किसी ने क्या खूब कहा है।
जन्म हुआ तो मैं रोया और लोग हँसे, मौत आयी तो सब रोये मैं चैन से सोता रहा।
ऊँची नीची जीवन पथ पर चलते चलते, हँसते रोते जन्म मरण का केल चला।
जीवन की प्रति समर्पण और आस्था जीवन के स्वरूप को निश्चित करती है। हम इसे जिस रूप में जीना चाहते है उसी रूप में जिंदगी चलती है।
आरंभ से अवसान तक जीवन के आखिरी प्रमाण तक।
जिंदगी तो क्षणभंगुर है आत्मा के शरीर में वास तक।
सब जानते है जीवन की प्रकृति कितनी अनिश्चितता लिए हुए है और जीवन यात्रा कितनी सीमित है,परंतु फिर भी समान्यतः हर जीव को लगता है कि उसकी जीवन लीला कभी खत्म ही नही होने वाली।ये वसुंधरा हमेशा के लिए केवल उसकी ही है।
अपने झूठे गर्व और विवेकहीनता के कारण मानव अपनी मानवीय गुणों को छोड़ दानवीय गुणों को आत्मसात करने लगता है।उसका अहम उसके विवेक को नष्ट कर देती है।क्या उचित है क्या अनुचित यह सोचने और समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है।
इंसानों की नकाब ओढ़े यह शैतानों की फौज भरी है।
चेहरे से तो इंसान है दिखते पर दिल तो हैवानों की है।
आज परिस्थिति इतनी अधिक खराब होते जा रही है,की हम समझ ही नही पाते है किसपर विस्वास करें, किस को अपना समझें।कौन भला है कौन बुरा है।कभी कभी तो लगता है जैसे मानवीय समाज उन जंगली शिकारी जानवरों की समूह की तरह हो गया है जहाँ सब एक दूसरे को खाने का मौका तलासते रहते है।अपने निहित स्वार्थों के लिए हम मानवीय संवेदना की बलि चढ़ा देने में क्षण मात्र भी संकोच नही करते।ना तो मानवीय आदर्शों का कोई मूल्य है ना ही संबंधों की विस्वास्नीयता ही रह गयी है।हर चीज़ को हम आज नफे नुकशान के तराजू में तौलने लगे है।सब कुछ बदलाव के वीभत्स दौर से गुजर रहा है।समाज अपने अस्तित्व को बचाने में असमर्थ साबित हो रहा है।व्यक्ति अपने हित को साधने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। यह विकाश की विनाशलीला मानवीय मूल्यों का नाश करने के लिए उद्धत है।
आज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल जो समूचे मानव समुदाय के सामने है कि आखिर इस जीवन का उद्देश्य क्या है।क्या मानवीय जीवन बस अपने स्वार्थ साधना तक ही सीमित है?क्या समाज के प्रति हमारा कोई उदरदायित्व नही बनता या हमें बस इन क्षणिक भौतिक सुखों की प्राप्ती और उसके उपयोग तक ही सीमित हो जाना चाहिए।
शायद नही।जीवन का उद्देश्य इतना छोटा नही हो सकता। जीवन पथ पर चलने वाले हर पथिक का यह दायित्व होता है कि आने वाले पीढ़ी की अपेक्षाओं का ध्यान रखे,उनका मार्गदर्शन करें,उन्हें उचित अनुचित का बोध करवाये।हम अपने अनुभव का उपयोग आने वाली पीढ़ियों के लिए कर सकते हैं । उन्हें एक व्यवस्थित ,सुगम एवं शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने का अवसर मिले इसे सुनिश्चित किया जा सकता है।शायद यही मानवीय जीवन का समुचित उपयोग और मानव समाज का उचित उद्देश्य है ।
आते हैं तो सब इस धारा पर कुछ नई यादें छोड़ जाने के लिये।
लेकिन अकसर जिंदगी गुजार लेते है कुछ पत्थरों को समेटने में।