ाना चाहा तो उसने और कस कर पकड़ लिया। वह एकदम चुप थी तो वह फिर बोला था। ‘झूमर मैंने जब तुम्हारी दीदी की शादी में तुम्हें देखा था तभी से तुम्हें चाहने लगा था। तभी तुमसे ही शादी करने का मन बना लिया था। लेकिन मन की बात आज से पहले कभी किसी से कह नहीं पाया। पहले कई बार मन में आया कि तुम्हारी दीदी से कहूं कि तुमसे मेरी शादी करा दें। लेकिन उनके सख्त स्वभाव के चलते कभी कुछ नहीं कह नहीं पाया।’

तब झूमर सिर्फ इतना ही कह पाई थी कि ‘रवीश हंसी-मजाक, फ्रैंकली बात या व्यवहार का यह मतलब कतई नहीं होता कि प्यार जैसा कुछ है। मैंने शादी के बारे में अभी कुछ सोचा ही नहीं है। और अगले कम से कम दो-चार साल भी कुछ नहीं सोचना चाहती।’ इस पर उसने उसके हाथ को और जोर से पकड कर अपने चेहरे के पास ला कर कहा था ‘झूमर-झूमर मैंने पहले ही कहा कि दीदी की शादी में तुम्हें देखने के बाद से ही मैंने तुमसे शादी का मन बना लिया था। ऐसा नहीं है कि जब मिलना-जुलना शुरू हुआ तब मेेरे मन में ऐसा आया।’

इसके बाद दोनों ने कोई बात नहीं की। वापस लौटते समय उसकी जिद पर झूमर ने एक ठेले पर चाट खाई और घर आ गई। उस की इस बात से अगले कई दिन झूमर के बेचैनी भरे रहे। मगर रवीश ने अपने व्यवहार को बिल्कुल नार्मल रखा था। उसे देख कर लगता ही नहीं था कि इसके मन में ऐसा कुछ चल रहा है। वह ऐसी बात कर चुका है।

मगर दो महीने बाद ही उसने रिश्ते की सीमा तोड़ दी तो झूमर ने भी उसे छोड़ दिया हमेशा के लिए। उस दिन उसके साथ सवेरे ही अलोपी बाग गई थी। एक बड़े क्लाइंट से मिलना था। उसे पॉलिसी बेचने के लिए कई हफ्तों से दोनों ट्राई कर रहे थे। सुबह जल्दी इसलिए निकले कि दस बजते-बजते चिलचिलाती धूप शुरू हो जाती थी। मई महिने का तीसरा हफ्ता चल रहा था और दोपहर होते-होते टेंपरेचर चौवालीस-पैंतालीस तक पहुंच जाता था।

क्लाइंट के पास पहुंचने से पहले दोनों ने अलोपी देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना की। फिर तय समय पर क्लाइंट के पास पहुंच गए। हफ्तों की मेहनत रंग लाई। क्लाइंट ने अपने छः सदस्यीय परिवार के लिए अलग-अलग पांच पॉलिसियां लीं। फर्स्ट प्रीमियम की पांच चेक्स दीं, जो करीब दो लाख रुपए की थीं। दोनों ने पहले प्रीमियम पर मिलने वाला सारा कमीशन उन्हें देने का वादा किया और वहां से निकल कर एक दूसरे क्लाइंट के पास राजरूपपुर पहुंच गए। अब तक ग्यारह बज चुके थे।

तेज़ धूप और लू में बाइक पर चलने पर उसे लगा जैसे गर्म हवा की आंधी के बीच से गुजर रही है। पसीने से पूरा बदन तर हो रहा था। पूरा मुंह ढंके रहने के बावजूद चेहरा पसीने से तर-बतर लाल हो रहा था। लेकिन यह सारी तकतीफें उसे उड़न छू सी होती लगीं जब दूसरे क्लाइंट के यहां भी सक्सेस मिल गई। दोनों खुश थे। बारह बजते-बजते करीब तीन लाख का बिजनेस हो चुका था। तब झूमर ने रवीश से कहा ‘अब सीधे घर चलो इतनी धूप में और नहीं चला जाता।’ रवीश ने कहा ‘अभी कैसे चल सकते हैं। अभी तो कई जगह चलना है।’ झूमर ने कहा ‘जो भी हो अभी घर चलो शाम को चलेंगे। सभी को फ़ोन कर के बता दो। देख रहे हो गर्मी के मारे कोई बाहर नहीं निकल रहा। सड़क पर सन्नाटा छाया हुआ है। मानो कर्फ्यू लगा हुआ है।'

रवीश ने कहा ‘आना इधर ही है। बीस-बाइस किलोमीटर घर जा कर फिर इधर आना बड़ा मुश्किल होगा।’ झूमर ने कहा ‘जो भी हो और नहीं चल सकती। नहीं होगा तो क्लाइंट्स के यहां कल चलेंगे।’

इस पर रवीश बोला ‘यहीं पास में मेरे एक दोस्त का घर है। उसके यहां चलते हैं, वही रुकेंगे। फिर शाम को क्लाइंट्स के यहां हो कर घर चलेंगे।’ रवीश काम को लेकर जुनूनी है यह सोच कर झूमर ने कह दिया ‘ठीक है चलो दोस्त के यहां।’ उस समय तक झूमर रवीश के साथ इतना घुलमिल चुकी थी कि उस पर पूरा यकीन करती थी। बाहर खुद को उसके साथ सुरक्षित महसूस करती थी। वह कभी भी किसी के सामने उससे कोई हलकी-फुलकी बात नहीं करता था। इन सबके चलते वह उसके साथ बहुत ईजी महसूस करती थी।

क्लाइंट के यहां से मुश्किल से दस मिनट की दूरी पर वह रवीश के साथ उसके दोस्त के घर पहुंची। एक ठीक-ठाक सा दो मंजिला मकान था। रवीश ने कॉलबेल बजाई तो एक अधेड़ महिला ने गेट खोला। एल शेप में बने पोर्च में एक टू व्हीलर और एक लेडीज साइकिल खड़ी थी। महिला ने रवीश को देखते ही मुस्कुराते हुए कहा ‘आओ रवीश कई दिन बाद आए।’ रवीश ने भी नमस्ते करते हुए कहा ‘आंटी टाइम नहीं मिल पाता।’

उसने फिर झूमर का परिचय कराया ‘आंटी ये झूमर मेरे साथ ही काम करती है। जिस क्लाइंट से मिलना था, वह अभी मिला नहीं, शाम को मिलेगा। इतनी धूप में घर जाकर आना मुश्किल है। तो सोचा तब तक यहां रेस्ट कर लेते हैं।’ झूमर ने देखा कि आंटी रवीश के कामधाम के बारे में सब कुछ जानती हैं। लेकिन फिर भी दो मिनट हो गए एक बार भी अंदर चलने को नहीं कहा। ये रवीश के दोस्त की मां हैं फिर भी यह व्यवहार है, तो ये चार घंटे क्या रुकने देंगी। मगर तभी रवीश बोला ‘आंटी वो चाभी दे दीजिए।’

यह सुन कर झूमर को अजीब सा लगा। वह जब तक कुछ समझती तब तक आंटी ने एक छः इंच लंबी चाभी अंदर से ला कर रवीश को थमा दी। रवीश पोर्च के बगल से ऊपर को जा रहे लंबे जीने से झूमर को लेकर ऊपर पहुंचा । लंबी चाभी से इंटरलॉक खोला, दरवाजे को अंदर धकेला। वो सीधे एक बड़े ड्रॉइंगरूम में दाखिल हो गए। ड्रॉइंगरूम बड़ा खूबसूरत था। बढ़िया सोफे थे। दो तरफ स्टाइलिश दिवान पड़े थे जिस पर मोटे मैट्रेस और गाव तकिए लगे हुए थे। टी.वी. एक बड़ा फ्रिज, कई कोनों पर स्टाइलिश तिपायों पर कलाकृतियां, खिड़कियों पर भारी महरून कलर का पर्दा था।

छत के बीचो बीच बड़ा सा झूमर लगा था। चारो दिवारें और छत अलग-अलग कलर से पेण्ट की गई थीं। सभी कलर एक ही फै़मिली के थे। कलर कॉबिनेशन बहुत ही खूबसूरत था। कई पेंटिंग भी थीं जो मैटफिनिश गोल्डेन कलर के फ्रेम में मढ़ी थीं। ये सभी पेंटिंग भारतीय कलाकारों की थीं। इनमें मुख्यतः राजा रवि वर्मा, मंजीत बावा, अमृता शेरगिल, जतिन दास थे। ड्रॉइंगरूम की एक-एक चीज कह रही थी कि इसका मालिक क्लासिक चीजों का शौकीन एक आर्ट प्रेमी व्यक्ति है।

झूमर कुछ संशय के साथ सब देख ही रही थी कि रवीश ने ए.सी. चला दिया। फिर सोफे पर बैठते हुए उसे भी बैठने को कहा। वह बैठ गई। तभी रवीश ने टी.वी. के बगल में ही रखे सोनी के इंपोर्टेड म्युजिक सिस्टम को ऑन कर दिया। उसमें पहले से लगी कैसेट बजने लगी। जगजीत सिंह का गाया एक मशहूर गीत ‘होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ चलने लगा था।

तब सी.डी, डी.वी.डी, पेन ड्रॅाइव आदि का जमाना नहीं था। ए.सी. की ठंडक से इतनी राहत मिली कि झूमर को नींद आने लगी। तभी रवीश ने फ्रिज से पानी की ठंडी बोतल निकाली और किचेन से गिलास लेकर आया। झूमर ने उठ कर पानी निकालना चाहा तो उसने मना कर दिया। खुद भी लिया और उसे भी दिया। वहां वह जिस तरह मूव कर रहा था। उससे यह साफ था कि वह फैमिली मेंबर की तरह है।

झूमर ने जब पूछा तो उसने बताया कि यह उसके बिजनेसमैन दोस्त विवेक चंद्रा का घर है। उसकी पत्नी दिल्ली की रहने वाली है। उसके फादर भी बिजनेसमैन हैं। गर्मी की छुट्टी के चलते वह बच्चों संग वहीं गई हैं। विवेक बिजनेस के चलते ज़्यादा कहीं जा नहीं पाता। इसके बाद दोनों के बीच ज़्यादा बातचीत नहीं हुई। झूमर की तरह वह भी आलस्य में था जगजीत सिंह के गाए गीत कैसेट में एक के बाद एक चल रहे थे।

सोफे पर ही सिर टिकाए झूमर ने आँखें बंद कर ली थीं। उसे नींद आ गई। बीस-पचीस मिनट बाद ही उसको लगा जैसे उसकी बांह पकड़ कर कोई उसे खींच सा रहा है। उसकी आँखें खुल गईं। वह एकदम सकते में आ गई। रवीश दोनों हाथों से उसकी बांहों को पकड़े हुए था। वह एकदम तड़प उठी। उसकी बांहों से करीब-करीब छूट गई। लेकिन उसने उतनी ही फुर्ती से फिर पकड़ते हुए जल्दी-जल्दी कहा ‘सुनो-सुनो झूमर पहले मेरी बात सुनो।’ उसकी इस बात से छूटने की झूमर की कोशिश कमजोर ज़रूर पड़ी थी लेकिन बंद नहीं हुई थी।

वह बोला ‘मुझे गलत मत समझो झूमर।’ फिर से उसने शादी की बात छेड़ते हुए ऐसी-ऐसी भावुकता भरी बातें शुरू कीं कि झूमर का विरोध कमजोर होता गया। मगर अचानक ही झूमर ध्यान का अपने दुपट्टे पर गया जो उसके कंधों पर ना हो कर सामने टेबिल पर पड़ा था। यह देखते ही उसका खून खौल उठा। वह चीख उठी ‘हटो।’ साथ ही उसे धकेला भी। फिर झपट कर दुपट्टा अपने कंधों पर डालते हुए सामने ठीक किया।

तेज़ आवाज़ में बोली ‘तुम इतने गिरे हुए इंसान होगे नहीं पता था। धोखेबाज साजिश कर यहां मुझे लूटने के लिए ले आया। मैं सो गई तो मेरे कपड़े उतार रहा है।’ उसके चिल्लाने से रवीश एकदम घबड़ा गया था। बार-बार माफी मांगने लगा। धीरे बोलने को कहने लगा। तमाशा न बने यह सोच कर तब झूमर ने आवाज़ धीमें ज़रूर कर दी। लेकिन साथ ही यह भी कह दिया कि आइंदा मेरी छाया के करीब भी ना फटकना। उसने अपना बैग उठाया और चल दी तो वह बोला ‘धूप कम हो जाने दो मैं छोड़ दूंगा।’

उसने कहा ‘धूप क्या अंगारे भी बरस रहे हों तो भी जाऊंगी। इसी वक़्त जाऊंगी, अकेले जाऊंगी। तुम्हें एक भला इंसान समझा था। तुम्हारी मदद का एहसान कैसे चुकाऊंगी सोचती रहती थी, लेकिन तुम मदद नहीं मदद का खोल चढ़ा जाल फेंक कर मुझसे अपनी हवस मिटाने की कोशिश में थे। मुझे खुद पर गुस्सा आ रही है कि तुम्हारे इस चेहरे के पीछे छिपी मक्कारी, असली घिनौना चेहरा मैं देख क्यों नहीं पाई?

याद रखना मैं उन लड़कियों में नहीं हूं जो सेक्स की भूख में आसानी से बिछ जाती हैं। मेरे लिए सबसे पहले मेरी इज्ज़त और मेरे मां-बाप का स्वाभिमान है।’ यह कह कर वह दरवाजे की ओर बढ़ी तो रवीश एकदम से जमीन पर बैठ उसके पैर पकड़ कर गिड़गिड़ा उठा था कि ‘ठीक है इसी समय चलते हैं। लेकिन अकेली मत जाओ आंटी ना जाने क्या शक कर बैठें । मेरे साथ चलो जहां कहोगी वहीं छोड़ दूंगा। मेरा यकीन करो मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई गलत भावना नहीं थी।’ उसका गला एकदम भर्राया हुआ था। झूमर को जाने क्या हुआ कि वह नम्र पड़ गई और ठहर गई। तो वह उठा जल्दी से अपना सामान समेटा और झूमर के साथ नीचे आ गया। नीचे आंटी ने टोका तो बोला ‘आंटी ज़रूरी काम आ गया है जाना ही पड़ेगा।’

बाहर झूमर को लगा वाकई अंगारे ही बरस रहे हैं। सड़क पर सन्नाटा छाया हुआ था। वहां से घर के लिए कौन सा साधन ले उसे कहीं कुछ नहीं दिख रहा था। झूमर को वहां के बारे में ज़्यादा नहीं पता था। एक पेड़ के नीचे दो-तीन रिक्शे खड़े थे। रिक्शेवाले सब हुड उठाए उसी के नीचे बैठे थे। झूमर ने वहीं चलने को कहा तो रवीश अनमने ढंग से ले गया। मगर रिक्शेवाले कहीं भी जाने को तैयार नहीं थे। तब रवीश फिर मिन्नतें करने लगा था कि ‘यहां से घर बहुत दूर है। कोई सीधा साधन नहीं है। मुझे माफ करो। इसे मेरा प्रायश्चित समझो और घर तक छोड़ने दो।’ उसकी बार-बार की मिन्नतों, तन झुलसाती धूप और लू से परेशान हो कर तब झूमर उसी के साथ घर चली गई थी।

घर के सामने गाड़ी खड़ी कर रवीश ने फिर हाथ जोड़ा था कि ‘किसी से कहना मत नहीं मैं जीते-जी मर जाऊंगा।’ वह कुछ बोली नहीं। दरवाजा मां ने खोला चुपचाप अंदर चली गई। वह बाहर से ही जाने लगा तो उसकी मां ने हमेशा की तरह रुकने को कहा। मगर वह रुका नहीं। वहीं से चला गया। मां, रवीश के बीच क्या बात हुई उसने नहीं सुना।

उसके कुछ हफ्ते बाद उसने फिर संपर्क साधने की कोशिश की थी। लेकिन झूमर ने सख्ती से मना कर दिया था। इस बीच उसने एक काम और किया, कि छद्म नाम से दो और कंपनियों की भी एजेंसी ले ली। इससे वह कस्टमर के सामने तीन कंपनियों और उसके प्रोडक्ट्स का विकल्प पेश कर और अच्छा बिजनेस करने लगी। वह अपने काम में पक्की हो चुकी थी। मेहनत पहले से दुगुना करने लगी। देखते-देखते उसका कमीशन कई गुना बढ़ गया।

उसने लोन वगैरह सब चुकता करने के अलावा काफी पैसा जल्दी ही इकट्ठा कर लिया था। रवीश का साथ छूटने से उसे सिर्फ़ एक तकलीफ हो रही थी। कि क्लाइंट्स के पास जब जाती तो उनमें से बहुत की लपलपाती जबान से अपने लिए लार टपकती देखती। कई प्रोडक्ट् से ज़्यादा उसमें रुचि लेने लगते थे। बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाती थी ऐसे कामुक दरिंदों से। और अपना बिजनेस आगे बढ़ाती थी।

कर्जा निपटने और पैसा इकट्ठा होने के बाद तो जैसे घर में खुशी आ गई। मां-बाप, बहनें सब कोई उसकी तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। फिर वह मनहूस दिन आया जब झूमर की शादी वैभव से हुई। उसे अब झूमर अपने जीवन का सबसे मनहूस दिन ही कहती है। क्योंकि वह एक छली-कपटी, लालची को अपना मान बैठी। उसे पति मान कर सौंप दिया सब कुछ। पापी ने उसे सिर्फ़ अपनी देह की भूख शांत करने की मशीन समझा। उसकी कमाई को चूसता रहा।

झूमर सोचती है तो उसे लगता है रवीश को ठुकराना भी उसकी ज़िन्दगी का मनहूस दिन था। बेचारा कितना पीछे पड़ा हुआ था। बाद में दीदी जीजा सब से सिफारिश कराई थी। मगर तब उसकी उस हरकत के कारण उसके मन में इतना गुस्सा था कि उससे शादी के नाम पर ही एकदम भड़क उठती थी।

उसने आखिर तक उसका इंतजार किया था। उसकी शादी के दो साल बाद शादी की थी। आज वह कितना खुशहाल है, उसके तीन बच्चे हैं। बीवी सरकारी नौकरी में है। क्लास टू अफ़सर है। खुद भी कितना आगे निकल गया है। एल.आई.सी. में ऊंचे पद पर बैठा है। कैसा खूबसूरत मकान है, दो-दो कारें हैं। क्या नहीं है? पिछले साल दीदी की लड़की की शादी में झूमर को मिला था। कितनी इज़्ज़त से मिला था। उसकी आंखों से लग रहा था जैसे बहुत कुछ कह रही थीं।

शायद यही कि ‘तुमने मुझे ठुकरा कर बहुत बड़ी गलती की थी झूमर।’ मगर सच यह भी था कि झूमर के मन से यह बात आज भी नहीं निकलती कि उस दिन वह उसे धोखे से ही अपने दोस्त के घर ले गया था। सोता पाकर धोखे से ही उसके दुपट्टे को हटा दिया था। उसके तन को झांका था। यदि वह जरा भी कमजोर पड़ती तो उसकी इज्ज़त, उसका सम्मान सब लूट लिया होता।

धोखा वहां भी मिला था और जिसे पति मान कर आई थी उसने भी दिया। झूमर मन ही मन दृढ़ होते हुए सोच रही थी कि वैभव मैं तुम्हें कैसे बख्श दूँ । मुकदमा को चलते दो साल हुए थे। तुम्हें अपनी हार निश्चित दिख रही थी तो तुमने साजिशन फिर मुझे अपने जाल में फंसाया। अंशिका को लेकर इमोशनली ब्लैकमेल किया। मुकदमा चल रहा था। फिर भी मैं तुम्हारे जाल में फंस गई। महिनों तुम्हें अपने ही घर में अपना तन-मन सौंपती रही। और तुम तब हर बार यही कहते थे झूमर मैं जल्दी तुम सब को लेकर पुराने जीवन में लौट चलूंगा। बस किसी तरह निशा से फुरसत पा लूं।

तुम मुकदमा वापस ले लो। मगर किस्मत का साथ रहा और वकील का दबाव कि ऐसा नहीं किया। सोचा थोड़ा और देख लूं। मगर तुमने एक बार फिर पैरों तले जमीन खिसका दी थी कोर्ट में यह कह कर कि हम दोनों के शारीरिक संबंध तो अब भी बहाल हैं। यह तुम्हारा दुर्भाग्य रहा कि तुम अपना दावा साबित ना कर सके। कोर्ट में झूठे साबित हुए। तलाक न हो सके, जिससे तुम्हें कुछ देना ना पड़े इसके लिए तुम्हारी हर साजिश नाकाम हुई। बार-बार जज की फटकार सुनी।

तुमने इतने दंश दिए हैं वैभव की मैं किसी सूरत में तुम्हें नहीं छोडूंगी। गुजारा भत्ता ना देने और जिस प्रॉपर्टी के लिए तुम मर रहे हो मैं उस प्रॉपर्टी में भी आधा हिस्सा लेकर रहूंगी। अपना, अपनी बेटी का एक-एक हक ले कर रहूंगी। निशा और उसके बच्चों को भी बताऊंगी तुम्हारी असली सूरत। चलो तुम सुप्रीम कोर्ट चलो वहां तक चलूंगी।

अव्वल तो मैं निशा और तुम्हारे परिवार को ही ऐसा कर दूंगी कि तुम कोर्ट के बारे में सोच ही नहीं पाओगे, अपील करने की तो बात ही दूर रही। बैठे-बैठे झूमर बेचैन हो उठी। तभी अंशिका ने करवट ली और एक हाथ उसकी गोद में सीधा फैला दिया। उसे देख कर झूमर का प्यार एकदम उमड़ पड़ा। उसके गाल को हल्के से सहलाते हुए मन ही मन बोली ‘इतनी बड़ी हो गई मगर बचपना नहीं गया।’

फिर ना जाने उसके दिमाग में क्या आया कि बुद-बुदा उठी कि ‘बेटा अब वक्त आ गया है कि तुझे भी जल्दी ही सब बता दूं। जिससे इस दुनिया के स्याह पक्ष से तू सावधान रहे, बची रहे।’ झूमर ने धीरे से बेटी को अलग किया। बेड से नीचे उतरी और ड्रॉइंगरूम में आ गई। सोफे पर बैठ कर टी.वी. ऑन किया तो कोई न्यूज चैनल रहा था। सीरिया में आतंकवादी घटनाओं का समाचार आ रहा था। आतंकियों द्वारा बंधक बनाए गए एक पायलट की पिंजरे में बंदकर जलाए जाने का ब्लअर किया हुआ विडियो क्लिप दिखाया जा रहा था। झूमर वह वीभत्स दृश्य देख न पाई और चैनल बदल दिया।

समाप्त