Dastane Ashq -12 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क - 12

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दास्तान-ए-अश्क - 12

(अगले पार्ट में हमने देखा की नाइका खुद पर हुए अत्याचार को अपने पिता से कहने के लिए मौके की तलाश में है!
मगर वह मौका ही नहीं मिल रहा! तभी प्रीति आकर उसे नरेंदर से मिलवा ने ले जाती है.. अब आगे..! )


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बहुत मशक्कत से उसने खुद को संभाला!
अपने आप से ही एक फैसला किया !
वादा किया !आज के बाद वो सिर्फ अपने लिए जियेगी! जैसे जैसे समय गुजर रहा था उसके मन का बोझ बढ़ने लगा..!
पापा जी से बात करनी थी ,और उसे अब तक मौका ही नहीं मिला था!
पापा जी की सेहत भी कुछ ठीक नहीं थी तो वह उलझ सी गई !
सोच रही थी , वह आज नहीं बोल पाई तो जिंदगी में कभी नहीं बोल पाएगी!
फिर सारी जिंदगी यातनाये सहने के लिए जैसे लेबल लगा दिया जाएगा!
दूसरी तरफ उसके लिए तड़प रहे नरेदर की जिंदगी में प्राण फूंकने थे ! उसको एक नई जिंदगी देनी थी !अगर वह उसे प्रेम करता है तो प्रेम की सच्ची दिशा उसे दिखानी थी!
शाम के 4:00 बजे तक उसने बड़ी बेसब्री से प्रीति का इंतजार किया!
पता नहीं क्यों वो आदमी उसके लिए जान देने पर तुला था?
नरेदर की इस हरकत से उसका दिमाग भन्ना गया था!
एक तरफ जीवन सागर में उठे झंझावात से वह जूझ रही थी! ऐसे हालात में किसी को समझाना उसके लिए बड़ा मुश्किल काम था!
फिर भी प्रीति आई तो उसने अपने हालात को ,अपनी मानसिक परिस्थिति को नजरअंदाज करके देवेंदर को मिलना मुनासिब समझा!
प्रीति ने आते ही कहा!
दीदी अभी तक आप तैयार नहीं हुई?नरेंदर भैया से मिलने जाना है ना?
उसकी आंखों में देखते हुए वह कहती हैं!
"तैयार क्या होना है? मैं बस ऐसे ही ठीक हुं!"
"पर दीदी मुझे याद है ! आज से पहले कभी भी तुम घर से बिना तैयार होकर नहीं निकली!"
वो चुपचाप एक शाल ओढकर प्रीति के साथ चल देती है! मां को उसने कोचिंग सेंटर जाने का बहाना कर दिया!
मां ने भी उसे कुछ नहीं कहा जैसे की मां उसकी चुप्पी को ताड गई थी !उसको अंदेशा हो गया था की बेटी के मन में कोई बड़ी हलचल है! पर क्या बात थी वह समझ नहीं पा रही थी..! मनोरमा ने मन ही मन सोचा बाहर जाएगी सहेलियों से मिलेगी तो उसका मन बहल जाएगा!
इसलिए मनोरमा कुछ नहीं बोली!
प्रीति के पीछे चलते वक्त उसको एक एक कदम बहुत भारी लग रहा था!
बहुत जल्दी थी उसे नरेंदर से मिलने की !उसके पास जाने की !उसकी बातें सुनने की !
कहते हैं जब कोई चीज हमारे पास होती है तो हमें उसकी अहमियत नहीं होती, लेकिन जैसे ही वह चीज हमसे छिन जाती है तब उसका मोल समझ में आता है!
पहले कभी उसने नरेंद्र के लिए कुछ फील नहीं किया था लेकिन आज नरेंद्र उसे अपने सारे दुखों का मरहम (मसिहा) नजर आ रहा था!
क्यों उससे मिलने के लिए इतनी उतावली हो रही थी? वो सोच कर हैरान थी! बहुत ही उतावली और तेज कदमों से चलकर उस पहाड़ी वाले खंडहर पर वह पहुंच जाती है!
प्रीति भी सोचती होगी हमेशा मटक कर चलने वाली उसकी दीदी आज इतनी क्यों भाग रही है?
सर्दी का मौसम था! तेज हवाएं चल रही थी ! ऐसा लग रहा था जैसे बारिश होने वाली है! ओले गिरने वाले हैं!
सामने हरियाली झाड़ी में एक कल कल निनाद करता झरना बह रहा था!
नरेंद्र उसे कुतूहल वश देख रहा था ! नरेंद्र की पीठ देख कर ही उसका ह्रदय धक्क से रह गया !
ना जाने क्यों नरेंदर को देखकर उसका दिल भर आया! बहुत मुश्किल से वह खुद पर कंट्रोल करती हैं!
अपने आंसू पोछ कर वो नरेंदर के सामने उपस्थित होती है!
इसे देखते ही हो अपनी जगह से खड़ा हो जाता है !उसकी आंखों में बड़ी उदासी थी !जैसे काल की थपेड़ों ने उसे थका दिया था ! वह चुपचाप उसे देख रहा था ! उसकी आंखें बहुत कुछ बोल रही थी!
नरेंद्र की आंखों का वजन जब सहन ना हुआ तो उसके ह्रदय से जैसे चित्कार निकला!
"नरेंदर यह सब क्या है ? कैसा बचपना है? क्यों अपने आप को इतनी सजा दे रहे हो जिंदगी खत्म कर देने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है ना ही अपनी किस्मत बदल जाएगी!"
वह उसके बिखरे ख्वाबों की कहानी बयां कर रही थी!
उसके अस्त-व्यस्त बाल अस्त-व्यस्त कपड़े, हमेशा साफ-सुथरा और अप टू डेट रहने वाला नरेंदर खंडहर की तरह खोखला बेडौल रूप में सामने था! शायद उसको अंदर से तोड़ने के लिए जिम्मेदार वही थी!
वो सोच रही थी ये जिंदगी उसे दो पलड़ो में क्यों तोल रही थी?
एक तरफ अत्याचार नें सारी हदें लोंग दी थी ,तो दूसरी तरफ कोई उस पर अनधार बरस रहा था!
जिंदगी कैसे दोराहे पर खड़ी थी! वह हालात से मजबूर थी!
धीरे से नरेंदर उसका हाथ पकड़ लेता है!
"तु ये सब अपने आप से क्यों नहीं पूछती? अपने दिल से क्यो नहीं पूछती?
उसकी आवाज भीगी हुई थी!
तु आ गई है ना अब.. मै अब ठीक हुं!
मैं जानता था तू जरूर आएगी देख तेरे जाने के बाद कैसा हाल हो गया है मेरा?
तेरे बिना मर मर के जी रहा हूं मैं!
वह उसे बीच में ही रोकते हुए लपकती है!
"नरेंदर मैंने कभी भी तुमसे प्यार का वादा नहीं किया! तो फिर तुमने ऐसा अपने साथ क्यों किया?
क्यों अपनी जिंदगी खत्म करने पर तुले हो? क्या तुम जीते जी मुझे मारना चाहते हो?
वो 'आप' से 'तु' पर आ जाती है !
नरेंद्र उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है !
"काश की ईतना कदम तूने पहले उठाया होता ! काश तू पहले ही 'आप' से 'तू' पर आ जाती! तो आज हम एक होते!
मगर खैर.. मेरी किस्मत..! तू तो बहुत खुश है ना अपनी जिंदगी में?
अपने ख्वाबों की दुनिया बसा कर पति के आगोश में..?
मुझे देख मेरी क्या हालत कर दी है तूने?
नरेंद्र उसकी जिंदगी में आए मानसिक तनाव के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहरा रहा था!
वह मन ही मन अपनी किस्मत पर हंसती है!
कैसा संजोग था, वह जिसको खुशकिस्मत समझ कर अपने आप को दुखी समझ रहा था उसने मेरी आंखों में झांक कर एक पल के लिए भी तो देखा नहीं..! काश वो मेरी आंखो को गौर से देखता तो आंखों में उछल रहे समंदर को भांप जाता!
पर आज वो उसे कुछ भी बताना नहीं चाहती थी क्योंकि बोल नरेंदर से किसी भी तरह की हमदर्दी नहीं चाहती थी!
वह तो बस उसे समझाने आई थी !
उसकी आंखों में झांककर वह कहती है!
मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी हुं, तुम भी सब कुछ भुल कर आगे बढ़ो!
और तूम कोई भी काम ऐसा नहीं करोगे जिससे मुझे तकलीफ हो!
मेरे होने ना होने से तुम्हें क्या फर्क पड़ता है?
नरेंदर तड़प कर बोलता है!
मेरे किसी भी उल्टे कदम से तुम्हें क्या दुख होगा! तुम खुश रहो आबाद रहो! ऐसी ही भगवान से प्रार्थना है मेरी!
नहीं नरेंदर ऐसा मत कहो ! अगर तुमने कुछ भी गलत कदम उठाया तो तुम्हारा सारा परिवार दुखी होगा! तुम क्या यही चाहते हो कि तुम्हारी बद्दुआ मुझे लगे?
जिससे हम प्यार करते है उसका कभी बुरा नही सोचते हम..! तु मुझसे वादा कर की जिंदगी में अब कभी कोई गलत कदम नहीं उठाएगा!
नरेंद्र उदास हो जाता है चुपचाप वो नजरे झुका लेता है!
तुम वादा करो मुझसे की जिंदगी मे आगे बढोगे... तुम शादी कर लोगे..!
तुम मुझे दुख नही पहोंचीओगे!
नरेन्दर की आंखो मे खून खौल उठता है..! चहेरा गुस्सेसे सुर्ख पड जाता है..! वो कसकर अचानक उसकी बाहे पकड लेता है...! उसका आक्रोश शब्दो में उतर आता है...
मैं तुम्हारे जितना बेवकूफ नही हुं..!
समझी तुम..?"
नरेन्दर के तेवर देखकर वो भीतर से कांप जाती है..!
( क्रमश:)