( अगले पार्ट में हमने देखा कि सुहागरात के दिन नायिका का पति उसके साथ जानवरों जैसा बर्ताव करता है और उसका शरीर जख्मी कर देता है उस पर चरित्र हीन होने का इल्जाम लगाता है वो रात कयामत की रात बन जाती है उसके लिए अब आगे
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थैंक यू सो मच फ्रेंड्स दास्तान ए अश्क की तरह आपने वह कौन थी कहानी को भी सराहा है और मुझे खुशी है कि आप लोग मुझे रेटिंग दे रहे हैं मातृभारती पर मुझे जो लोग नजर आए उनके नाम है !
दुर्गेश तिवारी, नमीता गुप्ता ,गायत्री गोयल ,भारती माथुर ,निकिता पंचाल, रचना चावला, सरफराज खत्री, प्रियंका हिरपारा, विश्वरूप कुमार ,जेपी चौहान, डी. ए. पठान रिंकू मकवाना ,निकुंज दर्जी ,नंदलाल जेपी पुजारा, लावण्या होंडा, कौशिक प्रजापति विक्की वसवानी, पटेल ,अन्नू ,डिंपल जरीवाला ,भाविका शाह , गीता मानेक, हनुमान राम सियाज, धैर्य वोरा, मिशा शर्मा, मनोज सिंग, बाल कृष्णा पटेल ..
आप सबका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं!)
-साबीरखान
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कहते हैं जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता है तब दर्द ही उसका इलाज होता है!
उसके दिल पर हुए वार और उसकी पीड़ा के सामने शरीर के ये जख्म दब जाते है!
उसकी वह सारी रात तड़पते हुए कराहते हुए गुजर जाती है! लेकिन वो मन ही मन कुछ ठान लेती हैं! कुछ निश्चय कर लेतीे हैं!
वो कल पगफिरो के बाद वापस नही जायेगी ! कल सुबह पापाजी उसे लेने आएंगे तो वह अपने सारे ज़ख्म उन्हें दिखायेगी..!
खुद पर हुए जुल्म का चितार सुनकर पापाजी जरूर उसे वापस घर ले जायेंगे! ऐसे जालिम , शैतान और निर्दई पति के साथ उसे अब नहीं रखेंगे!
वह कभी फिर इस आदमी के पास नहीं आना चाहती! और पापाजी को उसकी बात माननी ही पड़ेगी!
वह हर तरीके से अपनी बात उससे मनवायेगी!
हां.. पापाजी को वो बोल देंगी! उन पर कभी वह बोझ नहीं बनेगी! और वह आज पापाजी को बता देगी उसने बैंक के पेपर दिए हैं ,वो नोकरी कर लेगी! पर उस घर में वह दोबारा लौटके नहीं जाना चाहती!
उसका शरीर ही नहीं हौसला भी टूट चुका था!
इन्हीं खयालों की उधेड़बुन में सारी रात आंखो ही आंखों में निकल जाती है!
सूरज की पहली किरण दस्तक देती है! जिसका उसे बेसब्री से इंतजार था!
पर यह क्या ? दरवाजे पर हल्की हल्की आवाज आ रही थी! बाहर कोई चल फिर रहा है! वो उठके बैठ जाती है संभल कर..!
तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है! वह उठकर कुंडी खोलती हैं! सामने उसकी ननद खड़ी थी!
उसे देखते ही उसकी आंखें छलक जाती हैं ..!
"दी.. दी..! " इतना बोल कर वो उसके गले से लिपट जाती है !उसकी आवाज भीग गई थी! वो उनसे लिपट कर सिसकती है!
वो ननद और उसके भीतर की औरत सब कुछ समझ जाती है!
उसके सिर पर प्यार से हाथ रख कर कहती है ! घबराओ मत सब ठीक हो जाएगा!
वह सारा दिन छोटी छोटी रस्मों में निकल जाता है!
लेकिन उसका मन अपने पापाजी की तरफ था कि वह कब उसको ले जाने के लिए आएगे...! उसका मन कहीं नहीं लग रहा था ! किसी भी काम में ,किसी भी रस्म में, ना ये घर अच्छा लग रहा था, ना वह आदमी अच्छा लग रहा था ,ना उस धर के लोग..!
बड़ा परायापन उसको महसूस हो रहा था!
वो कहीं कोई अलग ही दुनिया में एक ऐसी जगह पर आ गई थी जो उसको बिल्कुल ही अच्छी नहीं लग रही थी!
बहुत इंतजार के बाद श्याम होती है!
तभी दरवाजे के ठीक सामने गाड़ी का होर्न सुनाई देता है!
वो उसके पापाजी की गाड़ी थी! पापाजी आ चुके थे! जहा एक तरफ पापाजी के आने की खुशी होती है , वहीं दूसरी तरफ कल रात से आंसुओं का रोका हुआ सैलाब फिर उमड पडता है!
पापाजी को अंदर आते हुए देखकर वह भागकर उनसे लिपट जाती है!
वह हिचकियां ले ले कर रोती है ! पापाजी
समझते हैं कि शायद उनकी लाडली बेटी
उनसे दूर होने के कारण ही रही है!
पापाजी उसके सिर पर हाथ रख कर उसका माथा चूमकर कहते हैं!
"बेटा रोते नहीं है! तू अपने ही घर में तो है और देख मैं आ गया!
लेकिन वह कुछ भी बोल नहीं पाती!
चाय-पानी से निवृत होकर पापाजी जाने की इजाजत मांगीते है! वो बेटी को साथ लेकर घर वापस निकल पड़ते हैं!
सारे रास्ते वह उदास गुमसुम बैठी रहती है! तभी पापा जी की आवाज आती है गाड़ी में से.. वो ड्राइवर को कहते हैं भाई गाना तो अच्छासा लगा दे..!
तुझे पता है ना अपनी बिटिया गाड़ी में बैठती बाद में गाना पहले चालू करती है.? ड्राइवर जैसे ही गाड़ी में रिकॉर्ड ऑन करता है !
वो कहती है "चाचाजी रहने दो.. मुझे अभी कोई गाना-बाना नहीं सुनना! "
"क्या हुआ बेटी तुझे तो गाने बहुत पसंद है? तू रूक मैं लगाता हूं !"
यह कहकर वो टेप ऑन कर देते हैं ! एक सेड सोंग बजने लगता है! सेड सॉन्ग पहले उसे अच्छे लगते थे! लेकिन वह उसका अर्थ नहीं समझ पाती थी!
लेकिन आज वो जब गाना बजा तो उसकी आंखे झार झार होकर बहने लगी..! भीतर से कुछ टूट रहा था! उसकी धड़कन तेज हो रही थी ! अपनी सिसकियां को उसने दबा कर रखा था!
नसीब साडे लिखे रबने
कच्ची पेनिसल नाल..!
......
उसका नसीब भगवान ने ऐसे ही कच्ची पेंसिल से शायद लिख दिया था! वह बूरी तरह फडफड़ा उठती है!
समझ में नहीं आता वह कैसे अपने मन की बात पापाजी से कहे! फिर सोचती है कि अभी कुछ दिन तो उसे मायके में रहना ही है, मौका मिलते ही वो जरूर बतायेगी पापा को अपने झख्मो के बारे में ! अपने दर्द के बारे में ! अपने साथ हुई हैवानियत के बारे में..!
अब कुछ वो नही सहेगी..!
उसे याद आता है अखबार वाले अश्वनी भैया का वह टॉपिक जिसमें उन्होंने कहा था , जुल्म करने वाले से ज्यादा मुजरिम जुल्म सहने वाला होता है! उसने फिर एक बार बगावत करने का मन बना लिया था !
वह सोचने लगी थी ,अगर आतंकवाद पर वह इतना कुछ लिख सकती है तो
अपने ऊपर हुए घिनौने अत्याचार के लिए वह कुछ नहीं कर सकती?
क्या सारी उम्र वह सहती ही रहेगी?
खुद को ही दिलासे देती ,खुद को ही संभालती वह अंदर ही अंदर पापाजी से बात करने के लिए खुद को तैयार कर रही थी!
घर पहुंचते ही उसकी मां उसे गले लगा लेती है! पर आज उसे अपनी मां के इस आलिंगन में जरा भी उष्मा महसूस नहीं होती!
सोचती है शायद उनकी वजह से ही उसकी ये दुर्दशा हुई! उसके मुंह से एक बोल नहीं फूटता..!
उसकी शुरु से आदत ही नहीं थी खुलकर किसी से बात करना! अपने मन में उमड़ रहे तूफान से किसी को अवगत करना!
वह धीरे से मां से अलग होकर अपने कमरे में चली जाती है!
मां को एहसास हो जाता है की उस के मन में कुछ तो है , जिससे वह परेशान है! जिज्ञासा वश मां बहुत कुछ पूछती है!
लेकिन वह चूपचाप अपने बिस्तर पर रजाई ओढकर लेटी रहती है!
मा को उचाट हो जाता है..! पर वो कसमसा कर सिर्फ रह जाती है!
बाहर सरदी ने कहर मचा रखा था! कडकडाती ठंड मे सारी जीव सृष्टी असरग्रस्त थी!
मौसम ने बडी तेजी से करवट ली थी!
लेकिन बाहर जितनी सरदी थी उसके अंदर उतनी ही आग धधक रही थी! बगावत की आग..! विद्रोह की आग..!
अपने साथ हुए ईस अन्याय को लोगो के सामने लाकर पति की हैवानियत उजागर करने की आग..!
एक दिन सारा कश्मकश में निकल जाता है! सुबह अपनी मम्मी के साथ प्रीति काम पर आती है! प्रीति को देखकर उसके दिल को करार आता है वह प्रीति को अपने पास बुलाती है !लेकिन प्रीति तो आज भी चुप थी!
प्रीति तु चुप क्यों है बोलना ? मेरी शादी वाले दिन भी तू चुप थी! और आज भी चूप है!
अचानक प्रीति गुस्से से फट पड़ती है! उसका चेहरा आक्रोश से लाल हो जाता है!
"दीदी मैं चुप रहूं या बोलूं उससे आपको क्या है ? आपको तो हमेशा अपनी मनमर्जी करनी होती है! आप तो शादी करके जिंदगी को रंगीन बनाने चली गई..!
आपको किसी की क्या परवाह ?बहुत निष्ठुर और बेदर्द हो आप..!
वो यह बातें सुनकर सन्न रह जाती है, की ईतना प्यार करने वाली ईतना आदर करने वाली ये लडकी उसके सामने कैसे बोल सकती हैं?
उसकी बाहें पकड़ कर पूछती है !
क्या हुवा है प्रीति बता? मेरा जी बहुत घबरा रहा है! आखिर तेरे ऐसे व्यवहार की वजह क्या है?
आप नहीं जानती दीदी आप बड़े लोग हैं! दूसरों की भावनाओं की कदर करना नहीं जानते! आपकी एक गलती की वजह से उस देवता जैसे इंसान ने जहर खा लिया! क्या गलती थी उसकी? बस इतनी ही कि वह दिलों जान से तुमको चाहता था..? तुम्हें अपने जीवन साथी के रूप में देखता था?
"क्या..? "
उसकी आंखो में अंधेरा छा जाता है..! वह चेर पर ढेर हो जाती है!
तू क्या बोल रही है..?
मैं सच कह रही हूं! नरेंद्र ने जहर खा लिया था आपकी शादी के 3 दिन पहले..!
वह आपको किसी और के होते हुए नहीं देख सकते थे..!
अब कैसा है वह ठीक है ना..?
" हां दीदी..वह तो शुक्र है भगवान का कि उस दिन उसके पापा घर पर थे!
ताबड़तोड़ डॉक्टर के पास ले जाया गया! डॉक्टर ने उसका जहर उल्टी करवाकर निकाल दिया..!
उनकी जान भी जा सकती थी ! वैसे तो अब वो ठीक है लेकिन मन से ठीक नहीं है! उनको बिलखते मैंने देखा है!
वो सिर्फ तुम्हें याद करते हैं! जब उन्होंने सूना की तुम आने वाली हो तो वो कल उसी खेत में जा कर बैठे थे, जहां पर आप दोनों मिलते हैं!
पागल मैं कहां उससे मिलती थी? सिर्फ एक बार उसे मिली थी!!
"हां , दीदी वो वहां ही बैठे थे!
रात बड़ी मुश्किल से समझा बुझाकर उनके पापा उन्हें घर ले आए!
"आपको क्या फर्क पड़ता है दीदी! आप तो अपने ससुराल में खुश होना जीजा जी के साथ..?"
"प्रीति तुम मुझ को दोष क्यों दे रही हो? बताओ इन सब बातों में मेरा क्या दोष है? कहां कसूरवार हूं मैं ?कसूर तो मेरी किस्मत का है! तूम सोचती है मैं बहुत खुश हूं है ना ? इधर आ देख.. तुझे कुछ दिखाती हूं !"
इतना कहकर वह अपने शरीर से शॉल हटाकर ढके हुए जख्मों की झलक उसे दिखाती है!
जगह जगह दांत के और नाखून के निशान थे ! गर्दन पर सीने पर बाजूंआं पर सब जगह जगह जख्म नजर देखकर प्रीति की रूह कांप उठी..!
वो तडप कर बोली "दीदी.. क्या है ये..? तूम्हे क्या हुवा हैं..?"
उसने मन मे उठ रही बुरी आशंकाआं पर रोक लगाने की कोशिश की..!
"शादी से मुझे होने वाली खुशियां की निशानी है ! तूम कह रही थी ना, दीदी तूमतो जीजाजी को पाकर बहुत खुश हो!
मेरी रात कयामत की रात थी वो! तेरे जीजाजी भूखे भेड़िए की तरह मुझ पर टूट पड़े !
तु अपनी ही नजरों से देख ले कैसी हैवानियत बरती गई है मेरे साथ? बस यही पाने को मेरी मां ने मुझे सजने सवारने को कहा था क्या?"
मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है प्रीति..! ना मा ..ना बाप..! ना मेरा पति..!
उसकी आँखें झिलमिला उठी थी!
वो सिसकती हुई बोली!
तुझे में सबसे करीब मानती थी मगर तूने भी मुझे बेगाना कर दिया..!
दरिया छलक उठता है ! उसकी बातें सुनकर प्रीति भीतर तक टूट जाती है! उसका दिल झोरों से धड़कता है ! उसकीभी आंखे भर आती है !और प्रीति उसको गले लगा लेती है!
"दीदी मत रो..!
उसको संभालने के लिए प्रीति को बहुत हिम्मत करनी पड़ी! क्योंकि अंदर से उसका लहू जल रहा था! ऐसा दर्द उठा था जो उसे भीतर चुभ रहा था!
" मुझे माफ कर दो प्लीज ! मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे साथ इतना सब कुछ हुआ है!"
तु मुझे यह बता क्या सभी लड़कियों के साथ ऐसा होता है?
मेरी तो कोई चचेरी बहन या भाभी भी नहीं है जो मैं उससे पूछ सकूं की पहली रात को क्या होता है? मा है ,बूआए हैं ,पर उनसे मैं क्या पूछती?"
"नहीं दीदी कोई भी आम मर्द किसी भी लड़की के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करता! तुम्हारे साथ जो बर्बरता बरती गई है,तुम्हारे शरीर को जिस तरह नॉंचा गया है, ऐसा करने वाला कोई जानवर ही हो सकता है, इंसान नही..!
क्योंकि मुझे पता है मेरी दोनों बहनों की शादी हुई थी ! घर में भाभीयां आई थी !वो सब अगले दिन बहुत खुश थी!
उनकी अंगड़ाई या उनकी आंखों के भाव बीती रात की अदभुत कहानी बयां करते थे!
"अब तू ही बता मैं क्या करूं ? कहां जाऊं? मेरे ही मां बाप ने मुझे एक कसाई के हवाले कर दिया? जो मेरे शरीर के साथ मेरी आत्मा को भी जख्मी कर रहा है!"
उसका गला भर आया! आवाज़ रुक गई! जैसे समंदर में एक और उछाल आया! जिसने उसके चेहरे की मासूमियत को भिगो दिया! प्रीति ने अपने पल्लू से उसके आंसू पोछे..!
बहुत मुश्किल से उसने खुद पर कंट्रोल किया! कुछ हद तक संभलकर वह बोली.
शायद मेरी किस्मत में यही लिखा था! "अब तु मुझे बता! क्या तू मेरी एक बार नरेंद्र से मुलाकात करवा सकती है..? मैं उससे मिलना चाहती हूं! उससे फिर एक बार माफी मांगना चाहती हुं! और तू वादा कर मेरे बारे में उसे कुछ नहीं बतागी..! मुझसे वादा कर मेरी बहन..!"
प्रीति कस कर उसे अपने आलिंगन में भींस लेती है ! उसकी आंखों में पानी रुक नहीं रहा था!
बस मैं नहीं चाहती कि वह दोबारा ऐसी हरकत करें और उसे कुछ हो!
मुझे पाप लगेगा!
मैंने उसका दिल तोड़ा है ! उसका दिल बहुत दुखा होगा,जिसकी परमात्मा ने मुझे सजा दी!"
बोलना.. तु मेरी एक मुलाकात उनसे करवाएगी?
"हां जरुर दीदी... वह तो खुद आपसे मिलने के लिए तड़पते हैं! बेसबर है!"
"मुझे यह बताओ आप कब तक यहा पर हो?"
"क्या तू चाहती है मैं फिर से वहां जाउ उस नर्क में?"
प्रीति को अपने ही बोल का अंदाजा हो जाता है हो चुपचाप उसकी आंखों में देखते हैं!
मैं अब वहां नहीं जाना चाहती! मैं पापा जी से बात करूंगी मुझसे उसकी हैवानियत नहीं सही जाती! मैं अपने पांव पर खड़ी होउंगी , पढूंगी, लिखूंगी..! किसी पर बोझ नहीं बनूंगी!
ठीक है दीदी.. मैं नरेंद्र भैया से मिलने की कोशिश करती हूं! फिलहाल मैं जाती हूं तुम अपने आप को संभालो अपने मन को मजबूत कर लो क्योंकि जिंदगी आगे क्या रुख पलटने वाली है हमें उसका अंदाजा नहीं है !
इतना कहकर प्रीति चली जाती है!
पिछली रात जेहन में तरोताजा थी बार बार आंखों के सामने वो डरावना मंजर आ जाता था वह सहम जाती ! हवा का झोंका भी आता था तो उसने लगता था कोई अपने नाखून चुभा रहा है उसे..!
वह यहां महफूज थी! फिर भी वो डर उस पर इतना क्यों हावी था, समझ नहीं पा रही थी! पापा जी से बात करने के लिए सही मौका की तलाश में थी खुद को मानसिक रूप से तैयार करने लगी..!
सारा दिन उसी उलझन में बिता था!
बहुत सारे रिलेटिव उससे मिलने आए थे और वह एक पल के लिए पापा जी के पास नहीं जा पाई!
एक रात में उसका जीवन नर्क बना दिया था उस मधु रजनी ने मधु की बजाए जीवन में जहर घोल दिया था!
समझ नहीं पा रही थी उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ ? उसने अपनी जिंदगी में कभी किसी का बुरा नहीं चाहा ना कभी किसी का बुरा किया था! फिर क्या बात थी? क्या गुनाह था जो परछाई की तरह उसके पीछे लग गया था?
बहुत देर रात तक वह सोई नहीं थी फिर कब आंख लग गई उसे याद नहीं!
सुबह ठंडी की लहरने प्रकृति को अपनी गिरफ्त में लिया था! ओस गिरने की वजह से जगह जगह मिट्टी भीगी हुई थी..!
पेड़ पौधे नहाए हुए थे और घास फूस में दूर-दूर तक छोटे-छोटे मोती चमक रहे थे बहुत ही लुभावना और अद्भुत नजारा था!
वह चाहती थी अब हर सूब्हा उसके जीवन में रोशनी लेकर आए जहां कहीं टूटने का कोई एहसास ना हो कोई दर्द ना हो! सिर्फ सुकून हो..! शांति हो..!
सुबह सुबह अचानक प्रीति को आए देखकर उसका दिल धक्क से रह गया!
उसका चेहरा गुलाब की तरह खिला हुआ था! बहुत खुश लग रही थी वह!
उसके करीब आकर बोली-
दीदी नरेंद्र भैया से मेरी बात हुई है वह आज ही आपको मिलेंगे
खेत के पीछे वह खंडहर है उसमें ! उन्होंने मुझे भी आपके साथ आने को बोला है क्योंकि वो नहीं चाहते कि आप बदनाम हो!
"ठीक है कोचिंग सेंटर जाने के बहाने उनसे मिलने चलेंगे! तू वक्त पर आ जाना!
प्रीति से एक फैसला करके वह अलग होती है जैसे उसने अपने आपसे एक फैसला किया था!
(क्रमश:)
दास्तान ए अश्क में कहानी की नायिका जीवनकी नैया अफाट समंदरके मझधार में प्रवेशते ही तूफान में गिरी है! क्या वह तूफान उसको ले डूबेगा? या फिर वह उनमें से निकल जायेगी? जानने के लिए पढ़ते रहे ! आपकी अंतरआत्मा को झिंजोड़कर रखने वाली नायिका की कहानी ! दास्तान ए अश्क