Jhuki hui phoolo bhari daal - 2 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | झुकी हुई फूलों भरी डाल - 2

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झुकी हुई फूलों भरी डाल - 2

झुकी हुई फूलों भरी डाल

[कहानी संग्रह ]

नीलम कुलश्रेष्ठ

2 - अंदर जमी बर्फ़

बहुत उमस भरी जून की रात है गाँव के इस खुले मैदान भी रह रहकर गर्दन चिपचिपा रही है। पसीना पोंछते हुए उसका अंगौछा गीला हो चुका है। नौटंकी शुरू होने में बहुत देर है। एक आदमी हॉर्मोनियम पर घिसी पिटी फ़िल्मी धुनें बजा रहा है-`तन डोले मेरा मन डोले `या `एक परदेसी मेरा दिल ले गया `। उसने रघुवीर व गुलामी की तरफ़ कनखियों से देखा, दोनों उसे ऐसे जकड़कर घेरे बैठे हैं कि वह अपनी जगह से हिल भी नहीं सकता। घर में घड़ा फूटने पर उसे अपने घर से बाहर कुंए पर आना पड़ गया था। दोनों ने उसे घेर लिया था,"अपने गांव में बहुत मशहूर नौटँकी की पार्टी आई है।" वह इन सबसे बहुत दूर भागता रहता है लेकिन आज तो वह फंस ही गया। मजबूरन उसे नौटंकी देखने आना पड़ गया।

लोगों से आधा मैदान तो भर ही गया है। पीछे अब भी लोग आये जा रहे हैं। जग्गा ये देखकर हैरान रह गया किअजयपुरवा के बंसी काका हिलती गर्दन से, कांपते पैरों से लाठी के सहारे अपने ही जैसे साथियों के साथ चले आ रहें हैं। पीछे तीन चार बैलगाड़ियों पर लोग बैठे हुए थे। बैलों को खोलकर पास के खूँटों से बाँध दिया था। इस बार औरतें भी आईं थीं। पेट्रोमेक्स की रोशनी से बचती अँधेरे में अपनी दरियाँ बिछाकर बैठी थीं। तभी एक आदमी ने स्टेज पर आकर कहना शुरू किया, `हम अपनी प्यारी प्यारी जनता के लिए प्रोग्राम सुरु कर रहे हैं। आप लोग बातें करना बंद करें। पहले वन्दना होगी।"

उसके कहने के साथ ही सात लड़कियां, जो वास्तव में लड़के थे, व एक जोकर आकर खड़ा हो गया। उन्हों ने नीचे बेसुरे स्वरों में वंदना शुरू कर दी। जोकर अपनी कमर हिलाकर लोगों को वंदना एके बीच भी हंसाने की कोशिश कर रहा था। वन्दना समाप्त होते ही वे सच की नौटंकी करने लगे. अपने कृत्रिम अंगों को हिलाकर `हम तुम इक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए ` गाने को भौंड़ी आवाज़ में गाकर नाचने लगे। कुछ लोग तो मज़ा लेकर सीटी बजाने लगे। बीच बीच में उनके नकली आभूषण चमक मार रहे थे। वे जिस तरह अपने दुपट्टे को हटाकर नकली सीना हिलाते, जग्गा को मितली सी आने लगती। वह तो हमेशा इस तमाशे से बचता रहता है। वर्षों हो गए इसे देखे।

एक नाटक आरम्भ हो चुका है। जैसे ही कोई अश्लील मज़ाक किया जाता है, उसके दोनों दोस्त अपनी जाँघों पर हाथ मारकर ज़ोर से हंस देतें हैं, `अई साबास --जरा जोर से।" स्टेज के पलंग पर नायिका सो रही है। पति घर में नहीं है। अचानक खिड़की के रास्ते उसका प्रेमी प्रवेश करता है व आहिस्ता आहिस्ता उसकी तरफ़ बढ़ता जा रहा है। उधर जग्गा कि धड़कनें भी बढ़ती जा रहीं हैं, लग रहा है किसी तरह उठकर भाग जाए। तब तक प्रेमी नायिका के चेहरे पर झुकता ही जा रहा है, झुकता ही जा रहा है।

" नहीं ----."जग्गा चीख उठा लेकिन उसने देखा की सब दम साधे आगे के चटपटे दृश्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ओ --यह वह नहीं उसका दिल चीखा था।स्टेज पर टकटकी लगाए उसने गुलामी का हाथ अपने कंधे से धीरे से हटाया और उठ गया। अंधेरा आते ही उसने दौड़ना आरम्भ कर दिया। ऊंची नीची मेढ़ पर उसके पैर डगमगा रहे थे। जब दौड़ते दौड़ते थक गया तो एक नीम के पेड़ पे से टिक कर बैठ गया, अभी तो एक कोस और जाना है।"

दिमाग में खून तेज़ी से दौड़ रहा है, कान सुन्न पड़ गए हैं। लग रहा है इस तनाव से उसका सिर ना फट जाए। वह धौंकनी की तरह चलती सांस पर काबू पाने की कोशिश करने लगा।

---वह कैसी काली रात थी, पर ख़ामोश नहीं थी। छत पर लगाए टीन के पटरे की छाँव में सो रहा था. वह आंधी के थपेड़ों की आवाज़ से डर रहा था।. गाँव की आंधी भी बहुत वीभत्स होती है. अपनी झोली में जाने कितनी धुल भरे `हू `, `हू ` करती, डराती उस धुल को बिखेरती चली जाती है। ऐसी आंधी में दरवाज़ों के पल्ले टकराकर भयानक आवाज़ पैदा करने लगते हैं। उस दिन बापू घर पर नहीं थे. बिना बापू के सांय सांय करती ऐसी डरावनी रातें उसे बहुत बुरी लगतीं हैं. उसकी हिम्मत नहीं थी कि अम्मा को जगाये और कहे नीचे चलें, उसे बहुत डर लग रहा है।

आंधी में झूमते नीम, पीपल के पेड़ भूत लग रहे थे, लेकिन हिम्मत नहीं थी कि उनसे कुछ कहे। वे घुड़ककर फिर सोने के लिए कहेंगी। तभी पास की छत से एक आकृति कूदी, डर के कारण उसका गला चटकने लगा।डरे गले से सोचा चिल्लाये, आवाज़ निकले तब न। वह सहमा हुआ सा चुप पड़ा रहा। अँधेरे में लगा कि वह अम्मा को मार डाले दे रहा है। वह हकबकाया सा चारपाई पर उठकर बैठ गया। उसके उठते ही वे छायाएं अलग हो गईं। वह उसे पहचान कर चिल्ला उठा,"किसनू चाचा--."

" ससुरे की आँख नाहीं लगी।"उसकी अम्मा झल्लाहट में बड़बबड़ाईं थीं।

"तू फ़िक्र ना कर बच्चा है, कुछ ना समझत।"कहते हुए किसनू चाचा जल्दी जल्दी अपनी छत पर चले गए थे। वह बौराया सा बैठा रह गया था, गूंगा हो गया था। कह नहीं पाया था दस बरस की उम्र में गाँव के निठ्ठले लडकों के साथ गलियों में खेलता क्या कुछ नहीं जान गया है। कभी कभी सब कुछ जान लेना कितना जान लेवा होता है। अम्मा घबराहट में नीचे जाने के लिए बिस्तर लपेटती रहीं थीं। घबराहट में बड़बड़ किये जा रहीं थी,"किसनू को आंधी में हमारी खबर पूछने रात में काहे को आना था ?"

वह कह नहीं पा रहा था की बिना बोले क्या पूछ रहा था ?सुबह वह स्वयं अम्मा से आँखें नहीं मिला पा रहा था। अजीब तरह का भय बैठ गया था मन में। जल्दी ही आम के बाग़ में निकला गया था। रात आंधी आने से सारा बाग़ कच्चेआमों से अटा पड़ा था। उसने थैले में ज़मीन से उठाकर आम भर लिए। रास्ते में गोपली व वीरेन मिल गए थे,"इत्ते आमों का क्या करेगा ? थोड़ा सा हमें दे दे।"

वह मुँह चढ़ाकर बोला था,"तुम दोनों बाग़ से ले आओ।"

"साले देता है या नहीं।"दोनों उसे यहाँ वहां मारने लगे। आश्चर्य है उसमें लड़ने की ताकत ही नहीं बची थी। खिसियाया सा पिटकर उन्हें आम ले जाता देखता ही रहा।

तब कुछ ही दिन गुज़रे थे कि उसके हम उम्र साथियों में गली के कोने में सिर जोड़े कुछ बात हो रही थी। वह सीधे ही बीच में जा घुसा। गुलामी बहुत रहस्य्मय आवाज़ में बता रहा था,"कल दोपहरिया में जब बिशन सामान ले के सहर गया तो उसकीअउरत चुपचाप पास वाली छत पर ---ही --ही।" पूरी भी नहीं हुई थी कि वह थर थर काँपने लगा, उसी रात की तरह उसका सीना तेज़ी से धड़कने लगा। वह उस झुण्ड से निकल कर भागता रहा कहाँ --उसे होश नहीं ---पगडंडी, खेत, खलिहान, जंगल, ट्यूब वैल। इतनी सुन्दर औरत, जिसका आस पास के गाँवों में कोई मुकाबला नहीं है, ऐसी हरकत कर सकती है ?

जब वह लाल फूलों वाली हरी धोती में लचकती, पायल छनकाती कुंए पर आती तो दो चार लोग अपनी बाल्टी लिए कुंए पर आ जाते। रघुवीर तो शहर से ख़ुशबूदार साबुन ले आया था। वहीं बैठकर अपने शरीर पर साबुन मलता स्नान करने लगता। जब वह बाल्टी को रस्सी में बांधकर उसे चरखी पर डालने उचकती तो एक क्षण के लिए हरे रंग की धोती में उसकी दूधिया कमर के कटाव को देखकर वह संतोष कर लेता। यही मौक़ा होता था जब वह नीचे बैठे कभी कभी आधे घूंघट में से पूरा चेहरा देख पाए।

एक सप्ताह बाद ही पूरे गाँव में शोर मच गया कि बिशन ने अपनी औरत की `गलापाटी `कर दी। उसने भोलेपन से गुलामी से पूछा था,"ये गलापाटी क्या होता है ?"

वह ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा था,"ससुरे ढींग का ढींग [बहुत बड़ा ]हो गया और ये भी नहीं मालुम की जब किसी की गर्दन को दो डंडों के बीच दबाकर मार डाला जाता है तो वह `गालापाटी `कहलाती है।"

"हे राम ! बिशन ऐसा राख्षस है ?"

"कोई औरत बदमासी करेगी तो उसे सबक तो सिखाना पड़ेगा।"

बिशन को जब पुलिस ने पकड़ कर हथकड़ी लगा दी तो वह सीना ताने उनके साथ बड़बड़ाता चल दिया,"ऐसी औरत किस काम की ? साली रहती मेरे घर में थी और नैन मट्टका कर रही थी। कर दी मैंने उसकी गलापाटी।"

पता नहीं उसे क्या हुआ वह दनदनाता घर आ गया और कुल्हाड़ी ढूँढ़ने लगा। कुल्हाड़ी के मिलते ही उसने कसकर हाथ में उठा लिया लेकिन पता नहीं क्यों उसका हाथ कांपने लगा। उसने उसे कोठरी के कोने में रख दिया और सिर नीचे किये घर से बाहर आ गया। उसने जलती नज़र स किसनू चाचा के घर पर डाली लेकिन वह स्वयं घबराहट में पसीने पसीने हो गया।

बरसों पुरानी अपने घर की घटना जैसे दिमाग से चिपक गई है --नौटंकी देखकर उसका दिल भी खराब हो गया है। नहर के किनारे ऐसे ही चलते हुए जब वह थक गया तो लाचार घर लौट आया। घर में अरहर की दाल और रोटी ढकी हुई रक्खी थी । पिछली बार के ज़मीन से खोदे आलू समाप्त हो चुके थे, बस सुबह शाम ये ही दाल खाये जाओ।

रात में बापू अफ़ीम की पिनक में जाने क्या बड़बड़ाते चारपाई से आधे लटक गए थे। उसने उन्हें खींचकर चारपाई पर खिसका दिया। वह उन्हें कितनी बार अफ़ीम छोड़ने की कह चुका है। अम्मा तो कुछ बोलती नहीं है। वह भी उस दिन से सहमी सहमी हो गई है जब बापू ने किसनू चाचा को उसके दरवाज़े पर लातों पीटते हुए कहा था,"अगर इहां गाँव में तेरी सूरत देखिये तो तेरा खून पी जइये।"

इसके बाद किसनू चाचा को किसी ने गाँव में नहीं देखा था. उस दिन बापू पहली बार अफ़ीम का गोला खाकर नशे में धुत पड़े रहे थे. अम्मा चूल्हे पर रोटी बनाती अपने पल्लु से बार बार पनीली आँखें पोंछती रही थी। उसकी बहिन बिन्दो बार बार पूछती थी बापू अम्मा काहे बैरी[दुश्मन ] से रहतें हैं ?वह क्या बताता ?

उसने देखा की बिन्दो अपनी चारपाई पर कैसे बेफ़िक्र सो रही है।

नुक्कड़ वाले भीम काका से पैसा उधर लेकर जैसे तैसे बिन्दो का ब्याह तय कर पाया है। शादी को दस दिन ही बाकी हैं। शहर का एक चक्कर तो ख़रीददारी के लिए लगाना ही पड़ेगा। बापू तो अब अफ़ीम की पिनक में ही रहते हैं. सारा खेत वही सम्भालता है।

शादी में चारों तरफ़ धूम मची है। उसे दम मरने की फ़ुर्सत नहीं है। वह भागता कभी हवन सामिग्री कोठरी से लाता है, कभी दरवाज़े के बर्तन। हलवाइयों के पास वैसे तो ताऊ जी बैठे हैं लेकिन वह भी बार बार चक्कर लगा आता है। बेंड की आवाज़ से समझ जाता है कि बरात दरवाज़े आ गई है। अब तो बाजे वाले अपने साथ माइक पर गाता एक लड़का भी रखते हैं। गाँव वाले तो अचम्भे से ऐसी बरात देख रहें हैं। औरतें छज्जों पर उचक उचककर लदी जा रहीं हैं। वह खुश है ऐसे गाँव भर में महीने भर तो चर्चा रहेगा। आतिशबाजियों के बीच द्वाराचार बहुत धूमधाम से हो जाता है। अभी फेरे पड़ने में देर है।

बारातियों का दिल बहलाने के लिए अल्लारक्खी व बानो पतुरिया का नाच शुरू हो गया है। वह कभी ऐसे नाच नहीं देखता लेकिन गाँव के रिवाज़ तो निबाहने ही पड़ेंगे। रघुवीर ने ही इनका इंतजाम किया है वह भी कोने में बैठकर इनकी अदाएं देखने लगता है। छोटे छोटे लड़के भी हथेली पर मुंह टिकाये रात भर ये नाच देखेंगे। ऐसे लम्पट हैं दस रूपये का नोट इन्हें दिखाते रहेंगे और बाद में उसे भी अपनी जेब में डालकर चल देंगे। बाराती देसी ठर्रे में ठुमके लगाते एक दूसरे के ऊपर लुड़क रहें हैं। मूंछों के बीच मंद मंद रसीली मुस्कान से रूपये दिखाकर इन पतुरियों को अपने पास बुला रहें हैं। वे अदाएं दिखाती, होंठ दबाती, कमर लचकाती इनके पास आ रहीं हैं। वह वितृष्णा से मुंह फेर लेता है।

एक ज़ोर की,"अय ---हय !क्या बात है ?"पीठ पीछे उसे ये आवाज़ जानी पहचानी लगती है। वह मुड़कर देखता है -एक बराती अपने हाथ में सौ रुपये का एक नोट लिये बानो को खिजा रहा है। उसे लगता है, समय ठहर गया है, दिमाग़ में सन्नाटा पसरा जा रहा है। शरीर में कंपकपाहट फ़ैल रही है, हाथ काँप रहे हैं ---बरात में किसनू ---किसनू चाचा ?जैसे चारों तरफ़ हू हू करती आंधी उस पर धूल बिखेरे दे रही है। कुछ न कर मन:स्थिति में लिए वह खड़ा हो जाता है।

पास बैठा रघुवीर उसके माथे पर पसीने को देखकर सब समझ गया है, उसने उसे फिर बैठा लिया"साले पहिले नहीं बताय दिया रह कि तेरी माँ का यार बरात में आ रहा है. एक मण्डपवा में दुई दुई भाँवरें पड़िहें एक बेटी की, एक माँ की।"वह किसनू की तरफ़ इशारा करके मुस्कराया।

"रघुवीर ---."लगा वह गला फाड़कर चिल्लाया लेकिन आवाज़ तो गले से निकली ही नहीं. वह अपना हाथ छुड़ाकर अंदर भागा और कुल्हाड़ी तलाशने लगा लेकिन उसे हाथ में लेते ही उसके पसीने छूटने लगे. पैर काँपने लगे। उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर दूर जा गिरी। उसने गुस्से से अपने दांतों से अपने हाथ को ही काट लिया. आंसू उसके हाथ पर गिर रहे थे --टप --टप --टप --अचानक बापू की परसों ख़रीदी अफ़ीम पर नज़र गई वह आवेग में झपटकर आले की तरफ बढ़ा। उसने दोनों हाथों से अफ़ीम के गोले निगलने शुरू कर दिए और अपने ज़मीन पर गिरने का इंतज़ार करने लगा, हमेशा के लिए।

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