Thug Life - 7 in Hindi Fiction Stories by Pritpal Kaur books and stories PDF | ठग लाइफ - 7

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ठग लाइफ - 7

ठग लाइफ

प्रितपाल कौर

झटका सात

फिर रेचल को ख्याल आया अभी सविता किस दौर से गुज़री है. दिल तो रेचल का भी उदास था ही इस पूरे वाकये से. वो भी चाहती थी कि उसकी दोस्त इसे भूल कर नार्मल हो जाए. दोनों जब एलीवेटर से ऊपर जा रहे थे तो सविता अपना फ्लोर आने पर बाहर निकलने ही वाली थी जब रेचल ने कुछ सोचा और सविता को अपने घर चल कर कॉफ़ी पीने का न्यौता दिया. सविता भी इस मूड के साथ घर में अकेली नहीं रहना चाहती थी. फ़ौरन मान गयी.

इस वक़्त दोनों रेचल के कमरे की बालकनी में रखी कैन की आराम कुर्सियों पर बैठी सामने कैन की ही बनी शीशा लगी टेबल पर रखे काफी के मगों से आती भीनी भीनी खुशबु और हलके धुएं को सोखती अपने अपने ख्यालों में गुम थी. नवम्बर के आख़िरी दिन थे, बेहद खुशनुमा. गर्मी अपना

दम- ख़म दिखा कर पीछा छोड़ चुकी थी, सर्दी ने अभी सुबह की दस्तक देना ही शुरू किया था. यहाँ रेचल के बड़े से बेहद खूबसूरत सजे हुए कमरे की बालकनी फूलों और हरियाली की जैसे नुमाइश ही थी. दिल की उदासी कुछ और कम हो आयी थी इस खूबसूरत माहौल में.

रेचल ने खामोशी को तोडा, “ सविता, आर यू इन लव विथ थिस मैन ? आय मीन दिस मोरोन जिसकी बीवी और बेटे ने अभी तुम्हें इतनी गलियाँ सुनाईं और शायद वो वहीं बैठा सुन रहा था.”

सविता का चेहरा एकाएक लाल पड़ गया. वो सारा अपमान याद आ गया. लेकिन रेचल हर हाल में दोस्ती निभाती है. रेचल की बात का जवाब तो देना ही होगा. पर सविता अपनी ज़िन्दगी के सारे राज़ रेचल को बताना भी नहीं चाहती.

एक तो रेचल की उम्र अभी इतनी नहीं कि इस तरह के सच को पचा सके. इसके बावजूद खुद सविता उम्र के इस पड़ाव पर आ गयी है कि जहां वह अब और झूठ नहीं बोलना चाहती. हालाँकि जिस तरह की ज़िंदगी सविता ने जी है और आज भी जीती है, अक्सर झूठ उसे जीने के सहारे देता है. लेकिन इमानदारी से दोस्ती निभाने वाली रेचल से सविता कोई भी बात झूठ के सहारे नहीं कहना चाहती थी. सोचती रही बहुत देर तक. रेचल उम्मीद से उसे देखती रही.

आखिरकार सविता ने जुबां खोली, “ नहीं रेचल, मैंने ज़िंदगी में किसी से भी प्यार नहीं किया. मैं नहीं जानती प्यार कैसा होता है. मेरे दिल ने कभी प्यार को महसूस ही नहीं किया. मेरे दिल के अंदर भी एक दिमाग फिट है जो मीटर से चलता है.”

रेचल जैसे आसमान से आ कर गिरी.

"क्या कह रही हो? कभी नहीं? निहाल? जसमीत? अरुण? और अमित? किसी से भी नहीं? सच बताओ. मैं नहीं मान सकती इस बात को. मैं तो अभी तक वीलियम से प्यार करती हूँ. जबकि उसकी शादी को दो साल हो गए हैं." रेचल ने एक बार बताया था अपने और विलियम के बारे में सविता को. किस तरह उसका अपने प्रोफेसर विलियम वॉकर के साथ प्रेंम हुआ था लेकिन बाद में ब्रेकअप हो गया और अब विलियम की शादी को दो साल हो चुके हैं.

"नहीं. मैं नहीं जानती प्यार क्या होता है. कम से कम वो प्यार जिसकी बात तुम करती हो. मेरा तो सिर्फ जिस्म ही प्यार समझता है. तुम जिसे आत्मा और मन का प्यार कहती हो वो मेरी किताब में है ही नहीं. मुझे तो कोई प्यार से गले लगाता है तो मेरा जिस्म झनझना उठता है. मैं उत्तेजित हो जाती हूँ. और फ़ौरन संतुष्टि की इच्छा मुझे घेर लेती है." सविता कॉफ़ी के मग से निकलती भाप को जज़्ब करती और एक-एक सिप लेती बीच-बीच में अपनी बात कह रही थी.

रेचल चुप हो गयी थी. इसके बाद उसे सूझ नहीं रहा था कि वह सविता से क्या कहे या क्या पूछे.

कुछ देर दोनों चुप रहीं. कहीं कोई आवाज़ नहीं थी. गहरी खामोशी छाई थी. गौर से सुनने पर नीचे सड़क पर जाते ट्रैफिक की हल्की-हल्की आवाजें सुनायी पड़ रही थी. सविता की कॉफ़ी ख़त्म हो चुकी थी. उसने मग टेबल पर रखा जिसने शीशे पर जोर की आवाज़ करते हुए खुद को बेपरवाही से रखे जाने की शिकायत की. लेकिन सविता ने उसकी परवाह नहीं की.

वह आगे बोली, " मैं दूसरों के लिए अपना आभार भी जिस्म के ज़रिये ही एक्सप्रेस कर पाती हूँ. मेरे लिए अपने जिस्म को दूसरे के साथ शेयर करना ही प्यार है और यही मेरा अल्टीमेट गिफ्ट है. मेरे पास किसी को देने के लिए और है भी क्या?"

अब इसके बाद तो रेचल के पास भी कहने सुनने को कुछ नहीं बचा था. फिर भी एक सवाल फ़ौरन उसके मन में उठ खडा हुआ. जिसे वह चाह कर भी रोक नहीं पायी.

"याने तुम लेस्बियन हो? "

"डरो मत. मैं लेस्बियन नहीं हूँ." सविता ने जम कर एक ठहाका लगाया. रेचल भी हंस पडी. लेकिन उसकी हंसी दबी दबी सी थी.

"तो फिर औरतों के साथ कैसे अपना आभार प्रकट करती हो? उन्हें कैसे खुद पर किये अहसान का जवाब देती हो?"

"औरतों ने कभी मुझ पर कोई एहसान किया ही नहीं. मेरी अपनी माँ ने मुझे बेटी होने का हक नहीं दिया. और किसी औरत से मैं क्या उम्मीद करूँ? मेरी मामी ने जो मेरे साथ किया तुम्हें बता चुकी हूँ. औरत मुझे गले लगा भी ले तो मुझे कुछ महसूस नहीं होता. कोई भी किसी भी तरह की भावना नहीं जागती. चाहो तो टेस्ट कर लो. उठो." एक और ठहाका लगा कर सविता खडी हो गयी थी बाँहें फैलाये रेचल की तरफ.

लेकिन रेचल इस बात को मज़ाक में नहीं ले सकी. वह बैठी रही और अव्वाक नज़रों से सविता को देखती रही. सविता कुछ देर उसी तरह खडी रही फिर झेंप कर वापिस बैठ गयी.

"तुम मुझे अभी ठीक से जानती नहीं हो रेचल. मुझे कोई पसंद नहीं करता. तुम भी कुछ दिनों के बाद मुझे नफरत करने लगोगी. " सविता का स्वर बुझ गया था.

वह कुर्सी में लगभग लेट सी गयी थी. एक टांग दूसरी टांग पर चढ़ाए. उसकी स्कर्ट घुटनों तक ही थी जो इस वक़्त जाँघों तक चढ़ आयी थी. उसकी मांसल जांघें किसी मर्द को शायद आकर्षित करतीं लेकिन इस वक़्त जो बातचीत इन दोनों स्त्रियों के बीच चल रही थी और जिस तरफ इस का रुख मुड गया था, रेचल की दिलचस्पी उसकी जाँघों में जागी थी. उसने एक भरपूर नज़र सविता की गोरी-चिट्टी मांसल जाँघों को देखा और अगले ही पल उसे उबकाई आ गयी. बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्भाला और बाथरूम जाने का इशारा कर के अन्दर कमरे में आ गयी.

कुछ देर अपने कमरे में रुक कर फ्रेश होने, खुद को सँभालने और बाल ब्रश करने के बाद जब रेचल बालकनी में आयी तो सविता को उसी तरह अधलेटे हुए पाया. अलबत्ता उसकी जांघें अब उतनी उघड़ी हुयी नहीं थीं. उसकी गैर मौजूदगी में सविता कुछ संभल कर बैठ गयी थी.

रेचल के बैठते ही सविता ने कहा था, "तुम्हें घबराने की कोई ज़रुरत नहीं रेचल. मैं जानती हूँ मुझे कोई पसंद नहीं करता. तुम भी आखिर में मुझसे कन्नी काट लोगी. "

रेचल ने इस बात का प्रतिवाद करना चाहा. लेकिन सविता ने उसे बोलने नहीं दिया.

"मैं अच्छी तरह अपनी जगह जानती हूँ. बचपन से ही मैंने पहचान लिया है कि मुझे लोग सिर्फ बरदाश्त करते हैं क्यूंकि मैं इंसान हूँ. सब मेरे प्रति अपनी ड्यूटी पूरी करते हैं. प्यार कोई नहीं करता. कोई भी नहीं. वे जान जाते हैं कि मेरे अंदर प्यार की भावना है ही नहीं. मैं अन्दर से खाली हूँ पूरी तरह. निहाल को मैंने बहुत कोशिश की प्यार करने की. बच्चा भी दिया उसको. लेकिन देखो, वो भी पहचान गया कि मैं उसको प्यार नहीं करती. तमाम कोशिश के बावजूद वो भी मुझे प्यार नहीं कर सका. चला गया छोड़ कर. बच्ची ने कभी मुझे याद नहीं किया. अब तो चौबीस साल की हो गयी होगी. तुम्हारे जितनी. चाहती तो कभी खोज कर आ सकती थी मेरे पास. लेकिन नहीं. उसने भी बचपन में ही जान लिया था कि मेरे अंदर प्यार नहीं है. मुझे कोई प्यार कर ही नहीं सकता. मेरे अन्दर प्यार है ही नहीं. मैं कोमल बातें कर सकती हूँ. लेकिन खाली खोखली बातें. जिसके साथ करती हूँ वो भी जल्दी ही जान जाता है. प्यार को तो महसूस करना होता है. वो नहीं है. मर्द भी तो मेरे जिस्म के अवेलेबल होने को पसंद करते हैं. मुझसे कोई क्यूँ प्यार करेगा? और मुझे तो प्यार की समझ है ही नहीं. तो ये विन विन सिचुएशन है मेरे लिए. "

रेचल सिर्फ सुनती रही. चुपचाप. वो दोपहर शाम में बदल गयी और रेचल जैसे एक ही दिन में सविता को जान कर उससे पूरी तरह अनजान हो गयी थी.

उस दिन दोनों के बीच एक पुल बना था जिसमें सविता की व्यक्तित्व के टुकड़े ईंटों की मानिंद लगे हुए थे. रेचल ये जान गई थी कि पुल के उस पार कुछ भी नहीं है. सिर्फ एक छदम राह है जिस का अंत और आदि कुछ भी नहीं होता. एक ऐसी रेल की पटरी जो एक जगह बस खत्म हो जाती है बिना किसी चेतावनी के. जहाँ दोनों तरफ कोई स्टेशन नहीं होता. एक ऐसा रास्ता जो एक दीवार पर पहुँच कर ख़त्म हो जाता है.

सविता एक ऐसा इंसान थी जिसकी रूह गढ़ी ही नहीं गयी थी, या फिर इस कदर महीन धागों से ठसा कर बुनी गयी थी कि उसमें सुई जैसी नुकीली चीज़ भी दाखिल नहीं हो सकती थी. उसका दिल, दिमाग, आत्मा सब एक ही थे और वो जो भी थे सिर्फ सविता थे. न औरत, न मर्द, न प्यार के काबिल, न नफरत के, न दया के, न दुश्मनी के, न दोस्ती के. सविता उन चंद लोगों में सी थी जो दुनिया में अकेले आते हैं, अकेले जीते हैं और अकेले ही मर जाते हैं. शायद श्राप ग्रस्त होते हैं या फिर ख़ास किस्म के वरदानों के वारिस होते हैं.

उस रात जब सविता बिस्तर पर सोने के लिए लेटी तो अरुण की याद आ गयी. अरुण से फिर कभी भूले भटके आमना-सामना हो जाता तो अरुण औपचारिक बात कर के निकल जाता. हाथ तक न मिलाता. सविता भी समझ गयी थी और उसने अरुण को उस दिन के बाद कभी फ़ोन तक नहीं किया था. तब भी नहीं जब वह एक बार फिर चारों तरफ से मुसीबतों में घिर गयी थी. ये मुसीबत उसकी अपनी पैदा की हुयी थी लेकिन इसके लिए भी हर बार की ही तरह वह अपने हालात को ही ज़िम्मेदार ठहराती थी. कम से कम सविता तो ऐसा ही मानती थी.

उस शनिवार को सविता अमित के साथ देश की सत्तधारी पार्टी के एक कार्यक्रम में शामिल हुयी थी, जहाँ उसकी पार्टी के महासचिव से अलग से बातचीत हो गयी थी. उन दिनों उनके एक मंत्री की एक आपत्तिजनक वीडियो क्लिप सविता के चैनल के हाथ लगी थीं.

उसी के बारे में विस्तार से बात हुयी. सविता और एडिटर इन चीफ राकेश भारद्वाज इस बारे में पहले ही बात कर चुके थे. अमित को सविता ने टालने की बहुत कोशिश की लेकिन वह मीटिंग के दौरान सविता के साथ ही बना रहा. दरअसल इस तरह के सारे काम एडिटर चीफ, चैनल मालिक और सविता की जानकरी में ही होते थे. सविता उनकी कांटेक्ट पर्सन थी.

वे दोनों जानी-मानी हस्तियाँ थे, एडिटर पत्रकार के तौर पर और चैनल मालिक उद्योगपति की हैसियत से. तो दोनों ही सीधे किसी भी मामले में हाथ नहीं डाल सकते थे. वैसे भी इस तरह के मामले पीठ पीछे से ही सुलझाए जाते हैं. चैनल के लिए ये काम सविता करती थी और सविता को अपन हिस्सा इमानदारी से मिल जाता था. कई साल से ये सिलसिला इसी तरह चल रहा था.

सविता सब कुछ खामोशी के साथ दक्षता से संभाल रही थी. चैनल में उसकी पदवी और तनख्वाह भी बढ़ कर शुरुआती तनख्वाह से लगभग पांच गुना हो गयी थी. गाडी और किराये का घर भी चैनल की तरफ से उसे मिल गया था. इसी घर में वह अमित के साथ रह रही थी.

लेकिन जैसे-जैसे सविता की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही थी. उसका लालच बढ़ता जा रहा था. वह अपने आस-पास लोगों को देखती और ढाह से भर जाती. उसी के ज़रिये करोड़ों रुपये बनाने वाले उसके मालिक के ठाठ-बाट और एडिटर इन चीफ की पत्नी के गहनों पर उसकी नज़र गड़ने लगी थी. एडिटर चीफ की पत्नी से सविता की ढाह सौतिया ढाह भी थी. कारण कि उसके कई प्रेमियों में से वो भी एक था. अक्सर दोनों शहर के बाहर जाते कांफ्रेंस आदि के लिए और कांफ्रेंस के बाद इनकी निजी कांफ्रेंस भी होती.

सविता शारीरिक तौर पर आकर्षक महिला तो थी ही. समय के साथ आर्थिक आत्म-निर्भरता और हाशिये पर जी गयी ज़िंदगी ने जो रंग उसे दिखाए थे उसने सविता के अन्दर एक मारक ढंग का चुम्बकीय आकर्षण पैदा कर दिया था. जो एडवेंचर की तलाश में रहने वाले मिडिल एज्ड शादी से ऊबे हुए मर्दों को बहुत चुनौती भरा लगता था. सविता इसे फ़ौरन ताड़ जाती और इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाती.

उस शनिवार की शाम जब लेन-देन की बात हुयी तो पार्टी महा सचिव से बात पांच करोड़ की ठहरी थी. जिसमें से हमेशा की तरह पांच प्रतिशत यानी पच्चीस लाख रुपये सविता को मिलने थे. लेकिन सविता के मन में अब तक लालच बहुत भर गया था. उसने घर पहुँच कर अमित को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह एडिटर को सिर्फ चार करोड़ की बात कहेगी और बाकी के एक करोड़ ये दोनों रख लेंगे.

अमित कुछ ना-नकुर के बाद मान गया था. दरअसल सविता इस तरह की हेराफेरी पिछले लगभग डेढ़ साल से कर रही थी और प्रॉपर्टी बना रही थी. अमित से ये बात छिपी नहीं थी. लेकिन उसने सविता से कुछ भी खुल कर नहीं कहा था. अलबत्ता उस पर पूरी नज़र रख रहा था और इसके पीछे चैनल मालिक और एडिटर इन चीफ दोनों थे. याने माताहारी डबल क्रॉस कर तो रही थी लेकिन ये नहीं जान पाई थी कि गुप्तचर उसके घर में था और उसी के बिस्तर पर उसके साथ सोता भी था.

आज की पार्टी में जिद करके जाना और उसके साथ बने रहने की वजह अमित की यही थी कि वह सब कुछ साफ़ तौर पर जानना और साथ ही सबूत भी इकठा करना चाहता था. वह दो साल से सविता के साथ लिव-इन में था. ये एक ऐसा अरंजमेंट था कि जब तक अच्छा लगे साथ रहें और फिर अपने अलग-अलग रास्ते चल दें.

सविता की लगातार ऊंची होती हैसियत से अमित हैरान तो था ही और सविता ने जब उसके साथ अपनी लूट के माल को शेयर नहीं किया तो उसके मन में सविता के प्रति गाँठ बन गयी थी. उसके बावजूद वह सविता को पसंद तो करता ही था उसे सविता की आदत भी पड़ गयी थी. वह इस रिश्ते से खुश था और इसे स्थायी बनाना चाहता था. जब कि सविता को अब तक अपनी आज़ादी का नशा पूरी तरह चढ़ चूका था. निहाल सिंह सविता को तलाक दे चुका था. अमित ने शादी का प्रस्ताव रखा तो सविता ने उसे टालना शुरू कर दिया.

जब अमित इंतजार कर के थक गया तो उसका मन सविता से फट गया. उसने सविता पर नज़र रखनी शुरू की तो कई बातों का खुलासा उसे हुआ. पता लगा कि सविता अमानत में खयानत कर रही थी. सविता की आर्थिक तरक्की उसकी तनख्वाह से मेल नहीं खाती थी. उसने छिपा कर रखे हुए सविता के प्रॉपर्टी के कागज़ात देखे और सारा किस्सा उसकी समझ में आ गया.

अमित ने सविता की मुखबरी करने की राह पकड़ी. पैसे का लालच तो था ही. सविता को रास्ते से हटा कर वह खुद सविता की जगह चैनल में हासिल करना चाहता था. जब उसने अपने शक के बारे में राकेश भाद्वाज को बताया तो उसे सविता वाला काम मिल जाने का भरोसा दिला दिया गया, बशर्ते कि वह सविता का पर्दा फाश कर दे, सबूतों के साथ.

उस शनिवार की रात अमित ने सविता का सारा खेल समझ लिया था. पैसा आता भी सविता के ज़रिये ही था. कभी उसके घर या उसकी गाडी में रख दिया जाता और फिर सविता उसे चैनल मालिक और एडिटर तक पहुंचा देती. इस काम के भी कई अलग अलग तरीके थे. इसी दौरान सविता अपना चुराया हुआ हिस्सा हड़प लेती. साथ ही उसका कमीशन का पांच प्रतिशत उसे अपने हक़ के तौर पर मिल जाता. हिसाब किताब सविता ही देखती थी. और दोनों पुरुषों पर उसने अपना सिक्का जमा रखा था.

अब अमित के हाथ में सबूत थे, सारी बातचीत की वीडियो रिकॉर्डिंग. वह सुबह सविता के उठने से पहले ही घर से निकल कर चैनल के मालिक के घर पहुँच गया था. एडिटर चीफ को भी वहीं बुला लिया गया था.

ग्यारह बजे जैसे ही सविता दफ्तर में दाखिल हुयी तो रिसेप्शन पर ही उसे मोनिका ने मालिक का मेसेज दे दिया और सविता अपना बैग अपनी सीट पर रख कर फ़ौरन मालिक के केबिन में दाखिल हुयी. वहां मालिक, एडिटर चीफ और अमित तीनों को एक साथ बैठे देख कर सविता का माथा चकराया था.

एक "गुड मोर्निंग सर" दोनों बॉस की तरफ पहुंचा कर वह एक खाली रखी कुर्सी पर बैठ गयी. उसे लग रहा था मामला कुछ गड़बड़ है. अमित का वहां होना उसे समझ नहीं आ रहा था. कुछ सेकंड दमघोटू खामोशी में गुज़रे ही थे कि एडिटर की ठोस मरदाना आवाज़ जो गूंजी तो सविता का कलेजा मुंह को आ गया.

"सविता, कल शाम पार्टी महा सचिव के साथ कितने की बात हुयी थी?"

सविता ने एक नज़र अमित पर डाली. उसने अपनी निगाहें नीची कर ली. सविता फ़ौरन समझ गयी. उसका झूठ पकड़ा जा चुका था. उसने रात में ही फ़ोन कर के दोनों लोगों को महा सचिव से चार करोड़ में बात तय हो जाने की जानकारी दे दी थी. यहाँ तक कि कल रात ही पचास लाख उसकी गाडी में रख दिए गए थे जो अभी तक उसी में थे. उनके बारे में अमित को भी जानकारी नहीं थी. ये उसकी निजी गाडी थी. एक पुरानी मारुती जेन. वह जानबूझ कर ऑफिस की हौंडा सिटी कल पार्टी में नहीं ले गयी थी.

सविता उठ खडी हो गयी. वह कुछ कहना ही चाहती थी कि मालिक ने उसे बैठने का इशारा किया.

"देखो सविता. तुम किस की सिफारिश पर यहाँ आई हो ये तुम और मैं जानते हैं. मैं उन्हीं का लिहाज कर के तुम्हें इस बात की इजाज़त देता हूँ कि तुम इस्तीफ़ा दे दो. इसी वक्त. और जो पैसा तुम्हारे पास है वो भी लौटा दो. ये बात यहीं दफन हो जायेगी. घर भी आज खाली कर दो. ऑफिस के होटल में तीन दिन के लिए तुम्हारे नाम से कमरा बुक कर दिया है. ये तुम्हारा ग्रेस पीरियड है. घर तो अब तुम्हारे पास कई हैं. फिर भी.... गाडी अब यहीं छोड़ दो. टैक्सी ले कर घर चली जाओ. और सामान बाँध लो."

सविता भारी मन से उठी. उसका दिल किया कुछ अपनी सफाई में कहे. लेकिन कुछ था नहीं कहने को. क्या कहती? कि चोर के घर चोरी की है? लेकिन यहाँ तो मसला छोटे और बड़े चोर के बीच था. ज़ाहिर है बड़े चोर का पलड़ा भारी था. वे संख्या में भी ज्यादा थे. उनेक पास साधन भी सारे थे. वे शक्तिशाली थे. सविता की जो भी ताकत थी उन्हीं के बल-बूते पर थी. उनके घर में सेंध लगा कर सविता ने अपने ही पैर पर कुल्हाडी मारी थी.

सब से बड़ी बात कि जिस आदमी के साथ वह बिस्तर शेयर कर रही थी उसके साथ उसने अपनी लूट शेयर नहीं कर के जो गलती की थी उसकी ये सजा कम ही थी. वे ताकतवर लोग थे. चाहते और उसके औरत होने का लिहाज न करते तो किसी भी तरह की शिकायत उसके खिलाफ कर के उसे बड़ी मुसीबत में डाल सकते थे. लेकिन शायद उसके और राकेश के घनिष्ठ सम्बन्ध उसके काम आ गए और वह सस्ते में छूट गयी थी. ये बात सविता को घर जाते हुए टैक्सी में बैठे घबराहट से हाथ मलते मलते समझ आ गयी थी.

गाडी में रखे रुपये तो उसने नहीं लौटाए थे. अलबत्ता घर छोड़ दिया था. होटल भी नहीं गयी थी. डर था कि कहीं रुपये उससे छीन न लिए जाएँ. पांच साल पहले दो लाख रुपये और दो सूटकेस की मालिक सविता दिल्ली आयी थी. आज वही सविता दिल्ली से गुडगाँव जा रही थी. उसका सामान आज एक छोटे ट्रक में था, जिसमें दस सूटकेस थे. जिस गाडी को वह ड्राइव कर रही थी पचास लाख रूपये का बैग उसकी डिक्की में था. बैंक बैलेंस भी करीब इतना ही था. एक प्लाट और दो फ्लैट्स की मालकिन भी सविता हो गयी थी.

याने कुल मिला कर सविता अब बहुत बेहतर स्थिति में थी. लेकिन जैसे वह तब अकेली थी वैसी ही वो अब भी अकेली थी. आज फिर उसका दिल चाह रहा था कि अरुण कहीं मिल जाए तो उसके गले लग कर वह फूट फूट कर रो पड़े, उसी दिन की तरह. लेकिन इच्छाओं को अगर पंख लगे होते तो ये दुनिया ऐसी नहीं होती. और दुनिया तो ऐसी ही है जैसी है.

***