Shahide aazam Bhagatsing in Hindi Short Stories by Asha Rautela books and stories PDF | शहीदे आजम भगतसिंह

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शहीदे आजम भगतसिंह

शहीदे आजम भगतसिंह

भारत को स्वतंत्र कराने में न जाने कितने वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। वे सीने में गोली खाते, दर्द सहते चुपचात मौत की आगोश में सो गए, ताकि हम लोग जाग सकें। देश को स्वतंत्र कराने का सबका तरीका भले ही अलग हो किंचित भावना एक ही थी अपनी मातृभूमि से असीम प्रेम। भगत सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं,एक ऐसा नाम जिन्होंने आजादी के महासंग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसा जांबाज, जो मात्रा 23 साल की उम्र में नींद की गोद में सो गया। वो छोटा-सा बच्चा जो सिर्फ प्यार करना जानता था, लेकिन अंग्रेजी जुल्मों-सितम ने आतंक को इस तरह से बरपाया कि उसने भी खेतों में बंदूकें उगाने की बात सोच ली।
28 सिंतबर के दिन पंजाब के एक लायलपुर शहर के बंगा नामक गांव में किशन सिंह के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम था भगत सिंह। लाहौर के डी.ए.वी स्कूल में इनकी आरम्भिक शिक्षा हुई, 1921 में उन्होंने स्कूल त्याग दिया और पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम में संलग्न हो गए। उन्होंने पुनः पढ़ाई आरम्भ की और लाहौर के एक नैशनल काॅलेज में उन्होंने दाखिला ले लिया। यहीं से इनका संपर्क लालालाजपत राय से हुआ, यहीं पर इनकी जान पहचान भगवती चरण, सुखदेव, राजगुरु से हुई। अब हम इनके जीवन के कुछ अन्य पहलुओं पर गौर करेगें। वैसे तो भारत को आजाद कराने में कई महारथियों का योगदान रहा है पर शहीदभगत सिंह का नाम उनमें सर्वोपरि है। वे एक क्रांतिकारी थे, जो भारत को क्रांतिकारी तरीके से आजाद कराना चाहते थे। इन्होंने असैम्बली में बम फैंका और खुद को गिरफ्तार करा लिया था, मकसद साफ था-भगत सिंह एक धमाका कर अंग्रेजों का ध्यान भारत की क्रांतिकारी आंदोलन की तरफ खीचना। साथ ही भारत की वो जनता जो अंग्रेजों के जुल्मों-सितम को अपनी नियति मान बैठी थी, उसे भी यह एहसास दिलाना कि आजादी हासिल की जा सकती है, बस एक क्रांति की जरूरत है। तमाम प्रयासों के बावजूद भी इनको अंगे्रजी सरकार ने फाँंसी दे दी। भगत सिंह चाहते थे कि भारतमाता को जल्द से जल्द गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया जाए, इनकी नितियाँ एकदम स्पष्ट थी। भगत सिंह का नारा था- ‘जनता का स्वराज जनता के लिए’ इनकी विचारधारा समाजवाद पर आधारित थी। भगत सिंह के क्रांतिकारी आंदोलन में आ जाने से इसमें एक नया मोड़ आया, इन्होंने आंदोलन को जनता का आंदोलन बनाने का प्रयास किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में भगत सिंह की काफी प्रश्ंासा की और उनके कार्यों को सराहा है। 23 मार्च सन् 1931 में भगत सिंह को फाँंसी दे दी गई जबकि फाँंसी लगने की तिथि थी 1 दिन बाद यानी कि 24 मार्च। अंगे्रजों का भय था कहीं फाँंसी टल न जाए, इसी मदेनजर उन्होंने ऐसा किया, सुनने में आता है कि उनकी मृत्यु के उपरांत उनकी देह तक उनके परिवार वालों को नहीं दी गई, कैसा दर्दनाक मंजर होगा उस क्षण की कल्पना करते ही हृदय चित्कार करने लगता, और आँखों से हिमकण बहने लगते हैं और सहसा अधर कह उठते हैं आखिर इतनी दर्दनाक मौत क्यों मिली भारत के शहीदेआजम को? जब भगत सिंह को फंँासी देने के लिए ले जा रहे थे तो उस वक्त उनके होठों पर यही नगमा थाः- ‘मेरा रंग दे बसंती चोला।’ हँंसते-हँंसते यह सपूत भारत माता के लिए अमर हो गया और छोड़ गया एक उम्मीद तमाम देशवासियों के लिए कि वीरों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जायेगी व भारत एक न एक दिन अवश्य आजाद होगा, उनकी आँखों में एक सपना था, उनका ध्येय था-‘ आजादी’। आज हमसब उनके उसी सपने को जी रहे हैं। कांग्रेस का इतिहास लिखने वाले पट्टा सीता रमया का कहना है कि जैसी ख्याति उस समय अंिहंसा के पूजारी महात्मा गांधी को प्राप्त थी उतनी ही प्रसि(ी सरदार भगत सिंह को भी मिली थी।
हम सब भगतसिंह की शहादत से प्रेरणा लें, शहीदों का सम्मान करें ताकि आने वाला कल सुदंर और सुरक्षित हो।

दे रहे हैं हम श्रद्धाजंलि
हे महान शहीद तुमको
तुम न आओगे इस धरा पर तो
आतंक के इस ताडंव से
आर्यावर्त को कौन बचायेगा
आजादी के महासंग्राम में
तुमने वीरों का मान बढ़ाया
देशभक्त हो तुम सच्चे,
और वीर सिपाही भी
किन-किन नामों से
मैंे करूँ तुम्हारा संबोधन
तुम्हारी पुण्यतिथि पर
हे शहीदेआजम
तुम्हें मेरा नमन

इन चंद शब्दों में महानायक भगत सिंह के योगदान को अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है। यदि हमें शहीदों सच्ची श्रद्धाजंलि देनी है तो उनके आर्दशों को अपने जीवन में उतारना होगा। ये प्रयास सभी को करना है। वो कहते हैं न ‘जब जागों तभी सवेरा।’ तो आइए आप और हम ये शपथ लें कि हम अपने महान वीरों की कुर्बानी को व्यर्थ न जाने देगें।
आज भगत सिंह पर फिल्में बनाई जा रही हैं, कहते हैं फिल्में समाज का आईना होती हैं। हमें उन फिल्मों को स्वयं भी देखना चाहिए और बच्चों को भी वो फिल्में दिखानी चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी महापुरुषों की गाथा को जान पायेगी और वह भी एक सुयोग्य नागरिक बनने की ओर अपने पथ को अग्रसर करेगी।

जयहिंद जय भारत।
आशा रौतेला मेहरा
(दिल्ली)