Apni Apni Marichika - 12 in Hindi Fiction Stories by Bhagwan Atlani books and stories PDF | अपनी अपनी मरीचिका - 12

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अपनी अपनी मरीचिका - 12

अपनी अपनी मरीचिका

(राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च सम्मान मीरा पुरस्कार से समादृत उपन्यास)

भगवान अटलानी

(12)

1 जनवरी, 1953

ईसवी सन्‌ के अनुसार नए साल का पहला दिन है। कॉलेज में दिन भर नववर्ष की शुभकामनाओं का सिलसिला चलता रहा। विद्यार्थियों के बीच उल्लास और उत्साह के साथ नववर्ष की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान, अध्यापकों के पास समूहों में जा-जा कर नववर्ष की शुभकामनाओं की अभिव्यक्ति, कॉलेज और अस्पताल के प्रमुख स्थानों पर हैप्पी न्यू ईयर की चमकीली पन्नियाँ, लगभग हर कक्षा में नए साल के उपलक्ष्य में सामूहिक खान-पान का कोई-न-कोई कार्यक्रम।

कॉलेज छात्रसंघ की ओर से इकत्तीस दिसंबर और एक जनवरी को शामिल करते हुए अखिल भारतीय मेडीकल कॉलेज उत्सव के एक सप्ताह के कार्यक्रम आज समाप्त हुए हैं। कल रात को बारह बजे के बाद तक नववर्ष के स्वागत में रंगारंग कार्यक्रम चलते रहे। वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ, एकल और युगल व समूह गीत प्रतियोगिताएँ, नृत्य प्रतियोगिताएँ, वाद्य-वादन प्रतियोगिताएँ, नाटक प्रतियोगिताएँ, एकांकी एवं मूकाभिनय प्रतियोगिताएँ 26 दिसंबर से चल रही थीं। कॉलेज स्तर पर कहानी, लेख और कविता प्रतियोगिता आयोजित करके पुरस्कृत व चुनी हुई रचनाएँ शामिल करते हुए एक स्मारिका का विमोचन उत्सव के पहले दिन उद्‌घाटन के समय करा दिया था। विज्ञापनों के माध्यम से उत्सव के खर्च की व्यवस्था की थी। विज्ञापन स्मारिका में प्रकाशित हो गए थे। वार्षिकोत्सव के लिए कॉलेज की ओर से व्यय का प्रावधान हर साल होता है। उसे मिलाकर पर्याप्त धन की व्यवस्था हो गई थी।

उद्‌घाटन के तुरंत बाद छब्बीस से प्रारंभ हुई प्रतियोगिताएँ तीस दिसंबर को समाप्त हुई। इकतीस दिसंबर को आडीटोरियम में रात को नौ बजे से प्रथम पुरस्कृत प्रस्तुतियों को मिलाकर रंगारंग कार्यक्रम रखा गया था। आठ से नौ बजे के बीच आडीटोरियम के बाहर ही शामियाना लगाकर भोज की व्यवस्था की हुई थी। बाहर से आए सभी प्रतियोगियों के आवास की व्यवस्था छात्रावासों में की गई थी। भोजन भी संबंधित छात्रावास के भोजनालय में होता था। लड़कियों की लड़कियों के छात्रावास में व्यवस्था थी। भोजन के समय छात्रसंघ के प्रतिनिधि के साथ छात्रावास प्रतिनिधि, प्रीफेक्ट, छात्रावास के कुछ छात्रों को भोजनालय में उपस्थित रहने की दृष्टि से निश्चित कर दिया गया था। वे ध्यान रखते थे कि आदर पूर्वक मेहमान छात्रों को भोजन कराया जाए।

उत्सव की योजना बनाकर अक्तूबर में ही पहले चीफ प्रॉक्टर और इसके बाद प्रिसिंपल के साथ एक मीटिंग रखकर विभिन्न कार्यकलापों के लिए एक अध्यापक और तीन छात्रों की एक-एक समिति बना दी थी। वित्त समिति को खर्च का पैसे-पैसे का हिसाब रखने के लिए कहा गया था। मैं स्वयं ध्यान रखता था कि पैसे की हेराफेरी कहीं न हो। प्रत्येक समिति का अध्यक्ष अध्यापक और सदस्य सचिव मेरा विश्वसनीय छात्र था। व्यवस्था व व्यय की दृष्टि से अधिक संवेदनशील समितियों में सदस्य सचिव भी मेरे अधिक विश्वसनीय सहयोगी ही थे। मैंने निश्चय किया हुआ है कि एक सप्ताह में कॉलेज छात्रसंघ के नोटिस बोर्ड पर उत्सव के कारण हुए व्यय का विस्तृत ब्योरा लगा देंगे। मिश्रित व्यय के नाम से होने वाली हैराफेरी की संभावनाओं को समाप्त करने के लिए मिश्रित व्यय में शामिल और प्रत्येक मद पर हुआ व्यय अलग से घोषित करेंगे। सार्वजनिक जीवन में शुद्धता के लिए मुझे ज़रूरी लगता है कि कुछ भी गोपनीय न रखा जाए। गोपनीय वही हो सकता है जो अनियमित है। कॉलेज के हित में अमुक गतिविधि या अमुक योजना या अमुक नीति को गोपनीय रखने वाली बात से मैं पूर्णतः असहमत हूँ। यही कारण है कि महासचिव के चुनाव के दौरान भी आय-व्यय का हिसाब हम लोग छात्रसंघ के नोटिस बोर्ड पर लगाते थे। हम गलत उद्‌देश्य से कोई काम नहीं करते, फिर छिपाएँ क्यों? देश के संचालन में रक्षा और कूटनीति में भले ही गोपनीयता का महत्त्व हो, किंतु कॉलेज के स्तर पर और देश के स्तर पर भी सामान्यतः गोपनीय कुछ भी क्यों होना चाहिए?

हम पैसा इधर-उधर करना नहीं चाहते इसलिए निःशंक होकर लेनदेन के हिसाब को सार्वजनिक करते हैं। छात्रों को अवसर देते हैं कि वे हमारी गतिविधियों पर नजर रखें। उन्हें उकसाते हैं कि जो कुछ गलत होता दिखाई दे, वह उजागर किया जाना चाहिए। गलत को अनदेखा करने का अर्थ है गलत में आपकी प्रत्यक्ष या परोक्ष सहभागिता। बताइए, समझाइए, दलीलें देकर कर्ता-धर्ता को विवश करिए कि वह आपकी बात माने या फिर उसकी बात सुनकर उसके दृष्टिकोण से सहमत हो जाइए। पूर्वाग्रह नहीं है तो प्रत्येक बहस, प्रत्येक विचार-विमर्श का परिणाम सहमति से होता है यदि व्यवस्था गलत करने पर तुली है, आपकी बात की सत्यता को स्वीकार करते हुए भी उसके अनुसार सुधार करने को तैयार नहीं है तो विरोध करिए। गलत की तरक ध्यानाकर्षित करके या उसका विरोध करके दायित्वमुक्त हो जाते हैं। गलत में सहभागी होने का आरोप तो निश्चय ही आपके ऊपर नहीं लगाया जा सकता। गलत को ठीक में चाहे न किंतु विरोध का महत्त्व होता है। उस महत्त्व को रेखांकित करिए। अखिल भारतीय मेडीकल कॉलेज उत्सव की योजना से लेकर उसके सफल आयोजन तक एक बात बार-बार मस्तिष्क में उठती रही है। उस पर मैंने अपने साथियों के साथ यद्यपि चर्चा नहीं की कभी किंतु चर्चा न करने के पीछे रहे कारण, उस बात का महत्त्व कम नहीं करते। स्वतंत्रता मिले पाँच वषोर्ं से अधिक हो गए हैं। अंग्रेजी तो बदस्तूर बनी हुई है। किंतु अंग्रेजियत को भी हम उसी तरह बनाए हुए हैं। संवत्सर को हम लोग भूलकर ईसवी सन्‌ को याद रखते हैं। विक्रम संवत्‌ के अनुसार नववर्ष को मनाने के स्थान पर ठिटुरती रात में ईसवी सन्‌ के अनुसार नववर्ष का स्वागत हमें अधिक प्रिय है। राजनीतिक स्वतंत्रता हमने सिंध, पंजाब और बंगाल के विभाजन की शरशय्या पर प्राप्त की। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए हम जूझ रहे हैं। संस्कारगत स्वतंत्रता हमसे कोसों दूर है। विक्रम संवत्‌ 2009, ईसवी सन्‌ 1953, छप्पन वर्ष सही किंतु जो हम पहले दे चुके हैं दुनिया को, उसे भुलाकर अंग्रेजों की मानसिक दासता को प्रसन्नता पूर्वक ढोते चले जाएं तो राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ क्या रह जाता है?

साथियों से चर्चा न करने का पुख्ता कारण था। विक्रम संवत्‌ के अनुसार मार्च-अप्रैल में नववर्ष प्रारंभ होता है। उन दिनों मेडीकल कॉलेज में परीक्षाएँ चल रही होती हैं। प्रतीकात्मक रूप से तो नववर्ष को मनाया जा सकता है किंतु बडे पैमाने पर, धूमधाम से उन दिनों नववर्ष के उपलक्ष्य में किसी प्रकार का आयोजन करना संभव नहीं होता है। विक्रम संवत्‌ के अनुसार नववर्ष धूमधाम से मना नहीं सकते, ईसवी सन्‌ के अनुसार नववर्ष मनाएँ नहीं। यह संभव नहीं था। इसलिए इस मुद्‌दे पर बातचीत करने से भी कोई लाभ नहीं था। सोमवार, 15 मार्च को विक्रम संवत्‌ के अनुसार नववर्ष का प्रारंभ है। बड़े पैमाने पर उत्सव करना चाहे संभव न हो किंतु पोस्टर लगाकर, नोटिस बोर्ड पर बधाई संदेश लिखकर, कॉलेज के पोर्च में सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्वलित करके हम लोग निश्चय ही प्रतीक के रूप में उस दनि को महत्त्वपूर्ण दिन के रूप में मनाएंगे। अपनी पुरातन संस्कृति को अग्रेंजों की संस्कृति के समानान्तर खड़ा करने की कोशिश परीक्षाओं के तेज बुखार के चलते भी छोड़ेंगे नहीं।

अखिल भारतीय मेडीकल कॉलेज उत्सव की योजना पहली बार जब चीफ प्रॉक्टर के सामने गई थी तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि इतना बड़ा आयोजन करना तुम लोगों के वश को बात नहीं है। समितियाँ बनाकर, व्यवस्था व धन से जुड़े सभी पहलुओं को समेटते हुए हमने एक विस्तृत योजना पहले ही कागजों पर तैयार कर रखी थी। उस लिखित प्रारूप को चीफ प्रॉक्टर ने देखा तो लगा कि थोड़े-बहुत आश्वस्त हुए हैं। व्यक्तिगत रूप से मेरी छवि काम आई। नेतृत्त्व क्षमता के अनेक रूप चीफ प्रॉक्टर देख चुके थे। अध्ययन में मेरी अच्छी स्थिति मणिकांचन योग की तरह छवि को अधिक निखारती थी। अध्यापकों को प्रत्येक समिति में अध्यक्ष के रूप में देखकर हमारी नीयत और क्षमता के बारे में उनके संशय कम हुए। प्रिंसिपल से मैंने उनके साथ जाकर बातचीत की। काम जिस ढंग से धीरे-धीरे योजनानुसार होता गया, चीफ प्रॉंक्टर का विश्वास हमें मिलता गया। हर एक निर्णय हम उनकी सहमति के बाद लेते थे। हर एक काम हम खुले रूप में करते थे। हर एक गतिविधि का संचालन अलग-अलग लड़के-लड़कियों के पास था। एकाधिकार वाली प्रवृत्ति किसी भी काम से नहीं झलकती थी। मैं जब भी उनसे मिलता, उन्हें नजर आता, आठ-दस लड़के मेरे साथ होते। चीफ प्रॉंक्टर उत्सव के मुख्य सलाहकार बनते गए।

सभी काम बाँटकर समितियों को सौंप देने के कुछ कारण थे। मेरी आस्थाएँ और मेरी व्यस्तताएँ दोनों की इसमें सहभागिता थी। अधिक-से-अधिक लोग यज्ञ में समिधा समर्पित करें, यह मेरी आस्था है। अध्ययन मेरी प्रथम वरीयता है। एकाधिकारवादी बनकर अपने आपको महत्त्वपूर्ण भले ही दिखा दूं किंतु अध्ययन पर इसका अपरिहार्य रूप से विपरीत प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। किताबें तो रात-रात-भर जागकर मैं अब भी पढ़ता हूँ, किंतु अस्पताल में, वाडोर्ं में जाने वाला काम तो निर्धारित समय पर ही किया जा सकता है। समितियाँ बनाने के बाद ठीक प्रकार से काम होता है या नहीं, यह देखना हम लोगों का काम था। छात्रसंघ के पदाधिकारी, मेरी मंडली के साथी और मैं इस काम कोे बांट करते थे। कक्षाओं में जाना, अस्पताल में जाना, पढ़ना, सबकुछ मेरे लिए इसी कारण संभव हो पाया। समीतियां नहीं बनतीं, समीतियों के पास अधिकार नहीं होते, समीतियों के काम-काज की लगातार समीक्षा नहीं होती, समीतियों की कमजोरियों को समझकर उनकी पूर्ति करने के लिए योजनाबद्ध प्रयास नहीं होते तो हर जगह मुझे दौड़ना पड़ता। काम हो जाते, किंतु धकेलने वाले अंदाज में होते। प्रत्येक गतिविधि के केंद्र में मैं स्थापित हो जाता। किंतु अपनी पढाई के रूप में इसकी कीमत मुझे चुकानी पड़ती। महासचिव हूँ। महत्त्व सिद्ध किया जाए, इसकी कोई आवश्यकता न थी और न है। उत्सव अच्छी तरह हो जाए। बाहर से आने वाले छात्र-छात्राओं को सम्मान मिले। उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ न हो। यह महासचिव की सफलता का द्योतक नहीं है क्या? पढाई बरबाद करूँ। जो पहले ही मुझे प्राप्त है उस महत्त्व को दिखाने के लिए, मैं कॉलेज में जिस उद्‌देश्य से आता हूँ उसकी बलि चढा दूँ, यह कम-से-कम मुझे तो उचित नहीं लगा। आज संपन्न हुए समापन समारोह में उत्सव की सफलता के बारे में जो बातें सुनने को मिलीं, उन्होंने सिद्ध कर दिया कि मेरा निर्णय गलत नहीं था।

मेहमान छात्र-छात्राओं को रेलवे स्टेशन पर बने स्वागत कक्ष से कॉलेज लाने के लिए बसों की व्यवस्था, प्रतियोगिताओं के लिए प्रत्येक दल द्वारा माँगी गई सुविधाओं की व्यवस्था, प्रतियोगिताओं में भाग न लेनेवाले मेहमान छात्र-छात्राओं के बैठने की व्यवस्था, उनके आवास की व्यवस्था, भोजन की व्यवस्था, जयपुर के दर्शनीय स्थल देखने के इच्छुक मेहमानों के लिए वाहन एवं पथ-प्रदर्शक की व्यवस्था, अपने-अपने स्थान पर वापस जाने के लिए रेलों में आरक्षण की व्यवस्था, मेहमान छात्र-छात्राओं को निर्धारित रेलगाड़ियों तक ले जाने के लिए वाहन के साथ छात्रसंघ के किसी प्रतिनिधि की उपस्थिति, एक सप्ताह तक रहे मेले के वातावरण में सबकी सुविधाओं का ध्यान रखने के लिए अपनी सुविधाओं को भूल जाने वाले पचासों छात्र-छात्राओं की समर्पित सेवा, हर बात को महासचिव के खाते में डाल दिया गया। मैंने अंत में दिए धन्यवाद में यद्यपि भाषणों का हवाला देते हुए जोर देकर कहा कि विभिन्न समितियों ने यदि मुस्तैदी से अपने दायित्व का निर्वाह न किया होता तो आपका यह महासचिव कुछ भी नहीं कर पाता। फिर भी पावर हाउस का नियंत्रक कौन है, लोग यह देखते भी हैं और समझते भी हैं।

छात्रसंघ के चुनावों के बाद पहला कार्यक्रम कॉलेज पिकनिक का होता आया है। कार्यकारिणी की पहली बैठक में मैंने प्रस्ताव रखा कि एक तो हम लोग वर्ष-भर के कार्यक्रम अपेक्षित तारीखों के साथ निश्चित कर लें दूसरा इस वर्ष पिकनिक न करके पिकनिक फंड का उपयोग कॉलेज ऑरकेस्ट्रा के लिए वाद्यों की खरीदारी में करें। वर्ष-भर के कार्यक्रमों को निश्चित करके प्रस्ताव चीफ प्रॉक्टर के पास भेज दिया जाए, इससे पूरी कार्यकारिणी सहमत थी किंतु पिकनिक फंड का उपयोग वाद्य-यंत्र खरीदने में किया जाए, इस विषय में कुछ सदस्यों के मन में हिचकिचाहट थी। मन में इच्छा और उत्सुकता भले ही रही हो किंतु किसी सदस्य ने आगे बढकर यह नहीं कहा कि हमें वाद्य-यंत्रों से क्या लेना-देना है? पिकनिक के लिए जब फंड है तो पिकनिक होनी ही चाहिए। जिन सदस्यों ने हिचकिचाहट दिखाई उन्होंने बात तो यही कही किंतु मेडीकल कॉलेज के अन्य छात्रों के एतराज को ढाल बनाकर कही। मैं इस भावना को समझता था। मुझे तो उल्टी आशंका थी कि कार्यकारिणी में इस प्रस्ताव की खिलाफत होगी। मन-ही-मन मैं हँसा। मैंने कहा, ‘‘मेरी इच्छा है कि आने वाली नस्लें हम लोगों को याद रखें। यह तभी हो सकता है जब हम लोग कोई स्थायी काम करें। स्थायी काम कई हो सकते हैं। उनको करने के तरीके भी कई हो सकते हैं। मुझे लगता है कि यदि पिकनिक से बेहतर मनोरंजन की योजना हम लोग बनाते हैं तो पिकनिक फंड का उपयोग वाद्य-यंत्रों की खरीद में करने का काम ज्यादा आसान हो जाएगा। वाद्य बजाने वाले लड़के-लड़कियों की मेडीकल कॉलेज में कमी नहीं है। हमारे ऑडीटोरियम में श्रवण यंत्रों की अच्छी व्यवस्था है। मंच अच्छा बना हुआ है। हर साल वार्षिकोत्सव में वाद्य-यंत्र बजाने के लिए हमें किराए पर कलाकार लाने पड़ते हैं। छात्रसंघ पर कलाकार विद्यार्थियों का कोई अधिकार यदि हम मानते हैं तो यह काम हमें जरूर करना चाहिए। वाद्य-यंत्र हमेशा काम में आएँगे। आरकेस्ट्रा क्लब में शामिल होकर इच्छुक छात्र वाद्य-यंत्रों पर रियाज कर सकते हैं। जो सीखना चाहते हैं, उनके लिए आरकेस्ट्रा क्लब किसी शिक्षक की व्यवस्था कर सकता है। इसलिए पहला प्रश्न यह है कि हम स्वयं पूरे मन से इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं या नहीं?

हिचकिचाहट के स्वर समर्थन में बदल गए। तुरंत एक समिति बनाकर तीन दिन में हमने वर्ष-भर के कार्यक्रमों की योजना तैयार कर ली। उस योजना की एक प्रति नोटिस बोर्ड पर सुझावों के लिए लगा दी। पिकनिक फंड के वैकल्पिक उपयोग वाला बिंदु भी दलीलों के साथ हमने नोटिस बोर्ड पर लगा दिया। पाँचों वषोर्ं के चुने हुए छात्र-छात्राओं की मीटिंग बुलाकर पिकनिक फंड के संबंध में हमने विस्तार से बातचीत की। बहुत कम विद्यार्थी थे जिन्हें हम लोग समझा नहीं पाए, अन्यथा सारा कॉलेज इस प्रस्ताव पर हमसे सहमत था। पिकनिक के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा पैसों की हेराफेरी का प्रश्न भी हम लोग उठाते रहे, इस आग्रह के साथ कि हेराफेरी में रुचि होती तो हम लोग भी पिकनिक कराना चाहते।

कॉलेज के स्तर पर विद्यार्थियों से व्यापक सहमति मिल जाने के बाद कुछ लडकों के साथ मैं चीफ प्रॉंक्टर से मिला। छात्रसंघ की ओर से प्रस्तावित वार्षिक कार्यक्रम और पिकनिक फंड का उपयोग इस वर्ष कॉलेज आरकेस्टा के लिए वाद्य-यंत्र खरीदने के लिए करने का प्रस्ताव हम लोगों ने प्रिंसिपल के साथ विचार-विमर्श करके बताने के लिए चीफ प्रॉंक्टर को सौंपा। चीफ प्रॉक्टर ने पहली नजर में ही इस प्रस्ताव से असहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा, पिकनिक फंड के लिए पैसा हर विद्यार्थी से लिया जाता है। इस पैसे को कॉलेज किसी और मद में कैसे लगा सकता है? हम लोगों की दलीलों और आग्रह के बाद वे किसी तरह प्रिंसिपल से बात करने को तैयार तो हुए लेकिन प्रिंसिपल ने भी ठीक वही प्रतिक्रिया दी जो चीफ प्रॉक्टर ने दी थी।

छात्रसंघ की कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर हमने स्थिति पर विचार किया। हमें लगा कि जब लगभग सभी विद्यार्थी पिकनिक फंड का साजों की खरीदारी करने में उपयोग करने वाले प्रश्न पर एकमत हैं तो कॉलेज प्रशासन को इनकार करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। बात मनवाने के लिए जिन उपायों पर चर्चा हुई उनमें से एक हड़ताल भी थी। हड़ताल, हिंसा, तोड-फोड़, मार-पीट, गुंडागर्दी, शक्ति-प्रदर्शन को मैं सिद्धांततः नापसंद करता था। कुछ उम्र का प्रभाव और कुछ पहले के उदाहरण, छात्रों के सोच की दिशा बहुत जल्दी हिंसा की ओर मुड़ जाती है। हड़ताल होगी। नारे लगेंगे। प्रशासन को आमने-सामने खड़ा करके सवाल-जवाब होंगे। प्रदर्शन होगा। जुलूस निकलेंगे। वातावरण कुछ ऐसा बनेगा कि तोड़-फोड़ और हिंसा को टालना संभव नहीं रह जाएगा। उस गरमाहट में महासचिव के नाते अगर मैं हिंसा विरोधी, तोड़-फोड़ विरोधी बात कहकर छात्रों को नियंत्रित करना चाहूँगा तो छात्र मेरे खिलाफ खड़े हो जाएँगे। अच्छा यह होगा कि हड़ताल होने ही न दी जाए। हड़ताल नहीं होगी तो उसके बाद की सारी आशंकाएँ अपने आप निर्मूल हो जाएँगी।

सबकी बातें सुनने के बाद मैंने कहा, ‘‘परसों आठ बजे से हम लोग कक्षानुसार पंक्ति बनाकर प्रिंसिपल के कक्ष में जाएँगे। गुड मार्निंग करेंगे। कहेंगे कि हमें पिकनिक नहीं चाहिए और कक्ष से बाहर आ जाएँगे। कक्ष में एक समय में एक लड़का या लड़की जाएगी। उसके बाहर निकलते ही दूसरा छात्र या छात्रा अंदर जाएगी। हड़ताल हमारा पहला नहीं, आखिरी हथियार होगा। कल हमारी कार्यकारिणी प्रिंसिपल से मिलकर उन्हें राजी करने की कोशिश करेगी। जैसी कि आशा है, उसमें हमें सफलता नहीं मिलेगी। इसलिए परसों के कार्यक्रम के लिए हम कल शाम को चार बजे ऑडोटोरियम में सब विद्यार्थियों की एक आपातकालीन मीटिंग बुलाएँगे। यहीं स्थिति का खुलासा करके परसों के कार्यक्रम की घोषणा कर देंगे।''

कार्यक्रम और उसकी कार्यविधि सबको ठीक लगी। मैंने ऑडीटोरियम में आपातकालीन मीटिंग के लिए नोटिस जारी कर दिया। निश्चयानुसार दूसरे दिन प्रिंसिपल से मिलने हमारी कार्यकारिणी गई। हमने उनसे यहाँ तक कहा कि छात्रों की ओर से सहमति व्यक्त करते हुए छात्रसंघ प्रशासन को एक पत्र लिख देगा। इस पत्र के आधार पर पिकनिक फंड का उपयोग वाद्ययंत्र खरीदने में कर लिया जाए। लेकिन प्रिंसिपल नहीं माने। कानूनी अड़चन के अलावा उनका यह भी मानना था कि छात्रसंघ की लिखित सहमति के बावजूद बाद में कई छात्र इस बात को लेकर हंगामा करेंगे कि पिकनिक क्यों नहीं हुई? वे अंग्रेजों के समय मेडीकल कॉलेज के प्रिंसिपल का दबदबा देख चुके थे। अनुशासन में तेजी से आई गिरावट से वे क्षुब्ध थे। एक खास तरह का जिद्‌दीपन उनके स्वभाव में था। प्रस्ताव को पहले ही अस्वीकार कर चुके थे। ये कारण मिलकर उन्हें राजी न कर पाने का संकेत देते थे। इसीलिए मैंने यह मान लिया था कि उनकी स्वीकृति बातचीत के बाद भी नहीं मिलेगी। वक्त बरबाद किए बिना इसलिए मैंने आपातकालीन बैठक का नोटिस निकाला था।

सभी वषोर्ं के चुने हुए विद्यार्थियों की मीटिंग बुलाकर पिकनिक फंड वाले मुद्‌दे पर चर्चा पहले की जा चुकी थी। इसलिए आपातकालीन बैठक में जब पृष्ठभूमि बताते हुए मैंने प्रिंसिपल की असहमति और उसके कारण पिकनिक फंड के बेहतर उपयोग की हमारी इच्छा पूरी न होने की बात रखीं तो सबको लगा कि प्रिंसिपल हमारे साथ ज्यादती कर रहे हैं। प्रिंसिपल की असहमति के पीछे मैंने उनकी इस मान्यता की चर्चा भी की जिसके फलस्वरूप वे सोचते थे कि बाद में पिकनिक की माँग को लेकर कुछ छात्र हंगामा करेंगे। प्रिंसिपल को भरोसा नहीं है कि यह हम सबकी सहमति से लिया हुआ फैसला है। उनको बताने के लिए कि छात्रसंघ ने गलत तस्वीर नहीं बनाई है, गुडमॉनिंग हमें पिकनिक नहीं चाहिए कार्यक्रम बनाया गया है। मैंने विस्तार से कार्यक्रम का विवरण दिया तो सबको यह एक नए खेल जैसा लगा। इस बिंदु-विशेष में रुचि हो चाहे न हो, किंतु खेल की रोचकता और नयापन दूसरे दिन सब विद्यार्थियों को प्रिंसिपल-कक्ष के बाहर खींच लाया। एक-एक करके लड़के-लड़कियों ने उनके कक्ष में जाकर कहना शुरू किया,. ‘‘गुड मार्निंग सर, हमें पिकनिक नहीं चाहिए।'' पहले तो उन्हें समझ में नहीं आया कि यह हो क्या रहा है? किंतु जब दस-पंद्रह विद्यार्थी वही शब्द दोहराते हुए उनके सामने से निकल गए तो उन्हें लगा कि विद्यार्थी उनके निर्णय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वे उठे और दरवाजा खोलकर अपने कक्ष से बाहर आए। वहाँ सर्पाकार कतारें बनाकर खड़े छात्र और छात्राओं को देखकर उन्हें न जाने कैसा डर लगा कि तेजी से पंक्तियों के बीच में से होते हुए वे बाहर निकल गए। वे अपनी कार तक पहुँचें इससे पहले दौड़कर मैं उनकी कार के सामने खड़ा हो गया। मुझे दौड़ता देख कई लड़के भी मेरे पीछे दौड़ पड़े थे। प्रिंसिपल की कार के चारों ओर छात्र ही छात्र थे।

मैंने आवाज ऊँची उठाकर भाषण वाले अंदाज में कहा, ‘‘दोस्तो, प्रिंसिपल साहब की हम इज्जत करते हैं। इसलिए आपमें से कोई भी उन्हें या उनकी कार को हाथ नहीं लगाएगा।''

मैं घूमकर उनके पास गया, ‘‘आपको तकलीफ देने का हमारा कोई इरादा नहीं है, सर! हम लोग सिर्फ इसलिए आपका वक्त ले रहे हैं ताकि आपको अपनी भावनाओं से अवगत करा सकें कि हमें पिकनिक नहीं चाहिए।''

‘‘हमें पिकनिक नहीं चाहिए। हमें पिकनिक नहीं चाहिए'', की आवाजें चारों ओर से तूफानी शोर की तरह उठने लगीं।

प्रिंसिपल स्पष्ट रूप से घबराए हुए थे, ‘‘ओके, आइ'ल सी टु इट।''

‘‘थैंक यू सर, थैंक यू वेरी मच। हम लोग आपके पास कब आएँ?'' मैंने विेनम्रता से पूछा।

मेरे प्रश्न को सुनकर प्रिंसिपल और ज्यादा घबराए, ‘‘नहीं, नहीं, आप सब लोगों को आने की जरूरत नहीं है। कल चीफ प्रॉक्टर आपको बता देंगे।''

‘‘कल नहीं, अभी बताओ'', की ठिठोलीपूर्ण आवाजें फिर उठने लगीं।

मैंने हाथ ऊपर उठाकर चुप रहने का इशारा किया, ‘‘सर, आप इजाजत दें तो कल इसी समय हम तीन-चार लड़के आपके पास आ जाएँगे।''

छात्रों के दबाव को और मेरी विनम्रता में छिपी धमकी को प्रिंसिपल बहुत अच्छी तरह समझ रहे थे। वे किंचित्‌ खामोश रहे। फिर बोले, ‘‘ठीक है, कल दस बजे आप लोग आ जाइए।''

‘‘आइए सर, हम आपको चैंबर तक पहुँचा दें।'' मैंने मुसकराकर कहा।

‘‘नो, नो, मुझे कहीं जाना है।'' प्रिंसिपल ने भाग जाने वाली नीयत को छिपाने की चेष्टा की।

‘‘फिर हम लोग चलते हैं, सर। चलो दोस्ताें, कल दस बजे मैं अपने तीन-चार साथियों के साथ प्रिंसिपल साहब की सेवा में आऊँगा। मुझे विश्वास है कि आदरणीय प्रिंसिपल साहब फैसला हमारे पक्ष में देंगे।''

उसी शाम को एक और झमेला हो गया। कॉलेज और अस्पताल के बीच में एक सड़क है। उस सड़क पर सभी प्रकार के वाहन चलते हैं। कॉलेज में से निकलकर अस्पताल जाते समय हम लोगों को वह सड़क बहुत सावधानी पूर्वक पार करनी पड़ती है, फिर भी दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। शाम के समय कॉलेज से निकलकर अस्पताल की ओर जाते हुए द्वितीय वर्ष एम बी०, बी० एस ० के एक छात्र को राज्य परिवहन निगम की एक बस ने कुचल दिया। वह चालक बस समेत भाग गया, किंतु अन्य छात्रों ने बस का नंबर देख लिया था। छात्र को तुरंत अस्पताल उठाकर ले गए। वहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया।

उसी रात को चालीस-पचास छात्रों का एक जत्था परिवहन निगम के डिपो पर पहुँच गया। मैनेजर से दुर्घटना करने वाली बस के ड्राइवर का उन्होंने पता पूछा। मैनेजर जानता नहीं था या उसने बताया नहीं, यह तो कहा नहीं जा सकता, किंतु ड्राइवर का पता न मिलने के कारण लड़कों ने डिपो में तोड़-फोड़ और मार-पीट शुरू कर दी। डिपो में उपस्थित कर्मचारियों ने भी सरियों से मारपीट का जवाब दिया। कुछ लड़कों के चोटें आईं। कुछ कर्मचारी भी चोटग्रस्त हुए होंगे। रात को कुछ लड़के मेरे घर आए।

शाम को हुई दुर्घटना के समय मैं कॉलेज में था। एफ ० आई ० आर ० लिखवाकर मैंने शहर एस ० पी ० से बात की। यद्यपि मुकुल के पिता अब शहर एस ० पी० नहीं थे किंतु मेडीकल कॉलेज के महासचिव के रूप में शहर एस ० पी ०, अखबार वाले व सिनेमा वाले मुझे बखूबी जानते थे। मैं हिंसा और मार-पीट नहीं करता था किंतु मैं हिंसा और मार-पीट कर भी सकता हूँ और करा भी सकता हूँ, यह आतंक विशेष रूप से इन तीन तबकों पुलिस, अखबार और सिनेमाओं के प्रमुख लोगों पर पूरी तरह काबिज था। इसलिए सूचना मिलते ही शहर एस ० पी ० तुरंत सक्रिय हो गए। एस ० पी ० अच्छी तरह जानते थे कि बस के ड्राइवर को गिरफ्तार किए बिना बात बहुत ज्यादा बढ़ सकती है। पोस्टमार्टम रात को होता नहीं है, इसलिए लाश को मारचुअरी में भिजवाकर मैं घर आ गया था। न मुझे ऐसा संकेत मिला था और न मैंने ऐसी कल्पना की थी कि लड़के रात को डिपो चले जाएँगे, अन्यथा मैं घर नहीं आता।

मैं तुरंत कॉलेज पहुँचा। डिपो जाकर मार-पीट करने वाले लड़के कनिष्ठ छात्रावास के थे। वहाँ जाकर स्थिति की जानकारी ली। चोटग्रस्त लड़के मरहम-पट्‌टी कराके छात्रावास में आ गए थे। मैं उन लड़कों से भी मिला।

इस नतीजे पर पहुँचने में मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई कि डिपो वालों ने बचाव और प्रतिक्रिया के रूप में मार-पीट की थी। अगर लड़कों ने वहां जाकर बदसलूकी, लड़ाई-झगड़ा न किया होता तो वे लोग भी ऐसा कुछ नहीं करते। लेकिन लड़के जितने उग्र थे, उसे देखते हुए यह बात कहने से कोई लाभ नहीं था। वे लोग चाहते थे कि सुबह जुलूस बनाकर पहले एस ० पी ० के बँगले पर चला जाए। माँग की जाए कि हमारे साथी को कुचलकर मार देने वाले बस ड्राइवर को गिरपतार. करो। इसके बाद परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक के कार्यालय चला जाए। उनसे कहा जाए कि डिपो मैनेजर को निलंबित करो। उसका निलंबन अगर हाथों-हाथ न किया गया तो परिवहन निगम के प्रधान कार्यालय को तहस-नहस करके उसमें आग लगा दी जाए।

रात को ही विभिन्न छात्रावासों के साठ-सत्तर लडकों की एक मीटिंग बुलाकर कल के जुलूस और उसकी माँगों के बारे में विचार-विमर्श हुआ। तय हुआ कि सुबह आठ बजे जुलूस बनाकर एस ० पी ० के बँगले पर चलेंगे। एस ० पी ० को अल्टीमेटम दिया जाएगा कि ड्राइवर को शाम तक गिरफ्तार करो, नहीं तो शहर में बंद का आह्‌वान किया जाएगा। थोड़ी तोड़-फोड़ करके शहर एस ० पी ० को बंद का नमूना दिखा दिया जाएगा। इसके बाद परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक के कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया जाए और तब तक वहाँ से न हटा जाए जब तक मैनेजर को निलंबित नहीं कर दिया जाता। मैनेजर के निलंबन की माँग से मैं सहमत नहीं था फिर भी उस समय मैंने कुछ नहीं कहा।

मेरे सहपाठी और छात्रावास में रहने वाले मंडली के साथी अब वरिष्ठ छात्रावास में रहते थे। लगभग ढाई बजे कुछ साथियों के साथ मैं वरिष्ठ छात्रावास में आया। एक कमरे में मंडली के छात्रावास में रहनेवाले साथी एकत्र हुए। स्थिति पर चर्चा करके हम लोगों ने योजना बनाई कि मैं सुबह जुलूस का नेतृत्त्व करता हुआ शहर एस ० पी ० के बँगले की तरफ बढूंगा। हमारा एक तेज-तर्रार साथी उससे पहले एस ० पी ० के बँगले पर जाकर उन्हें सारी स्थिति बताएगा। परिवहन निगम के मुख्यालय में भी पुलिस फोर्स रखने का आग्रह करेगा। संभव हुआ तो अपने सामने शहर एस० पी० की परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक से बात कराएगा कि वे लड़कों की माँग को ज्यादा हील-हुज्जत न करके मान लें। परिवहन निगम की यूनियन से बात करने की आवश्यकता हो तो प्रबंध निदेशक वैसा कर लें। निलंबन के आदेश बाद में निरस्त किए जा सकते हैं। बस ड्राइवर की गिरफ्तारी यदि एस० पी ० के लिए सचमुच संभव न हो तो वे झूठ बोलने को तैयार होकर आएँ। पुलिस फोर्स के साथ, बँगले की ओर आने को तैयार लडकों से कॉलेज में या फिर रास्ते में मिलें। ड्राइवर की गिरफ्तारी के नारे सुनते ही छात्रों को बता दें कि ड्राइवर को रात को ही गिरफ्तार किया जा चुका है। उद्‌देश्य दो हैं। लड़के शांत रहें, भड़कें नहीं ओर किसी भी स्थान पर हिंसा न हो।

लगभग चार बजे सोकर छः बजे उठ जाना पड़ा। नहा-धोकर सात बजे मैंने कनिष्ठ छात्रावास में जाकर चार-पाँच लड़कों को कल दुर्घटना में मृत छात्र के पोस्टमार्टम के लिए तकाजा करने की दृष्टि से भिजवाया। उनसे कहा कि पोस्टमार्टम के बाद उस लड़के के परिवार वालों के साथ उनके घर जाकर दाह-संस्कार के समय की सूचना आकर कॉलेज में दें। मृत्यु के शोक में कॉलेज बंद घोषित कर दिया गया था। एक चक्कर मैं भी मारचुअरी का लगा आया। मृत छात्र के परिजनों से कल ही मुलाकात हो गई थी। उनको तसल्ली दी और आठ बजते-बजते कॉलेज आ गया। वरिष्ठ छात्रावास से कनिष्ठ छात्रावास की ओर रवाना होते समय शहर एस० पी ० के बँगले के लिए लड़का रवाना हो चुका था।

छात्र इकट्‌ठे हुए तो सबसे पहले दो मिनट मौन रखकर हमने मृत छात्र को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद मैंने एक छोटा-सा भाषण दिया, ‘‘हमारा एक साथी कल अकाल मौत मारा गया है। उसे हम वापस तो नहीं लौटा सकते, लेकिन उसके हत्यारे की गिरफ्तारी के लिए हम जान की बाजी लगा देंगे। इसी सिलसिले में हमारे कुछ साथियों का राज्य परिवहन निगम वालों से कल रात को झगड़ा हुआ है। हमारी माँग है कि झगडे़ के लिए जिम्मेदार मैनेजर को निलंबित किया जाए। पहले हम लोग शहर एस ० पी ० के बंगले पर चलेंगे और बाद में परिवहन निगम के मुख्यालय चलेंगे। मैं आप सबसे एक बात जोर देकर कहना चाहता हूँ कि हम यह विरोध जिन उद्‌देश्यों की प्राप्ति के लिए कर रहे हैं उसके लिए आपके हाथ में पत्थर तभी आना चाहिए जब मैं निशाना साधूंगा। आपका महासचिव चाहता है कि पुलिस की लाठी, गोली का पहला वार उसके सिर और छाती पर हो। यह अधिकार आपने ही उसे दिया है। लेकिन वह इस अधिकार का उपयोग तभी कर पाएगा जब आपके हाथ उसकी हलचल देखकर आगे बढेंगे। हमारा जुलूस तभी नारे लगाएगा, जब जरूरी होगा। हमारे होनहार साथी की लाश का पोस्टमार्टम अभी होगा। हमारे कुछ साथी वहाँ हैं। दाह-संस्कार के समय की सूचना वे लोग दे देंगे। मगर दाह-संस्कार से पहले हम लोग नारे लगाएँ, यह शिष्टचार के खिलाफ है।''

इसी दौरान शहर एस ० पी ० हमारे बीच आ गए। उनके साथ पुलिस फोर्स के दो ट्रक भी थे। मगर सिपाहियों सहित ट्रक कॉलेज परिसर के बाहर ही रुक गए थे। एस ० पी ० हमारे बीच बिलकुल अकेले आए थे। मैंने छात्रों से फिर कहना शुरू किया, ‘‘शहर एस ० पी ० हमारे सामने हैं। हम जो सवाल बँगले पर जाकर उनसे पूछना चाहते थे, वही सवाल उनसे यहाँ पूछेंगे। एस ० पी ० साहब, हमें अफसोस है कि एक दरिंदा हमारे साथी को मौत की नींद सुलाकर भाग गया और आप अब तक उसे गिरफ्तार नहीं कर सके हैं। यह इजलास आपसे दो टूक जवाब सुनना चाहता है कि आप उसे कब तक गिरफ्तार कर लेंगे?''

शहर एस ० पी ० मेरे करीब आए, ‘‘सबसे पहले तो मैं मेडीकल कॉलेज के आपके साथी और भावी डॉक्टर की असामयिक मौत पर अफसोस जाहिर करता हूँ। शराब पीकर सड़कों पर गाड़ियां दौड़ाने वाले ड्राइवर से बड़ा गुनाहगार कोई नहीं हो सकता। आपके साथी को कुचलकर बस को भगा ले जाने वाले ड्राइवर को कल रात हमने गिरफ्तार कर लिया है। कानून के अनुसार उसे सजा दिलाने का काम हमारा है। मेरी आप सबसे गुजारिश है कि मेहरबानी करके हम पर भरोसा रखें और शांति बनाए रखें।''

‘‘शहर एस ० पी ० ने जो जानकारी हमें दी है, उससे पुलिस की चौकसी पर विश्वास पुख्ता होता है। नौ बजनेवाले हैं। हम लोग मौन जुलूस के रूप में सीधे मारचुअरी चलेंगे। पोस्टमार्टम के बाद अपने प्रिय साथी के मृत शरीर को उनके परिजनों के साथ भेजकर हम लोग राज्य परिवहन निगम के मुख्यालय चलेंगे। निगम के प्रबंध निदेशक से हम माँग करेंगे कि कल रात को हमारे साथियों पर जिस मैनेजर की शह पर हमला किया गया था, उसे निलंबित किया जाए।''

शहर एस ० पी ० फिर मेरे निकट आए, ‘‘यदि आप लोगों को एतराज न हो तो मैं एक सुझाव देना चाहता हूँ। पोस्टमार्टम के बाद आपके साथी का दाह-संस्कार जल्दी ही करना पडे़गा। आप लोग जुलूस के रूप में अगर राज्य परिवहन निगम के मुख्यालय जाएंगे और प्रबंध निदेशक से बात करेंगे तो शायद अपने साथी की अर्थी को कंधा देना आपके लिए मुमकिन न हो सके। अगर आप लोग चाहें तो आपके दो-तीन साथियों को ले जाकर मैं प्रबंध निदेशक से मिला देता हूँ। आपकी माँग यदि वे नहीं मानते हैं तो कल आप लोग जुलूस लेकर वहाँ जा सकते हैं।''

द्वितीय वर्ष एम.बी.बी.एस. के. छात्रों में कुलबुलाहट हुई। मैंने बदला लेने की उनकी बेचैनी को पहचानकर कहा, ‘‘मेरे विचार से शहर एस ० पी ० ठीक कहते हैं। अपने साथी की अर्थी को कंधा देकर श्मशान पहुँचाना हमारे लिए सबसे ज्यादा पुनीत कर्म है। मैनेजर से हम कल निपट सकते हैं, मगर कल हमारे लिए अपने साथी के दर्शन करने की गुंजाइश भी नहीं रह जाएगी। निगम के मुख्यालय आप लोग किसे भेजना चाहेंगे?''

जैसा कि अपेक्षित था, मुझे तो बातचीत के लिए जाना ही था। मैंने तीन छात्र द्वितीय वर्ष एम० बी ० , बी ० एस ० के अपने साथ ले लिये। शहर एस ० पी ० के साथ हम लोग निगम के प्रबंध निदेशक के घर पहुँचे। मैंने मैनेजर की कल रात की करतूत की शिकायत की तो प्रबंध निदेशक ने लडकों की बदसलूकी, गाली-गलौज, मार-पीट की बात बताई। मेरे साथ आए लड़कों ने प्रबंध निदेशक की बात का प्रतिवाद किया। कहा-सुनी और गरमाहट बढने लगी तो मैंने प्रबंध निदेशक से कहा, ‘‘बहस करके हम लोग किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाएँगे। आपके सामने दो रास्ते हैं। पहला यह कि डिपो मैनेजर को आप तुरंत प्रभाव से निलंबित करके जांच अधिकारी नियुक्त कर दें। जांच अधिकारी चाहेगा तो हम लोगों के बयान भी ले सकता है। उसकी रिपोर्ट के आधार पर आप अंतिम फैसला कर लीजिएगा। दूसरा यह कि कल हमारे जिस साथी को आपकी निगम के ड्राइवर ने कुचल कर मार डाला है, हमें उसकी मौत का बदला लेने दें। एस० पी० साहब यहाँ बैठे हैं। इनके सामने मैं आपको चुनौती देता हूँ कि यदि आपने कुछ नहीं किया तो अपने साथी की मौत का बदला लेने से हमें कोई नहीं रोक सकेगा। फैसला आपको करना है। यदि आप मैनेजर को निलंबित करें तो खबर भिजवा दीजिएगा, वरना कल हमें जो मुनासिब लगेगा, करेंगे।''

मैं उठकर खड़ा हो गया। मेरे तीनों साथी भी मेरे साथ खड़े हो गए। वहां से सीधे हम अस्पताल पहुँचे। पोस्टमार्टम कराके मृत शरीर को उसके परिजन घर ले जा चुके थे। सारे लड़के भी वहीं गए हुए थे। हम चारों सीधे उनके घर पहुँचे। श्मशान गए। लौटकर छात्रावास आए। नहा-धोकर फारिग हुए ही थे कि एक साथ दो सूचनाएँ आईं। डिपो मैनेजर को निलंबित कर दिया गया है। प्रिंसिपल ने पिकनिक फंड को किसी दूसरे काम में लेने की अनुमति तो नहीं दी है मगर आरकेस्ट्रा के लिए वाद्ययंत्र खरीदने के लिए दस हजार रुपए का विशेष अनुदान स्वीकृत कराया है। यह राशि उन्होंने चिकित्सा मंत्री से विशेष अनुरोध करके दिलाई है।

मुझे सुखद लगा कि भले ही कूटनीति से काम लेना पड़ा हो किंतु वाद्ययंत्रों के रूप में कॉलेज आरकेस्ट्रा को स्थायी भेंट दिलाने में मैं सफल हो गया हूँ। हिंसा, झगड़े-फसाद, मार-पीट, तोड़-फोड़ की पूरी संभावनाओं के बावजूद लड़कों के अहम्‌ भाव को तुष्ट करते हुए हिंसा का रास्ता अपनाए बिना भी वे सब काम कर पाया हूँ, जो मैं करना चाहता था। उस दिन जितना संतोष मुझे हुआ, वह सचमुच अपरिमित था।

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