Weekend Chiththiya - 7 in Hindi Letter by Divya Prakash Dubey books and stories PDF | वीकेंड चिट्ठियाँ - 7

Featured Books
Categories
Share

वीकेंड चिट्ठियाँ - 7

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(7)

संडे वाली चिट्ठी‬

------------------

प्यारे बेटा,

मैंने अपने दादा जी की शक्ल कभी नहीं देखी थी. वो मेरे इस दुनिया में आने से बहुत पहले चले गए थे. मैं जब बचपन में अपने दोस्तों को अपने दादा जी के साथ खेलते, कहानी सुनते की ज़िद्द करते देखता था तो लगता था कि मेरे बचपन का कुछ हिस्सा अधूरा रह गया. घर पे दादा जी की एक ही तस्वीर थी जो बहुत धुंधली हो चुकी थी. तब एक तस्वीर सैकड़ों यादें सहेज लेती थी. अब सैकड़ों तस्वीरें मिलकर भी उतनी यादें नहीं सहेज पातीं.

मैं हमेशा सोचता दादाजी होते तो क्या कहानी सुनाते. क्या पापा की कोई बात बताते. क्या वो बताते कि वो दुनिया के बारे में क्या सोचते हैं. एक बार गांव में दादाजी की एक डायरी मिली लेकिन वक्त के साथ उसमें लिखे हुए शब्द भी धुंधले हो चुके थे. मैं उन धुंधले हुए शब्दों को छूकर समझने की कोशिश करता कि फलानी तारीख पर दादा जी ने क्या सोचकर लिखा होगा.

दादी से मैं बस हमेशा दादाजी के बारे में पूछता. वो दादाजी के बारे में बताती कम और रोने ज़्यादा लगतीं. मैं कितनी भी कोशिश करके दादा जी की धुंधली शक्ल को साफ़ साफ़ नहीं देख पाता न दादी की आंखों में न पापा जी शक्ल में!

तुम्हारे पैदा होने के बाद एक बड़ी अजीब बात हुई. जब अपने पापा जी यानी कि तुम्हारे दादा जी को तुम्हारे साथ खेलते हुए देखा तो मुझे अपने पापा की शक्ल में पहली बार अपने ‘दादाजी’ दिखाई दिए. सालों पुरानी दादाजी की धुंधली तस्वीर साफ हो गई. अपनी शक्ल अब ध्यान से देखता हूं तो पापा जी दिखायी पढ़ते हैं. तुम्हें देखता हूं तो लगता है कि मैं फ़िर से पैदा हो गया हूं. असल में दुनिया के शुरू से ही दुनिया के सारे बाप और बेटा वही हैं. बस हर अगली पीढ़ी के साथ उनकी शक्ल कुछ कुछ बदल जाती हैं. ये बात शायद तुम तब समझो जब तुम्हारा कोई बेटा या बेटी होगी.

मुझे उम्मीद है कि बड़े होकर तुम बड़े होकर न सिर्फ़ ये पढ़ोगे बल्कि समझोगे भी. बस एक आखिरी बात तुमसे कहना चाहता हूं जो मेरे पापा ने हमेशा मुझसे कही कि, ‘तुम अच्छा बनना या खराब बनना उससे फर्क नहीं पड़ता बस जो मन में आए वो बनना.’

तुमने मुझे ये मौका दिया कि मैं तुम्हें इस दुनिया में ला पाऊं, उसके लिए मैं तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा. इसके आगे की ज़िंदगी तुम्हारी है इसलिए अपने हिसाब से जीना. मुझे उम्मीद है तुम मुझसे बेहतर प्रेमी, पति, बाप, भाई, बेटा, दोस्त और इंसान बनोगे.

बेटा, मेरे बचपन का अधूरा हिस्सा लौटने के लिए बहुत सारा प्यार!

पापा

Thanks & Regards,

दिव्य प्रकाश दुबे,

Contest

Answer this question on info@matrubharti.com and get a chance to win "October Junction by Divya Prakash Dubey"

अक्टूबर जंक्शन के महिला पात्र का नाम क्या है ?