apneindaav banungi in Hindi Children Stories by manohar chamoli manu books and stories PDF | अपनेइंडाॅव बनूंगी

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अपनेइंडाॅव बनूंगी

पात्र परिचय
पीहू- एक छात्रा
चंद्रमोहन-पीहू के पिता
जगमोहन - पीहू के चाचा
सविता-पीहू की चाची
रामसखा-पीहू के दादा
कमला-पीहू की दादी
सोनिया-पीहू की बुआ


परदा उठता है


(ड्राइंगरूम का दृश्य। पीहू और चंद्रमोहन मंच के बांयी ओर से प्रवेश करते हैं। वे गांव से आए हैं। मंच के मध्य में सोफा बिछा है। दांयी ओर एक बैड बिछा है। जगमोहन, सविता, रामसखा, कमला और सोनिया पहले से बैठे हुए हैं। पीहू सबके पैर छूती है। सब पीहू को देखकर खुश हो जाते हैं।)


सोनिया : वाह! हमारी पीहू तो बहुत बड़ी हो गई है।

रामसखा: समझदार भी है।

चंद्रमोहन : (खुश होते हुए) ये सब गीता की मेहनत है। गीता की हिम्मत ही है कि पीहू को यहां शहर मंे पढ़ने के लिए भेजा है।

कमला: पीहू को सोच-समझ कर लाए हो ना? कहीं ऐसा न हो कि ये बार-बार कहे कि गांव जाना है।

रामसखा: हां बेटा। शहर में दाखिला बड़ी मुश्किल से मिलता है।

चंद्रमोहन: हां। यह मन से तैयार हो कर आई है।

पीहू: मैं आठ साल की पूरी हो गई हूं। मैं फोर्थ क्लास में एडमिशन लंूगी। सिक्स्थ क्लास के स्टैंडर्ड की तैयारी करके आई हूं। चाहो तो आप सब मेरा टैस्ट ले लो। (सब हंस पड़ते हैं।)

सविता: ( पीहू से) आठ बरस की नहीं आप तो अठारह की हो जी। चलो ठीक हुआ, मेरे साथ रसोई में हाथ तो बटाएगी।

पीहू: क्यों नहीं। अभी लो। हम सात हैं न। मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।

( रसोई की ओर देखते हुए, सबको गिनते हुए जाती है। सब मुस्कराते हैं। मंच पर सभी पात्र मूक अभिनय में बात करते रहते हैं। पीहू चाय बनाकर ले आती है)


पीहू: ये लीजिए।


(एक-एक कर सबको चाय का प्याला पकड़ाती है। सब चाय की चुस्की लेते हैं। )

रामसखा : (खुश होते हुए सभी की ओर देखते हुए) वाह ! सविता, कमला और सोनिया अब में आप तीनों से कभी चाय बनाने के लिए न कहूंगा। आज से मेरे लिए पीहू ही चाय बनाया करेगी।

कमला: वाकई ! चाय तो अच्छी बनी है।

पीहू: मां ने मुझे सब सिखाया है। झाड़ू-पोंछा भी कर लेती हूं।

कमला: बस-बस। घर का काम करने के लिए हम हैं। तू तो यहां पढ़ के दिखा, कुछ कर के दिखा।

सोनिया: (कमला की ओर देखकर हंसती है) मां, चिंता की बात नहीं है। हम देख तो रहे हैं कि ये बड़ों-बड़ों के कान काट सकती है। ये मेरे साथ ही रहेगी। (पीहू से) मैं तो इसे तेज-तर्रार अफसर बनाऊंगी।

जगमोहन: अफसर ? नहीं-नही। पीहू के अंदर एक जागरुक पत्रकार के लक्षण हैं। मैं इसे पत्रकार बनाऊंगा।

सविता: कैसी बात करते हैं आप। वह जागरुक नेता की तरह बात कर रही है। आज जमाना नेताओं का है। मैं तो इसे नेता बनाऊंगी।

रामसखा: आमदनी और हैसियत तो इंजीनियरों की है। मैं इसे इंजीनियर बनाऊंगा।

कमला: इंजीनियरिंग के जमाने गए। आज हर कोई अपनों को डाॅक्टर बनाना चाहता है। हमारे कुनबे में कोई डाॅक्टर नहीं है। मैं तो इसे डाॅक्टर बनाऊंगी।

चंद्रमोहन: (सबकी ओर देखता है। हिचकते हुए) वैसे गीता कहती है कि हम पीहू को वकील बनाएंगे। ये सबको न्याय दिलाएगी। अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। वकालत के क्षेत्र में स्कोप भी बहुत है।

कमला: (तुनकते हुए) वकालत का पेशा झूठ बुलवाता है। वैसे (पीहू की ओर देखते हुए) इससे भी तो पूछो कि ये क्या बनना चाहती है?

सोनिया: अरे ! हां। ये तो हमने सोचा ही नहीं।

जगमोहन: पीहू ही बताएगी कि वह क्या बनना चाहती है।

पीहू: (सोचते हुए) मैं अपनेइंडाॅव बनूंगी।

समेकित स्वर: क्या?

कमला: अपने इंडाॅव ! ये क्या है भला ?

पीहू: अ से ‘अफसर‘। प से ‘पत्रकार‘। ने से ‘नेता‘। इं से ‘इंजीनियर‘। डाॅ से ‘डाॅक्टर‘। व से ‘वकील‘। आप सब जो चाहते हैं न, थोड़ा-थोड़ा बनकर दिखाऊंगी। आप सबकी इच्छा का मैंने पहला अक्षर ले लिया। मैं ‘अपनेइंडाॅव‘ बनूंगी। (सब सन्न रह जाते हैं। )

परदा गिरता है।
॰॰॰

मनोहर चमोली ‘मनु’


सम्पर्क: 7579111144 एवं 9412158688