Weekend Chiththiya - 5 in Hindi Letter by Divya Prakash Dubey books and stories PDF | वीकेंड चिट्ठियाँ - 5

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वीकेंड चिट्ठियाँ - 5

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(5)

डियर टी,

मैं सबकुछ लिख के कुछ भी आसान नहीं करना चाहता न तुम्हारे लिए न अपने लिए।

कभी कभी सामने दिखती खूबसूरत सड़कों के किनारे पड़ने वाली टुच्ची सी पगडंडियाँ हमें उन पहाड़ों पर लेकर जाती हैं जिसके बारे में हम लाख सोच के भी सोच नहीं सकते। वैसे भी सड़कों और पगडंडियों में बस इतना सा फर्क होता है। सड़कें जहां भी ले जाएँ वो हमेशा जल्दी में रहती हैं और पगडंडियों अलसाई हुई सी ठहरी हुई। वो ठहर कर हम सुस्ता सकते हैं, सादा पानी पी सकते हैं, बातें कर सकते हैं। प्यार और सुस्ताने में मुझे कोई फर्क नहीं लगता है। जब सब कुछ मिल जाये तो आदमी पहली चीज यही कर सकता है। थोड़ा ठहर कर जी भर सुस्ता सकता है। आगे कहाँ जाना है उसके बारे में चाहे तो सोच सकता है, पिछली गलतियाँ याद करके हँस सकता है रो सकता है और इन सबसे ज़्यादा जरूरी काम कर सकता है वो उस पूरे पल में थोड़ा ‘सुस्ता’ सकता है या फिर अपने अधूरेपन वाले सैकड़ों पलों को सुस्ताकर पूरा कर सकता है।

पता नहीं जो मैं लिख रहा हूँ वो तुम समझोगी या नहीं। मैं समझा पाऊँगा या नहीं। कोई और पढ़ेगा कभी तो वो वहाँ तक पहुँचेगा भी या नहीं जहां पर आज हम खड़े हैं।

जब मैं स्कूल कॉलेज ट्यूशन में किसी लड़के को किसी लड़की से प्रपोज़ करते हुए देखता था तो हमेशा सोचता था कि कितना टुच्चा है इनका प्यार कि अगर लड़के ने बोला नहीं होता तो लड़की कभी मानती ही नहीं या फिर ऐसे सोचता था कि प्यार लड़के के बोलने की वजह से हुआ है क्या? और अगर लड़की भी प्यार नहीं करती थी तो वो क्या सोचकर हाँ बोल रही थी। बोलने से ऐसा क्या हो गया कि वो मान गयी। मुझे लड़कियों का ऐसे मान जाना हमेशा झूठ लगता रहा, लगता है और शायद लगता रहेगा। मुझे हमेशा ही लगता था कि जब तक दो लोगों में एक ऐसी स्टेज न आ जाये कि जब बोलना उस पूरे रास्ते का बहुत छोटा हिस्सा हो जाये तब होता होगा प्यार।

ये जो शब्द प्यार है न, इसको इतने लोग इतनी बार बोल चुकें हैं कि मुझे ये दुनिया का सबसे खराब शब्द लगता है। मैं तुम्हारे लिए कोई नया शब्द गढ़ना चाहता हूँ। एकऐसा शब्द जो हमारे बीच का सबकुछ समेट ले। हमेशा तो खैर कुछ नहीं नहीं रहता लेकिन मैं चाहता हूँ कि हम जब इस दुनिया से जाएँ न तो एक दूसरे की वसीयत में बस वो एक शब्द लिख जाएँ।

मैं तुम्हें जहां तक छू चुका मैं जानता हूँ कोई और नहीं छू पाएगा। तुम लाख कोशिश कर लो। मैं ये बात तुम्हें बताना नहीं चाहता था लेकिन अगर मैं नहीं बताता तो ये ‘तिल’ जितनी बात मुझको हमेशा बेचैन करती रहती।

पता है हम पगडंडी के उस हिस्से में खड़े हैं होकर दुनिया को देख रहे हैं जहां पर हमारा एक दूसरे को गले लगा लेना, अपने हाथ से एक बार सही में छूकर देख लेना इतना पीछे छूट चुका है कि अब बचकाना लगता है।

मुझे मालूम है जब तुम लौटोगी तो मुझे सबसे ज़्यादा याद नहीं करोगी। तुम्हें मेरी याद उस दिन आएगी जिस दिन तुम्हें ये एहसास होगा कि तुम जो जिंदगी जी रही हो वो ऐसे ही जैसे सड़क पे चलना जहां चाहकर भी तुम अपनी रफ्तार धीमे नहीं कर सकती। तुम्हारी गाड़ी में अब पहिये दो हैं और तुम उस दुनिया में होगी जहां स्पीड पहिये नहीं जिंदगी डिसाइड करती है।

खैर, तुम आओ कभी हम मिलेंगे, मैं आया तो मिलुंगा, कहीं घूमने चलेंगे, तुम घर पे आकार खाना बनाना या मैं तुम्हारे होटल में रुक जाऊंगा। ये सारी बातें बस एवें ही हैं। ये सब कुछ कभी असली में नहीं भी होगा तो गम नहीं क्यूंकी मुझे हमेशा लगता है ये सबकुछ तो हम दोनों पता नहीं कितनी बार जी चूकें हैं।

इन तमाम बातों में बस एक बात सच है कि मैं 2032 तक तुम्हारा नहीं ‘हमारा’ इंतज़ार करूंगा। तुम्ही ने कहा था मिलने के 15 साल तक अगर हम टच में रहे तो तुम सब छोड़ कर आ जाओगी मेरे पास

तुम इसका जवाब अभी तुरंत मत लिखना। कभी बाद में लिखना।

मिलते है कभी किसी पगडंडी पर...

दिव्य प्रकाश

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