Thug Life - 1 in Hindi Fiction Stories by Pritpal Kaur books and stories PDF | ठग लाइफ - 1

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ठग लाइफ - 1

ठग लाइफ

प्रितपाल कौर

झटका एक

सविता ने तली हुयी मछली का एक बड़ा सा टुकड़ा मुंह में डाला था. मछली बेह्द स्वाद बनी हुयी थी. वह जल्दी जल्दी खा रही थी. सविता खाना हमेशा बहुत जल्दी में खाती है. जैसे कहीं भागना हो. इसी चक्कर में ज़रुरत से ज्यादा खा जाती है. उसका बदन भी इस बात की गवाही देता है. तभी टेबल पर रखा उसका फ़ोन बज उठा. ये स्मार्ट फ़ोन पिछले महीने ही लिया है सविता ने और बेहद खुश है इससे. थोड़ी देर पहले इसकी खासियत के बारे में ही बात कर रही थी वो रेचल से.

उसने नाइफ और फोर्क प्लेट में रखे और फ़ोन उठा कर कान से लगाया. उसके दोस्त रमणीक सिंह का फ़ोन था. रमणीक का फ़ोन अक्सर आता है और सविता एकांत में जा कर रिसीव करती है. इस वक़्त भी उसने कान से फ़ोन लगाया और उठ कर चल पड़ी रेस्तरां के दूसरे कोने की तरफ. वहां कोई नहीं बैठा था.

“हाय….” सविता के स्वर में तितिलियाँ थीं.

“तो तू ही है. अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आयेगी? कुतिया….” उधर से जो ज़हर में डूबा स्वर उसके कान में शीशे की तरह पड़ा वह ज़ाहिर है रमणीक का नहीं था. ये रमणीक की पत्नी रेखा का था.

सविता चौंक पडी. रेखा से कई बार उसकी मुलाकात हुयी है. रमणीक और रेखा के बेटे की शादी में, उसके बाद एक बार वह उनके शिमला वाले कॉटेज में तीन दिन पूरे परिवार के साथ ठहरी भी थी. फिर एक बार दोनों मियाँ बीवी सविता के गुडगाँव वाले घर में भी आये थे, चाय पर.

“रेखा, आर यू ऑलराइट? क्या हुआ ? ये तुम क्या बोल रही हो?” सविता घबरा गयी थी.

“येस, आई एम ऑलराइट. बट यू नीड टू नो दैट आई नो एवेरी थिंग नाउ.” रेखा का स्वर उसी तरह तीखा था. वह बेहद गुस्से में लग रही थी.

“व्हाट डू यू नो माय फ्रेंड?” सविता ने अपने स्वर को नीचा रखने की कोशिश की. अब वह डरी हुयी दिखाई दे रही थी.

“तुम्हारे और रमणीक के बारे में. ये जो खेल तुम खेल रही हो न. इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. समझ लो.”

“ मैंने क्या किया है?” सविता घिघियाई हुयी बोल रही थी.

“अच्छा? तूने कुछ नहीं किया? मेरे सामने मीठी मीठी बन के मेरी दोस्त बनती रही. पीठ पीछे मेरे पति के साथ सोती है?” अब तो सविता के होश उड़ गए थे. उसने आस-पास देखा. कोई नहीं था. सब लोग अपने में मस्त थे. रेचल दूर खाने में बिजी थी. सविता को कुछ राहत महसूस हुयी.

“देखिये, रेखा जी, आप को कोई गलतफहमी हुयी है. हम मिल कर बात करते हैं न. आप कहिये मैं कब आप से मिलने आ जाऊं?” सविता ने किसी तरह बात संभालने की गरज से कहा.

“तू किस मुंह से मिलेगी मुझ से. छिनाल.” रेखा का स्वर और ऊंचा हो गया था.

“तेरे जैसी औरत से और कुछ उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए. मुझे ही तुझ से दूरी रखनी चाहिए थी. मैंने सोचा रमणीक की बचपन की दोस्त है. साथ पढ़े हो. पापा और तेरे पापा भी दोस्त हैं. चलो अकेली रहती है बेचारी, अपने यहाँ इसको बुलाना शरू करो. और देख मेरे घर में ही डाका डालने लगी? अरे तीन घर तो डायन भी छोड़ देती है. तूने मेरे प्यार और विशवास का ये सिला दिया मुझे?”

सविता को लगा वह गिर पड़ेगी. अहिस्ता से एक कुर्सी पर बैठ गयी. "रेखा जी."

“उधर से बेहद कटु स्वर में रेखा ने कहा. “अब ये रेखा जी, रेखा जी मत कर. खबरदार जो आज के बाद मेरे परिवार के किसी भी बन्दे से... सुना तूने? किसी भी बन्दे के मुंह लगी तो.. तू जानती नहीं मैं कौन हूँ. तेरा नामो निशाँ मिटवा देंगे. समझी. कोई दींन-ईमान ही नहीं रह गया है इन अकेली तलाकशुदा औरतों का? " यह बोल कर रेखा ने फ़ोन काट दिया था. सविता उठ कर वापस अपनी टेबल पर आ गयी थी.

रेचल ने सवालिया निगाह उसकी तरफ उठायी तो सविता ने कहा, “बाद में बताती हूँ. कुछ पंगा हो गया है.”

तभी सविता का फ़ोन दोबारा बजा, इस बार अन-नोन नंबर था.

“हेल्लो"

“हेल्लो की बच्ची. हरामजादी तुझे मेरे ही पापा मिले थे इस काम के लिए? साली. खबरदार कभी मेरे बाप का नाम भी लिया तूने. तू जानती नहीं तूने किन लोगों से पंगा ले लिया है.”

सविता पहचान गयी. ये रमणीक का बेटा था. जिसकी शादी में वह पिछले साल पूरे जोशो-खरोश से शामिल हुयी थी. शादी दिल्ली में हुयी थी. रमणीक ने अपने रसूख से सविता के लिए पूरे पांच दिन के लिए एक अलग गाडी का इंतजाम कर दिया था.

सविता ने खूब मज़े किये थे. खूब घूमी थी. शादी में नाची थी. जम कर खाना खाया था. और इसी शादी में ही उसकी रेखा से दोस्ती गहरी हुयी थी. उससे पहले रमणीक से बरसों बाद मिलना हुआ था लेकिन इस शादी के बाद रमणीक और सविता काफी करीब आ गए थे. अक्सर फ़ोन पर घंटों बातें करते रहते. भूली-बिसरी यादें टटोलते रहते. रमणीक अपनी पत्नी रेखा की शिकायतें करता और सविता अपने पति निहाल सिंह के बुरे बर्ताव के किस्से बयान करती.

सविता अभी इस दोबारा हुए हमले से निपटने की कोशिश में ही थी कि रेचल ने पूछा, “निम्मी. आल वेल? हु वाज़ दिस? यु लुक वरीड.”

“नो यार. कुछ नहीं. जस्ट सम स्टुपिड पीपल.” सविता के स्वर में कंपन था जो रेचल ने पहचान लिया था. उसने टेबल पर रखे सविता के हाथ को दबाया था.

“कोई बात नहीं. फ़ोन ही तो है. स्टे कूल. डोंट वरी. डू यू वांट टू लॉज अ कंप्लेंट विद द पुलिस?’

“नो नो. “ सविता बेतरह घबरा गयी थी.

“वो लोग बहुत ताकतवर लोग हैं. नोबडी विल लिसन एनीथिंग अगेंस्ट देम.”

“व्हिच पीपल? योर फ्रेंड रमणीक?”

रेचल के स्वर में चिंता तो थी साथ ही कुछ परिहास भी था और कुछ मज़ाक भी. रेचल अक्सर रमणीक और सविता के किस्से सविता के मुंह से ही सुनती रहती है. कैसे वे फिल्म देखने गए. कैसे शिमला में रेखा के परिवार के कॉटेज में रमणीक और सविता एक ही कमरे में ठहरे.

वो भी कॉटेज के केयर टेकर को दो दिन की छूट्टी दे कर. उसके जाने के बाद कैसे रमणीक ने गाडी भेज कर मार्किट में एक दुकान पर बैठ कर इंतजार कर रही सविता को बुलवाया था और कैसे तीसरे दिन नौकर के जल्दी आ जाने पर पीछे के दरवाजे से सविता को बाहर निकलवाया था. इस तरह के बंदोबस्त में रमणीक का विश्वस्त ड्राईवर रोशन लाल मुख्य भूमिका निभाता था.

रेचल समझ गयी रोशन लाल ने अपना रंग दिखा दिया है और रमणीक को डबल क्रॉस कर के उसकी पत्नी रेखा से मोटी रकम वसूली है. रोशन लाल की किस्मत पर रेचल को रश्क भी आया और दोस्त सविता की हालत पर तरस भी.

एक दो बार उसने सविता को आगाह भी किया था कि वह आग से खेल रही है. शादीशुदा मर्द के साथ सम्बन्ध रखना ठीक नहीं. लेकिन सविता ने अपनी खास उन्मुक्त और आवाज़ को चीख के साथ निकाल कर लेने वाली हंसी के साथ कहा था, "यार. वो तो अपनी पत्नी से परेशान है. बस छोड़ नहीं सकता उसको. वह बड़े बाप की बेटी है. हम दोनों तो बस एक दूसरे के गम में मदद कर रहे हैं.”

रेचल चुप रह गयी थी. आज भी उसने चुप रहना ही ठीक समझा. तभी फ़ोन फिर बजा. इस बार भी नया नंबर था. बिना नाम का. प्राइवेट नंबर. सविता के माथे पर पसीना था. रेचल का दिल पसीज गया. उसने फ़ोन माँगा तो सविता ने फ़ौरन दे दिया.

“हेल्लो" रेचल का स्वर ज़ाहिर है सविता से काफी अलग था.

“उधर से एक ज़नाना स्वर ऐंठा हुआ सा आया, “ कौन है ये? उस सविता को फ़ोन दो.”

“आप कौन बोल रही हैं. मैं उसकी दोस्त हूँ, रेचल. आप मुझ से बात कर सकती हैं.” रेचल ने नरमी से कहा.

“देखो, रेचल, मैं आप को नहीं जानती. आप क्या बात करेंगी? आप को पता नहीं आपकी ये दोस्त क्या चीज़ है? आप अपने हस्बैंड, बॉयफ्रेंड, भाई, पापा सबसे दूर ही रखना इसको. ये किसी को नहीं छोडती.”

“ये आप कैसी बातें कर रही हैं? आप खुद औरत हो कर दूसरी औरत के बारे में इस तरह नहीं बोल सकतीं. ” रेचल को बहुत बुरा लगा था.

“मुझे तुम्हारी आवाज़ से लग रहा है तुम अभी कम उम्र की हो. तुम नहीं जानती इस तरह की औरतों को. खैर! कह देना उस हरामजादी सविता से कि खबरदार दोबारा कभी हमारे घर या शहर की तरफ मुंह भी किया तो.” और फ़ोन बंद हो गया.

रेचल कुछ कहना चाहती थी लेकिन क्या, ये सोच नहीं पाई थी. फ़ोन बंद हुआ तो उसने राहत की सांस ली. उसने फ़ोन सविता को दे दिया.

“सविता, ये सारे नंबर ब्लाक कर दो. अभी.” रेचल भी अब परेशान हो चली थी. उनका खाना बिना खाया टेबल पर ठंडा हो चुका था.

“वो तो रमणीक के फ़ोन से भी मुझे फ़ोन कर रही है. यानी वो सामने बैठा सब सुन रहा है और ये सब लोग मुझे गालियां दे रहे हैं." सविता रुआंसी थी. उसने रेचल की बात सुनी ही नहीं थी.

रेचल ने कहा, "मैं तुम्हें इसीलिये कहती थी. अब वो क्या बोलेगा? पत्नी बच्चों के सामने उसकी पोल खुल गयी है. किस मुंह से बोले और क्या बोले?”

“नहीं रेचल वो तो कहता था रेखा की तो मैं कोई परवाह ही नहीं करता. पाँव की जूती बना के रखता हूँ. बस लोगों के सामने इज्ज़त बनाए रखता हूँ. ” सविता का दर्द आँखों से बह रहा था. टपाटप. “और मुझे तो उसने वादा भी किया है कि एक अच्छी नौकरी लगवा देगा नहीं तो मेरा बिज़नस इस्टेबलिश कर देगा.”

रेचल ने मन में सोचा तो मैडम आप को क्यूँ सर का ताज बनाएगा? आप को भी जूती ही समझेगा. आप भी आखिर तो एक औरत ही हैं. लेकिन चुप रही.

***