Raksha Bandhan in Hindi Short Stories by Swati Grover books and stories PDF | रक्षा बंधन

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रक्षा बंधन

सात साल की नन्ही सुबह से ही जिद कर रही है कि इस बार राखी कान्हा की मूर्ति को नहीं कान्हा को ही बाँधेगी, तभी कुछ खाएगी। उसकी माँ सरला पहले तो हँसने लगती हैं फिर नन्ही को समझाती हैं कि मूर्ति में ही साक्षात् भगवान बसते हैं इसीलिए मेरी प्यारी गुडिया जिद नहीं करते जल्दी से राखी बांधकर खीर-पूरी खा ले।” मगर नन्ही की वही जिद की राखी तभी बाँधेगी जब कान्हा स्वयं आएंगे। वरना कुछ नहीं खाना है।

सात साल की नन्ही का कोई भाई नहीं हैं। अभी कुछ वर्ष पहले पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी। नन्ही के पिता की दुकान पर कब्ज़ा करके विधवा माँ बेटी को ससुराल वालो ने कुछ पैसे देकर घर से निकाल दिया। ज्यादा पढ़ी-लिखी न होने के कारण, फलों का ठेला लगाकर सरला अपना ओर नन्ही का गुज़ारा कर रही हैं। बस रिश्तेदार के नाम पर एक सगा भाई जो अपने परिवार के साथ शहर जाकर ऐसा बसा कि वापिस लौटकर नहीं आया। हाँ, राखी पर 200 रुपए का मानी आर्डर भेजकर अपना फ़र्ज़ निभा लेता हैं उसे भी डर हैं कि गरीब बहन कहीं पैसे न मांगने लग जाए। नन्ही जब अपने हमउम्र के बच्चो को राखी बाँधते देखती थी तो उसका भी मन करता था इसीलिए सरला ने तभी से कान्हा को ही उसका भाई बना दिया। हर साल कृष्ण की मूर्ति को राखी बांधने वाली नन्ही क्या अनोखी जिद लेकर बैठ गई।

सरला ने एक उसे बहुत बार समझाया कि नन्ही राखी बांध कर खाना खा ले पर वह नहीं मानी। “माँ, सभी के भाई आते है मेरा भाई कान्हा भी आएंगा।“ “गरीब का कोई नहीं होता हां पर तेरा भाई कान्हा ज़रूर आएंगा।“ यह कहकर सरला थोड़ी देर में आने का बहाना कर घर से निकल गई। और सीधे गाँव की नाटक मंडली में, जो छोटा लड़का कृष्णा बनता हैं उसे मीठे फल फल देने का वादा कर घर आने के लिए राज़ी कर आई। जब आधे घंटें बंद किसी ने दरवाज़ा खटखटाया तो सामने उस कान्हा बने लड़के को देख सरला ज़ोर से चिल्लाई—“देख नन्ही तेरा भाई आ गया।“ नन्ही उसे खीच कर अन्दर लायी, आज उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उसे राखी बांधी, खीर-पूरी खिलाई। उसे बात करते देख सरला सोचने लगी यह नाटक वाले भी क्या नाटक करते हैं सचमुच का कन्हैया बना फिरता हैं। जाते-जाते सरला के मना करने पर भी यह कंन्हैया नन्ही को कंचे दे गया ओर सरला से बोला, “मैया फल तो दे। सरला ने कहा, कल दूँगी आज ठेला कहाँ लगा पाई।” मन में सोचा, लालची कही का, कल तक नहीं रुक सकता। “नहीं मैया फलतो मैं लेकर जाऊंगा।“

शाम के चार बजे जब किसी ने दरवाजा खटखटाया तो सरला ने देखा तो गुस्से से बोली, “क्यों रे। लालची हो गया हैं क्या? नाटक खत्म कर, राखी भी खत्म हो गई। चल भाग यहाँ से, अभी तो कृष्ण बनकर आया था।” “कहा माई, में तो अभी आया हू, काम से कही चला गया था, इसीलिए देर हो गई।” “अरे! तो फिर वह कौन था?” सरला एकदम डर गई, भागती हुई अन्दर गई देखा कि नन्ही कंचे की पोटली खोलने की कोशिश कर रही हैं उसने पोटली छीनी और खोलकर देखा तो कंचे बेशकीमती मोती और हीरे बन चुके थे। फल की टोकरी में रखे दो फल भी नहीं थे, फिर जब कान्हा की मूर्ति को देखा तो वह मुस्कुरा रही थी। कृष्ण की वही कुटिल मुस्कान। सरला जोर-जोर से रोने लगी नन्ही ने पूछा,”क्या हुआ माँ?” नन्ही को सीने से चिपटाती हुई बोली,” बड़ा अच्छा रक्षा बंधन हो गया रे!!”