khatm huaa intezaar in Hindi Moral Stories by Shaihla Ansari books and stories PDF | खत्म हुआ इंतज़ार

Featured Books
Categories
Share

खत्म हुआ इंतज़ार

गर्म रेत पर चलते चलते मेरे पैरों में छाले पड़ने लगे थे। लेकिन मैं रुक भी नहीं सकती थी क्योंकि मैंने अपने आप से वादा किया था। मुझे चलते रहना है तब तक, जब तक मैं अपनी मंजिल तक ना पहुंच जाऊं। हर कदम मैं इस उम्मीद पर आगे बढ़ाती कि शायद अब यह गर्म रेत बर्फ में तब्दील होकर मेरे पैरों को ठंडक देगी। लेकिन मेरी यह उम्मीद टूट जाती है। पिछले एक साल से ये ही होता आ रहा था!!

अनिल जब मुझे देखने आए तो उन्होंने पहली ही नजर में मुझे पसंद कर लिया। अनिल चाहते थे कि हमारी शादी जल्द से जल्द हो जाए ताकि उनकी पत्नी आकर उनके मां-बाप की देखभाल कर सकें। मेरी शादी के अगले ही दिन मेरी सासू मां ने चाबिया मुझे थमाते हुए कहा!!

"हम तो बूढ़े हो चले हैं दिव्या... अब इस घर की जिम्मेदारी तुम संभालो"

चाबी हाथ में आते ही मेरे हाथ कांपने लगे थे। मैै इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे संभालूंगी मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था!!

"दिव्या बेटी.... यह जिम्मेदारी एक ना एक दिन हर बहू पर आती है.... बस तुम पर जल्दी आ गई.... डरो मत... मैं हूं ना" माँँ जी ने मेरे कांपते हाथ पर अपना हाथ रखा तो मैं उनके गले लग गई!!

माताजी और पिताजी ने कभी मुझे यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं उनकी बहु हूं। उन्होंने हमेशा मुझे अपनी बेटी की तरह ही प्यार किया। अनिल भी मुझसे बहुत प्यार करते थे। शादी के बाद दो महीने तक तो ऐसा ही रहा। फिर धीरे धीरे अनिल के सारे रंग मुझ पर खुलने लगे। अनिल की जिंदगी में आने वाली मैं पहली लड़की नहीं थी। अनिल की बहुत सी लड़कियों के साथ दोस्ती थी। उनका फोन लड़कियों के मैसेज से भरा रहता था। जब भी वह हमारे साथ होते तो किसी ना किसी लड़की का फोन अटेंड करने के लिए उठ जाते। मेरे लिए यह सब बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल था। एक औरत कुछ भी बर्दाश्त कर सकती है लेकिन अपने पति का प्यार दूसरी औरत के साथ बटता हुआ नहीं देख सकती। मैं सब कुछ छोड़कर मायके भी नहीं जा सकती थी क्योंकि मुझे उन सभी के बारे में सोचना था जो मेरे साथ जुड़े हुए थे मेरे मां-बाप, छोटे भाई बहन, मां जी और पिता जी। फिर मैंने अपने आप को वक्त के धारे पर छोड़ दिया इस उम्मीद पर,कि कभी तो अनिल उस रास्ते पर आएंगे जो रास्ता मुझ तक आता है लेकिन हर दिन मेरी यह उम्मीद बंधती और टूट जाती। एक साल बाद हमारी बेटी हमारी जिंदगी में आ गई। मुझे लगा शायद अनिल अपनी बेटी की मोहब्बत में सुधर जाएं लेकिन मेरा सोचना गलत था।वो आज भी ऐसे ही थे!!

अपने माथे पर बिंदी लगाते हुए, आईने में अपने आप पर एक नजर डालते हुए, मैं कमरे से बाहर निकल गई!!

"पिताजी.... आप की दवाई टेबल पर रख दी है याद से खा लीजिएगा.....मां जी शायद हमें आने में देर हो जाए..... आप लोक लगा कर सो जाइयेगा...दूसरी चाबी हमारे पास है"

"तुम आराम से जाओ दिव्या.....बहुत दिनों बाद तो तुम अनिल के साथ किसी पार्टी में जा रही हो" मां ने परी के गालों को चूूमते हुए कहा!!

"अनिल के दोस्त की शादी की सालगिरह है वो कह रहे थे मुझे भी चलना है!!

दिव्या जल्दी करो हम लेट हो रहे हैं। बाहर से अनिल ने आवाज लगाई!!

"अच्छा माँ.....हम चलते हैं" दिव्या ने परी को गोद में लेते हुए कहा!!

बहुत देर से परी रोए जा रही थी।अनिल भी पता नहीं अपने दोस्तों के साथ कहां गुम हो गए थे। दिव्या परी को चुप कराती अनिल को इधर-उधर देेखने लगी। अनिल के दिखते ही दिव्या अनिल की तरफ बढ़ी लेकिन अनिल को किसी लड़के से बातें करते देख दिव्या के कदम रुक गए। इससे पहले कि वो वापस पलटती अनिल के मुंह से अपना नाम सुनकर दिव्या चौक गई!!

"तुम अपने आप को दिव्या् से मिला रही हो... अरे तुम तो उसके पैरों की धूल भी नहीं हो... वफा क्या होती है ये मुझे दिव्या ने सिखाया है। तुम जैसी लड़कियां ही होती है जो हम मर्दों को वर्गलाती है। अगर तुम लड़कियां पहली ही बार में, तुम्हारी तरफ बढ़े मर्दों के हाथ को झटक दो तो किसी मर्द की हिम्मत ना हो तुम जैसी लड़कियों की तरफ देखने की। तुम्हारे जैसी लड़कियां सिर्फ मर्दों को रिझा सकती हैं, उनका घर बर्बाद कर सकती है लेकिन उनका घर बसा नहीं सकती और तुम अपने आप को दिव्या से मिला रही हो....दिव्या मेरे बारे में सब कुछ जानती है लेकिन उसने आज तक मुझसे एक शब्द भी नहीं कहा....मैं दिव्या के लिए सब कुछ छोड़ सकता हूं और तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे लिए दिव्या को छोड़ दू... अरे पहले उसके जैसे बनके तो दिखाओ... मेरी जिंदगी में सिर्फ दिव्या है.. और हमेशा वही रहेगी"

दिव्या जो ना जाने कब से गर्म रेत पर सुलगती चली आ रही थी अनिल के एक-एक शब्द ने उस गर्म रेत को ठंडा कर दिया था। कितना सुकून मिला था दिव्या को। अनिल उस लड़की से और भी बहुत कुछ कह रहे थे लेकिन दिव्य ओर बिना कुछ सुने वहां से चली आई क्योंकि अब उसे और कुछ सुनने की जरूरत नहीं थी!!

थोड़ी देर बाद दिव्या को अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसने मुड़ कर देखा तो अनिल उसे देख कर मुस्कुरा रहे थे और दिव्या भी अनिल को देख कर मुस्कुरा दी!!