Jhuki hui phoolo bhari daal - 3 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | झुकी हुई फूलों भरी डाल - 3

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झुकी हुई फूलों भरी डाल - 3

झुकी हुई फूलों भरी डाल

[कहानी संग्रह ]

नीलम कुलश्रेष्ठ

3 - ए आग लगौ जाने को ओ

जिम में ट्रेड मिल पर स्पीड बढ़ाकर म्यूज़िक सिस्टम के स्पीकर से छनती आवाज़ के गाने"`कहते हैं हमको प्यार से इंडिया वाले --दुश्मन के छक्के छुड़ा दे--हम इंडिया वाले" पर कदम से कदम मिलाती, चलती वह सोचती है कि ये गाना किसको पसंद है ?---कीवी को--- या बनी को----चाँदनी को ? इस इमारत की पहली मंज़िल पर बने जिम की ट्रेड मिल पर चलते हुए उसकी नजर काँच के पार नीचे की काली सड़क पर जमी रह्ती है. रात में अलग अलग मॉडल के तेज़ जाते, कभी ट्रैफिक में फँसते वाहनों और उनकी आँखों को चौंधियाती स्नो व्हाईट, पीली, लाल रोशनियों की लुका छिपी को देखने का अपना मज़ा है. ऎसा लगता है जैसे ज़िन्दगी सरपट भागी जा रही है. कदम चलाते हुए सोचती जाती है और ---दोबारा भी वह् सोच नहीं पाती --पता नहीं किसको ये गाना पसंद है?----- लेकिन उसका कोई पोता पोती में से कोई एक ये गाना नारा लगाने की तरह अपना हाथ हिलाते हुए गाता है ----अर--र--र ---कहीं वह् अपनी दादी तो नहीं बनती जा रही ?

ना जी ना ---- उस समय की दादियाँ सर पर पल्लू लिए स्निग्ध मुस्कान होठों पर लिए, आशीर्वाद सा बरसाती आँखों वाली होती थी. लोग झुककर प्रणाम करते थे,"माता जी !नमस्ते."आज की दादी स्लीवलेस ब्लाउज में, या सलवार सूट में झुमके शुमके लटकाये, कटे फरफराते बालों में चलती हैं ---लोग कहते हैं," हाय ![या हलो ] आंटी !"----ना जी ना--- --कहां उसकी दादी यानि अम्मा उसके माँ के घर के बरामदे के कोने के पलंग पर बैठी कत्थई, नीली, या हरी किनारी की सफेद धोती से सिर ढके, उसका आँचल आगे लेकर दूसरी तरफ के कन्धे पर डाले [तब दादी उसे बहुत आउट डेटेड लगतीं थीं ], दमा से पीड़ित मुँह खोले साँस भरती हांफती. मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद मोटे लेंस के चश्मे से बड़ी बड़ी दिखाई देती फ़ैली हुई आँखों से हर आते जाते को बौराई सी देखती रह्ती थी.

अम्मा का `कैटरेक्ट [मोतियाबिंद]का ऑपरेशन हो चुका था, अकसर वह पापा की सायकल पर उनके साथ दलिया या खिचड़ी लेकर रात को अस्पताल जाती थी तो जनरल वॉर्ड के पलंग पर आँख पर हरी पट्टी बाँधे बैठी दादी से कुछ दहशत होती थी. अस्पताल में उनकी आँखों पर बंधी हरी पट्टी जब खुली थी, उन्होंने कुछ दिन काला चश्मा पहना, बाद में मोटे लैंस का चश्मा पहना था तो उसमें से दिखाई देती उनकी बड़ी बड़ी आँखों से वह् डर गई थी. यदि आज वो ज़िंदा होती तो कुछ घंटों में डॉक्टर उनकी आँखों का `कैटरेक्ट ` वाला असली खराब लैंस निकाल कर नकली लेंस फिट कर देते, उनका चश्मा छूट जाता. उनका दादीपना गायब हो जाता. तो कुसुम मौसी इस तरह उनका मज़ाक तो नही उड़ाती. कुसुम मौसी ने उसकी नानी के घर उनका मज़ाक उड़ाया था, `तेरी दादी तो ऐसी लगने लगी है जैसे जंगल में एक अकेली बच्ची को खाने के लिए भेड़िया एक झोपड़ी में सफ़ेद धोती पहन, चश्मा लगाकर बैठ गया था." आस पास बैठे सब हंस पड़े थे. वह रोते रोते उनसे लड़ पड़ी थी. हालाँकि मौसी घर भर में अपने बेतुके मज़ाको के लिए मशहूर थी.

अम्मा ज़िंदा होती तो उसे ट्रेक पेंट में ऐसे देखती पहले भौंचक रह जाती, फिर मुस्करा देतीं व कहतीं,"ज़माने से अलग कुछ थोड़े ही कर रही है तू.". , उन्होंने उसे कभी फैशन के लिए दूसरी दादियों के तरह कभी नहीं डांटा. वो ज़िंदा होती तो वह उन्हें बताती उसे. तो ट्रेक पेंट और तो टी शर्ट पहनने में बेहद शर्म आती थी ये तो निष्ठा ही थी की उसके ज़बरदस्ती पीछे पड़ गई थी," ये तो आप लोगो कि किस्मत है कि पापाजी ने जिस क्लब की मेंबरशिप ली उसका घर के पास में जिम खुल गया है. पापा जी जिम ज्वॉइन कर रहे हैं आप भी उनके साथ आप जिम जाया करिये."

` `कौन मै ? ना रे इस उम्र मै कैसे जा सकती हूँ ?"

"क्यों एक्सरसाइज़ तो करती है, तो वहा जाकर फ़्रेश हो जाएंगी." निष्ठा ही मॉल में उसे ट्रेक पेंट व टी शर्ट दिलवाकर लाई थी.

उनके जिम आने से लखनऊ के पास के किसी गांव के वॉचमेन तिवारी जी बहुत खुश हो जाते थे. उनके जिम से निकलते ही अपनी कोई ना कोई गाथा लेकर बैठ जाते. वी जे ने पूछा था, `आप कहाँ रहते है तिवारी जी ?."

"अकेले हैं, यही पड़े रहते है. दोनों टैम होटल से टिफ़न आ जाता है, मस्त खाते पीते है. सुबह छ; बजे से कारो व स्कूटर्स की लाइन लग जाती है. लोग भागे चले आते हैं कसरत करने. रात में यही किसी बेंच पर सो जाते हैं. बस एक बड़ी भारी तकलीफ है."

"क्या ?`

"जब दोपहर में जिम खाली होता है तो पल भर भी सो न हीं सकते. मालिक ने जगह जगह सी सी डी केमेरा लगा रक्खे हैं. वो रोज़ रात को चेक करते हैं"

वे दोनों मुस्करा दिए थे कि `ऊपर वाले के देखने `से कुछ सुधार तो रहा है. तभी एक भयानक `छनाक---"की आवाज़ से सबका दिल दहल गया था. जिम का काँच का दरवाज़ा बहुत ज़ोर की आवाज़ करता किरिच किरिच टूटकर रिसेप्शन में बिखर गया था. कोई लम्बा चौड़ा व्यक्ति धड़़ाम से रिसेप्शन में आ गिरा, बहुत ज़ोर से कराहने लगा था क्योंकि कुछ काँच के टुकड़े उसके बदन में चुभ गए थे.

"अरे ! ये क्या हुआ ?----कैसे हुआ."सब नीचे गिरे काँच पर दौड़ते हुए गिरे हुए व्यक्ति की तरफ दौड़ पड़ें थे.

एक लड़का घबराया सा बता रहा था,"मै इन अंकल के बाजू वाली ट्रेड मिल पर था. अचानक इनके मोबाइल पर कौल आयी. इन्होने ट्रेड मिल बंद की और मोबाइल कान से लगाए बहुत जल्दी में लगभग दौड़ते हुए बाहर जाने लगे. ये अंकल जाड़े [मोटे ]हैं इसलिए दरवाज़ा टूट गया."

जिम के कर्मचारी और कुछ लड़के उन्हें सम्भालने में लग गए. एक लड़का बोला,"चलिए मै इन्हे अपनी कार में अस्पताल ले चलता हूँ."

उस दिन उन लहूलुहान व्यक्ति को देखकर मन बहुत उदास हो गया था. . आज की पीढ़ी अपने आस पास कोई मुसीबत में हो तो तैयार रह्ती है सहायता के लिए. उन जैसे उम्र वालों के जिम में आते ही ना कोई युवा व्यंग से मुस्कराया, ना तिरछी नजरों से उन्हें देखकर द्सरे को इशारा किया बल्कि उनकी कुछ ग़लतियों को पास आकर सुधरवाते रहे थे ---खैर, अब तो यहाँ आते तीन साल हो चुके हैं.

तभी कोई तेज़ बीट्स का अंग्रेज़ी गाना शुरू हो जाता है. लड़के चिल्लाने लगते हैं,"हिन्दी सोंग्स --हिन्दी सोंग्स."

जैकी इंस्ट्रक्टर ने रिसेप्शन पर जाकर` इमोशनल `गाने शुरू कर दिये हैं -"गलियाँ तेरी गलियाँ ---मन को भावे तेरी गलियाँ." श्रद्धा कपूर की आवाज़ दिल से सहलाती, सरकती गुजर रही है.

एक के बाद दूसरा गाना"जैसे शायर की ग़ज़ल ----कोई मुझको मिला है, जैसे बनजारे को घर. ` वह् सोच रही है अपना कलेजा कलम में पिरोकर आजकल के गाने लिखे गए है ---उतनी ही सुंदर धुनों में उन्हे सजाया गया है व बेहद खूबसूरत आवाज़ की कशिश में उन्हें गाया हुआ है. दिल को लरजकर छूते इन महकते शब्दों को सुनकर पत्थर भी हिलोरे खाते रोमैंटिक हो जाते होंगे ---और पैंतीस वर्ष पर ही विधवा हो गई अम्मा का प्यार ---रोमांस -उनकी कामनाये -----वह् सोचना नही चाहती ---कैसे उन्होंने सब झेला होगा ? और उस पर तुर्रा यह कि उनका नाम- हरप्यारी.

जिम आने के पाँच महीने बाद कैसा खराब अनुभव हुआ था. एक्सरसाइज करने के बाद वह् बाहर आकर सोफ़े पर बैठकर स्पोर्ट्स शूज उतार रही थी तभी सामने के सोफ़े पर एक जूते पहनती छोटे कद की, भरे पूरे बदन की युवती ने अपने जूते की शू लेस बाँधते हुए पूछा था,"मैडम !आप पंजाबी हैं?"

यू पी के लोगो की `भइया टायप` इमेज इधर के लोगो में कुछ ऐसी रच बस गई है कि थोडे़ पड़े लिखे लोग इन्हे `पंजाबी ` नज़र आते हैं. उसने सिर उठाकर `ना `कहा `लेकिन ये देखकर हैरान रह गई कि उसने बहुत `लो कट`गले वाली लाल फूलों वाली टी शर्ट पहन रक्खी थी अमूनन ऎसी टीशर्ट पहनकर जिम में कोई लड़की नही आती क्योंकि यहां किसी भी कोण पर झुकना होता है. हरी पाइपिन के गले से नीचे की आधी गोलाइया झांक रही थी, जूते पहन कर खड़े वी जे की नजर क्या आस पास के दो लड़कों की नजरें वहीं जमी हुई थी, वह् युवती भोले चेहरे से ऎसे लापरवाह थी कि उसे पता नही कि लोग उसे क्यो घूर रहे हैं.

अब तो हर दिन का उस लड़की का नियम बन गया था कि जहाँ वी जे हो या कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति हो वह् उसके पास की ट्रेड मिल पर खड़ी हो जाती या पहली मंज़िल पर कोई बड़ी उम्र का क्रॉसटेलर पर एक्सरसाइज कर रहा हो, तो वह् तुरंत ही वह लकड़ी की आठ दस सीदिया चढ़ जाती. ऊपर रेलिंग के पास छ; क्रॉसटेटर्स एक लाइन में लगी हुयी थी. वह् उसके बाज़ू वाले क्रॉसलेटर पर खड़े हो उसके हैंडल पकड़ कर पैर ऊँचे नीचे करने लगती व कुछ ना कुछ बात करती जाती. उसे चिन्ता होने लगी --ये महानगर है इसकी चकाचौंध से ताल से ताल मिलाने के लिए कुछ लोग बेहद नीचे गिरे रास्ते अपनाते हैं. तो उस दिन उसने जानबूझकर जूते की लैस बाँधते हुए, झुके हुए उससे बात करने की कोशिश की थी ? कुछ दिनों के बाद मिसिज़ पटेल ट्रेड मिल पर चलते हुए पूछने लगी,"क्या आपका यहाँ आकर वेट कम हुआ है ?"

"सच बताऊँ प्लस माइनस सब बराबर हो जाता है. अपने यहा कोई त्यौहार आ जाता है या मेहमान तो कैसे कोई बढ़िया डिशेज़ खानी छोड़े ? फिर होटलों का बढ़िया डिनर कौन छोड़े?."

पटेल हल्के से मुस्करा दीं,"ये बात तो है."

" `निष्ठा के ऑफिस की ब्रिट बॉस जब वापिस लंदन गई तो ये कमेंट कर गयी कि इंडिया में खाने को इतनी वैरायटी है, इतना टेस्टी ख्नाना मिलता है कि अपनी बॉडी मेंटेन रख सको तो बड़ी बात है."

"हा ---हा----हा."

हंसी रुकने के बाद पटेल उस गदबदी औरत की तरफ इशारा करके फुसफुसायी थी," इस लेडी का ऐटीट्यूड बहुत गन्दा है."

"हाँ, मै भी नोटिस कर रही हूँ."

`आप जब पिछले महीने शहर से बाहर गई थी तब भी एक ग़लत लड़की आने लगी थी. ट्रेड मिल पर चलते हुए पटेल से जानबूझकर कुछ ना कुछ बात करे. उस पर उलटा खड़े होकर मयूज़िक सिस्टम के गानों पर डांस करते हुए एक्सरसाइज करती थी. ट्विस्तर पर पटेल बैठकर बॉडी रोल करने जाए तो तुरंत दौड़कर वह् उसके सामने वाले हिस्से पर खड़े होकर बॉडी रोल करे. जान बूझकर अपने सीने को झटके दे."

"ओ--."

` `मै चौथे दिन ही उसके पास जाकर बोल आयी कि इस जिम में सी सी डी कैमरे लगे हैं, यदि वह् नहीं मानी तो क्लब के एम डी से शिकायत कर दूँगी और दूसरे दिन से ही वह् गायब हो गई."

"आप चिन्ता मत करे मै इस नयी आफ़त को भगाउंगी."

" हर शहर में लड़कियों को सम्भालना जितना मुश्किल है उतना ही इन मेट्रो सिटीज़ में सीनिअर मेल्स को ऐसी औरतों से बचाना मुश्किल है. इनकी नज़र भारी भरकम जेब पर रह्ती है."

वह् युवती ऊपर की मंज़िल पर एक मशीन की कुर्सी पर बैठ टाँगों से लंबे सिलिंड्रीकल लोहे के वेट को उठा रही थी. आज उसने सफेद जाली वाला टॉप पहन रक्खा था. वह् उसके पास पहुँची,"लगता है आप कोई प्रोफेशनल हैं."

"या !मै ब्यूटी पार्लर चलातीं हूँ. मेरे यहां की मसाज लोगो को बहुत पसंद आती है."

"ओ---तो आपके यहां मेल कस्टमर्स भी आते है ?."

"व्हाई नॉट--क्या मेल्स को सुंदर नहीं लगना चाहिये ?"

"ऑफकोर्स क्यों नहीं ?वैसे मैंने आपको सही पह्चान लिया कि आप किसी ग्लैमरस काम से जुड़ी हुई हैं. मेरा कार्ड रखिये. मै अनेक वीमन एन जीओ`ज़ से जुड़ी हुई हू, कभी आपके यहाँ आउंगी

उसने टाँगें नीचे करके वेट हटाकर उसका कार्ड लिया व उसे प ढ़ते ही उसके चेहरे का रंग फक्क पड़ गया. वह् नैपकिन से अपना पसीना पोंछते हुए उठ खड़ी हुई व खिसियायी सूरत लिए हुए बोली,"ग्लेड तो मीट यु."

दूसरे दिन वह् किसी पति से लगते लड़के के साथ आयी व तीसरे दिन से गायब हो गई थी. उधर वी जे फर्श पर लगे जूतों के निशान से चिढ़ने लगे थे। एक दिन गुस्से में बाहर स्टूल पर बैठे तिवारी से कह ही दिया,"तिवारी जी आप कैसी ड्यूटी करते हैं? लोग रूल तोड़कर घर से ही स्पॉट्स शूज़ पहनकर आते हैं और जिम गंदा करते हैं।"

वे रूठे हुए से बोले," हमने तो जूतों के बारे में कहना बंद का दिया है।"

"क्यों आप नही बोलनेगे तो कौन बोलेगा ?"

"यहाँ लोगों को बात करने की तमीज़ नहीं है। हमने एक साब से कहा की आप स्पोर्ट्स शूज़ बैग में लाया करिये, जिम में आकर पहनिये। तो पता है वो साब क्या बोले `तू चुप करके बैठा कर, अपनी औकात में रह। जितने के मेरे जूते हैं उतनी तो तुझे पगार मिलती है. तेरी औकात क्या है हमें टोकने की ?"तिवारी जी का चेहरा अपमानित हो आज भी लाल हो गया, वे रुंआसे से कहने लगे,"उन्होंने तो हमें एक झटके से ख़त्म कर डाला था, मार डाला। तबसे हम ने भी सोच लिया है जिम में या क्लब में आग लगे तब भी हम कुछ नहीं बोलेंगे, कु----च्छ नहीं।"तिवारी जी ने अपनी झिलमिलाई आँखे छिपाने के लिये मुंह फेर लिया। वे दोनों भी सकते के हालत में थे।

अम्मा की बात सोचते सोचते वह् क्या सोचने लगी ? वह् भी तो अब दादी बन चुकी है -- नेवी ब्ल्यू ट्रैक पेंट व पीली टी शर्ट में ट्रेड मेल पर एक्सरसाइज करती. उसका मोबाइल ट्रेड मिल के डेस्क पर रक्खा हुआ है. दूसरे पर पानी की बोतल व नैपकिन. फिर क्यों उसे वे याद आने लगती हैं या कहना चाहिए उस पर छाने लगती हैं. युवा उम्र में उस पर भी धूल से इलर्जी के कारण दादी जैसा दमा का असर हो जाता था. योग व बाद में इन -हेलर लेकर उसने पूरी तरह अपने को स्वस्थ कर लिया है. काश! दादी के समय इन -हेलर या अच्छी दवाइयाँ इज़ाद हो गए होते तो दादी को अपनी एक तिहाई ऊर्जा अपनी धौंकनी सी चलती साँसों को नियंत्रण करने में तो नहीं लगानी पड़ती. सर्दियों का मौसम तो जैसे उनका मरण मौसम होता था.

जब भी वह् उनकी चारपाई पर जा बैठती तो वो कोई किस्सा सुनाने बैठ जाती थी,"एसो भयो एक बार हम मुरसान में हते --तो जाने सुरेन्द्र हो ---जाने जगदीश हो ----जाने थन्नु हो ----ए आग लगौ जाने को ओ --- तो बाने हमे बस अड्डे पर ग़लत बस में बिठा दिया."

"फिर क्या हुआ दादी !"

"वा बस वाले ने हमें सहर के बाहर उतार दीनो ----तो तुम सोचो कैसे कैसे बक्स उठाये हम चले. बहुत दूर् चलकर रिक्सा पकड़ कर फिर बस अड्डे आए वो भी जून महीना में. एकबार और एसो भयो कि जाने कौन हो सुरेन्द्र हो ---जगदीश हो --जाने थन्नु हो ---ए आग लगौ जाने को ओ ---."

दूसरे किस्से का जब तक वे नाम सोच पाती वह् उनकी पकड़ से दूर् भाग गई होती. तब कहाँ अक्ल थी कि सोचे कि पैंतीस साल में विधवा हुई अम्मा ने कैसे ज़िन्दगी काटी होगी ? उसके पापा तो बारहवीं करके चुके थे. प ढ़ाई छोड़कर पोस्ट ऑफिस में उन्हें नौकरी करनी पड़ी, अम्मा बाकी दोनों बेटों को लेकर अपने भाई के पास अलीगढ़ आ गईँ. तब कहाँ अक्ल थी कि सोचे शादी के बाद हर लड़की के माता पिता तक का घर पराया हो जाता है. तो भाई के घर उन्होंने किस तरह समय काटा होगा ? भाई भी किराये के घर में रह रहे थे. ऎसा भी कोई समय हो सकता है, अब तो विश्वास न हीं होता है. उस तीन चार किरायेदारो वाले घर में अम्मा सभी घर की बेटी थी, सुरक्षित थी. वह् तो बाद में जब पापा की नौकरी बैंक में लगी तब सारा परिवार साथ रह पाया. दोनों चाचा प ढ़ पाये. और उन्होंने उसके क्या किसी के सामने कभी भाग्य का रोना नहीं रोया. फिर अपनी मेहनत से पापा बहुत आगे ब ढ़ते गए. उसने बहुत अनुशासन से करने वाली मम्मी को हर समय बड़बड़ाते सुना था की"तेरी दादी कोई काम ढंग से नहीं कर सकती. हर काम फैलाये रखती है. कभी ग्यारह बजे नहाती है, कभी एक बजे,"

तब वह समझदार हो गयी थी, वह उनका पक्ष लेती थी,"आपने ही तो बताया था की इनकी माँ अंधी थीं व पेंतीस वर्ष में` विडो `हो गई तो बिचारी जीवन में किससे क्या सीख पाती ?

ट्रेड मिल करते करते दस मिनट हो गए हैं. वह दस मिनट बाद हर दिन की तरह ज़रूर ब्रेक लेकर नेपकिन से अपने चेहरे पसीना पोंछती है व बोतल से ठंडा पानी पीती है. वी जे उसकी ट्रेड मिल के पास रोज़ की तरह साइकलिंग करके आ गए हैं. वह चुपचाप उन्हें नेपकिन व बोतल थमा देती है. पानी पीकर वे भी उससे तीसरी ट्रेड मिल ऑन कर देते हैं. क्योंकि वही खाली है पास में खड़े पटेल से पूछते है,"आज आपकी वाइफ़ नहीं आयी ?"

"वो घर व स्कूल परीक्षा चल रही है, कौपीज़ करेक्शन करते करते थक जाती है. बस संडे को ही आया करेगी."

ट्रेड मिल पर चलते चलते उसे याद आता है वह अम्मा से अपने बचपन का किस्सा बहुत चाव से सुना करती थी, उसे भी तो धुंधला धुंधला याद था. अम्मा ने एक बार एक किलो सूखा धनिया थाली में रखकर आँगन में रक्खी चारपाई पर सुखा दिया था, गलती से उससे कह दिया इस धनिये को थोड़ा कम्पाउंड में बो दूंगी तो हरा धनिया उग आएगा, जब मन चाहे उसे तोड़ दाल या सब्ज़ी में डाल लो. तो वही किस्सा अम्मा जब तब दोहराती रह्ती,"तू हती---जाने तेरी बुआ हती --ए आग लगी जाने को थी --मै सारे घर में एक किलो धनिया ढूढ़ती फिरू, आगलगौ बो कही दिखाई ना पड़े --जाने कहा गायब है गयो."

वह हंस पड़ती,"अम्मा !वह आग लगी पाँच बरस की मै थी, मैंने वह एक किलो धनियाँ कम्पाउंड में मिट्‍टी खोद खोदकर उसे बोकर एक पहाड़ बना दिया था ही---ही --ही."

"और मेरो माथो खराब हो गयो हतो उसे साफ़ करत करत."

वह् ट्रेड मिल बीस मिनट बाद बंद करती है तब तक,"खामोशियाँ --तेरी मेरी."गाना शुरू हो चुका है ट्विस्टर के स्टैंड पर खड़े होकर उसका स्टैंड पकड़ कर वह् बॉडी रोल कर रही है. ` कमरे के दूसरे छोर की दीवार पर बड़े बड़े मिरर लगे हुए हैं जिसमे अपने को देखते हुए हरी, पीली, लाल, नीली, अधिकतर ब्लेक टी शर्ट पहने युवा वेट लिफ्टिंग करते रहते हैं या कोने के स्टैंड पर लगे रबर की तरह खिचते हैंडल से बॉडी स्ट्रेच करते रहते हैं. इस बात से बेखबर कि पास में कोई लड़की थ्री फोर्थ या हॉट पेंट पहने एक्सेर्साइज़ कर रही है. सब अपने में मस्त रहते हैं या रिसेप्शन के सोफे पर बैठ अपने मोबाइल के एस एम एस चेक कर करके मुस्कराते रहते हैं.

बाद में वह् ट्विस्टर पर बैठकर बॉडी को रोल करके, बैठे बैठे कुछ और एक्सरसाइज करके अपना बैग लेकर जिम के काँच के दरवाजे को खोलकर बाहर निकलने लगती है तो गाना शुरू हो चुका है,"मुस्कराने की वजह तुम हो --गुनगुनाने की वजह तुम हो."

रिसेप्शन के सोफे पर बैठकर वह् बैग में से शू बैग निकलते हुए सोचने लगती है कि कैसे अम्मा जब तब ये तो अफसोस करती थी," बा टाइम अगर सुरिन्दर की दादी ने तेरे दादा को दुनिया की दूसरी लड़ाई के लिए फौज में जाने दियो हतो तो आज हमारो घर कुछ होतो. बे इराक भेजे जा रहे थे कैप्टन बनाकर. उते बिनकी अम्मा कुन्ये में पैर डालकर बैठ गई कि तू महा जायेगो तो मै जामे छलांग लगा जाऊँगी."

"फिर ?"

"फिर बे ना गए. बाद में तपेदिक उन्हें ऊपर ले गयो, तब क्या बो उन्हें रोक पाईं ?"

ये तो बाद में पता लगा था कि पापा की उम्र वालो की बहुत सी दादियो ने ऎसे ही कुँए की मुंडेर पर बैठकर, धमकी देकर अपने बेटों को फौज में जाने से रोका था.

वह् शूज उतार कर शू बैग में रखने लगती है. पटेल भी जिम से बाहर निकल कर रिसेप्शन पर बैठी बातूनी रिद्धि से टेबल पर झुके बात करने लगते हैं. वह् हंस हंस कर दोहरी हुई जा रही है. तभी एक लड़की नूडल स्ट्रेप्स वाली फ्रॉक पहने, गहरी लाल लिपस्टिक लगाए, काले काजल भरी आँखों में नीला आई शेड लगाए बाहर के काँच के दरवाज़े पर नज़र आती है, वह् तेज़ी से अपना हैंड बैग घुमा रही है. रिद्धि आँख के इशारे से पटेल को वह् लड़की दिखाती है. पटेल मुस्करा कर उसे आँख से ही कुछ इशारा करता है. वह् दरवाजे से हट जाती है. ये पटेल बाहर निकल जाते हैं. सब इतनी तेज़ी से होता है कि शायद किसी ने नोटिस भी नही लिया होगा. अन्दर दूसरा गाना शुरू हो चुका है,"`ले आंदे मुझे गोल्डन झुमके --मै काना विच पाना चुन चुन के. चिटिया - कलाईयाँ वे --- वंजा वे ! मैनू शॉपिंग करा दे."

वह् समझ तो बहुत कुछ जाती है लेकिन सोच लेती है, आज कुछ नहीं बोलेगी. जिम में अन्दर अधिकतर मेहनतकश युवा लड़के, दो चार लड़कियां अपनी नौकरी से या कॉलेज से आकर अपना शरीर फ़िट करने में लगे हैं. कुछ डमबल्स को खड़े होकर उठाते हैं और कुछ नीचे रेग्ज़ींस के कुशंस की एडजेस्टेबल बेंच पर लेटकर. कभी किसी का मूड आया तो वे सब बीच में इकठ्ठे होकर अपने मोबाइल से सेल्फी खींचने लगते हैं या कोई लड़का मूड में आकर सालसा डांस करने लगता है.

पिछले बरस भी तो कुछ गड़बड़ हुयी थी. जब तो उसने देखा था कि एक इंस्ट्रक्टर भाविन रिसेप्शन पर बैठा था, रिसेप्शनिस्ट नव्या नहीं आयी थी. एक लड़का जिम में से आकर भाविन से खुस पुस बात करता जा रहा था. ऎसा लग रहा था कि वह् उसकी खुशामद कर रहा है. दूर से उसने देखा था कि भाविन ने एक बेहद् छोटे पीले कागज पर कुछ लिखकर उस लड़के को दे दिया.

उस दिन रास्ते में से उन्हें एक दवाई खरीदनी थी. वे दोनों केमिस्ट शॉप में घुसे तो देखा वह् लड़का दुकानदार को वह् छोटा पीला कागज थमा रहा है जिस पर पेन से एक छोटी लाइन के सिरे पर एक गोली बनी हुई थी. उसके मुँह से बेसाख्ता निकाल गया,"ये कौन सी दवा है ?"

उसके पूछ्ने पर लड़के को जैसे झटका लगा हो, वह् तीर की तरह दुकान से बाहर निकाल गया व सेल्स मैन घबराया सा दुकान के अन्दर चला गया. वह् घर पर आकर बोली, ` ज़रूर कोई ड्रग का चक्कर है"

वी जे बड़बड़ा उठे,"तुमसे कितने बार कहा है कि दूसरे के झंझटों में मत पड़़ा करो."

दूसरे दिन नव्या रिसेप्शन पर बैठी थी. जब जिम के अंदर लड़कों को एक्सरसाइज बताते बताते भाविन सर उसके पास से निकले, वह् जानबूझकर उससे कह उठी," भाविन सर !कल आपने उस लड़के को कौन सी दवाई लिखी थी ?"

"किस लड़के को ?`कहते हुए भाविन सर का मुँह लाल पड़ गया था व वे विशालकाय मिरर के सामने खड़े लड़के की तरफ चल दिए थे, `अरे -----अरे --कुलकर्णी !क्या कर रहा है ---तुझसे कितनी बार कहा कि `वेट लिफ़्टिंग `करते हुए कमर पर बेल्ट बाँध लिया कर."

वो दिन है कि आज का दिन भाविन सर जिम से ऎसे गायब हो गए जैसे -----. ये अच्छा था कि वी जे फ़र्स्ट फ़्लोर पर सायकलिंग करने गए हुए थे इसलिए जान नहीं पाये थे कि भाविन सर को उसने घेर लिया था. वह् समझती रही थी कि भाविन के बाद हफ़्ते भर तक कोई सर नही आए थे. बस देखती एक दुबला पतला लड़का बालों के `स्पाइक्स बनाए, हाथ में बीड्स की माला लपेटे, एक कान में बाली पहने कमर को स्टायल से दम खम लगाता टेढ़ा सा खड़ा बात करता रहता है. अकसर उसे दो तीन लड़कियां घेरे रह्ती हैं. बाद में मिसिज़ पटेल ने ही बताया था कि ये जैकी, हमारे नए सर हैं. उनके लड़कियों में पॉपुलर होने का राज़ खुल गया था. एक दिन जैकी उसके पास आ गये थे,"आंटी आपकी उम्र कितनी है ?"

वह् अचकचा गई थी,"क्यो?"

"आपमें व अंकल में कम से कम बीस साल का अन्तर लगता है."

वह् बात का मज़ा लेने लगी थी,"मुझे भी पता है कि हमारे बीच इतना उम्र का अंतर नही लगता लेकिन आप बताओ मेरी उम्र क्या है. ?"

वी जे भी बिना चिढ़े बात का मज़ा ले रहे थे."हाँ, बताओ इनकी कितनी उम्र लगती है ?"

"आप पैंतालीस की लगती हो व अंकल पैंसठ के."

वह् खिलखिला पड़ी थी,"जैकी सर ! आज समझ में आया कि आपको लड़कियां क्यो घेरे रह्ती है ऎसे ही कुछ अच्छा बोल कर उन्हें बेवकूफ़ बनाते रहते हो. `

वह् पूरी खुली मुस्कराहट से मुस्करा दिए,"थोड़ा सा झूठ बोल देने से किसी को ख़ुशी मिलती है तो अच्छा है न."

"लेकिन सर !मुझे पता है मेरी उम्र इतनी कम नहीं लगती."

वो दिन है कि वे कभी भी उससे मज़ाक नहीं करते.

कुछ इत्तेफाक ऎसा हुआ भी जिम आने वाली बहुत सी लड़कियां एक साथ गायब हो गईँ. . जिम के गाने भी उदास लगते थे. उसी ने जैकी सर से पूछा,"सर !बहुत सी लड़कियों ने क्यो जिम आना बंद कर दिया है."

"पता नही मैडम !शायद परीक्षा पास है. किसी ने बॉक्सिंग, किसी ने कराटे क्लास ज्वॉइन कर ली होगी. लड़कियों के बिना जिम अखाड़े जैसा लगता है."

"हा ---हा ---हा--."उसके साथ पटेल भी हंस पड़ी थी.

आज भी वह् सोच रही है कि कितनी भी आँख बंद रक्खो इस समाज में कुछ ना कुछ गन्दगी दिखाई दे ही जाती है, इस रिद्धि को भी ज़िम से भगाना होगा. वह् शूज़ पहनकर रिद्धि के सामने खड़ी हो जाती है. वह् आदतन चहकती है,"हाय आंटी !कैसी हो ?"

" बहुत अच्छी हूँ. तुम कैसी हो ?"

`बहु फ़ाइन. होली पास आ रही है. मैंने आपको बताया था ना मै होली पर चोटीला में अंबे माँ की आरती देखने जाती हूँ. सुबह छ; बजे अन्धेरे में होती है. इस बार आप व अंकल चलिए ना."

"मैंने भी तो कहा था सुबह तीन या चार बजे पाँच सौ सीढ़ियाँ चढ़कर ये आरती व पहाड़ी मन्दिर का ये नज़ारा देखना मेरे लिए संभव नहीं है. और सुनो अभी तुम्हारी कोई फ़्रेंड आयी थी, बड़ी अजीब लग रही थी."

"अरे नहीं आंटी, मेरी सभी फ़्रेंड्स बी. कॉम कर रही है यहाँ कौन आयेगी ? आपको तो पता है, मै कॉलेज के बाद यहाँ पार्ट टीम नौकरी करती हूँ."

"थी तो सही, पटेल को उसे तुमने इशारे से दिखाया था."

" नहीं तो ---"उसका चेहरा फक्क पड़ गया था.

वह् अपना विज़िटिंग कार्ड थमाकर बोली थी,"मेरी पुलिस में जान पह्चान है, लड़कियों पर कभी भी मुसीबत आ जाती है. भगवान ना करे लेकिन कभी तुम्हे हेल्प चाहिये तो बताना."

"ओ. के आंटी, सो काइण्ड ऑफ़ यू."

उसका शक़ सही निकला जिम वालों को तीसरे दिन से ही नई रिसेप्शनिस्ट धू ढ़नी पड़ गई. वो अम्मा क्या अपनी ज़िन्दा मम्मी को भी आज के हालातों के बारे में नही बता सकती, कैसे कुचक्रो में अपने आस पास का वातावरण साँसें ले रहा है लेकिन सिर्फ़ पाँच ---या कितने प्रतिशत वर्ना तो कभी कभी रात के नौ बजे तक अकेली लड़की इतनें लड़कों के बीच ट्रेड मिल पर चलती रहती है. सारे लड़के बिना उसकी तरफ ध्यान दिए अपनी एक्सरसाइज में लगे रहते हैं.

वी जे उस इतवार बाज़ार गए थे. बेटा अखबार फैलाये बैठा था, इससे पहले वह् टीवी पर कोई फ़िल्म शुरू कर दे वह् ये थ्रिलिंग अनुभव शेयर करना चाहती थी. वह् लैप टॉप पर अपने मेल चेक करती बोली," कीवी ----बनी ----विहान --नही नही कीवी."

वह् अखबार सामने से हटाकर मुस्कराता बोला," मॉम! मै कीवी नही उसका बाप हूँ. पहले सोच लीजिये आपको किससे बात करनी है ?"

"अरे विकास !तुझी से बात करनी है. `

"तो इतने सारे घर के नाम लेने की क्या जरूरत थी ?"

वह् गड़बड़ा जाती है कि कैसे कहे कि ये सारे नाम उसके दिल में बसे हुए हैं ---गडमड. सभी उसके प्यार से बिंधे किसी को पुकारती है, मुँह से नाम कुछ और निकलता है. ये माना उसकी कोख में उसकी नाल से बन्धे विहान व विकास थे. कीवी व बनी, चाँदनी तो उनके बच्चे है ---फिर भी एक को पुकारो तो दिल में बसे सारे नाम जीभ पर आ बैठते हैं --अरे बाबा ! ये चक्कर क्या है ? सच ही इतने सारे घर के नाम लेने की क्या जरूरत थी ? इसी बात का तो वह् अम्मा का मज़ाक उड़ाती थी.

वह् संक्षिप्त में विकास को सारी बात बता देती है. वह् गंभीर है,"मोम !आप किसी के बीच में मत पड़ा करो ये ड्रग वाले, ये ईज़ी मनी वाले अकेले नही होते. इनके गैंग होते हैं."

"हां, बेटे अब समझ में आया कि रिद्धि हमारे जिम में आते ही हमारे पीछॆ या कहना चाहिये तेरे पापा के पीछॆ `अंकल`," अंकल` कहती घूमती रह्ती थी. चलो अच्छा हुआ वह् नौकरी छोड़ गई. वैसे भी ऎसे लोगो को पह्चान लो तो ये उस जगह से एकदम गायब हो जाते हैं."

"और हां, आप एक नाम क्यो नहीं ले पाती ---सारे घर के लड़कों के नाम पुकारती हैं ---ओ!याद आया आपकी अम्मा को भी यही बीमारी थी. वह् कहती थी सुरिन्दर हो --जगदीश हो --थन्नु हो ---ए आग लागू जाने को ओ-----."

"आग लागू नहीं आग लगौ." बेटे की भाषा में ब्रजभाषा का पुट सुनकर उसे हंसी आ जाती है. हरएक परिवार में कुछ कैसे खानदानी किस्से होते है कि पीढ़ी दर पीढ़ी चटखारे लेकर सुनाये जाते हैं.

वह् कहता है,"कुसुम नानी एक किस्सा और सुनाती थी"डोकरी की पोटली`."

"अरे !ये बात भी तुझ तक पहुँच गई ?."वह् फिर हँसती जाती है, बड़ी मुश्किल से हंसी रोक पाती है,"दरअसल पहले बैंक में लॉकर बहुत कम होते थे व आम जनता के पास पैसे कम होते थे कि वे उन्हें किराये पर ले सके इसलिए अम्मा ने अपने गहने, जो भी थोड़े से थे उन्हें अपने पुराने तकिये के गिलाफ को फाड़कर बनाई पोटली में रख लिए थे. हमारे पापा, चाचा सभी सज्जन थे लेकिन शायद उन्हें ये अपने जीवन का अनमोल ख़जाना लगता हो इसलिए वो हमारे घर रहे या दूसरे चाचाओ के पोटली हमेशा अपने तकिये के नीचे रखकर सोतीं थीं. जब मै दस ग्यारह साल की थी तो कुसुम मौसी ने नानी के सारे घर के लोगों के बीच ये किस्सा सुनाया व पीछॆ पड़़ गई"डोकरी की पोटली". सब हँसकर लौट पोट हो रहे थे और मै रोये जाउ कि मेरी अम्मा ऎसा नहीं कर सकती. वह् तो घर लौटकर चुपचाप मैंने उनकी पोटली उनके तकिये के नीचे चेक की. बड़े होकर इस बात का लॉजिक समझ में आया."

वह् ये नहीं कह पाई कि आज भी औरते अपना कुछ स्त्री धन अम्मा की तरह ही छिपाकर रखती है. अपनी आलमारी की चाबिया अंत;वस्त्रों में छिपाकर रखती है.

सभी अपने परिवारों से अवचेतन में बहुत कुछ संग्रह करते चलते हैं और हमे पता भी नही होता. वह् दोनों नवरात्रि में कभी भी अपने आस पास के बच्चो को देवी के कन्या लांगुरा मानकर खाना नहीं खिला पाती, सोचती है इन्हे क्या खाने की कमी है. वह् हमेशा गरीब बस्तियों में खाना व पैसे देती है. ये तो बड़े होकर अक्ल आयी थी कि जब तक अम्मा के हाथ पाँव चलते रहे तब तक अम्मा नहाकर, सिर धोकर, गीले काले सफेद बालों का शिवजी जैसा जू ड़ा ड बनाकर, जिससे दो चार बूँद पानी की टपकती रह्ती थी, सावन के हर सोमवार को रसोई में जाकर बैंगन की सब्ज़ी व ढेर से पराठे बनाकर बरामदे में आकर अपनी धोती से पसीना पोंछती व कहती," परामठे बनाके निच्यु है गई"यानि काम से फारिग हो गई. वे चाचा के साथ बडे़ मन्दिर के सामने बैठे कोढ़ियो, गरीबों को खाना खिलाकर आती थी.

तभी साढ़े चार वर्ष का गदबदा सा कीवी नहाकर पीली टी शर्ट व हरे निकर में गीले बाल का ढ़े उसके पास आ बैठता है,"चलिए दादी !अपना स्मार्ट फ़ोन निकालिये, आपको टच स्क्रीन पर काम करना सिखाता हूँ. `

"मेरा नया मोबाइल ड्रेसिंग टेबल पर रक्खा है, जाकर ले आओ."

वह् उसे मोबाइल इस्तमाल करना सिखा रहा है उसे लगता है जैसे. उसकी आँखें अनजाने कह रही है,"ओ यू !आउट डेटेड दादी !"विकास पास बैठा मुस्करा रहा है व कहता है,"तभी आपका मोबाइल बिल इतना आता है क्योंकि ख़ुद कहीं ----- मोबाइल कहीं, सारे मिस कॉल्स को ख़ुद ही रिंग करती होंगी.".

"एक बात पूंछू दादी !"पोतु की लचकीली आवाज़ शहद सी मिठास लिए सरकती कान में उतरती है.

"पूछो बेटा !"

` `क्या आप गांव में रहती थी जहाँ स्मार्ट फ़ोन नही थे ?"

उसके समय से भयानक तेज़ी से उड़ चले इस ज़माने की बात अब इसे कैसे समझाये ? वह् व भइया भी तो खींचतान कर अम्मा को अपने ज़माने से जोड़ने की कोशिश करते थे. कभी उन्हें गॉगल्स लगाकर, कभी स्कर्ट मैक्सी पहनाकर उनकी फ़ोटो खींचते थे. जब उसने उन्हें कस्टर्ड पहली बार बनाकर खिलाया था तो वह् शंकित सी पूछ्ती रही थी,"इसमे अंडा तो नही है ?" हाँ, कॉफी की महक से वे तुरंत अपनी धोती का पल्लू नाक पर रख लेती थी.

अब वह् विकास को क्या बताये कि उसकी पीढ़ी के लिए ये सब ऎसे है जैसे कि वह अम्मा को ज़बरदस्ती स्कर्ट मैक्सी पहना कर फ़ोटो लेती थी. क्या बताये जब वह् आठ महीने का था. तब अम्मा गुज़री थी और इत्तेफ़ाक था कि वह् उसे लेकर मम्मी के घर ही थी. मम्मी ने विकास का मुंडन करवा दिया था व उसे उपहार स्वरूप मिक्सी दी थी. जैसे ही मिक्सी चलती `घर्र `घर्र `शुरू होती प्रतीक अपना घुटा सिर हिलाकर उस आवाज़ पर झूमता था, अम्मा अपनी चारपाई पर बैठे बैठे हँस हंस कर लौट पोट हो जाती. उसने पहली बार उन्हें इतना खुश देखा था. शायद सक्रिय जीवन से वे विदा ले चुकी थी लेकिन अपने परिवार की बेल बढ़ते देखना उनका अपना सुख था. एक दिन अचानक वह् बाथरूम में गिरी दो तीन दिन बिस्तर पर तड़पती रह गई. वह् उन्हें पकड़ पकड़ कर उनके नित्य कर्म करवाती थी. उनके यूरिन का टेस्ट होना था इसलिए उन्हें बाथरूम मे बमुश्किल खड़ा कर, शीशी में उनका यूरिन लिया था. उसी रात को छत पर सोने जाने से पहले वह उनके पानी का लोटा भरकर उनकी चारपाई के नीचे रखने गई थी. उसने उनके सिर पर हाथ रखकर पूछा था,"अम्मा पानी पियेंगी ?".

उन्होंने दर्द से ऐंठते चेहरे से`हाँ `में सिर हिलाया था.

उसने दो तीन पानी के घूँट उनके मुँह में डाले थे. उन्होंने अधमुँदी आँख से उसे देखा था फिर दो तीन गहरी साँस ली थी और बस ----. उसे शक हुआ उसने उनके दिल पर हाथ रक्खा व नब्ज़ टटोली ----कुछ नहीं था. वह घबराई सीढ़ियाँ चढ़ गई.

मई का महीना था, सब छत पर ज़मीन पर बिस्तर बिछाकर गप्पे मार रहे थे, बीच में थी गर्मियों की छुट्टियों में उनके घर आयी कुसुम मौसी जो ज़ोर ज़ोर से `डोकरी की पोटली"नुमा किस्से सुना रही थी. सब हँस हँस कर कर बेहाल हुए जा रहे थे. उस ने धीमे से जाकर ममी से धीमे स्वर में कहा,"शायद अम्मा नहीं रही."

सब झटके से उठकर नीचे भाग लिए. दूसरे दिन उनकी यूरिन रिपोर्ट नही आ पायी थी, अम्मा की अर्थी बरामदे में सजायी जा रही थी. बक्स में रक्खी मम्मी की दी हुई सफ़ेद नई धोती निकाली गई थी, चार दिन पहले मेरा सिला उनका ब्लाउज़ निकाला गया था. चाचियाँ व मम्मी उनकी देह को निहला रही थी. उनकी अन्तिम इच्छा पूरी हो गई थी कि वह् मरते दम तक किसी से सेवा ना करवाये. वह् रो रही थी तड़प कर बिलख रही थी, वह् चली गई ---जाना ही था. बस भगवान से बिलख बिलख कर दुआ माँग रही थी ---मेरी अम्मा को दूसरे जन्म में ऎसा रेगिस्तानी अभिशप्त जीवन ना देना -जिसमे अपनी ही साँस पर अपना ही हक ना रहे ---हे भगवान! ना देना ---उन्हें भरा पूरा जीवन उपहार में देना. वह् समझ रही थी कि उनके सामान में से उसने उनकी श्लोकों के हिन्दी के अर्थ वाली पुरानी गीता ही उनकी विरासत में ली थी. तब उसे कहाँ पता था कि वो उसे नदियों, समुद्र, हरे भरे पेड़ों से लदे पहाड़ों से लदी अपनी सम्पदा लुटाती, प्यार लिए उफ़नती, झरनों के रुप में झरनों सी झरती----- बहती धरती, अपना ही प्रतिरूप, बना गई है ---जो अपने सीने में अपनों के लिए बेपनाह गडमड प्यार लिए सामने कोई एक खड़ा हो और वह पुकारती रह्ती है,"कीवी ---बनी ---विहान ---- विकास ----"

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