वीकेंड चिट्ठियाँ
दिव्य प्रकाश दुबे
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Dear फलाने अंकल-ढिमकाना आंटी,
जब मैं class 10th का बोर्ड एग्जाम देने वाला था तब आप दोनों घर आते और मेरे घर वालों से कहते देखिये अगर बच्चे के 90% से कम आए तो समझिए लड़का पढ़ने में कमजोर है । बोर्ड एग्जाम हुआ मेरे 90% से बहुत कम नंबर आए । मेरे घर वालों को इतना बुरा नहीं लगा लेकिन आप पूरे मुहल्ले में लोगों को बताने लगे ‘देखा हमने पहले ही कहा था, लड़का कमजोर है कुछ नहीं करेगा आवारा निकलेगा’।
मैंने 12th में और मेहनत की, बोर्ड दिया आप दोनों फिर से आए और कहा 95% के नीचे तो कहीं एड्मिशन ही नहीं मिलेगा । बोर्ड एग्जाम हुआ मेरे 95% से बहुत कम नंबर आए । आपने फिर सबको मुहल्ले में बोला ‘देखा हमने पहले ही कहा था, लड़का कमजोर है कुछ नहीं करेगा आवारा निकलेगा’।
इसके बाद मैंने IIT-JEE(इंजीन्यरिंग) की तैयारी के लिए एक साल ड्रॉप लिया। आप दोनों घर आए बोले हमारे तो सारे रिशतेदारों के बच्चे IIT के पढ़े हुए हैं । सबका लाखों रूपय का package है । IIT में नहीं पढ़े तो समझिये लड़का कमजोर है कुछ नहीं करेगा आवारा निकलेगा । IIT Exam हुआ मैं majority में रहा मेरा selection नहीं हुआ । आप दोनों आए और बोला ‘देखा हमने पहले ही कहा था’ ।
खैर मेरा एड्मिशन फाइनली एक प्राइवेट इंजीन्यरिंग कॉलेज में हुआ जिसमें मुझे भेज कर मेरे घर वाले बहुत खुश थे लेकिन आप लोगों की नानी हर बार मरती रही । मैं कॉलेज मैं कुछ life-time दोस्त पाकर बहुत खुश था । प्राइवेट कॉलेज से पढ़ने का अपना फ़ायदा है जो भी वहाँ ज़्यादा पढ़ने का नाटक करता है उसको टोंट मार सकते हैं ‘साले इतने ही पढ़ने वाले थे तो IIT क्यूँ नहीं गए, यहाँ हमें परेशान करने क्यूँ आ गए’।
मेरी इंजीन्यरिंग मस्त कटने लगी शुरू का एक साल तो चारों साल की बंदियाँ गिनते ही निकल गया। 2nd इयर में 3-4 शॉर्ट लिस्ट की हुई बंदियों को पटाने की कोशिश में चला गया । 3rd इयर में कुछ लड़की वाले फ्रंट पर कुछ सफलता हाथ लगी लेकिन ‘success’ साली long lasting होती नहीं है । फ़ाइनल इयर में placement का प्रैशर आ गया । मेरा कहीं भी shortlist हुआ नहीं क्यूँकि हिंदुस्तान में ‘computer science’ का भी engineer बनने के लिए 1st इयर में ‘electrical Engineering’ का पेपर पास करना पढ़ता है । तो जैसा कि आम-engineer के साथ होता है वैसा ही हुआ मेरी back ‘लग गयी’ । कुल मिलाकर इंजीन्यरिंग के 4 साल ‘दोस्त’ और ‘दारू’ के नाम रहे ।
कॉलेज खतम करके मैं वापिस घर आया तो आपने जानबूझकर पूछा ‘कहाँ जॉब लगा बेटा ?’। मैंने बोला कहीं नहीं तो आपने कहा ‘देखा हमने पहले ही कहा था’ फालतू ही भेज रहे हो आप लोग इसे इंजीन्यरिंग करने।
Placement के लिए walk-in देना शुरू किया 2-3 महीने कहीं कुछ नहीं हुआ । एक दिन लगा साला ये सब है नहीं अपने लिए। हम कुछ और करने के लिए पैदा हुए हैं । कुछ बड़ा करना है अपने को तो walk-in देना बंद कर दिये और side by side ,MBA की तैयारी करने लगा । कॉलेज में थिएटर की script लिखता था, थोड़ी बहुत कवितायें भी ,एक-दो बार prize भी मिला था । कुछ दिन बाद एक जान पहचान वाले भईया की ad-agency में बिना पैसे में बहुत दिन तक ads लिखे । वो ads जो कभी भी मेरे नाम से release नहीं हुए लेकिन लिखने में मन लगने लगा । लगा साला यही तो करना चाहता था शुरू से । बस साथ में MBA हो गया । लेकिन लिखने का चस्का लग चुका था । आप दोनों घर आते रहे और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बच्चों के “Package” बढ़ा-बढ़ा के बताते रहे । मैं कुछ नहीं बोला । इन सब के साथ मैं चुपचाप Film writer Association का मेम्बर बन गया । अब मेरी किताब (Terms & conditions apply) आने वाली है ,घर पे सब लोग बहुत खुश वो सारे दोस्त खुश हैं जिन सालों ने एक भी अच्छी चीज नहीं सिखायी सिवाए दोस्ती के । आप दोनों फलाने अंकल-ढिमाका आंटी घर आए हुए हो ,चाय पी रहे हो और सबसे बोल रहे हो “ देखा हमने पहले ही कहा था “ लड़का जरूर कुछ अलग करेगा।
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दिव्य प्रकाश दुबे की दूसरी किताब का नाम क्या है ?