Book Title – एक ख़ूबसूरत सफर By IMRudra
Author – Rudra
Book Description - मंजिल की ख़ुशी से ज्यादा अधिक ख़ूबसूरत वो सफर होता है जिस पर चलकर आप अपनी मंजिल तक पहुंचते है !!
जरुरी ये नहीं कि आपको जितनी सुविदा आपके पास आज है वो कल भी हों, जरुरी ये भी नहीं की लोगों की आपके बारे में आज जो राय है कल भी वही हो |
जरुरी ये भी नहीं की आज जो लोग आपको अच्छे लग रहे हैं, आपको अपना कह रहे हैं , आपको प्रोत्साहित कर रहे हैं – कल भी आपके लिए सब वैसे ही हों ||
जरुरी ये भी नहीं की आज आपके पास लोग हैं, प्रोत्साहन है, साधन है, ये कल भी आपके साथ ही हों …
जरुरी बस ये है की कल जब आपके पास कुछ न हो, आप शारीरिक और मानसिक दोनों अवस्थाओं में थक चुके हों तब भी आप उठे और उस दिन फिर वही काम करें || जिसकी शुरुआत आपने की थी और करते जाएँ करते जाएँ तब एक दिन आप वहाँ होंगे जिसे लोग मन्जिल कहते हैं || और उस दिन आपके पास वो सब लोग, सभी साधन, साहस, प्रोत्साहन सभी कुछ होगा ||
क्यूंकि इस बात से किसी को कभी फर्क नहीं पड़ता की आपके पास आपके काम को नहीं करने की कितनी ही वजहें रही होंगी || पर आप हजारों वजहों के बावजूद सिर्फ अपना काम करते है तो आखिर में लोग आपकी सफलता के साथ साथ आपके साहस की भी बातें करेंगे || नहीं तो आप जिस दिन अपने सवालों में उलझने लगेंगे उस दिन के बाद इस भीड़ में आप अपना अस्तित्व भी खो देंगे ||
मेरी माँ कहती है कर्म ही सत्य है, आप जो कर रहे है वो सत्य है और सारी दुनिया के रंग झूठे है चाहे फिर वो कैसे भी हो | कोई आपको बुरा बोलता है , आपका अपमान करता है ये उसका एक रंग है जो झूठ है आप उसे नजरअंदाज करके अपने काम पर केंद्रित हो सकते हैं | पर अगर आप अपनी बुराई सुनकर कोई प्रतिक्रिया करते है ये वो कर्म है जिसकी प्रमाणिकता का सबूत अब आपके पास भी है ||
में जब १४ साल का था तो मुझे याद है में घर के बाहर घूम रहा था बातें कर रहा था दोस्तों से अचानक वहां एक लड़का आया | उसके और मेरे विचारों में हमेशा से वैचारिक मतभेद था वो मेरे पास आया और मुझे बुरा भला कहने लगे एक हद तक मेने नजरअंदाज करने की बहुत कोशिश की पर उस समय मेरी भी उम्र भी कम थी तो एक हद तक चुप रहने के बाद मुझे बहुत गुस्सा आया और वो पहली बार था जब मैने अपना हाथ उस लड़के पर उठाया लड़ै बढ़ने लगी, मेरे माता पिता एक प्रतिष्ठित शख्सियत हैं तो जल्दी ही बात मेरे घर तक पहुँच गई उस दिन शाम को मेरे पिताजी ने मुझे बुलाया और कहा आज क्या हुआ था मेने बोला उसने मुझे बुरा भला कहा वो हर बार यही करता है और आज मुझे गुस्सा आया इसलिए आज मैंने जो किया वो सही किया || मेरे पिताजी ने पूछा अच्छा ये सही कैसे था तो मेने बोला उसने मुझे बुरा भला कहा मेने मारा तो पिताजी बोले पर ये सही कैसे था ||
तो मेने फिर पिताजी को बोला उसने मुझे बुरा बोला तो मेने उसे मारा तब पिताजी ने बोला उसने कहा और आपने प्रतिक्रिया देकर यह साबित किया की वो जो बोल रहा था, वो ज्यादा सही है, तो मेने पूछा ऐसा कैसे ||
पिताजी बोले कोई आपको तब ही कुछ दे सकता है जब आप कुछ लेने के लिए तैयार है , उसने दिया और आपने लिया ही नहीं तो उसने आपको दिया कैसे पर उसने कुछ दिया और आपने उसे लेने के बाद अपनी प्रतिक्रया की तो आप वैसे ही है जैसा उसने कहा ||
तब मुझे एक बात समझ आई इस दुनिया में हमें तब तक कोई कुछ नहीं दे सकता है जब तक हम उसे लेना न चाहे | हमे हमारी मर्जी के खिलाफ कोई काम नहीं करा सकता है, हम गुस्सा अपनी मर्जी से करते है, हम रोते अपनी मर्जी से हैं, हम परेशान अपनी मर्जी से होते हैं | क्यूंकि जब तक हम लेने के लिए तैयार न हो तब तक हमे कोई कुछ नहीं दे सकता है ||
उस दिन के बाद मेरे कदम मेरी मंजिल की तरफ बढ़ते गए, मैंने ताउम्र वही किया जो मुझे सही लगा || मुझे गुस्सा जब भी आया अपनी मर्जी से आया, मेने दुनिया की बातों से वही लिया और उतना ही लिया जितना मेरे लिए जरुरी था, और अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ता गया || मेरे लिए सफर कहीं ज्यादा ख़ूबसूरत सा था क्यूंकि मुझे जो भी मिला मेने उससे वही लिया जो मुझे अच्छा लगा | मुझसे किसी में बुराई देखने का समय नहीं रहा और सुनाई मुझे सिर्फ अच्छा देने लगा | क्यूंकि ज़िंदगी में अब मुझे लक्ष्य का पता था, जो चाहता था उस मुकाम को मैंने हासिल किया | आने वाली आगे की सीरीज में इस बात का ज़िक्र ज़रूर करूँगा कि मेरे लिए जितना आसान सा था |
Message - अपने कर्म करते रहो, दुनिया की अच्छी या बुरी विचारधारा आपको आपकी उपलब्धियां हासिल नहीं करा सकती है
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