Chooti Galiya - 12 in Hindi Fiction Stories by Kavita Verma books and stories PDF | छूटी गलियाँ - 12

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छूटी गलियाँ - 12

  • छूटी गलियाँ
  • कविता वर्मा
  • (12)

    तीन दिन हो गये थे नेहा की कोई खबर नही थी ना ही कोई फोन। मैं जानना चाहता था क्या हुआ? उसने राहुल को क्या और कैसे बताया? राहुल की क्या प्रतिक्रिया हुई? मैं खुद राहुल से बात करना चाहता था पर नेहा से उसकी मनस्थिति जाने बिना नहीं। आज शाम तक इंतज़ार करता हूँ नहीं तो मै ही उसे फोन लगाऊँगा उसके मोबाइल पर, मैंने सोचा।

    आज पार्क जाने का भी मन नहीं हुआ कुछ थकान सी थी। गैस पर चाय का पानी चढ़ाया ही था कि घंटी बजी नेहा थी, "अरे वाह क्या टाइम पर आयी हैं चाय ही बना रहा था पियेंगी ना?"

    "जी" नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा।

    मैंने चाय का कप पकड़ाते हुए कहा "हाँ तो कहिये कहाँ गायब हो गयीं थीं आप?" नेहा धीमे से मुस्कुरा दी। "आपकी मुस्कान से लगता है कि सब कुछ ठीक है।"

    "बहुत ठीक तो नहीं पर जैसा मैने सोचा था उससे अधिक आसानी से हो गया।"

    "बताइये ना क्या हुआ?" चाय का कप मेज़ पर रखते हुए मैने पूछा।

    "उस शाम जब राहुल ट्यूशन से लौटा खाना खाने के बाद मैने उससे बात शुरु की उससे पूछा कि स्कूल मे क्या हुआ था?"

    राहुल ने बताया बच्चे आपस मे अपने घर, मम्मी पापा के बारे मे बात कर रहे थे मैं चुपचाप बैठा सुन रहा था, तभी मितांशु ने मुझसे पूछा तेरे पापा दुबई में और मम्मी और तू यहाँ क्यों रहते हैं? तेरे पापा तुझसे मिलने भी नहीं आते तुझे सिर्फ़ एक बार बर्थ डे पर गिफ्ट भेजा था कहीं ऐसा तो नहीं तेरे पापा तुझे प्यार ही नहीं करते? मेरी मां कहती हैं तेरे पापा ने वहॉँ दूसरी शादी कर ली होगी। राहुल ने उसे कई बार चुप रहने को कहा लेकिन वह बार बार यही कहता रहा तेरे पापा ने तुम लोगों को छोड़ दिया है और वो वहाँ मज़े कर रहे होंगे। इस बात पर उसे गुस्सा आ गया और फिर राहुल ने उसे जोर से थप्पड़ मार दिया। नेहा थोड़ी देर रुकी और उस ने एक गहरी साँस ली। फिर कहने लगा लेकिन मम्मी उसे मारने के बाद मुझे समझ आया कि मैने ठीक नहीं किया, लेकिन मै क्या करता, मुझे अपने पापा के बारे मे कुछ भी तो नहीं पता। वह यहाँ आते भी तो नहीं हैं बस कभी कभी फोन पर बात करते हैं मैं उनसे कहूँ भी तो क्या कहूँ?

    "मुझे उसकी बात सुनकर सच बहुत दुःख हुआ। मुझे उसे पहले ही उसके पापा के बारे में सब बताना चाहिए था।" वह बोला मम्मी स्कूल में सभी बच्चे अपने पापा के बारे में बात करते हैं बस मैं ही हमेशा चुप रह जाता हूँ।

    "उसकी इसी बात से मुझे बात शुरू करने का सिरा मिल गया। मैंने उसे अपने और विजय के बारे में बताना शुरू किया। यही कि वो इतनी जल्दी शादी करना ही नहीं चाहते थे, उन्होंने मुझसे शादी दादा दादी की जिद की वजह से की, फिर वो दुबई चले गए। अब वहाँ की अच्छी जॉब, स्टेटस, पैसा सब छोड़ कर यहाँ आना भी तो ठीक नहीं लगता। वहाँ उनका मन लग गया है पर तुम्हारी याद आती है इसलिए फोन पर तुमसे बात कर लेते हैं।"

    "ये सब जान कर क्या कहा उसने?" मैंने व्यग्रता से पूछा।

    "उसके बाद तो पूछिए ही नहीं उसके प्रश्नों का पिटारा खुल गया।"

    "कैसे प्रश्न?"

    "यही कि पापा ने कभी आपसे प्यार नहीं किया? वो आपको डाँटते थे? बुरा व्यवहार करते थे? दादा-दादी कुछ नहीं कहते थे? वो आपको प्यार करते थे ना?"

    "आपने क्या जवाब दिया?" मैं एक एक बात तफ़सील से जानना चाहता था।

    "मैंने यही कहा कि पापा ने कभी गलत व्यवहार नहीं किया। उनका स्वभाव बहुत अच्छा था और वो प्यार भी करते थे। दादा दादी को इस बारे में कुछ भी नहीं पता था, पर दादा दादी मुझे अपनी बेटी की तरह रखते थे। जब पापा दुबई गए उनकी नयी नयी नौकरी थी इसलिए हम सब साथ नहीं जा सके। फिर दादा दादी की उम्र काफी हो गयी थी, उस उम्र में उन्हें इतनी दूर एकदम अलग माहौल और संस्कृति वाले देश में ले जाकर रखना भी ठीक नहीं था और उन्हें यहाँ अकेले भी नहीं छोड़ा जा सकता था, इसलिए मैं यहाँ रही और मेरे साथ तुम भी।"

    "मम्मी पापा मुझे प्यार करते थे ना? जब राहुल ने मुझसे ये पूछा तो सच कहूँ मेरे तो आँसू ही निकल पड़े। उससे छुपा कर कैसे मैंने आँसू पोंछे और अपने को संयत किया मैं ही जानती हूँ।" कहते कहते नेहा का स्वर भर्रा गया।

    मैंने कहा "हाँ बेटा पापा तुम्हे प्यार करते थे बल्कि अभी भी करते है तभी तो तुम्हे फोन करते हैं।" तो कहने लगा फिर पापा ने बीच में इतने समय तक मुझसे बात क्यों नहीं की? पापा ने तो मेरे बर्थ डे से ही मुझसे बात करना शुरू की है ना?

    "फिर आपने क्या कहा?"

    "मैं क्या कहती। सच इसका तो कोई जवाब ही नहीं सूझा, इसलिए मैंने कहा शायद पापा बिज़ी रहे हों और ये बात तो तुम खुद उनसे पूछ सकते हो" कहते कहते नेहा हँस दी एक शरारती हँसी। "अब जब भी आप फोन करेंगे तैयार रहियेगा जवाब के साथ।"

    मैं भी हँस दिया, "बहुत खूब अब गेंद मेरे पाले में है।"

    "हाँ अब ये आईडिया भी तो आपका ही था ना।"

    एकाएक मैं संजीदा हो गया, "सच बताइये क्या आपको लगता है कि इस आईडिया के कारण हालात ज्यादा उलझ गए हैं? आप ज्यादा परेशानी में आ गयी हो?"

    "ये सब बाते कभी न कभी तो होनी ही थी तो बेहतर है कि इसके पहले कि राहुल की उलझने बढ़ती सारी बाते उसे बता दी जायें। बल्कि आपसे बातें करते रहने से उसे ये सब बताना आसान हो गया। अभी कम से कम उसे ये विश्वास दिलाना आसान हो गया कि उसके पापा उसे प्यार करते हैं क्योंकि उसकी अपने पापा से फोन पर बात हो रही है। विजय ने जो भी किया लेकिन राहुल नफरत के साथ जिये ये मैं नहीं चाहती थी।"

    "ये सारी बातें जानने के बाद भी तो वह विजय से नफरत कर सकता है, आखिर वह आपको उसकी मम्मी को इस तरह यहाँ अकेला छोड़ कर चले गए हैं। आज नहीं तो कल ये सवाल उसके अंदर उठ सकते हैं कि जब वह आपको पसंद नहीं करते थे तो आपसे शादी क्यों की? उसका जन्म क्यों हुआ? पिता का फ़र्ज़ निभाने वह यहाँ क्यों नहीं हैं? वगैरह वगैरह।"

    "हाँ हो तो कुछ भी सकता है, ये तो समय के साथ पता चलेगा, उसका दिल दिमाग किस बात को किस रूप में लेता है? अभी वह तेरह साल का है अगले चार पाँच साल तो वैसे भी उम्र की नाज़ुक अवस्था है। इसी समय तो दिमाग में अच्छे बुरे कई विचार आते हैं, यही तो संभालना है।" फिर कुछ सोचते हुए नेहा बोली "अगर उसके मन में अपने पिता के लिए कटुता आयी तो आपसे बाते करते हुए वह नाराज़ हो सकता है या आपको कटु शब्द कह सकता है, प्लीज़ आप बुरा मत मानियेगा, मैं उसकी तरफ से पहले से माफ़ी माँगती हूँ।"

    "अरे अरे कैसी बातें करती हैं आप? मैं बच्चे की बात का बुरा मानूँगा, वो भी इतने छोटे से बच्चे की बात का? मुझे पता है वह किस मानसिक उथल पुथल से गुजर रहा है। आप निश्चिन्त रहिये मुझे विश्वास है मैं सब संभाल लूँगा। आपको तो मुझ पर विश्वास है न?" कहते हुए मैं हँस दिया। नेहा भी हँस पड़ी।

    "और क्या पूछा राहुल ने?"

    "बस और तो कुछ खास नहीं। कह रहा था पापा का बहुत दिनों से फोन नहीं आया आपसे बात हुई क्या?" मैंने कहा "नहीं।"

    और हाँ याद करते हुए नेहा बोली "वह पूछ रहा था कि आपके पास पापा का नंबर है क्या?"

    मैंने कहा कि नहीं वह हमेशा लैंड लाइन पर फोन करते हैं।

    तो कहने लगा - उनके पास आपका मोबाइल नंबर है?

    मैंने कहा नहीं, तो कहने लगा क्यों आपने कभी दिया नहीं?

    "फिर," मैं अपना कौतुका रोक ना पाया।

    मैंने कहा, उन्होंने कभी माँगा नहीं।

    पर उन्हें पता है कि आपके पास मोबाइल है। आपने तो पापा के जाने के बाद मोबाइल लिया था ना?

    हाँ लेकिन शायद उन्हें पता है बहुत पहले एक बार मैंने उन्हें बताया था।

    अच्छा मम्मी मान लो अगर हमें, मुझे या आपको कुछ हो जाये, कुछ भी जैसे कोई एक्सीडेंट या बीमारी तो हम तो पापा को खबर कर ही नहीं पाएँगे ना? मान लो पापा फिर बात करना बंद कर दें, यहाँ फोन ही न लगाएँ बहुत दिनों तक बहुत महीनों तक तो उनको तो पता ही नहीं चलेगा कि यहाँ हमारे साथ क्या हुआ?

    "उसके सोचने की सीमा मुझे हैरान कर देती है। पिता के साथ ना रहने से और बीमार होने के बाद से वह बहुत असुरक्षित महसूस करने लगा है।"

    "फिर आपने क्या कहा?" हैरान तो मैं भी था।

    "क्या कहती, बस यही कहा कि ऐसा नहीं होगा भगवान हमारे साथ है, हमने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है तो भला हमारा कैसे कुछ बुरा होगा? पर वह इससे संतुष्ट नहीं था बोला तो कुछ नहीं पर उसके माथे की शिकन बता रही थी कि वह परेशान है।"

    हूँ, मैं भी सोच में पड़ गया। "इसका मतलब तो ये है कि अब मेरी कठिन परीक्षा की घडी है। आज नहीं तो कल वह ये सब सवाल मुझसे भी जरूर पूछेगा और मुझे जवाब के लिए तैयार रहना होगा। अब जब वह अपने माता पिता के रिश्ते के बारे में जानता है खुद को असुरक्षित महसूस करता है, मेरा हर जवाब बहुत सोच समझ कर होना चाहिए।"

    "हाँ ये तो है अब उसके हर सवाल का जवाब आपको बहुत सतर्कता से देना होगा। खास कर उन बातों का जो वह मुझसे जान चुका है और आपसे पूछ कर कन्फर्म करना चाहेगा।" नेहा के स्वर में चिंता थी, "आपकी और मेरी बातें एक समान होनी चाहिए, अगर उनमे अंतर रहा तो वह और उलझ जायेगा फिर वह किस पर विश्वास करेगा किस पर नहीं हम नहीं जानते।" नेहा एक कुशल मनोवैज्ञानिक की तरह सोच रही थी। एक माँ, एक टीचर ही बच्चों की मानसिक स्थिति को पढ़ और समझ सकती हैं। पिता के लिये ये शायद मुश्किल है या मैं ही इतनी गहराई से इन बातों को समझ नहीं सका, अगर समझ पाता तो दूर रहते हुए अपने बच्चों को कोई तो दिशा दिखला पाता।

    "क्या सोच रहे हैं आप?" मुझे चुप देख कर नेहा ने पूछा।

    "नहीं कुछ नहीं राहुल के सवालों के बारे में सोच रहा था। ऐसा करते हैं एक बार फिर दोहराते हैं फिर मैं आज या कल उससे बात करूँगा।"

    नेहा ने राहुल के सवाल दोहराये और मैंने नेहा के जवाब। शुक्र था मुझे सब याद था। नेहा मुस्कुरा दी एक मुस्कान जो उसकी आँखों में उतर आती है तसल्ली के साथ थोड़ी सी शरारत लिये। "आपको तो एक बार में सारे सवालों के सही जवाब याद हो गए।"

    "जी बहुत अच्छा स्टूडेंट हूँ मैं।" मैंने हँस कर कहा।

    हम दोनों ही जोर से हँस दिए सारी चिंता गायब हो गयी। अब हम इसे अच्छे से संभाल लेंगे की निश्चिंता हो गयी। "मैं आज फोन करूँगा।"

    ***