Meri Janhit Yachika - 8 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | मेरी जनहित याचिका - 8

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मेरी जनहित याचिका - 8

मेरी जनहित याचिका

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 8

दो दिन बाद वह फिर आने वाले थे तो हमने चिंतन-मनन कर कुछ प्रश्न, कुछ शर्तें तैयार कीं। उनसे पूछने के लिए। वह जब आए तो हमने अपने प्रश्न किए। जिसके उन्होंने संतोषजनक उत्तर दिए। हमने कहा कि भविष्य में या कभी भी कोई शर्त नहीं रखी जाएगी कि यह काम ऐसे किया जाएगा या वैसे। इसे शामिल कर लें या इसे हटा दें। यह बातें भी जब वह थोड़े ना-नुकुर के बाद मान गए तो हमने चंदा लेना स्वीकार कर लिया। पहले महीने चंदा इतना मिला कि काम को आगे बढ़ाने में आर्थिक समस्या ना आई। लिटरेचर को छपने के लिए दे दिया गया। हम दोनों ने सोचा कि इन लोगों से कहीं बीच में एक कार्यालय खुलवाने की व्यवस्था करने की बात कही जाएगी।

सदस्यों की संख्या धीरे-धीरे ही सही लेकिन बढ़ रही थी। प्रोफ़ेसर साहब उनके साथियों का भी सहयोग मिलने लगा था। इस बीच घर पर ही जुड़ चुके कुछ लोगों की शंपा ने चार मीटिंग्स लीं। चारों में वह जब बोली तो लगा वाकई दशकों का अनुभवी कोई प्रखर वक्ता, नेता है। उसकी बातें सुनकर रगों में लगता जैसे लहू खौल उठेगा। मीटिंग में शामिल लोग इतने इंप्रेस हुए कि उसके कट्टर समर्थक बन गए। काम बढ़ता गया। अब हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या आ रही थी समय की।

मैं कॉलेज से इतना समय नहीं निकाल पा रहा था कि संगठन के कामों के लिए पर्याप्त समय दे सकूं। इससे रोज कुछ ना कुछ छूट जाता। शंपा बिल्कुल भूत सी जुटी हुई थी।

इसी बीच एकदिन मेरे स्कूल्स एंड कॉलेजेज ग्रुप ने एक सम्मेलन आयोजित किया। जिसमें भारत में गरीबों एवं महिलाओं की स्थिति और शिक्षा विषय पर बोलना था। प्रोफ़ेसर साहब की इच्छा और प्रयास से शंपा को उसमें बोलने के लिए बतौर विशिष्ट अतिथि आमंत्रित कर लिया गया। शंपा के पास वैसे तो बहुत कुछ था इस विषय पर बोलने के लिए लेकिन उसने फिर भी और तैयारी की।

वह अपने संगठन की संयोजक की हैसियत से वहां पहुंची थी। वक्ताओं में कई शिक्षाविद्, कई सफल एंजियोज की सफल संचालिकाएं, सफल महिला उद्यमीं शामिल थीं। गु्रप का कार्यक्रम होने के कारण ग्रुप के सभी संस्थानों के सारे स्टॉफ, सीनियर छात्र शामिल हुए। पूरा ऑडिटोरियम भरा था। मैं थोड़ा सशंकित था कि शंपा कहीं इस भीड़ के सामने बोलने में घबड़ा ना जाए, बहक ना जाए। लेकिन वह एकदम निश्चिंत थी।

बड़े से स्टेज पर वह जब अन्य आमंत्रित अतिथियों के पास जाने लगी तो मुझ से गले लग कर बोली ‘समीर मैंने तो हार कर अपने को अंधेरों के हवाले कर दिया था। मगर तुमने वहां से मुझे खींच कर निकाल लिया। उजाले से भरी एक नई दुनिया में ला खड़ा कर दिया। वाकई मुझे रेगिस्तान से निकाल कर खूबसूरत उपवन में ले आए। जहां मेरे लिए हर तरफ संभावनाएं ही संभावनाएं दिख रही हैं। इतनी कि मैं अपने लक्ष्य को आसानी से पाते हुए स्वयं को देख पा रही हूं।’ फिर अचानक मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेती हुई बोलीं। ‘समीर मेरे विश्वास को कभी तोड़ना मत। इस मिशन को जो इतना आगे बढ़ाया है उसे कभी बीच में छोड़ना मत।’

यह बोलते-बोलते शंपा एकदम भावुक हो उठी थीं। आंखें भर आई थीं। मैंने सोचा कहीं इस भावुकता में वह बहक ना जाएं तो उसे संभालते हुए कहा तुम कैसी बातें कर रही हो, ऐसा सोचती भी कैसे हो? मैं तो सोच भी नहीं पाता। तभी प्रोफे़सर साहब आए तो उसने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। फिर मैंने उसे उस जगह ले जाकर बैठा दिया जहां स्वागत टीम के सदस्य स्टेज तक ले जाने के लिए उपस्थित थे।

मैं वापस ऑडिटोरियम के एग्जिट गेट पर आ गया। व्यवस्था में मेरी ड्यूटी लगी थी। कुछ देर बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। वक्ताओं ने अपने विचार रखने शुरू किए। ज़्यादातर बातें वही रटी-रटाई, आदर्शवादी, तथ्य और तर्क से परे थीं। इसीलिए ऐसे सम्मेलनों से मैं हमेशा दूर भागता था। चौथे नंबर पर शंपा ने बोलना शुरू किया। तो मैं ध्यान से सुनने लगा। ना जाने क्यों मेरी धड़कनें बढ़ गयीं। शुरुआती दो मिनट में मुझे लगा कि वह भी अपनी पूर्ववर्तियों की तरह ही बोल कर बस निपटाएगी ही। लेकिन तभी उसने गियर बदला और देखते-देखते छा गई।

करीब पचीस मिनट के भाषण में मैंने नोट किया कि चार बार ताली बजी। जो बातें उसने कहीं उसका असर मैं हर तरफ देख रहा था। मगर साथ ही बाद में बोलने वाले कई वक्ताओं, कुछ जो परंपरावादी, यथास्थितिवादी थे उन लोगों ने शंपा के विचारों से अप्रत्यक्ष रूप से असहमति व्यक्त की। विरोध भी संकेतों में कर दिया। लेकिन शंपा ने अपनी किसी बात को वापस नहीं लिया। वह झुकी नहीं। सम्मेलन लंबा चला। करीब तीन घंटे।

श्रोता क्योंकि कॉलेज के ही थे तो सब आखिर तक रुके रहे। सुनते ना तो आखिर जाते कहां। सम्मेलन के अतिथियों ने चाय नाश्ता किया। शंपा उन लोगों के बीच चर्चा के केंद्र में थी। इस बीच शंपा ने कई बार फ़ोन कर मुझे बुलाया। कि वह उन अतिथियों से मुझे मिलवाना चाहती है। लेकिन मैं अपनी ड्यूटी और अपने एक्स्ट्रा स्ट्रिक्ट इंचार्ज के कारण जा नहीं सका। उसे मैसेज कर दिया कि नहीं आ पाऊंगा। वह मुझसे पहले घर पहुंच गई थी। कार्यक्रम के ऑर्गेनाइजर ने सभी अतिथियों को उनके आवास से लाने पहुंचाने की व्यवस्था की थी।

लोग शंपा को वहां मेरे इतना करीब देख कर कुछ उत्सुकतापूर्ण नज़रों से देखते रहे। हमारे उसके बीच रिश्ते को केवल प्रोफ़ेसर जानते थे। अच्छा ही हुआ था कि मैं उसके साथ घर नहीं गया था। मीडिया से रिलेटेड ज़िम्मेदारी भी काफी कुछ मेरे ही पास थी। उसे पूरा कर घर पहुंचते-पहुंचते काफी रात हो गई थी। शंपा को मैंने वहां अपना इंतजार करते पाया। स्टडी टेबल पर उसने तमाम कागज़ फैला रखे थे। बेड पर भी। मतलब वह अपने काम में अब भी व्यस्त थी।

उसका एक मोबाइल बजे जा रहा था। लेकिन वह मुझे देखते ही किसी छोटी बच्ची सी आकर मेरे गले लिपट गई। समीर, समीर कहती हुई। मैंने उसे ठीक उसी तरह गोद में उठा लिया जैसे कोई पिता ऐसे में अपने बच्चे को उठा लेता है। मैं उसको ऐसे ही लिए-लिए अंदर कमरे में आया। और उसके होठों को चूम कर एक बार प्यार से बांहों को और कस कर उतार दिया नीचे।

उसने बेड पर ही बैठते हुए कहा ‘समीर मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी बातों को इतनी इंपॉर्टेंस मिलेगी। इस कार्यक्रम से मुझे एक तरह से अपने मिशन के लिए बेस्ट डोज मिल गई है। इसका क्रेडिट पूरा-पूरा तुम्हें जाता है।’ उसकी खुशी देखकर मैं भी बहुत खुश हुआ।

मैंने कहा शंपा तुम्हारा मिशन, तुम्हारी सफलता ही मेरा मिशन मेरी सफलता है। अभी तो हम लोग सिर्फ़ शुरू ही कर पाए हैं। अभी तो हमारा टारगेट बहुत दूर है। इतना दूर है कि अभी उसका अक्स भी नहीं दिख रहा है। इसलिए हमें अपने प्रयास और तेज़ करने पड़ेंगे। जैसे-जैसे सफलता मिलेगी हमारी जिम्मेदारी भी वैसे-वैसे बढ़ती जाएगी। मेरी इस बात पर वह बोली। ‘र्मैं समझ रहीं हूँ समीर। इसके लिए मैं हर क्षण तैयार हूं’

ऐसी बातों के साथ-साथ हम दोनों ने खाना खाया। शंपा होटल से ही खाना ले आई थी। बहुत सादा सा खाना। दाल-रोटी, सब्जी, सलाद। शंपा किचेन से दूर भागती थी। उसकी यह आदत मुझे अच्छी नहीं लगती थी। खाने के बाद एक या दो पैग व्हिस्की के लेना हम दोनों की आदत थी। नहीं तो हम दोनों थकान से अपने को बहुत पस्त पाते। व्हिस्की लेने के बाद शंपा ने कार्यक्रम को लेकर कुछ और बातें भी कीं। आखिर में यह भी बताया कि एक एनजियो चलाने वाली, जिनके पति बड़े बिज़नेसमैन हैं, ने उसे अपने घर बुलाया है।

वह मिशन से जुड़ना चाहती हैं। अपनी भरसक मदद देने को तैयार हैं। खासतौर पर आर्थिक। उसकी इस बात पर मैंने कहा शंपा हम एक ही दिन में कुछ ज़्यादा ही सक्सेज तो नहीं पा गए। तो शंपा बोलीं ‘सक्सेज जैसा तो र्मैं नहीं मानती, लेकिन तुम कहते हो तो मान लेती हूं।’ ‘मान रही हो तो चलो सेलिब्रेट करें।’ ‘सेलिब्रेट!’ ‘हूं सेलिब्रेट।’ ‘मैं समझ गई तुम क्या सेलिब्रेट करोगे। मन मेरा भी है सेलिब्रेशन का, आओ करते हैं।’

शंपा की यही साफ़गोई मुझे लूट लेती थी। मैं उसकी इसी अदा के कारण उसे ऐसे अवसर पर प्यार से माई डियर एम एल वी (मॉडर्न लेडी वात्स्यायन) कह कर जकड़ लेता था। इस पल भी मैंने यही किया। जी भर हम दोनों ने बड़ी देर तक सेलिब्रेट किया।

अगले दिन प्रिंट मीडिया में कार्यक्रम को अच्छी खासी कवरेज मिली थी। शंपा की बातों को खासतौर पर जगह दी गई थी। यह देख कर शंपा का उत्साह दोगुना हो गया। मैंने कहा शंपा वह दिन दूर नहीं जब तुम फ्रंट पेज पर छपा करोगी। रोज। वह बोली ‘हां समीर। मेरा उद्देश्य अपने मिशन को सफल होते देखना है। जैसे-जैसे हम सफल होंगे। यह मीडिया वैसे-वैसे हमारे करीब आएगा। काश ये मीडिया हमें, हमारी बातों की अहमियत समझता। हमें अपना पॉजिटिव सपोर्ट देता तो हमारा काम आसान हो जाता।

हमारी बातों को सनसनी बनाकर हमें यूज ना करे। इसने जिस तरह से हमारी बातों को छापा है वह वास्तव में सनसनी बनाने का ही प्रयास दिख रहा है।’ शंपा के इस नजरिए ने मेरा उत्साह ठंडा कर दिया। हफ्ते भर बाद शंपा मुझे उस एनजियो संचालिका के पास लेकर पहुंची जिसने सपोर्ट के लिए ऑफर किया था। उसका शानदार बंग्लों, वहां खड़ी लग्ज़री गाड़ियों को देखकर मैं समझ गया कि एक बड़े बिजनेसमैन की बीवी का यह सब टाइम पास, सेलिब्रेटी बनने का जरिया भर है। यह एनजियो भी बस अपने फायदे के लिए चला रही है।

हमें विजिटर्स स्पेस में बैठा दिया गया। फिर काफी प्रतीक्षा के बाद यह बताया गया कि मैडम थोड़़ी देर में आने वाली हैं। थोड़़ा वेट करना पड़ेगा। मुझे बड़ी उलझन हुई कि बुलाकर गायब हैं। यह क्या तरीका हुआ। पंद्रह मिनट बाद वहां एक यंग लेडी आई। हमें अपने साथ लेकर चल दी। उसने एक बड़े से बहुत ही हाई-फाई सजे हुए ड्रॉइंगरूम को क्रॉस कर हमें एक कमरे में बैठा दिया। कमरा स्टडी रूम सा या यह कहें कि आराम कक्ष सा लग रहा था। किताबें जिस तरह की और जिस ढंग से रखी थीं उसे देख कर साफ था कि मकसद, दिखावा था। सजावट भर है। फर्नीचर बहुत ही पुराने स्टाइल का क्लासिकल लुक लिए हुए था।

वहां बैठकर गप्प सटाका करने के लिए उसी अंदाज में कुर्सियां पड़ी थीं। कर्व टीवी लगा था। हम दोनों को वहां बैठा कर कोल्ड ड्रिंक और भुने हुए काजू रख कर महिला चली गई। पूरे घर में सन्नाटा था। एक गार्ड और हमें अंदर बैठाने वाली एक लेडी के अलावा वहां कोई नहीं दिख रहा था। हमें यह सब बड़ा अटपटा लग रहा था। इस तरह इंतजार करना बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। मैं वहां से तुरंत चल देना चाहता था। लेकिन शंपा का रूख कुछ पता ही नहीं चल रहा था। वह लेडी टीवी भी चला कर नहीं गई थी कि मन उसी को देखने में लगाता।

आखिर मैंने शंपा से बोल दिया टू मच यार, अब मुझे नहीं लगता कि इस तरह और वेट करना चाहिए। शंपा बोली ‘ठीक है दो-चार मिनट और देख लेते हैं, फिर चलते हैं। ऐसे चल देना भी तो अच्छा नहीं।’ हम दोनों ने ड्रिंक और काजू को हाथ भी नहीं लगाया। आखिर पांच मिनट और बीतते-बीतते मैं उठने को हुआ तभी कमरे के दूसरी तरफ का दरवाजा खुला और बेहद डिजाइनर सलवार सूट पहने एक महिला ने प्रवेश किया। चेहरे पर अमीरी का टैग और हल्की मुस्कान लिए। खूबसूरत कसे हुए जिस्म की उस महिला को उसका गोरा रंग और आकर्षक बना रहा था। शंपा उसे देखते ही नमस्ते करते हुए खड़ी हुई। यंत्रवत सा मैं भी। मगर उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही मैं हक्का-बक्का रह गया। मेरे मुंह से नमस्ते भी पूरा न निकल सका।

मेरे जैसा ही झटका उस महिला को भी लगा। उसके चेहरे का रंग क्षण भर को उड़ा लेकिन बेहद पेशेवराना अंदाज में उसने उतनी ही तेज़ी से अपने को संभाल लिया। हम दोनों को नमस्ते का जवाब देते हुए शंपा से मुखातिब हुई। हमें बैठने को कहा। मैं एसी के कारण बहुत ज़्यादा ठंडे उस कमरे में भी जूते के अंदर पैरों में पसीना महसूस कर रहा था। मैं देख रहा था कि अंदर-अंदर वह महिला भी कहीं विचलित थी। लाख कोशिशों के बावजूद वह कुछ अनिर्णय की स्थिति में भी लग रही थी। उसने और हमने, हम दोनों ने एक दूसरे को अच्छी तरह पहचान लिया था। अचानक शंपा ने धमाका कर दिया।

उसने मुझे अपना पति बताते हुए यह भी बताया कि मैं असिस्टेंट प्रोफे़सर हूं। कॉलेज का नाम भी बता दिया। उसने पहली बार मुझे अपना पति बताया था। मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई थी। और कोई वक्त होता तो मैं प्यार से उसे बांहों में भर लेता। मगर इस वक्त मैं मन ही मन सिर केे बाल नोच रहा था कि क्या जरूरत थी इतना परिचय देने की। नाम तो नाम, कॉलेज भी बता दिया। सीधे घर तक का रास्ता बता दिया।

उसके मुंह से मेरे लिए तारीफ ही तारीफ निकली चली जा रही थी। और वह महिला बहुत ही बेरूखेपन, यह कहें कि हमें हमारे छोटेपन का अहसास कराने पर तुली हुई थी। हमें अहसास करा रही थी कि हम मांगने आए हैं। वह शंपा, संगठन को लेकर बस फॉर्मेलिटी वाली बातें ही कर रही थी। मैं उसके ठीक सामने बैठा था। वह कनखियों से बार-बार मुझे देख रही थी। बातों ही बातो में अचानक ही उसने शंपा से पूछ लिया आपकी शादी कब हुई?

शंपा ने इस प्रश्न से एक झटका सा महसूस किया। फिर उसने कहा ‘यही कोई साल भर पहले।’ इस पर वह अचानक ही बोली ‘शादी बहुत लेट की क्या? अभी शादी को साल भर हुए हैं और आप इन कामों में लग गईं। अभी शादी एंज्वाय करनी चाहिए। और मैं नहीं समझ पा रही कि शादी फिर बच्चे वगैरह भी सोचेंगी ही। कैसे इस काम को करेंगी। यह कोई एक दो दिन का काम तो है नहीं। आप ने कहीं किसी से इंस्पायर्ड होकर जोश में ही बस यूं ही तो क़दम नहीं उठा लिया।’ यह कहते हुए उसने एक जलती दृष्टि मुझ पर भी डाल दी।

उसकी इस बात से मैंने शंपा के तन-बदन में लगी आग की तपिश महसूस की। उसके चेहरे की भाव-भंगिमा बदल गई थी। कुछ क्षण शांत रह कर उसने कहा ‘ये हमारी दूसरी मुलाकात है। बहुत सी बातें आप सम्मेलन में ही मेरी सुन चुकी हैं। उसके बाद यहां उसी प्वाइंट पर फिर बात करने का लॉज़िक मैं समझ नहीं पा रही हूं। मैं ऐसा सोचती हूं कि हमें टू दी प्वाइंट बात करनी चाहिए। इस जैसे काम को करने के लिए मैं जितना आगे बढ़ चुकी हूं आपको क्या लगता है कि किसी की नकल करने या बिना किसी विज़न के सिर्फ़ इंस्पायर्ड होने से किया जा सकता है।’

शंपा की तल्खी से मैं समझ गया कि बस अब यहां से जल्दी चलने का समय आ गया है। इस हाइहेडेड महिला ने जानबूझकर ही शंपा को इस तरह छेड़ा है कि यह मीटिंग तुरंत खत्म हो। वह अपने मकसद में कामयाब रही। मेरा अनुमान सही निकला। शंपा अपनी बात पूरी कर तुरंत उठ खड़ी हुई। और नमस्कार करती हुई बोली ‘मुझे लगता है और आगे बात करके हम एक दूसरे का समय ही बरबाद करेंगे।’ यह कह कर वह बाहर की ओर चल दी। मुझे तो उसके साथ नत्थी होना ही था। तो मैं हो लिया।

रास्ते में मैंने शंपा से कहा आखिर तुमने इसमें ऐसा क्या देख लिया था जो इससे मिलने चली आईं। ‘उस समय मैंने इसे जो समझा था उसके कारण चली आई। इस उम्मीद में कि यह बहुत हेल्पफुल होगी हमारे काम में। अब क्या बताऊं। सम्मेलन में जब मिली थी तो अलग खींच-खींच कर बातें कर रही थी। लग रहा था कि बस अभी सारी हेल्प कर देगी। ऐसी हेल्प करेगी, इतना काम करेगी कि बस अभी आंदोलन चरम पर खड़ा हो जाएगा।

मिलने के लिए ना जाने कितनी बार कहा था। चलते-चलते पूरा प्रेशर डाला था कि जरूर मिलूं। मगर अभी तो ऐसे गिरगिट की तरह बदल गई कि मैं शॉक्ड हूं। इतनी बड़ी फ्रॅाड होगी मैं सोच भी नहीं पाई थी। इस हिप्पोक्रेसी ने ही तो समाज का और बंटाधार किया है।’ मैंने शंपा को कुरेदने के लिए कहा लेकिन जो कुछ भी कर रही है अपने एन. जी. ओ. के थ्रू कर ही रही है न।

‘तुम भी क्या बात करते हो। सोशल वेलफ़ेयर आजकल ऐसी रईसजादियों के लिए एक फैशन बन गया है। ये न्यूज में बने रहना चाहती हैं। सोशल वेलफ़ेयर के नाम पर गवर्नमेंट से भी वसूली करती रहतीं हैं। हमेशा फैशन क्लबों, होटलों में एंज्वाय करने वाली ये औरतें समाज के बारे में जानती ही क्या हैं जो समाज की सेवा करेंगी। इन्हें अपने मेकप, हेल्थ क्लबों से मुक्ति मिले तब तो इन्हें कुछ दिखाई देगा।’

शंपा पूरी तरह से फायर थी, तभी मैंने कहा तुम ठीक कह रही हो। देखा नहीं किस तरह मेकप किया हुआ था, कितना मेंनटेन किया हुआ अपनी बॉडी को।‘ऐसी बॉडी का भी कोई मतलब है जो सिर्फ़ अपने लिए ही हो। समाज, देश, दुनिया के प्रति भी तो कुछ उत्तरदायित्व बनता है।’ तो क्या तुम यह आंदोलन अपना दायित्व समझ कर शुरू कर रही हो।‘तुम कह सकते हो ऐसा। लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचती। मैं कुछ भी केवल दायित्व निभाने के लिए नहीं करती।’

ऐसी ही बहस करते, कई और काम निपटाते हुए हम दोनों देर रात घर पहुंचे। संयोग से जिस-जिस काम के लिए जहां-जहां गए वहीं नाकामी मिली। इससे शंपा बहुत खिन्न थी। मैं भी। लेकिन मेरी खिन्नता का कारण दूसरा था। सिर्फ़ और सिर्फ़ उस रईसजादी को लेकर था। यह वह महिला थी जिसने मेरी सर्विस तीन बार हॉयर की थी। और तब यह मुझे इस घर में लेकर नहीं बल्कि गुरुग्राम के पास किसी जगह ले जाती थी। हर बार यह मुझे एक ही घर में ले गई। लेकिन बार-बार नए-नए रास्तों से।

वापसी के लिए ऐसी जगह छोड़ती जो उस घर के बजाय मेरे डेस्टिीनेशन के और आगे जाते थे। टैक्सी के लिए मुझे अलग से किराया देती थी। यह मेरी ऐसी क्लाइंट थी जो जब तक मुझे साथ रखती तब तक कुछ ना कुछ एक्सपेरिमेंट अवश्य करती रहती। उसकी हरकतों को मैं बहुत विकृत मानता था। वह ऐसी थी जिसे कोई भी पुरुष सैटिसफाइ नहीं कर सकता।

मैं उसकी हरकतों से इतना परेशान हो जाता था। इतना थक जाता था कि सोचता इसके लिए तो यह जितना पेमेंट करती है, यह उसका दस गुना करे तभी ठीक है। अन्यथा नहीं। यह सोचने के बाद जब इसने चौथी बार कॉन्टेक्ट किया था तो मैंने कह दिया कि कहीं और विजी हूं फिलहाल टाइम नहीं है। इस पर यह बहुत सख्त नाराज हुई थी। अब मुझे भीतर ही भीतर अपनी जान का खतरा नज़र आने लगा था।

इधर शंपा ने मेरे लिए जैसा धमाका इस रईसजादी के घर पर किया था वैसा ही घर पहुंच कर किया। दिन भर का थका था। देर रात जब सोने के लिए बेड पर पहुंचे तो हम दोनों दिन भर की असफलताओं पर जो बातें खाने-पीने से लेकर अब तक चली आ रही थीं उन्हें विराम दिया। टीवी ऑफ की। मैं लेट गया। शंपा बगल में बैठी थी। मोबाइल के मैसेज बॉक्स को चेक कर रही थी। मैंने सोचा सो जाएगी थोड़ी देर में, लेकिन उसने मोबाइल में व्यस्त रहते हुए ही पूछा।

‘समीर पता नहीं मैं सही कह रही हूं कि नहीं लेकिन मुझे वहां ऐसा लगा जैसे कि तुम दोनों एक दूसरे को देख कर चौंक गए थे। जैसे कि जानते हो एक दूसरे को और अचानक ही बहुत एबनॉर्मल सी पोजिशन में आमने-सामने आ गए। आखिर ऐसा क्यों हुआ?’ शंपा की इस बात ने मुझे एकदम हिला कर रख दिया। बड़ी मुश्किल से खुद को संभाले लेटा रहा। कुछ जवाब सूझ नहीं रहा था तो चुप था।

तभी वह फिर बोली ‘सो गए क्या? कुछ बोल नहीं रहे हो।’ मैंने सोचा इसे तुरंत कुछ जवाब ना दिया तो इसका शक और गहरा हो जाएगा। मैंने नींद में होने का ड्रामा करते हुए कहा। ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था। पता नहीं तुम्हें ऐसा क्यों लगा। बात को डायवॉर्ट करने की गरज से मैंने यह भी जोड़ दिया कि शॉक्ड तो मैं तुम्हारी बात से हुआ था। ‘मेरी बात से, मैंने ऐसा क्या कहा था?’ क्यों? तुमने मुझे हसबैंड कह के इंट्रोड्यूज किया।

‘ओह.... नहीं हो क्या?’ हूं क्यों नहीं, शॉक्ड इसलिए हुआ कि तुमने मुझे पहली बार हसबैंड कहा। वह भी वहां उसके सामने। उसके पहले तुमने कभी नहीं कहा। ‘ओफ्फो समीर तुम भी ना अभी तक पति कहा नहीं कहा इसी दायरे में पड़े हुए हो। अभी तुम यह भी पूछ सकते हो कि मैंने तुम्हें पति माना कब से? तो मैं क्या जवाब दूंगी। देखो हमारा तुम्हारा जो रिश्ता है, तुम्हें स्पष्ट हो जाए इसलिए मैं यह भी जोड़ रही हूं कि पति-पत्नी का जिसे तुम आज समझ पाए हो कि सिंदूर डाला, फेरे लगाए, माला पहनाई और बन गए पति-पत्नी।

मैं यह मानती हूं कि हमारा तुम्हारा आज जो रिश्ता है। यह धीरे-धीरे विकसित हुआ है। और यहां तक पहुंचा। आगे कहां तक जाएगा यह मैं नहीं जानती। लेकिन मेरी इच्छा यही है कि जीवन भर चले। या रिश्ते में जब तक मधुरता है। खुशबू है, अपनत्व है। जीवन राग की मिठास है तब तक। समझे माई डियर समीर। जिस दिन यह चीजें ना रहें रिश्तों में, उस दिन हमें खुशी-खुशी अलग हो जाना चाहिए। रिश्ते का बोझ ढोने की कोई ज़रूरत ही नहीं।

यदि हम भी यही करते हैं तो हममें बाकी में फर्क़ क्या रह जाएगा। समीर हमें फर्क़ बनाए रखना है। क्यों कि हमें बहुत-बहुत काम करना है। जीवन राग के रस को तरोताज़ा बनाए रखना है।’ और इसके बाद शंपा ने कई रोमांटिक बातें कीं, उससे कहीं ज़्यादा स्पीड में रोमांटिक हो जीवन राग का रस बिखेर दिया। खुद उसमें सराबोर हुई मुझे भी किया। और दिन भर की थकान के चलते बेसुध हो सो गई। उसका एक हाथ मुझे अपने में समेटे मेरी पीठ के गिर्द तक था। मुझे नींद नहीं आ रही थी। शंपा और उस रईसजादी के कारण।

मैंने धीरे से शंपा को अपने से अलग किया। उठ कर सिगरेट जलाई और चहल-क़दमी करने लगा। रईसजादी से जहां मुझे अपनी जान का डर नजर आने लगा था, वहीं यह डर भी लग रहा था कि कहीं शंपा पर मेरा यह राज खुल ना जाए। जब यह जान जाएगी तो क्या करेगी? क्या यह एक पूर्व पुरुष वेश्या को स्वीकार कर पाएगी? क्या यह इतनी उदार है कि मेरी स्थिति को समझेगी और मेरे जीवन के इस हिस्से को नजरंदाज कर देगी।

पहली बार मुझे इस बात का भी डर सताने लगा कि प्रोफे़सर, कॉलेज और ऐसे ही अन्य लोगों के बीच बात पहुंच गई तो मैं कैसे फेस करूंगा? ना जाने कितनी महिलाओं को तो सर्विस दे चुका हूं। ना जाने कितनी बार दे चुका हूं। इनमें से ना जाने कौन कहां टकरा जाए। या जिन मित्रों के साथ इस फील्ड में पहुंचा इनमें से ही कोई कहीं बात खोल दे तो। इस बात से ज़्यादा मुझे शंपा की बातें डरा रही थीं। कि रिश्ते ढोएंगे नहीं। तो कहीं यह तो नहीं कि जिस दिन इसका मन भर जाएगा उस दिन दूध की मक्खी की तरह मुझे निकाल फेंकेगी। या अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए इसे मेरे जैसे एक व्यक्ति की तलाश थी और मुझमें अपने मनपसंद गुण नजर आए तो कैच कर लिया।

मन में उठे इन प्रश्नों ने मुझे बहुत बेचैन कर दिया। मैंने अजीब सी घबराहट महसूस की, कि मैं तो इसे अपने इस जीवन क्या हर जीवन में पाने की ख्वाहिश पाले हुए हूं और एक यह है कि कितनी आसानी से जब जी ना माने तब छोड़ देने की बात कर रही है। मैं खुद को एकदम ठगा हुआ सा महसूस करने लगा। मन एकदम भर आया कि घर से अलग होने के बाद यह पहली शख्स है जिसे देखकर ना जाने कैसे खुद ही एक भावनात्मक लगाव पैदा हो गया। लगाव भी ऐसा कि अलग होने की नाम पर ही कांप उठता हूं। यह अभी जैसे बोलीं उसमें तो भावनात्मक लगाव जैसा कुछ है ही नहीं। सब कुछ अपने टार्गेट को पाने के लिए मैनेज करने जैसा है।

मैं बेचैनी में सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहा था। घर में इधर-उधर पागलों सा टहल रहा था। दिमाग की नशंे फटती सी महसूस र्हुइं तो एक बड़ा पैग व्हिस्की का पी गया। कुछ मिनट बाद ही दूसरा भी पी गया। मैं घर के हर कोने से टहलते हुए शंपा के पास पहुंचता उसे बेड पर सोते हुए देखता। मुझे लगता कि वह मुस्कुराते हुए मुझे देख रही है। और साथ ही वही बातें रिपीट कर रही है। वह जितना रिपीट करती मैं उतना ही ज़्यादा व्याकुल हो जाता।

जीवन में पहली बार मैं ऐसी हालत से गुजर रहा था। शंपा का चेहरा अचानक ही मुझे चिढ़ाता हुआ लगने लगा। मुझे गुस्सा आने लगा। मैंने मन में ही कहा मैंने तुम्हें छोड़ने के लिए नहीं पाया है। तुम्हारे मन में भी यही बात नहीं बिठा पाया यह मेरी ही गलती है। लेकिन शंपा तुम्हारी बातों से कभी लगा ही नहीं कि तुम्हारे मन में यह चल रहा होगा। तुम्हारे लिए तो भावना या रिश्ता कोई महत्व नहीं रखता। तुम भी बस स्वार्थ के लिए ही साथ हो। तुमने बहुत दिनों बाद फिर मंझली की याद दिला दी। जिसने पैसों ,संपत्ति के लालच में रिश्ते, भावना, विश्वास का खून करने में देरी नहीं की। इतनी अंधी हो गई कि अपने हाथों अपनी ही खुशियों में आग लगा ली। उस आग में पूरा घर जला दिया। जिसके साथ भागी उसके साथ ना जाने किस हाल में किस जगह होगी।

तुम्हें मैं एक विद्वान एक रचनात्मक सोच वाली विशिष्ट महिला मानता हूं। रिश्तों में जीवन राग के खत्म होने पर अलग हो जाने की नहीं तुमसे उम्मीद यह थी कि तुम कहोगी कि हमारे बीच कभी जीवन राग खत्म ही नहीं होगा। यदि हुआ तो भी हम फिर नया जीवन राग पैदा कर लेंगे। लेकिन तुमने एक सामान्य व्यक्ति की भांति तोड़ने की बात एकदम से इतनी आसानी से कह दी। आखिर फ़र्क क्या रह गया तुममें और बाकियों में। जिस फ़र्क को समझ कर मैं तुम्हारे आकर्षण में बंध गया, वह एक झटके में समाप्त हो गया।

ऐसी बातों को सोचते-सोचते अंततः शंपा के बेड के पैताने (पैर की तरफ) खड़ा हो गया। शंपा अपने प्रिय रात्रि परिधान में सो रही थी। उसका यह प्रिय रात्रि परिधान एक्स्ट्रा लार्ज सफेद टी शर्ट है। जो उसके लगभग घुटने तक पहुंचती है। बस इसके अलावा वह सोते समय कुछ नहीं पहनती। इसी अस्त-व्यस्त से परिधान में उसे देखते-देखते मुझमें ना जाने क्या प्रतिक्रिया हुई कि मैं करीब-करीब बुदबुदाता हुआ कि शंपा मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मैं तुम्हें इतना प्यार करूंगा कि हमारे बीच जीवन राग जन्म-जन्मांतर तक चलता ही रहेगा।

इसके साथ ही मैं शंपा के पास बेड पर पहुंचा। और बिजली की फूर्ती से उसे प्यार करने लगा। इससे उसकी गहरी नींद एकदम टूट गई। वह सकपका कर उठने की कोशिश करने लगी। लेकिन मैंने मौका नहीं दिया। वह ‘ओह समीर, समीर अरे यार ये क्या हुआ?’ उसकी ऐसी किसी बात का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ा। जब मैं शांत हुआ तो वह झटके से उठ कर बैठी और मुझे तरेरती हुए कहा ‘व्हाट हैपिंड समीर, व्हाट इज दिस। ये क्या तरीका है। घंटे भर पहले ही कंप्लीट किया था। ऐसा भी क्या।’,

मुझसे कुछ जवाब ना सूझा। मैं नाइट लैंप की हल्की रोशनी में अवाक सा उसे देखता रहा तो वह बोली ‘आखिर क्या बात है जो ऐसी हरकत की।’ अब तक उसे ड्रिंक का पता चल गया था। उसने तुरंत कहा ‘आज भी मेरे साथ दो पैग ही ड्रिंक ली थी। साथ ही सोने के लिए लेट गए थे। फिर कब उठकर और पी ली। इतनी देर तक जाग कर क्या कर रहे थे?’ एक के बाद एक उसके क्योश्चन होते जा रहे थे। लेकिन मैं अजीब सी मनः स्थिति लिए बेवकूफों की तरह इधर-उधर देखता रहा। कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि शंपा की बातों का क्या जवाब दूं। आखिर मैं डांट खाए डरे हुए बच्चे की तरह एक तरफ करवट लेकर लेट गया। मेरी जान में जान तब आई जब मेरे लेटते ही शंपा न जाने क्या सोचकर चुप हो गई। कुछ ही देर में मैंने उसे भी टॉयलेट से आकर बेड पर लेटते हुए महसूस किया।

सुबह मैं जब सो कर उठा तो नौ बज गए थे। बेड पर बैठे-बैठे कमरे में इधर-उधर नजर दौड़ाई मगर शंपा नहीं थी। इतनी देर में मेरी आंखों के सामने रात का दृश्य दौड़ गया। मुझे बड़ा पछतावा होने लगा। कि मैंने यह क्या जंगलीपन वाली हरकत की। मुझे शंपा से माफी मांगनी चाहिए। वह गुस्सा हो गई होगी। मैं उठकर ड्रॉइंगरूम की तरफ चल दिया। उसके लैपटॉप के की-बोर्ड की बड़ी हल्की सी आवाजें उधर से ही आ रही थीं। मैं वहां पहुंचा तो मेरे स्लीपर की आवाज़ सुनकर उसने सेकेंड भर को मुझे देखा फिर लैपटॉप पर कुछ टाइप करने लगी। वह अपनी किताबें लैपटॉप पर ही सीधे टाइप करती थी। इस तरह उसने अपना गुस्सा जाहिर कर दिया था। वह बहुत ज़्यादा गुस्से में थी।

कुछ देर एक ही जगह खड़े रह कर मैं एक डरे हुए छात्र की तरह आगे बढ़ा कि बस अब टीचर की मार पड़ने ही वाली है। वह सोफे पर बैठी अपने पैरों पर लैपटॉप रखे हुए थी। मैं उसके पैरों से एक क़दम पहले रुक गया। कुछ क्षण चुप रहा कि देखूं यह क्या बोलती है। वह ना बोली। लगी रही अपने काम में तो मैंने आत्म-ग्लानि भरे लहजे में कहा सॉरी, अब ऐसा भी क्या गुस्सा। कभी-कभी कंट्रोल नहीं रहता। हो जाती है गलती। इस बार शंपा बोली ‘कंट्रोल’ ! क्या मतलब है तुम्हारा ‘‘कंट्रोल’’ से। अरे घंटा भर भी नहीं हुआ था। इतने दिन से साथ रह रहे हैं। फिर कंट्रोल की बात कहां से आ गई?’

उसने लैपटॉप सोफे पर किनारे रख दिया। फिर कहा ‘ऐसा तो था नहीं कि मैं उसी समय कहीं भाग जाने वाली थी हमेशा के लिए। फिर कभी ना मिलते। तुमने बिलकुल गुंडों, मवालियों की तरह मेरा रेप किया है समीर, रेप। कितनी क्रुएलिटी से तुम विहेव कर रहे थे। मैं एकदम घबरा गई थी। मुझे लगा कि तुम मेरा मर्डर करने वाले हो। तुम्हारी इस हरकत से मैं बहुत दुखी हूं। आश्चर्य में हूं। आई एम रियली हर्ट टू मच। आई एम डीपली शॉक्ड। उस समय तुम एक हार्डकोर रेपिस्ट लग रहे थे। दिन में ही मैंने दुनिया के सामने तुम्हें हसबैंड कहा और तुमने कुछ ही घंटों के बाद मेरा रेप कर दिया। आखिर क्यों किया ऐसा? मैं रीजन जानना चाहती हूं। उस समय लग रहा था कि जैसे तुम मुझे किसी बात के लिए ब्रूटली पनिश कर रहे थे। मुझे सच बताओ समीर रीजन क्या था? मैं हर हाल में सच जानना चाहती हूं। बताओ मुझे क्या बात है?’

मुझे लगा कि स्थिति बहुत गंभीर होने जा रही है। किसी तरह इसे संभाल ना लिया तो कुछ अनहोनी जैसी बात हो सकती है। मैंने सोचा इसके ‘क्यों’ का कोई ना कोई जवाब दिए बिना काम चलने वाला नहीं है। मैं उसकी बगल में बैठ गया। फिर उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा कैसी बात कर रही हो। कोई रीजन-वीजन नहीं है। तुम अपनी उस मेगा लार्ज टी-शर्ट में ऐसी सेक्ससिएस्ट पोजीशन में थी कि मैं हाइपर एक्साइटेड हो गया। थोड़ा काम व्हिस्की का भी था। समझ लो यार कि सब टी-शर्ट के कारण हुआ।

मैंने बात को मजाकिया लहजा देकर माहौल को हल्का करना चाहा। उसे बांहों में भरना चाहा। लेकिन शंपा छोड़ने को तैयार नहीं थी। उसने मेरे हाथ को धीरे से अपने कंधे से परे हटाते हुए कहा। ‘मुझे कोई स्कूली गर्ल समझ रखा है क्या? कि तुम्हारी इस बचकानी बात पर यकीन कर लूंगी। सब टी-शर्ट के कारण हुआ ना, ठीक है आज से उसे छुऊंगी ही नहीं। और कुछ भी नहीं पहनूंगी फिर देखती हूं तुम आगे क्या बहाना बनाओगे। तुम्हें कपड़े एक्साइटेड करते है ना, तो उन्हें रात में पहनूंगी ही नहीं।’

मैंने कहा बार-बार सॉरी बोल रहा हूं ना। अब बस भी करो गुस्सा। मैंने उसे फिर हंसाने की कोशिश की लेकिन उसका असर कुछ खास नहीं पड़ा। बस वह थोड़ा नरम भर पड़ी। लेकिन आगे यह कह कर मुझे फिर हिला दिया। उसने कहा ‘पता नहीं मेरा अनुमान कितना सही है या गलत कि कल केवल एक यही एबनॉर्मल बात नहीं हुई थी। वह रईसजादी और तुम जब मिले तो ऐसा लगा जैसे कि तुम दोनों एक दूसरे को देखकर चौंके। ऐसा कुछ तुम दोनों के बीच है जिसने वहां अचानक सामना होने पर दोनों को सकते में डाल दिया।’

वह सच के इतना करीब है यह जानकर मेरी आत्मा भी सिहर उठी, लेकिन अपने पर नियंत्रण किए हुए मैं बोला। तुम भी सुबह-सुबह किस हिप्पोक्रेट का नाम लेकर दिन खराब कर रही हो। इतना शक करना भी अच्छा नहीं। इस समय सच में तुम्हें एक कप कॉफी की जरूरत है। तब तुम्हारा मूड सही होगा। मुझे तो खैर है ही। तुम अपना काम करो मैं बना कर लाता हूं। मुझे पीछा छुड़ाने, बात खत्म करने का तुरत-फुरत यही एक रास्ता नजर आया। मैं सीधा किचेन में चला गया।

जब मैं ग्यारह बजे कॉलेज के लिए निकला तब भी शंपा बोल नहीं रही थी। मैंने नाश्ता भी खुद ही बनाया। उसको दिया तो बहाना बना दिया अभी मूड नहीं है। मैं उस समय कुछ और बात नहीं करना चाह रहा था। कॉलेज में पूरा समय मैं बहुत बेचैन रहा। कई और काम निपटाने के बाद जब मैं देर शाम घर पहुंचा तो दरवाजा बंद मिला। शंपा कहीं गई थी। मैं ताला खोल कर अंदर पहुंचा तो किचेन सहित पूरे घर की हालत बता रही थी कि शंपा ने किचेन में क़दम ही नहीं रखा। जो नाश्ता मैंने दिया था वह भी उसी तरह सोफे के सामने टेबिल पर पड़ा था।

घर की हर चीज़ अपनी जगह वैसी ही पड़ी थी। जैसी कल थी। मेरा दिमाग और परेशान हो गया। मन में प्रश्न उठा कि मैंने तो उसे प्यार किया था। अपने प्यार की पराकाष्ठा का अहसास कराना चाहा था। उस अहसास में इतना उसे डुबा देना चाहता था कि वह जीवन में किसी भी सूरत में मुझसे अलग होने की बात सोच ही ना सके। लेकिन उसने इसे उल्टा ही समझा। प्यार को रेप बता रही है। आखिर मैंने ऐसा क्या कर दिया कि इतना गुस्सा दिखा रही है। इस तरह तो मैं रह ही नहीं पाऊंगा। पागल हो जाऊंगा। आखिर प्यार को रेप कहने की कोशिश ये क्यों कर रही है? जबकि मैंने सिर्फ़ प्यार किया था। गलती थी तो सिर्फ़ इतनी कि थोड़ा ज़्यादा एग्रेसिव था। कहीं इसके मन में कुछ और तो नहीं शुरू हो गया है।

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