Ek Geet... Ek Ehsaas... in Hindi Moral Stories by Bibekananda Nayak books and stories PDF | Ek Geet... Ek Ehsaas...

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Ek Geet... Ek Ehsaas...

एक प्यारी-सी गीत कब सुनने को मन होता है...?

जब दिल में कोई दर्द हो या ज़िन्दगी की कोई सबसे अनमोल खुसी; जब कोई बेचैनी हो या बहुत कड़ी मेहनत के बाद मिली हुई प्यारी-सी सुकून... चाहे कुछ भी हो...; खुशी हो या गम, बेचैनी हो या सुकून; दिल से निकली हुई वह गीत उन्हें एक नयी मंजिल दे देती है... ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दे देती है...

ये खुशी, ये गम, ये बेचैनी और ये सुकून; आखिर ये सब है क्या...?

"एहसास...”; और जब भी ऐसा कोई एहसास दिल में होता है तो वह अपने आप एक सुंदर-सी गीत बन जाती है। ज़िन्दगी भर एक सच्चे हमराही की तरह साथ निभाता है। मदद करता है; कभी एक नई ज़िन्दगी की तलाश करने में या बीती हुई ज़िन्दगी की खोये हुए पलों को समेटने में...

चाहे कितनी भी देर हो जाये..., कितना भी वक्त निकल जाये, लेकिन एक दिन... सब कुछ वापस मिलजाता है... सब कुछ... बिलकुल मेरी ज़िन्दगी की तरह...

पंकज-श्रुति बेटा... तुम्हे जलेबियाँ बहुत पसंद है ना...?

श्रुति-Yes पापा!

पंकज-तुम यहाँ बैठो। मैं अभी तुम्हारे लिए गरमा गरम जलेबियाँ लेके आता हूँ।

Really! सब कुछ बदल चुका है। जब भी मैं अपने पिछले ज़िन्दगी की ओर मूड कर दखने की कोशिश करती हूँ तो बहुत अजीब लगता है। कभी नहीं सोचा था कि मेरी ज़िन्दगी इतनी जल्दी और इस तरह बदल जायेगी... पर ये सच है और आज मैं मेरी ज़िन्दगी की इस सच के साथ बहुत खुस हूँ...

मैं हूँ श्रुति... श्रुति सिंघानिया... और मैं यहाँ मुंबई में रहती हूँ। "जुहू बीच" से पैदल बस 5 मिनट का रास्ता।

आज जब घर से निकल कर इस समंदर की तरफ आयी तो mind बिलकुल relax था; ना कोई stress, ना कोई tension, ना कोई question; nothing... जब पापा ने घूमने जाने के लिए बुलाया तो मुझे जो खुसी हुई मैं उसे बयान नहीं कर सकती। मैं बहुत अछि तरह से उनके दिल की खुशी को महसूस कर पा रही थी। उनकी आँखों में साफ़ दिखाई दे रहा था कि वह मेरी हक़ की खुसी को मुझे देने केलिए कितना बेताब रहने लगे हैं। मेरी खुशी पर मुझसे ज़्यादा उन्हें खुशी हो रही है। बस इतने से ही एक बेटी के सारे अरमान पूरे हो जाते हैं। इससे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए मुझे। आज मैं दिल खोल कर कह सकती हूँ कि मेरे पापा इस दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं।

पर 2 महीने पहले ऐसा कुछ भी नहीं था। बहुत अलग थी मेरी जिंदगी। मेरी ज़िन्दगी में चैन, सुकून, हसी, खुसी, इन सब के लिए कोई जगह नहीं था। अगर मन होता था तो खाती पीती थी, मन होता था तो स्कूल जाती थी, अगर कुछ भी करने को मन नहीं होता था तब या तो मैं सो जाती थी नहीं तो कहीं दूर घूमने के लिए चलि जाति थी। ना कोई मुझे रोकता था ना कोई मुझे टोकता था। कोई कुछ नहीं कहता था मुझे। जब मन ज़्यादा उदास हो जाता था तो चली आती थी इसी समंदर के किनारे; मन में ढेर सारी शिकायतें लिए, ढेर सारे सवाल लिए. पर जब किसी को ढूंढती थी पूछने के लिए तो कोई नहीं आता था मेरे पास। फिर जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाती थी तो अपने आपसे और इस समंदर से बातें कर लिया करती थी। हाँ! ये सच है कि इससे मेरे दिल का दर्द मिटता नहीं था पर, थोड़ा कम ज़रूर हो जाता था।

हमेशा सोचती रहती थी कि पता नहीं क्या रिश्ता है मेरा इस समंदर से और इस्सके इन बेचैन लहरों के साथ जो बार-बार खींच लाती है मुझे यहाँ। कुछ खास महसूस होने लगता है; कुछ बहुत ही अपना-सा जिसे चाहकर भी मैं अपनी ज़िन्दगी से दूर नहीं कर सकती...

वैसे तब मैं अकेले जाया नहीं करती थी। मेरे साथ कोई और भी होता था। एक ऐसा दोस्त जिसके साथ होने से मेरे दिल की हर दर्द एक सूंदर-सा गीत बन जाता था। वह गीत जिसे गाने से बरसों से बिछड़ा हुआ ज़िन्दगी से भी प्यार होने लगता था।

पंकज–बेटा ये लो तुम्हारे लिए गरमा गरम जलेबियाँ।

अरे बेटा! ये क्या...? तू तो अपने दोस्त को गाडी में ही भूल आयी थी। ले...!

श्रुति–नहीं पापा! मैं इसे भूली नहीं थी। जानबूझकर छोड़ आयी थी। क्योंकि मुझे लगता है, आज मुझे इस दोस्त की, इस violin की कोई ज़रूरत नहीं। आज मेरे दिल में कोई अधूरी ख्वाहिश नहीं है कोई अधूरा सपना नहीं है। न कोई कमी, ना कोई ज़रूरत। इसलिए दर्द भी नहीं है। So... बिना दर्द के कोई भी गीत नहीं बन सकती।

पंकज–बेटा! ममा की कही हुई बात याद है ना...?

"जिंदगी के लिए गम जितनी मायने रखता है खुसी भी उतनी ही मायने रखता है। चाहे कैसा भी सिचुएशन हो ज़िन्दगी हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता तो फिर हम ज़िन्दगी का साथ क्यों छोड़ें?" हमारी अपनी खुशी हमसे है और हमारा अपना गम भी हमसे ही है। हम इस ज़िन्दगी को जिस नजरिये से देखने की कोशिश करते हैं, यह ज़िन्दगी हमें वैसी ही दिखाई देने लगती है।"

श्रुति-हाँ पापा! याद है। अपनी ही दिल की आवाज़ को सुन नहीं पा रही थी।

पंकज-Right...! कल बहुत-सी चीजें अधूरी थी। आज सब कुछ पूरा हो चुका है। लेकिन ये एक ऐसा तलाश है जिसका कोई अंत ही नहीं... बेटा भगवान ने हमें ये जो ज़िन्दगी दी है इसमें कोई लिमिट नहीं है। इसमें हम जितनी चाहे उतनी खुशियों को भर सकते हैं; बेसुमार... तिनका-तिनका जोड़कर, हर छोटे-छोटे बातों से, हर छोटे-छोटे यादों से...

यकीन नहीं हो रहा था उस दिन की ये सब बातें पापा मुझसे कह रहे थे। क्योंकि जिस ज़िन्दगी की उस दिन पापा इतनी तारीफ कर रहे थे, एक दिन था जब पापा उसी ज़िन्दगी से कहीं बहुत दूर जाना चाहते थे। इतनी नफरत करते थे कि उन्हें किसी का हँसना, गाना, खुसी मनाना, ज़हर जैसा लगता था। दूर कर दिया था उन्होंने अपने आपको इस प्यार भरी दुनिया से। "प्यार" , उनके लिए इस शब्द का कोई मोल नहीं था। लेकिन उस दिन जब उनकी जुबान से मैंने ज़िन्दगी के बारे में वह बातें सुनी तो मुझे पूरा यकीन हो गया की चाहे हम प्यार से कितना भी नाता तोड़ने की कोशिश कर लें लेकिन प्यार हमारा साथ हमारी आखरी सांस तक नहीं छोड़ता और फिर ज़िन्दगी का दूसरा नाम ही तो प्यार होता है।

मैंने सोचा था ज़िन्दगी में दोस्त आते हैं किसी खास मकसद के लिए. वह ख़ास मकसद जो हम अकेले पूरा नहीं कर सकते, उसे पूरा करने में हमारी मदद करने के लिए तक़दीर उन्हें हमें सोंपता है और जब सब ज़रूरतें पूरी हो जाती है तब शायद दोस्ती उतनी पक्की नहीं रहती। पर ग़लत थी मैं। तक़दीर ने हमें जो कुछ भी दिया है वह सब कुछ हमारे लिए बहुत ही कीमती है; हमेशा-हमेशा केलिए. खुसी और ग़म तो ज़िन्दगी मैं हर जगह मिलेंगे पर हमें अपने ज़िन्दगी के लिए किसे चुनना है ये पूरी तरह से हमारे ऊपर निर्भर करता है। ज़िन्दगी की कोई एक खुशी पूरी हो जाने से ज़िन्दगी में खुशियाँ ढूंढ़ने की वजह ख़त्म नहीं हो जाती और ना ही उन दोस्तों की ज़रूरत खत्म हो जाती है जिसे तक़दीर ने हमें दी है। मेरे ज़िन्दगी में सब कुछ सही हो जाने के बाद मैंने वायलिन बजाना छोड़ दिया था पर सायद वह मेरे साथ अपनी दोस्ती तोड़ना नहीं चाहता था क्यूंकि, उस दोस्ती की किसी हिस्से में बेसुमार प्यार छुपा हुआ था और इस बात का पता मुझे तब चला जब मैं फिर से उस गीत को गाने लगी...

“ए जिंदगी… मैंने तेरे लिए…

दिल से की है ये दुआ…,

चाहे कोई तेरा…

साथ दे या ना दे,

मैं साथ दूंगी सदा,

मैं साथ दूंगी सदा...

तू कभी तो कहता नहीं,

है तुझको भी किसी की कमी,

बस देता है दिल खोल कर,

फ़िक्र खुद की तू करता नहीं;

पर मैंने बढ़ाया है हाथ,

दूंगी हर पल तेरा साथ,

चाहे ये वक़्त बदल जाए,

चाहे बदल जाए दिन और रात;

ए जिंदगी… मैंने तेरे लिए…,

सजाया है एक सपना,

चाहे थम जाए ये,

धड़कन मेरी,

पूरा करुँगी ये साथ,

पूरा करुँगी ये साथ…”

अजनबी महिला – Wow…! Really! बहुत ही सुंदर है...! दुनिया में बहुत से लोग देखी है जो खुद की फ़िक्र करते हैं, अपनी family की या अपने किसी ख़ास करीबी की फ़िक्र करते हैं पर, जिंदगी की फ़िक्र... It’s really awesome... सच कहूं तो ये सोच सभी की नहीं हो सकती।

श्रुति – Thanks for the compliment Aunty! पर मैंने तो इसमें कुछ सोचा ही नहीं है। बस मेरे दिल से जो भी आवाज़ निकला मैंने सिर्फ उसी को ही गाया...

अजनबी महिला - दिल से...!

श्रुति - हम...! जिंदगी के रास्ते जब किसी ऐसे मोड़ पर ले आये जहां साथ चलने के लिए कोई हमराही ना हो उस समय दिल ही हमारा सब कुछ होता है। सिर्फ उसीपे यकीन रहता है, सिर्फ उसीसे ख्वाहिशें की जा सकती है

अजनबी महिला – कितनी प्यारी-प्यारी बातें करती हो तुम! तुम्हारा नाम क्या है बेटा?

श्रुति - "श्रुति"

अजनबी महिला - बहुत ही अच्छा नाम है। हम...! अब समझ में आया की क्यों तुमसे कुछ सुनने को बार-बार मन होता है। क्या तुम यहां रोज़ आती हो…?

श्रुति – हम...! रोज़।

अजनबी महिला - तो कल यही पर मुलाक़ात हो सकती है...?

श्रुति - हाँ! Why not! By the way, आपके बारे में भी तो कुछ बताइये…!

अजनबी महिला – I’m J.J, जान्हवी जोशी, the singer…!

श्रुति – Oh no…!

अजनबी महिला – क्यों! नहीं हो सकती...?

श्रुति – नहीं…! मेरा मतलब है की बहुत से गाने सुने हैं मैंने आपके बस कभी चेहरा नहीं देखा था।

जान्हवी – it’s ok बेटा!

Ok! तो फिर मिलते हैं कल; इसी समय, इसी जगह, उम्...?

श्रुति – Sure Ma’am…!

मेरे दोस्त और वो लोग जो मुझे करीब से जानते थे वो सब कहते थे की मैं वायलिन बहुत अच्छा बजाती हूँ। इसके तार को छूते ही अपनेआप कुछ अनोखा, कुछ सूंदर सी धुन बन जाति है। सायद ये सब इसलिए क्यूंकि, इस वायलिन को बजाना मैंने अपने जिंदगी की एक आदत सी बनाली थी।

और रही बात मेरे गीत का तो मैंने कहा कि वो मेरे दिल की आवाज़ थी पर, वो आवाज़ मेरे दिल की खुसी की थी या उसके रोने की ये बात किसी को भी पता नहीं था। जब भी कोई गीत मेरे होठों से निकलती थी तो अपने साथ ये सवाल जरूर लेके आती थी की आखिर क्यों है इसके शब्दों में इतने दर्द, क्यों हर बार ये गीत किसी कहानी की और इशारा करती है जिसके वारे में कुछ ना जानते हुए भी जानी पहचानी सी लगती है। तक़दीर ने इसका जवाब मुझे बहुत अलग तरीके से दिया; एक अजनबी के रूप में।

श्रुति - पापा...!!! संभलकर…!

एक अजनबी – Sorry, भाई साहब! गलती से टकरा गया। actually, मैं थोड़ी जल्दी में हूँ, इसीलिए…

पंकज – It’s Ok! कोई बात नहीं। कभी-कभी हो जाता है ऐसा। I’m ok. You can go.

…………….

अरे श्रुति बेटा! ऐसे क्या देख रही हो…?

श्रुति – I love you, पापा!

पंकज – I love you too my गुड़िया…! लेकिन अचानक पापा को इतना प्यार क्यों…? क्या बात है…?

श्रुति - कुछ नहीं! बस यूँ ही...

पापा! क्या आपको याद है कि पहले कैसे आप गुमसुम और चुपचाप रहा करते थे…? चेहरे पर हमेशा गुस्सा और जिंदगी मैं तन्हाई रहा करती थी आपकी। छोटी छोटी बातों पर चिड़ जाते थे आप। मुझे बहुत डर लगता था आपसे बात करने के लिए।

पंकज - हाँ बेटा! याद है। सब कुछ याद है। इतनी बड़ी सी दुनिया में कहीं खो दिया था मैंने अपनेआपको। ना मुझे मेरी खुद की पहचान थी और ना ही मेरी जिंदगी की। एक अधूरा इंसान था मैं...

श्रुति - अधूरा इंसान...!

पंकज - हम...! जो जिंदगी के राहों में चलते-चलते अपने दिल की वो कीमती अधूरे हिस्से को खो देता है वो अधूरा इंसान ही होता है। मेरी जिंदगी की उस एक गलती ने ये साबित कर दिया है की जिंदगी में और किसी की कदर हो या न हो लेकिन उस इंसान की कदर जरूर करनी चाहिए जो तुम्हे उसके जान से भी बढ़कर मानता है। जिंदगी में कुछ समझ आए या न आए लेकिन उस इंसान की चाहत को जरूर समझना चाहिए जिस के लिए सिर्फ तुम्हारा प्यार ही जीने की एक वजह हो।

बस यही मेरी गलती थी। सब कुछ आँखों के सामने होते हुए भी ना मैं कुछ समझ पाया और नाही कुछ देख पाया और वो...!

उसके बाद नफरत सी हो गयी मुझे अपने आप से। जिंदगी से कोई प्यार नहीं रहा। ऐसे दो राहे में खड़ा था मैं जहां ना मैं ठीक से जी पा रहा था और ना ही चाह कर मर सकता था।

ऐसा नहीं है कि मेरे पास जीने की वजह नहीं थी लेकिन अपनी की हुई उस गलती की के बोझ ने मेरे सारे सपने और ख्वाहिसों को अपने पैरों निचे कुचल दिया था। मेरे पास मेरी जिंदगी को फिर से एक नए अंदाज़ से देखने की हिम्मत ही नहीं थी। अपने आप से लढता रहा और दिल में गुस्सा और नफरत की जगह बढ़ता गया।

"अधूरा इंसान" मैं भी वैसी कुछ थी। सब कुछ आखों के सामने था और मैं कुछ पहचान न सकी। हर वक़्त, हर जगह बस उन सवालों के जवाब तलाश करती रही जिनपे सिर्फ मेरा हक़ नहीं था। मुझे ये बिलकुल भी मालूम नहीं था की हमारी जिंदगी सिर्फ हमारे जीने के लिए नहीं होती है क्यूंकि, वो जिंदगी जिंदगी नहीं कहलाती जो किसी और के जिंदगी को खुसी न दे सके। पूरी तो नहीं पर तब तक मेरे दिल को भी कुछ-कुछ डर सा होने लगा था की मैं अपने जिंदगी को कहीं खो रही हूँ।

शाम ढलने के बाद जब घर लौटने का ख़याल आता था तो दिल मैं घबराहट सी होने लगी थी। क्यूंकि मैं जानती थी घर लौटने पर कोई भी मेरे लिए खुस नहीं होगा, कोई भी मेरा बेसब्री से इंतज़ार नहीं कर रहा होगा। मैं हर रोज़ घूमती रहती थी, यहां से वहाँ, नयी-नयी जगह। सब कुछ अजनबी था मेरे लिए। जगह, लोग, उनकी बातें, आदतें, जिंदगी, सब कुछ। हर रोज़ मैं खुशियां देखती थी, ग़म देखती थी, हसी देखती थी, आशु देखती थी, पर जब उन सब को मैं अपने जिंदगी के साथ तुलना करने की कोशिश करती थी तो मेरी जिंदगी मुझे खाली और बेमतलब नज़र आता था। क्यूंकि जिंदगी किस के लिए जिया जाता है वो मुझे मालूम ही नहीं था...

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

चाहत जो... वो चाहत ही नहीं

तू ना जो अगर उसमें शामिल नहीं

चाहत जो... वो चाहत ही नहीं

तू ना जो अगर उसमें शामिल नहीं

सासें है तेरी

धड़कन है मेरी...

मिल जाए ये दोनों तो

मिट जाए सारे ग़म

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

दिन मेरा कटता नहीं...

पंकज - श्रुति...!!!

श्रुति - पापा...! ये आपने लिखा है...?

कितनी सुंदर है। मुझे तो पता ही नहीं था की मेरे पापा मैं इस तरह की भी कोई हुनर है।

पंकज - कहां से मिला ये तुमको…?

श्रुति – Actually मैं आपके कमरे में आपके कपड़े रखने आयी थी। आपके अल्मिराह खोलते वक़्त मैंने देखा नीचे बहुत धूल जम गया है। तो बस उसीको साफ़ करते वक़्त वहाँ मुझे ये डायरी मिली।

पंकज - तुमने ये डायरी पढ़ी...?

श्रुति - पूरी तो नहीं लेकिन..., थोड़ी-थोड़ी।

पंकज – How dare you…? तुम में क्या इतनी भी अक्ल नहीं है कि किसी की पर्सनल डायरी को ऐसे पढ़ा नहीं करते...?

श्रुति - पापा! मैं तो बस ऐसे ही...

पंकज - ऐसे ही...! What…? Stay in your limits…ok…

श्रुति - Limit...! पापा, मैंने ऐसी क्या गलती की है की आप मुझे खुसी का एक पल भी नहीं देना चाहते हैं…? हर बार हर बात पर मेरे लिए limits होती है। मेरी किसी भी दोस्त की जिंदगी में ऐसी limits नहीं है। तो फिर सिर्फ मेरे लिए क्यों? क्यों मैं आपसे कोई भी चीज़ खुल कर नहीं कह सकती…? क्यों हर दिन मुझे आपसे time मिलने की इंतज़ार करनी पड़ती है…? क्यों हर त्यौहार, हर खुशी में आप मेरे पास नहीं होते…? क्यों...?

पंकज - तुम्हारे इन फालतू सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है। Do you understand? Now leave…

श्रुति – Yes Papa! Of course! I know आपके पास मेरे किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं होगा। क्यूंकि, आपकी अपनी जिंदगी में आप खुद एक सवाल बन के रह गये हैं। " पंकज सिंघानिया " The owner of India’s big garments industry “Favil”। Project, meeting, manufacturing, profit, loss, यही सब याद है आपको। क्यूंकि अब यही सब आपकी जिंदगी है। इन सब के सिवा आपको न किसी चीज़ की आदत है और नाही जरुरत; मेरी भी नहीं...

जानते हो पापा…? मेरे सारे friends के पपायें उन्हें स्कूल छोड़ने आते हैं, लेने आते हैं, उनके पढ़ाई और स्कूल में की हुई बदमाशियों का हालचाल पूछने आते हैं। जब वो सब मैं देखती हूँ तो मेरे दिल को दर्द होता है। अंदर ही अंदर मैं तडफने लगती हूँ, रोने लगती हूँ की मेरे पास सब कुछ होते हुए भी दुनिया की इस भीड़ में मैं बिलकुल अकेली हो गयी हूँ। हक होते हुए भी मेरे हक की प्यार से मैं कोसो दूर खड़ी हूँ।

क्या कभी आपको मेरे दिल की उस दर्द का थोड़ा सा भी एहसास होता है...?

ये जो सजा मुझे हर रोज़ मिलती है क्या वजह है उसकी...? बोलिये पापा! बोलिये...!

पंकज – Get out…!

श्रुति – But…

पंकज – I say Get out…!!!

उस दिन पापा से ये सब कहना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन ना चाहते हुए भी कहना पड़ा। मुझे आज भी याद है उसदिन जब मैं ये सब कह रही थी तब पापा ने गुस्सा दिखाया, मुझे डांटा पर घर से निकलते समय जब मैंने पीछे मुड़कर देखा तब उनके आखें भीगे हुए थे। क्या वजह थी उन आशुओं का? मेरी की हुई इतने सारे सवालों में कहीं ना कहीं मैंने कोई ऐसी बात की थी जिसने उनके दिल में छुपे हुए दर्द को बहार लाने की कोशिश की। पर वो ऐसा कौनसा दर्द था जिसने पापा को अपने आपको न पेहचानने के लिए मजबूर कर दिया था? इन सारे सवालों का जवाब उसदिन मुझे कुछ-कुछ मिलचुका था; पापा के उस डायरी के पन्नो में…

हां! उस दिन पापा से की हुई मेरे सारे सवाल एक कोशिश थी पापा के दिल की बात उनके जुबान पर लाने की। वो मजबूर थे; अपने दिल में छुपाई हुई उस राज़ के वजह से जिसका जिक्र उन्होंने कभी किसी के सामने नहीं किया। एक ऐसी कहानी जिसने उनको वक़्त के जंजीरों में जकड लिया था। पर आखिर वो कहानी थी क्या? बस इसी सवाल का जवाब उसदिन नहीं मिल पाया मुझे। जिंदगी की वो कौनसा दर्दनाक हिस्सा है जिसकी तरफ पापा दोबारा मुड़ कर देखना नहीं चाहते हैं, इस बात को जान ने की कोशिश तो नाकामयाब रही लेकिन पापा के आखों से निकल रहे उन आशुओं के बूंदों ने मेरे तलाश को एक हल्की सी रौशनी जरूर देदी थी।

मैंने जब से दुनिया को पहचाननी शुरू की, खुशी क्या होती है, ग़म क्या होती है, ये जानने की कोशिश की, तब से कभी भी पापा से वो प्यार, वो अपनापन नहीं पायी थी जो एक बेटी को मिलनी चाहिए। ना कोई हसी-मजाक, ना कोई शरारतें, ना कोई फ़िक्र, ना कोई बेचैनी, कुछ नहीं मिली जो मुझे एक पिताह से से मिलनी चाहिए। पर इन सब के बाबजूद मेरा दिल कभी ख्वाहिस करना नहीं छोड़ता था, कभी नहीं सोचता था की मेरी ये तमन्ना कभी पूरी नहीं हो सकेगी। सायद इसलिए क्यूंकि जो बातें जुबान कभी कह नहीं पाता उनको आखें साफ़ बयां कर देती है। और पापा के आखों में दिख रहे उनके छुपे हुए प्यार का वो हल्का सा झलक मेरे अरमानों को दिल में हमेशा ज़िंदा रखा।

बस बिना कुछ सोचे उस दिन मैंने अपनी जिंदगी की मकसद बदल दी। जिंदगी की खुशियों को ढूंढ़ने की तलाश मैंने वैसे ही जारी रखा जैसा पहले था; लेकिन सिर्फ मेरे अपने लिए नहीं; पापा के लिए भी। क्यूंकि उस दिन मेरे दिल को ये पूरा यकीं हो गया था की मेरी खुसी मुझे तभी मिल सकती है जब पापा की जिंदगी में उनकी हिस्से की खुसी वापस आ जायेगी। 'पर कैसे?', 'कहाँ से शुरू करूँ?', समंदर के किनारे पर बैठ कर यही सब सोच रही थी की तभी...

जान्हवी - इतनी खामोशी...? क्या बात है…? आज कुछ गाओगी नहीं…?

श्रुति - नहीं Ma’am! आज गाने का बिल्कुल मन नहीं हो रहा है।

जान्हवी - वैसे पूछने का हक़ तो नहीं है फिर भी अगर तुम बुरा न मानो तो क्या मैं पूछ सकती हूँ की वो ऐसी क्या बात है जिसने आज तुम्हारे दिल के उन मीठे-मीठे शब्दों को बाहर आने पे रोक लगादी है।

कहते हैं, "अगर तुम किसी चीज़ को दिल से चाहो तो एक ना एक दिन वो तुम्हे जरूर मिल जाती है फिर चाहे वो जिंदगी का कोई खोया हुआ पल ही क्यों ना हो।"

ऐसा ही कुछ उस दिन मेरे साथ भी हुआ। जब Ma’am मुझसे मेरी परेशानी की वजह जाननी चाहि तो मुझे ऐसा लगा की मेरे सवालों के खोये हुए जवाब कहीं ना कहीं मुझे उन्हीके पास मिलेंगे। और जब मैंने कुछ देर उनसे बात की तो मुझे आहिस्ते-आहिस्ते मेरे सारे सवालों के जवाब तक पहुँचने का रास्ता नज़र आने लगा।

श्रुति - दुनिया में कुछ रिश्ते इजाजत लेकर शुरू नहीं की जाती; एहसास से बन जाति है। मेरा और आपका रिस्ता भी कुछ ऐसा ही हो चुका है। कुछ भी बिना जिजक के पूछ सकती हैं आप मुझसे।

एक बात कहूं आपसे…?

जान्हवी - हाँ कहो...!

श्रुति - कल जब आपने मेरे गीत की तारीफ़ करते हुए कहा की मेरी जैसी सोच सभी की नहीं हो सकती तो मैंने आपसे कहा की वो गीत मेरी सोच की हिस्सा नहीं थी। वो सिर्फ मेरे दिल की एक आवाज़ थी।

जान्हवी - हम...! याद है मुझे। तो...? कुछ गलत कहा था तुमने...?

श्रुति - अधूरी सच कही थी मैंने आपसे। वो गीत सिर्फ मेरे दिल की आवाज़ नहीं थी बल्कि मेरे दिल मैं छुपे हुए दर्द की एक पुकार भी थी।

जान्हवी - हम...! I know…

श्रुति - मतलब...?

जान्हवी - उसदिन जब तुम वो गाना गा रही थी तब तुम्हारी आखों को देखा था मैंने। बहुत कुछ बयां कर रही थी। हर बात की गहराई नाप ना नाउम्किन था मेरे लिए पर एक चीज़ जो बार-बार मेरे दिल में दस्तक दे रही थी, वो थी 'तुम्हारी तन्हाई'...

श्रुति - हाँ! सच कहा आपने! "तन्हाई", बस यही मेरी जिंदगी की असली पहचान है।

जान्हवी - कहीं तुम्हारे आँखों से निकल रहे आशु यह तो बया नहीं कर रहे हैं की तुम तक़दीर के इस फैसले के आगे कमजोर पड़ रही हो...? अगर ऐसा है तो सायद आगे जा कर तुम्हे वो तकलीफ मिलेगी जो तुम्हारे हक़ की है ही नहीं। दर्द तब तक तुम्हारे अंदर से जुदा नहीं होता जब तक तुम अपने आपको किसी के हमदर्द नहीं बनाते। तुम कब और किसके हमदर्द बनोगे इस बात का फैसला सिर्फ तक़दीर ही करता है। तुम्हारा दर्द किसके दर्द से जुड़ा है, तक़दीर इस बात को किसी न किसी जरिये से तुम्हे दिखाने की कोशिश जरूर कर रहा होगा...

श्रुति - हाँ! तक़दीर ने दिखाया मुझे की मेरा दर्द किस के साथ जुड़ा है। खत्म करना चाहती हूँ मैं उस दर्द को। पर उस दर्द तक पहुँचने के लिए रास्ता कहाँ से शुरू होती है ये मुझे नहीं मालुम। यही एक बात मेरे हौसले को बार-बार तोड़ रही है और वापस उस अँधेरे की ओर धकेलने की कोशिश कर रही है जिस से मैं निकलना चाहती हूँ।

जान्हवी - अगर तक़दीर ने तुम्हे उस दर्द से पहचान करवाया है तो उसमें तुम्हे उस दर्द तक पहुँचने का रास्ता भी मिल जायेगा। बस एक कदम तुम्हे भरोसे के साथ उठाना होगा। तुम्हे पहचानना होगा उस अनमोल जिंदगी को, तुम्हे उस धड़कन को पहचानना होगा, पहचानना होगा की वो कीमती सासें किसकी है?

"भरोसा" जिसकी कीमत कल तुम्हारा दिल तुम्हे समझाने की कोशिश कर रहा था तुम्हारी ही गाई हुई गीत के जरिये। तुम्हे यह दिखाने की कोशिश कर रहा था की इस जिंदगी में कोई भी चीज़ बेवजह नहीं होती। ख़ास कर के तब जब हम किसी बड़े मुसीबत, परेशानी या दर्द मैं होते हैं। यह दर्द, परेशानी, मुसीबत एक-एक दरवाज़ा होती है जिंदगी की नयी खुशियों तक पहुँचने की। बस हमें किसी भी तरह उस दरवाज़े को खोलनी होती है।

तुम यही सोच रही हो ना की ये सब बातें मैं तुम्हें इतनी सफाई के साथ कैसे कह रही हूँ…? वो इसलिए क्यूंकि आज जिंदगी के जिस पडाब पर तुम खड़ी हो, उस पडाब को मैं पहले से ही पार कर चुकी हूँ। इतना आसान नहीं था मेरे लिए। जिंदगी के सफर का एक ऐसा हिस्सा जहां आगे की मंजिल को सिर्फ हमीको चुनना होता है। एक ऐसा इम्तेहान जिसमें सिर्फ बिस्वास की जीत होनी चाहिए। और मेरे जिंदगी की इस पडाब ने आज मुझे यह सिखाया है की जिंदगी में प्यार की एहमियत क्या होती है। दुनिया की सारी एह्सासें एक तरफ और प्यार की एहसास एक तरफ। हमारी की हुई हर चाहत एक सीमा में बंधी होती है। चाहत पूरी होने पर खुसी और पूरी ना होने पर ग़म मिलती है। लेकिन सिर्फ प्यार ही एक ऐसा अनोखा चाहत है जिसके पूरा होने पर तो खुसी मिल जाती है लेकिन पूरा न होने पर ग़म के साथ मिलती है बर्दाश्त न कर पाने वाली तड़फ। एक ऐसी तड़फ जो हमें ना जीने देती है और नाही मरने।

क्या तुम ऐसी ही एक प्यार की कहानी सुनना चाहोगी…?

श्रुति - हम...!

जान्हवी - तो सुनो!

ये कहानी शुरू होती है एक छोटी सी लड़की से; बिलकुल तुम्हारी तरह। उसे भी गीत, संगीत, धुन, इन सबसे बहुत लगाब था। वो हमेशा ही इन सब में अपनी आने वाली जिंदगी की एक सूंदर सी परछाई देखती थी। हर रोज़ एक सूंदर सा सपना सजाती थी और उसको अपने दिल में कैद करके रखती थी क्यूंकी, कोई मंजिल नहीं थी उसके पास उन ख़्वाबों को हकीकत में बदलने के लिए। उसके घर में किसीको पसंद नहीं था की वो गाना गाये, अपने जिंदगी में संगीत को एक ख़ास जगह दे। वो तो सिर्फ उस लड़की को एक मामूली सी जिंदगी और उसके जिम्मेदारियों में हमेशा के लिए कैद कर के रख देना चाहते थे। पर दुनिया में ऐसा कोई फैसला नहीं जो दिल के किए हुए फैसले को झुका सके। कई साल बाद वो छोटी सी लड़की देश की सबसे अच्छे college की most popular और wanted girl बन गयी। Exam की result निकलती थी तो सबके दिल में ये यकीन सा रहता था की list के top में उसीका नाम होगा। हर बात को एक सुन्दर और हलकी सी मुस्कराहट के साथ कहना उसकी आदत थी। College में ना किसीसे झगड़ा और ना ही किस बात का घमंड थी उसमें। जुबान की हदों को तोड़ कर चेहरा ऐसा कुछ बयां कर रहा था की किसी का भी दिल प्यार की गहराईओं को समझने के लिए मजबूर हो जाये। सायद उसे देखते ही college के हर लड़के के दिल में एक बार यह ख़याल जरूर आता था की काश वो उनके जिंदगी का एक हिस्सा बन जाती तो उनके सारे अरमान पुरे हो जाते।

ये सब सिर्फ वो बातें थी जिसे उसका दिल सभी को दिखाने की कोशिश कर रहा था। एक ऐसी बाहरी जिंदगी की पहचान करवा रहा था जिस में सब कुछ है; किसी चीज़ की कोई कमी नहीं। पर उसके जिंदगी का वो हिस्सा जिसमें उसके ज़िंदा रहने का सच, प्यार और खुसी को तलाशने की वजह था, वहाँ तक तो किसी ने पहुँचने के बारे सोचा भी नहीं था। किसी ने कोशिश नहीं की थी उसके दिल की उस गहराई को समझने की जहां पर उसके प्यार का जान बसता है; उसकी आत्मा।

कुछ उसी तरह की तलाश थी, कुछ उसी तरह के रास्तें थे जहां पर आज तुम खड़ी हो और उसको भी उसकी मंजिल नज़र आती थी इसी समंदर के किनारे पर...

हमसफ़र... ओ मेरे हमसफ़र

इतना बता दे ज़रा... तू है कहाँ

सासें मेरी... मेरी हर खुसी

तुझमें ही कहीं... है छुपा...

हो गयी हूँ मुझमें

खुद मैं कैद सा

बेपनाह चाहत की

कैसी मिल रही सजा

आदतें... आदतें...

गुम हो रही है सभी

खुशबुएँ... खुशबुएँ...

फ़ैल रही है हर घडी

कैसी है बेचैनियां...

पास ले जा मुझे... ओ मेरे जानिया...

जानिया... ओ मेरे जानिया...

इतना बतादे मुझे... तू है कहाँ

धड़कन मेरी... मेरी आसिकी

तुझ में ही है... ओ हमनवा...

हमसफ़र... ओ मेरे हमसफ़र

इतना बता दे ज़रा... तू है कहाँ

सासें मेरी... मेरी हर खुसी

तुझमें ही कहीं... है छुपा...

श्रुति - कितनी सुन्दर lines हैं। किसी खोये हुए सपने का इंतज़ार साफ़ नज़र आ रहा है। अगर तक़दीर सुन सकता तो सामने ला कर रख देता उस सपने को जिसमें उसके जिंदगी का असली पहचान है।

जान्हवी - हाँ! बिलकुल सही कहा तुमने। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

श्रुति - मतलब...?

जान्हवी - संगीत से दर्द का बहुत ही गहरा रिस्ता है। उस दिन जुबान पर एक मीठी सी गीत थी और दिल में ढेरों दर्द। संगम तो होना ही था। और इस संगम मैं चाहत की हद इतनी ज्यादा होती है की तक़दीर भी उस आवाज़ को सुनने के लिए मजबूर हो जाता है।

बरसों की लम्बी इंतज़ार के बाद तक़दीर ने उस लड़की को जो तोफा दिया था वो तोफा उसके दिल को इतना भा गया की उसने पूरी जिंदगी केलिए उसे अपनी सांस लेने की वजह बना ली।

कहते हैं 'एक संगीत तब तक संगीत नहीं कहलाती जब तक वो किसी सच्चे दिल से निकली हुई तारीफ़ की हकदार ना बनी हो'। बस यही हुआ... उसे तारीफ़ मिली; एक सच्चे दिल की तारीफ़ और सीधा उसके दिल तक जा पहुंची क्यूंकि वो तारीफ़ सिर्फ एक तारीफ़ नहीं थी बल्कि वो जवाब थी जिसमें उसके बरसों की तलाश पूरा होने का रास्ता था।

"हमसफर, हमनवा या जानिया, जिस किसी को भी तुम ये खिताब देना चाहती हो, I’m sure की वो सख्स बहुत ही खुशनसीब होगा। प्यार की कहानी तो कहीं से भी शुरू हो सकती है लेकिन इसका अंत सिर्फ एक जगह पर होती है; वो है हमारी आत्मा। तुम तुम्हारी जिंदगी मैं जिसे भी अपना जिबनसाथी चुनोगी तुम्हारा प्यार पूरी जिंदगी, हर जगह, हर मोड़ पर उसका साथ देता रहेगा। मैं एक लड़का हूँ और एक लड़के की चाहत के नजरिये से देखने से तुम्हारी गायी हुई गीत में साफ़ दिखाई देता है की तुम्हारा प्यार तुम्हारी आत्मा का एक ख़ास हिस्सा है जिसके बिना सायद तुम्हारी जिंदगी हमेशा अधूरी रहेगी। और आत्मा से लिखी हुई प्यार का कोई अंत नहीं होता।"

लड़की – Thank you…! Thank you very-very much…! मुझे वो जवाब देने के लिए जिसमें सायद मेरे जिंदगी के सारे सवाल कैद थे।

जान्हवी - उस ‘Thank you’ का जवाब लड़के ने बस मुस्कुराते हुए दिया और उस साम की बातचीत वहीँ ख़त्म हो गयी। रात में bed पर सोयी हुई उस लड़की को बिलकुल भी सुकून नहीं मिल रहा था। सिर्फ वही रात नहीं आगे के कहीं रातें उसने सिर्फ करवटें बदलते हुए काटी। एक ऐसी चीज़ जिसकी जरुरत जिंदगी में सबसे ज्यादा हो, जिसके दूर हो जाने से आहिस्ते-आहिस्ते दिल की बेचैनी बढ़ जाति हो, जिसके बिना एक पल भी काटना नाउम्किन के बराबर हो जाए। पर ऐसा सब कुछ तो तब होता है जब हमसे हमारी सासें छीन रही होती है! "तो क्या पहली मुलाक़ात में दिल ने किसी को ऐसा चाहा है की वो साँसों से भी कीमती बनगया है?" हर कहीं ढूंढ़ती रही वो इस सवाल का जवाब। फिर एक दिन अचानक वो जवाब खुद उस लड़की के पास आया; बिलकुल उसी तरह जिस तरह वो मन ही मन ख्वाहिस कर रही थी।

एक बहुत बड़ी ‘Art Exhibition’ चल रही थी। बहुत बड़े-बड़े कलाकारों की तरह-तरह की खूबसूरत Paintings शामिल की गयी थी उसमें। हज़ारों लोगों की उस भीड़ मैं कहीं से वो आवाज़ लड़की के कानों तक आ पहुंची जिसकी उसे बेसब्री से इंतज़ार थी...

"पहली नज़र मैं जो प्यार होता है वो ज्यादा देर नहीं टिकता, प्यार मैं जितनी ज्यादा मुलाकातें हो भरोसा उतना ज्यादा बढ़ता है, अच्छे से एक दुशरे को जाना जा सकता है, समझा जा सकता है" जब भी सच्चे प्यार की definition की बात आती है तो यही सब बातें निकलती है हर किसी की जुबान से। थोड़ी सी भी सच्चाई नहीं है इन सब बातों में क्यूंकि, वक़्त के साथ प्यार का कोई नाता ही नहीं होता है। हम किसीसे कितनी बार मिले ये जरुरी नहीं बल्कि हम उसे कैसे और किस वजह से मिले ये जरुरी है। फिर... प्यार होने के लिए तो एक पल ही काफी है। वो पल जिसमें किसी से बेपनाह प्यार करने की वजह नज़र आ जाये।

हर किसी के जिंदगी में छोटी मोटी जरूरतें, कमियां लगी रहती है लेकिन वो एक ख़ास जरुरत जिसके पुरे हुए बिना जिंदगी के राहों में आगे एक कदम भी बढ़ाना मुश्किल हो जाये, उसे पूरा करने के लिए तक़दीर हमारे पास किसी ख़ास को ही भेजता है। पर वो ख़ास कौन है, कहाँ है, कैसे पहचाना जाए उसे, कभी-कभी इसी तरह के बहुत से सवाल खड़े हो जाते हैं हमारे सामने जिसका जवाब सायद हर किसी के पास नहीं मिल सकता। तब आस पास की सारी चीज़ों को भूल कर, अपनी आखें बंद कर के, शांत दिमाग से, एक बार वही सवाल अपने दिल से पूछो, तुम्हे तुम्हारा जवाब फ़ौरन मिल जाएगा..."

जान्हवी - लड़की ने ठीक वैसा ही किया। अपनी आँखें बंद की, सब कुछ भुला दिया और अपने दिल को हर एहसास से दूर एक नए एहसास की तलाश में जोड़ कर उसे पूछा... “कौन है वो...?”

श्रुति - फिर...?

जान्हवी - जिंदगी में खुसी से बड़ी दौलत और कुछ भी नहीं है और वो जब मिलता है तो उस खुसी को जुबान से बयां नहीं किया जा सकता। ऐसा ही कुछ हाल उस लड़की की भी थी अपने दिल से पूछी हुई सवाल का जवाब सुन कर। उस लड़की ने जिंदगी को देखा था, दुनिया को देखा था, दुनिया में रहने वाले लोगों को देखा था लेकिन उन लोगों में उसे ऐसा कोई नहीं दिखा जिसमें वो अपनी परछाई देख सके। जिंदगी की सबसे बड़ी खुसी तब मिलती है जब कोई तुम्हारे सबसे कीमती सपने को समझने लगता है, उसकी कदर करने लगता है, तुम्हारे खोये हुए हिस्से से तुम्हे मिलवाता है। तब उस सख्स से ज्यादा अपना जिंदगी में और कोई नहीं लगता और उस दिन उस लड़की के जिंदगी का वही कीमती सख्स उसके सामने था...

श्रुति - उसके बाद...?

जान्हवी - उस लड़की को अपने सारे सवालों के जवाब मिल गए थे। उसे ये पूरा यकीन हो गया था की उसकी सासें अब किसी के दिल में कैद हो चुकी है। पहली नज़र में ही उसे प्यार हो गया; सच्चा प्यार। पहली बार किसी ने उसकी चेहरा और जिस्म की नहीं बल्कि उसकी आत्मा की तारीफ़ की थी। उसकी उन लब्ज़ों की तारीफ़ की थी जिसमें उसका दिल साफ़-साफ़ नज़र आता है। एक सच्चे जीवनसाथी की असली पहचान होती है की वो दिल को किस नज़रिये से पहचानता है, किसी के देखे हुए सपने की कीमत क्या है उस के लिये। कल जिंदगी में अगर कोई ऐसा मोड़ आ जाये जब साथ चलने वाला पास कोई भी ना हो, सहारा देने वाला कोई ना हो, तब क्या वो साथ देगा...? 'हाँ!’ यही जवाब दिया उसके दिल ने।

अपने एक दोस्त के जरिये उसने उस लड़के के वारे में सब कुछ पता किया। एक बहुत बड़ी कंपनी का मालिक था वो। पैसा, पावर, गाडी, बँगला, नौकर, चाकर, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी उसके पास। बार-बार अपनी जिंदगी को उस लड़के के जिंदगी से मिलाने की कोशिश कर रही थी और हर बार सिर्फ एहसास के सिवाए और कुछ नहीं मिलता था दोनों में। "एहसास" किसी भी दिल को आईने की तरह साफ़-साफ़ देखने का एक लौता रास्ता। प्यार तब गहरा होता है जब दर्द से दर्द मिलता है, कमियों से कमियां मिलता है। भल्ले ही बाहर से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन फिर भी ऐसा कुछ था उस लड़के के जीवन में जिसका पूरा होना जरुरी था। यही वजह थी की अकेली हो कर भी उसके जिंदगी से अकेलापन आहिस्ते-आहिस्ते दूर होने लगा था, बरसों से जिस तन्हाई ने उसके जिंदगी को अपने काबू में जकड रखा था उस तन्हाई को वो भूलने लगी थी।

अगले ही दिन उस लड़के से अपने दिल की बात कहने का फैसला किया उसने। वो सीधा जा कर उसके office में पहुंची पर लड़के ने मिलने से मना कर दिया। ४-५ बार वो इसी तरह लड़के के office की चक्कर लगाती रही लेकिन लड़का उसे एक बार भी मिलने नहीं आया। हाँ! ये सच है की लड़के ने उसे प्यार के वारे में पहले कोई बात नहीं की थी। नहीं जानती थी लड़की की लड़के के जिंदगी में प्यार की कोई एहमियत है भी या नहीं। पर अगर कोई बात ही नहीं थी तो वो सामने क्यों नहीं आ रहा था। ये सॉक लड़की के दिल में जल रही प्यार की उस छोटे से दिए को और भी तेज़ कर रहा था। उसने तय किया, “अब और नहीं”। कल वो लड़के से जरूर बात करेगी, अपने दिल में बनी उस नए एहसास को एक बार उस तक जरूर पहुंचाएगी फिर चाहे...!

एक दम से अचानक वो अपने दिल की बात उसे कहने जा रही थी। देखा जाए तो एक ऐसा रास्ता जिसकी मंजिल नज़र नहीं आ रही थी। अगर, उसने मना कर दिया तो क्या वो सुन पाएगी…? वो दर्द सहना आसान होगा उस के लिए…? यही सवाल पूछा उस लड़की के दोस्त ने। तो लड़की ने जवाब देते हुए कहा...

"लाखों, करोड़ों में सिर्फ वही क्यों…? और कोई क्यों नहीं। बार-बार न जाने कितने सपने, अरमानों को मरते देखा है। तो फिर आज अचानक उन सारे खोए हुए सपनों को वापस पाने का रास्ता क्यों नजर आ रहा है मुझे? साफ़-साफ़ देखा है उसके आखों में मैंने उस चाहत को। बिलकुल मुझसा है। पास सब कुछ है फिर भी अपनी जिंदगी से कोसों दूर। आखें सब कुछ कह देती है। अब तो दिल में प्यार की हद इतनी बढ़ चुकी है की वो ना सुनना ही नहीं चाहता। फिर भी अगर वो ना कह दे तो ना मैं जिद्द करुँगी और ना ही कुछ पूछूँगी... क्यूंकि मुझे पता है की उसका ना उस के लिये कोई बड़ी मजबूरी ही होगी..."

जान्हवी - भरोसे के आगे डर की कोई हैसियत नहीं होती। ये बात उस दिन लड़के के office में ही साबित हो गयी। उस दिन office में बहुत ही जरूरी meeting चल रही थी। देश भर के बड़े-बड़े Companies के ख़ास-ख़ास लोग थे वहाँ पर। Office पूरी तरह से busy था। जब लड़की और उसकी दोस्त वहाँ पहुँच कर लड़के से मिलने की बात की तो...

Receptionist – Ma’am! आप यहां ४-५ बार आ चुकी है और हर बार आपको यहां से निराश हो कर जाना पड़ा है। आपको समझ जाना चाहिए की Sir आप से मिलना नहीं चाहते हैं।

लड़की - आज मैं तय कर के आयी हूँ की मिल के ही जाउंगी।

Receptionist - आज मुलाक़ात करना impossible है क्यूंकि आज Company में बहुत बड़ी meeting चल रही है। ऊपर से आपने Sir से मिलने के लिए कोई appointment fix नहीं की थी। So, I’m sorry… मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती।

लड़की - देखिये आज मेरा उनसे मिलना बहुत ही जरूरी है। मेरी पूरी जिंदगी का सवाल है। Please, मुझे सिर्फ एक बार उनके पास जाने दीजिए…।

Receptionist – समझने की कोशिश कीजिए Ma’am! Sir आज किसी भी हाल में आपसे नहीं मिल सकते। आप एक काम कीजिये आपका जो भी message देना है इस paper में आपके नाम के साथ लिख कर मुझे दे दीजिये। जब Sir free हो जाएंगे मैं उन्हें दे दूंगी।

लड़की - देखिये वो मेरा नाम नहीं जानते हैं लेकिन मुझे पहचानते हैं। आप एक बार मुझे मिलने तो दीजिये please!

Receptionist – Sir आपके नाम नहीं जानते हैं लेकिन आपको पहचानते हैं। यह किस तरह की अजीब बात कर रही हैं आप। देखिये आप जाइये यहां से। अगर Sir ने आपके इन बहकी-बहकी बातों को सुन लिया तो बहुत गुस्सा करेंगे। Please Ma’am! जाइये।

लड़की - Fine! मैं भी देखती हूँ वो कैसे नहीं मिलेंगे मुझसे। मैं यहीं इंतज़ार करुँगी उनके meeting खत्म होने तक। वो जब आएंगे तो मैं मिल कर ही जाउंगी।

Receptionist - अगर ५ मिनट के अंदर-अंदर आप office से बहार नहीं गयी तो मजबूरन मुझे security को बुलाना पडेगा।

लड़की के दोस्त - क्या कर रही है…? देख चल यहां से। अगर, यह बात तेरे घर में पता चली तो तू जानती है क्या होगा। बहुत बड़ा हंगामा हो जायेगा। वो security बुलाने वाले हैं। Please, मेरी बात मान चल यहां से!

लड़की - तूने सुना नहीं मैंने क्या कहा...? मैं मिले बगैर यहां से कहीं नहीं जाउंगी। मुझे इन लोगों से डरने की कोई जरुरत नहीं है। मैंने कुछ गलत नहीं की है।

Receptionist – Fine! Hello…! Guard! अंदर आओ और यहां एक मैडम खड़ी हैं उन्हें बहार लेकर जाओ।

………

लड़की - ये क्या बदतमीजी है...? Leave my hand! I say leave my hand!

लड़का - Stop...!!! What's all this going on…? ये मेरा ऑफिस है कोई grocery shop नहीं।

Receptionist - देखिये ना सर ये madam आपसे मिलने की जिद्द कर रही है। मैंने इन्हे बहुत समझाने की कोशिश की की आज company में बहुत बड़ी meeting चल रही है पर ये हैं की समझने को तैयार ही नहीं है। इसीलिए मजबूरन मुझे security बुलानी पड़ी।

कब से जिद्द किये जा रहीं है की मुझे सर से मिलना है, वो मुझे पहचानते हैं, मेरी जिंदगी का सवाल है, etc. etc…

लड़का - मैं पहचानता हूँ...! What non-sense!

Hello…! Who are you? और क्यों कर रही हैं आप ये सब…?

जान्हवी - कभी नहीं सोची थी वो कि उसे ये बात सुनने को मिलेगी। एक ऐसा ख्वाब देख लिया था उसने जिसके वारे में वो कुछ जानती ही नहीं थी। जिसे अपनी दिल की बात कह कर हमेशा केलिए अपना बनाने आयी थी वो तो उसे पहचान भी नहीं रहा था। फिर भी लड़की ने हिम्मत नहीं हारी। अपने नाम से लेकर पहली मुलाक़ात की किस्से तक, अपनी एहसास से लेकर दिल के हाल तक उसने उस लड़के को हर एक बात याद दिलानी की कोशिश करती रही लेकिन वो लड़का कुछ भी नहीं पहचाना। वैसे ही अनजान बन कर खड़ा रहा। लड़की प्यार की एक नज़र देखने केलिए तरसती रही पर लड़के ने गुस्से में भरी आखों से तकलीफ के सिवा और कुछ नहीं दिया।

लड़की - जिस सपने को मैं बचपन से हर जगह तलाश करती रहती थी वो अचानक बरसों बाद मुझे किसी के पास नजर आता है। एक शाम में वो शख्स मुझे इतना कुछ कह जाता है की उसकी कही हुई हर बात मुझे रात भर सोने नहीं देती। कितनी रातें मैंने यूँ करवटें बदल कर काट दी है। जितनी बार चैन और सुकून की तलाश करती रही हर बार मेरे साँसों को किसी के दिल में कैद पायी है। पागलों की तरह तलाश करती रही हर जगह की क्या है मेरी इस तड़फ की वजह। पर किसी के पास नहीं मिला। फिर अचानक कुछ दिन पहले...

"कभी-कभी जिंदगी मैं ऐसे सवाल मिल जाते हैं जिसका जवाब हर कोई नहीं दे सकता। तब मायूस ना हो कर, अपनी आखें बंद कर के बस एक बार वही सवाल अपने दिल से पूछो। तुम्हे एक ही पल मैं तुम्हारा जवाब मिल जायेगा।"

ठीक वैसा ही किया मैंने और मुझे मेरा जवाब भी मिला। पर दिल जिस सख्स को मेरे हमराही बनाने का फैसला किया आज उस की कही हुई कुछ बातों ने मुझे एक ही पल मैं फिर से उसी जगह लेकर खड़ा कर दिया जहां से मैंने ये सफर शुरू की थी।

लड़का – What…!

लड़की - हाँ! सच कह रही हूँ मैं। ऐसे, इतनी जल्दी हुआ की मुझे खुद भी पता नहीं चला। पर जो भी हुआ वो सब मेरे लिए बहुत कीमती था। और अब लग रहा है जैसे उन कीमती लम्हों को मुझे जिंदगी भर केलिए कीमती यादें माननी पड़ेगी।

फैसला कर के आयी थी की जवाब 'ना' होने पर कुछ नहीं पूछूँगी। हमेशा के लिए दूर चलि जाऊंगी और फिर वापस पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखूंगी। दिल की आवाज़ थी जो तुम तक पहुंचानी जरुरी थी। पहुंचा दी मैंने। बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए। जाने से पहले सिर्फ एक सवाल आखरी बार के लिए। उस दिन exhibition में जो कुछ भी तुमने कहा था क्या तुम खुद उन चीज़ों को दिल से मानते हो? अपने दिल से एक बार ये सवाल जरूर पूछना। अगर जवाब में उसने हाँ कहा तो उस वक़्त का दर्द सयाद तुम्हारे लिए सहना मुश्किल हो जाये। तब तुम अपने आप समझ जाओगे की आज मैं यहां से जो दर्द अपने साथ लेके जा रही हूँ वो कितनी गहरी है।

श्रुति - एक बार भी उस लड़के ने कोशिश नहीं की उस लड़की को रोक लेने की। उसके सच्चे एहसास के बारे में, उसके सजाये हुए सूंदर-सूंदर ख़्वाबों के वारे में, उसके दिल में हर पल बढ़ रही उस बेचैनी के वारे में, सब कुछ सुनने के बाद भी वो उसे जाने दे पाया...? और वो लड़की…! उसका फैसला शायद सही नहीं था। उसे थोड़ी और कोशिश करनी चाहिए थी लड़के से हाँ सुनने के लिए।

जान्हवी - नहीं! उस समय लड़की ने जो फैसला किया था वो बिलकुल सही था। अगर वो उस लड़के को थोड़ी और समझाने की कोशिश करती तो ये उसकी जिद्द बन जाति और जिद्द प्यार के भरोसे को कम् कर देता है।

उसे अपने प्यार की सच्चाई को साबित करना था। प्यार का डोर जब एक बार बंध जाता है तो उसका टूटना नाउम्किन होता है। लड़की को पूरा भरोसा था की उसका दिल सच्च कह रहा है और लड़के को लेकर उसने जो कुछ भी महसूस किया है वो सब सच्च है। उस दिन जिस दर्द से वो गुज़री थी ठीक वैसा ही दर्द उस लड़के को बहुत जल्दी महसूस होगा यह वो अछि तरह से जानती थी।

वैसा ही हुआ। उस दिन office से लौटने के बाद लड़के का mood पहले जैसा नहीं रहा। सब कुछ बदल चुका था। खाना plate में लिया लेकिन खा नहीं पाया। T.V on किया तो program की जगह लड़की की कही हुई हर लब्ज सुनाई दे रही थी। bed पर सोने के बाद सारी रातें करवटें लेता रहा। आखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। दिल में ठीक वही बेचैनी थी जिसने कुछ दिन पहले लड़की के पूरी जिंदगी को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया था। उसे भी उसकी अपनी जिंदगी एक उलझन सी लगने लगी थी जिसे उसे बहुत जल्दी सुलझाना था। दर्द आहिस्ते-आहिस्ते बढ़ रहा था। एक मदद भरी हाथ की बहुत जरुरत थी उसे। पर जिस राह में वो पहुंचा था वहाँ वो बिलकुल अकेला था। वही समंदर का किनारा, वही साम के ५ बजे, वही पानी का सोर, वही तेज़ चलती ठंडी-ठंडी हवा। फिर भी लग रही थी जैसे पूरी नहीं है कुछ भी। दिल को डर था की यह रिस्ता सायद बेमतलब है, एक ऐसी राह जिसकी कोई मंजिल नहीं, समझौता से जिंदगी को एक नया रूप दिया जा सकता है। अगर ये सब सच था तो फिर आज दिल इन सब बातें मानने से इंकार क्यों कर रहा है? क्यों वो किसी को इस जिंदगी के हर हिस्से में देखना चाहता है…? तो क्या मेरा हाल भी वैसी ही हो चुकी है जैसी उसकी थी…? मैं भी उसे...? ऐसे ही बहुत सारे सवाल उस लड़के के दिल में बेचैनी बढ़ाते जा रहे थे और बार-बार यह सब सोचने के कारण उसके सर में दर्द बढ़ने लगा।

वहीँ कुछ दुरी पर एक coffee bar था। जवाब नहीं तो एक कप coffee ही सही लेकिन थोड़ी सुकून की बहुत जरुरत थी उसे। कुछ देर बाद, अचानक उसका ध्यान पीछे की ओर गया क्यूंकि, पीछे से उसने किसी के जुबान से लड़की का नाम सुना। उसका दिल उस के लिये जिस लड़की को चुना था उसे उसके वारे में कुछ भी मालुम नहीं था। कहाँ रहती है, क्या करती है, उसकी जिंदगी, उसका परिबार, कुछ भी नहीं और इन सब में किसी अजनबी के मुँह से उसका नाम उस के लिये घने अँधेरे में एक हलकी सी रौशनी के बराबर थी। वो तुरंत पीछे की ओर भागा; यह जाने के लिए की कौन पहचानता है उस लड़की को। पास पहुँच कर पता चला की वो लड़की उस Coffee Bar की regular customer थी। थोड़ी देर पहले वो आयी थी वहाँ पर लेकिन उसे किसी का call आया और वो जल्दी-जल्दी में उसकी violin वहीँ छोड़ गयी। इसलिए bar के Manager उनके किसी लड़के को violin ले जा के उस लड़की के घर में देने की बात कर रहे थे। 'लड़की के घर!', उसे लगा जैसे तक़दीर उसकी मदद करना चाहता है उसके दिल की बेचैनी को दूर करने के लिए। आगे बिना कुछ सोचे उसने मैनेजर से कहा...

लड़का - क्या यह violin मैं ले जा कर दे दूं...?

Manager - आप...?

लड़का - यह violin जिनका है वो मेरी दोस्त हैं। Actually थोड़े ही दिन हुआ है हमारी दोस्ती को। आज वो मुझे अपने घर ले जाने वाली थी पर मुझे आने में थोड़ी सी late हो गयी। मैं यहीं पीछे बैठ कर coffee पि रहा था की तभी आपके मुँह से उनका नाम सूना। आपको किसी और को भेजने की कोई जरुरत नहीं है। आप यह violin और उनका address दे दीजिये मैं उसे सही सलामत उन तक पहुंचा दुंगा।

Manager - पर...!

लड़का - भरोसा रखिये! इरादा कोई भी गलत फायदे की नहीं है बल्कि जिंदगी के कुछ सवालों के सिलसिले का है जो ख़त्म होना जरुरी है। इसीलिए आज मेरा उनसे मिलना भी बहुत जरूरी है। मैं आपका काम कर दूंगा।

Manager – Alright…!

जान्हवी - जो हल्का हल्का सा शक था लड़के के दिल में की कहीं कुछ गलत किया है उसने, लड़की के घर पर पहुँचते ही उसका वो शक यकीन में बदल गया। क्यूंकि उसका अनजान बन कर प्यार को ठुकराने की सजा उस लड़की को बहुत गलत तरीके से मिल रहा था; बहुत गलत तरीके से।

बिन मां-बाप की लड़की थी वो। घर में अगर किसी का चलता था तो वो थे उसके चाचा जी। जिन्हे वो बिलकुल भी पसंद नहीं थी। वो उन केलिए जिंदगी भर सर के ऊपर रहने वाली सिर्फ एक भारी बोझ थी। हर वक़्त दिल को तोड़ के तेहेस-नेहेस कर देने वाला ताना, कोई भी खुसी या कोई भी त्यौहार सिर्फ उसके आखों तक पहुँच के अपनी रुख बदल देती थी। उनके जिंदगी के किसी भी ख़ास हिस्से में नहीं थी वो। और इस तरह की एक बोझ भरी जिंदगी में पड़ोसियों से मिली यह खबर की उनके घर की लड़की ने लोगों से भरे office में किसी लड़के को प्यार का इज़हार किया और उस लड़के ने उसे पहचानने से भी इंकार कर दिया, उन केलिए ज़हर खाने जैसा था। दिल में गुस्से की सीमा बढ़ता जा रहा था और उस गुस्से को मार से चुकाया जा रहा था। रोकना चाहता था वो लेकिन उसकी सीमा तो सिर्फ दरवाज़े तक ही थी। उसके आगे जाने केलिए उसे एक रिश्ते की जरुरत थी जिसे उसने खुद पहचानने से इंकार कर दिया था। दिल में बेबसी की हद इतनी बढ़ चुकी थी की उसे लग रहा था जेसे अनजाने में उसने उस लड़की को मौत से भी बत्तर जिंदगी दिया है। और इंतज़ार नहीं हो पाया उससे और उसने दरवाज़े पर knock किया…

लड़की - तुम...! तुम यहां कैसे...?

लड़का - वो... तुम्हारा violin...! तुम इसे उस coffee Bar में छोड़ आयी थी।

क्या हुआ...? लगता है जैसे तुम कुछ परेशान सी हो...

लड़की - परेशान नहीं, हैरान हूँ। अजीब बात है की जिस लड़की के एहसासों की थोड़ी सी भी कदर नहीं उसकी violin की इतनी फ़िक्र हो रही है तुम्हे। It’s really strange…

Anyway…! Thanks for it…!

……

क्या हुआ...? कुछ और भी कहना है तुम्हे...?

लड़का - ममम...!

लड़की - Oh common...! इतना तो मैं जानती हूँ की तुम यहां सिर्फ यह violin लौटाने नहीं आये हो। यह सिर्फ एक बहाना था। अब... जो तुम वाकई ही कहने आये थे, वो कहो!

लड़का - कुछ वक्त चाहिए था तुमसे। कुछ जरूरी बातें करनी थी।

लड़की - ठीक है! कल! ठीक उसी जगह, उसी समय।

लड़का - अगर बुरा ना मानो तो क्या एक सवाल पूछ सकता हूँ?

लड़की - हाँ! पूछो!

लड़का - जब मैं यहां आया तो अंदर से कुछ आवाज़ें आ रही थी। सूना मैंने! वो सब...!

लड़की - वो सब मेरी असलियत है, मेरी असली जिंदगी है। आगे और कुछ मत पूछना! कह नहीं पाउंगी...

जान्हवी - आगे उस बारे में और कुछ न पूछने के लिए साफ साफ मना कर दिया लड़की ने। आशुयें भी पोंछ दी थी। पर आखों में ताज़ा-ताज़ा रोने की नमी लड़के के दिल को और भी बेचैन करने लगी । कल साम तक इंतज़ार उस केलिए आसान नहीं था। लेकिन फिर भी उसने किया; अपने जिंदगी को बदलने के लिए, जिंदगी को फिर से उस नजरिये से देखने के लिए जिस नजरिये से देखना उसने जान बुझ कर भुला दिया था।

अगले दिन ठीक उसी जगह, उसी समय लड़का और लड़की दोनों पहुंचे। गुज़रे हुए कल की कोई भी तस्वीर लड़की के चेहरे पर नज़र नहीं आ रही थी। लेकिन लड़के के चेहरे पर छाई हुई बेचैनी को लड़की ने साफ़-साफ़ पढ़ लिया था।

लड़की - उस दिन के बाद लगा था जेसे सब कुछ ख़त्म हो गया है। Expect नहीं किया था की फिर से कभी मुलाक़ात होगी, बातें होगी।

लड़का - कुछ बातें जो बिना कहे सीने में छुपा कर रखी नहीं जा सकती। कहीं पर भी सुकून नहीं मिलता। हर पल बस यही एहसास होता है की जैसे कोई बड़ा गुनाह हो गया है मुझसे।

हर गलती का सिर्फ एक ही चेहरा नहीं होता। कुछ गलतियों को गलत हो कर भी गलत नहीं कहा जा सकता क्यूंकि, वो कुछ बिगड़े हुए को सही करने का एक तरिका होता है। और जब वो तरिका दिल के किये हुए फैसले के खिलाफ जाता है तो वो मजबूरी बन जाता है। उस दिन, मैं भी कुछ इसी तरह के स्थिति में था। तुम्हारा नाम, यह जगह और उस दिन हमारी बीच हुई सारी बातें, अच्छी तरह से याद थी मुझे। फिर भी सब कुछ जानते हुए मैं अनजान बना रहा। मुझे लेकर जो एहसास तुम्हारे दिल में आहिस्ते-आहिस्ते घर बनाने लगी थी उसे मैं जान-बुझ कर पहचानना नहीं चाह रहा था। क्यूंकि, तुम्हारा वो एहसास तुम्हारे हक़ की जो खुसी मुझसे उम्मीद कर रही थी वो मैं कभी भी पूरा नहीं कर सकता था।

जिंदगी में अपनी मर्ज़ी से मैं कुछ भी नहीं कर पाया। यह संगीत, यह धुन, जो कभी मेरे दिल के एक ख़ास जगह पर रहती थी, किसी अँधेरे में खो दिया है मैंने उसे। आज वही संगीत, वही धुन को अपनाना चाहता हूँ तो मुझे सिर्फ बेचैनी मिलती है, दर्द मिलता है। यह दिल आज तक हमेशा अकेले ही जिया है। बहुत कुछ ऐसा कैद है इस दिल में जिसे आज तक कभी किसी ने समझने की कोशिश नहीं की। जब हर राह के अंत में दौलत और पैसे की भुलभुलैया दिखने लग जाये तब आदमी किसी भी रिश्ते की एहमियत, कीमत और जरुरत को समझने की काबिल नहीं रहता। उसके ऊपर से एक भयानक पागलपन; जिद्द की पागलपन जिसे दूर करने केलिए मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। कभी-कभी दिवार पर लगी हुई घडी के तरफ देख कर सोचता था की इसके सारे सुईओं को ऐसे ही घूमने दूँ, समय को ऐसे ही बीतने दूँ, जितना भी बुरा होना है मेरे साथ उसे होने दूँ; ताकि कभी कहीं तो एक बार ये सूईआं ऐसी जगह ठहर जाएंगी जहां मेरे खोये हुए सारे लम्हे मेरे पास वापस लौट आएँगी। बदलते हुए इस दुनिया को देख कर उम्मीद करनी छोड़ दी थी मैंने पर न जाने क्यों इंतज़ार करना छोड़ ना सका; सिर्फ इस दिल के वजह से। यह दिल ना खुद को कभी टूटने दिया और ना ही मुझे। बस अंदर ही अंदर हमेशा एक नए उजाला की ख्वाहिश करता रहा। और आज...

बस यही थी मेरी कहानी और यही था मेरे बेदर्दी दिखाने का सच।

लड़की - यह सब कुछ ना जानते हुए भी इतना जानती थी की तुम्हारी कहानी में बहुत दर्द है। इसलिए तो प्यार कर बैठी तुमसे। न जाने क्यों तुम्हे लगता है की तुम मेरी किसी भी खुसी को पूरा करने के काबिल नहीं हो पर जिस दिन मेरे दिल ने तुम्हे गहराई से समझना शुरू किया तब मेरी हर खुसी उसे सिर्फ तुम में नजर आया। तुम्ही ने कहा ना की तुम्हारे दिल ने ना तुमको ना अपने आपको टूटने दिया। बस आने वाले एक नए सुबह की ख्वाहिश करता रहा। वो इसलिए क्यूंकि जिस एहसास को तुम्हारा दिल समझ पाया है उसे तुम पहचान नहीं पा रहे हो। अधूरी ख्वाहिस, अधूरे सपने, अधूरी खुसी, सब कुछ अधूरा है। और, जिंदगी कभी किसी मंजिल को पाए बिना सफर को अधूरी नहीं छोड़ती। क्यों सोच रहे हो की आगे के रास्ते तुम्हारे लिए बेमतलब हैं? क्यों साथ नहीं दे रहे हो अपने दिल की उन ख्वाहिसों में जिस में सयाद कहीं न कहीं उस नए उजाले का पता छुपा हुआ है?

लड़का - ठीक कहा तुमने! नहीं पहचान पा रहा था। दर्द बढ़ जाने के डर ने मुझे किसी भी एहसास को पहचानने ही नहीं दिया। पर कल रात, जब मैं तुम्हारे घर में पहुंचा तो वहाँ...

लड़की - तो वहाँ...?

लड़का - मैंने देखा की दर्द कितना भी क्यों न हो उसे सहना बहुत ही आसान होता है। जिस्म के दाग नहीं मिटे लेकिन दिल के दाग को कितनी आसानी से छुपा लिया है तुमने।

क्या सच्च में इतना आसान है तुम्हारे लिए उस जिंदगी को जी पाना जहां हर पल सासें छीनने का एक नया रास्ता नज़र आता है? एक ऐसा माहौल जिसमें कोई भी आसानी से मुस्कुराना भूल सकता है। तो फिर तुम कैसे...?

लड़की - मुस्कराहट, खुसी, इन सब की तो मेरे जिंदगी से दूर-दूर तक कोई बास्ता नहीं था। अगर कोई रिस्ता था तो सिर्फ जिंदगी की कमियों से, ज़रूरतों से। इस तन्हाई भरी जिंदगी में किसी अपने का होने का एहसास; चाहे फिर कोई मुझे अपना समझे या ना समझे।

लड़का - अपना न समझने से तकलीफ नहीं होती लेकिन गैरों से भी गैर कर देने से बहुत तकलीफ होती है। उस तकलीफ को सहने से अच्छा जिंदगी को एक दुशरा मौका देना चाहिए। जिंदगी को फिर से एक ऐसी जगह शुरू करनी चाहिए जहां तुम्हे तुम्हारी हर खोयी हुई खुसी, सपने और अपनेपन की परछाई नज़र आये।

लड़की - तो फिर तुमने ऐसा क्यों नहीं किया?

लड़का - वो...

लड़की – It’s ok! एहसास को तो तुमने पहचान लिया है लेकिन वो एहसास क्यों है, किस केलिए है, इन सवालों के जवाब अभी भी मिलनी बाकी है। और वो जवाब तुम्हे किस के पास से मिल सकता है यह तुम्हे अछि तरह से पता है; "तुम्हारा दिल"।

Anyway! रात होने को है। अब मुझे चलना चाहिए।

लड़का - घर जाने के ख़याल से घबराहट नहीं होती?

लड़की – What…!

हम...! होती है…! लेकिन कुछ नहीं कर सकती मैं। सिर्फ यही एक रास्ता है। जिंदगी ने कोई मोड़ नहीं ली है। इसीलिए मुझे इंतज़ार करना होगा उसके फैसले का।

Good Night…!

लड़का - क्या कुछ देर और रुक सकती हो...?

लड़की - ज्यादा देर होगी तो सामने हज़ारों सवाल खड़े हो जाएंगे। जाना जरुरी है...!

लड़का – Please…! बस कुछ देर और... कुछ बातें जो केहनी जरुरी है।

लड़की - Ok!

लड़का - दिल की वो बात जो जुबान पर आने से मैंने रोक के रखा था, आज कहना चाहता हूँ तुमसे। उस दिन बस कुछ पल की बातें की थी तुमसे पर घर लौटने के बाद चैन से सो नहीं पाया था मैं। एक नया एहसास; ख़ूबसूरत सा एहसास नए-नए कदम ले कर इस दिल की ओर बढ़ रहा था और साथ था उसे हमेशा के लिए खो देने का डर जो पल-पल दिल की बेचैनी बढ़ा रहा था। इतने सालों बाद इस तरह का एक नया एहसास, सच में सारी खुशियां देगा या बीच रास्ते हाथ छोड़ देगा जिंदगी भर तरसने के लिए, नहीं जानता था मैं। इसलिए तय किया था उस एहसास को मेरे जिंदगी का हिस्सा कभी बनने नहीं दूंगा। खुद से दूर कर दूंगा तुम्हारी वो हर याद जो मुझे कमजोर कर रही थी। भुला दूंगा वो मुलाक़ात, कही हुई सारी बात। लेकिन उस दिन office में तुम्हारी कही हुई उन बातों ने जैसे मुझे मेरे फैसले को बदलने के लिए मजबूर कर दिया। मैंने सोचा था की तक़दीर की की हुई इस फैसले में तकलीफ सिर्फ मुझे हो रही है पर तुम्हारी तकलीफ मुझसे कहीं हद तक ज्यादा बढ़ चुकी थी। और उसकी वजह कहीं ना कहीं मैं ही था। यह सब बातें दिल में आहिस्ते-आहिस्ते कईं सवाल बुन चुके थे जिनके जवाब जानना बहुत ही जरुरी हो गया था।

लड़की - पर क्या तुम्हे लगता है की अब इन सब बातों को कहने का कोई मतलब है?

लड़का - हाँ है! मतलब है! क्यूंकि आज मैं अपने जिंदगी के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता। खुल के जीना चाहता हूँ यह जिंदगी अपनी मर्ज़ी से। आज उस रौशनी की जरुरत है मुझे जो मेरे आने वाले कल के सारे पलों को हमेशा-हमेशा के लिए रोशन कर देगा। मजबूरी का यह घना अन्धेरा अब बर्दास्त नहीं होता है मुझसे। नए जिंदगी का पहला कदम मैं जल्द से जल्द उठाना चाहता हूँ पर, अकेले नहीं...; तुम्हारे साथ...

हाँ! आज मुझे बहुत जरुरत है तुम्हारी..., तुम्हारे प्यार की...

श्रुति - उसके बाद...? क्या जवाब दिया उस लड़की ने?

जान्हवी - वो ख्वाहिश जो अपना बनाने से पहले ही उस के लिए अजनबी हो गयी थी उस दिन अपनी बाहें फैला कर उसे हमेशा के लिए अपना बनाने की फरमाइश कर रही थी। कैसे मना कर सकती थी वो? उसके बाद दिल में ना किसी नाराज़गी के लिए जगह थी और ना ही किसी शिकायत के लिए। चाहे दुनिया कितनी भी बदल जाए वो कभी भी लड़के का साथ नहीं छोड़ेगी। कितनी भी मुश्किलें आये, खुद टूट के बिखर जाएगी लेकिन लड़के का दिल कभी नहीं तोड़ेगी। कल को चाहे situation कुछ भी हो वो हमेशा साथ निभाएगी। इन सारे बादों के साथ लड़की ने लड़के के जिंदगी में अपना पहला कदम रखा।

नयी जिंदगी, नए सपने, नए एहसास, जीने के नए-नए तरीके; इन सब बातों में दोनों को समय का ख़याल ही नहीं रहा। रात के ९.०० हो चुके थे। लड़की ने जब phone का button on किया तो 23 missed calls। Phone silent mode में होने के वजह से पता ही नहीं चला। इस बात को समझने में दोनों को बिलकुल देर नहीं हुआ की घर के हालत पूरी तरह से बदल चुकी होंग़ी। लड़की के मन में हो रही घबराहट को लड़का अच्छे से समझ गया और उसके हाथ थाम ते हुए कहा...

लड़का - मैं हूँ ना...! डरने की कोई जरुरत नहीं है। मैं जाऊंगा तुम्हारे साथ। आज कोई बात दिल में छुपाई नहीं जाएगी, किसी डर से डरा नहीं जाएगा। आज सिर्फ हम दोनों होंगे और हमारी जिंदगी की सच्चाई होगी।

लड़की - पर तुम जानते हो ना मेरे घर में इस रिश्ते को कोई भी नहीं अपनायेगा...

लड़का - और तुम...?

लड़की - कैसी बातें कर रहे हो...? क्या मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है...?

लड़का - पूरा भरोसा है। इसीलिए तो कह रहा हूँ उस भरोसे को आज सब को दिखाने के लिए। आज तुम किसी की भतीजी, किसी के बेहेन, किसी की कोई भी नहीं होगी। किसी भी रिश्ते का दबाव नहीं रोकेगा तुम्हे। आज तक जिस रिश्ते से तुम हमेशा भागती आयी हो, सिर्फ उसीका साथ देना पडेगा तुम्हे। आज तुम सिर्फ तुम हो और आज तुम्हारे जुबान से निकलने वाले तुम्हारे हर शब्द सिर्फ तुम्हारे दिल के होंगे... वादा...?

लड़की - पक्का वादा...!

जान्हवी - "पक्का वादा", कहना बहुत ही आसान होता है लेकिन निभाना उससे भी मुश्किल। फिर भी लड़की ने आसानी से निभाया क्यूंकि जो भरोसा उसे लड़के से मिला था वो बहुत ही सच्चा और सक्त था जो कभी नहीं टूट सकता था।

कुछ देर बाद दोनों लड़की के घर में पहुंचे तो दरवाज़ा खोला लड़की के चाचा जी ने। दोनों को एक साथ देख कर पहले तो कुछ नहीं कहा उन्होंने लेकिन उनकी जुबान क्या कहना चाहती थी यह उनके आखों से साफ़ पता चल रहा था। उनकी आखें गुस्से से लाल हो चुकी थी। उस निस्तब्ध गुस्से को देख कर लड़की के मन में डर का जगना स्वाभाबिक था पर तभी लड़के ने उसके हाथों को जोर से थाम लिया और आखों से एक हल्का सा इशारा दिया।

लड़की - चाचा जी! आप तो इन्हे पहले से ही पहचानते हैं। Actually, हम दोनों ने शादी करने का फैसला किया है। इन बीते कुछ दिनों में बहुत कुछ हो गया है। लेकिन अब सब कुछ ठीक है। आपका आशीर्वाद लेने आये हैं...

जान्हवी - आशीर्वाद तो बहुत दूर वो अब उस लड़की को अपनी जिंदगी के किसी भी हिस्से देखना नहीं चाहते थे पर, आखरी बार एक इनाम जरूर देना चाहते थे। इसलिए जोर से हाथ उठाया था पर...

लड़का - चाचा जी...! बस...! बस बहुत हो गया। आपकी दी हुई दो वक़्त की रोटी, दो जोड़े कपडे, और सैलरी के कुछ हिस्से दिल से सुक्रिया पाने का हकदार नहीं हैं क्यूंकि उसके किसी हिस्से में भी इज़्ज़त नहीं दिख रहा है मुझे। फिर भी एहसान मानता हूँ आपका क्यूंकि आपने इतनी कीमती जिंदगी को जीने का कुछ सहारा दिया। लेकिन यह हाथ उठाना, गुस्सा करना, ताना मारना, अब और नहीं। इज़्ज़त, प्यार और पूजा सिर्फ उसी को मिलनी चाहिए जो उसका सही हक़दार है। ठीक वैसा ही होगा। आज से ये मेरी अमानत है। हाथ उठाना तो दूर की बात है अगर किसी ने इस रिश्ते पर थोड़ी सी भी बुरी नज़र डाला उसकी जिंदगी बरबाद कर के रख दूंगा। Understand…?

जान्हवी - एक ऐसी हिम्मत जिसने जीने की ख्वाहिश दुगनी कर दी थी। कोई घबराहट, कोई कमी या कोई फ़िक्र, किसी के लिए कोई जगह नहीं थी उस दिन के बाद। सामने थी एक सूंदर सी जिंदगी और उसमें चलने केलिए फूलों से सजी हुई राहें। फिर से कोई दर्द सहना नहीं पडेगा, फिर से किसी सपने को समझौते का नाम नहीं देना पडेगा, ऐसी ख़ूबसूरत मोड़ लेने के बाद फिर से यह जिंदगी कोई बेरहम मोड़ नहीं लेगी। ऐसा ही सुब कुछ सोचा था उस लड़की ने। लेकिन जिंदगी ने फिर से मोड़ लिया; अचानक लिया और वो मोड़ इतना बेरहम था की जिंदगी के आखरी सांस तक सिवाए दर्द के और कुछ नहीं दिया।

श्रुति - ऐसा क्या हुआ उस मोड़ में...?

जान्हवी - जिंदगी को हमेशा-हमेशा के लिए ऐसे अंधेरे में खो देने का दर्द जहां से उसे कभी वापस न लाया जा सके। लड़के ने उस लड़की को अपनी चाचा की दी हुई उस नरक भरी जिंदगी से बहुत दूर ले आया था। उस के लिए एक सूंदर सा घर खरीदा, उसे एक अछि जॉब दिलवायी और उसके सारे सपने और ख्वाहिसों को सच्च बनाने के लिए सभी तैयारी करने लगा। एक सच्चे जीवनसाथी होने का सारा फ़र्ज़ वो बखूबी निभा रहा था। पर इन सब में उसने लड़की के बारे में घर पर कुछ भी नहीं कहा था। लड़के का घर और परिबार कहने को सिर्फ एक ही शख्स थे; उसके पिताजी। वो ना ही बुरे इंसान थे और ना ही बुरे पिता। पत्नी के गुजर जाने के बाद उन्होंने अपने बेटे की बहुत अछि तरह से परवरिश की। पढ़ा लिखा कर इतना काबिल बनाया की २२ साल की उम्र में देश के सबसे बड़ी कंपनी को चलाने की सारी खूबियां आ चुकी थी उसमें। इतना कुछ करने के बाद भी वो लड़का अपने पिता को कुछ ख़ास पसंद नहीं करता था और ना ही उसके दिल वो प्यार और इज़्ज़त थी जो एक बेटे के दिल में अपने पिता के लिए होनी चाहिए। इसके पीछे सिर्फ २ ही वजह थी। एक थी पैसे को लेकर उनकी घमंड और दुशरी थी जिद्द और पागलपन से लिए हुए उनके सारे फैसले। उनकी यह दो बुरी आदत हमेशा उनके और उनके बेटे के बीच दूरियां बढ़ाता रहा। किसी के पास पैसे की कमी हो तो वो उन के लिए कचरे के बराबर होता था जिसे वो अपनी जिंदगी से निकाल फेंकना पसंद करते थे। और कोई ऐसी चीज़ जिसका पैसे से कोई बास्ता नहीं वो उसे अपने जिंदगी में आने ही नहीं देते थे। संगीत या संगीत से जुडी हुई कोई भी चीज़ उन्हें पसंद नहीं था इसीलिए अपने बेटे को कसम दे कर उसके जिंदगी से संगीत को हमेशा हमेशा केलिए डॉ करवा दी उन्होंने। अपने जिंदगी को हमेशा खुस देखने की एक लौते वजह को खो कर उनका बेटा कितना तड़फ रहा है इस बात का थोड़ा सा भी अंदाज़ा नहीं हुआ उनको। धीरे-धीरे होते-होते उसकी जिंदगी गुमशुम सी हो गयी।

गुज़रा हुआ वो समय अलग थी और इस बार हुई बात अलग थी। किसी से सच्चा प्यार हुआ था उसे। उसके जिंदगी का वो नया हिस्सा जिसे खोने के वारे वो सोच भी नहीं सकता था और ना ही किसीके पागलपन और बेमतलब जिद्द के आगे उसे कुर्बान कर सकता था।

फिर एक रोज़ लड़का जब ऑफिस से लौटा तो उसके पापा बहुत खुस नज़र आ रहे थे। घर में चारो तरफ सजाबट, मिठाइयां, गुलदस्ते। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। और जब उसने अपने पापा से इन सब का वजह पूछा तो उन्होंने जवाब दिया...

लड़के के पापा - बेटा! मैंने तुम्हारी शादी पक्की कर दी है।

लड़का - What...! मेरी शादी...!

लड़के के पापा - हाँ तो इसमें इतनी हैरान होने वाली क्या बात है…? लगता है अपने आपको ठीक से देखा नहीं है तुमने। बेटा…! शादी करने की उम्र हो चुकी है तुम्हारी। और फिर जो लड़की मैंने तुम्हारे लिए चुना है वो तुम्हारे लिए बिलकुल परफेक्ट है।

लड़का - अच्छा...! वो कैसे...?

लड़के के पापा - अरे! सूंदर है, समझदार है और उसका खानदान बिलकुल हमारे बराबरी का है। धन, दौलत, ऐसो-आराम, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। यही लड़की तुम्हारे दिल को, तुम्हारे ज़ज़्बात को अछि तरह से समझ पाएगी। क्यूंकि वो बिलकुल उसी माहौल में बड़ी हुई है जिस माहौल में तुम बड़े हुए हो।

लड़का - O...! यानी की, आपके हिसाब से सुन्दर चेहरा, अछि समझदारी, बराबर का हैसियत, धन, दौलत, एसो-आराम सब कुछ होने के वजह से वो लड़की मेरे लिए बिलकुल परफेक्ट है... Right...?

लड़के के पापा - हां! बिल्कुल! सारी खूबियां तो है जो एक पत्नी में होनी चाहिए...।

लड़का - पर मुझे नहीं लगता की मेरी पत्नी बनने के लिए इतनी काबिलियत काफी है। बस इतने से ही मुझे मेरी जीवनसाथी कभी नहीं मिलेगी जिसको मैं अपने जिंदगी में सारे हक़ दे सकूँ।

लड़के के पापा - तो और क्या चाहिए तुम्हे...?

लड़का - प्यार! किसीको जिंदगी भर के लिए अपना बनाने की सबसे बड़ी दौलत, सबसे बड़ी हैसियत और सबसे बड़ी जरुरत। और वो प्यार मुझे किससे मिलेगा वो तलाशने का हक़ सिर्फ मुझे है। मेरी जिंदगी में आने वाले हर दिन, हर रात, हर खुसी, हर ग़म, सारे फैसले का हिस्सेदार सिर्फ मेरी मर्ज़ी से इस घर मैं आएगा; सिर्फ मेरी मर्ज़ी से। समझा आपने, Dad...!

लड़के के पापा - तुम्हारी मर्जी...! तुम्हारी मर्जी से तुम इस घर में उस मामूली मोहले के लड़की को लाना चाहते हो। जिसका ना ही माँ-बाप और ना ही अपने घर का ठिकाना है। किसी के निच्चे दबी हुई जिंदगी इस घर की शान बढ़ाएगी। कैसे सोच लिया तुमने की तुम ये फ़िज़ूल की ज़िद्द करोगे मैं यह होने दूंगा।

लड़का - नहीं! मैं ये सोचने की गलती कभी नहीं कर सकता की आप ऐसा होने देंगे। क्यूंकि आपको तो मेरी खुसी से कोई लेना-देना है ही नहीं। आप के लिए आपकी जिद्द और आपकी अनगिनत दौलत का घमंड ही सब कुछ है। आपके जिंदगी के किसी भी ख़ास हिस्से में मैं कहाँ हूँ, डैड...?

बेटे का दर्जा दिया लेकिन सिर्फ प्रॉपर्टी पर। दिल में बेटा माना कहाँ है आपने? अगर माना होता तो मेरे हर एहसास की खबर होती आपको की कितनी बार तड़पा हूँ, रोया हूँ मेरे जिंदगी के कीमती-कीमती सपनों को आपके पागलपन और जिद्द के लिए कुर्बान करते हुए...

संगीत मैंने छोड़ दी क्यों की वो सिर्फ मेरे दिल की आवाज़ थी लेकिन आज आप मुझे जिससे दूर जाने के लिए कह रहे हैं वो सिर्फ मेरे दिल की नहीं बल्कि मेरे जिंदगी का एक अनमोल हिस्सा बन चुकी है जिसके बिना जिंदगी के राह में एक कदम भी आगे चलने के वारे मैं सोच नहीं सकता।

इसलिए इस बार नहीं, पापा! इस बार नहीं! इस बार यह फैसला सिर्फ मेरे जिंदगी के लिए नहीं है। कोई है जिसको उसकी जिंदगी में मेरे आने का इंतज़ार है, मुझसे मिलने वाली नयी जिंदगी की खुशियों का इंतज़ार है। और आपके बेमतलब जिद्द के वजह से मैं दो-दो जिन्दगीओं की खुशियां कुर्बान नहीं कर सकता।

जान्हवी - बेटे को समझाने का और कोई फायदा नहीं होगा यह बात लड़के के पापा जान चुके थे। उनके बेटे के सीने में आग लग चुकी थी; प्यार की आग, जिसे बुझाना अब उनके हात में नहीं था। इसलिए उन्होंने कहानी के उस दुशरे हिस्से से बात करने का फैसला किया जो उनके बेटे के दिल में आयी हुई उस नए मोड़ की असली वजह थी।

अगले दिन बेटे के ऑफिस जाने के बाद वो सीधा उस लड़की के पास गए...

लड़की - जी आप...! मेरा मतलब है की मैंने आपको इस तरह यहां, ऐसे अचानक कभी expect नहीं किया था।

लड़के के पापा - हम...! सही कहा तुमने! पिछले कुछ दिनों में ऐसा बहुत कुछ हो चुका है जो मैंने भी कभी expect नहीं किया था।

Anyway! अंदर चलके कुछ बात करें...?

लड़की - Oh! Sorry! Sorry! एक्ससिटेमेंट में मैं आपको अंदर बुलाना ही भूल गयी। प्लीज आईये!

बैठिये...!

लड़के के पापा - बहार तुम कुछ excitement की बातें कर रही थी। क्या मैं जान सकता हूँ की मुझे देख कर इतनी खुसी क्यों हो रही थी तुम्हे...?

लड़की - छोड़िये ना...! आपके सामने वो सब कैसे...

आप बताइये! क्या लेंगे; चाय, कॉफ़ी या कुछ ठंडा...?

लड़के के पापा – No thanks! इन सब formalities की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन हाँ! मुझे तुमसे एक help की जरुरत है। So, can you…?

लड़की – Help…! मैं कुछ समझी नहीं। मैं भला आपकी क्या help कर सकती हूँ?

लड़के के पापा – Of course कर सकती हो। सिर्फ और सिर्फ तुम ही कर सकती हो।

लड़की - अच्छा...! ठीक है! कहिए!

लड़के के पापा - तुम मेरे बेटे को बहुत चाहती हो; हे ना...?

लड़की - Actually... हम...!

लड़के के पापा - आज सुबह जिस तरह से वो तुम्हारे वारे में बातें कर रहा था, वो सब सुनने के बाद, मुझे लगता है जैसे तुम उस के लिये कुछ भी कर सकती हो; अपनी जान की फ़िक्र किये बिना। Right...?

लड़की – जी…! मैं उन के लिए कुछ भी कर सकती हूँ।

लड़के के पापा - Good! बस मैं भी कुछ इसी तरह की मदद मांगने आया हूँ तुमसे। मैं चाहता हूँ की तुम अपनी प्यार को साबित करो। जिसे इतना चाहती हो उस के लिये कुछ करो; कुछ बहुत बड़ा तोफा दो जिसे वो जिंदगी भर भूल न सके।

लड़की – But Uncle! मैं इस काबिल कहाँ की उन के लिए ऐसा कुछ ख़ास कर सकूँ...? उन्होंने मेरे लिए जो कुछ भी किया है उसके बाद मेरी यह नयी जिंदगी तो हमेशा उनका एहसानमंद रहेगा।

लड़के के पापा - नहीं! इस एहसान के बदले तुम्हे उसके ऊपर एक एहसान करना होगा। तुम्हे उसे हमेशा-हमेशा के लिए... भूल जाना होगा...

लड़की - Uncle!!! यह... यह आप क्या कह रहे हैं...?

लड़के के पापा - वही जो तुमने अच्छी तरह से सूना। तुम्हे मेरे बेटे को हमेशा-हमेशा केलिए अपनी जिंदगी से बहार निकालना होगा, भूलना होगा उसे।

मैं उसकी शादी एक बहुत बड़ी खानदान में तय कर चुका हूँ। एक ऐसी खानदान जो दौलत, सौहरत, इज़्ज़त और हैसियत मैं बिलकुल हमारे बराबर के हैं। उस खानदान की लड़की जो एक राजकुमारी की जिंदगी जीती है उसके साथ मेरा बेटा बहुत खुस रहेगा। बीच में तुम्हारी जैसी third grade की लड़की आकर मेरे बेटे की पूरी जिंदगी की खुशियों को बर्बाद करने की कोशिश करे यह मैं हरगिज़ बर्दास्त नहीं करूंगा। Do you understand...?

लड़की - Uncle! मैं आपकी की हुई फैसले की इज़्ज़त करती हूँ। आपने अपने बेटे केलिए जो भी फैसला किया होगा वो बिलकुल सही होगा, जो भी सोचा होगा बहुत ही अच्छा सोचा होगा। पर अंकल! अगर मेरे बस में होता तो मैं इस फैसले को मान पाती। हालात इस कदर बदल चुकी है की मेरे हाथ में अब कुछ ना रहा। दुनिया में कोई अपने आपको कितना भी ताकतबर क्यों न कह ले लेकिन दिल के फैसले के आगे सभी मजबूर होते हैं। मैं भी, वो भी और आप भी।

लड़के के पापा - No! You’re wrong! मैं मजबूर नहीं हूँ क्यूंकि मैंने कभी भी किसी दुशरे के किये हुए फैसले में कैद होना नहीं सीखा है। मैंने हमेशा वही पाया है जिसे मैंने चाहा है। और आज भी मैं वही पाउँगा जो मैं चाहता हूँ; जिंदगी को कुर्बान कर के या मौत को गले लगा के।

लड़की - मतलब...?

लड़के के पापा - अगर तुम अपनी जिंदगी को कुर्बान कर के मेरे किये हुए फैसले को मान लेती हो तो जीत मेरी होगी। मेरे बेटे की शादी वही पर होगी जहां मैं चाहता हूँ। और अगर आज तुमने जिद्द कर के अपनी ली हुई फैसले को ना बदला तो मैं अपनी जान दे दूंगा और मरते हुए आदमी की आखरी ख्वाहिश तो दुश्मन भी पूरी करता है तो फिर यह तो मेरा बेटा है। कैसे मना करेगा...? दोनों तरफ से जीत मेरी ही होगी।

मेरे बेटे को मुझे वापस लौटाने का तुम कौनसा रास्ता चाहती हो ये तुम decide करो! वैसे मैं तुम्हारे वारे में जितना जानता हूँ, मुझे लगता है की आखरी वाला रास्ता तुम कभी नहीं अपनाओगी क्यूंकि तुम जानती हो सर पर बड़ों का साया न होना कितना दर्दनाक होता है।

जान्हवी - कभी नहीं सोचा था उस लड़की ने की परसों मिली वो सूंदर सी जिंदगी इतनी जल्दी फिर से अपनी रुख बदल देगी और उसे एक ऐसे मोड़ पर ले जायेगी जहां पर उस के लिये कोई भी रास्ता अपनी मर्ज़ी से चुनना नाउम्किन हो जाएगा। घर से जाते-जाते लड़के के पापा ने साफ़-साफ़ कह दिया की...

लड़के के पापा - आज के बाद से ना तो तुम मेरे बेटे से मिलोगी और ना ही किसी भी तरीके से बात करने की कोशिश करोगी; ना कोई फ़ोन, ना कोई खत और ना ही किसी दोस्त के जरिये।

लड़की - बेशक! हर रास्ते को बंद कर दीजिये आप। आप जैसा चाहते हैं ठीक वैसा ही होगा। आज के बाद ना कोई फ़ोन, ना कोई मैसेज, ना कोई खत, कोई भी कोशिश नहीं करुँगी मिलने की। आप अपने बेटे की शादी पुरे धूम धाम से कीजिये जिस तरह आप चाहते हैं। बस आखरी बार एक बात कहना चाहती हूँ आपसे। मेरा यह दिल उनकी जगह कभी भी और किसी को नहीं दे पायेगा। हाथ थाम कर हमेशा के लिए अपना मान लिया है और आखरी सांस तक मानती रहूंगी। मैंने उनसे सच्चा प्यार किया है और सच्चे प्यार में सौदा करने का हक़ मेरा दिल मुझे नहीं देता। लेकिन फिर भी मैंने सौदा किया सिर्फ उनके खातिर। कैसे बन सकती थी इतनी खुदगर्ज़ की अपनी खुसी के लिए उनके जिंदगी का सबसे ख़ास हिस्सा, उनका परिबार उनसे छीन लेती। आप ही जीते, अंकल! आप ही जीते। उनसे वादा किया था की कभी साथ नहीं छोडूंगी, कभी दिल नहीं तोडूंगी, पर तक़दीर की इस मजबूरी ने आज इतना मजबूर कर दिया है की मैं जिन्हे बेइंतेहा मोहबत करती हूँ उनको उनकी नयी जिंदगी में ऐसा तोफा दूंगी जो जिंदगी भर उनके आखों में मेरे नाम का आशु देता रहेगा। पर एक बात याद रखियेगा, अंकल! आपके जिंदगी में एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब आपका दिल आपसे उसके पाए हुए दर्द का सवाल पूछेगा और तब आपके पास उसे देने के लिए कोई जवाब नहीं होगा और ना ही सब कुछ फिर से सही करने केलिए वक़्त। यह लीजिये आपके बेटे की दी हुई इस घर की चाबियां जिन पे सायद अब मेरा कोई हक़ नहीं रहा।

जान्हवी - वादा करने में जितनी तकलीफ नहीं हुई उसे कहीं ज्यादा तकलीफ हुई उस वादे को निभाने में। लड़के के पापा और लड़की के बीच हुई किसी भी बात के बारे में लड़के को कुछ मालुम नहीं था। चाबियां वापस कर के वो कहीं गायब ही हो गयी थी। लड़के को कहाँ पता था की घर की चाबियां उसके पापा के पास ही था। हर रोज़ वो उस घर के चक्कर काटता रहता था, बाहर लगी उस ताले को बार-बार देखता रहता था। समंदर के किनारे में उस जगह पर बार-बार जाता था ताकि जहां इतनी मुलाकातें हुई है, कास फिर से एक मुलाक़ात हो जाए। फ़ोन पे फ़ोन, मैसेज पे मैसेज करता रहा, यह सोच के की कभी कहीं से कोई तो जवाब आएगा। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। फिर एक रोज़ लड़के ने लड़की के दोस्त को देखा जो उस दिन लड़की के साथ office में आयी थी। वो भागते हुए उसके पास गया...

लड़का - ५ दिन बीत चुके हैं लेकिन उसने एक बार भी मुझसे बात नहीं की। घर पर ताला लगा हुआ है। ना मेरा कॉल रिसीव कर रही है और ना ही मेरे किसी भी मैसेज का रिप्लाई दे रही है। किसी बात की नाराज़गी है भी अगर बताये बिना चुप रहना दुगनी तकलीफ देती है। क्या पता है तुम्हे, “कहाँ है वो...?”

लड़की के दोस्त - दरअसल बात यह है की...

लड़का - क्या बात है...? बोलो जल्दी!

लड़की के दोस्त - भूल जाओ तुम उसे!

लड़का - क्या...? आखिर हुआ क्या है...?

लड़की के दोस्त - पता नहीं! पिछले २ - ४ दिन से बहुत उदास थी वो। पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा, "मेरी जिंदगी हमेशा के लिए अधूरी रह गयी। मेरे सारे सपने, ख्वाहिशें शुरू होने से पहले ही खत्म हो गयी। दम घुटने लगा है मेरा यहां। यहां से कहीं दूर, बहुत दूर जाना चाहती हूँ मैं।

लड़का - यहां से बहुत दूर...! अभी कहाँ है वो...?

लड़की - १ घंटा पहले Airport के लिए निकली थी। कह रही थी, "डेढ़ घंटे बाद मेरा Flight है; बस डेढ़ घंटा और उसके बाद मैं हमेशा-हमेशा के लिए आज़ाद हो जाउंगी, सब कुछ बदल जाएगा, मेरे सारे एहसास, मेरी जिंदगी, और जीने की वजह। दोबारा हक़ नहीं दूंगी किसी को मेरी जन्दगी के फैसले लेने की। किसी रिश्ते की जरुरत नहीं पड़ेगी मुझे; दोस्त, दुश्मन या प्यार, किसीकी भी नहीं"।

लड़का - डेढ़ घंटा...! मतलब Flight निकलने के लिए सिर्फ २० मिनट बाकी हैं।

कहाँ जा रही है वो...?

लड़की के दोस्त - नहीं बताया उसने...।

जान्हवी - लड़के ने तुरंत अपनी गाड़ी निकाली और सीधे Airport में पहुंचा। हज़ारों लोगों की भीड़ में कैसे ढूंढेगा वो वो उस लड़की को? बस यही बात मन में लिए वो इधर से उधर तलाश में भटक ता रहा। फिर कुछ देर बाद वही पर एक Coffee Shop के पास...

लड़की - भइया! यह लीजिये! टोटल हो गये 250 रूपये और मुझे सिर्फ वो Chocolate flavor वाली biscuit दे दीजिये।

लड़का - क्या मजाक है...!!! कहाँ जा रही हो तुम...?

लड़की - Singapore! पापा का एक बहुत पुराना घर और factory बंद पड़ी है। फिर से शुरू करुँगी और वहीँ पर सेटल हो जाउंगी...।

लड़का - और मैं...? मेरी क्या गलती है...?

लड़की - गलती...! मैंने कब कहा की तुम्हारी कोई गलती है। ये सिर्फ मेरे जिंदगी का फैसला है। मैं अब यह जिंदगी नहीं चाहती। नहीं रहना चाहती हूँ किसी भी रिश्ते के कैद में। मुझे आजादी चाहिए मेरे हर बीते कल से, मेरे साथ रहने वाले हर एक रिश्ते से। अकेले जीना चाहती हूँ में; इस जिंदगी से कहीं बहुत दूर।

लड़का - यह अचानक क्या हो गया है तुम्हे? क्यों कर रही हो तुम ऐसी बातें। एक हफ्ते पहले तुमने मुझसे जो वादे किये थे, मुझे जो सपने दिखाए थे, तुम्हारी कही हुई वो सब बातें की तुम मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगी, कभी मेरा दिल नहीं तोडोगी, मुझसे कभी बेवफाई नहीं करोगी, क्या वो सब झूठ था? तुम सायद भूल रही हो की हम दोनों की जिंदगी अब सिर्फ हमारा हो कर नहीं रहा। इसीलिए हम दोनों में से किसी एक फैसले लेने का कोई हक़ नहीं है।

लड़की - तुम्हे मुझे जो कहना है तुम कह सकते हो। फैसला तो मैं कर चुकी हूँ की मैं इस रिश्ते को और आगे नहीं बढ़ा सकती। यह फैसला कभी किसी हाल में भी नहीं बदल सकता।

साथ रहेंगे सदा

तूने कहा था

दिल ना तोडूंगी कभी

वादा किया था

फिर भी आयी

ऐसी क्या मजबूरी

जिसने तुझसे

यह गुनाह करवाया

हो गये... हम जुदा...

सांस हो के भी...

जिंदगी ना रहा

करवाके नए सुबह की ख्वाहिश

तूने मुझे तनहा कर दिया

जानती हो आज रो रो कर मेरा दिल तुम्हे किस नाम से पुकारता है...?

यह दिल कहता है

तुझे बार-बार...

तू है एक बेवफा।

यह दिल कहता है

तुझे बार-बार...

तू है एक बेवफा।

हाँ! तू है एक बेवफा...

हां! तू है एक बेवफा...

लड़का - क्यों अपने आप से और मुझसे झूठ बोलने की कोशिश कर रही हो? 'खुस नहीं हो तुम', यह बात तुम्हारे आखों में साफ़-साफ़ नज़र आ रही है। प्यार करता हूँ तुमसे तो इतना तो समझ ही सकता हूँ की तुम्हारे आखों में दिख रहा यह दर्द दिल टूटने की है।

कोई तो जवाब दो... क्यों जान बुझ कर कर रही हो यह बेवफाई? क्यों ली हुई अपनी इस बेमतलब सी फैसले में हम दोनों के दिल को तोड़ कर अपने आपको बेवफा का खिताब देना चाहती हो।

लड़की - हाँ! हूँ मैं बेवफा। लेकिन मैंने यह बेवफाई क्यों की इसका जवाब मैं इस जनम में कभी नहीं दूंगी; चाहे तुम मुझसे कितनी बार भी पुछलो...

चाहती थी मैं

किसी को दिल से

कोई था मेरा जान

कर दी मैंने

जुदा मेरे खुद से

इस प्यार के

बीते हर शाम

हो ना पाएगी कभी

यह कहानी पूरी

यह चाहत है बेनाम...

यह चाहत है बेनाम...

जानते हो आज मेरा यह टूटा हुआ दिल मुझे किस नाम से पुकारता है...?

यह दिल कहता है

मुझे बार-बार

तू है एक बेवफा

यह दिल कहता है

मुझे बार-बार

तू है एक बेवफा

हाँ! मैं हूँ बेवफा...

हाँ! मैं हूँ बेवफा...

जान्हवी - कुछ नहीं सुना उस लड़की ने और चली गयी हमेशा-हमेशा के लिए दूर उस लड़के के नज़रों से; उसके दिल की पुकार, उसके आशु, किसी की परवाह किये बिना। उस दिन के बाद लड़के ने उस लड़की से सिर्फ नफरत करने लगा। उसने उस लड़की के साथ बितायी हुई उन सारे लम्हों को उसने अपनी जिंदगी की सबसे बुरा वक़्त और अपनी तक़दीर की सबसे दर्दनाक हिस्सा मान लिया जिसे वो कभी भी दुबारा याद करना नहीं चाहता था। उसके बाद बिलकुल वैसा ही हुआ जैसा उसके पापा चाहते थे। लड़के ने उसके पापा की तय की हुई रिश्ते के लिए हाँ कह दिया। लड़की को पहचानने वाले हर शख्स को वो अब इंडिया में थी ही नहीं। लेकिन वो वापस आयी थी। सबसे छुपकर, सबके अनजाने मैं वो उसी जगह पहुंची जहां उस लड़के की शादी हो रही थी। देखा उसने उस लड़के के दूल्हे की ड्रेस में सजी हुई रूप जो एक दिन उस के लिए सजने वाला था। आसान नहीं था वो सब देखना। फिर भी वो देखती रही। आशुयें बहती जा रही थी। दिल में सजाये हुए सारे सपने पूरी तरह से टूट के बिखरने तक वो सब कुछ वैसे ही देखती रही... सब कुछ देखती रही।

श्रुति - Hey! Relax! यह क्या...? आपके आखों में आशु...?

जान्हवी - नहीं! वो ऐसे ही...

श्रुति - एक बात कहूं...? आपकी कही हुई last के कुछ lines सुन कर ऐसा लगा जैसे यह कहानी किसी और की नहीं बल्कि आपकी खुद की है...

जान्हवी - मुझे भी ऐसा ही लगता है...

श्रुति - क्या...?

जान्हवी - मेरा मतलब है की इस कहानी के सारे एहसास कुछ इस तरह के हैं जैसे लगता है अभी-अभी जिया है उसे।

श्रुति - हम...! Right!

बस यही तक है ये कहानी...? लगता है जैसे कुछ अधूरा सा है।

जान्हवी - हाँ! ठीक कहा तुमने। अधूरी है! दिल टूटने की आशुओं से, झूठी बेवफाई से लिखी गयी यह कहानी अधूरी है। लेकिन अधूरी होते हुए भी यह कहानी उस मंजिल तक पूरा रास्ता का पता जानता है जिसकी तुहे तलाश थी। घर जा कर एक बार सोचना और अपने दिल के अंदर फिर से हर चीज़ को पहचानने की कोशिश करना। देखना तुम्हे तुम्हारा रास्ता वही मिलेगा। और रही बात इस कहानी की तो यह कहानी अब कभी भी पूरा नहीं हो सकेगी क्यूंकि यह कहानी का एक हिस्सा, यह लड़की अब ज़िंदा ही नहीं है।

श्रुति - लेकिन यह बात आपको कैसे पता...?

जान्हवी - सायद किसी ऐसे किताब का हिस्सा है यह जिसे पढ़ कर हर कोई आसानी से समझ सकता है की दिल में प्यार की गहराई किस हद तक हो सकती है।

उस दिन समंदर के किनारे पर मैं कोई और ही mood लेके गयी थी। उदास थी, बेचैन थी, लग रहा था जैसे मेरे पास कोई भी रास्ता नहीं है। लेकिन वहाँ से लौटने के बाद मेरे के वह सारे बोझ पूरी तरह से गायब हो चुके थे। करोड़ों एहसासों से भरी उस सूंदर सी प्रेम कहानी को सुनना मेरे तक़दीर में था या सके पीछे कोई और ही वजह थी, मुझे मालुम नहीं था पर, उसी कहानी में ही मुझे मेरा तलाशा हुआ रास्ता मिल गया। मैंने फैसला किया की office से लौटने के बाद एक बार यह कहानी मैं पापा को जरूर सुनाऊँगी। लेकिन ऐसा हो न सका। हमेशा की तरह पापा office से लौटे और बिना मुझे मिले, बात किये अपनी खाने की plate लेकर अपने कमरे में चले गये।

मैंने ठान ली थी की यह कहानी पापा के दिल तक पहुंचाके ही छोडूंगी। पर कैसे...? यही बात मैं रात भर सोचती रही। फिर अगले ही दिन सुबह-सुबह मुझे रास्ता मिल गया; Dinner table के पास रखे हुए News paper से। सुबह-सुबह किसी को देखे या ना देखे, किसी के वारे में पूछे या ना पूछे लेकिन अख़बार के बारे में एक न एक बार जरूर पूछते हैँ। और इससे अच्छा तरिका मेरे लिए और क्या हो सकता था...?

मैंने जल्द से जल्द उस कहानी को मेरे Dairy में लिख डाला और उससे अगले दिन सुबह के paper में छपवाने केलिए press में दे दिया। बस अब मुझे अगले सुबह पापा के अख़बार खोलने का इंतज़ार था...

अगले दिन सुबह...

श्रुति - पापा! आज का अखबार देखा आपने..?

पंकज - Why...? ऐसा क्या ख़ास है आज के अखबार में...?

श्रुति - Actually, आज अखबार में एक कहानी छपी है। एक बार उस कहानी को पढ़ के देखिये मुझे यकीन है की वो कहानी आपके दिल को छू जायेगी।

पंकज - कहानी...! What non-sense! मुझे किसी भी कहानी मैं कोई interest नहीं है। हाँ! अगर paper में ऐसी कोई बात छपी होती जिससे मेरे काम और मेरे industry को फायदा होता तो फिर मैं जरूर पढ़ती। Understand...? Now leave...!

श्रुति - पापा! बस एक बार तो पढ़के देखिये। मैंने छपबाया है।

पंकज - Oh! So, that’s the point. इसी बात को घुमा-फिरा के कहने की क्या जरुरत थी।

श्रुति - पापा ने मेरी कही हुई बात को नजरअंदाज कर दिया और अखबार के ओर देखे ही बिना office के लिए निकल गए। पापा ने ना सही लेकिन मेरी कहानी अखबार पढ़ने वाले दुशरे लोगों के दिल मैं एक नयी और इस दुनिया से अलग और एक प्यार भरी दुनिया का एहसास जरूर ले आया था। उस दिन office जाने के रास्ते में पापा ने जहां कहीं भी अपनी नज़र डाली वहाँ सिर्फ उस अखबार का चर्चा देखने को मिला। office पहुँच के देखा तो हर एक employee के हाथ में सिर्फ वही अखबार था। सच में क्या किसी कहानी में इतनी जादू हो सकती है की वो हर किसी के दिल को अपनी ओर खिंचले... इस बात की सच्चाई जानने केलिए पापा ने अपनी secretary को अपने cabin में बुलाया...

पंकज - डेज़ी! What's this? Office में यह सब क्या चल रहा है…? मैंने आते वक़्त देखा की हर किसी के हाथ में अखबार था। Working hour में काम छोड़ कर क्या हो रहा है यह सब...?

डेज़ी - Sir! आज आपने अखबार नहीं देखा...?

छोटी Ma’am ने अपनी कहानी छपवायी है उस में। और वो कहानी इतनी दिलचस्प है की आधी अधूरी छोड़ने का मन ही नहीं होता। आखे जितनी बार देखता है दिल कहता है की फिर एक बार पढ़लूँ।

पंकज - अच्छा...! पर ऐसी क्या बात है उस कहानी में...?

डेज़ी - एक बेहद चाहत भरी सुन्दर सी Love story... जिसमें... One minute! बहुत ही लम्बी कहानी है इसलिए यह लीजिये आप खुद ही पढ़ लीजिये। Office खत्म होने के बाद आज रात मैं आउंगी छोटी Ma’am से मिलने, उन्हें personally congratulate करने...

एक आम कहानी में ऐसा क्या जादू था की वो हर एक के दिल में अपना जगह बनाता जा रहा था इस बात की सच्चाई पापा को कहानी शुरू करते ही पता चल गयी। लिखे हुए एक एक सब्द गुज़रे हुए कल के एक एक पन्नो को खोलता गया। पिछली जिंदगी के सारे एहसास, सारा प्यार और उस प्यार मैं दी हुई सारे जख्म आहिस्ते-आहिस्ते ज़िंदा होने लगी। जिंदगी का वो खोया हुआ हिस्सा जिसके लौटने की हर उम्मीद खो दिया था उन्होंने वो हिस्सा उस दिन उनके सामने खड़ा हुआ नज़र आ रहा था। लेकिन उनकी बेटी की जरिये!!! आखिर क्यों...? वजह जानने के लिए पापा अखबार लेकर सीधा मेरे पास आये। जब वो घर पहुंचे तब मेरे सारे दोस्त मुझसे उस कहानी के वारे में जानने के लिए आये थे...

श्रुति - ... सो, यह थी वो कहानी...

श्रुति की दोस्त - पर यार यह कहानी कुछ अधूरी सी है।

श्रुति - हम...! अधूरी है! फिर भी एक पूरा रास्ता दिखाता है जिंदगी की किसी ख़ास मंजिल तक पहुँचने की।

पंकज - ऐसा कभी भी नहीं हो पायेगा क्यूंकि जिस मंजल तक यह रास्ता जाना चाहता है वो मंजिल अब है ही नहीं...

श्रुति - पापा! आपने मेरी कहानी पढ़लि...?

पंकज - क्यों किया तुमने ऐसा। बरसों पुरानी जिस जख्म को मैं भरने की कोशिश कर रहा था तुमने फिर से ताज़ा कर दिया।

श्रुति - मैंने...! पर मैंने ऐसा क्या किया पापा...?

पंकज - आखिर क्यों है मेरी जिंदगी इस तरह...? क्यों कभी भी मैं अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर पाता? मोड़ पे मोड़ बदलता जाता है और दूर कर देता है उन सबसे जिन्हे मैं हमेशा-हमेशा के लिए अपने गले से लगा कर रखना चाहता हूँ।

कहा था मैंने की किसी डर से ना डरने के लिए, सिर्फ वही सुनने के लिए जो उसका दिल कहेगा। पर नहीं किया उसने ऐसा। प्यार के फैसले में किसी तीसरे की कोई एहमियत नहीं होती। यह जिंदगी सिर्फ एक ही बार मिलती है और सिर्फ हमें ही मिलती है खुद पर लिए जाने वाले सारे हक़ के साथ। फिर जब बात आती है इस जन्दगी को उसी हक़ से किसी के नाम करने की तब उस फैसले को कोई तीसरा अपने नाम क्यों करवालेता है? और क्यों दुशरा लिए गए उस बेरहम फैसले को मान कर जिंदगी भर के लिए तड़फता रहता है? तब क्यों नहीं आता है दिल में यह बात की चला जाऊं किसी और एक दुनिया में जहां सिर्फ मैं और वो और बाकी कोई भी नहीं...?

हाँ यह सच है की यह कहानी कभी भी पूरा नहीं हो पाएगी। पर क्यों है यह कहानी अधूरी? किसकी मर्ज़ी से...?

प्यार भरे दिलों से खेल कर, अपनी जिद्द और अहंकार में पागल हो कर जो गलत फैसला पापा ने ली थी वही फैसला पलट कर उन्ही पर बार किया जिसका जोर वो सेह नहीं पाए। अपनी खानदान की शान बढ़ाने के लिए उन्हें एक राजकुमारी जैसी लड़की चाहिए थी। वैसी ही लड़की मिली उन्हें। सुन्दर, समझदार और हैसियत में बिलकुल उनके बराबर। बस उस लड़की ने अपनी समझदारी कुछ इस तरह दिखाई की लाख कोशिश करने के बाबजुत पापा अपनी खानदान की बोहु को उसमें ढूंढ ही नहीं पाए। किसी भी सचाई का पता न लगाकर जिस लड़की की वो इतनी तारीफ़ करते रहे वही लड़की एक दिन उन्हें कीचड़ से भी तुच्छ समझा। ज्यादा उम्र होने के कारण पापा की तबियत बिगड़ने लगी थी। देखभाल के लिए वो हमेशा अपनी बहु से आस लगाए बैठे रहे लेकिन उनकी बहु ने उनकी उस हालत को देख कर उन्हें छूने से भी इंकार कर दिया। फिर एक दिन रात को जब मैं उन्हें दबाई देने गया...

पंकज के पापा - बेटा! एक बात पूछूं...?

पंकज - हाँ पापा! पूछिये!

पंकज के पापा - क्या तुम मुझे कभी माफ़ कर पाओगे...?

पंकज - छोड़िये वो सब बातें... यह लीजिये आपकी दबाई खा लीजिये।

पंकज के पापा - उम्र में बड़े होते हुए भी मेरे किये हुए सारी गलतिओं के आगे आज मैं बहुत ही छोटा हो गया हूँ। आज मैं तुमसे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगना चाहता हूँ। बहुत दर्द दिया है मैंने तुम्हे। तुम्हारी जिंदगी की हर खुसी को मैंने अपने हातों से तबाह किया है। उस दिन उस लड़की को मैंने ही मेरे मौत के सौदे से बाँध लिया था। बहुत प्यार करती थी वो तुमसे। आज भी उसकी कही हुई बातें कानों में गूंजती है। जाते-जाते मुझे कहा था उसने जब एक दिन मेरा दिल मुझसे मेरे किये हुए सारे गलतिओं का वजह पूछेगा उस दिन मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा और ना ही वक़्त होगा सब कुछ फिर से सही करने के लिए। हाँ! यह सही है की आज मेरे पास वक़्त नहीं है लेकिन मेरी की हुई इस गलती को सुधारने का रास्ता है मेरे पास। बेटा! तू वापस लौट जा उस दुनिया में जिस दुनिया को तूने बनाया था। वापस ले आ अपनी वो साड़ी खुशियां जो बीच रास्ते तेरा इंतज़ार कर रही हैं। ले आ उसे वापस। मुझे मेरी इस गलती की माफ़ी मिल जायेगी। नहीं तो मुझे चीन की मौत नहीं मिलेगी; नहीं मिलेगी...

पंकज - नहीं पापा! इन सब बातों के लिए अब बहुत देर हो चुकी है। कुछ गलतियों के लिए कोई भी माफ़ी नहीं होती। वो जिंदगी भर के लिए जिंदगी के ऊपर एक बोझ बन जाति है; एक भारी बोझ। हाँ! यह सच है की आपने गलत किया। एक ऐसा फैसला लिया जिसमें दो दिलों के बिछड़ ने के रास्ते थे, जिंदगी भर कभी ख़त्म न होने वाले आशु थे। लेकिन जानते हुए भी की यह सब बातों की हमारे प्यार के आगे कोई हैसियत नहीं वो इसके सामने झुक गयी। अपने दिए हुए हर बादों को तोड़ दिया। एक बार भी मेरे टूटे हुए दिल की पुकार उसे सुनाई नहीं दिया। मुझे एक ऐसे अँधेरी सागर में अकेले छोड़ गयी जहां अगर मैं जिंदगी भर भी तेरुं तो मुझे कोई भी किनारा नहीं मिलेगा।

जिंदगी का ऐसा हिस्सा जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता लेकिन मैंने मान लिया है की मैं भूल चुका हूँ। मैं भूल चुक्का हूँ की मैंने कभी किसीको दिल दिया था, किसी से बेहद प्यार किया था। आप भी भूल जाईये... मेरी जिंदगी अभी जैसी है, जिस तरह चल रही है, हमेशा वैसी ही रहेगी।

पंकज - कुछ महीने बाद पापा की मौत हो गयी। मजबूरन फिर से मैंने जिंदगी को समझौते का नाम दे दिया। और उसी समझौते के जिंदगी में एक दिन तुम पैदा हुई। गुमशुम और तन्हाई से भरी मेरी जिंदगी में तुम्हारे नन्हे-नन्हे कदम कुछ वक़्त के लिए मुझमें फिर से इस जिंदगी को जीने का आस जगाता था और फिर जब तुम गहरी नींद में सो जाती थी वो तन्हाई और बेचैनी फिर से मेरी जिंदगी में लौट आती थी। मेरे सामने घने अँधेरे के सिवा और कुछ नज़र नहीं आता था। जिसने तुम्हे पैदा किया उसका फ़र्ज़ सिर्फ तुम्हे पैदा कर के ही ख़त्म हो गया। उसके बाद ना वो तुम्हारे पास आती थी, ना तुम्हे अपने सीने से लगाती थी और ना ही तुम्हे सुलाने के लिए कोई लोरी गाती थी। इस बात को देखने वाले हर किसी के मन में यह हैरानी जरूर होती थी की ९ महीने अपने कोक में रख कर, माँ होने का हर दर्द सह कर पैदा करने वाली माँ को तुमसे बिछड़ने का थोड़ी सी भी बेचैनी नहीं हो रहा है। अपने हिसाब से वो अपनी जिंदगी जी ती थी। मन होता था तो वो घर आती थी, मन नहीं होता था तो कहीं बहार ही रात गुजार लेती थी। इसी तरह कुछ साल ऐसे ही निकल गए। फिर जब तुम ५ बरस की हुई तब एक साम उसने मुझसे कहा, "हमारी शादी को ६ साल बीत चुक्के हैं पर हम दोनों ही जानते हैं की हमारा रिस्ता कैसा है। इन ६ सालों मैं हम दोनों के दिल में एक बार भी वो बात नज़र नहीं आयी जो हम दोनों मैं होनी चाहिए थी। अलग थे हम दोनों। मुझे एक ऐसी जिंदगी पसंद थी जिस में मेरे लिए कोई लिमिट, कोई रूल्स ना हो; एक आजाद पंछी के जैसा जो चाहे वो मैं कर सकूं। और तुम उन यादों को लेकर जीने वाले सख्स हो जिन यादों ने जन्दगी के इस सफर में बहुत पीछे ही तुम्हारा हाथ छोड़ दिया है। मैं अपनी प्यार करने की वजह को बदल सकती हूँ लेकिन तुम वैसा कभी भी नहीं कर सकते। जो वाकई में हो उसे छुपाने की कोशिश कर रहे हो पर कब तक कर पाओगे? Whatever! मुझे तो पहले से ही तुम्हारे जिंदगी के किसी फैसले में कोई हक़ नहीं मिला तो फिर आज मैं बेवजह की कोशिश क्यों करूँ? इसीलिए, मैं चाहती हूँ तुमसे अलग होने के लिए। मैंने अपने लिए एक सही जीवनसाथी चुन लिया है और बाकी की जिंदगी मैं उसके साथ ही रहूंगी। आखरी बार के लिए तुमसे एक इज़ाज़त चाहिए। प्लीज, मुझे तलाक दे दो। और जाते-जाते एक बात जरूर कहूँगी यह प्यार कभी भी यही पर ख़त्म नहीं होगा। खुस नसीब होगी मेरी बेटी जो अपने आखों से इस कहानी को पूरा होता हुआ देखेगी।"

वो आखरी बार था जब उसने तुम्हे बेटी कहा था, तुम्हारे माथे को चुम कर तुम्हे माँ का प्यार दिया। वो पल मेरे लिए बहुत अजीब था। मुझे यह समझाकर चला गया की चाहे कोई कैसा भी हो, अच्छा या बुरा लेकिन उसके दिल में प्यार आते ही अपनी एक नयी निशाँ छोड़ जाता है, दुनिया में उसके होने का एहमियत समझा जाता है। जिंदगी से जाते-जाते जो कुछ भी कहा बिलकुल सही कहा उसने। जिस प्यार की बिछड़ जाने के दर्द में मैं हमेशा आशु बहाता रहा, नफरत करता रहा, कभी फिर से ना मिलने की दुआ माँगता रहा, सच तो ये है की उस प्यार को मैं अपने दिल से कभी अलग कर ही नहीं पाया था। इसमें नहीं, उसमें नहीं, किसी में नहीं फिर भी हर कहीं वो थी; हर पल, हर घडी, मेरे साथ-साथ। ऐसे मैं और किसी के लिए कहाँ जगह होगा। उसके बाद मैं बेचैन सा रहने लगा। बार-बार वो सब बातें मेरे कानो में गूंजने लगी। कुछ भूलना जरुरी था पर भूल नहीं पा रहा था। फिर एक रात तुम मेरे पास आयी और मुझसे गले लग कर कही पापा! डर लग रहा है। मेरी साड़ी बेचैनी दूर हो गयी। उसके बाद मैं तुम में जीने लगा। तुम्हारे देखभाल में इतना खो गया की ऑफिस, काम, मीटिंग इन सब बातें मेरी जिंदगी से कहीं गायब ही हो गयी। मेरे लिए तुम एक अलग ही जिंदगी बन गयी। और फिर एक रोज़ तक़दीर मेरे साथ फिर से एक खेल खेलने लगा। तुम आहिस्ते-आहिस्ते बड़ी हुई, समझदार बनी, पढ़ाई-लिखाई, बातें, सब में तुम्हारी खूबियां नज़र आने लगी लेकिन साथ ही साथ तुम में भी वही रौशनी चगमगाने लगी जिसे मैं मेरी जिंदगी मैं हुए सबसे घने अँधेरे का वजह समझता था; "संगीत"। तुमने मुझसे वायलिन लाने की जिद्द की और मैंने तुम्हे जोरदार तमाचा लगाया। उस रात मैं रात-भर बैठ कर रोता रहा और सुबह-सुबह जा कर तुम्हारे लिए एक वायलिन ले कर आया। तुम बहुत खुस हुई। उस वायलिन को ले कर अपने सारे दोस्तों को दिखा कर कहने लगी, "देखो मेरे पापा मेरे लिए क्या ले कर आये हैं... बहुत ही अछि है ना...?"

जिंदगी से समझौता करने से अच्छा अगर मैं मुझे मिली हुई दर्द से समझौता कर लूँ तो सायद मेरे जिंदगी में फिर से वो खोयी हुई खुशियां लौट आएँगी, सारे अधूरे रास्ते पूरा हो जायेगी और तुम बहुत खुस होगी। तुम खुस होगी तो मेरी खुशियां दुगनी हो जायेगी, यही सब बातें खड़े हो कर सोच रहा था उस दिन समंदर के किनारे, ठीक उसी जगह जहां से यह सिलसिला शुरू हुई थी। पीछे मुड़ा तो मेरा बदला हुआ फैसला मेरे सामने थी। इतने सालों बाद, बहुत कुछ बदल गया था, उसका चेहरा, उसकी आखें। दिल बहक ने लगा फिर से उसी तरह के ख़याल में, उसी तरह के एहसास में। बहुत बड़ी हस्ती बन गयी थी वो। सहर के चारो ओर उसके पोस्टर्स, चारो तरह बस उसके नाम के ही चर्चे, दीवाने हो रहे थे लोग उसकी सिर्फ एक झलक पाने के लिए । पोस्टर के निचे वेन्यू देखा मैंने जहां उसका प्रोग्राम होने वाला था। लाखों ऑडियंस के बीच, मैं भी उसकी वो झलक देखने के लिए उस जगह पर पहुंचा...

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

चाहत जो... वो चाहत ही नहीं

तू ना जो अगर उसमें शामिल नहीं

चाहत जो... वो चाहत ही नहीं

तू ना जो अगर उसमें शामिल नहीं

सासें है तेरी

धड़कन है मेरी...

मिल जाए ये दोनों तो

मिट जाए सारे ग़म

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

दिन मेरा कटता नहीं...

रातें भी गुजरती नहीं,

वजह है वो सपने जिनकी

तेरे बिना कोई मोल नहीं

सपने जो... मेरे वो सपने ही नहीं...

तू ना जो... उसके हिस्से में नहीं...

सपने जो... मेरे वो सपने ही नहीं...

तू ना जो... उसके हिस्से में नहीं...

आखें हैं तेरी...

आशुयें मेरी...

मिल जाए यह दोनों तो

बन जाऊं तेरा सनम...

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

तुम... मेरे हो तुम

तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हम

पंकज - बिलकुल वही आवाज़, वही एहसास। लोग जिस आवाज़ को सुनने के लिए दीवाने हुए जा रहे थे, उस आवाज़ को तो मैं सदियों से पहचानता था। फर्क सिर्फ इतना था की हर कोई सिर्फ उसकी संगीत के आवाज़ को पहचान पाता था पर मैं उसके दिल के उस आवाज़ को सुन सकता था जो वो अपने जुबान से कभी कह नहीं पाती थी। लगभग ढाई घंटे बाद प्रोग्राम ख़त्म हुआ और तब तक मेरी पलकें एक बार भी नहीं झपकी थी। सायद इसलिए क्यूंकि अर्सों बाद मेरी इन तरसी निगाहों को कुछ जी भर के देखने का वजह मिल गया था। सब लोग जा चुके थे पर मैं वही खड़ा रहा; मेरे पास आने के इंतज़ार में। फिर कुछ देर बाद एक बड़ी सी गाडी आकर मेरे सामने रुकी। इतने दिनों बाद अचानक, कुछ एह्सासें पहली मुलाक़ात की तरह। ना मैं कुछ कह पा रहा था और ना ही वो। करीब-करीब खत्म हुई सी उस कहानी को शुरू करना था फिर से। लेकिन पहला सब्द क्या होगा यह दोनों को ही मालुम नहीं था। फिर कुछ देर बाद बातें शुरू हुई; ठीक उसी वर्ड से जिसकी उस वक़्त बहुत जरुरत थी; "Sorry"। उसका सॉरी था उस मजबूरी में की हुई बेवफाई का और मेरा सॉरी था उस बेवफाई को आसानी से होने देने का। उसने बीच रास्ते मेरा साथ छोड़ दिया, कहीं दूर चली गयी मुझसे पर मैंने भी तो वैसा ही कुछ किया। गुस्से में उसे ढूंढ़ने की, जिंदगी में वापस लाने की कोशिश ही नहीं की। प्यार की इस कहानी को पूरी होने ना देने के लिए जितने सारे बंधन और रुकावटें थे वो सब खत्म हो चुके थे। जख्म के नाम पर बस हल्का सा दर्द बचा था दिल पर जो एक ही इज़हार से मिटने वाला था। चाहत का वो अधूरा रास्ता जिसमें चलना छोड़ दिया था हमने, फिर से उसी रास्ते पर चलने का वक़्त आ चुका था। कहा मैंने उसे; अपनी दिल की वो सारी बातें जो आज तक एक कोने में सिर्फ उसी के लिए समेट के रखा था और सब कुछ सुनने के बाद उसने अपने जवाब में कहा...

"यहां नहीं...! कल शाम ५ बजे बीच पे... ठीक उसी जगह जहां पहली बार हम मिले थे। यह अधूरी चाहत सिर्फ वही जा कर पूरी हो सकती है।"

हस्ते-हस्ते मान ली मैंने उनकी कही हुई बात; यही सोच कर की तक़दीर ने जो बेवजह का सजा दिया था मुझे आज उस गलती को सुधारते हुए वक़्त को एक बार फिर वहीँ से शुरू करना चाहता है जहां पे आगे जाने का सारा रास्ता बंद कर दिया था; कुछ नए अंदाज़ से, कुछ नये एहसासों के साथ। अगले दिन शाम ५ बजे मैं पहुंचा उसी जगह पर। खुसी आने वाली थी इसलिए दिल बेचैन था पर बेचैनी के साथ घबराहट सी भी हो रही थी। एक घबराहट की कहीं मिलने से पहले फिर से सब कुछ छीन ना जाए पहले की तरह। अगर ऐसा हुआ तो जीना और भी मुश्किल हो जाएगा। पता नहीं क्यों पर आज भी सोचता रहता हूँ की कैसा नसीब पाया है मैंने जिस चीज़ के लिए घबराता रहता हूँ वही हमेशा सच हो जाता है क्यूंकि उस दिन मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ जिसके बारे में मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था।

५ से साढ़े ५, साढ़े ५ से ६, ६ से साढ़े ६, डेढ़ घंटो से मैं यहां से वहाँ, वहाँ से यहां, इंतज़ार में टहल ता रहा लेकिन एक बार भी अपने दिल के भरोसे को टूटने नहीं दिया। फिर शाम ७ बजे, अब तक आयी क्यों नहीं? कोई problem तो नहीं हुआ है ना? यही पूछने के लिए मैं call लगाने जाने वाला था की तभी मेरे सामने एक गाडी आकर रुकी। गाडी का दूर खुला तो वही थी पर अकेली नहीं... किसी ने थाम रखा था उसका हाथ। वो सब देख कर मुझे यह समझने में बिलकुल भी देरी नहीं हुई की क्या था वो सब... इससे पहले की वो मुझसे कुछ कहे मुझे पता चल चुका था की वो मुझसे क्या कहने जा रही है। उसके सामने नहीं टूटूंगा, दिल में यह ठानली मैंने और उसके हर बात को सुन पाने के लिए मजबूत बना लिया अपने आपको...

"यह दीपक है...। मेरी और दीपक की मुलाक़ात Singapore में हुई थी। कहते हैं कोई भी कला दिल का दर्पण होता है। दिल मैं छुपे सारे एहसास को आखों के सामने ले आता है। हम दोनों के जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही हुआ। वही कला वजह बन गया एक अजनबी मुलाक़ात इतना गहरा बनने की। दीपक ने मेरे दिल में छुपे उन बिखरे हुए जज्बातों को अपनी Painting में इस कदर सजाया की मैंने ना चाहते हुए भी मेरे दिल को उसके हवाले कर बैठी। मेरे दिल में यह यकीन सा होने लगा की इस पेंटिंग की तरह वो मेरे बिखरे हुए जिंदगी को भी अपने सीने में समेट लेगा। वैसा ही हुआ... बहुत जल्द हम शादी करने वाले हैं।"

बस... इसके बाद और किसी भी सवाल का कोई मतलब नहीं था। पर लौटने से पहले एक बार मैं उस सवाल को जरूर पूछना चाहता था जो उसके किये हुए वादे ने मुझसे पूछा था की वो ऐसी कौन सी चाहत थी जो तुम यहां, इस जगह मेरे साथ पूरा करना चाहती थी...? तो उसने इसका जवाब कुछ इस तरीके से दिया...

"हम दोनों में कभी भी वो रिस्ता बन ही नहीं पाया जो हम चाहते थे। जितनी बार भी हम दोनों ने हमारे रिश्ते को कोई मंजिल देने की कोशिश की, हर बार सिर्फ तकलीफें मिली, दर्द मिली। आज तक मेरी जिंदगी से मैंने सिर्फ एक ही चीज़ सीखा है की कुछ रिश्तों की हद सिर्फ उनकी चाहत तक ही होती है; जैसे की हम दोनों का... हाँ पंकज! यह रिस्ता बस यही तक था जो आज पूरा हो गया..."

"हम दोनों में कभी भी वो रिस्ता बन ही नहीं पाया जो हम चाहते थे।" हाहाहा...! कितना बड़ा मजाक किया था तक़दीर ने मेरे साथ। कितना बड़ा बेबखूफ था मैं। सब कुछ बस अपने मन ही मन सोचता रहा, सपने सजाता रहा, ख्वाहिशें करता रहा। दिल के ज़ज़्बात इतनी ज्यादा हो गयी थी की मुझे सचाई नजर ही नहीं आयी। कुछ भी नहीं था उसके दिल मैं; कुछ भी नहीं। अगर कोई भी रिस्ता बन ही नहीं पाया था तो फिर क्यों इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी मेरा दिल उस एक चेहरे की आस लगाए बैठा रहा, एक ही भरोसे में इतने साल गुजार दिए। कुछ भी ख़ास नहीं था अगर उस चाहत में तो क्यों भागा चला गया मैं उस नाम के पीछे जो मेरी जिंदगी से बहुत पहले ही जा चुकी थी।

बस उसके बाद मेरे दिल में प्यार के लिए कोई जगह रहा ही नहीं। हर छोटी-छोटी बातों में गुस्सा करना, चीड़-चीड़ होना, ऐसी बन गयी जिंदगी मेरी। मैं हर वो चीज़ से अपनेआपको अलग रखने की कोशिश करता रहा जिसमें प्यार महजूद था। तुमसे भी मैं खफा-खफा सा रहने लगा क्यूंकि तुमसे बहुत प्यार करता था। दिल में डर सा बैठ गया था की मेरा प्यार ही मेरे दिल के सबसे बड़े दर्द की वजह है।

श्रुति - नाम क्या था उस लड़की का...?

पंकज - जान्हवी...! जान्हवी जोशी…

श्रुति - जान्हवी जोशी!... J.J... 5 times “The Best Soul Song” award winner... दिखने में बहुत ही सुंदर है।

पंकज - तुमने देखा है उसे…?

श्रुति - हम...! बहुत करीब से...!

पंकज - कहां पर...?

श्रुति - ठीक उसी जगह जहां आपकी कहानी शुरू हुई थी और मेरी जिंदगी तेहेर गयी थी; समंदर के उसी किनारे पर। उन्होंने ही मुझे आपके और उनके बीच बानी इस सूंदर सी कहानी को सुनाया। लेकिन पापा मुझे लगता है जैसे आप दोनों के इस खूबसूरत कहानी में अभी भी कुछ हिस्से गायब हैँ। क्यूंकि आपने जान्हवी जी को जो कुछ भी समझा है, जैसा भी जाना है वो सब उनके दिल से या उनके एहसास से बिलकुल भी नहीं मिलते। देखा था मैंने उनके आखों को इस कहानी को कहते वक़्त। एक बहुत बड़ी ख्वाहिश दिखाई दे रही थी उसमें जिसके पुरे हुए बिना सायद जिंदगी का कोई मतलब ही नहीं रहेगा। फिर उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी उस कहानी को अधूरा ही कहा ताकि मैं उसको आपको बता सकूं। जैसे की उन सारे लम्हों को याद करवाके वो आपसे कुछ कहना...

"जान्हवी – हाँ…! ठीक कहा तुमने। अधूरी है! दिल टूटने की आशुओं से, झूठी बेवफाई से लिखी गयी यह कहानी अधूरी है। लेकिन अधूरी होते हुए भी यह कहानी उस मंजिल तक पुरे रास्ते का पता जानता है जिसकी तुहे तलाश थी। घर जा कर एक बार सोचना और अपने दिल के अंदर फिर से हर चीज़ को पहचानने की कोशिश करना। देखना तुम्हे तुम्हारा रास्ता वही मिलेगा। और रही बात इस कहानी की तो यह कहानी अब कभी भी पूरा नहीं हो सकेगी क्यूंकि यह कहानी का एक हिस्सा, वो लड़की अब ज़िंदा ही नहीं है।"

कोई सपना था या हकीकत मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। जान्हवी जी ही वो लड़की थी जिसे पापा जान से भी ज्यादा चाहते थे और वो जान्हवी जी ने मुझे कहा की यह कहानी का वो हिस्सा वो लड़की अब इस दुनिया में है ही नहीं। इसका मतलब जान्हवी जी इस दुनिया में है ही नहीं। कैसे यकीन कर सकता था मैं इस बात को? २ दिन पहले ही तो हमने साथ इतनी वक़्त गुजारी थी, ढेर सारी बातें की थी। इसी एक बात को बार-बार याद कर के मैं घबराने लगा...

पंकज - श्रुति...! क्या हुआ बेटा...? क्या बात है...?

श्रुति - नहीं...! ऐसा नहीं हो सकता...

पंकज - क्या नहीं हो सकता...? कुछ तो कहो...?

श्रुति - पापा मुझे कहीं जाना है... अभी...! इसी वक़्त...!

पंकज - पर कहाँ...?

श्रुति - नहीं कह सकती...! बस... आप मेरे साथ चलिये...!

दिल चाहता था बस एक बार देख ले उन्हें। दो ही मुलाकातों में कुछ ऐसा रिस्ता बन गया था की जिंदगी में आने वाली हर खुसी, हर ग़म में यह दिल उनकी जरुरत महसूस करने लगा था। कुछ देर बाद पापा बीच की ठीक उसी जगह पर गाडी रोका। मैं दौड़ के वहाँ उस जलेबी वाले के पास गयी और उसे पूछा...

श्रुति - भैया...!

जलेबी वाला - हाँ, श्रुति बिटिया! क्या बात है...? इतनी परेशान क्यों लग रही हो...?

श्रुति - भैया! आपको याद है २ दिन पहले मैं आपसे जलेबी लेने आयी थी।

जलेबी वाला - अरे! इसमें याद करने वाली क्या बात है? तुम तो जब भी यहाँ आती हो तब मुझसे ही जलेबियाँ खरीद ते हो। २ दिन पहले बी तुम आयी थी जलेबियाँ लेने पर उस दिन तुमने हर रोज़ से कुछ ज्यादा ही जलेबियाँ ली।

श्रुति - हाँ! क्यूंकि उस दिन मेरे साथ एक आंटी थी जो मेरे साथ मेरे बगल में खड़ी थी। बस उन्हीके वारे मैं पूछ रही हूँ की क्या अभी आपने उनको देखा है यहां...?

जलेबी वाला - मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ... बेटा! कल जब तुम यहां आयी तब तुम अकेली थी। तुम्हारे साथ तो कोई भी नहीं था। ना तुम्हारे बगल में, ना तुम्हारे पीछे और ना ही तुम्हारे आस-पास; कोई कहीं भी नहीं था...। और मैंने जिसे २ दिन देखा ही नहीं उसे आज कैसे पहचान सकता हूँ।

श्रुति - नहीं भैया! आप ठीक से याद करने की कोशिश कीजिये! उस दिन मेरे साथ कोई थी। और वो दिखने मैं बहुत ही ख़ूबसूरत, लम्बे बाल, और उन्होंने सफ़ेद रंग की चूड़ी दार पहनी थी। याद कीजिये...!

जलेबी वाला - श्रुति बेटा! मैं तुम्हे अछि तरह से जानता हूँ। न जाने तुम मेरे पास कितने दिनों से आ रही हो। तुम्हारे पापा, तुम्हारे सभी दोस्त, हर शख्स को जानता हूँ मैं, और अगर कोई नया चेहरा हो तो तुम्हारे साथ मुझे उसका भी चेहरा याद रहता है। मैं सच कह रहा हूँ बेटा! उस दिन तुम्हारे साथ कोई भी नहीं था।

जिस रौशनी की उम्मीद ले कर मैं बीच पर जान्हवी जी को ढँढ़ने के लिए गयी वो रौशनी मुझे मिली नहीं। ऊपर से जलेबी वाले भैया की उन अजीबोगरीब बातों ने मुझे और भी हैरानी में डाल दिया था। उसके बाद बारी थी उस Music director की जिसके जरिये जान्हवी जी का गाया हुआ हर एक गीत लोगों तक पहुंचता था।

Music Director - लेकिन ऐसे कैसे हो सकता है...? आप कह रही हैं की २ दिन पहले Miss. जान्हवी आप से मिली पर ऐसा कभी नहीं हो सकता। क्यूंकि, वो पिछले २-३ महीनों से लापता हैँ। हमने, Police ने और उन्हें पहचाने हुए हर एक शख्स ने उन्हें तलाशने की बहुत कोशिश की पर किसी ने नहीं पाया उसे।

पंकज - पर T.V या News paper, किसी मैं भी ऐसी कोई खबर कभी नहीं निकली...!

Music Director - वो इसलिए क्यूंकि इस खबर को कभी बाहर आने ही नहीं दी गयी। कोई नहीं चाहता था की किसी को पता चले इस बात का की Miss. जान्हवी पिछले २-३ महीनों से गायब हैं। थोड़े ही दिनों में उनके आवाज़ ने लाखों, करोड़ों दिल खरीद लिए थे न जाने कितने फंस बन गए थे उनके। अगर उन सब को पता चल जाती तो भाग दौड़ मच जाती पुरे सेहर में, लाखों सवाल खड़े हो जाते सामने जिसका हमारे पास कोई भी जवाब नहीं था।

पंकज - जवाब तुम्हारे पास नहीं था पर वो सख्स कौन है जिसके पास इसका जवाब अभी भी है और जिसे किसी ने इस बारे कभी कुछ भी पूछने की कोशिश नहीं की...?

Music Director - उनके वारे में ज्यादा तो कुछ नहीं पता पर एक बात जो हर कोई जानता था की जान्हवी जी उनसे शादी करने वाली थी। फिर एक साल तक न तो किसी engagement की खबर आयी और ना ही शादी की। लेकिन हाँ! बीच मैं एक बार ऐसा जरूर सुनने को मिलाता था की जान्हवी जी का तबियत थोड़ी खराप रहती है इसीलिए वो गाना छोड़ देंगी। फिर अचानक वो गायब हो गयी। उसके बाद ना उनका गाना सुनने को मिला और ना ही उनके वारे में। अरे! छोड़िये ना सर...! यह star लोगों की बात ही ऐसी होती है...? इन्हे कभी कोई नहीं समझ सकता। इनके जिंदगी में ऊपर से जो दिखता है वैसा होता नहीं है और जैसा होता है वो इसी तरह की कोई गुमनाम खबर की तरह गायब हो जाती है।

पंकज - इसका मतलब दीपक को सब कुछ मालुम है। जान्हवी और मेरी अलग होने की आखरी कड़ी... "दीपक सहानी"

Music Director - अरे वाह! आप जानते हैं उन्हें...? फिर तो सब कुछ मालुम हो ही जाएगा...

पंकज – Go to hell...!

दीपक वही लड़का था जिसके साथ जान्हवी जी पापा से आखरी बार मिली थी। यह नाम सुन कर पापा और मुझे यह पूरा यकीन हो गया था की हमें जिस मंजिल की तलाश थी हो ना हो वो इसी नाम से जुड़ा हुआ है। "जान्हवी जोशी", यह नाम पापा के दिल के उस हिस्से को अपने नाम करवा लिया था जिसे पापा चाहकर भी अपने आपसे जुड़ा नहीं कर सकते थे। मैं बेचैन थी सिर्फ उस दो दिन की मिली हुई अपनेपन की वजह से पर पापा...! पापा बेचैन थे उस सुनहरे जिंदगी के लिए जो बार-बार उनके पास आकर उनसे मुँह मोड़ लेता था और छोड़ जाता था उन के लिए कभी याद ना कर पाने वाली यादें। उस दिन जब पापा के गाडी चलाने मैं उनकी बेचैनी साफ़ नजर आ रही थी। नोर्मल्ली, पापा हमेशा ५०-६० के स्पीड से गाडी चलाते हैं पर उस दिन गाडी की speed थी १००-१२०।

जान्हवी जी के घर पर पहुँचते ही पापा दरवाजा खोल कर अंदर गए और सामने देखा तो सफे पर बैठा हुआ था "दीपक"। कुछ देर के लिए कहीं कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। दोनों ही अपने आपको खामोसी के नज़रों से देख रहे थे। पापा की नजरों में तो उनका गुस्सा साफ़ बयां हो रहा था पर दीपक की नज़रें क्या बयां कर रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था...।

दीपक - पंकज! तुम यहां...!

पंकज – Just shut up...! मत लो अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम। उसकी तबियत खराप थी। उसने गाना छोड़ दिया। संगीत उस के लिए उसके जिंदगी से बढ़ कर था। उसे छोड़ने के वारे में वो सपने भी नहीं सोच सकती थी। फिर क्या हुआ ऐसा...? क्या किया तुमने उसके साथ...? बताओ मुझे! क्या किया तुमने उसके साथ...?

दीपक - मैंने...! या तुमने...?

पंकज - बकवास बंद करो अपनी! मैंने जो पूछ रहा हूँ उसका जवाब दो!

दीपक – For your kind information, मैं तुम्हारा नौकर नहीं हूँ की जो तुम बोलोगे वही करूंगा। गला छोडो मेरा...!

गुस्सा दिखाना, चिल्लाना, इस तरह गले को दबोचना मैं भी कर सकता हूँ लेकिन अब्सोस... मैं तुम्हारे तरह नहीं हूँ।

कुछ नहीं किया हैं मैंने जान्हवी के साथ। अगर किया होता तो यह तुम्हारे सामने खड़े हो कर तुमसे बात नहीं कर रहा होता; डर के मारे कहीं छुप गया होता।

पंकज - मैं हाथ जोड़ कर तुमसे पूछ रहा हूँ। बताओ! कहाँ है जान्हवी? मैं पल पल मर रहा हूँ उसके बगैर।

दीपक - बहुत देर हो चुकी है। अब इन सब बातों के लिए बहुत देर हो चुकी है। आज पल-पल की देरी में जो तुम्हारी हालत हो रही है जान्हवी ने उसे एक ही बार में कर दिया।

पंकज - मतलब...?

दीपक - न जाने क्या गलती थी उसकी जो दुनिया की सारे दर्द, सारी तकलीफें सिर्फ उसी के हिस्से आयी। वो तो समझौते की जिंदगी जी रही थी। तुमने उसे नए सपने, नयी ख्वाहिशों का रास्ता दिखाया। उसके साथ जिंदगी के हर कदम पर साथ होने का वादा किया। उसके दिल में फिर से वो सारी उम्मीदें जगाई जिसे वो अपने अतीत की किसी हिस्से में खो चुकी थी। तुम्हारी कहीं हुई हर एक लब्ज़ को उसने पत्थर की लकीर समझ ली जो कभी भी नहीं मिट सकता था। आँख बंद कर के प्यार करने लगी तुम्हे। एक ऐसा सुनहरा सपना बना लिया तुम्हे जो हमेशा-हमेशा के लिए उसके आखों में बसने वाला था। फिर एक रोज़ उसका वो सपना किसी ने बड़े बेरहमी से तोड़ दिया। उसे अपने प्यार को भूल के उससे बहुत दूर चले जाने केलिए मजबूर कर दिया। खुद खून की आशु रोती रही लेकिन उस ग़म का एक भी बूँद तुम पर गिरने नहीं दिया। बदले मैं तुमने क्या किया...? उसे ही गलत समझा! हमेशा-हमेशा के लिए साथ छोड़ दिया उसका। एक बार ढूंढ़ने की कोशिश तक नहीं की। कहाँ गयी? किस तरह जियेगी? कैसे काटेगी मेरे बिना हर एक पल? इनमें से एक भी सवाल तुम्हारे दिल में नहीं आया। बड़े ही आसानी से उसकी जगह तुमने किसी और को दे दी। साथ चलने का वादा कर के तुमने जरूर उसका साथ छोड़ दिया लेकिन उसने नहीं। तुम्हें तो यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे शादी में वो तुम्हारे आस-पास थी; किसी एक अजनबी नक़ाब के पीछे। दर्द को दिल में, आशुओं को आखों में दबा कर बड़े ही आसानी से देखती रही अपने सारे सपने और ख्वाहिसों को किसी और के होते हुये। उसे एक ऐसी जिंदगी जीने पर मजबूर करदिया तुमने जिस जिंदगी के हर हिस्से में सिर्फ वो अकेली ही रही। फिर भी एक सवाल तक नहीं पूछा। जैसा हो रहा था होने दिया। अपने आपको तुमसे जुदा कर दिया। तुमसे बहुत चली गयी; सिर्फ तुम्हारे लिए, तुम्हारी खुसी के लिए। वो जिंदगी जिसको तुमने अपनी खुसी से चुना था उसपे वो अपनी काली अतीत की परछाई डालना नहीं चाहती थी। पर जिस्म जुदा होने से ना तो दिल जुदा होता है और ना ही उसके सपने। और तुम, उसके लिए सब कुछ थे। उसने वो सब कुछ पूरा करने आ फैसला किया जिसका ख्वाब तुमने देखा था। बदल दी उसने अपनी तन्हाई और बेबसी से भरी जिंदगी और बनादी उसे एक ऐसी नयी दुनिया जहां सोहरत, इज़्ज़त और शान की कोई कमी ना हो। जिसमें प्यार और खुशियों की आने का दरवाज़ा हमेशा-हमेशा के लिए खुला था। लेकिन लाख कोसिसों के वाबजूद भी उसकी खुशियां उसको कभी पूरा नहीं लगी। पता है क्यों...? क्यूंकि उसकी पायी हुई हर खुसी में खुस होने का पहला हक़ उसके दिल ने सिर्फ तुमको दिया था। चाहे जितनी भी हसने की कोशिश करे लेकिन आखिर मैं उसके आखों में तुम्हारे नाम के आशु आ ही जाते थे। फिर एक दिन एक फंक्शन के दौरान मेरी मुलाक़ात उससे हुई। हम दोनों बचपन के दोस्त थे; बहुत अच्छे दोस्त। चाहे पढ़ाई हो, खेल हो या Tiffin box, हर चीज़ में हमारी दोस्ती हमेशा पक्की रहती थी। फिर कुछ साल बाद पापा का transfer ‘Singapore’ में हो गया और हमारी दोस्ती बीच रास्ते रूक गयी। उस दिन मेरे कंधे पर सर रख कर बहुत रोई थी वह। कुछ देर के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे की उन आशुओं पर मेरा हक़ है जो मुझे इतने दिनों बाद देख कर खुसी से निकल रहीं है। पर जब मैंने उसके आखों को गौर से देखा तो वजह कुछ और थी। मैंने उसे पूछा और उसने मुझे शुरू से अंत सब कुछ कहा। और वो एक चीज़ जो उसके जुबान से निकले हर लब्ज़ मैं मुझे सुनाई दे रही थी वो था 'तुम्हारा नाम'। क्या प्यार थी उसकी! बातों से लगा ही नहीं जैसे तुम उसके पास नहीं हो। जिंदगी में नहीं थे उसके फिर भी तुम ही उसके जिंदगी थे। जब मुझे यह सब कुछ पता नहीं था, मैं जान्हवी से मिला नहीं था तब मेरी जिंदगी मुझे कुछ ख़ास नहीं लगती थी। मैं बहुत बड़ा चित्रकार था। हर रोज़ मेरा नाम किसी ना किसी किस्से में news और अखबार में दिखती थी पर मेरे लिए यह सब कुछ बहुत ही आम था। इन सब में ऐसा कुछ भी ख़ास नहीं था जिस के लिए मैं अपने आप पर गर्व महसूस कर सकूं। लेकिन उस दिन जान्हवी के आखों से निकल रहे उन आशुओं के बूंदो ने मुझे एक ख़ास मकसद दे दिया। अधूरे रास्ते ठहरी हुई हमारी दोस्ती को अच्छे से निभाकर आसमान की उंचाईओं में एक नया नाम देने का रास्ता दे दिया। चित्रकार था मैं। एहसाओं से चित्र बनाता था और इसी एहसासों को पहचानने की खूबियों ने उस दिन जान्हवी के दिल की उन अनकही बातों को मेरे दिल तक आसानी से पहुंचा दिया। चाहे कितनी भी छुपाने की कोशिश कर ले उसका दिल तुम्हे ढूंढ रहा था। जिंदगी के हर हिस्से में, आस-पास हर कहीं बस तुम्हारी जरुरत महसूस कर रहा था। India में मेरे एक दोस्त के जरिये मैंने तुम्हारे वारे मैं पता करने की कोशिश की और उसने तुम्हारे वारे वारे जो कुछ भी पता लगाकर मुझे बताया उन सब को सुन कर मुझे यह पूरा यकीन हो गया की तुम्हारे दिल में भी कुछ उसी तरह के एहसास हैं, कुछ उसी तरह के जरूररत थे। ठान लिया मैंने की तुम दोनों के प्यार को उसके मंजिल तक पहुंचा के ही रहूंगा। मैंने एक music director की मदद से जान्हवी के गाये हुए हर गीत को लोगो के दिल तक पहुंचाया। आहिस्ते-आहिस्ते उसका नाम देश के हर सहर, गाँव, चौराह के हर दिवार पर दिखने लगा। फिर उन सबको देख कर जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ वो मुझे पहले से ही पता था। तुम बेचैन होने लगे, फिर से उन अधूरे छोड़े हुए सपनो को देखने लगे जिस पर सिर्फ तुम्हारा और जान्हवी का हक़ था। तुम्हे सिर्फ एक ऐसे मौके का तलाश था जो तुम्हारे दिल की बात सीधे जान्हवी तक पहुंचा दे और वो मौका मैंने तुम्हे दिया मेरे organize किये हुए उस stage show के जरिये। जब तुम जान्हवी के show में आये तब शो में जान्हवी ठीक वही गाना गा रही थी जो उसने सिर्फ तुम्हारे लिए लिखी थी। उसे सुन कर तुम में तुम्हारे दिल में छपाई हुई हर एक बात को आसानी से कह देने की हिम्मत आ गयी। फिर तुम उसे कहने ही वाले थे की जान्हवी ने तुम्हे रोक लिया। कुछ देर के लिए हैरान हो गया था मैं की क्यों किया उसने ऐसा। उस हैरानी का जवाब उसने मुझे रात को घर पर दिया...

दीपक - मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ किया और तुमने मेरे सारे कोशिशों को waiting list में डाल दी...! आखिर क्यों नहीं कहने दिया पंकज को उसकी दिल की बात...?

जान्हवी! कुछ सुनाई भी दे रहा है तुम्हे की क्या कह रहा हूँ मैं...? जान्हवी...!

क्यों नाच रही हो पागलों की तरह...?

जान्हवी - हाँ यार दीपक! पागल हो चुकी हूँ, दीवानी हो चुकी हूँ उसके प्यार मैं। तुम्हे क्या लगता है आज उसके जुबान से वो सारी बातें सुनने को मैं बेकरार नहीं थी...! थी यार! बहुत बेकरार थी! लेकिन जज़्बातों को रोक कर रखा कल के लिए। यह कहानी कल से शुरू होगी, ठीक उसी जगह, उसी समय पर। उसका रंग कुछ अलग होगा। आने वाली हर एहसास नयी होगी। सब कुछ बदल जाएगा और मैं...

दीपक - "और मैं हमेशा-हमेशा के लिए पंकज की हो जाउंगी", सायद यही कहने वाली थी वो। पर कह नहीं पायी। अचानक सासें फूलने लगी उसकी। चक्कर आने लगी। सब कुछ धुंदला-धुंदला सा दिखने लगा और फिर वो बेहोस हो कर निचे गिर गयी। जितना भी पुकारा मैंने उसे, उसके कानों तक कोई भी आवाज़ नहीं पहुंचा। यह सब देख कर मन में घबराहट सी होने लगी। मैंने थोड़ी सी भी देरी ना करते हुए जान्हवी को ले कर Hospital पहुंचा। वहाँ Doctors उसे अंदर ले कर गए और न जाने कितने सारे tests करने लगे। और फिर कुछ देर बाद...

Doctor - Miss. जान्हवी आपके रिश्ते में क्या लगती हैं...?

दीपक - जी... मैं उनका दोस्त हूँ।

Doctor - देखिये जो बात मैं कहने जा रहा हूँ उस के लिए उनके family से किसी भी member का यहां होना बहुत ही जरुरी है। so..., क्या आप उनके घर पर या उनके किसी भी रिस्तेदार को call कर के यहां बुला सकते हैं...?

दीपक - जी बात दरहसल यह है की उनके family में से यहां कोई भी नहीं आएगा क्यूंकि, कुछ साल पहले एक बात को ले कर जान्हवी और उसके परिबार में दरार पद गयी थी। ऐसा दरार जिसके लिए दुनिया की कोई भी मरमत्त किसी काम की नहीं है। अब अगर उसका कोई परिबार है तो वो खुद...

Doctor – Oh I See…! That's really pathetic…

दीपक - मैं जान्हवी का बहुत ही अच्छा दोस्त हूँ। बचपन का दोस्त। जो भी बात है आप मुझे बेफिक्र हो कर कह सकते हैं।

Doctor - देखिये! बात यह की जब कोई यूँ अचानक बेहोस होता है तब उसके पीछे बहुत सारे reason हो सकती हैं। Like low blood-pressure or any cause of malnutrition etc. etc.। इसीलिए सही वजह जानने के लिए हमने जान्हवी जी का तरह-तरह का टेस्ट करवाया और 15 मिनट पहले ही उनका Blood test report आया है...

दीपक - तो क्या कहती है वो report...? साफ़-साफ़ बताइये ना doctor की आखिर बात क्या है...?

Doctor - उनका blood test report यह साफ़-साफ़ explain करता है की Miss. Janhvi is now in the last stage of “Pancreatic cancer”।

दीपक - What...! Cancer...! Last stage…! यह आप क्या कह रहे हैं, Doctor...? बरसों बाद उसका खोया हुआ प्यार कल उसके पास वापस लौट के आ रहा है। और इसी खुसी में एक घंटा पहले वो खुसी से नाच रही थी, झूम रही थी। ना कोई sign और ना ही कोई symptoms, कोई बुरी आदत नहीं, कोई लापरबाही नहीं तो फिर cancer कैसे हो सकता है? Please, Doctor! आपसे request है की आप एक बार फिर से check कर लीजिये। हो सकता है की आपको कोई ग़लतफ़हमी हो गयी हो...

Doctor - नहीं Mr. Deepak! कोई गलतफहमी नहीं है। और रही बात इसके signs और symptoms की तो जान्हवी जी को जिस टाइप का cancer हुआ है उसका ना कोई proper sign दिखता है और ना ही कोई symptoms। उसमें पहले-पहले कुछ भी पता नहीं चलता। आप इसे एक silent disease भी कह सकते है जो बिलकुल खामोसी से पुरे body को आहिस्ते-आहिस्ते अपने कब्ज़े में कर लेता है। लेकिन हाँ! ऐसा नहीं है की सरीर में कोई रोग हो और उसकी कोई भी निशानी ना दिखे। इसके भी दीखते है लेकिन वो निसानी किसी के लिए भी रोज़ के जिंदगी में आने वाली छोटी छोटी परेशानिओं के तरह होती है Like..., पेट दर्द, पेट फूल जाना, सर चकराना, body weakness, बुखार Etc. Etc...

डॉक्टर उस बिमारी के वारे मैं मुझे समझाए जा रहे थे और मैं सुनता जा रहा था। लेकिन इतने सारे बातों में मुझे बस एक ही चीज़ बार-बार सुनाई दे रहा था, "जान्हवी के सपने टूटने जा रहे हैं और इसे वो वो बर्दास्त नहीं कर पाएगी। मर जायेगी वो... मर जायेगी..." मैं अचानक चौंक गया...

डॉक्टर – Mr. दीपक...! आप ठीक हैं...? मर. दीपक...!

दीपक - हाँ...! Doctor...! जितना भी पैसा खर्च हो मैं दूंगा। बस आप जान्हवी की जान बचा लीजिये। उसे कुछ हो गया तो मोहब्बत हार जाएगा। उसकी की हुई उन दर्द भरे दिनों का इंतज़ार बेमतलब हो जाएगा। उसने अपनी जिंदगी किसी और के नाम कर दिया है। दो-दो ख्वाहिशें और सपनों से भरी जिंदगी ख़त्म हो जायेगी। Please, Doctor! बचा लीजिये जान्हवी को... Please...!

डॉक्टर - देखिये मर. दीपक! मैं आपको कोई झूठी दिलासा दे कर अँधेरे में नहीं रखना चाहता। मिस. जान्हवी की बिमारी जिस स्टेज पर पहुँच चुका है उस स्टेज पर उनको बचा पाना नाउम्किन है। कोई भी operation, कोई भी medicine का अब कोई मतलब नहीं। काश... मैं आपसे कहपाता की You don’t worry… I’m sorry, Mr. Deepak! Really, very sorry!

दीपक - कितने दिन है उसके पास...?

डॉक्टर - ज्यादा से ज्यादा एक साल...

नर्स - डॉक्टर! मिस जान्हवी को होश आगया है।

डॉक्टर – Mr. दीपक! जानता हूँ यह सब सिचुएशन देख कर आपकी दिल की हालत कैसी हो रही होगी। फिर भी आपसे एक जरुरी बात कहना चाहता हूँ। किसी भी सख्स के लिए अपनी मौत के वारे में सुनना बहुत ही बड़ी बात होती है। हो सकता है की मिस. जान्हवी यह सब सुन कर बर्दास्त न कर पाए, टूट जाए। पर आपको उन्हें संभालना होगा। अपने बनाये हुए सोच से उनके सोच को काबू करना होगा। आज के बाद वो आपके नजरिये से इस दुनिया को देखेगी। मेरी यह बात सुन कर भल्ले ही आपको अजीब लगे लेकिन उनके आगे की जिंदगी की सच्चाई यह है की आपको उनके जिंदगी में आने वाले उन सारे सपने और ख्वाहिसों को रोकना होगा जिससे उनके दिल में जिंदगी को ज्यादा दिन जीने की उम्मीद बने। सारे रास्ते, सारे दरवाज़े बंद कर दीजिये और उन्हें एक ऐसी जिंदगी की ओर ले जाइये जिसकी सीमा ६ महीनों के अंदर ही अंदर ख़त्म हो जा रही हो।

दीपक - जिंदगी में इतनी बड़ी मुश्किल से कभी सामना नहीं हुआ था मेरा। मेरे आगे ही बैठी थी वो और बार बार पूछ रही थी की क्या हुआ था मुझे? मैं यूँ अचानक बेहोस कैसे हो गयी? Doctor ने क्या कहा...? जुबान थरथरा रहा था मेरा। कैसे कहता उससे की वो... पर कहना मजबूरी था मेरा। इससे पहले की तुम्हे ले कर उसके दिल कोई और ख्वाहिश बने, कोई ऐसा सपना सजा ले वो जो आगे जा कर ऐसा टूटेगा की तोड़ देगा उसे, उसे सच्चाई का पता होना जरुरी था। कह दिया मैंने उसे से सब कुछ; उसके बिमारी के बारे में, doctor की कही हुई हर एक बात के बारे में। कह दिया मैंने उसे की उसकी जिंदगी की सीमा सिर्फ ६ महीने तक ही है जिसमें वो तुम्हारे साथ एक सूंदर और लम्बी जिंदगी की ख्वाहिश नहीं कर सकती। हैरानी तो मुझे तब हुई जब उसके जिंदगी का वो काला सच्च सुनने के बाद भी उसके आखों से एक बून्द आशु नहीं गिरा। कुछ देर वैसी ही खामोश बैठी रही जैसे दिल मैं किसी बात के लिए बड़ी हिम्मत बना रही हो। और फिर कुछ देर बाद उसने मेरा नाम लिया...

जान्हवी - दीपक! कल मुझे तुम्हारी एक बहुत ही बड़ी हेल्प की जरुरत है। क्या तुम करोगे...?

दीपक - हाँ! बोलो...!

जान्हवी - कल पंकज मुझसे अपनी दिल की बात कहने आ रहा है। साथ वो सारे सपने, ख्वाहिशें और उम्मीदें ले कर आएगा जिनका अब मेरे जिंदगी के साथ कोई बास्ता नहीं है। वो सब मैं कभी भी मेरी इस अधूरी जिंदगी में पूरी नहीं कर पाउंगी। जिंदगी में बहुत सारे दर्द सह लिया है उसने। बहुत सारे रास्तों को अधूरा रहते देखा है। बार-बार दिल टूटा है उसका। लेकिन फिर से नहीं। आज कोश ती हूँ अपने आपको की क्यों आयी लौट के उसके पास क्यों जगाई मैंने फिर से उस अधूरी आस को जो उसने अपने दिल से कहीं खो दिया था। आज अगर उसे पता चला की जिस नए जिंदगी की मिलने की वो बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है वो वक़्त के ज़ंजीरों में कैद है, कभी भी मिट सकती है, तो वो टूट जाएगा। और इस बार उसे सहारा देने के लिए कोई नहीं है उसके पास। हाँ! यह सच है की नफरत बुरी होती है पर उस में ताकत भी बहुत होती है ख़ास कर के तब जब हम जिंदगी के सबसे बड़ी मुश्किलों से अकेले गुजर रहे हों। तब कहीं ना कहीं वो हमारा साहरा बनता है, हमें अपने आपसे लढने की हिम्मत देता है। आज पंकज को उसी नफरत की जरुरत है। वो मुझसे जितना नफरत करेगा मेरा प्यार कभी उसे टूटने नहीं देगा...

दीपक - और तुम...?

जान्हवी - यार! अब आदत सी हो गयी है। मरने के बाद सायद यही एक एहसास मेरे साथ-साथ जाएगा की ऐसा प्यार किया था मैंने जिसके हर एक कदम पर मुझे नफरतों के काटों से सजी हुई राहें मिली।

दीपक - अगले ही दिन साम को जब तुम उससे बीच पर मिलने आये तब उसने तुम्हारे सामने मुझे उसका बॉय फ्रेंड बताया जिससे वो बहुत ही जल्दी शादी करने वाली थी। आशुओं को बहुत अच्छी तरह से छुपाकर कुछ इस तरह का नाटक किया उसने की तुम्हारे दिल में उसके लिए सिर्फ नफरत करने की ही जगह रह गयी। उसके आखरी सांस तक वो तुम्हारे आस-पास ही रही लेकिन एक बार भी तुम्हे खुद का चेहरा देखने नहीं दिया। तुम चीड़-चिड़े हो गए, गुस्सा करने लगे, प्यार के नाम से छिड़ने लगे। तुम्हारे इसी बर्ताब में जान्हवी की जीत थी। क्यूंकि वो समझ चुकी थी अगर तुम फिर से प्यार से प्यार करने लगोगे तो वो प्यार उसके हर यादों को तुम्हारे दिल में वापस खींच लाएंगी। पर एक आखिर बार तक़दीर का जो उसने फिर से जानवी पर किया। एक बीच के पास उसने एक आवाज़ सुनी जो बिलकुल उसी एहसास और उसी तरह के दर्द से भरी हुई थी जिस तरह के दर्द में वो तड़फ रही थी। एक १०-१२ साल की छोटी सी लड़की अपने वायलिन में कुछ ऐसी धुन बजा रही थी जो बार-बार उसके पास जाने के लिए जान्हवी को मजबूर करता रहा। आखिर क्या रिस्ता है उसके साथ जो इतनी बेचैन कर देती है उसे। जब मैंने पता लगाया तो वो छोटी लड़की और कोई नहीं तुम्हारी बेटी ही थी, "श्रुति"। यह जान कर की श्रुति तुम्हारी बेटी है वो उससे एक बार मिलने के लिए, एक बार बात करने के लिए तरसती रही पर जाती बी तो किस हक़ के साथ। फिर तुम्हारे नजदीक आने का डर ने बेड़ियाँ दाल दी उसके पैरों में। उसने तुम्हे टूटने ना देने के लिए तुम्हारे जिंदगी में नफरत ले आयी। लेकिन वो यह नहीं जानती थी की उसके प्यार को तुम्हारे जिंदगी से यूँ दूर कर देना तुम्हारी बेटी को एक ऐसे अँधेरे में धकेल देगी जहां वो उसके जिंदगी के सबसे गहरे हिस्से को खो बैठेगी। और यही बात उसकी सबसे बड़ी हार बन गयी...

आखिर क्या नाम दूँ मैं उस दिल को...? सचमुच! वो एक पागल ही थी। गलती हर कोई करता रहा लेकिन सजा सिर्फ उसे ही मिलती रही। फिर भी एक सवाल नहीं किया, किसी के खिलाफ नहीं गयी, कोई भी आवाज़ नहीं उठाया। दिल अंदर ही अंदर रोता रहा और वो हसती रही; सिर्फ तुम्हारी खुसी के लिए। देखना चाहते हो कैसे तुम्हारी की हुई हर गलती, हर बेवफाई को उसने आसानी से अपने नाम लिख दी है...?

पंकज,

जब तक तुम्हें यह खत मिलेगी तब तक मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा चुक्की हूँगी पर कुछ ऐसी बातें जिसे मैं अपने साथ ले कर नहीं जा सकती। उन पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा हक़ है। जन्दगी में तुमसे की हुई किसी भी वादे को नहीं निभा पायी मैं। जब पहली बार तुम मेरी जिंदगी में आये तब मैंने तुमसे वादा किया था की हमेशा तुम्हारा साथ दूंगी, कभी किसी मोड़ पर तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगी पर मैंने मेरा वादा तोड़ दिया। अकेला कर दिया तुम्हे। किसी ने मुझे इतना मजबूर कर दिया की मैं कुछ नहीं कर सकी। अगर उसकी बात नहीं मानती तो किसी की जान चली जाती, तुमसे तुम्हारा परिबार छीन जाता। बिना बड़ों के आशिर्बाद के, बिना परिबार के जीना कितना मुश्किल होता है यह मैं जानती थी। नहीं बना पायी मेरे प्यार को इतना खुदगर्ज़ और धोका दिया तुमको। बहुत बड़ा धोका दिया मैंने। तुमसे बहुत दूर चली गयी। लेकिन मेरे सारे सपने जो मैंने सिर्फ तुम्हारे साथ देखा था वो यहीं तुम्हारे पास ही रह गए। मैं सिर्फ वापस आयी थी उन सपनो को एक बार मेरे आखों के सामने सच होता हुआ देखने के लिए। देखि मैंने धुले के जोड़े में सजी हुई तुम्हारा रूप। सच में! बहुत सूंदर लग रहे थे। सुकून मिल गयी मेरे दिल को की मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी अधूरी नहीं रही। मिल गयी वापस तुम्हे तुम्हारी सारी खुशियां। मैं फिर से वापस लौट गयी और अपनी जिंदगी की रुख एक ऐसे दिशा की ओर मोड़ दी जैसे की मुझे फिर कभी यहां वापस लौट के आना ना पड़े। लेकिन मैंने तक़दीर ही ऐसी पायी थी की चाहकर भी तुमसे जुड़ा हो ना सकी। एक दिन मुझे पता चला की तुम्हारी शादी सुधा जिंदगी बिखर गयी है। क्या वजह हो सकती थी इसके पीछे...? कहीं मैं तो नहीं! दिल के एहसास मुझे जो दिखाने की कोशिश कर रहे थे मैं उस पर ठीक से यकीन नहीं कर पा रही थी। जैसे तुम्हारे बिना मेरी हर सांस अधूरी चल रही थी, क्या तुम्हारे सांस भी...? फिर जब उस show के दौरान तुम मुझसे मिलने आये और कहा की तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो तब मैं तुम्हारे दिल में छुपे हर एहसास को समझ गयी थी। उस रात तुमसे ज्यादा मैं बेचैन थी तुम्हारे दिल की बात सुनने के लिए। पर रोक दिया मैंने अपने आपको। बरसों बात मिली खुशियों के अनमोल पल मैं पूरी रात महसूस करना चाहती थी। वो सुकून जो उस वक़्त मेरे दिल में था वो ना किसी सख्स के और ना ही वक़्त के, किसी के कैद मैं नहीं था। खुसी से नाच रही थी, गा रही थी और फिर अचानक...! अगले दिन शाम को जो कुछ भी तुम्हारे साथ हुआ उसमें तुम्हारा मेरे ऊपर गुस्सा करना बिलकुल जायज़ था। लेकिन सच्च कहूं तो वो सब भी मेरी एक बहुत बड़ी मजबूरी थी जो मुझे तक़दीर ने दी थी। मेरी तक़दीर ने हमेशा मेरे साथ कुछ ऐसा खेल खेला की मेरी हर मजबूरी को बेवफाई का नाम मिलता रहा। इसी तरह जिंदगी भर मिली हुई हर दर्द के लिए मैंने तक़दीर को कसूर देती आयी। आज आहिस्ते-आहिस्ते इस जिस्म जान जा रही है। आज मुझे सब कुछ साफ़-साफ़ नजर आ रही है। जिस प्यार के ना मिलने के ग़म में मैं हमेशा तड़फती रही, रोती रही, वो प्यार जिंदगी भर मेरे साथ रहा। जिस्म जुदा होने से दिल कभी भी जुदा नहीं होते। प्यार की गहराई को कभी कोई नहीं नाप सकता। मेरे तड़फ ही मेरा प्यार था और तुम्हारा गुस्सा ही तुम्हारा प्यार था। फिर भी अगर तुम्हे लगता है की गलती मेरी है तो Please! माफ़, कर देना मुझे। आज मेरे दिल में कोई राज़ कैद नहीं है। आज मेरी हर बात सुनने के बाद तुम्हारी नज़र में मैं बेवफा नहीं रहूंगी। आज मेरे दिल के पास कोई भी मौका नहीं है अपनी एहसासों को छुपाने के लिए।

हाँ, पंकज! बहुत प्यार करती हूँ तुमसे। आज तक दिल में बस एक ही ख्वाब सजाती आयी हूँ। तुम्हारे दिल के उस जगह का हकदार होना चाहती हूँ जो तुमने उस लड़की को देने के लिए रखा है जो तुम्हे तुम्हारे जिंदगी के, हर एहसास के और तुम्हारे आत्मा का अधूरा हिस्सा लगे... क्या तुम वो जगह मुझे दोगे...?

जानते हो पंकज! तुम्हारी बेटी बिलकुल तुम्हारी तरह दिखती है; सूंदर और बहुत प्यारी। तमनाः थी दो घडी बात करने के लिए पर कैद थी समय के जंजीरों में।

सच है यह की इस जिंदगी में मुझे तुम्हारा साथ नहीं मिला लेकिन इंतज़ार करुँगी मैं; अगले जनम में। किसी ऐसी जगह जहां चैन और सुकून के लिए सारी राहें खुली हो। तेज़ हवाएं, खुदरत की खुसबू और दुनिया के सारे बंधनों से कैद इन सागर के लहरों के पास... बस एक बार अपनी आखें बंद कर के मुझे याद कर लेना। मैं तुम्हे तुम्हारे आखों के सामने ही मिलूंगी...

तुम्हारी... जान्हवी

श्रुति - पापा! क्या हुआ...? ऐसे क्या देख रहे हैं आप...?

पंकज - "बस एक बार अपनी आखें बंद कर के मुझे याद कर लेना। मैं तुम्हे तुम्हारे आखों के सामने ही मिलूंगी..." सच कहा था उसने। बिलकुल मेरी आखों के सामने ही है।

श्रुति - हर जगह, हर वक़्त आपको ऐसी ही मिलूंगी; बिलकुल ममा की तरह। I love you, पापा! Love you very much...

जिसने मुझे पैदा किया था उसका चेहरा तक मुझे याद नहीं। ना माँ का कोई प्यार मिला ना ही माँ बुलाने का मौका पर मेरी जिंदगी की इसी कमी ने 'माँ' शब्द का वजूद मुझे अछि तरह से समझा दिया था। औलाद के जिंदगी में आने वाले हर रास्ता, हर मोड़ का पता जिसके पास होती है वो होती है माँ, दुनिया की बड़ी से बड़ी तकलीफें, परेशानी और दर्द की परछाई से दूर रखने के लिए जो ढाल बन कर कड़ी रहती है वो होती है माँ। माँ का कर्तब्य सिर्फ पैदा करने तक सिमित नहीं होता है। पापा की जिंदगी में हुई सारी घटनाएं और ममा की उस चिट्ठी ने मुझे मेरा सारा जवाब दे दिया था। बिलकुल महसूस हो रहा था मुझे उस दिन की जिंदगी में हर मोड़ पर, हर रास्ते में साथ चलने वाली थी मेरे साथ। चाहे कोई भी परेशानी, मुश्किल आये जिंदगी में, लड़ने के लिए हौसला था मेरे पास। सब कुछ है यहां... तेज हवाएं, खुदरत की खुसबू और दुनिया के सारे बंधनो से आजाद यह सागर की लहरें। इस सब में वो एक खुसबू जिसे में जिंदगी भर अपने पास पाउँगा... मिस. जान्हवी जोशी...! नो... मरस. जान्हवी सिंघानिया। मेरी ममा।

पंकज - तो बेटा तुम्हारा book ready हो गया कल press में जाने के लिए...?

श्रुति - हाँ, पापा! बस बाकी है आखरी के २-३ lines...

आज भी याद है मुझे! जब मैंने ममा से पूछा की कैसे जानती है वो इस कहानी को इतनी अछि तरह से...? तब उन्होंने जवाब दिया, "सायद किसी ऐसे किताब में जिसे पढ़ कर कोई भी दिल की गहराईओं को, उसके एहसाओं को बहुत अछि तरह से समझ जाए।"

आज उनकी वो ख्वाहिश मैं पूरी करने जा रही हूँ; मेरी लिखी हुई इस किताब के जरिये।

"संगीत" जो दुनिया की हर एहसास से जुडी हुई होती है वो हर वक़्त हर मोड़ में मुझसे कदम से कदम मिला कर मेरे साथ चलती रही। वो हर एक राज़ से पर्दा उठाती रही जिसके वारे में मुझे कभी, कुछ भी पता नहीं था। और आज वो संगीत खुद एक एहसास बन कर मेरे जिंदगी से पूरी तरह से जुड़ चुकी है जो अब जिंदगी भर कभी भी मुझे प्यार की कमी महसूस नहीं होने देगा...

सही कहा ना पापा...?

पंकज - हम...! बिलकुल, मेरी गुड़िया...!