Weekend Chiththiya - 3 in Hindi Letter by Divya Prakash Dubey books and stories PDF | वीकेंड चिट्ठियाँ - 3

Featured Books
Categories
Share

वीकेंड चिट्ठियाँ - 3

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(3)

बेटी मैं तुमपर कुछ भी थोपना नहीं चाहता, तुम्हारी ‘आज़ादी’ भी नहीं

प्रिय बेटी,

तुम्हें चिट्ठी लिखते हुए एक अजीब सी घबराहट हो रही है। लग रहा है तुमसे पहली बार कोई बात करने जा रहा हूँ। नहीं नहीं इसलिए नहीं कि मेरे पास लिखने के लिए बातें नहीं है । बल्कि इसलिए कि इतनी बातें हैं कि समझ नहीं आ रहा कि आखिर शुरू कहाँ से करूँ। सबकुछ माँ पर छोड़कर हम शायद भूल ही गए हैं कि एक बाप और बेटी सीधे भी बात कर सकते हैं।

वो कहते हैं न कि बाप के जूते जब बेटे के पैर में आने लगे तो रिश्ता बाप-बेटे का नहीं रहता दोस्त का हो जाता है। पता नहीं ऐसा कुछ कभी किसी ने बेटी के लिए क्यूँ नहीं कहा। शायद इसलिए क्यूंकी लड़कों को तो जूते के साइज़ बराबर बड़ा होने में सालों लग जाते हैं। लेकिन लड़कियां उसी दिन से पापा की दोस्त हो जाती हैं जिस दिन वो अपनी तुतलाती आवाज़ में पहली बार मम्मी की सब शिकायतें करती हैं।

जब तुम पहली बार हॉस्टल जा रही थी और तुम्हारी माँ बार बार तुमको बोल रही थी कि बेटी घर की इज्ज़त तुम्हारे हाथ में है कोई ऐसी वैसी बात मत करना, पढ़ने जा रही हो बस मन लगाकर पढ़ना। पता नहीं तुमने माँ की कितनी बात मानी। मान ली तो अच्छा आखिरी बात माँ ने कही थी नहीं भी मानी तो और भी अच्छा क्यूंकी लड़की के बॉयफ्रेंड और घर की इज्ज़त के बीच न कोई रिश्ता कभी हुआ करता था न होता है और न ही होगा।

सही से पढ़ाई करना, खाना टाइम से खा लेना, ऑफिस में मन लगाकर काम करना ये सब बातें इतनी बोरिंग हैं कि बोलने का मन नहीं करता। मुझे मालूम है ये सब तुम अपने आप manage कर लोगी। बेटी कुछ भी करना लाइफ में, बनाना चाहे बिगाड़ना लेकिन याद रखना मैं कभी अखबार में, मैट्रीमोनी वेबसाइट में तुम्हारी शादी का ऍड नहीं देने वाला। सारी पढ़ाई लिखाई और समझदारी सीखने के बाद भी अगर शादी के लिए तुम हमपर dependent हो तो समझो सब सीखना बेकार ही हो गया।

मैं तुमपर कुछ भी थोपना नहीं चाहता, तुम्हारी ‘आज़ादी’ भी नहीं। तुम ये मत समझना कि मैं बड़ा एहसान कर रहा हूँ ये आज़ादी वाली बात बोलकर ये वो आज़ादी है जो मैं तुम्हें दे नहीं रहा। ये तुम्हारी ही है, शुरू से।

बस कभी अपनी माँ जैसी मत बनना, अगर कभी बनना ही पड़े तो अपनी बेटी जैसी बनना। क्यूंकी बेटी आने वाला कल की माँ होती है और माँ बीते हुए कल की बेटी। उम्मीद है कि आगे भी चिट्ठी लिखता रहूँगा। जब बात शुरू हो ही गयी है तो रुकनी नहीं चाहिए।

तुम्हारा पापा

दिव्य प्रकाश दुबे

Contest

Answer this question on info@matrubharti.com and get a chance to win "October Junction by Divya Prakash Dubey"

मुसाफ़िर कैफ़े के महिला पात्र का नाम क्या है ?