Raat 11 baje ke baad - 2 in Hindi Fiction Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | रात ११ बजे के बाद ‌‌‌‌--भाग २

Featured Books
  • મથુરા, વૃંદાવન

    મથુરા, વૃંદાવનમથુરા શ્રીકૃષ્ણ જન્મસ્થાન, વૃંદાવન કસી ઘાટ, પ્...

  • સરપ્રાઈઝ

    *સરપ્રાઈઝ* પ્રેક્ષાનો શ્વાસ રુંધાવા લાગ્યો. એ બેડ પર હાથ પછા...

  • ખજાનો - 35

    ( આપણે જોયું કે લિઝા,જોની, સુશ્રુત અને હર્ષિત માઈકલને બચાવવા...

  • હમસફર - 25

    રુચી : હું ખુશ છું કે તને તારી ભૂલ સમજાણી અને પ્લીઝ આવું ક્ય...

  • ભીતરમન - 37

    મેં માએ કહ્યા મુજબ બંગલામાં વાસ્તુ પૂજા કરાવી હતી, ત્યારબાદ...

Categories
Share

रात ११ बजे के बाद ‌‌‌‌--भाग २

खूबसूरत जगह है। आप जब भी पचमढी आए मेरे घर जरूर आइयेगा। यह सुनकर राकेश कहता है कि नेक काम में देर क्यों की जाए। अगले सप्ताह ही तीन चार दिन मेरे आफिस की छुट्टी रहेगी, क्यों ना उस समय पचमढी घूमने चला जाए। यह सुनकर आनंद और मानसी भी अपनी सहमति प्रदान कर देते हैं।

अगले सप्ताह पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार राकेश और आनंद गौरव को साथ लेकर पचमढी जाने के लिये प्रस्थान करते है और रास्ते में मानसी के घर रूकते हैं। वहाँ पर उसकी माँ, बहन पल्लवी से मुलाकात होती है। पल्लवी बहुत सुंदर और बातचीत में बहुत निपुण थी। आनंद पल्लवी को लगातार एकटक देख रहा था। वह उसके सौंदर्य एवं बातचीत की निपुणता पर मुग्ध था। मानसी इस बात को भांप गयी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। राकेश ने मानसी और पल्लवी से निवेदन किया कि आप दोनो हमारे साथ पचमढी चलिये। आप यहाँ के निवासी हैं एवं चप्पे चप्पे से वाकिफ है। आपके जाने से हमें पर्यटन में सुविधा के साथ साथ आपका साथ भी मिल जायेगा। मानसी और पल्लवी अपनी माँ से अनुमति लेकर उनके साथ पचमढी चली जाती हैं।

पचमढी पहुँचते पहुँचते शाम हो चुकी थी। सभी एक होटल में रूक कर स्नान के पष्चात लान में बैठकर बातचीत कर रहे थे। बातचीत के दौरान आनंद ने राकेश से पूछा की तुम्हारी और मानसी की मुलाकात कैसे हुयी जो इतनी गहरी मित्रता में बदल गयी। राकेश ने कहा- पचमढ़ी की रमणीक वादियों में वर्षा की बूँदों से नम हुई जमीन से निकलने वाली खुशबू मेरे कवि हृदय को काव्य साधना हेतू प्रेरित कर रही थी। मैं लगभग चार वर्ष पूर्व किसी बैठक में शामिल होने आया था, जिसमें प्रदेश के विभिन्नों शहरों के प्रतिनिधि आये हुये थे। मैं दोपहर के समय होटल में बैठा हुआ भोजन ले रहा था, मेरी सामने के टेबिल पर एक सुंदर व सभ्य दिखने वाली एक महिला बैठी हुयी थी। उसे देखकर मेरे मन में विचार आया कि यदि मैं कवि होता तो एक अच्छी कविता बनाकर उन्हें भेंट कर देता। बैठक के दौरान मेरा उनसे परिचय हुआ मैंने बातों ही बातों में उसको यह बात बताईं उसने मुस्कुरा कर कहा कि आप प्रयास कीजिये शायद सफल हो जाये उसकी बात सुनकर मैंने कविता लिखने का निर्णय लिया और कागज, कलम लेकर बैठ गया। मैंने माँ के ऊपर कुछ पंक्तियाँ लिखी। शाम को भोजन के दौरान मुलाकात होने पर उसके आग्रह करने पर मैंने उसे वो पंक्तियाँ सुनाई। उन्हें सुनकर वह बोली कि इतनी मार्मिक कविता आप नही लिख सकते यह किसी और की लिखी हुई हैं। आप भोजन के उपरांत मेरे सामने किसी भी विषय पर लिखकर बतायें। उसके बाद मैने उससे पूछा कि आप मुझे विषय दीजिये मैं कोशिश करता हूँ। तब उसने मुझे प्रेम पर कविता बनाने का आग्रह किया। वह कविता जो मैने उसके सामने लिखी थी वह मुझे आज भी अक्षरशः याद है। राकेश मानसी ओर मुस्कुराकर देखता हुआ कविता सुनाने लगा-

प्रेम है श्रद्धा

प्रेम है पूजा

प्रेम है जीवन का आधार

प्रेमी रहें प्रसन्न

प्रेममय हो उनका संसार

दिलों को जीतो प्रेम से

प्रकृति भी देगी साथ

प्रेम बनेगा जगत की

सुख-षांति का आधार

प्रेम की ज्योति करेगी

सपनों को साकार

प्रेम से जीना

प्रेम से मरना

सबसे करना प्यार

विश्व शांति का स्वप्न

तब ही होगा साकार।

कविता सुनाने के बाद राकेश बोला वह महिला मानसी ही थी इस प्रकार हम लोगों का परिचय हुआ और धीरे धीरे मित्रता प्रगाढ होती गयी। कविता सुनने के बाद सभी राकेश की तारीफ करने लगे। गौरव ने कहा कि अभी तक तो हम तुम्हें उद्योगपति के रूप में जानते थे पर तुम्हारे भीतर कवि हृदय भी है यह आज पता चला। तभी आनंद पल्लवी से पूछता है कि तुम अपने बारे कुछ बताओ। यह सुनकर मानसी बोलती है पल्लवी मेरी छोटी बहन है और यही माँ के साथ रहती है हमारे पिताजी का देहांत हो चुका है। पल्लवी ग्रेजुएट है और किसी अच्छी नौकरी की तलाश में हैं।

इस प्रकार बातचीत करते हुये काफी समय बीत जाता है। इसी वार्तालाप के दौरान आनंद राकेश से कहता है कि मुझे पल्लवी बहुत पसंद है। राकेश मुस्कुरा कर शुभ रात्रि कहकर सोने चला जाता हैं। दूसरे दिन प्रातः नाश्ते के उपरांत पचमढी घूमने का कार्यक्रम बनता है। राकेश जानबूझकर पल्लवी को आनंद के साथ भेज देता है और स्वयं मानसी के साथ होटल में ही रूक जाता है। गौरव अपने किसी मित्र से मिलने के लिये चला जाता है। राकेश इस अवसर का लाभ उठाकर मानसी को अपने कमरे में ले जाकर उसे प्यार भरी नजरो से देखते हुये अपनी बांहों में जकड़ लेता है। मानसी भी मन ही मन यही चाहती थी परंतु अपने आप को छुडाने की कोशिश करते हुये राकेश से कहती है कि अच्छा अब मेरी समझ में आया कि तुमने आनंद और पल्लवी को बड़ी चतुराई से पचमढी घूमने के बहाने दूर कर दिया परंतु गौरव आ गया तो क्या करोगे ? राकेश उसे और मजबूती से आलिंगनबद्ध करते हुये बोला वह आ भी गया तो अपने कमरे में आराम करेगा। इतना कहकर राकेश ने उसे बेतहाशा चूमते हुये बिस्तर पर लिटा दिया और दुनिया जहान को भूलते हुये दोनो एक दूसरे में समा गये।

आनंद पल्ल्वी के साथ पचमढी दर्शनीय स्थल देखते हुये एक उद्यान में पहुँचता है यहाँ पर आनंद अपने विषय में बताते हुये पल्लवी को कहता है कि ईश्वर की कृपा से मेरे पास बहुत धन दौलत है मैं तुमसे बहुत प्रभावित हूँ और तुमसे प्यार करने लगा हूँ मैं तुम्हारा जीवन बना दूँगा। तुम्हें जीवन में किसी चीज की कमी नही होने दूँगा। इसके बाद आनंद ने पल्लवी का हाथ पकडकर कहा क्या तुम्हें मेरा प्यार स्वीकार है ? पल्लवी ने आनंद से कहा कि क्या तुम मेरा अतीत नही जानना चाहोगे ? आनंद ने कहा कि नही मैं वर्तमान में विश्वास रखता हूँ और भविष्य के बारे में सोचता हूँ मुझे तुम्हारे अतीत से कोई लेना देना नही है। यह सुनकर पल्लवी बहुत प्रभावित हुयी और उसकी मौन मुस्कुराहट ही उसकी मानो उसकी स्वीकृति थी। उन्हें घूमते घूमते अब शाम हो चुकी थी और थकान होने के कारण वे होटल वापस आ जाते हैं।

वातावरण में हल्की थंडक थी और अंधेरा होने के साथ ही वातावरण में अजीब सी मादकता छा रही थी। वे सभी आग जलाकर लान में बैठे हुये थे। राकेश ने अपनी स्काच की बाटल खोलकर पूछा कि कौन कौन मेरा साथ देगा ? उसने मानसी की ओर देखा वह बोली मैं रेड वाइन ले सकती हूँ। पल्लवी ने कहा कि यदि आनंद लेंगें तो मैं भी ले लूँगी। गौरव और आनंद दोनो ने बियर पीने की इच्छा व्यक्त की। सबकी इच्छानुसार ड्रिंक्स मंगवा लिये गये। इस बीच बातचीत के दौरान राकेश ने आनंद से पूछा क्यों भाई दिन कैसा बीता ? दिन अगर अच्छा बीता होगा तो रात भी सुहानी बीतेगी। पल्लवी को क्या क्या दिखाया ? इसे तुम्हारे साथ घूमने में मजा आया कि नही ? आनंद ने पल्लवी की ओर मुस्कुराकर देखते हुये कहा कि इसका जवाब तुम्ही दो। वह बोली बहुत मजा आया ईश्वर करे इसी तरह दिन बीतते रहे। गौरव बोला आप लोग तो अपने में मस्त हैं मैं यहाँ अकेला बोर होता हूँ इसलिये मैं वापस जाना चाहता हूँ। मानसी और पल्लवी गौरव से रूकने के लिये आग्रह करते हैं। उनके लगातार अनुरोध पर गौरव उनकी बात मानकर रूक जाता है। पल्लवी ने गौरव से पूछा कि क्या आपकी कोई महिला मित्र नही हैं। गौरव ने कहा कि नही मैं बहुत व्यस्त व्यक्ति हूँ और अंतरराष्ट्रीय स्तर का चित्रकार हूँ मेरी पेंटिंग की प्रदर्शनी कई देशो में हो चुकी है और मुझे कइ पुरूस्कारों से नवाजा गया हैं। मेरे पास इन सारे फालतू कामों के लिये समय नही है। राकेश ने कहा कि हाँ यह सही बात है ये बहुत बडे चित्रकार है इनके पास फालतू खर्च करने के लिये समय और पैसा दोनो नही है। यह सुनकर गौरव चिढकर कुछ अंग्रेजी में कुछ बडबडाता है। पल्लवी पूछती है कि आप क्या कह रहें हैं। यह सुनकर राकेश हँसते हुये कहता है कि ये एक बियर और मांग रहे हैं। यह सुनकर सारे लोग हँसने लगे।

राकेश ने बताया कि गौरव का जीवन संघर्ष, कठिन परिश्रम से गुजरा है तब वह आज इस मुकाम खड़ा हुआ है। मैंने गौरव से संघर्षमय जीवन को ध्यान में रखकर एक कविता का सृजन किया है जिसे मैं उसे समर्पित करते हुये आप सब को सुना रहा हूँ।

प्रतिभा, प्रतीक्षा, अपेक्षा और उपेक्षा में

छुपा है जीवन का रहस्य।

सीमित है हमारी प्रतिभा

पर अपेक्षाएँ हैं असीमित।

यदि हम अपनी प्रतिभा को जानें

फिर वैसी ही करें अपेक्षा

तो बचे रहेंगे उपेक्षा से।

प्रतिभावान व्यक्ति सफलता की करता है प्रतीक्षा

वह पलायन नहीं करता

वह करता है संघर्ष

एक दिन वह होता है विजयी

डसे मिलता है सम्मान

दुनिया चलती है उसके पीछे

और लेती है उससे

सफलता और विकास का ज्ञान।

यही है जीवन का चरमोत्कर्ष।

पर कोई भी प्रतिभा

नहीं रहती सदा सर्वदा।

कल कोई और प्रतिभावान

करेगा संघर्ष

और पहुँचेगा उससे भी आगे।

यही है प्रगति की वास्तविकता

कल भी थी

आज भी है

और कल भी रहेगी।

आपस में बातचीत करते करते काफी समय बीत जाता है और राकेश मानसी को लेकर अपने कमरे में सोने चला जाता है। कुछ समय पश्चात गौरव भी अपने कमरे में जाकर सो जाता है। पल्लवी भी जाने के लिये उठ जाती है परंतु आनंद उसे रोक लेता है। कुछ देर आपस में बातचीत करने के बाद आनंद उससे पूछता है कि मैनें तुमसे सुबह कुछ पूछा था परंतु तुमने अभी स्पष्ट जवाब नही दिया। मैं तुम्हे बहुत चाहने लगा हूँ। दिन भर मेरे साथ घूमने के बाद तुम मेरे स्वभाव से भी परिचित हो गयी होगी। पल्लवी ने मंद मंद मुस्काते हुये कहा कि इसका जवाब आपको जल्दी ही मिल जाएगा इतने बैचेन क्यों हो रहे हैं। यह कहकर पल्लवी चुपचाप चली जाती हैं। आनंद मन ही मन सोच रहा था कि मैं इसकी मौन मुस्कुराहट को क्या समझूँ ? इसी उधेडबुन में सोचता हुआ आनंद कुछ देर बाद अपने कमरे में जाता है। वह कमरे में पहुँचकर लाइट आन करता है और सामने बिस्तर के पास गुलदस्ता देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है। वह पास में जाकर उस पर लगे हुये कार्ड को पढता है जिस पर आई लव यू लिखा हुआ था। जैसे ही वह पीछे की ओर घूमता है सामने उसे पल्लवी बैठी हुई मिलती है। वह खिलखिलाकर हँसते हुये कहती है कि अब तो आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया ना। आनंद आनंदविभोर होकर पल्लवी को अपनी बाँहों में भर लेता है। पल्लवी अपने आप को छुडाने की कोशिश करती है यह देखकर आनंद उसे अपनी ओर खींचकर उसके होंठो पर अपने होंठ देता है। पल्लवी अपने आप को आनंद की बाहों से छुडाने का प्रयास करते हुये कहती है कि आप यह क्या कर रहे हैं। आनंद ने कहा कि प्यार कर रहा हूँ, और क्या करूँगा। प्यार तो बातों से भी हो सकता है। बातों से तो प्यार का इजहार होता है प्यार तो आंखों से भी नजर आ जाता है। मुझे दार्शनिक बनने में कोई रूचि नही है यह कहकर आनंद उसे और नजदीक खींच लेता है। पल्लवी बोली मैं आज बहुत थकी हुयी हूँ अभी छोडो ना कल प्यार कर लेना, देखो एक कहावत है कि कल कभी नही आता इसलिये कल के भरोसे क्यों रहूँ। दीदी को पता होगा तो क्या सोचेगी। राकेश के साथ दीदी अंदर बेडरूम में जाकर कोई गप्प थोडी ना मार रही होगी वे दोनो प्यार के आनंद में खो चुके होंगे। ऐसा करना पाप नही है क्या। बिल्कुल नही।

काम, वासना नही है

कामुकता वासना हो सकती है।

काम है प्यार के पौधे के लिये

उर्वरा मृदा।

काम है सृष्टि में

सृजन का आधार।

इससे हमें प्राप्त होता है

हमारे अस्तित्व का आधार।

काम के प्रति समर्पित रहो

यह भौतिक सुख और

जीवन का सत्य है।

कमुकता से दूर रहो,

यह बनता है विध्वंस का आधार

और व्यक्तित्व को करता है दिग्भ्रमित।

यह सुनकर पल्लवी भी धीरे धीरे अपने आप को आनंद को समर्पित करती चली जाती है। वे दोनो एक दूसरे में खोकर आलिंगनबद्ध होकर दो जिस्म एक जान हो जाते हैं।

दूसरे दिन सुबह नाश्ते पर सभी लोग मिलते हैं। सभी अपने आप को प्रसन्न और तरोताजा महसूस कर रहे थे। नाश्ते के दौरान पल्लवी ने आनंद से कहा कि आनंद आज मुझे कुछ खरीदारी करनी है। यह सुनते ही आनंद ने फौरन पचास हजार रूपये निकालकर पल्ल्वी को दे दिये और कहा कि डार्लिंग तुम्हारी जो इच्छा हो तुम खरीद सकती हो यदि कोई कमी हो तो मुझसे और मांग लेना। यह देखकर सभी भौंचक्के रह जाते हैं। पल्लवी प्रसन्न होकर आनंद की ओर मुस्कुराते हुये धन्यवाद कहकर मानसी को साथ लेकर खरीददारी करने चली जाती है। उनके जाने के बाद राकेश ने आनंद से कहा कि तुमने यह क्या किया ? अभी तुम्हारी मुलाकात हुये दो चार दिन ही तो हुये है इस प्रकार इतना रूपया लुटाना ठीक नही है। गौरव भी राकेश की बातों से सहमति व्यक्त करता हैं। यह सुनकर आनंद कहता है कि मुझे जीवन में जिसकी तलाश थी वह पल्लवी के रूप में पूरी हो रही है, मैं उसके ऊपर फिदा हूँ और उसे दिलोजान से चाहने लगा हूँ उसकी खुशी के लिये मैं कुछ भी कर सकता हूँ यह पचास हजार रूपये तो कुछ भी नही हैं। राकेश कहता है कि मेरा फर्ज था तुम्हें समझाना आगे जैसी तुम्हारी इच्छा हो। तुम अपनी मर्जी के खुद ही मालिक हो एक बात याद रखना, इश्क में अपने कदमों को संभालकर रखना कहीं यह बहक गये तो संभालना मुश्किल हो जाता है।

दो तीन दिन और बिताने के बाद सभी वापस अपने अपने घर आ जाते हैं। घर पहुँच कर आनंद पल्लवी को अपनी कंपनी में अच्छे वेतन पर नौकरी दिलवा देता हैं। पल्लवी नौकरी के लिये आ जाती है और आनंद उसे सारी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। आनंद का अधिकांश समय पल्लवी के साथ बीतने लगा। वह जब भी शहर के बाहर जाता पल्लवी को भी साथ ले जाता था। वह उसके ऊपर बेशुमार दौलत लुटाने लगा। यह सारी बातें राकेश को गौरव और मानसी के माध्यम से पता चलने लगी। राकेश ने गौरव से आनंद को समझाने के लिये कहा, गौरव ने कहा कि वह क्या दूध पीता बच्चा है जो मैं उसे समझाऊँ। तुमने भी तो समझाने का प्रयास किया था इसका नतीजा यह निकला कि तुम्हारे और आनंद के संबंधों के बीच में खटास पैदा होने लगी। यह सुनकर राकेश चुप हो जाता है।

मानसी भी पल्लवी की शानों शौकत देखकर जलने लगी थी और उसकी भी इच्छाएँ बढ़ती जा रही थी जिसकी पूर्ति के लिये वह राकेश के ऊपर दबाव बनाने लगी और प्रायः आनंद की दरियादिली के उदाहरण देने लगी। मानसी की रोज रोज की मांग और आनंद से तुलना करने पर राकेश को चिड़ होने लगी और एक दिन राकेश ने उसे स्पष्ट कह दिया कि मैं जो कुछ तुम्हारे लिये कर सकता था मैनें कर दिया है इससे अधिक किसी प्रकार की आशा मत करो। इन्हीं कारणों से राकेश और मानसी के संबंधों की मधुरता खत्म हो गयी थी। आनंद पल्लवी में इतना अधिक आसक्त हो चुका था कि उसने सारी जायदाद पल्लवी के नाम वसीयत लिखकर और उसे बताकर गौरव के पास रखवा दी थी। वसीयत की बात सुनकर पल्लवी अत्यंत प्रसन्न थी और खुशी के मारे पागल हुयी जा रही थी।

इसी समय अचानक चौकीदार ने राकेश को नींद से जगाया। वह हडबडाकर उठ बैठा और पूछा क्या बात है चौकीदार ने बताया साहब दिन का 1 बज गया है आपको आनंद साहब के अंतिम संस्कार में जाना है। राकेश बडबडाया मैं तो बीती हुयी जिंदगी का पूरा सपना देख रहा था अच्छा हुआ तुमने मुझे उठा दिया। राकेश के पास गौरव का फोन आता है कि राकेश तुम वहाँ क्या कर रहे हो तुम्हें तो आनंद के घर पर होना चाहिये था मैं पोस्टमार्टम के लिये गया था। सभी औपचारिकताएँ पूरी करवाकर एक घंटे के अंदर वापस आ रहा हूँ।

राकेश तैयार होकर आनंद के घर चला जाता है। आनंद के घर पहुँचने पर वो देखता हैं कि काफी पुलिस लगी हुयी थी एवं उसका बेडरूम पुलिस द्वारा सील कर दिया गया था। आनंद के यहाँ काफी भीड इकट्ठी थी उसका मृत शरीर पोस्टमार्टम होकर आने वाला था। वहाँ पर उपस्थित लोग तरह तरह की बात कर रहे थे और राकेश व परिवारजनों से वस्तुस्थिति पूछ रहे थे। उन्होने भी यही कहा कि हमें भी उतना ही मालूम है जितनी खबर आपको है। हमारी जानकारी भी वहीं तक सीमित है। पुलिस के द्वारा खोजबीन के उपरांत ही सच सामने आ सकेगा। आनंद के परिवारजन शोक में डूबे हुये थे। कुछ समय के उपरांत आनंद का शव आ गया और अंतिम यात्रा प्रारंभ होने के पूर्व उनके परिजनों को पोस्टमार्टम रिर्पोट में शरीर में जहर का पाया जाना एवं इसी कारण मृत्यु होना बता दिया गया। अब अंतिम यात्रा प्रारंभ हो गयी। अंतिम संस्कार के उपरांत राकेश और गौरव अपनी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुये अपने घर वापस आ जाते है।

पुलिस, जाँच अधिकारी विक्रम सरकार के नेतृत्व में सबसे पहले सील किये हुये बेडरूम की जाँच उसके परिवारजनों को साथ लेकर करती है। उसके कमरे की एक एक चीज की गहराई से जाँच होती है जिसमें फारेंसिक विभाग के अधिकारी भी अपना सहयोग देते हैं। उसी समय पुलिस का खोजी कुत्ता आनंद के कपडे सूंघने के उपरांत घर से बगीचे की ओर भागकर एक स्थान पर रूक जाता है इसके बाद वह कुछ खोजता हुआ बगीचे के दूसरे किनारे तक जाकर जमीन के आसपास सूंघने लगता है। पुलिस के कुछ समझ में नही आ रहा था कि आखिर वह दो स्थानों पर क्यों जा रहा है ? उसी समय चौकीदार ने बताया कि रात 10:15 बजे के आसपास मैंने किसी को भागकर दीवार फाँदते हुये देखा वह वह बिल्कुल आनंद साहब के जैसा ही दिख रहा था परंतु आनंद साहब की मृत्यु की खबर सुनकर मैने इस बात को महत्व ना देते हुये सीधे उनके कमरे की और दौड़ लगायी। विक्रम सरकार ने उससे पूछा कि तुम्हे यह कैसे पता हुआ कि तुम्हारे साहब की मृत्यु हो गयी। वह बोला कि रमेश उपर की मंजिल से चिल्ला रहा था कि जल्दी दोडकर आओ साहब को पता नही क्या हो गया है ?

आनंद का बेटा कमरे की जाँच के दौरान बताता है कि एक घडी जो कि आनंद के शव से निकाली गयी थी वह पुलिस अधिकारियों को देकर कहता है कि वह पापा की नही हैं। पापा ऐसी घडी कभी नही पहनते थे उनकी घडी बहुत महँगी थी। पापा के हाथ में हमेशा हीरे की अंगूठी रहती थी जो कि नही पाई गई। पुलिस को जाँच के दौरान उनका रिवाल्वर, मोबाइल एवं पेन भी नही मिला परंतु उनके लाकर में रखे रूपये एवं मूल्यवान आभूषण सुरक्षित रखे