Aadhi najm ka pura geet - 23 in Hindi Fiction Stories by Ranju Bhatia books and stories PDF | आधी नज्म का पूरा गीत - 23

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आधी नज्म का पूरा गीत - 23

आधी नज्म का पूरा गीत

रंजू भाटिया

Episode 23

आज मैं कहती हूँ वारिस शाह से

बाद में-जब हिंदुस्तान की तक्सीम होने लगी, तब वे नहीं थेकुछ पूछने-कहने को मेरे सामने कोई नहीं था...कई तरह के सवाल आग की लपटों जैसे उठते-क्या यह ज़मीन उनकी नहीं है जो यहां पैदा हुए ? फिर ये हाथों में पकड़े हुए बर्छे किनके लिए हैं ? अखबार रोज़ खबर लाते थे कि आज इतने लोग यहां मारे गए, आज इतने वहां मारे गए...पर गांव कस्बे शहर में लोग टूटती हुई सांसों में हथियारों के साये में जी रहे थे...बहुत पहले की एक घटना याद आती, जब मां थी, और जब कभी मां के साथ उनके गांव में जाना होता, स्टेशनों पर आवाज़ें आती थीं-हिंदू पानी, मुसलमान पानी, और मैं मां से पूछती थी-क्या पानी भी हिन्दू मुसलमान होता है ?-तो मां इतना ही कह पाती-यहां होता है, पता नहीं क्या क्या होता है...फिर जब लाहौर में, रात को दूर -पास के घरों में आग की लपटें निकलती हुई दिखाई देने लगीं, और वह चीखें सुनाई देतीं जो दिन के समय लंबे कर्फ्यू में दब जाती थीं...पर अखबारों में से सुनाई देती थीं-तब लाहौर छोड़ना पड़ा था...थोड़े दिन के लिए देहरादून में पनाह ली थी-जहां अखबारों की सुर्खियों से भी जाने कहां-कहां से उठी हुई चीखें सुनाई देतीं...रोज़ी-रोटी की तलाश में दिल्ली जाना हुआ-तो देखा-बेघर लोग वीरान से चेहरे लिए-उस ज़मीन की ओर देख रहे होते, जहां उन्हें पनाहगीर कहा जाने लगा था... अपने वतन में-बेवतन हुए लोग....चलती हुई गाड़ी से भी बाहर के अंधेरे में मिट्टी के टीले इस तरह दिखाई देते-जैसे अंधेरे का विलाप हो ! उस समय वारिस शाह का कलाम मेरे सामने आया, जिसने हीर की लंबी दास्तान लिखी थी-जो लोग घर-घर में गाते थेमैं वारिस शाह से ही मुखातिब हुई...उठो वारिस शाह-कहीं कब्र में से बोलोऔर इश्क की कहानी का-कोई नया वरक खोलो....पंजाब की एक बेटी रोई थीतूने लंबी दास्तान लिखीआज जो लाखों बेटियां रोती हैंतुम्हें-वारिस शाह से-कहती हैं...सभी कैदों में नज़र आते हैंहुस्न और इश्क को चुराने वाले और वारिस कहां से लाएंहीर की दास्तान गाने वाले...तुम्हीं से कहती हूं-वारिस !उठो ! कब्र में से बोलोऔर इश्क की कहानी का कोई नया वरक खोलो…

तब अजीब वक्त सामने आया-यह नज़्म जगह-जगह गाई जाने लगीलोग रोते और गातेपर साथ ही कुछ लोग थे, जो अखबारों में मेरे लिए गालियां बरसाने लगे, कि मैंने एक मुसलमान वारिस शाह से मुखातिब होकर यह सब क्यों लिखा ? सिक्ख तबके के लोग कहते कि गुरु नानक से मुखातिब होना चाहिए थाऔर कम्युनिस्ट लोग कहते कि गुरु नानक से नहीं-लेनिन से मुखातिब होना होना चाहिए था…

उन दिनों जनरल शाह नवाज़ अगवा हुई लड़कियों को तलाश रहे थे, उनके लोग, जगह-जगह से टूटी बिलखती लड़कियों को ला रहे थे-और पूरा-पूरा दिन-ये रिपोर्ट उन्हें मिलती रहतींमैंने कुछ एक बार उनके पास बैठ कर बहुत सी वारदातें सुनींज़ाहिर है कि कई लड़कियां गर्भवती हालात में होती थीं...उस लड़की का दर्द कौन जान सकता है-जिसके दिल की जवानी को ज़बर से मां बना दिया जाता है....एक नज़्म लिखी थी-मज़दूर ! उस बच्चे की ओर से-जिसके जन्म पर किसी भी आंख में उसके लिए ममता नहीं होती, रोती हुई मां और गुमशुदा बाप उसे विरासत में मिलते हैं...मेरी मां की कोख मजबूर थी-मैं भी तो एक इन्सान हूंआजादियों की टक्कर मेंउस चोट का निशान हूंउस हादसे का ज़ख्म जो मां के माथे पर लगना थाऔर मां की कोख को मजबूर होना था…

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