वीकेंड चिट्ठियाँ
दिव्य प्रकाश दुबे
(12)
संडे वाली चिट्ठी
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डीयर आदित्य धीमन,
और उन तमाम लोगों के नाम जो सोशल नेटवर्क पर लड़कियों ‘पब्लिकली’ को माँ बहन की गाली देते हैं।
आपको ये पढ़ने से पहले मैं अपने बारे में ईमानदारी से बता दूँ। ऐसा नहीं है कि मैंने कभी ऐसा किसी लड़की के बारे में अपने कॉलेज या ऑफिस में बुरा भला नहीं सोचा या गाली नहीं दी। ये लड़ाई मेरी ‘खुद’ से भी है, हाँ लेकिन मैंने आज तक किसी को पब्लिकली गाली नहीं दी। कोई कितना भी खराब हो इतनी डिगनिटी हर किसी का बेसिक हक़ है और वो मेनटेन होनी ही चाहिए।
आदित्य धीमन तुमको कुछ दिन पहले अपनी एक फेसबुक फ्रेंड की टाइमलाइन पर गाली देते हुए देखा। तुम्हारे प्रोफ़ाइल से पता चल रहा था कि तुम UPSC की तैयारी कर रहे हो। मैंने बड़ा सोचा कि आखिरी तुमसे बोलूँ क्या? क्या तुमको समझाया जा सकता है। तुम्हें जवाब क्या दूँ। वहाँ बाकी लोगों के कमेंट देखे जिन्होने तुम्हारे हाथ पैर तोड़ने की बात लिख रखी थी। कुछ एक लोग तुमको दुबारा गाली भी दे रहे थे।
कभी कभी मैं समझ नहीं पाता, आज तक लड़कियों ने बाप, भाई और बेटे की बेशर्म बेहूदा गालियाँ ईज़ाद क्यूँ नहीं की हैं। जब भी कोई उनको गाली दे वो पलट के जवाब दे दें और बात बराबर हो जाए।
पहले मैंने सोचा था कि तुमको और तुम्हारी माँ बहन को याद करते हुए गाली लिख दूँ फिर लगा कि तुम अभी बंदर से इंसान बनने वाली सड़क में बहुत पीछे चल रहे हो, अभी तुम इस लायक हुए ही नहीं कि तुमको कभी कोई माँ, बहन या बाप, भाई की कोई भी गाली दे तो तुमको उसके मतलब भी समझ सको।
उम्मीद करता हूँ तुम जीवन में अच्छा करोगे। अच्छा कमाओगे, घर बनाओगे, घर बसाओगे, बच्चे पैदा करोगे। मैं इतना अच्छा तो हूँ नहीं कि सब अच्छा अच्छा ही चाहूँ। बस मैं इतना चाहता हूँ कि जब भी तुम्हारा बच्चा हो तो वो तुमसे पहला शब्द ‘माँ’ बोले और दूसरा शब्द कोई सस्ती सी ‘माँ की गाली’ बोले। उस दिन तुम थोड़े से इन्सान बन पाओ शायद।
दिव्य प्रकाश दुबे,
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