muskan... do pal ki in Hindi Moral Stories by Satyendra prajapati books and stories PDF | मुस्कान... दो पल की

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मुस्कान... दो पल की

शहर से चार - पांच मील दूर एक गांव सुबह का समय एक खूबसूरत छोटे से घर के किचन में चाय बनाती रिचा जी, अपने पति को आवाज लगाती। मास्टर जी जल्दी आना , मै चाय ला...
अचानक से मास्टर जी पीछे से आकर अपनी खूबसूरत पत्नी को गोद में उठा लेते हैं।
अरे छोड़ो भी मेरी चाय निकाल जायेगी। सुबह- सुबह इतना रोमेंटिक मत हुआ करो मास्टर जी, गालों में चुटकी भर के रिचा जी अपने प्यारे पति से बड़े ही प्यार से कहती।
मास्टर जी कुछ कहते उससे पहले उनकी मां किचन के दरवाजे पर आ पहुंची।
राज बेटा क्या हुआ बहू को (हैरानी से पूछती)
कुछ नहीं कुछ नहीं मां वो.. वो  आपकी बहू को चक्कर आ गया था हड़बड़ाते हुए राज अपनी मां से कहता।
जा बेटा बहू को कमरे में लिटा आ आराम करेगी तो ठीक हो जायेगी। तेरे पापाजी को चाय मै दे आती हूं। मास्टर जी गोद में लिए अपनी मास्टरनी साहिबा को कमरे की तरफ चल दिए।
दो साल होने को हैं शादी के मुझे कुछ काम करने नहीं देती पूरा दिन खुद ही लगी रहती, इस नालायक को भी पढ़ने और पढ़ाने के अलावा दूसरा कोई काम नही।
आखिर बीबी है कुछ तो ख्याल रखना चाहिए।
  मां जी चाय लिए खुद से बड़बड़ाती जाती। 

उधर राज के पिताजी के कानों में आवाज पहुंचती.. क्या हुआ बहू को?
कुछ नहीं थोड़ा चक्कर आ गया आप चाय लो राज की मां कहती।
कोई दिक्कत तो नहीं डॉक्टर को बुला लो। 
राज की मां कोई जवाब न देती ओर दोनों चाय पीने लगते।

उधर रिचा अरे उतारो भी मुझे जी सच में चक्कर नहीं आया मुझे।
और आज तो मां जी मुझे कुछ काम भी न करने देगी, क्या जरूरत थी ये सब कहने की।
बात काटते हुए राज कहता आज तो रविवार है काम मै कर लूंगा।
चलो रहने दो प्यारे प्रभु जी आपसे बातों में कोई नहीं जीत सकता मुझे काम भी बहुत करना। चलो मै आपके लिए चाय लाती रिचा कहती।
बेटा राज.. आया पिताजी जाकर सोफे पर बैठ जाता । बहू की तबीयत तो ठीक है .. हा पिताजी बिल्कुल ठीक है । फिर राज और राज की मां- पिताजी टीवी देखने लगते।
कुछ समय पश्चात रिचा..
मास्टर जी तैयार हो जाओ भूल गए क्या मुझे मंदिर और बाजार भी जाना।
हां चलो मै गाड़ी निकालता हूं।
रिचा _मां जी आपके लिए कुछ लाना है क्या?
अरे बेटा तू कुछ लाना छोड़ती कहा जो मै मंगाऊ। सब मुस्कुराते और रिचा और राज मंदिर को निकल जाते।
मंदिर पहुंचकर राज कहता
मास्टरनी साहिबा आप मंदिर जाकर आओ। मै सामने बाजार से आपकी लिस्ट का सामान खरीदता हूं।( बाज़ार मंदिर ठीक सामने हैं)
नहीं नहीं आज आपको साथ चलना पड़ेगा रिचा कहती।
राज, मै तो इसलिए कह रहा था कि घर जाने में देरी नहीं होगी। रिचा फिर से कुछ कहती _ ठीक है चलो राज कहता ..
मंदिर से प्रसाद लिए गुनगुनाते दोनों बड़ी धुन में नीचे उतरते।

अरे रे र.. क्या हुआ रिचा को संभालते राज कहता।
रिचा को अचानक बहुत सारी उल्टियां आना शुरू हो जाती। राज बिना समय गंवाए तुरंत डॉक्टर के पास ले जाता।
लगभग १ घण्टे के बाद डॉक्टर रिचा की रिपोर्ट लिए मुस्कुराते हुए हैरान परेशान बैठे राज के पास चलते चले आते।
मुबारक हो राज साहब मुबारक हो आप बाप बनने वाले है। राज के कानों में जैसे ही आवाज पहुंचती हैरानी का तो नाम ही रहता, एक मुस्कुराहट खिल उठती।
डॉक्टर को शुक्रिया बोलकर, कुछ दवाइयां ली और रिचा को संभालते हुए गाड़ी की तरफ जाते हुए राज कहता अब सीधे घर चलेंगे, रिचा _ नहीं नहीं मै ठीक हूं शॉपिंग करके ही चलेंगे।
राज के बार बार कहने पर भी रिचा नहीं मानती, हा इसी को तो त्रिया हट कहते कुछ समझना ही नहीं।
सब समझते है किचन का सामान पूरा हो गया फिर कल आप स्कूल चले जाएंगे पढ़ाने।
राज_हा हा समझ गया पर एक शर्त है आप गाड़ी से नीचे नहीं आयेंगे। मै सामान खरीद लाऊंगा। रिचा हा में सर हिला देती ।
शॉपिंग पूरी करने को बाद.. अरे मिठाई तो भूल ही गया, रिचा_ किसके लिए?
अरे मास्टरनी जी इतनी बड़ी खुशखबरी सबको ऐसे ही सुनाएंगे क्या।
राज मिठाई लेता ओर दोनों घर को चल देते।।
रिचा_ क्या सोच रहे हो आप इतनी देर से चुपचाप बैठे हो।
कुछ नहीं बस अपनी गुड़िया का नाम सोच रहा हूं क्या रखेंगे। नहीं मास्टर जी लड़का होगा और उसका नाम तो मैंने पहले सोच रखा हैं रिचा कहती।
नहीं लड़की होगी इसी बीच हंसते मुस्कुराते घर पहुंच जाते।
पापा जी_ मुंह में राज जबरजस्ती मिठाई खिलाते हुए।
अरे.. क्या हुआ कुछ बताओ भी बेटा... आप दादा बनने वाले हो राज कहता।
दादा बनने की खुशी साफ साफ चेहरे पर झलक उठी, खुशी का ठिकाना ही नहीं। अरे बेटा मिठाई लाए हो?, हा पिताजी
सुनो भाग्यवान मै मिठाई बाटने जा रहा हूं तब तक अपने हांथों से मेरा फेवरेट हलवा बना देना बहुत दिनों से नहीं बनाया। राज की मां ताना मारते हुए क्यों आप ही दादा बनने वाले है मै भी दादी बनूंगी किसी और दिन बना दूंगी हलवा।

बड़े खुश मिजाज लोग है। फिर आज इनकी खुशी का ठिकाना कहा, हो भी क्यों ना घर में खिलौना जो आने वाला है।
अब तो रोज- रोज भले ही सुबह नई होती हो मगर बाते वही पुरानी, कभी उसके नाम को लेकर, कभी कपड़े, कभी पढ़ाई के , कभी कुछ तो कभी कुछ पूरा दिन यू ही निकल जाता।

आखिर इंतजार करते - करते आज वो घड़ी आ गई जिसका सबको बेसब्री से इंतज़ार था।
रिचा ने एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया_ मगर ऐसा लगता जैसे साथ में ना जाने कितनी नई ख्वाहिश और खुशियां लेकर आई हो।
मानो तो सारे जहां की खुशियां इस घर में आ गई हो।
आज तीसरा ही दिन था घर के बाहर बधाई देने के लिए गांव वालो की भीड़ लगी हुई थी। क्यों ना हो राज के पिताजी जो गांव के हर व्यक्ति का सुख दुःख बाटने में हमेशा आगे रहते।
अब तो रोज घर में आने जाने वालों का तांता लगा रहता। हसने मुस्कुराने में सारा दिन गुजर जाता। पता भी नहीं लगता कब सुबह होती और रात हो जाती।
कुछ ही दिन बाद.. राज बेटा नामकरण की तैयारी हो गई। पूजा का सामान तो ठीक से लगा दिया और रिचा बेटी कहा हैं पंडित जी आने वाले है_ राज की मां राज से कहती।
उधर पंडित वेदप्रकाश जी आते हुए।
पूजा शुरू होती और फिर अब सब गुड़िया के नाम के लिए नाम सुझाने लगते।
कोई किसी को तो कोई किसी को पसंद ना आता। आखिर कुछ देर बाद राज की मां कहती रिचा बेटी तू ही कोई बिटिया के लिए अच्छा सा नाम सूझा दे।
रिचा रूखी सी मुस्कुराहट लिए मुस्कान,...... मुस्कान कैसा रहेगा मां जी।
राज के पिता_ हा बेटा मुस्कान, हम सब की मुस्कान बनकर जो आई।
पंडित जी पूजा खत्म कर  भोजन कर दक्षिणा ले चले जाते। अब तो इस घर में सुबह से शाम तक मुस्कान ही मुस्कान की आवाज सुनाई पड़ती। अभी तो मुस्कान महीने भर की हुई उसकी पढ़ाई से लेकर हाथ पीले कर देने तक के उसके दादाजी ने ख़्वाब देख लिए।

मगर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था..
लगभग डेढ़ महीने की हुई होगी मुस्कान, नन्ही सी जान को अचानक बुखार ने घेर लिया।
कुछ ही देर में बुखार से वो नन्ही सी जान इस तरह तप उठी रोना ही बंद ना हुआ। सब ने लाख कोशिश की मगर मुस्कान एक पल के लिए भी चुप ना रही।
इधर कुछ ही देर पहले राज डॉक्टर को लेने निकला अब तक ना पहुंचा।
कुछ ही मिनटों के बाद..
राज_ मां डॉक्टर साहब आ....
मुंह खुला का खुला ही रह जाता।
रिचा की गोद में देख उस बेजान गुड़िया को राज के हाथ पैर ठंडे पड़ जाते बेचारा दरवाजे पर ही बेसुध गिर पड़ा। सब अपनी अपनी जगह जिंदा लाश बने हुए बैठे है। डॉक्टर साहब भी  घर के बाहर बैठ जाते। कोई करे भी क्या किसी को होश कहा।
हाय....
कितना सन्नाटा है दिल फटे जा रहे मुंह से आवाज नहीं निकल रही आंसू रुक नहीं रहें। जिस घर मैं सारे जहां की खुशियां थी अब तक दो पल में ही दर्द का मानो पहाड़ टूट पड़ा। कोंन किसे संभाले किसी को होश कहा, राज खुद को संभालते हुए रिचा को गोद में लिटा लेता बेचारी बिल्कुल बेजान पड़ी है मुस्कान को छाती से लगाए। जैसे ही खामोश होंठो की चुप्पी टूटी लगता मानो बादलों के गरजने की आवाज हो।
शोर सुनते ही आस पड़ोस के गांव के लोग भागते हुए चले आते।
विकट दशा देख खुद रोने लगते कुछ हिम्मत भी देते, समझाते। मगर कहां किसे समझ आता।
भयंकर दुख ने जो जकड़ रखा था उस मिटटी की गुड़िया को कलेजे से लगाए रिचा छोड़ती ही नहीं, कितना भी समझाए कोई।
समझे भी क्यों वो मां की ममता दबी की दवी रह गई जिसे नौ महीने कोख में रखा , क्या इसी के लिए आज तक के लिए , वो आवाज़ पहले ही खामोश हो गई जिससे मां नाम का शब्द सुनना था। मगर वो मुस्कान दो पल के लिए थी हां सिर्फ दो पल के लिए।
आज लगभग आठ महीने गुजर गए वो दर्द के ज़ख्म तो भर गए, मगर कहते है ना निशान तो वाकी छोड़ गए।

मास्टरनी साहिबा रात का १ बज रहा आपको नींद नहीं आ रही क्या राज कहता।
रिचा_ आपको कोन सी आ रही मास्टर जी।
लो अब कोई बताओ आंखे खोल कर भी कोई कैसे सो सकता, राज कहता।
रिचा _मतलब आपका
अरे प्यारी जान तुम आंखे खोले रहोगी तो मुझे नींद कैसे आएगी।
रिचा_ वो मुस्क....( मुस्कान की याद आती)
राज बीच में ही मुंह पर हाथ रख देता। नम आंखे लिए राज कहता ख़्वाब था दो पल का भूल जाओ।
चलो ठीक है मेरी प्यारी बीबी जी अब सच्ची में मुस्कुरा दो । राज बाहों में समेटते हुए रिचा से कहता। दोनों एक दूसरे को बाहों में भरे हुए घूरते हुए होंठो पर मुस्कान लिए सो जाते....।

? समाप्त ?
❤️ धन्यवाद ❤️
✍️ आपका "सत्येंद्र" प्रजापति✍️