हॉस्टल से घर जाने का मज़ा ही कुछ और होता है... पता है क्यों..?क्यों की घर पे माँ होती है... कितने दिनों बाद में आज घर जाउंगी...माँ के हाथ का खाना खाऊँगी, घर पे पोहचते ही माँ को कस के गले से लगा लुंगी...और दो तीन पप्पीया भी ले लुंगी.."तू कभी बड़ी नही होगी सिमा,बच्चो जैसी हरकते करती है"..माँ हमेशा की तरह यही बात बोलेगी.."बच्चे कभी माँ के लिए बड़े थोड़ी होते हैं माँ,माँ के लिए तो बच्चे छोटे ही रहते हैं..में तो हमेशा ऐसी ही हरकते करुँगी बच्चो वाली "..और में हमेशा की तरह वही लाईन बोलूंगी..
इतनी उतावली हूं आज घर जाकर माँ से लिपटने के लिए की बस के टाइम से आधे घंटे पहले ही बसस्टॉप पोहच गई में..बस स्टॉप पे मेरी ही उम्र की एक दो लड़कियां भी खड़ी थी..एक दूसरे के साथ बाते करने में मशगूल थी..और सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने,लंबी दाढ़ी वाले एक अंकल भी खड़े थे वहा, फोन पर किसी को चिल्ला रहे थे"अम्मी थोड़ा तो लिहाज़ कर,कितना परेशान करेगी तु हमे,जैसे तेरी बहु बोल रही है वैसा ही किया करना,दोज़ख क्यों दिखा रही हैं हमे"...मे उनकी बाटे सुनके थोड़ी सहम गई,कोन अपनी माँ से ऐसे बात करता है ?
मेने अंकल की बातों से ध्यान भटकाने के लिए अपना फोन निकाला और ऐसे ही खेल ने लग गई,धुप की वजह से मेरी हालत खराब हो रही थी,में बार बार अपनी हाथ में पहनी हुवी घडी देखे जा रही थी,इतने में एक आवाज़ आई "बिस मिनिट और लगेगी बेटा...चार बज कर चालीस मिनिट को आएगी बस,"एक लगभग सत्तर साल की बूढी औरत मेरे पास आ कर खड़ी रही,चेहरे पर काफी ज़ुररिया थी,बाल काफी सफ़ेद और बिखरे हुवे थे उनके,हाथ पांव शायद बीमारी की वजह से कांप रहे थे,हाथ में एक डब्बा था,.में थोड़ी झिझक कर हँसी और "ठीक हैं माजी.."बोल कर अपने फोन में वापस लग गई,धुप बहोत थी,गरमी की वजह से पसीने से में पूरी गीली हो गई थी..
दो मिनिट भी नहीं हुवी थी की वो बुज़ुर्ग वापस बोली"बेटा पानी पीयेगी??"मेने उनका मन रखने के लिए हाँ तो बोल दिया पर मन में खुद पे गुस्सा कर रही थी.. में किसी अजनबी का पानी पीना पसंद नही करती.. "बेटा कुछ खायेगी? मेरा बेटा आ रहा है गांव से,उसकी पसंद के आलू के पराठा बनाये हैं..उसको बहोत पसंद थे बचपन से,पर वो सिर्फ मेरे हाथ के बनाये हुवे ही पराठे खाता है..तू देखना जैसे ही बस से उतरेगा मुज़े कस के गले से लगा देगा और बोलेगा "माँ तेरे बगैर कही पर मन ही नहीं लग रहा था, तो आगया तुजे लेने...... " उसे गए पंदरा दिन भी नही हुवे अभी तो,इतने ही दिन में मेरी याद इतनी आ गई उसे की आज मुझे अपने साथ ले जाने आ रहा हैं,"में खुश होगई सोचा बुज़ुर्ग का बेटा भी मेरे जैसा ही है लगता हैं वो भी अपनी माँ के बगैर रेह नही पाता.. में कुछ बोली तो नही,सिर्फ एक मुस्कान दी.
वापस एक मिनिट भी नही हुवी और वो बोली"उसको मेरे बगैर रहने की आदत ही नहीं है,सुबह उठने के साथ ही उसे सबसे पहले उसकी माँ चाहिए,उसकी छोटी से छोटी बाते मुज़े ना बताए तब तक तो उसे चेन नही पड़ता,और ज़रा सी भी चोट लगे तो मुज़े गले लगा कर ज़ोर ज़ोर से रोता है बच्चे की तराह,में उसे हमेशा कहती हूं कि मेरे बगैर तेरा क्या होगा,तो वो मुज़े गले लगा कर बोलता है कि तेरे बगैर मेरा एक दिन भी नही गुज़रेगा माँ"..इतना बोलते ही वो बुज़ुर्ग के आँख से आंसू आगये,उसने अपने पल्लू से आँखों को पोछ दिया..
कुछ समय और बिता,इतने में एक और बुज़ुर्ग औरत आई और उनका हाथ पकड़ कर खिंच कर उन्हें सामने एक मकान में ले गई,में सोच में ही रह गई की वो दूसरी बुज़ुर्ग कोन थीं?वो बूढी अम्मा को खींच के क्यों ले गई,वो अम्मा चिल्ला रही थी"आज आएगा,आज मेरा बेटा ज़रूर आएगा,"और वो दूसरी बुज़ुर्ग बोल रही थी "अम्मा नहीं आयेगा तेरा बेटा,दस साल बीत गए,वो चला गया तुजे छोड़ कर यहाँ,अब नहीं आएगा वो,क्यों रोज़ इधर आ कर उसका इंतज़ार करती हैं?वो चला गया तुजे इधर छोड़ कर,अपने जीवन में खुश है वो,अब कभी नही आएगा वो तुज़े लेने"
मेरी आँख से आंसुओ की बारिश सी होने लग गई,मेने सामने जिस मकान में वो दूसरी बुज़ुर्ग औरत, अम्मा को ले गई वहा नज़र डाली..उसके बहार बड़े अक्षरों में लिखा था..
"शांति वृद्धाश्रम"
(दस साल पहले दुपहर के 4 बज कर चालीस मिनिट को एक बस में से एक बेटा अपनी माँ को ले कर इसी स्टॉप पर उतरा था,ओर माँ को यहाँ छोड़ कर चला गया था,आज तक वो औरत रोज़ डब्बे में खाना भर कर उसी बस स्टॉप पर वही समय पर आती बस मेसे अपने बेटे के आने का इंतज़ार करती हैं)