कहानी है यह उस वक्त की,
भारत पें जब अंग्रेजों का राज था ।
तभी उनके वाणी से बरसा,
एक एक शब्द क्रांती का आघाज़ था ।।
परवशता के उन अँधेरों में,
वो दियेसा एक प्रकाश था ।
शत शत नमन भारत माँ के लाल को,
जिनका नाम सुभाष था ।।
बँरिस्टरी पिता कि,
घर में खेलती संपत्ती,
कुशाग्र बुद्धी और मेहनत से,
पायी आय.सी.एस. कि डिग्री ।।
खुशीयाँ पाई थी सारी,
किसी बात कि कमी न थी ।
पिता जानकीनाथ को अब बस,
आस सुभाष कें शादी कि थी ।।
फिर भी मातृभुमी पें जम के बैठी,
गुलामी कि बेडीया उनको सताती थी ।
अंग्रेजी अत्याचारों कि बातें,
हर रोज ही भारत माँ सुनाती थी ।।
बागी सुभाष को इस तरह,
ऐशोआराम में जीना मंजुर न था ।
महाविद्यालय के समय सें ही,
स्वतंत्रता संग्राम कि ओर कदम बढाया था ।।
खुदगर्ज प्राध्यापक ओअँटन,
हिंदी विद्यार्थीओं को सजा सुनाता था ।
चलते अन्याय को देख,
सुभाषजी ने उसें पीटवाया था ।।
सुखी जीवन त्याग कर,
राजनीती में कुद पडें ।
चित्तरंजन दास,
गुरु से पिछे थे खडें ।।
काँग्रेस में हुये शामील,
देशसेवा का व्रत लिये ।
तुरूंग यात्रा वारंवार,
हर क्लेष निर्भयता से सहे ।।
काँग्रेस अध्यक्ष कि भूमिका,
लगातार दो बार निभाई थी ।
विद्रोह कि उनकी जहाल भाषा,
काँग्रेसीयों को ना भाही थी ।।
महायुद्ध का समय है,
आझादी पाने का अच्छा मौका ।
सुभाषजी का ये कहना,
अहिंसा पुजारीओं को मंजुर न हो सका ।।
हैवलाँक मोर्चे के आरोपों तहत,
सुभाषजी को नजरकैद में रखा था ।
और महायुद्ध के इस अवसर का,
लाभ उठाने का उनका ईरादा पक्का था ।।
एक दिन हुआ ये कैसा गहजब,
नरराक्षस अंग्रेज भी हिल गये ।
कडे पहरों के बीच सें,
सुभाषजी कैसे निकल गये ।।
काबूल, कंदहार, जर्मनी, इटली,
और फिर आखिर जापान,
स्वतंत्रता कि खोज का यह सफर,
नही था इतना आसान ।।
आझाद हिंद कि सरकार,
आझाद हिंद कि फौज,
आझाद हिंद रेडिओ,
इन्हें थी बस आझाद हिंद कि खोज ।।
टोकियो कें रस्तें रस्तें,
हिंदी शेर का आवेदन गुंजा ।
तुम मुझे खुन दो,
मैं तुम्हें आझादी दूँगा ।।
निकल पडी आझादी सेना,
चलो दिल्ली पुकार कें,
मरने को भी तैयार खडें,
वीर बहादूर सुभाष कें ।।
रंगून जीता, कोहिमा गिरा,
पोहोच गयी थी सेना इंफाल ।
मानो जैसे शांत बैठे,
शूरता उनकी देख रहा था काल ।।
बेवक्त बरसी थी बारिश,
आँसमा में छाया अलग हि रंग ।
भुख सें व्याकूल सैनिक,
अंग्रेजों कि मार और आदेशभंग ।।
परमाणु बम के धमाके सें,
जपान परास्त हो गया ।
नेताजी के दिल का आझादी का सपना,
एकदमसें ही ध्वस्त हो गया ।।
उँचे ईरादे रखने वाले,
हिम्मत ना हारते है ।
एक लडाई हार गये तो क्या,
चलो साथीयों फिर से लड़ते है ।।
जिंदादिल नेताजी,
हिम्मत ना हारे थे ।
अब भी उनके सीने में,
जलते हुये अँगारे थे ।।
जपान से निकल,
रशिया जाने कि सोच थी ।
भारत कें आझादी कि उम्मीद,
अब वही सें थोडी कुछ थी ।।
रशिया जाने वाला हवाई जहाज,
बीच रास्ते हि दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
आझादी का हमारा सेनानी,
जलते जहाज में हि कही खो गया ।।
लडे वो आखरी कतरा खुन तक,
दिल में लिये आझादी का सपना ।
लहराया तिरंगा लाल किले पें,
व्यर्थ न हुआ बलिदान उनका ।।
जिस तरह कई सदींयों बाद,
अंतरिक्ष में कोई तारा दिखता है ।
उसी तरह बडे भाग्य सें,
किसी भुमी को ऐसा महानायक मिलता है ।।
स्वतंत्रता संग्राम में,
वो बिजली सें चमक गये ।
भारत के इतिहास में
सुवर्णाक्षरों में नाम अपना लिख गये ।