Mere ankahe jajbat - Akela pathik in Hindi Poems by Mr Un Logical books and stories PDF | मेरे अनकहे जज्बात। - अकेला पथिक

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मेरे अनकहे जज्बात। - अकेला पथिक

यह वसुधा न तो कभी  किसी की थी न ही यह किसी की है ।
सब तो हैं बस एक पथिक जिनको अपने हिस्से का जीना है ।
जब तक तन में सांस चलता है इस जीवन का प्रमाण  शेेष रहता है ।
तब तक तो सब अपने होते हैंं  फिर तो बस यादें ही रहती है ।

न कभी किसी की भरी क्षुधा न कोई कभी यहाँ तृप्त हुआ ।
मुठ्ठी बाँध सब जग आते हैं और हाथ खोल सब चला गया ।
यही रीत चलता है इस जग का जो आया है वो सब जाएगा ।
जो कुछ भी समेटा है इस जग में सब तो यही पर रह जाएगा ।

जन्म से लेकर मृत्यु तक बस इतना सा है यह जीवन का पथ ।
भरा हुआ है मार्ग में जिसके भ्रम, झूठ, और कुछ अर्धसत्य ।
मानव जीवन का  बस एक सत्य जिसने भी जीवन है पाया ।
एक दिन इस जग को छोड़ जीव अपने मृत्यु को गले लगाएगा ।

मरुस्थल में फैले मृगतृष्णा सा है यह मायालोक विशाल बना ।
तृष्णा तो कभी मिटती नही है फिर जीवन एक जंजाल बना ।
कभी सुख की झूठी आशा तो कभी दुख की विकराल व्यथा ।
सुख दुख की इस भूलभुलैया में जीवन है बस कटता जाता ।

जब जग में कोई आता है यह जग हँसता है पर वह रोता है ।
उसके करुण क्रंदन से भी तब सबका होता मनोविनोद बड़ा ।
बीत जाता है कब उसका बचपन कब हो जाता है वह युवा ।
धीरे धीरे समय के साथ हो जाता है वह अपने पैरों पर खड़ा ।

समय की धारा चलती रहती और साथ हो जाता है लक्ष्य बड़ा।
दायित्वों का बोझ जब आता कर्तव्य बोध भी तब जग जाता ।
हार जीत के कुटिल चक्र में फिर जीवन फंस कर है रह जाता ।
दोपहर की वह जीवन की वेला साँझ की तरफ है बढ़ने लगता ।

धीरे धीरे है वह थकने लगता अपने कंधों पर लादे बोझ तले ।
जीवन अपने पथ पर बढ़ते बढ़ते आ जाती है साँझ के छावं तले ।
समय के संग होता शिथिल तन और मन की कम होती चंचलता।
जीवन की इस वेला में भरने लगती है अब भविष्य की 
चिंता ।

अपने अतीत के किये कर्म का होने लगता है सब लेखा जोखा ।
कुछ क्षण थे जिसपर वह गर्व करे कुछ पल पर अब है पछतावा ।
जीवन की वह अमृत वेला अब तो है बन गयी अतीत का हिस्सा ।
सुंदर भविष्य की कल्पित कल्पना अब बस रह गयी है एक गाथा।

ना तो तन में अब बल है बाँकी ना ही मन में संघर्ष की इच्छा ।
ना तो यौवन का जोश बचा न ही नई गाथा लिखने की अभिलाषा ।
जीवन की इस संध्या काल मे नित टूटते मन में संजोए आशा ।
समय के संग संघर्ष नही अब बस वह करता जाता समझौता ।

अपने संग छोड़ने लगते हैं मन के उमंग भी बिखरने लगते है ।
क्षीण होती जाती है यह काया साँस भी जब धीमे चलते हैं ।
इस मोह माया के व्याप्त जाल से जब मन विमुख हो जाता है ।
मानव तन छोड़ यह आत्मा भी उड़ने को व्याकुल हो जाता है ।

मानव जीवन की व्यथा कथा का सार तो बस इतना ही होता है ।
जानेवाला सब बंधन से मुक्त होकर अपने पथ पर जब जाता है ।
चैन की नींद में वह सोता है और बाँकी जग तब रोता रहता है ।
यही सत्य है मानव जीवन का हर जीव अकेला पथिक होता है ।