छूटी गलियाँ
कविता वर्मा
(11)
"अरे बहुत देर हो गयी मुझे चलना चाहिये नेहा ने बाहर देखते हुए कहा, लेकिन हमारी समस्या तो वहीँ की वहीँ है क्या किया जाये?" वह वाकई बहुत चिंतित थी।
"देखिये उसे बताना तो पड़ेगा ही। अब देखना ये है कि क्या, कितना और कैसे बताना है मैं इस बारे में सोचता हूँ, हो सके तो कल मिल कर सारी रूप रेखा बनाते हैं।"
"ठीक है," कहते हुए नेहा खड़ी हो गयी।
"अँधेरा हो गया है मैं आपको छोड़ देता हूँ अकेली कैसे जाएँगी?"
"हाँ पर अगर राहुल ने मुझे आपके साथ देख लिया तो मुश्किल हो जायेगा।"
"कितनी दूर है आपका घर?"
"यहीं पास ही है आपके घर के पीछे दो रोड़ छोड़कर।"
"ओह पास ही है चलिये मैं साथ ही चलता हूँ आपको रोड़ के कोने तक छोड़ दूँगा।"
हम दोनों चुपचाप चलते रहे नेहा गहरे सोच में थी निश्चित ही वह राहुल के बारे में सोच रही थी। अचानक वह रुक गयी "यहाँ से मैं चली जाऊँगी वह सामने हरे रंग का मकान मेरा है, राहुल मेरे इंतज़ार में बाहर ही बैठा होगा, सॉरी मैं आपको घर पर नहीं बुला रही हूँ।"
"नहीं नहीं कोई बात नहीं, आप जाइये कल मिलते हैं।"
"अगर मैं आपके घर पर ही आ जाऊँ तो कोई एतराज़ तो नहीं ? पार्क में कई जान पहचान के लोग होते हैं।"
"नहीं नहीं कोई प्रॉब्लम नहीं है आप आ जाइये कल शाम पाँच बजे मिलते हैं, जी गुडनाइट।"
"गुडनाइट" मैं नेहा को जाते हुए देखता रहा।
सुबह सुबह ही वकील कपूर का फोन आया, "सहाय साहब, कल केस की फ़ाइनल हियरिंग है आप कोर्ट आ रहे है ना?"
"हाँ मैं आता हूँ, कितने बजे तक शुरु होगी हियरिंग?"
"यही कोई बारह बजे के आसपास, उम्मीद है लंच के पहले हो जाना चाहियें।"
"ठीक है मैं बारह बजे के पहले ही पहुँच जाऊँगा।" फोन रखकर मैं गीता के सामने खड़ा हो गया। "गीता कल सनी के केस की फाइनल हियरिंग है तुम्हे क्या लगता है वह बरी हो जाएगा ना? अब तो वह काफी सुधर भी गया है, उसकी शराब पीने की आदत भी छूट रही है, वह फ़िर से हमारा प्यारा सनी बन रहा है।"
गीता की आँखे मुस्कुरा उठीं मैं आश्वस्त हुआ।
शाम को कपूर के यहाँ जा कर एक बार फ़िर सारे पॉइंट्स पढें समझे उन पर विचार विमर्श किया मै कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहता था।
अगला दिन बहुत महत्वपूर्ण था, बहुत सुबह ही मेरी आँख खुल गयी। बहुत बैचेनी थी पता नहीं क्या होगा? सनी बरी होगा या नही? मै यहाँ वहाँ घूम कर बार बार कभी मन्दिर में भगवान के सामने या गीतां के सामने खडा हो जाता। किसी तरह ग्यारह बजे और मै कोर्ट के लिये रवाना हुआ। कपूर साहब बाहर ही मिल गये वो केस के बारे में ही बात करते रहे मैं बहुत उद्विग्न था हियरिंग के दौरान भी मेरी उद्विग्नता बनी रही। लंच के पहले शुरू हुई कार्यवाही लंच के बाद तक चली और निर्णय के लिये अगली तारीख दे दी गयी। कपूर ने मुझे तसल्ली दी कि केस बहुत हद तक हमारे पक्ष मे जायेगा और सनी को कम से कम सज़ा होगी।
मैंने गहरी सांस लेकर घड़ी पर नज़र ड़ाली तो चौंक गया चार बज चुके थे पाँच बजे नेहा आने वाली थी। मैंने तो राहुल के बारे मे कुछ सोचा ही नही। मैं फ़ौरन कोर्ट से निकल गया।
घर पहुँच कर हाथ मुँह धोया कपड़ें बदले और आराम कुर्सी पर बैठ कर राहुल के बारे मे सोचने लग। दिमाग में राहुल सनी, सनी राहुल गड्मग होते रहे मगर धीरे धीरे मन राहुल पर एकाग्र होने लगा। दिमाग मे एक फ्रेम बनने लगा कि आगे क्या करना है, कैसे करना है कई रुपरेखा बनने लगी।
करीब सवा पाँच बजे नेहा आईं और आकर चुपचाप बैठ गयी, उसके चेहरे से उसके मन की उथल पुथल का पता चल रहा था। थोड़ी देर दोनों ही ख़ामोशी से बैठें रहे मैं उसका परेशान चेहरा देखता रहा। सच तो ये था कि मुझे भी समझ नही आ रहा था कि बात कहाँ से शुरु करूँ?
"आज राहुल के स्कूल से फोन आया था " नेहा अचानक बिना किसी भूमिका के बोल पड़ी।
"क्या हुआ कुछ खास बात?" हालांकि मैं समझ गया था कुछ ना कुछ तो हुआ ही है।
"आज राहुल ने एक लड़के को मारा।"
"लेकिन क्यों? उस लड़के ने भी तो कुछ किया होगा?"
"उसकी टीचर बता रही थीं बच्चे आपस मे अपने मम्मी पापा के बारे मे बात कर रहे थे बातों बातों मे राहुल बहुत गुस्से मे आ गया और एक लडके को दो तीन थप्पड़ मार दिये।"
"ओह्ह आपने राहुल से बात की?"
"नहीं स्कूल मे उसे बहुत डॉँट पडी और क्लास से बाहर निकाल दिया। घर आकर वह बहुत गुमसुम था मेरी गोद मे सिर रखकर चुपचाप लेटा रहा, ना कुछ कहा न बताया।
मुझे राहुल की बहुत चिंता हो रही है।" नेहा का स्वर भर्रा गया।
"अब समय आ गया है उसे आपके और विजय के संबंध मे बता दिया जाये।"
"लेकिन क्या? ये कि वह बस चले गये हमें छोड़ कर।"
"नहीं इससे तो उसके मन मे पिता के लिये नफरत पैदा हो जायेगी और नफरत के साथ जीना उसके लिये और भी मुश्किल होगा।"
"फिर क्या करें?"
"ऐसा करिये आप उसे आपके और विजय के बारे में बताना शुरु करिये लेकिन इसके साथ ही इसमे थोड़े मिर्च मसाला यानि कि जरुरत के हिसाब से बातों को तोड़ना मरोड़ना पड़ेगा।"
"जैसे?" नेहा की आँखों मे उलझन थी।
"जैसे आप लोगों की शादी विजय की पसन्द से नहीं हुई थी, या वह पहले से ही किसी को पसन्द करते थे, माता पिता की जिद की वज़ह से आप लोगों की शादी हुए इसलिए आप विजय के दुबई जाने के बाद भी उनके माता पिता के साथ इंडिया मे रहीं।"
"लेकिन इससे तो उसके सारे प्रश्नों के जवाब नहीं मिलेंगे।"
"हाँ फ़िर उसे बताना होगा कि वहाँ उन्होने दूसरी शादी कर ली। नहीं नहीं ऐसा बताना शायद ठीक नहीं होगा।" मैंने खुद की ही बात काटी।
"मुझे भी यही लगता है।"
"तो क्यों ना उसे बताइये कि अब वह इंडिया नहीं आना चाहते वहाँ उनकी जॉब प्रेक्टिस सब बढ़िया चल रहे हैं। उनकी शादी की बात बताएं ही नहीं।"
"हाँ और अब उन्हे तुम्हारी याद आती है इसलिए वो तुमसे फोन पर बात करते हैं यही ना?"
"हाँ ऐसा कह सकते हैं। फिर जब उसकी मुझसे बात होगी वह मुझसे इस संबंध मे पूछेगा या शायद नहीं पूछेगा।" मैंने कहा पर सोच मे पड़ गया उसका मुझ पर पूर्ण विश्वास अभी भी नहीं है या शायद आक्रोश मे आ कर पूछ भी ले।
"मुझे लगता है इस तरह हमें छोड़ कर जाने की बात पर वह विजय से नाराज ज़रूर होगा।" नेहा बोली।
"हाँ मतलब ये सब बातें पता चलने के बाद जब मेरी उससे बात होंगी मुझे उसके प्रश्नों और नाराज़गी का सामना करने के लिये तैयार रहना होगा," कहते हुए मैं हँस दिया। अच्छा आपको क्या लगता है वह मुझसे गुस्से से बात करेगा?
"कह नहीं सकती, पहले तो मुझे ये सोंचना है कि इतनी बाते जानने के बाद उसके दुख और गुस्से को कैसे संभालूँगी?"
"अगर आप उसे कहीं बाहर ले जाकर ये बातें करें तो? जैसे पार्क या प्ले ज़ोन या मक्डोनल्ड्स। तब शायद वह बाहर और लोगों की मौजूदगी में खुद को नियंत्रण मे रखे।"
"नहीं नहीं ऐसी बातें उसे घर पर ही पता चलना चहिये जब सिर्फ़ हम दोनों हों। कोई बात नहीं वह गुस्सा होगा चीखेगा, चिल्लाएगा, सामान फेंकेगा पर इस तरह उसके मन की घुटन बाहर आ जायेगी। सिर्फ उसके गुस्से के ङर से उसे बाहर ले जाऊँ और वह उसकी घुटन को अपने मन में कैद करे रहे ये मैं नहीं चाहती।"
मैं नेहा को देखता रह गया, सच में माँ के रूप मे नारी की सोच व सहन शक्ति की कोई सीमा नही होती, वह हर हाल में सिर्फ बच्चे के लिये ही सोचती है।
"आपको क्या लगता है आज हुए स्कूल के वाकये के बारे मे मुझे उससे बात करनी चाहिए?"
मैं सोच मे पड़ गया क्या जवाब दूँ क्या कहूँ? ऐसी परिस्थिति से कभी मेरा सामना ही कहाँ हुआ गीता ही सब संभालती रही।
"मेरे ख्याल से बात तो करना चाहिए।" मुझे चुप देख कर नेहा खुद ही बोल पड़ी। "नहीं करूँगी तो उसके मन मे क्या क्या भरा है बाहर नहीं आ पायेगा और फ़िर बात से ही बात निकलेगी तो मैं अपने और विजय के बारे मे बता पाऊँगी।"
"हूँ" मैं नेहा की बातों पर गौर करने लगा एक लम्बी चुप्पी पसर गई।
"चाय पियेंगी?" मुझे घर आने के बाद से ही चाय की तलब हो रही थी पर इतनी महत्वपूर्ण चर्चा के बीच मे चाय, कुछ ठीक नहीं लगा पर अब हम एक निष्कर्ष पर पहुँच चुके थे इसलिए मुझसे रहा ना गया।
"जी" चौक पड़ी नेहा फ़िर मुस्कुरा दी।
चाय पीते पीते नेहा सनी के इलाज़, उसके केस आगे की योजनाओं आदि के बारे मे पूछने लगी। आज का दिन बहुत व्यस्त रहा, नेहा के जाने के बाद खाना खाया और बिस्तर पर लेटते ही मेरी आँख लग गयी।
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